भारत में हिंदू नववर्ष चैत्र महीने की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से शुरू होता है. मान्यता है कि सृष्टि के रचियता ब्रह्रमा जी ने इसी दिन से संसार की रचना को शुरू किया था. इसे नव संवत के नाम से संबोधित किया जाता है. इस साल 13 अप्रैल को यह तिथि पड़ रही है और इसी दिन हिन्दू नववर्ष 2078 प्रारंभ हो रहा है. हिन्दू नववर्ष को विक्रम संवत के नाम से जाना जाता है. विक्रम संवत की चैत्र शुक्ल की पहली तिथि से न केवल नवरात्रि में दुर्गा
व्रत-पूजन का आरंभ होता है, बल्कि राजा रामचंद्र का राज्याभिषेक, युधिष्ठिर का राज्याभिषेक, सिख परंपरा के द्वितीय गुरु अंगददेव का जन्म हुआ था. क्यों खास है चैत्र महीने की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि प्राचीन काल में दुनिया भर में मार्च को ही वर्ष का पहला महीना माना जाता था. आज भी बहीखाते का नवीनीकरण और मंगल कार्य की शुरुआत मार्च में ही होती है. ज्योतिष विद्या में ग्रह, ऋतु, मास, तिथि एवं पक्ष आदि की गणना भी चैत्र
प्रतिपदा से ही की जाती है. 90 साल बाद बन रहा अद्भुत संयोग ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, इस बार नव-संवत्सर में एक बेहद विचित्र योग बन रहा है जोकि हानिकारक परिणाम ला सकता है. हिंदू ग्रंथों के अनुसार, इस समय नव-संवत्सर 2077 चल रहा है, इसका नाम प्रमादी है. पुराणों में कुल 60 संवत्सरों का जिक्र है. इसके मुताबिक़ नवसंवत्सर यानी नवसंवत्सर 2078 का नाम आनंद होना चाहिए था. लेकिन ग्रहों के कुछ ऐसे योग बन रहे हैं जिसकी वजह से इस
हिन्दू नववर्ष का नाम 'राक्षस' होगा. इस दिन क्या करें चैत्र माह की शुरुआत शुक्ल प्रतिपदा से होती है यह कल्पादि तिथि है. चैत्र शुक्ल प्रतिपदा तिथि से ही सत युग का प्रारंभ माना जाता है. इस दिन पहले तो सभी को नववर्ष की बधाईं दें. फिर इस माह के प्रारंभ से चार मास तक जलदान करना चाहिए. इस तरह से करें नव वर्ष की पूजा हिन्दू धर्म के माह के दो हिस्से होते हैं पहला शुक्ल पक्ष और दूसरा कृष्ण पक्ष. चैत्र माह की शुरुआत शुक्ल प्रतिपदा तिथि से होती है. शुक्ल अर्थात जब चंद्र की कलाएं बढ़ती है और फिर अंत में पूर्णिमा आती है. Follow Us:
Share Via :Published Date Mon, Apr 12, 2021, 11:01 PM IST
भारत में एक साल में पांच बार मनाया जाता है नया साल, बिखरती हैं खुशियां
जवाली। विश्वभर में नया साल मनाने का तरीका भी अलग-अलग है। सभी धर्मों में नया साल एक उत्सव की तरह अलग-अलग अंदाज में अलग-अलग परंपराओं के साथ मनाया जाता है। कोई नाच-गाकर तो कोई पूजा-अर्चना के साथ नए साल का स्वागत करता है। दुनिया में सबसे अधिक देशों में ईसाई नव वर्ष मनाए जाने की परंपरा है। ईसाई वर्ष 1 जनवरी से शुरू होकर 31 दिसंबर तक 12 महीनों में बंटा हुआ है। जवाली के पंडित अनिल छांगू के अनुसार हर धर्म में नववर्ष की तिथि अलग मानी गई है। खास बात यह है कि भले ही दुनिया के सभी धर्मों के रीति-रिवाज अलग-अलग हों लेकिन 1 जनवरी को सभी देशों में नए साल की धूम रहती है। ईसाई नववर्ष 1 जनवरी से 1 जनवरी से नए साल की शुरुआत 15 अक्टूबर 1582 से हुई। इसके कैलेंडर का नाम ग्रिगोरियन कैलेंडर है। जूलियस सीजर ने ईसा पूर्व 45वें वर्ष में जूलियन कैलेंडर बनाया। तब से 1 जनवरी को नववर्ष मनाते हैं। पारसी नववर्ष : नवरोज से पारसी धर्म का नया वर्ष नवरोज उत्सव के रूप में मनाया जाता है। आमतौर पर 19 अगस्त को नवरोज का उत्सव मनाया जाता है। 