प्रश्न 1-6: कृष्ण के प्रति अपने अनन्य प्रेम को गोपियों ने किस प्रकार अभिव्यक्त किया है ? Show उत्तर 1-6: गोपियों ने कृष्ण के प्रति अपने अनन्य प्रेम को विभिन्न प्रकार से दिखाया है- गोपियों के अनुसार राजा का धर्म यह होना चाहिए कि वह अपनी प्रजा का ध्यान रखे। प्रजा के हित का कार्य करे। प्रजा को सताए नही। जो राजा प्रजा के सुख-चैन का ध्यान रखता है, प्रजा की समस्याओं को सुनता है। जो अपने राजधर्म का पालन करता है। अनीति का साथ ना देकर नीति का साथ देता है और प्रजा के साथ सदैव न्याय करता है, वही सच्चा राजा है। पाठ के बारे में… इस पाठ में ‘सूरदास’ द्वारा रचित ग्रंथ ‘सूरसागर’ के ‘भ्रमरगीत’ प्रसंग से चार पद दिए गए हैं। यह चार पद उस समय के हैं, जब श्रीकृष्ण मथुरा चले गए थे और मथुरा जाने के बाद वह वापस ब्रज नहीं लौट पाए। तब उन्होंने उनके विरह में व्याकुल गोपियों के लिए उद्धव के माध्यम से संदेश भेजा था। उद्धव के माध्यम से श्रीकृष्ण ने गोपियों के लिए निर्गुण ब्रह्म और योग अपनाने का संदेश भेजा था ताकि वह अपनी विरह-वेदना को शांत कर सकें। इन पदों में उद्धव एवं गोपियों के वार्तालाप के उसी प्रसंग का वर्णन है।सूरदास भक्ति धारा की सगुण उपासना की कृष्णाश्रयी शाखा के प्रमुख संत कवि थे। उनका जन्म 1478 ईस्वी में हुआ था। वह जन्म से ही अंधे थे, लेकिन अपनी कृष्णभक्ति तथा श्रीकृष्ण पर आधारित भक्ति पदों के लिए जाने जाते थे। उन्होंने कुल 3 ग्रंथों की रचना की, जिनमें सूरसागर, साहित्य लहरी और सूरावली सारावली के नाम प्रमुख हैं। संत 1583 में उनका निधन हुआ। Gujarat Board GSEB Std 10 Hindi Textbook Solutions Kshitij Chapter 1 पद Textbook Exercise Important Questions and Answers, Notes Pdf. GSEB Std 10 Hindi Textbook Solutions Kshitij Chapter 1 पदGSEB Class 10 Hindi Solutions पद Textbook Questions and Answers प्रश्न-अभ्यास प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. हम गोपियाँ कमल के पत्ते और तेलयुक्त मटके की तरह नहीं हैं जो कृष्ण के पास रहकर भी उनका प्रेम न पा सकें। प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. प्रश्न 7. प्रश्न 8. प्रश्न 9. प्रश्न 10. प्रश्न 11. प्रश्न 12.
रचना और अभिव्यक्ति प्रश्न 13. कृष्ण ने गोपियों को धोखा दिया है। प्रश्न 14. प्रश्न 15. Hindi Digest Std 10 GSEB पद Important Questions and Answers अतिरिक्त प्रश्न प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. प्रश्न 7. भावार्थ और अर्थबोधन संबंधी प्रश्न 1. उधौ, तुम हौ अति बड़भागी । भावार्थ : गोपियाँ उद्धव से व्यंग्य करते हुए कहती हैं कि तुम कैसे भाग्यशाली हो? जो कृष्ण के पास रहकर भी उनके प्रेम-बंधन से वंचित हो। तुम कमल के पत्ते की तरह हो, जैसे कमल का पत्ता पानी में रहते हुए भी उसमें डूबता नहीं है। पानी की एक बूंद भी उस पर नहीं ठहरती है। तुम तेल-युक्त मटकी की तरह हो । मटकी को जल में चाहे जितना भिगोया जाए परन्तु एक भी बूंद पानी उस पर ठहर नहीं पाती है, ठीक उसी प्रकार तुम कृष्णरूपी प्रेम-नदी के साथ रहते हुए भी उसमें अपना पैर तक नहीं डुबोया, प्रेम के महत्त्व को समझने की बात तो दूर की है। तुम किसी के सौन्दर्य पर मुग्ध नहीं हुए। परन्तु हम भोली-भाली गोपिकाएं हैं जो कृष्ण के सौन्दर्य में वैसे ही उलझ गई हैं, जैसे चौटियाँ गुड़ के प्रति आकर्षित होकर उससे चिपट जाती हैं। प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. 