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Saakhi (साखी) Chapter Introduction – पाठ प्रवेश‘साखी ‘ शब्द ‘ साक्षी ‘ शब्द का ही (तद्भव ) बदला हुआ रूप है। साक्षी शब्द साक्ष्य से बना है। जिसका अर्थ होता है -प्रत्यक्ष ज्ञान अर्थात जो ज्ञान सबको स्पष्ट दिखाई दे। यह प्रत्यक्ष ज्ञान गुरु द्वारा शिष्य को प्रदान
किया जाता है। संत ( सज्जन ) सम्प्रदाय (समाज ) मैं अनुभव ज्ञान (व्यवाहरिक ज्ञान ) का ही महत्व है -शास्त्रीय ज्ञान अर्थात वेद , पुराण इत्यादि का नहीं। कबीर का अनुभव क्षेत्र बहुत अधिक फैला हुआ था अर्थात कबीर जगह -जगह घूम कर प्रत्यक्ष ज्ञान प्राप्त करते थे। इसलिए उनके द्वारा रचित साखियों मे अवधि , राजस्थानी , भोजपुरी और पंजाबी भाषाओँ के शब्दों का प्रभाव स्पष्ट दिखाई देता है। इसी कारण उनकी भाषा को ‘पचमेल खिंचड़ी ‘ अर्थात अनेक भाषाओँ का मिश्रण कहा जाता है। कबीर की भाषा को सधुक्क्ड़ी भी कहा जाता
है। Saakhi (साखी) Chapter Summary – पाठ सारइन साखियों में कबीर ईश्वर प्रेम के महत्त्व को प्रस्तुत कर रहे हैं। पहली साखी में कबीर मीठी भाषा का प्रयोग करने की सलाह देते हैं ताकि दूसरों को सुख और और अपने तन को शीतलता प्राप्त हो। दूसरी साखी में कबीर ईश्वर को मंदिरों और तीर्थों में ढूंढ़ने के बजाये अपने मन में ढूंढ़ने की सलाह देते हैं। तीसरी साखी में कबीर ने अहंकार और ईश्वर को एक दूसरे से विपरीत (उल्टा ) बताया है। चौथी साखी में कबीर कहते हैं कि प्रभु को पाने की आशा उनको संसार के लोगो से अलग करती है। पांचवी साखी में कबीर कहते हैं कि ईश्वर के वियोग में कोई व्यक्ति जीवित नहीं रह सकता, अगर रहता भी है तो उसकी स्थिति पागलों जैसी हो जाती है। छठी साखी में कबीर निंदा करने वालों को हमारे स्वभाव परिवर्तन में मुख्य मानते हैं। सातवीं साखी में कबीर ईश्वर प्रेम के अक्षर को पढने वाले व्यक्ति को पंडित बताते हैं और अंतिम साखी में कबीर कहते हैं कि यदि ज्ञान प्राप्त करना है तो मोह – माया का त्याग करना पड़ेगा। Saakhi (साखी) Chapter Explanation – पाठ व्याख्याऐसी बाँणी बोलिये ,मन का आपा खोइ। अपना तन सीतल करै ,औरन कौ सुख होइ।। बाँणी – बोली प्रसंग -: प्रस्तुत साखी हमारी हिंदी पाठ्य पुस्तक ‘स्पर्श ‘ से ली गई है। इस साखी के कवी ‘कबीरदास ‘जी है। इसमें कबीर ने मीठी बोली बोलने और दूसरों को दुःख न देने की बात कही है व्याख्या -: इसमें कबीरदास जी कहते है कि हमें अपने मन का अहंकार त्याग कर ऐसी भाषा का प्रयोग करना चाहिए जिसमे हमारा अपना तन मन भी सवस्थ रहे और दूसरों को भी कोई कष्ट न हो अर्थात दूसरों को भी सुख प्राप्त हो। कस्तूरी कुंडली बसै ,मृग ढूँढै बन माँहि। कुंडली – नाभि प्रसंग -: प्रस्तुत साखी हमारी हिंदी पाठ्य पुस्तक ‘स्पर्श ‘ से ली गई है। इसके कवी कबीरदास जी है इसमें कबीर कहते है कि संसार के लोग कस्तूरी हिरण की तरह हो गए है जिस तरह हिरण कस्तूरी प्राप्ति के लिए इधर उधर भटकता रहता है उसी तरह लोग भी ईश्वर प्राप्ति के लिए भटक रहे है। व्याख्या -: कबीरदास जी कहते है कि जिस प्रकार एक हिरण कस्तूरी की खुशबु को जंगल में ढूंढ़ता फिरता है जबकि वह