गयासुद्दीन गाजी के पिता का नाम - gayaasuddeen gaajee ke pita ka naam

नेहरू-गांधी राजवंश का इतिहास आपके समानें,
प्रियों मित्रों इस लेख में मेरा अपना विचार कुछ भी नही हैं। बस हमारे
द्वारा इसका हिन्दी में अनुवाद किया है जो कि और कुछ नही। ये सभी बातें
बहुत समय से अंग्रेजी में विभिन्न वेब साइडों एवं ग्रुप लिंक (गूगल बाबा
पर भी खोजा) पर उपल्बध है। मैं किसी व्यक्ति विशेष/अन्य की भावनाओं को
ठेस पहँुचाना नही है, अपितु हमारी कोशिश अंग्रेजी से हिन्दी में अनुवाद
करके जनसाधारण की पहुँच में लाना है, एव बताना है कि इतिहास को कैसे
तोडा-मरोडा जा सकता है, कैसे आम जनता को सत्य से वंचित रखा जा सकता है
मेरा छोटा सा प्रयास है कि इस सुलभ होते हुए भी असुलभ सच को मैं सभी के
समीप लाकर प्रस्तुत कर सकू ।

नेहरू-गाँधी राजवंश/छमीतन वंश. की महागाथा प्रारम्भ होती है श्रीमान...
शुरुआत होती है गंगाधर (गंगाधर नेहरू नहीं), यानी मोतीलाल नेहरू के पिता
से नेहरू उपनाम बाद में मोतीलाल ने खुद लगा लिया था, जिसका शाब्दिक अर्थ
था नहर वाले, वरना तो उनका नाम होना चाहिये था मोतीलाल ’धर’, लेकिन जैसा
कि इस खानदान की नाम बदलने की आदत थी उसी के मुताबिक उन्होंने यह किया ।
रॉबर्ट हार्डी एन्ड्रूज की किताब ए लैम्प फॉर इंडिया - द स्टोरी ऑफ मदाम
पंडित में उस तथाकथित गंगाधर का चित्र छपा है, जिसके अनुसार गंगाधर असल
में एक सुन्नी मुसलमान था, जिसका असली नाम गयासुद्दीन गाजी था। आप सोच
रहें होगें की ये कैसे पता चला? दरअसल नेहरू ने खुद की आत्मकथा में एक
जगह लिखा था कि उनके दादा अर्थात मोतीलाल के पिता गंगा धर थे, ठीक वैसा
ही जवाहर की बहन कृष्णा ने भी एक जगह लिखा है कि उनके दादाजी मुगल सल्तनत
(बहादुरशाह जफर के समय) में नगर कोतवाल थे। अब इतिहासकारों ने खोजा तो
पाया कि बहादुरशाह जफर के समय कोई भी हिन्दू इतनी महत्वपूर्ण ओहदे पर
नहीं था। और खोजबीन पर पता चला कि उस वक्त के दो नायब कोतवाल हिन्दू थे
नाम थे भाऊ सिंह और काशीनाथ, जो कि लाहौरी गेट दिल्ली में तैनात थे,
लेकिन किसी गंगा धर नाम के व्यक्ति का कोई रिकॉर्ड नहीं मिला (मेहदी
हुसैन की पुस्तक बहादुरशाह जफर और १८५७ का गदर, १९८७ की आवृत्ति),
रिकॉर्ड मिलता भी कैसे, क्योंकि गंगा धर नाम तो बाद में अंग्रेजों के कहर
से डर कर बदला गया था, असली नाम तो था गयासुद्दीन गाजी। जब अंग्रेजों ने
दिल्ली को लगभग जीत लिया था, तब मुगलों और मुसलमानों के दोबारा विद्रोह
के डर से उन्होंने दिल्ली के सारे हिन्दुओं और मुसलमानों को शहर से बाहर
करके तम्बुओं में ठहरा दिया था, अंग्रेज वह गलती नहीं दोहराना चाहते थे,
जो हिन्दू राजाओं (पृथ्वीराज चैहान ने) ने मुसलमान आक्रांताओं को जीवित
छोडकर की थी, इसलिये उन्होंने चुन-चुन कर मुसलमानों को मारना शुरु किया,
लेकिन कुछ मुसलमान दिल्ली से भागकर पास के इलाकों मे चले गये थे। उसी समय
यह परिवार भी आगरा की तरफ कूच कर गया हमने यह कैसे जाना? नेहरू ने अपनी
आत्मकथा में लिखा है कि आगरा जाते समय उनके दादा गंगा धर को अंग्रेजों ने
रोक कर पूछताछ की थी, लेकिन तब गंगा धर ने कहा था कि वे मुसलमान नहीं
हैं, बल्कि कश्मीरी पंडित हैं और अंग्रेजों ने उन्हें आगरा जाने दिया
बाकी तो इतिहास में सब हैं ही। यह धर उपनाम कश्मीरी पंडितों में आमतौर
पाया जाता है, और इसी का अपभ्रंश होते-होते और धर्मान्तरण होते-होते यह
दर या डार हो गया जो कि कश्मीर के अविभाजित हिस्से में आमतौर पाया जाने
वाला नाम है । लेकिन मोतीलाल ने नेहरू नाम चुना ताकि यह पूरी तरह से
हिन्दू सा लगे। इतने पीछे से शुरुआत करने का मकसद सिर्फ यही है कि हमें
पता चले कि खानदानी लोग क्या होते हैं । कहा जाता है कि आदमी और घोडे को
उसकी नस्ल से पहचानना चाहिये, प्रत्येक व्यक्ति और घोडा अपनी नस्लीय
विशेषताओं के हिसाब से ही व्यवहार करता है, संस्कार उसमें थोडा सा बदलाव
ला सकते हैं, लेकिन उसका मूल स्वभाव आसानी से बदलता नहीं है।

