ISFR 2019 में प्रकाशित नवंबर, 2017 से जनवरी, 2018 की अवधि के IRS रिसोर्ससैट-2 LISS III उपग्रह डेटा के अनुसार, झारखंड में वन आवरण 23,611.41 वर्ग किमी है जो राज्य के भौगोलिक क्षेत्र का 29.62 प्रतिशत है, यह भारत का 3.30 प्रतिशत है। जिसमें से 4,387 वर्ग किमी आरक्षित वन हैं, 19,185 वर्ग किमी संरक्षित वन हैं और 33 वर्ग किमी अवर्गीकृत वन हैं। Show
आरक्षित वन क्षेत्रफल - 4387 वर्ग किमी राज्य के वन क्षेत्र में हिस्सा - 18.58% विस्तार -
संरक्षित वन क्षेत्रफल - 19, 185 वर्ग किमी राज्य के वन क्षेत्र में हिस्सा - 81.27% विस्तार -
Note : साहिबगंज और गढ़वा में संरक्षित वन का विस्तार नगण्य है जबकि बोकारो में इसका विस्तार शुन्य है । अवर्गीकृत वन क्षेत्रफल - 33 वर्ग किमी राज्य के वन क्षेत्र में हिस्सा - 0.14% विस्तार - साहिबगंज (2276 हेक्टेयर), विस्तार -
प्रमुख तथ्य
World environment day 2019. ज्योग्राफिकल सर्वे रिपोर्ट के अनुसार पूर्वी सिंहभूम में जंगल का दायरा बढ़कर 30. 21 प्रतिशत हो गया है। जमशेदपुर, मनोज सिंह। World environment day 2019 झारखंड के पूर्वी सिंहभूम जिले में जंगलों का बढऩा सुखद संदेश है। जिले में जहां सरकारी मानक के अनुसार 33 प्रतिशत भू-भाग पर जंगल होना पर्यावरण के दृष्टिकोण से सही माना जाता है। इस दिशा में पूर्वी सिंहभूम जिला धीरे-धीरे आगे बढ़ता हुआ नजर आता है। ज्योग्राफिकल सर्वे की पुराने रिपोर्ट में जहां जिले में जंगल 29.5 प्रतिशत भू-भाग पर था। जो नए ज्योग्राफिकल सर्वे रिपोर्ट में बढ़कर 30. 21 प्रतिशत हो गया है। इससे जमशेदपुर वन प्रमंडल में काम करने वाले अधिकारियों से लेकर कर्मचारियों तक का हौसला बुलंद है। जबकि दूसरी ओर झारखंड में सबसे भयावह स्थिति जामताड़ा 5.36 प्रतिशत, देवघर 8.16 प्रतिशत तथा धनबाद में मात्र 10 प्रतिशत भू-भाग पर जंगल अच्छादित है। जहां यदि समय रहते जंगल नहीं बढ़ाई गई तो आने वाले दिनों में पर्यावरण के दृष्टि से ये इलाके मानव हों या पशु जीवन यापन के लिए बहुत ही खतरनाक साबित हो सकता है। जंगल बढऩे के ये रहे कारण पूर्वी सिंहभूम जिले के वन प्रमंडल पदाधिकारी डॉ. अभिषेक कुमार कहते हैं कि जंगल बढऩे का सबसे बड़ा कारण है पौधा को लगाकर उसे सुरक्षा प्रदान करना। इसमें उनकी प्राथमिकता है लगातार लोगों को पौधों की सुरक्षा के प्रति जागरूक करना। यही कारण है कि कई सामाजिक संस्था वनों की रक्षा के लिए खुद आगे बढ़-चढ़ कर कार्य कर रही है। डीएफओ कहते हैं कि इसका जीता जागता उदाहरण है पद्मश्री जमुना टुडू, लेडी टार्जन के नाम से प्रसिद्ध हरियार सकाम वन सुरक्षा समिति सड़कघुट्टू की कानदोनी सोरेन, जमशेदपुर में ग्रीन मैन के नाम से फेमस हो चुके एचडी त्रिपाठी आदि का का योगदान अपने-आप में महत्वपूर्ण है। स्वर्णरेखा नदी के किनारे लगाये गये अधिकांश पौधे जिंदा आज स्थिति यह है कि पूर्वी सिंहभूम जिले में स्वर्णरेखा नदी के किनारे लगाए गए 30 हजार पौधों में अधिकांश पौधे जिंदा हैं। यदि सबकुछ ठीक रहा तो आने वाले समय में स्वर्णरेखा नदी के किनारे खाली स्थान पूरी तरह हरे-भरे नजर आएंगे। जंगल बढऩे का एक अन्य कारण है प्राकृतिक वनों का पुनरुद्धार योजना के तहत नष्ट हो चुके जंगल को दोबारा तैयार करना। इस पर बहुत ही तेजी से काम चल रहा है। जंगल बढऩे में अनचाही घास भी बहुत बड़ी बाधा थी। उस बाधा को दूर करने के लिए सभी रेंज में लीफ ब्लोवर, ग्रास कटर आदि दिए गए हैं ताकि जहां पौधे लगाए जाते हैं वहां घास न उग सके। जंगल बढऩे में सरकारी