सुगंध उसी की नाभि में विद्यमान होती है परन्तु वह इस बात से बेखबर होता है, उसी प्रकार संसार के कण कण में ईश्वर विद्यमान है और मनुष्य इस बात से बेखबर ईश्वर को देवालयों और तीर्थों में ढूंढ़ता है। कबीर जी कहते है कि अगर ईश्वर को ढूंढ़ना ही है तो अपने मन में ढूंढो। जब मैं था तब हरि नहीं ,अब हरि हैं मैं नांहि। मैं – अहम् ( अहंकार ) प्रसंग -: प्रस्तुत साखी हमारी हिंदी पाठ्य पुस्तक ‘स्पर्श ‘ से ली गई है। इस साखी के कवि कबीरदास जी हैं। इसमें कबीर जी मन में अहम् या अहंकार के मिट जाने के बाद मन में परमेश्वर के वास की बात कहते है। व्याख्या -: कबीर जी कहते हैं कि जब इस हृदय में ‘मैं ‘ अर्थात मेरा अहंकार था तब इसमें परमेश्वर का वास नहीं था परन्तु अब हृदय में अहंकार नहीं है तो इसमें प्रभु का वास है। जब परमेश्वर नमक दीपक के दर्शन हुए तो अज्ञान रूपी अहंकार का विनाश हो गया। सुखिया सब संसार है , खायै अरु सोवै। सुखिया – सुखी प्रसंग -: प्रस्तुत साखी हमारी हिंदी पाठ्य पुस्तक ‘स्पर्श ‘ से ली गई है। इस साखी के कवि कबीरदास जी है। इसमें कबीर जी अज्ञान रूपी अंधकार में सोये हुए मनुष्यों को देखकर दुःखी हैं और रो रहे है हैं। व्याख्या -: कबीर जी कहते हैं कि संसार के लोग अज्ञान रूपी अंधकार में डूबे हुए हैं अपनी मृत्यु आदि से भी अनजान सोये हुये हैं। ये सब देख कर कबीर दुखी हैं और वे रो रहे हैं। वे प्रभु को पाने की आशा में हमेशा चिंता में जागते रहते हैं। बिरह भुवंगम तन बसै , मंत्र न लागै कोइ। बिरह – बिछड़ने का गम प्रसंग -: प्रस्तुत साखी हमारी हिंदी पाठ्य पुस्तक ‘स्पर्श ‘ से ली गयी है। इस साखी के कवि कबीरदास जी हैं। इसमें कबीर कहते हैं कि ईश्वर के वियोग में मनुष्य जीवित नहीं रह सकता और अगर रह भी जाता है तो वह पागल हो जाता है। व्याख्या -: कबीरदास जी कहते हैं कि जब मनुष्य के मन में अपनों के बिछड़ने का गम सांप बन कर लोटने लगता है तो उस पर न कोई मन्त्र असर करता है और न ही कोई दवा असर करती है। उसी तरह राम अर्थात ईश्वर के वियोग में मनुष्य जीवित नहीं रह सकता और यदि वह जीवित रहता भी है तो उसकी स्थिति पागलों जैसी हो जाती है। निंदक नेड़ा राखिये , आँगणि कुटी बँधाइ। निंदक – निंदा करने वाला प्रसंग-: प्रस्तुत साखी हमारी हिंदी पाठ्य पुस्तक ‘स्पर्श ‘ से ली गई है। इस साखी के कवी कबीदास जी हैं। इसमें कबीरदास जी निंदा करने वाले व्यक्तियों को अपने पास रखने की सलाह देते हैं ताकि आपके स्वभाव में सकारात्मक परिवर्तन आ सके। व्याख्या -: इसमें कबीरदास जी कहते हैं कि हमें हमेशा निंदा करने वाले व्यक्तिओं को अपने निकट रखना चाहिए। हो सके तो अपने आँगन में ही उनके लिए घर बनवा लेना चाहिए अर्थात हमेशा अपने आस पास ही रखना चाहिए। ताकि हम उनके द्वारा बताई गई हमारी गलतिओं को सुधर सकें। इससे हमारा स्वभाव बिना साबुन और पानी की मदद के ही साफ़ हो जायेगा। पोथी पढ़ि – पढ़ि जग मुवा , पंडित भया न कोइ। पोथी – पुस्तक प्रसंग -: प्रस्तुत साखी हमारी हिंदी पाठ्य पुस्तक ‘स्पर्श ‘ से ली गई है। इस साखी के कवि कबीरदास जी हैं। इसमें कबीर जी पुस्तक ज्ञान को महत्त्व न देकर ईश्वर – प्रेम