3000 वर्ष पूर्व शाह जमशेदजी ने नवरोज मनाने की शुरुआत की थी। पंजाब में नया साल वैशाखी पर्व के रूप में मनाया जाता है। जो अप्रैल में आती है। सिख नानकशाही कैलेंडर के अनुसार होली के दूसरे दिन से नए साल की शुरुआत मानी जाती है। हिंदू नववर्ष चैत्र मास की शुक्ल प्रतिपदा से | हिंदू नववर्ष का प्रारंभ चैत्र मास की शुक्ल प्रतिपदा से माना जाता है। इसे हिंदू नव संवत्सर या नया संवत भी कहते हैं। ऐसी मान्यता है कि भगवान ब्रह्मा ने इसी दिन से सृष्टि की रचना प्रारंभ की थी। इसी दिन से विक्रम संवत के नए साल की शुरुआत होती है। अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार यह तिथि अप्रैल में आती है। इसे गुड़ी पड़वा, उगादी आदि नामों से भारत के कई क्षेत्रों में मनाया जाता है। जैन नववर्ष दीपावली के अगले दिन से | जैन नववर्ष दीपावली के अगले दिन से शुरू होता है। इसे वीर निर्वाण संवत भी कहा जाता है। इसी दिन से जैनी अपना नया साल मनाते हैं।
विभिन्न देश अपना-अपना नववर्ष मनाते हैं, पर हम भारतीय नववर्ष मनाने में संकोच क्यों करते हैं?इस उत्सव में नव-संवत के अतिरिक्त अन्य अनेक प्रसंग भी जुड़े हुए हैं। ऐसा माना जाता है कि इसी दिन के सूर्योदय से ब्रह्माजी ने सृष्टि की रचना प्रारंभ की। सम्राट विक्रमादित्य ने इसी दिन अपना राज्य स्थापित किया। इन्हीं के नाम पर विक्रमी संवत् का पहला दिन प्रारंभ होता है। भारतीय नववर्ष हमारी संस्कृति व सभ्यता का स्वर्णिम दिन है। यह दिन भारतीय गरिमा में निहित अध्यात्म व विज्ञान पर गर्व करने का अवसर है। जिस भारत भूमि पर हमारा जन्म हुआ, जहां हम रहते हैं, जिससे हम जुड़े हैं उसके प्रति हमारे अंदर अपनत्व व गर्व का भाव होना ही चाहिए। भारतीय नववर्ष, इसे नव संवत्सर भी कह सकते हैं। इसी दिन ब्रह्मा जी ने सृष्टि का निर्माण किया था और सभी देवताओं ने सृष्टि के संचालन का दायित्व संभाला था। यह भारतीय या हिंदू रीति से नववर्ष का शुभारंभ है। यह उत्सव चैत्र शुक्ल प्रथमा को मनाया जाता है। जब पूरा विश्व एक जनवरी को नए वर्ष का आरंभ मानता है और भारत में भी 31 दिसंबर की रात को बारह बजे नए वर्ष का जश्न मनाया जाता है, उस मदहोशी में अपने देश की विस्मृत परंपरा को बनाए रखना अँधेरी रात में दिया जलाने के समान है। लेकिन जागरूक भारतीय समाज के प्रयासों से पिछले कई दशकों से इस परंपरा को कायम रखने में सज्जन शक्ति अपने-अपने स्थान पर लगी हुई है। यदि जापान अपनी परंपरागत तिथि अनुसार अपना नववर्ष 'याबुरी' मना सकता है। म्यांमार अप्रैल माह के मध्य में अपना नववर्ष 'तिजान' मना सकता है। ईरान मार्च माह में अपना नववर्ष 'नौरोज' मना सकता है। चीन चंद्रमा आधारित अपना नववर्ष 'असरीयन' मना सकता है। थाईलैंड व कंबोडिया अप्रैल में अपना नववर्ष मना सकते हैं, तो हम भारतीय चैत्र शुक्ल प्रथमा को अपना नववर्ष मनाने में गुरेज क्यों करते हैं? इसे भी पढ़ें: चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को प्रारम्भ होता है हिंदू नववर्षयह नववर्ष हमारा गौरव एवं पहचान वर्ष प्रतिपदा को विभिन्न प्रान्तों में अलग-अलग नामों से