Class 10 Hindi Important Questions-George Pancham Ki Naak Extra Questions | जॉर्ज पंचम की नाक | जॉर्ज पंचम की नाक (अति महत्त्वपूर्ण प्रश्न)
जॉर्ज पंचम की नाक (अति महत्त्वपूर्ण प्रश्न)
प्रश्न 1.
'जॉर्ज पंचम की नाक' पाठ में देश की किन स्थितियों पर व्यंग्य किया गया है? पाठ के कथानक के आधार पर लिखिए। इस पाठ को पढ़कर आपको क्या प्रेरणा मिलती है? बताइए।
उत्तर:
'जॉर्ज पंचम की नाक' पाठ के माध्यम से देश की बदहाल विभिन्न स्थितियों पर व्यंग्य किया गया है। इसमें दर्शाया गया है कि अंग्रेजी हुकूमत से आज़ादी प्राप्त करने के बाद भी सत्ता से जुड़े लोग औपनिवेशिक दौर की मानसिकता के शिकार हैं। 'नाक' मान-सम्मान व प्रतिष्ठा का प्रतीक है, जबकि 'कटी हुई नाक' अपमान का प्रतीक है। जॉर्ज पंचम की नाक अर्थात् सम्मान एक साधारण भारतीय की नाक से भी छोटी (कम) है, फिर भी सरकारी अधिकारी उनकी नाक बचाने के लिए जी-जान से लगे रहे। अंत में किसी जीवित व्यक्ति की नाक काटकर जॉर्ज पंचम की लाट पर लगा दी गई। केवल दिखावे के लिए या दूसरों को खुश करने के लिए अपनों की इज्जत के साथ खिलवाड़ की जाती है। यह पूरी प्रक्रिया भारतीय जनता के आत्मसम्मान पर प्रहार दर्शाती है। इसमें सत्ता से जुड़े लोगों की मानसिकता पर व्यंग्य है।
इस पाठ से हमें यह प्रेरणा मिलती है कि अपने राष्ट्र एवं समाज को भ्रष्टाचार मुक्त तथा तार्किक बनाना चाहिए। सरकारी प्रक्रियाओं को और अधिक पारदर्शी एवं ईमानदार बनाना चाहिए। किसी की भावनाओं को ठेस नहीं पहुँचानी चाहिए। अपने देश एवं देशवासियों के सम्मान की हमेशा रक्षा करनी चाहिए।
प्रश्न 2.
मूर्तिकार ने नाक लगाने के लिए क्या-क्या प्रयास किए? क्या आपकी दृष्टि से उसके द्वारा किए गए प्रयास उचित थे? यदि आप होते, तो क्या करते? 2015
उत्तर:
जॉर्ज पंचम की लाट पर नाक पुनः लगाने के लिए मूर्तिकार ने निम्नलिखित प्रयत्न किए- सर्वप्रथम उसने जॉर्ज पंचम की नाक के निर्माण में प्रयुक्त पत्थर को खोजने का प्रयास किया, परंतु इस प्रयास में वह असफल रहा क्योंकि वह पत्थर विदेशी था। फिर उसने देशभर में घूम-घूम कर शहीद नेताओं की मूर्तियों की नाकों का नाप लिया, ताकि उन मूर्तियों में से किसी एक की नाक को जॉर्ज पंचम की लाट पर लगाया जा सके, परंतु उसका यह प्रयास भी असफल रहा क्योंकि सभी मूर्तियों की नाकें आकार में बड़ी निकलीं। इसके पश्चात् उसने 1942 में बिहार सेक्रेटरियट के सामने शहीद हुए बच्चों की मूर्तियों की नाकों का नाप लिया, किंतु वे भी बड़ी निकलीं।
अंत में उसने जिंदा नाक लगाने का निर्णय किया और जॉर्ज पंचम को ज़िंदा नाक लगा दी गई। हमारी दृष्टि में मूर्तिकार के प्रयास उचित नहीं थे। वह कलाकार तो था, परंतु सही मायनों में पैसों का लालची था। वह सरकारी धन का भरपूर दुरुपयोग करना चाहता था। अंत में जिंदा नाक काट कर लगा देने की राय देकर वह कला के नाम का सरकार का जमकर शोषण करता है। यदि हम मूर्तिकार की जगह होते तो ऐसा कभी न करते। भारत के महान नेताओं एवं बालकों का सम्मान जॉर्ज पंचम से बढ़कर नहीं था, अतः उनकी नाक ऊँची है। जॉर्ज पंचम उनके समक्ष कहीं नहीं ठहरते। जिंदा नाक का महत्त्व तो और भी ज्यादा है। हम मूर्तिकार की तरह जॉर्ज पंचम को नाक लगाने का किसी भी प्रकार का कोई प्रयास न करते।
प्रश्न 3.