को महत्त्व देते हैं। व्याख्या -: कबीर जी कहते है कि इस संसार में मोटी – मोटी पुस्तकें (किताबें ) पढ़ कर कई मनुष्य मर गए परन्तु कोई भी मनुष्य पंडित (ज्ञानी ) नहीं बन सका। यदि किसी व्यक्ति ने ईश्वर प्रेम का एक भी अक्षर पढ़ लिया होता तो वह पंडित बन जाता अर्थात ईश्वर प्रेम ही एक सच है इसे जानने वाला ही वास्तविक ज्ञानी है। हम घर जाल्या आपणाँ , लिया मुराड़ा हाथि। जाल्या – जलाया प्रसंग -: प्रस्तुत साखी हमारी हिंदी पाठ्य पुस्तक ‘स्पर्श ‘ से ली गई है। इस साखी के कवि कबीरदास जी हैं। इसमें कबीर मोह – माया रूपी घर को जला कर अर्थात त्याग कर ज्ञान को प्राप्त करने की बात करते हैं। व्याख्या -: कबीर जी कहते हैं कि उन्होंने अपने हाथों से अपना घर जला दिया है अर्थात उन्होंने मोह -माया रूपी घर को जला कर ज्ञान प्राप्त कर लिया है। अब उनके हाथों में जलती हुई मशाल ( लकड़ी ) है यानि ज्ञान है। अब वे उसका घर जलाएंगे जो उनके साथ चलना चाहता है अर्थात उसे भी मोह – माया से मुक्त होना होगा जो ज्ञान प्राप्त करना चाहता है। Saakhi (साखी) Chapter Question Answers – प्रश्न अभ्यास(क ) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिये :- प्रश्न 1 -: मीठी वाणी बोलने से औरों को सुख और अपने तन को शीतलता कैसे प्राप्त होती है ? उत्तर -: कबीरदास जी के अनुसार जब आप दूसरों के साथ मीठी भाषा का उपयोग करोगे तो उन्हें आपसे कोई शिकायत नहीं रहेगी। वे सुख का अनुभव करेंगे और जब आपका मन शुद्ध और साफ़ होगा परिणामस्वरूप आपका तन भी शीतल रहेगा। प्रश्न 2 -: दीपक दिखाई देने पर अँधियारा कैसे मिट जाता है ? साखी के सन्दर्भ में स्पष्ट किजिए। उत्तर -: तीसरी साखी में कबीर का दीपक से तात्पर्य ईश्वर दर्शन से है तथा अँधियारा से तात्पर्य अज्ञान से है। ईश्वर को सर्वोच्च ज्ञान कहा गया है अर्थात जब किसी को सर्वोच्च ज्ञान के दर्शन हो जाये तो उसका सारा अज्ञान दूर होना सम्भव है। प्रश्न 3 -: ईश्वर कण – कण में व्याप्त है , पर हम उसे क्यों नहीं देख पाते ? उत्तर -: कबीरदास जी दूसरी साखी में स्पष्ट करते हैं कि ईश्वर कण कण में व्याप्त है ,पर हम अपने अज्ञान के कारण उसे नहीं देख पाते क्योंकि हम ईश्वर को अपने मन में खोजने के बजाये मंदिरों और तीर्थों में खोजते हैं। प्रश्न 4 -: संसार में सुखी व्यक्ति कौन है और दुखी कौन ? यहाँ ‘सोना’ और ‘जागना’ किसके प्रतिक हैं ? इसका प्रयोग यहाँ क्यों किया गया है ? स्पष्ट कीजिए। उत्तर -: कबीरदास के अनुसार संसार के वे सभी व्यक्ति जो बिना किसी चिंता के जी रहे हैं वे सुखी हैं तथा जो ईश्वर वियोग में जी रहे हैं वे दुखी हैं। यहाँ ‘सोना ‘ ‘अज्ञान ‘ का और ‘जागना ‘ ईश्वर – प्रेम ‘ का प्रतिक है। इसका प्रयोग यहाँ इसलिए हुआ है क्योंकि कुछ लोग अपने अज्ञान के कारण बिना चिंता के सो रहे हैं और कुछ लोग ईश्वर को पाने की आशा में सोते हुए भी जग रहे हैं। प्रश्न 5 -: अपने स्वभाव को निर्मल रखने के लिए कबीर ने क्या उपाय सुझाया है ? उत्तर -: अपने स्वभाव को निर्मल रखने के लिए कबीर ने निंदा करने वाले व्यक्तिओं को अपने आस पास रखने का उपाय सुझाया है। उनके अनुसार निंदा करने