जैव विविधता हॉटस्पॉट नामावली किसने दी - jaiv vividhata hotaspot naamaavalee kisane dee

जैव विविधता क्या है ? जैव विविधता का सामान्य अर्थ है समस्त जीवों (पौधों एवं प्राणियों) की प्रजातियों में पाई जाने वाली विविधता | इस शब्द का प्रयोग सबसे पहले आर.ऍफ़.डेस्मैन ने 1968 में किया था | जैव विविधता 3 प्रकार की होती है : आनुवंशिक,प्रजातीय एवं पारितंत्रिय | जबकि जैव-विविधता के “हॉट-स्पॉट” (HotSpot) की संकल्पना को ब्रिटेन के जीव-विज्ञानी नारमैन मेयरस (Norman Mayers) ने 1988 में प्रस्तुत किया था। नारमैन मेयरस ने हॉट-स्पॉट के सीमांकन का आधार निम्नलिखित हैं: 1. किसी प्रदेश में 1500 स्थानीय प्रजातियाँ पाई जाती हों जो विश्व की 300,000 जीव-जातियों का 0.5 % है, 2. किसी प्रदेश में कम से कम 70 % से अधिक मूल जैव-जातियाँ नष्ट हो चुकी हों , और 3. सागरीय हॉट-स्पॉट के संबंध में मूँगे की चट्टानों (Coral Reefs), मछलियों घोंघे (Snail) आदि को भी सम्मिलित किया गया है। अतः साधारण शब्दों में , जैव विविधता के हॉट-स्पॉट ऐसे स्थल हैं जो जैव विविधता की दृष्टि अत्यंत महत्वपूर्ण हैं और साथ ही साथ अत्यंत संवेदनशील भी हैं | विश्व के अधिकतर हॉट-स्पॉट ऊष्ण कटिबंध अथवा अर्ध-ऊष्ण किटबंध में पाये जाते हैं। इस लेख में आप जैव-विविधता से सम्बंधित विभिन्न परीक्षोपयोगी जानकारियाँ प्राप्त कर सकते हैं |

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जैव विविधता क्यों महत्वपूर्ण है ?

किसी पारितंत्र में पाई जाने वाली प्रत्येक प्रजाति की अपनी -अपनी भूमिका होती है । प्रत्येक प्रजाति के अस्तित्व का महत्व होता है। प्रत्येक जीव न केवल अपनी क्रियाएं करता है ,बल्कि साथ-साथ दूसरे जीवों के पनपने में भी सहायक होता है। सह-जीविता इसका एक उदाहरण है | दूसरा, पारितंत्र में जितनी अधिक विविधता होगी, प्रजातियों के प्रतिकूल स्थितियों में भी रहने की संभावना और उनकी उत्पादकता भी उतनी ही अधिक होगी। या दूसरे शब्दों में ,प्रजातियों के ह्रास से समूचे तंत्र के अस्तित्व पर संकट आ जाएगा । अर्थात जिस पारितंत्र में जितनी प्रकार की प्रजातियाँ होती हैं , वह पारितंत्र उतना ही अधिक स्थायी होता है । पर्यावरणीय महत्त्व के अलावा जैव-विविधता आर्थिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है । जैव-विविधता का एक महत्वपूर्ण भाग ‘फसलों की विविधता’ (Crop diversity) है, जिसे कृषि जैव-विविधता भी कहा जाता है। खाद्य फसलें, पशु, वन संसाधन, मत्स्य और औषधि- संसाधन (जिसकी एक सूचि नीचे तालिका में दी गई है) आदि कुछ ऐसे प्रमुख आर्थिक महत्त्व के उत्पाद हैं, जो मानव को जैव-विविधता के फलस्वरूप उपलब्ध होते हैं।

