हाइड्रा (Hydra) की खोज सर्वप्रथम लुइवेनहॉक ने की थी। इसका विस्तृत वर्णन ट्रेम्बले ने किया था। इसका वर्तमान नाम लिनियस (Linnaeus) ने दिया था। इसकी लगभग 20 जातियाँ ज्ञात हैं। Show भारत में इसकी चार जातियाँ अधिक पायी जाती हैं-1. हाइड्रा वल्गैरिस 2. हाइड्रा ओलाइगैक्टिस या पैल्मैटोहाइड्रा ओलाइगैक्टिस, 3. हाइड्रा विरिडिस्सिमा या क्लोरोहाइड्रा विरिडिस्सिमा 4. हाइड्रा गैन्जेटिका प्राकृतिक वास एवं स्वभाव (Habitat and Habits)हाइड्रा स्वच्छ और शीतल जल वाले तालाबों, सरिताओं, झीलों आदि में पाया जाता है। ज्यादातर समय यह अपने आधार सिरे से पौधों (मुख्यतः हाइड्रिला-Hydrilla) आदि से चिपका रहता है। आधार वस्तु पर सीधा खड़ा न होकर यह एक कोण पर ही झुका रहता है। यह स्थाई रूप से एक ही वस्तु पर नहीं चिपका रहता है। भोजन की खोज में गमन के द्वारा यह स्थान बदलता रहता है। उपयुक्त वातावरण में यह मुकुलन और सक्रिय पोषण द्वारा जनन करता रहता है। लैंगिक जनन अनुपयुक्त ऋतु "हमारे देश में ग्रीष्म" से पहले होता है। हाइड्रा की संरचना:-माप, आकृति एवं रंग :-हाइड्रा का शरीर नालवत, महीन ओर लम्बा होता है। इसकी सममिति अरीय (radial symmetry) होती है। ऐसी आकृति वाले सदस्य संघ नाइडेरिया में पॉलिप (polyps) कहलाते हैं। इसके विपरीत, प्लेट या छातेनुमा, चपटे से आकृति वाले सदस्यों को मेड्यूसी (medusae) कहते हैं। कुछ के जीवन-वृत्त में मेड्यूसा ओर पॉलिप दोनों प्रकारकी प्रावस्थाएँ पायी जाती हैं। हाइड्रा का शरीर 3-4 मिमी से 1 सेमी तक लम्बा और महीन सूई के बराबर मोटा होता है। अतः ध्यान से देखा जाए तो यह यह जलपात्र में दिखाई देता है। इसमें अपने शरीर को बढ़ाकर अत्यधिक लम्बा करने अथवा सिकोड़कर एक सूक्ष्म बिन्दु के बराबर छोटा कर लेने की क्षमता होती है। प्रायः इसका शरीर सफेद-सा और अर्धपारदर्शक होता है। कुछ जातियों के खोखले सहित संकुचनशील और नालवत होते हैं। ये गमन, भोजन-ग्रहण एवं शत्रुओं सुरक्षा करने में सहायता प्रदान करते हैं। कुछ सदस्य रंगीन पाए जाते हैं। उदाहरणार्थ, हाइड्रा विरिडिस्सिमा हरे, तथा हाइड्रा ओलाइगैक्टिस भूरे रंग का पाया जाता है। बाह्य लक्षण :नालवत् शरीर का आधार छोर बन्द पाया जाता है, चिपचिपी और चपटी अधोबिम्ब (basal disc) बनाता है। इसके द्वारा ही हाइड्रा पौधों आदि से चिपका रहता है। अधोबिम्ब इसके गमन में भी सहायता प्रदान करता है। एक छोटे से शंक्वाकार उभार के रूप में शरीर का स्वतंत्र छोर होता है जिसे अधोरन्ध्र अर्थात् हाइपोस्टोम (hypostome) कहते हैं। हाइपोस्टोम के शिखर पर छोटा-सा गोल मुखद्वार पाया जाता है। इसकी वृत्ताकार आधार रेखा पर 6 से 10 महीन एवं लम्बे धागेनुमा स्पर्शकों (tentacles) का गोल घेरा होता है। हाइड्रा स्पर्शकों को इधर उधर घुमाता रहता है। स्पर्शक शरीर की भाँति शरीर दो भागों में विभेदित होता है— 1. पतला आधार भाग या वृत्त (stalk or peduncle) 2. कुछ फूला हुआ और गहरे से रंग का शेष, जठर भाग (gastric region)। बहुधा शरीर पर एक या इससे अधिक खोखली कलिकाएँ (buds) और, जनन के समय ठोस, अस्थाई जनद (अण्डाशय और वृषण) भी छोटे-छोटे उभारों के रूप में दिखाई देते हैं। हाइड्रा वलौरिस (H. vulgaris), हाइड्रा ओलाइगैक्टिस या पैल्मैटोहाइड्रा ओलाइगैक्टिस (H. oligactis or Plematohydra oligactis), हाइड्रा गैन्जेटिका (H. gangetica) तथा हाइड्रा विरिडिस्सिमा या क्लोरोहाइड्रा विरिडिस्सिमा (H. viridissima or Chlorohydra viridissima)।हाइड्रा का वर्गीकरण (Classification of Hydra)
हाइड्रा का संग्रह एवं संवर्धन (Collection and Culture of Hydra)
हाइड्रा की संरचना (Morphology of Hydra) माप, आकृति एवं रंग (Size, Shape and Colour): हाइड्रा के शरीर ही माप, आकृति तथा रंग का वर्णन इस प्रकार है -
हाइड्रा के बाह्य लक्षण (External Features) : हाइड्रा के बाह्य लक्षण इस प्रकार हैं -
हाइड्रा की सकल संरचना (Gross Anatomy of Hydra)
यह एपिडर्मिस से लगभग दुगुनी मोटी होती है और भ्रूण की एण्डोडर्म (endoderm) से बनी होती है। इसकी कोशिकाएँ मुख्यतः स्तम्भी (columnar) होती हैं। इसका प्रमुख कार्य एक पाचक एवं आकुञ्चनशील स्तर के रूप में होता है। |