वाला व्यक्ति जब आपकी गलतियां निकालेगा तो आप उस गलती को सुधार कर अपना स्वभाव निर्मल बना सकते हैं। प्रश्न 6 -: ‘ ऐकै अषिर पीव का , पढ़ै सु पंडित होइ ‘ – इस पंक्ति द्वारा कवि क्या कहना चाहता है ? उत्तर -: ‘ऐकै अषिर पीव का , पढ़ै सु पंडित होइ ‘ – इस पंक्ति में कवि ईश्वर प्रेम को महत्त्व देते हुए कहना चाहता है कि ईश्वर प्रेम का एक अक्षर ही किसी व्यक्ति को पंडित बनाने के लिए काफी है। प्रश्न 7 -: कबीर की उद्धृत साखियों की भाषा की विशेषता प्रकट कीजिए। उत्तर -: कबीर की साखिओं में अनेक भाषाओँ का प्रभाव स्पष्ट दिखाई देता है। उद्धृत साखिओं की भाषा की विशेषता यह है कि इसमें भावना की अनुभूति ,रहस्यवादिता तथा जीवन का संवेदनशील संस्पर्श तथा सहजता को प्रमुख स्थान दिया गया है। ख ) निम्नलिखित पंक्तिओं के भाव स्पष्ट कीजिये :- (1 ) ‘ बिरह भुवंगम तन बसै , मंत्र न लागै कोइ। ‘ भाव -: इस पंक्ति का भाव यह है कि जब किसी मनुष्य के मन में अपनों से बिछड़ने का गम रूपी साँप जगह बना लेता है तो कोई दवा ,कोई मंत्र काम नहीं आते। (2 ) ‘ कस्तूरी कुंडलि बसै ,मृग ढूँढ़ै बन माँहि। ‘ भाव -: इस पंक्ति का भाव यह है कि अज्ञान के कारण कस्तूरी हिरण पूरे वन में कस्तूरी की खुसबू के स्त्रोत को ढूंढता रहता है जबकि वह तो उसी के पास नाभि में विद्यमान होती है। ( 3 ) ‘ जब मैं था तब हरि नहीं ,अब हरि हैं मैं नहीं। ‘ भाव -: इस पंक्ति का भाव यह है कि अहंकार और ईश्वर एक दूसरे के विपरीत हैं जहाँ अहंकार है वहां ईश्वर नहीं ,जहाँ ईश्वर है वहां अहंकार का वास नहीं होता। ( 4 ) ‘ पोथी पढ़ि – पढ़ि जग मुवा , पंडित भया न कोइ। ‘ भाव -: इस पंक्ति का भाव यह है कि किताबी ज्ञान किसी को पंडित नहीं बना सकता , पंडित बनने के लिए ईश्वर – प्रेम का एक अक्षर ही काफी है। ईश्वर कण कण में व्याप्त है किंतु हम उसे देख नहीं पाते क्यों?वह निराकार है। हमारा मन अज्ञानता, अहंकार, विलासिताओं में डूबा है। इसलिए हम उसे नहीं देख पाते हैं। हम उसे मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारा सब जगह ढूँढने की कोशिश करते हैं लेकिन जब हमारी अज्ञानता समाप्त होती है हम अंतरात्मा का दीपक जलाते हैं तो अपने ही अंदर समाया ईश्वर हम देख पाते हैं।
ईश्वर कण कण में व्याप्त है फिर भी वह हमें दिखाई क्यों नहीं देता 40 50 शब्दों में उत्तर लिखें?ईश्वर कण-कण में व्याप्त है पर हम उसे क्यों नहीं देख पाते ? Solution : हमारा मन अज्ञानता, अहंकार विलासिताओं में डूबा रहता है। हमारे जीने का उद्देश्य भौतिक प्रगति ही करना है। हम ईश्वर को मन्दिर, मस्जिद जैसी बाहरी दुनिया में ढूँढ़ते हैं जबकि वह सब ओर व्याप्त है।
संसार के कण कण में किसका वास है?संसार के कण-कण में ईश्वर का वास है। हर जीव, पेड़-पौधे में परमपिता परमेश्वर का अंश है। आवश्यकता है तो अपने अंदर ईश्वर का अनुभव, प्रतीति करने की। ईश्वर की कृपा दृष्टि सब पर है।
संसार के कण कण में विराजमान होने के कारण ईश्वर को क्या कहा जाता है?ईश्वर सर्व व्यापक कहा जाता है अर्थात वह हर जगह है और कण-कण में विद्यमान है।
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