जैविक खाद का प्रयोग कैसे करें - jaivik khaad ka prayog kaise karen

जैविक खाद बनाने के तरीके व लाभ

जैविक खाद बनाने की विधियाँ

जैविक खाद बनाने के तरीके व लाभ – सघन खेती के इस युग में भूमि की उर्वराशक्ति बनाए रखने के लिए प्राकृतिक खादों का प्रयोग बढ़ रहा है। जबसे सघन कृषि का विकास हुआ है किसान लगातार रसायनिक उर्वरकों का प्रयोग करते आ रहे हैं। रसायनिक उर्वरकों ने न सिर्फ मृदा एवं जल प्रदूषण को बढ़ावा दिया इसके साथ भूमि की उपजाऊ क्षमता भी कम हुई है। इन उर्वरकों के प्रयोग का मृदा के गठन, जलधारण रोकने की क्षमता, ओर्गेनिक कार्बन की मात्रा,पीएच मान, फसलों की गुणवत्ता में कमी, मानव स्वास्थ्य व पौष्टिक चारे के अभाव में पशुओं में बांझपन आदि बुरे प्रभाव हैं। इन दुष्प्रभावों को कम करने अथवा रोकने के लिए किसान जैविक खाद जैसे गोबर की खाद, कम्पोस्ट,वर्मीकम्पोस्ट व हरी खाद का प्रयोग कर सकते हैं। किसान इन खादों को खुद भी प्रयोग कर सकता है।

वर्मीकम्पोस्ट या केंचुआ खाद: सबसे पहले तापमान व नमी को नियंत्रित रखने के लिए एक अस्थायी शेड बनाया जाता है। फिर इस शेड के नीचे वर्मी टैंक जिसका आकार लगभग 1 मी. चौड़ा , 0.5 मी. गहरा और 10 मी. लंबा होता है। केंचुआ खाद बनाने के लिए सामग्री के रूप में कृषि अवशेष, जल खुंबी, केले व बबूल की पत्तियाँ, हरी सुखी पत्तियाँ, बिना फुली घास,गले-सड़े फल व सब्जियाँ, घरेलू कचरा व पशुओं का गोबर प्रयोग में लाया जा सकता है।

पहले कचरे को गोबर के घोल में मिला कर 15 दिन तक सड़ाया जाता है। इसके बाद वर्मी टैंक में 6 इंच की परत बना देते हैं। इस गोबर की परत के ऊपर 500-1000 केचुएँ प्रति वर्ग मी. के हिसाब से डाले जाते हैं। इसके लिए इसीनिया फोएटिडा, यूड्रिजस यूजिनी, फेरीटिमा एलोंगटा आदि केंचुए की उपयुक्त प्रजातियाँ का प्रयोग किया जाता है।

टैंक के अंदर तापमान 25-30 सेल्सियस व 30-35 प्रतिशत नमी रखी जाती है। इसके साथ-साथ शेड पर अंधेरा बनाए रखें क्योंकि केंचुए अंधेरे में ज्यादा रहते हैं। 25-30 दिन बाद ढेर को हाथों या लोहे के पंजे से धीरे-धीरे पलटते हैं। लगभग 60-75 दिन में वर्मीकम्पोस्ट तैयार हो जाती है। टैंक में विषैले पौधों जैसे आक, ताजा गोबर व कठोर टहनियाँ नहीं डालें। इसके साथ-साथ गड्डों को चींटियों, कीड़े-मकोड़ों, कौओं तथा पक्षियों आदि से सुरक्षित रखें । 8-12 प्रतिशत नमी रख कर इस खाद का एक साल तक भंडारण कर सकते हैं।

गोबर की खाद: गोबर खाद बनाने के लिए भारत में मुख्य रूप से निम्न विधियाँ प्रचलित हैं-