मनाया जाता है. प्रायः ये तिथि मार्च और अप्रैल के महीने में पड़ती है। पंजाब में नया साल बैसाखी नाम से 13 अप्रैल को मनाया जाता है। सिख नानकशाही कैलंडर के अनुसार 14 मार्च होला मोहल्ला नया साल होता है। इसी तिथि के आसपास बंगाली तथा तमिल नव वर्ष भी आता है। तेलगु नया साल मार्च-अप्रैल के बीच आता है। आंध्र प्रदेश में इसे उगादि के रूप में मनाते हैं। यह चैत्र महीने का पहला दिन होता है। तमिल नया साल विशु 13 या 14 अप्रैल को तमिलनाडु और केरल में मनाया जाता है। तमिलनाडु में पोंगल 15 जनवरी को नए साल के रूप में आधिकारिक तौर पर भी मनाया जाता है। कश्मीरी कैलेंडर नवरेह 19 मार्च को होता है। महाराष्ट्र में गुड़ी पड़वा के रूप में मार्च-अप्रैल के महीने में मनाया जाता है, कन्नड नया वर्ष उगाडी कर्नाटक के लोग चैत्र माह के पहले दिन को मनाते हैं, सिंधी उत्सव चेटी चांद, उगाड़ी और गुड़ी पड़वा एक ही दिन मनाया जाता है। मदुरै में चित्रैय महीने में चित्रैय तिरूविजा नए साल के रूप में मनाया जाता है। मारवाड़ी नया साल दीपावली के दिन होता है। गुजराती नया साल दीपावली के दूसरे दिन होता है। बंगाली नया साल पोहेला बैसाखी 14 या 15 अप्रैल को आता है। पश्चिम बंगाल और बांग्लादेश में इसी दिन नया साल होता है। चैत्र शुक्ल प्रतिपदा का ऐतिहासिक महत्व इस उत्सव में नव-संवत के अतिरिक्त अन्य अनेक प्रसंग भी जुड़े हुए हैं। ऐसा माना जाता है कि इसी दिन के सूर्योदय से ब्रह्माजी ने सृष्टि की रचना प्रारंभ की। सम्राट विक्रमादित्य ने इसी दिन अपना राज्य स्थापित किया। इन्हीं के नाम पर विक्रमी संवत् का पहला दिन प्रारंभ होता है। हम सबके आदर्श एवं प्रभु श्री राम के राज्याभिषेक का दिन भी यही है। शक्ति की आराधना माँ दुर्गा की उपासना में नवरात्रों का प्रारंभ हमारे भारतीय नववर्ष यानी वर्ष प्रतिपदा से होता है। सिखों के द्वितीय गुरु श्री अंगद देव जी का जन्म दिवस भी आज के दिन ही होता है। स्वामी दयानंद सरस्वती जी ने इसी दिन आर्य समाज की स्थापना की एवं कृणवंतो विश्वमआर्यम का संदेश दिया। सिंध प्रान्त के प्रसिद्ध समाज रक्षक वरूणावतार भगवान झूलेलाल इसी दिन प्रगट हुए। राजा विक्रमादित्य की भांति शालिवाहन ने हूणों को परास्त कर दक्षिण भारत में श्रेष्ठतम राज्य स्थापित करने हेतु यही दिन चुना था। युधिष्ठिर का राज्यभिषेक भी इसी दिन हुआ। संघ संस्थापक प.पू. डॉ. केशवराव बलिराम हेडगेवार का जन्मदिन भी आज के पावन दिन ही होता है। महर्षि गौतम जयंती का दिन भी विक्रमी संवत का प्रथम दिन होता है। इसके साथ-साथ वसंत ऋतु का आरंभ वर्ष प्रतिपदा से ही होता है जो उल्लास, उमंग, खुशी तथा चारों तरफ पुष्पों की सुगंधि से भरी होती है। फसल पकने का प्रारंभ यानि किसान की मेहनत का फल मिलने का भी यही समय होता है। इसी समय में नक्षत्र शुभ स्थिति में होते हैं अर्थात् किसी भी कार्य को प्रारंभ करने के लिये यह शुभ मुहूर्त होता है। भारतीय नववर्ष कैसे मनाएँ जैसे प्रत्येक त्यौहार हमारे अंदर एक नयी स्फूर्ति लेकर आता है और हम उसे पूरे उत्साह व उमंग से मनाकर समाज में समरसता एवं सौहार्द का संदेह देते हैं। उसी प्रकार यह भारतीय नववर्ष भी हमारे लिए ऐसा ही एक अवसर लेकर आता है। इस दिन हम परस्पर एक दूसरे को नववर्ष की शुभकामनाएँ दें। पत्रक