कुछ महत्वपूर्ण औषधियां जो हमें पौधों से प्राप्त होती हैंदवास्रोत पौधा1.एट्रोपीनधतूरा (Belladonna)2.ब्रोमीलेनअन्नानास3.कैफीनचाय, कहवा4.काफूरकर्पुर का पेड़ (Camphor tree)5.कोकीनकोकुआ (Cocoa) (अनाल्जेसिक)6.कोडीनअफीम का पोस्ता (अनाल्जेसिक)7.मार्फीनअफीम का पोस्ता (अनाल्जेसिक)8.कोल्चीसीनजंगली केसर (कैंसररोधी)9.डिजिटाक्सीनआम फाक्सग्लव10.डायसजेनीनजंगली रतालू (yams)11.एल- डोपावेल्वेट बीन12.अर्गोटेमीनराई की काजल या अर्गट13.ग्लेज़ियोबीनओकोटिया ग्लैज़ियोबी14.गोसीपोलकपास15.एंडीसीन एन-आक्साइडहीलियोट्रापियम इंडिकम (कैंसररोधी)16.मेंथालपुदीना17.मोनोक्रोटेलीनकोटोलेरिया सेसिलिफ्लोरा (कैंसररोधी)18.पपाइनपपीता19.पेनिसिलीनपेनिसिलियम फंगस (एंटी-बायोटिक)20.क्वीनीन (कुनैन)पीला सिंकोना (मलेरियारोधी)21.रेसरथीनभारतीय साँपबूटी22.स्कोपोलेमीनथार्न एप्पल23.टैक्सोलपैसिफिक यू24.विजब्लैस्टाइनरोजी पेरिविकिल (कैंसररोधी)25.विनक्रिस्टीन(विकारोज़िया) (सदाफली)

भारत की जैव विविधता

दुनिया के जैव-समृद्ध राष्ट्रों में भारत का महत्वपूर्ण स्थान है और यहाँ पौधों व प्राणियों की व्यापक विविधता है जिनमें से अनेक प्रजातियाँ ऐसी हैं जो विश्व में कहीं और नहीं पाई जातीं। ऐसी प्रजातियों को स्थानिक (endemic) कहते हैं | भारत में स्तनपायीयों की 350 प्रजातियाँ हैं जो कि दुनिया भर के देशों में 8वीं सबसे बड़ी संख्या है | पक्षियों की 1200 प्रजातियाँ हैं (संसार में 8वाँ स्थान), सरीसृपों की 453 प्रजातियाँ हैं (संसार में 5वाँ स्थान) और पौधों की 45,000 प्रजातियाँ हैं (संसार में 15वाँ स्थान)- जिनमें से अधिकांश तो आवृत्तबीजी (angiosperms) हैं। इनमें 1022 प्रजातियों वाले फर्न और 1082 प्रजातियों वाले आर्किड की विशेष रूप से भारी विविधता भी शामिल है। 13000 तितलियों और बीटल्स समेत यहाँ कीड़े-मकोड़ों की 50,000 ज्ञात प्रजातियाँ हैं। अनुमान लगाया गया है कि अज्ञात प्रजातियों की संख्या इससे कहीं बहुत अधिक हो सकती है और इस सन्दर्भ में शोध जारी हैं । भारत के 18 % पौधे स्थानिक हैं और दुनिया में कहीं और पाए नहीं जाते। पौधों की प्रजातियों में फूल देनेवाले काफ़ी हद तक स्थानीय पौधे हैं; इनमें से लगभग 33% दुनिया में कहीं और पाए ही नहीं जाते। भारत के जल-थलचारी प्राणियों में 62 % इसी देश में पाए जाते हैं। छिपकलियों की 153 ज्ञात प्रजातियों में 50 % स्थानिक हैं। इसी प्रकार कीड़े -मकोड़ों, केचुओं और कई जलीय जीवों के विभिन्न समूहों में भी भारी स्थानीयता पाई जाती है।

भारत के जैव-भौगोलिक क्षेत्र (Biogeographic Zones)

भारत को जैव -भौगोलिक दृष्टि से निम्नलिखित क्षेत्रों में विभाजित किया गया है :