ठंडी विधि: इसके लिए उपयुक्त आकार का गड्डा 9.1 मी. लंबा,1.8 मी. चौड़ा व 0.8 मी. गहरा होता है। फिर इसमें गोबर भर दिया जाता है। भरते समय इसे इस प्रकार दबाया जाता है की कोई जगह खाली न रह जाए। गड्डे के ऊपरी भाग को गुंबदनुमा बनाया जाता है ताकि बरसात का पानी इसमें न घुसे इसके साथ-साथ इसे गोबर से लेप दिया जाता है। खाद को लगभाग 2-3 महीने तक बनने के लिए छोड़ दिया जाता है। गड्डे में हवा के अभाव में रसायनिक क्रियाएँ कम होती है तथा इसका तापमान 34 डिग्री सेल्सियस से ऊपर नहीं जा पाता। इस विधि में नत्रजन युक्त पदार्थ खाद से निकल नहीं पाते।

गरम विधि: इस विधि में गोबर की एक पतली तह बिना दबाएं डाल दी जाती है। हवा की उपस्थिति में रसायनिक क्रियाएँ होती है जिस से तापमान 60 डिग्री सेल्सियस से ऊपर पहुंच जाता है। तापमान बढऩे से विशेष फायदा यह होता है कि इसमें उपस्थित घास व मोटे हानिकारक पौधों के बीज नष्ट हो जातें हैं। प्रत्येक पशु के गोबर से इस प्रकार 5-6 टन खाद बनाई जा सकती है।

कम्पोस्ट : कम्पोस्ट बनाने के लिए एसी जगह का चुनाव करना चाहिए जहॉँ हवा और सूर्य का प्रकाश कम मात्रा में पहुंचे तथा जगह छायादार हो। उसके बाद उस जगह पर अपशिष्ट की मात्रा के अनुसार गड्डा खोद लें। इसके बाद सबसे पहले कुछ दिन पुराना पशुओं का सूखा गोबर डाल दें। गोबर डालने के बाद उसमें सूखी नीम की पत्तियों की परत बनाएं। क्योंकि इसमें नत्रजन की मात्रा ज्यादा पाई जाती है। इसके बाद इसमें गीले व सूखे अपशिष्ट की 4-5 परत बना दें। गीले अपशिष्ट के रूप में सब्जियों का कचरा, पेड़-पौधों कि गीली टेहनियों व हरी घास का इस्तेमाल करें। गड्डे को अच्छी तरह भरने के बाद इसमें पानी डाल कर इसमें एक और गोबर की परत बना दें। फिर इसके ऊपर लगभग 15 सेमी की मिट्टी की परत बनाकर पानी से गीला कर दें। जिसके बाद उसे 3 महीने के लिए छोड़ दें। 3 महीने बाद किसान इस कम्पोस्ट का प्रयोग खेत में करें।

हरी खाद : अप्रैल-मई के माह में गेहूं की फसल कि कटाई के बाद खेत कि सिंचाई करें। इसके बाद इस खेत में हरी खाद वाली फसलें जैसे ढ़ेंचा, लोबिया, उड़द, मूंग, ग्वार, बरसीम आदि का बीज उपयुक्त मात्र में डाल कर बिजाई करें। जरूरत पडऩे पर बीच में 1-2 बार सिंचाई करें। 45-50 दिन बाद बोई गई फसल जोत कर मिट्टी में मिला दें। इस अवस्था में पौधे की लंबाई, हरी-शुष्क सामग्री अधिकतम होती है। फसल का तना भी नरम व नाजुक होता है। जो आसानी से मिट्टी में मिल जाता है। इस अवस्था में बनी हरी खाद में नत्रजन की उपलब्धता भी अधिक होती है।

जैविक खाद के लाभ:

  • इससे मिट्टी की भौतिक व रसायनिक स्थिति में सुधार होता है।
  • उर्वरक क्षमता बढ़ती है।
  • सूक्ष्म जीवों की गतिविधि में वृद्धि होती है।
  • मिट्टी की संरचना में सुधार होता है जिससे पौधे की जड़ों का फैलाव अच्छा होता है। इस के साथ-साथ मिट्टी की पानी रोकने की क्षमता बढ़ती है।
  • मृदा अपरदन कम होता है।
  • मृदा तापमान व नमी बनी रहती है।