फिलहाल गाँधी-नेहरू परिवार पर फोकस...अपनी पुस्तक द नेहरू डायनेस्टी में
लेखक के.एन.राव लिखते हैं। ऐसा माना जाता है कि जवाहरलाल, मोतीलाल नेहरू
के पुत्र थे और मोतीलाल के पिता का नाम था गंगाधर। यह तो हम जानते ही हैं
कि जवाहरलाल की एक पुत्री थी इन्दिरा प्रियदर्शिनी नेहरू। कमला नेहरू
उनकी माता का नाम था, जिनकी मृत्यु स्विटजरलैण्ड में टीबी से हुई थी।
कमला शुरु से ही इन्दिरा संग फिरोज से विवाह के खिलाफ थीं क्यांे ? यह
हमें नहीं पता.. लेकिन यह फिरोज गाँधी कौन थे ? फिरोज उस व्यापारी के
बेटे थे, जो आनन्द भवन में घरेलू सामान और शराब पहुँचाने का काम करता था
नाम बताता हूॅ पहले आनन्द भवन के बारे में थोडा सा आनन्द भवन का असली नाम
था इशरत मंजिल और उसके मालिक थे मुबारक अली. मोतीलाल नेहरू पहले इन्हीं
मुबारक अली के यहाँ काम करते थे खैर हममें से सभी जानते हैं कि राजीव
गाँधी के नाना का नाम था जवाहरलाल नेहरू, लेकिन प्रत्येक व्यक्ति के नाना
के साथ ही दादा भी तो होते हैं और अधिकतर परिवारों में दादा और पिता का
नाम ज्यादा महत्वपूर्ण होता है, बजाय नाना या मामा के तो फिर राजीव गाँधी
के दादाजी का नाम क्या था आपको मालूम है ? नहीं ना... ऐसा इसलिये है,
क्योंकि राजीव गाँधी के दादा थे नवाब खान, एक मुस्लिम व्यापारी जो आनन्द
भवन में सामान सप्लार्य करता था और जिसका मूल निवास था जूनागढ गुजरात
में... नवाब खान ने एक पारसी महिला से शादी की और उसे मुस्लिम बनाया...
फिरोज इसी महिला की सन्तान थे और उनकी माँ का उपनाम था घांदी (गाँधी
नहीं)... घांदी नाम पारसियों में अक्सर पाया जाता था...विवाह से पहले
फिरोज गाँधी ना होकर फिरोज खान थे और कमला नेहरू के विरोध का असली कारण
भी यही था...हमें बताया जाता है कि राजीव गाँधी पहले पारसी थे... यह
मात्र एक भ्रम पैदा किया गया है । इन्दिरा गाँधी अकेलेपन और अवसाद का
शिकार थीं । शांति निकेतन में पढते वक्त ही रविन्द्रनाथ टैगोर ने उन्हें
अनुचित व्यवहार के लिये निकाल बाहर किया था... अब आप खुद ही सोचिये... एक
तन्हा जवान लडकी जिसके पिता राजनीति में पूरी तरह से व्यस्त और माँ लगभग
मृत्यु शैया पर पडी हुई हों... थोडी सी सहानुभूति मात्र से क्यों ना
पिघलेगी, और विपरीत लिंग की ओर क्यों ना आकर्षित होगी ? इसी बात का फायदा
फिरोज खान ने उठाया और इन्दिरा को बहला-फुसलाकर उसका धर्म परिवर्तन
करवाकर लन्दन की एक मस्जिद में उससे शादी रचा ली (नाम रखा मैमूना बेगम) ।
नेहरू को पता चला तो वे बहुत लाल-पीले हुए, लेकिन अब क्या किया जा सकता
था...जब यह खबर मोहनदास करमचन्द गाँधी को मिली तो उन्होंने ताबडतोड नेहरू
को बुलाकर समझाया, राजनैतिक छवि की खातिर फिरोज को मनाया कि वह अपना नाम
गाँधी रख ले.. यह एक आसान काम था कि एक शपथ पत्र के जरिये, बजाय धर्म
बदलने के सिर्फ नाम बदला जाये... तो फिरोज खान (घांदी) बन गये फिरोज
गाँधी।