1.पूर्वी हिमालय एवं लद्दाख का हिमालयी क्षेत्र ।

2.हिमालय की पर्वतमालाएँ तथा कश्मीर, हिमाचलप्रदेश, झारखंड, असम और दूसरे पूर्वोत्तर राज्यों की वादियाँ। 3.तराई की निम्नभूमि (lowland) जहाँ हिमालय से निकली नदियाँ मैदानों में प्रवेश करती हैं।

4.गंगा और ब्रह्मपुत्र के मैदान ।

5.राजस्थान का थार रेगिस्तान ।

6.दकन के पठार, गुजरात, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और तमिलनाडु के अर्धशुष्क घास के मैदान।

7.भारत के पूर्वोत्तर राज्य

8.महाराष्ट्र, कर्नाटक और केरल का पश्चिमी घाट।

9.अंडमान-निकोबार द्वीपसमूह।

10.पश्चिम और पूर्व की लंबी समुद्रतटीय पट्टियाँ जिनमें रेतीले तट, वन और मैनग्रोव हैं।

इनमें पूर्वी हिमालय व पश्चिमी घाट विशेष रूप से महत्वपूर्ण हैं |

1.पश्चिमी घाट (Western Ghats) : भारत के पश्चिमी घाट न केवल भारतीय उपमहाद्वीप बल्कि दुनिया भर के जैव विविधता के सभी मुख्य स्थलों में से एक हैं | यह दक्षिण भारत में लगभग 1600 किलोमीटर में विस्तृत एक पर्वत श्रृंखला है जिसका अधिकांश हिस्सा उष्णकटिबंधीय वर्षा वन के अंतर्गत आता है | तमिलनाडु के दक्षिणी छोर से शुरू होकर यह केरल, कर्नाटक, गोवा, महाराष्ट्र, एवं गुजरात तक फैली हुई है | पश्चिमी घाट की सांस्कृतिक एवं पर्यावरणीय महत्ता के कारण इसे 2012 में यूनेस्को (UNESCO) के रूस के सेंट पीटर्सबर्ग (St. Petersburg) में सम्पन्न सम्मलेन में यूनेस्को की विश्व धरोहर सूची (UNESCO World Heritage Sites) में शामिल कर लिया गया था। पश्चिमी घाट की पारिस्थितिको में विशेष एवं विचित्र प्रकार के पारितत्र (Ecosystems), जैविक एवं भौगोलिक प्रक्रियाएँ पाई जाती है। भारत के इस पर्वतीय प्रदेश में बहुत से स्थानीय (Endemic) पेड़-पौधे, पशु-पक्षी तथा जीव-जंतु पाये जाते हैं। इनमें सिंह पुच्छी मकाक व निलगिरी टार का नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय है | पश्चिमी घाट गुजरात की तापी नदी के दक्षिणी किनारे से आरंभ होकर भारत की मुख्य भूमि के दक्षिणतम बिंदु तक विस्तृत है। पर्यावरणविदों का मानना है कि पश्चिमी घाट में 500 प्रकार के फूल-पौधे , 39 प्रकार के स्तनधारी (Mammals), 508 प्रकार के पक्षी तथा 179 प्रकार के उभयचर (Amphibians) पाये जाते हैं। पश्चिमी घाट ऊष्णकटिबंध तथा उपोष्णकटिबंध (Subtropical) की प्राकृतिक वनस्पति से ढके हुये हैं। यहीं वर्षावन भी पाए जाते हैं । यह क्षेत्र पारिस्थितिक दृष्टि से अत्यंत संवेदनशील है। यही कारण है कि भारत सरकार ने इस पर्वतमाला में 2 जीवमंडल संरक्षित क्षेत्र (Biosphere Reserves), 13 नेशनल पार्क तथा कई वन्यजीव अभ्यारण्य (Wildlife Sanctuaries) स्थापित किए हैं। इनमें अगसत्यमला संरक्षित जैवमंडल, नीलगिरि संरक्षित जैवमंडल,नेत्रावली वन्य अभयारण्य,नेय्यार वन्य अभयारण्य, साइलेंट वैली राष्ट्रीय उद्यान का नाम लिया जा सकता है |