बांटें, झंडे, बैनर आदि लगावें। अपने परिचित मित्रों, रिश्तेदारों को नववर्ष के शुभ संदेश भेजें। इस मांगलिक अवसर पर अपने-अपने घरों पर भगवा पताका फहराएँ। अपने घरों के द्वार, आम के पत्तों की वंदनवार से सजाएँ। घरों एवं धार्मिक स्थलों की सफाई कर रंगोली तथा फूलों से सजाएँ। इस अवसर पर होने वाले धार्मिक एवं सांस्कृतिक कार्यक्रमों में भाग लें अथवा कार्यक्रमों का आयोजन करें। प्रतिष्ठानों की सज्जा एवं प्रतियोगिता करें। झंडी और फरियों से सज्जा करें। वाहन रैली, कलश यात्रा, विशाल शोभा यात्राएं कवि सम्मेलन, भजन संध्या, महाआरती आदि का आयोजन करें। चिकित्सालय, गौशाला में सेवा, रक्तदान जैसे कार्यक्रम कर इस दिन के महत्व को व्यापकता के साथ समाज में लेकर जाएं। इसे भी पढ़ें: हिन्दू नववर्ष- गौरवशाली भारतीय संस्कृति के परिचायक का पर्वपिछले कुछ वर्षों से समाज में नववर्ष को लेकर सजगता एवं इसे बहुत ही हर्षोल्लास के साथ मनाने का भाव पहले से बहुत बढ़ा है। अब जरूरत केवल इस बात की है कि हम भारतवासी अपने आत्मगौरव को पहचानें तथा अपने इस भारतीय नववर्ष को धूमधाम के साथ पारिवारिक एवं सामाजिक स्तर पर और अधिक हर्षता एवं व्यापकता के साथ मनाएं, क्योंकि यह भारतीय नववर्ष हमारा गौरव, हमारी पहचान है। इस वर्ष भारतीय नवसंवत्सर 2079 का शुभारम्भ 2 अप्रैल 2022 से हो रहा है। यह दिन वास्तव में हम सबके लिए संकल्प का दिन है। अपने प्रति, अपने समाज व राष्ट्र के प्रति संकल्प लेकर उस पर चलने का दिन है। तो आईये, हम सब इस भारतीय नव वर्ष के दिन कुछ संकल्पों के साथ आगे बढ़ते हैं। -डॉ. पवन सिंह (लेखक मीडिया विभाग, जे.सी. बोस विश्वविद्यालय, फरीदाबाद में एसोसिएट प्रोफेसर हैं) हिन्दू नववर्ष कब और क्यों मनाया जाता है?चैत्र मास की शुक्ल प्रतिपदा से | हिंदू नववर्ष का प्रारंभ चैत्र मास की शुक्ल प्रतिपदा से माना जाता है। इसे हिंदू नव संवत्सर या नया संवत भी कहते हैं। ऐसी मान्यता है कि भगवान ब्रह्मा ने इसी दिन से सृष्टि की रचना प्रारंभ की थी। इसी दिन से विक्रम संवत के नए साल की शुरुआत होती है।
चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को क्या क्या हुआ?पौराणिक मान्यता अनुसार ब्रह्माजी ने चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से ही सृष्टि की रचना शुरू की थी। इसी दिन भगवान विष्णु ने दशावतार में से पहला मत्स्य अवतार लेकर प्रलयकाल में अथाह जलराशि में से मनु की नौका का सुरक्षित स्थान पर पहुंचाया था। प्रलयकाल समाप्त होने पर मनु से ही नई सृष्टि की शुरुआत हुई।
हिन्दू नव वर्ष कब से प्रारम्भ होता है?Hindu Nav Varsh 2022: हिंदू नववर्ष का प्रारंभ चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से होता है. इस साल हिंदू नववर्ष (Hindu Nav Varsh 2079) का प्रारंभ आज 02 अप्रैल दिन शनिवार को चैत्र नवरात्रि से हुआ है. हिंदू नववर्ष को विक्रम संवत या नव संवत्सर कहते हैं.
हिंदू नव वर्ष का मतलब क्या होता है?हिन्दू नव वर्ष
हिन्दुओं का नया बरस चैत्र नव रात्रि के प्रथम दिन अर्थात वर्ष प्रतिपदा एवं गुड़ी पड़वा पर प्रत्येक वर्ष विक्रम सम्वत के अनुसार चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से आरम्भ होता है।
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