विडम्बना यह है कि सत्य-सत्य का जाप करने वाले और सत्य के साथ मेरे
प्रयोग लिखने वाले गाँधी ने इस बात का उल्लेख आज तक कहीं नहीं किया, और
वे महात्मा भी कहलाये...खैर... उन दोनों (फिरोज और इन्दिरा) को भारत
बुलाकर जनता के सामने दिखावे के लिये एक बार पुनः वैदिक रीति से उनका
विवाह करवाया गया, ताकि उनके खानदान की ऊँची नाक (?) का भ्रम बना रहे ।
इस बारे में नेहरू के सेक्रेटरी एम.ओ.मथाई अपनी पुस्तक रेमेनिसेन्सेस ऑफ
थे नेहरू एज (पृष्ट ९४ पैरा २) (अब भारत सरकार द्वारा प्रतिबन्धित) में
लिखते हैं कि पता नहीं क्यों नेहरू ने सन १९४२ में एक अन्तर्जातीय और
अन्तर्धार्मिक विवाह को वैदिक रीतिरिवाजों से किये जाने को अनुमति दी,
जबकि उस समय यह अवैधानिक था, कानूनी रूप से उसे सिविल मैरिज होना चाहिये
था। यह तो एक स्थापित तथ्य है कि राजीव गाँधी के जन्म के कुछ समय बाद
इन्दिरा और फिरोज अलग हो गये थे, हालाँकि तलाक नहीं हुआ था । फिरोज गाँधी
अक्सर नेहरू परिवार को पैसे माँगते हुए परेशान किया करते थे, और नेहरू की
राजनैतिक गतिविधियों में हस्तक्षेप तक करने लगे थे । तंग आकर नेहरू ने
फिरोज का तीन मूर्ति भवन मे आने-जाने पर प्रतिबन्ध लगा दिया था । मथाई
लिखते हैं फिरोज की मृत्यु से नेहरू और इन्दिरा को बडी राहत मिली थी ।
१९६० में फिरोज गाँधी की मृत्यु भी रहस्यमय हालात में हुई थी, जबकि वह
दूसरी शादी रचाने की योजना बना चुके थे । अपुष्ट सूत्रों, कुछ खोजी
पत्रकारों और इन्दिरा गाँधी के फिरोज से अलगाव के कारण यह तथ्य भी
स्थापित हुआ कि श्रीमती इन्दिरा गाँधी (या श्रीमती फिरोज खान) का दूसरा
बेटा अर्थात संजय गाँधी, फिरोज की सन्तान नहीं था, संजय गाँधी एक और
मुस्लिम मोहम्मद यूनुस का बेटा था । संजय गाँधी का असली नाम दरअसल संजीव
गाँधी था, अपने बडे भाई राजीव गाँधी से मिलता जुलता । लेकिन संजय नाम
रखने की नौबत इसलिये आई क्योंकि उसे लन्दन पुलिस ने इंग्लैण्ड में कार
चोरी के आरोप में पकड़ लिया था और उसका पासपोर्ट जब्त कर लिया था ।
ब्रिटेन में तत्कालीन भारतीय उच्चायुक्त कृष्ण मेनन ने तब मदद करके संजीव
गाँधी का नाम बदलकर नया पासपोर्ट संजय गाँधी के नाम से बनवाया था (इन्हीं
कृष्ण मेनन साहब को भ्रष्टाचार के एक मामले में नेहरू और इन्दिरा ने
बचाया था) ।