2.पूर्वी हिमालय : इसके अन्तर्गत पूर्वी हिमालय के असम, अरुणाचल प्रदेश, सिक्किम तथा पश्चिम बंगाल राज्यों के क्षेत्र आते हैं । लगभग 7,50,000 वर्ग कि.मी. क्षेत्र में फैले इस हॉट-स्पॉट में वनस्पतियों की लगभग 10,000 प्रजातियां पाई जाती हैं जिनमें से 3,160 प्रजातियाँ स्थानिक हैं। इसके अलावा यहां स्तनधारी जीवों की भी 300 प्रजातियाँ निवास करती हैं जिनमे हिमालयी नहर, गोल्डन लंगूर, हुलोक गिब्बन, उड़न गिलहरी, हिम तेंदुआ इत्यादि प्रमुख हैं ।

जैव विविधता के समक्ष संकट और इसके संरक्षण के विभिन्न क़ानूनी प्रयास

आज आवास विखंडन ,तथाकथित विकास के नाम पर संसाधनों के अति -दोहन ,जलवायु परिवर्तन ,आक्रामक प्रजातियों एवं सह-विलुप्तता इत्यादि के कारण जैव विविधता संकट में है | इस दिशा में दुनिया भर के देश प्रयासरत हैं | इस सन्दर्भ जागरुकता फ़ैलाने के लिए 22 मई को जैव विविधता दिवस मनाया जाता है | भारत ने भी इस दिशा में कई कदम उठाए हैं | यहाँ देश के 3 सबसे महत्वपूर्ण कानून की संक्षिप्त चर्चा आवश्यक है |

1.पर्यावरण संरक्षण अधिनियम , 1982 (Environmental Protection Act, 1982) : पर्यावरण संरक्षण अधिनियम 1982 एक विशद कानून है जिसका उद्देश्य पर्यावरण को संरक्षण प्रदान करना तथा उसको बेहतर बनाना है। यह कानून केंद्रीय सरकार को इस दिशा में कार्य करने का अधिकार देता है | इस कानून के मुख्य बिंदु इस प्रकार हैं :

(1) पर्यावरण प्रदूषण की रोकथाम के लिये राष्ट्रीय सत्र पर योजनाएँ तैयार करना और उनको लागू करना।

(2) प्रदूषण के विभिन्न मापदंड तैयार करना।

(3) हानिकारक गैस उत्सर्जन तथा उद्योगों से निकाले जाने वाले जल इत्यादि के नियम तथा कानून तैयार करना।

(4) औद्योगिक क्षेत्रों (Industrial Areas) की सीमा निर्धारित करना।

(5) दुर्घटनाओं की रोक-थाम के लिये कार्य प्रणाली तैयार करना।

(6) खतरनाक अवशेषों को लाने-ले जाने की कार्यप्रणाली तैयार करना।

(7) उन सभी संसाधनों, कच्चे माल तथा औद्योगिक प्रक्रियाओं का निरीक्षण एवं परोक्षण करना जिनसे प्रदूषण बढ़ने की संभावना हो।

(8) पर्यावरण प्रदूषण संबंधी शोध कार्य करना।

(9) किसी भी औद्योगिक इकाई में जाकर उसकी मशीनों इत्यादि का निरीक्षण करना।

(10) पर्यावरण प्रदूषण की रोकथाम के लिये आचरण संहिता (Code of Conduct) तैयार करना।