26 Jul 2019

जैविक खाद का प्रयोग कैसे करें - jaivik khaad ka prayog kaise karen

क्या आप जानते हैं फसल के उत्पादन में फॉस्फेट तत्व का प्रमुख योगदान होता है! रासायनिक उर्वरकों के लगातार उपयोग करने से खेती की लागत भी बढ़ती जा रही है, जमीन सख्त हो रही है, भूमि में पानी सोखने की क्षमता घटती जा रही है। वहीं दूसरी तरफ भूमि तथा उपभोक्ताओं के स्वास्थ पर प्रतिकूल असर भी पड़ रहा है। इसी बात को ध्यान में रखते हुए नया उत्पाद विकसित किया गया है, जिसमें कार्बनिक खाद के साथ-साथ रॉक फॉस्फेट की मौजूदगी भी होती है। जिसे हम प्रोम के नाम से जानते हैं।

जैविक खाद का प्रयोग कैसे करें - jaivik khaad ka prayog kaise karen

‘प्रोम’ को विस्तार पूर्वक समझते हैं

प्रोम (फॉस्फोरस रिच आर्गेनिक मैन्योर) तकनीक से जैविक खाद घर पर भी तैयार की जा सकती है। प्रोम, जैविक खाद बनाने की एक नई तकनीक है। जैविक खाद बनाने के लिए गोबर तथा रॉक फॉस्फेट को प्रयोग में लाया जाता है। रॉक फॉस्फेट की मदद से रासायनिक क्रिया करके सिंगल सुपर फॉस्फेट (SSP) तथा डाई अमोनियम फॉस्फेट (DAP) रासायनिक उर्वरक तैयार किए जाते हैं।

प्रोम में विभिन्न फॉस्फोरस युक्त कार्बनिक पदार्थों जैसे- गोबर खाद, फसल अपशिष्ट, चीनी मिल का प्रेस मड, जूस उद्योग का अपशिष्ट पदार्थ, विभिन्न प्रकार की खली और ऊन के कारखानों का अपशिष्ट पदार्थ आदि को रॉक फॉस्फेट के साथ कम्पोस्टिंग करके बनाया जाता है। प्रोम मिनरल उर्वरक एवं जैविक खाद का मिश्रण है जो केवल कृषि में उपयोग के लिये काम में लाया जाता है। प्रोम का उपयोग पौधों को फॉस्फोरस (फॉस्फोरस पादप पोषक तत्व) उर्वरक प्रदान करने के लिए किया जाता है। जीवाणु राॅक फोसफोरस को पचा कर उसे गोबर में उपलब्ध करते हेै इस कारण प्रोम शुद्व रुप से जैविक है।

प्रोम से क्या-क्या फायदे हैं :

  • जैविक खाद से अनाज, दालें, सब्जी व फलों की गुणवत्ता बढ़ाने से अच्छा स्वाद मिलता है।
  • रोगों में रोधकता आने से मानव के स्वास्थ्य पर बुरे प्रभाव नहीं पड़ते हैं।
  • प्रोम तकनीक से जैविक खाद बनाने की विधि बहुत ही सरल है।
  • प्रत्येक किसान, जिसके यहां गोबर उपलब्ध है, आसानी से अपने घर पर जैविक खाद बनाकर तैयार कर सकता है।
  • किसान DAP व SSP खरीदने पर जितने पैसा खर्च करता है उससे कम पैसे में प्रोम तकनीक से जैविक खाद बनाकर भरपूर फसल पैदा कर सकता है।
  • प्रोम मिट्टी को नरम बनाने के साथ-साथ पोषक तत्वों की उपलब्धता लंबे समय तक बनाये रखता है।
  • प्रोम लवणीय व क्षारिय भूमि में भी प्रभावी रूप में काम करता है जबकि DAP ऐसी भूमि मे काम नहीं करता है।

जैविक खाद को घर पर बनाने की प्रक्रिया :