अब संयोग पर संयोग देखिये... संजय गाँधी का विवाह मेनका आनन्द से हुआ...
कहाँ... मोहम्मद यूनुस के घर पर (है ना आश्चर्य की बात)... मोहम्मद यूनुस
की पुस्तक पर्सन्स, पैशन्स एण्ड पोलिटिक्स में बालक संजय का इस्लामी
रीतिरिवाजों के मुताबिक खतना बताया गया है, हालांकि उसे फिमोसिस नामक
बीमारी के कारण किया गया कृत्य बताया गया है, ताकि हम लोग (आम जनता)
गाफिल रहें.... मेनका जो कि एक सिख लडकी थी, संजय की रंगरेलियों की वजह
से गर्भवती हो गईं थीं और फिर मेनका के पिता कर्नल आनन्द ने संजय को जान
से मारने की धमकी दी थी, फिर उनकी शादी हुई और मेनका का नाम बदलकर मानेका
किया गया, क्योंकि इन्दिरा गाँधी को मेनका नाम पसन्द नहीं था (यह
इन्द्रसभा की नृत्यांगना टाईप का नाम लगता था), पसन्द तो मेनका, मोहम्मद
यूनुस को भी नहीं थी क्योंकि उन्होंने एक मुस्लिम लडकी संजय के लिये देख
रखी थी । फिर भी मेनका कोई साधारण लडकी नहीं थीं, क्योंकि उस जमाने में
उन्होंने बॉम्बे डाईंग के लिये सिर्फ एक तौलिये में विज्ञापन किया था ।
आमतौर पर ऐसा माना जाता है कि संजय गाँधी अपनी माँ को ब्लैकमेल करते थे
और जिसके कारण उनके सभी बुरे कृत्यों पर इन्दिरा ने हमेशा परदा डाला और
उसे अपनी मनमानी करने की छूट दी । ऐसा प्रतीत होता है कि शायद संजय गाँधी
को उसके असली पिता का नाम मालूम हो गया था और यही इन्दिरा की कमजोर नस
थी, वरना क्या कारण था कि संजय के विशेष नसबन्दी अभियान (जिसका मुसलमानों
ने भारी विरोध किया था) के दौरान उन्होंने चुप्पी साधे रखी, और संजय की
मौत के तत्काल बाद काफी समय तक वे एक चाभियों का गुच्छा खोजती रहीं थी,
जबकि मोहम्मद यूनुस संजय की लाश पर दहाडें मार कर रोने वाले एकमात्र
बाहरी व्यक्ति थे...। (संजय गाँधी के तीन अन्य मित्र कमलनाथ, अकबर अहमद
डम्पी और विद्याचरण शुक्ल, ये चारों उन दिनों चाण्डाल चैकडी कहलाते थे...
इनकी रंगरेलियों के किस्से तो बहुत मशहूर हो चुके हैं जैसे कि अंबिका
सोनी और रुखसाना सुलताना अभिनेत्री अमृता सिंह की माँ, के साथ इन लोगों
की विशेष नजदीकियाँ....)एम.ओ.मथाई अपनी पुस्तक के पृष्ठ २०६ पर लिखते हैं
- १९४८ में वाराणसी से एक सन्यासिन दिल्ली आई जिसका काल्पनिक नाम श्रद्धा
माता था । वह संस्कृत की विद्वान थी और कई सांसद उसके व्याख्यान सुनने को
बेताब रहते थे । वह भारतीय पुरालेखों और सनातन संस्कृति की अच्छी जानकार
थी । नेहरू के पुराने कर्मचारी एस.डी.उपाध्याय ने एक हिन्दी का पत्र
नेहरू को सौंपा जिसके कारण नेहरू उस सन्यासिन को एक इंटरव्यू देने को
राजी हुए । चूँकि देश तब आजाद हुआ ही था और काम बहुत था, नेहरू ने अधिकतर
बार इंटरव्यू आधी रात के समय ही दिये । मथाई के शब्दों में - एक रात मैने
उसे पीएम हाऊस से निकलते देखा, वह बहुत ही जवान, खूबसूरत और दिलकश थी - ।