(11) विभिन्न कार्यों के लिये अधिकारियों को नियुक्ति करना,

(12) यदि आवश्यक हो तो कारखाने को बंद करने के आदेश देना,

(13) निर्धारित सीमा से अधिक हानिकारक गैसों के उत्सर्जन पर रोक लगाना,

(14) हानिकारक सामग्री (Hazardous) Material) को लाने ले जाने की नियमित कार्य प्रणाली को सुनिश्चित करना, (15) दूषित पदार्थों (Pollutants) के नमूने (Sample) एकत्रित करना और उनकी प्रयोगशालाओं में जाँच करना तथा;

(16) पर्यावरण प्रदूषण संबंधी कानून तथा नियम तैयार करना |

2.वन्य प्राणी अधिनियम (Wildlife Protection Act)- 1972 : वन्य प्राणियों के संरक्षण के उद्देश्य से 1972 में वन्य प्राणी अधिनियम बनाया गया जिसके मुख्य प्रावधान निम्नलिखित हैं :

1. विशेष पेड़-पौधे को संरक्षण प्रदान करना।

2. जंगली पशु-पक्षियों के शिकार करने पर प्रतिबंध लगाना।.

3. नेशनल पार्क, अभ्यारण्य (Sanctuaries) तथा जैव-संरक्षण के लिये विशेष क्षेत्रों को घोषित करना।

4. नेशनल पार्क ,अभ्यारण्य इत्यादि का प्रबंधन करना।

5. केंद्रीय चिड़िया घर कमेटी का गठन करना।

6. शिक्षा एवं शोध कार्य के लिये तथा वन- पशु पक्षियों के शिकार के लिये लाइसेंस जारी करना।

7. शिक्षा एवं शोध कार्य के लिये किसी विशेष वृक्ष, पौधे को उखाड़ने अथवा तोड़ने के लिये लाइसेंस जारी करना।

8. वन्य पशु-पक्षियों तथा उनके उत्पाद के व्यापार के लिये लाइसेंस जारी करना।

9.पेड़ पौधों को उगाने के लिए लाइसेंस देना जिन पर आमतौर पर प्रतिबंध है ।

10. अनुसूचित जनजातियों के अधिकारों का संरक्षण करना ।

11. इन नियमों के उल्लंघन करने वालों को दंडित करना ।

3.बायोडाइवर्सिटी एक्ट 2002 (Biodiversity Act, 2002) : भारत में जैव-विविधता एक्ट 2002 में पारित किया गया। इस एक्ट के द्वारा राष्ट्रीय जैव विविधता प्राधिकरण (National Biodiversity Authority- NBA) राज्य जैव विविधता प्राधिकरण तथा जैव-विविधता प्रबंधन समिति (Biodiversity Management Committees (BMCS) का गठन किया गया है। राष्ट्रीय जैव विविधता प्राधिकरण का गठन 2003 में किया गया था। इस एक्ट के अनुसार सभी विदेशी संगठनों को जैव-विविधता के संसाधनों को प्राप्त करने अथवा उनका उपयोग करने के लिये राष्ट्रीय जैव-विविधता प्राधिकरण (NBA) की अनुमति लेना अनिवार्य है। यदि भारतीय मूल के व्यक्तियों को किसी जैव-विविधता संबंधित शोध कार्य की जानकारी किसी विदेशी नागरिक अथवा संगठन को देने से पहले एन बी ए (NBA) की अनुमति लेना अनिवार्य है। भारतीय औद्योगिक जगत को किसी भी जैव-विविधता संसाधन को उपयोग में इस्तेमाल करने से पहले स्टेट बाइओडाइवस्टी बोर्ड (S.B.B.) को सूचित करना अनिवार्य है। यदि एस. बी. बी. (S.B.B.) के अनुसार इस प्रकार के संसाधनों के उपयोग से एक्ट का उल्लंघन हो रहा है और जैविक विविधता संरक्षण में बाधा आ रही है तो उस पर रोक लगाई जा सकती है। हालाँकि भारतीय मूल के हकीम (Hakims) तथा वैद्य (Vaids) को जैव-संसाधनों के उपयोग की अनुमति दी गई है। इस प्रकार के शोध-कार्यों से अर्जित धन को नेशनल वाइओडाइवस्टी प्राधिकरण कोष में जमा कराना होगा। ऐसे धन को जैव-विविधता संरक्षण पर खर्च किया जाएगा ।