2. मन की मन ही माझ रही। भावार्थ : गोपियाँ उद्धव से अपनी व्यथा कह रही हैं। वे कहती है कि वे अपनी मन की पीड़ा को व्यक्त करना चाहती है परन्तु मन की बात मन में ही रह जाती है, वे किसी के सामने कह नहीं पाती हैं। पहले तो कृष्ण के लौटने की मन में आशा थी। उनके आने की अवधि को अपने जीने का आधार बनाकर वे तन प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. 3. हमार हरि हारिल की लकरी। भावार्थ: गोपियाँ उद्धव से कहती है कि कृष्ण हमारे लिए हारिल पक्षी की लकड़ी की तरह हैं, जिन्हें हम छोड़ नहीं सकते। जैसे हारिल पश्ची अपने पैरों में कोई लकड़ी या तिनका पकड़े रहता है और उसे किसी स्थिति में नहीं छोड़ता, ठीक उसी तरह हम कृष्ण को छोड़ने में असमर्थ हैं, कृष्ण हमारे जीवन के आधार हैं। हम अपने कृष्ण को मन, कर्म, वचन से अपने हृदय में बसाए हुए हैं। सोते, जागते या सपने में, दिन में, रात में हमारा मन कृष्ण की रट लगाए रहता है। हे उद्धव ! तुम्हारा यह योग-संदेश कड़वी ककड़ी के समान लग रहा है, जिसके प्रति कोई रूचि नहीं है। हमारे लिए तो योग-साधना एक ऐसा रोग है, जिसके बारे में न कभी सुना है, न देखा है और न कभी इसको भोगा ही है। अत: आप ऐसे लोगों को इसका ज्ञान बाँटिए जिनका मन चकरी तरह घूमता रहता हैं, चंचल है। प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. 4. हरि हैं राजनीति पढ़ि आए। भावार्थ : गोपियाँ भ्रमर के माध्यम से उद्धव से कहती हैं कि अब तो श्रीकृष्ण ने राजनीति की शिक्षा प्राप्त कर ली है। वे राजनीति में पूरी तरह निपुण हो गए हैं। आपके योग-संदेश को सुनकर पहले ही समझ गई थीं, परन्तु अब तो पूर्ण विश्वास हो गया है। हे उद्धव ! तुम पहले ही चतुर थे, अब तो अपने गुरु श्रीकृष्ण से ग्रंथ भी पढ़ आए हो। उनकी बुद्धि कितनी विशाल है, इसका अनुमान तो इसी बात से मिल गया है कि वह युवतियों के लिए योग-साधना करने का संदेश भेज रहे हैं अर्थात् यह सिद्ध हो गया है कि वह बुद्धिमान नहीं हैं, क्योंकि कोई भी युवतियों के लिए योग-साधना को उचित नहीं मान सकता । हे उद्धव ! पुराने जमाने के लोग कितने भले थे जो दूसरों का भला चाहते थे, परन्तु आजकल के सज्जन तो दूसरों को दुःख देने और सताने के लिए ही यहाँ तक दौड़े चले आए हैं। हम तो केवल इतना ही चाहती हैं कि हमारे मन को श्रीकृष्ण ने जाते समय चुरा लिया था, उसे हम पुनः प्राप्त कर लें। हमें तो इस बात से बड़ा आचर्य है कि जो कृष्ण दूसरों को अन्याय से रोकते थे, वे खुद अन्याय के रास्ते पर चल पड़े हैं। वे योग-साधना का संदेश भेजकर हमारे ऊपर क्यों अन्याय कर रहे हैं ? उनको राजधर्म नहीं भूलना चाहिए । राजधर्म के अनुसार प्रजा को न सताकर उसकी भलाई का ध्यान रखना चाहिए। प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. पद Summary in Hindiकवि परिचय : कृष्णभक्ति के अनन्य कवि सूरदास का जन्म दिल्ली के निकट सोही नामक गाँव में हुआ था। वे दिली-मथुरा मार्ग पर यमुना के किनारे गऊघाट पर रहते थे और कृष्णभक्ति के पद रचकर गाया करते थे। आरंभ में वे दैन्य भाव की रचनाएँ रचा करते थे किंतु बाद में वल्लभाचार्यजी की प्रेरणा से दैन्य भाव त्यागकर श्रीकृष्ण बाललीलाओं का वर्णन करने लगे थे। उनकी भक्ति-भावना पर ‘श्रीमद् भागवत’ की भी पर्याप्त प्रभाव है। उनकी भक्ति मूलतः सख्य भाव की भक्ति है क्योंकि वे कृष्ण को अपने बाल-सखा के रूप में देखते हैं। सूरदास की कविता पद-परंपरा के अंतर्गत आती है। उनके पदों में भक्ति के साथ-साथ शृंगार और वात्सल्य का बेजोड़ वर्णन हुआ है। शृंगार और वात्सल्य के संयोग और वियोग दोनों रूपों का निरूपण उनकी कविता में हुआ है। बाललीला के पदों में बाल-मनोभावों का बड़ा ही सहज चित्रण देखने को मिलता है। सूरसागर’ उनकी सर्वश्रेष्ठ रचना है। ‘भ्रमरगीत’ उनका सर्वोत्तम उपालंभ काव्य है, जिसमें उद्धव के समक्ष गोपियों की विरह-वेदना का मार्मिक चित्रण हुआ है। ‘साहित्य लहरी’ ‘सूर’ के दृष्टकूट पदों का संग्रह है। सूर के पदों की भाषा ब्रज भाषा है जिसमें माधुर्य के साथ नाद-सौंदर्य फूट पड़ा है। सूर के पद अनेक राग-रागिनियों में बंधे हैं। जिन्हें आज भी बड़े चाव से गाया जाता है। कविता-परिचय : ‘पद’ के अंतर्गत ‘सूरसागर’ के ‘भ्रमरगीत’ से चार पद लिए गए हैं। ‘भ्रमरगीत’ में गोपियों की विरह-वेदना को चित्रित किया गया है। कृष्ण मथुरा जा चुके हैं। वहाँ से स्वयं तो नहीं लौटते परन्तु उद्धव के जरिए गोपियों के पास संदेश भेजते हैं। उद्धव ने निर्गुण ब्रह्म और योग का संदेश देकर गोपियों की विरह-वेदना को शांत करने का प्रयास किया। प्रेम संदेश की चाहक गोपियों ने उद्धव पर व्यंग्य-बाण छोड़े, जिसमें कृष्ण के प्रति उनका अनन्य प्रेम प्रकट हुआ है। पहले पद में गोपियों की शिकायत है कि यदि उद्धव कभी प्रेम के धागे में बंधे होते तो वे विरह-वेदना का अनुभव कर पाते। दूसरे पद में गोपियों ने स्वीकार किया है कि उनके मन की अभिलाषाएँ मन में ही रह गईं, इस स्वीकृति से कृष्ण के प्रति उनके प्रेम की गहराई का पता चलता है। तीसरे पद में वे उद्धव की योग साधना को कड़वी-कड़वी जैसा बताकर अपने एकनिष्ठ प्रेम में दृढ़ विश्वास प्रकट करती हैं। चौथे पद में गोपियाँ उलाहना देती हैं कि कृष्ण ने अब राजनीति पढ़ ली है, फिर पंत में कृष्ण को वे राजधर्म (प्रजा का हित) की याद दी जाती हैं। गोपियों की व्यथा क्यों बढ़ गई?उत्तर: गोपियाँ पूर्ण रूप से कृष्ण के प्रति समर्पित थीं, वे कृष्ण विरह में जी रही थीं। उद्धव ने गोपियों को कृष्ण को भूलकर निर्गुण की उपासना का संदेश दिया, जिसे सुनकर गोपियों की व्यथा बढ़ गई।
गोपियों की विरहाग्नि और कैसे बढ़ गई थी?वे अपने तन - मन की व्यथा को चुपचाप सहती हुई कृष्ण के प्रेम - रास में डूबी हुई थी । कृष्ण को आना थे , परन्तु उन्होंने योग का संदेश देने के लिए उद्धव को भेज दिया । विरह की अग्नि में जलती हुई गोपियों को जब उद्धव ने कृष्ण को भूल जाने और योग - साधना करने का उपदेश देना प्रारम्भ किया , तब गोपियों की विरह वेदना और भी बढ़ गई ।
गोपियों ने स्वयं को अबला और बोली क्यों कहा है?गोपियाँ ने स्वयं को अबला और भोली इसलिए कहा क्योंकि श्रीकृष्ण ने उद्धव के माध्यम से योग सन्देश भिजवाया था। जबकि उन्होंने स्वयं आने के लिए कहा था। उद्धव गोपियों को समझा रहे थे, तो गोपियों ने कहा कि है उद्धव हम तुम्हारी तरह बुद्धिमान नहीं हैं। हमें नीति का अर्थ समझ नहीं आता।
मरजादा न लही के माध्यम से किसकी मर्यादा की बात कही?'मरजादा न लही' के माध्यम से प्रेम की मर्यादा न रहने की बात की जा रही है। कृष्ण के मथुरा चले जाने पर गोपियाँ उनके वियोग में जल रही थीं।
|