समाचार-पत्रों की जन-जागरण में क्या भूमिका होती है? 'जॉर्ज पंचम की नाक' पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
समाचार-पत्र केवल सूचनाएँ या देश-विदेश के समाचार ही नहीं देते। जन-जागरण उत्पन्न करने में, लोगों को चेतना-सम्पन्न बनाने में, प्रत्येक क्षेत्र में हल-चल मचाने में समाचार-पत्र विशिष्ट भूमिका रखते हैं। 'जॉर्ज पंचक की नाक' पाठ में रानी एलिज़ाबेथ की भारत आगमन की सूचना ही न केवल अखबारों द्वारा मिलती है, अपितु उनकी शाही तैयारियों की विस्तृत चर्चा भी मिलती है। रानी एलिजाबेथ के नौकरों, बावर्चियों, खान-सामों, अंगरक्षकों की पूरी-की-पूरी जीवनियाँ अखबारों में देखने को मिलती हैं। अखबार वाले सरकारी तंत्र के अनुकूल भी लिखते हैं और ऐसे कार्यों को छापने से भी बचते हैं, जिन कार्यों से सरकार की पोल खुलती हो।
जिंदा नाक लगाने के शर्मनाक दिन कोई अखबार इस घटना को यथार्थ में छापकर अपनी साहसिक और ईमानदार छवि को प्रस्तुत न कर सका। अखबारों में केवल इतना छपा कि नाक का मसला हल हो गया है और राजपथ पर इंडिया गेट के पास वाली जॉर्ज पंचम की लाट के नाक लग गई है। उस दिन सभी अखबार खाली थे क्योंकि या तो उनके अंदर सरकार के तत्वों को उजागर करने का साहस नहीं था या फिर जिंदा नाक लगाने का अखबार वालों ने मौन विरोध किया था। इस प्रकार यह स्पष्ट होता है कि जन-जागारण में समाचार-पत्रों की महत्वपूर्ण भूमिका है।
प्रश्न 4
दिल्ली की कायापलट क्यों होने लगी? 2013
उत्तर:
दिल्ली की कायापलट होने लगी थी क्योंकि इग्लैंड की रानी एलिज़ाबेथ द्वितीय अपने पति के साथ हिन्दुस्तान पधारने वाली थीं। अखबारों में उनकी चर्चा हो रही थी। रोज़ लंदन के अखबारों में खबरें आ रही थीं कि शाही दौरे के लिए कैसी-कैसी तैयारियाँ हो रही हैं। नई दिल्ली की कायापलट हो रही थी। सड़कों को साफ किया जा रहा था, इमारतों का श्रृंगार हो रहा था। रानी एलिज़ाबेथ के भव्य स्वागत के लिए ब्रिटिश शासन जुट गया था।
प्रश्न 5.
मूर्तिकार अपने सुझावों को अखबारों तक जाने से क्यों रोकना चाहता था?
उत्तर:
मूर्तिकार वास्तव में कलाकार नहीं पैसों का लालची व्यक्ति था। उसमें देश के मान-सम्मान व प्रेम की भावना बिलकुल नहीं थी। वह पैसों के लिए कुछ भी करने को तैयार था। उसने जॉर्ज पंचम की नाक लगाने के लिए अपने देश के नेताओं की नाक को उतारने का सुझाव दिया।
जब वह इस कार्य में असफल रहा, तब उसने सन् 1942 में शहीद हुए बच्चों की मूर्तियों की नाक उतारने और अन्ततः जिंदा नाक काट कर लगाने का सुझाव दिया। वह अपने सुझावों को अखबार वालों तक जाने से इसलिए रोकना चाहता था क्योंकि अगर यह बात जनता तक पहुँच जाती, तो सरकारी तंत्र की नाक तो कटती ही, हो सकता है लोग भी इसके विरोध में उठ खड़े होते। क्योंकि यह कृत्य भारतीय ज्ञान के खिलाफ था।
प्रश्न 6.
'जॉर्ज पंचम की नाक' पाठ में सरकारी तंत्र का मजाक उड़ाया गया है-
कैसे?
उत्तर:
'जॉर्ज पंचम की नाक' पाठ में सरकारी तंत्र का मज़ाक उडाया गया है। पाठ में सरकारी तंत्र में जॉर्ज पंचम की नाक को लेकर जो चिंता दर्शाई गई है, वह उनकी गुलाम और औपनिवेशिक मानसिकता को दर्शाती है। भारत को गुलाम बनाकर रखने वाले राजा का सम्मान और रानी को प्रसन्न करने के लिए परेशान सरकारी तंत्र स्वतंत्र होकर भी मानसिक रूप से गुलाम दिखाई देता है, जिसे राष्ट्र के सम्मान की थोड़ी भी चिंता नहीं है। इतनी ही नहीं सरकारी तंत्र किसी भी कार्य के पहले से जागरूक नहीं है। वह मौका आने पर जागृत होता है। मीटिंग बुलाना, मशवरा करना, ज़िम्मेदारी एक-दूसरे पर डालना, दिखावटी चिंता करना, चापलूसी करना-ये सब सरकारी तंत्र का मज़ाक ही है।