पश्चिमी घाट के संरक्षण के गठित कस्तूरीरंगन समिति एवं गाडगिल समिति

विकास कार्यों ,अवसंरचना निर्माण और विशेष तौर पर खनन जैसे कार्यों के कारण पश्चिमी घाट के पारितंत्र को होने वाले नुकसान से बचाने के लिए सुझाव देने हेतु 2012 में केंद्र सरकार ने कस्तूरीरंगन की अध्यक्षता में एक उच्च स्तरीय समिति का गठन किया | कस्तूरीरंगन समिति की रिपोर्ट में पश्चिमी घाट के कुल क्षेत्रफल के 37 % (60,000 वर्ग की.मी.) को पारिस्थितिकीय दृष्टि से संवेदनशील क्षेत्र (Eco-Sensitive Area- ESA) घोषित करने का प्रस्ताव दिया गया है। रिपोर्ट में खनन, उत्खनन, रेड कैटेगरी उद्योगों (Red Category Industries) की स्थापना और ताप विद्युत परियोजनाओं पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने की सिफारिश की गई है। इससे पहले भी इस प्रयोजन से गाडगिल गठित की गई थी | गाडगिल समिति ने कृषि क्षेत्रों में कीटनाशकों और जीन संवर्धित बीजों के उपयोग पर रोक लगाने से लेकर पनबिजली परियोजनाओं को हतोत्साहित करने और वृक्षारोपण के बजाय प्राकृतिक वानिकी को प्रोत्साहन देने की सिफारिशें की थीं | इसके अलावा 20,000 वर्ग मीटर से अधिक बड़ी इमारतों के निर्माण पर पूरी तरह प्रतिबंध लगाने की बात कही थी | गाडगिल समिति ने प्रस्तावित किया था कि इस पूरे क्षेत्र को ‘पारिस्थितिकीय रूप से संवेदनशील क्षेत्र’ (ESA) के रूप में नामित किया जाए। लेकिन किसी भी सम्बन्धित राज्य ने गाडगिल समिति की सिफारिशों को मानने से इनकार कर दिया था |

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हॉटस्पॉट के जनक कौन है?

'जैव विविधता हॉटस्पॉट' शब्द सर्वप्रथम नॉर्मन मायर्स (1988) द्वारा गढ़ा गया था। उन्होंने पौधों की स्थानिकता के स्तर तथा पर्यावास के उच्च स्तर की हानि के अनुसार 10 उष्णकटिबंधीय वनों को “हॉटस्पॉट” के रूप में मान्यता दी।

वर्तमान में विश्व में कितने हॉटस्पॉट हैं?

वर्तमान में विश्व में कुल 36 हाॅटस्पाॅट क्षेत्र हैं, जो पृथ्वी के 2.3 प्रतिशत भाग पर विस्तृत हैं।

विश्व का पहला जैव विविधता हॉटस्पॉट कौन सा है?

पूर्वी हिमालय जैव विविधता तप्तस्थल हिमालय पर्वत शृंखला असीम जैव विविधता से संपन्न है। 750,000 वर्ग किमी. क्षेत्र में फैले हिमालय के जैवविविधता तप्त स्थल क्षेत्र में वनस्पतियों को लगभग 10,000 प्रजातियां पाई जाती हैं जिनमें से 3,160 प्रजातियाँ स्थानबद्ध हैं।

भारत में कुल कितने जैव विविधता हॉटस्पॉट हैं?

Detailed Solution. भारत में जैव विविधता वाले 4 हॉटस्पॉट हैं- पश्चिमी घाट, हिमालय, भारत-बर्मा क्षेत्र, और सुंदलैंड क्षेत्र।