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‘फॉस्फोरस रिच जैविक खाद’ घर पर भी रॉक फॉस्फेट के द्वारा बनाई जा सकती है। रॉक फॉस्फेट के अलग-अलग रंग होते हैं, रॉक फॉस्फेट एक तरह का पत्थर है जिसके अंदर 22 फीसदी फॉस्फोरस मौजूद है जो कि फिक्स फोम में होता है। प्रोम बनाने के लिए कमर्शियल में 10 फीसदी के आसपास फॉस्फोरस मेंटेन किया जाता है लेकिन हम घर पर बनाने के लिए 18%,19% या 20 फीसदी तक फॉस्फोरस इस्तेमाल में ले सकते हैं। इसे बनाने के लिए किसी भी जानवर का गोबर ले सकते हैं, घर में मौजूद कूड़ा-कर्कट या फिर फसलों के अवशेष जिससे खाद बनाते हैं (प्लांट बेस्ड) वो भी ले सकते हैं।

प्रोम बनाने के लिए सबसे पहले गाय या भैंस का 500 किलो गोबर लीजिए, इसके ऊपर से सूखी पत्तियां डाल दीजिए, बाद में ऊपर से 500 किलो रॉक फॉस्फेट का (पाउडर फोम में) छिड़काव करें, फिर वेस्ट डी कंपोजर का छिड़काव करें और इसे कम से कम 30 से 35 दिनों तक ढ़ककर रखें, जिसके बाद जैविक खाद तैयार हो जाएगी।

प्रोम को DAP और SSP के पूरक के तौर पर किसान अपनी फसल के लिए खेत में प्रयोग कर सकते हैं और प्रोम खेत की उर्वरा शक्ति को बनाये रखते हैं। जिससे वह आने वाली नई पीढ़ी के किसानों को स्वस्थ भूमि प्रदान कर सकें।

वेस्ट डी कंपोजर क्या है ?

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वेस्ट डी-कंपोजर जैविक खेती कर रहे किसानों के लिए जैविक खाद का बेहतर विकल्प है। कम खर्च में किसान इसकी मदद से स्वयं खाद बना सकते हैं। इसके उपयोग के बाद किसान को फसल में रासायनिक कीटनाशक और उर्वरक देने की जरूरत नहीं रहती है। खास बात है कि यह जड़ और तना संबंधी बीमारियों के नियंत्रण में उपयोगी पाया गया है।

जैविक खाद से क्या लाभ है ?`?

जैविक खाद के लाभ: इससे मिट्टी की भौतिक व रसायनिक स्थिति में सुधार होता है। उर्वरक क्षमता बढ़ती है। सूक्ष्म जीवों की गतिविधि में वृद्धि होती है। मिट्टी की संरचना में सुधार होता है जिससे पौधे की जड़ों का फैलाव अच्छा होता है।

खाद का उपयोग कैसे करे?

प्रोम बनाने के लिए सबसे पहले गाय या भैंस का 500 किलो गोबर लीजिए, इसके ऊपर से सूखी पत्तियां डाल दीजिए, बाद में ऊपर से 500 किलो रॉक फॉस्फेट का (पाउडर फोम में) छिड़काव करें, फिर वेस्ट डी कंपोजर का छिड़काव करें और इसे कम से कम 30 से 35 दिनों तक ढ़ककर रखें, जिसके बाद जैविक खाद तैयार हो जाएगी।

सबसे अच्छी जैविक खाद कौन सी है?

फार्मयार्ड F. Y. M. तथा कम्पोस्ट आदि अच्छी जैविक खाद (organic manure in hindi) हैं ।

खाद से क्या लाभ है?

गोबर की खाद का गमलों व भूमि पर लाभ दायक प्रभाव.
मिट्टी में वायु संचार बढ़ता है।.
मिट्टी में जलधारण व् जल सोखने की क्षमता बढ़ती है।.
मिट्टी में टाप का स्तर सुधरता है।.
पौधों की जड़ों का विकास अच्छा होता है।.
मिट्टी के कण एक-दुसरे से चिपकते हैं। ... .
भारी चिकनी मिट्टी तथा हल्की रेतीली मिट्टी की संरचना का सुधार होता है।.