एक बार नेहरू के लखनऊ दौरे के समय श्रध्दामाता उनसे मिली और उपाध्याय जी
हमेशा की तरह एक पत्र लेकर नेहरू के पास आये, नेहरू ने भी उसे उत्तर
दिया, और अचानक एक दिन श्रद्धा माता गायब हो गईं, किसी के ढूँढे से नहीं
मिलीं । नवम्बर १९४९ में बेंगलूर के एक कॉन्वेंट से एक सुदर्शन सा आदमी
पत्रों का एक बंडल लेकर आया । उसने कहा कि उत्तर भारत से एक युवती उस
कॉन्वेंट में कुछ महीने पहले आई थी और उसने एक बच्चे को जन्म दिया । उस
युवती ने अपना नाम पता नहीं बताया और बच्चे के जन्म के तुरन्त बाद ही उस
बच्चे को वहाँ छोडकर गायब हो गई थी । उसकी निजी वस्तुओं में हिन्दी में
लिखे कुछ पत्र बरामद हुए जो प्रधानमन्त्री द्वारा लिखे गये हैं, पत्रों
का वह बंडल उस आदमी ने अधिकारियों के सुपुर्द कर दिया । मथाई लिखते हैं -
मैने उस बच्चे और उसकी माँ की खोजबीन की काफी कोशिश की, लेकिन कॉन्वेंट
की मुख्य मिस्ट्रेस, जो कि एक विदेशी महिला थी, बहुत कठोर अनुशासन वाली
थी और उसने इस मामले में एक शब्द भी किसी से नहीं कहा.....लेकिन मेरी
इच्छा थी कि उस बच्चे का पालन-पोषण मैं करुँ और उसे रोमन कैथोलिक
संस्कारों में बडा करूँ, चाहे उसे अपने पिता का नाम कभी भी मालूम ना
हो.... लेकिन विधाता को यह मंजूर नहीं था.... खैर... हम बात कर रहे थे
राजीव गाँधी की...जैसा कि हमें मालूम है राजीव गाँधी ने, तूरिन (इटली) की
महिला सानिया माईनो से विवाह करने के लिये अपना तथाकथित पारसी धर्म छोडकर
कैथोलिक ईसाई धर्म अपना लिया था । राजीव गाँधी बन गये थे रोबेर्तो और
उनके दो बच्चे हुए जिसमें से लडकी का नाम था बियेन्का और लडके का रॉल ।
बडी ही चालाकी से भारतीय जनता को बेवकूफ बनाने के लिये राजीव-सोनिया का
हिन्दू रीतिरिवाजों से पुनर्विवाह करवाया गया और बच्चों का नाम बियेन्का
से बदलकर प्रियंका और रॉल से बदलकर राहुल कर दिया गया... बेचारी
भोली-भाली आम जनता ! प्रधानमन्त्री बनने के बाद राजीव गाँधी ने लन्दन की
एक प्रेस कॉन्फ्रेन्स में अपने-आप को पारसी की सन्तान बताया था, जबकि
पारसियों से उनका कोई लेना-देना ही नहीं था, क्योंकि वे तो एक मुस्लिम की
सन्तान थे जिसने नाम बदलकर पारसी उपनाम रख लिया था । हमें बताया गया है
कि राजीव गाँधी केम्ब्रिज विश्वविद्यालय के स्नातक थे, यह अर्धसत्य है...
ये तो सच है कि राजीव केम्ब्रिज यूनिवर्सिटी में मेकेनिकल इंजीनियरिंग के
छात्र थे, लेकिन उन्हें वहाँ से बिना किसी डिग्री के निकलना पडा था,
क्योंकि वे लगातार तीन साल फेल हो गये थे... लगभग यही हाल सानिया माईनो
का था...हमें यही बताया गया है कि वे भी केम्ब्रिज यूनिवर्सिटी से स्नातक
हैं... जबकि सच्चाई यह है कि सोनिया स्नातक हैं ही नहीं, वे केम्ब्रिज
में पढने जरूर गईं थीं लेकिन केम्ब्रिज यूनिवर्सिटी में नहीं । सोनिया
गाँधी केम्ब्रिज में अंग्रेजी सीखने का एक कोर्स करने गई थी, ना कि
विश्वविद्यालय में (यह बात हाल ही में लोकसभा सचिवालय द्वारा माँगी गई
जानकारी के तहत खुद सोनिया गाँधी ने मुहैया कराई है, उन्होंने बडे ही
मासूम अन्दाज में कहा कि उन्होंने कब यह दावा किया था कि वे केम्ब्रिज से
स्नातक हैं, अर्थात उनके चमचों ने यह बेपर की उडाई थी) । क्रूरता की हद
तो यह थी कि राजीव का अन्तिम संस्कार हिन्दू रीतिरिवाजों के तहत किया
गया, ना ही पारसी तरीके से ना ही मुस्लिम तरीके से । इसी नेहरू खानदान की
भारत की जनता पूजा करती है, एक इटालियन महिला जिसकी एकमात्र योग्यता यह
है कि वह इस खानदान की बहू है आज देश की सबसे बडी पार्टी की कर्ताधर्ता
है और रॉल को भारत का भविष्य बताया जा रहा है । मेनका गाँधी को विपक्षी
पार्टियों द्वारा हाथोंहाथ इसीलिये लिया था कि वे नेहरू खानदान की बहू
हैं, इसलिये नहीं कि वे कोई समाजसेवी या प्राणियों पर दया रखने वाली
हैं....और यदि कोई सानिया माइनो की तुलना मदर टेरेसा या एनीबेसेण्ट से
करता है तो उसकी बुद्धि पर तरस खाया जा सकता है और हिन्दुस्तान की
बदकिस्मती पर सिर धुनना ही होगा।

यदि मेरे द्वारा कही बातों में कहीं कोई त्रुटि है तो में इसके लिए आप सब
से क्षमा प्रार्थी हूँ एवं आशा करता हूँ कि आप लोग मेरे गलतीयों को ध्यान
न देते हुए मुझे माफ कर देगें।

जय हिन्द जय भारत

आपका अपना
रवि शंकर यादव
मोबाइल 09044492606
ई मेल [email protected]
http://aaj-samaj.blogspot.com

गयासुद्दीन के पिता का नाम क्या था?

गयासुद्दीन का पिता करौना तुर्क ग़ुलाम था व ।

लक्ष्मी नारायण के पिता का नाम क्या था?

Mansa Ram Nehruलक्ष्मी नारायण नेहरू / पिताnull

मोतीलाल नेहरू के पिता का असली नाम क्या था?

गंगाधर नेहरू (1827 – 4 फरवरी 1861) वह 1857 के भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के दौरान दिल्ली के कोतवाल (मुख्य पुलिस अधिकारी) थे। वे स्वतंत्रता सेनानी एवं कांग्रेस नेता मोतीलाल नेहरू के पिता और स्वतंत्रता सेनानी एवं भारत के प्रथम प्रधानमन्त्री जवाहरलाल नेहरू के दादा थे।

नेहरू के दादा का क्या नाम था?

Mansa Ram Nehruगंगाधर नेहरू / दादा या नानाnull