नियम भी बाधा पौधे को पेड़ बनने में सरकारी नियम की बाधा ने पौधे की जवानी में ही खलल डाल रहा है। पूर्व में जहां गेबियन में पौधे लगाए जाने के बाद उस क्षेत्र के लोगों को पांच साल के अनुबंध पर पौधों का देखरेख के लिए रखा जाता था। जिससे पांच साल में पौधे जड़ पकड़ लेते थे और जब गेबियन टूट भी जाता था तो पौधा अपने आप तैयार हो जाता था। ऐसी स्थिति में गेबियन में लगाए जाने वाले पौधे की संख्या 100 होती थी तो उसमें से 90-95 प्रतिशत पौधे बच जाते थे। जिसे वन विभाग की भाषा में सबसे उच्च स्तर माना जाता है। इसके बाद सरकार का फरमान आया कि अब पौधों का देखभाल पांच साल के बजाय तीन साल तक ही किया जाए। इसके बाद वन विभाग ने तीन साल तक ही पौधा का देखभाल के लिए मजदूर रखने लगा। इसका परिणाम यह हुआ कि तीन साल तक पौधे 95 प्रतिशत तक सही सलामत रहे और जैसे ही पौधे देखभाल बंद हुई मवेशी हो या आम जनता उसे नष्ट करना शुरू कर देते हैं। इसका परिणाम यह होता है कि लगभग आधा पौधा यानि 50-60 प्रतिशत तक ही जीवित रह पाता है बाकि नष्ट हो जाता है। प्रत्येक वर्ष लगाए जाते हैं 10 लाख पौधे अकेले पूर्वी सिंहभूम जिले को ही लें तो वन विभाग द्वारा प्रत्येक वर्ष विभिन्न योजनाओं जैसे अवकृष्ट वनों के पुनर्वास योजना, शीघ्र बढऩे वाले पौधे तथा शहरी वानिकी योजना के तहत सड़कों के किनारे बांस गैबियन के तहत लगभग 10 लाख पौधे लगाए जाते हैं। यदि इसका सही से देखभाल हो तो इतने पौधे लगने पर जंगल ही जंगल नजर आएंगे। इस संबंध में जमशेदपुर वन प्रमंडल के डीएफओ डॉ. अभिषेक कुमार बताते हैं कि पूरे देश में पूर्वी सिंहभूम की स्थिति अन्य जिलों से बेहतर है। 30 प्रतिशत से अधिक जंगल वाले 10 जिले - लातेहार - 56.02 प्रतिशत - चतरा - 47.50 प्रतिशत - प. सिंहभूम - 46.59 प्रतिशत - कोडरमा - 40.31 प्रतिशत - हजारीबाग - 38.00 प्रतिशत - खूंटी - 35.66 प्रतिशत - गढ़वा - 33.96 प्रतिशत - लोहरदगा - 33.56 प्रतिशत - सिमडेगा - 32.88 प्रतिशत - पूर्वी सिंहभूम - 30.21 प्रतिशत 20 प्रतिशत से भी कम जंगल वाले सात जिले जामताड़ा - 5.36 प्रतिशत देवघर - 8.16 प्रतिशत धनबाद - 10 प्रतिशत दुमका - 15.32 प्रतिशत पाकुड़ - 15.85 प्रतिशत गिरीडीह - 17.94 प्रतिशत गोड्डा - 18.58 प्रतिशत लोकसभा चुनाव और क्रिकेट से संबंधित अपडेट पाने के लिए डाउनलोड करें जागरण एप Edited By: Rakesh Ranjan झारखंड में सर्वाधिक वन प्रतिशत वाला जिला कौन है?प्रमुख तथ्य. प्रतिशत की दृष्टि से सर्वाधिक वन क्षेत्र वाला जिला लातेहार ( 56.00% ) और सबसे कम वन क्षेत्र वाला जिला - जामताड़ा ( 5.56% ) है।. क्षेत्रफल की दृष्टि से सर्वाधिक वन क्षेत्र वाला जिला – 3366.12 वर्ग किमी और न्यूनतम वन क्षेत्र वाला जिला - जामताड़ा (100.64 वर्ग किमी) है।. झारखण्ड में सर्वाधिक वन कहाँ है?➤झारखण्ड सबसे अधिक वन प्रतिशत वाला जिला -लातेहार (56.02%) है। ➤झारखण्ड सबसे कम वन प्रतिशत वाला जिला -जामताड़ा (5.36 %) है। ➤अति सघन वन - 2598 वर्ग किलोमीटर है। ➤मध्यम सघन वन - 9686 वर्ग किलोमीटर है।
सर्वाधिक वन क्षेत्रफल वाला जिला कौन सा है?प्रदेश में सर्वाधिक वन क्षेत्र उदयपुर जिले में 2753.39 वर्ग किमी है। उसके बाद अलवर जिले में है जिसका विस्तार 1195.91 वर्ग किमी है। इसके पश्चात् प्रतापगढ़ तथा बारां जिलें है। सबसे कम वन क्षेत्र चूरू जिले में है, जिसका विस्तार 77.69 वर्ग किमी में है।
झारखंड का सर्वाधिक वनाच्छादित वाला जिला कौन सा है?Notes: झारखंड राज्य का सर्वाधिक वनाच्छादित जिला चतरा है।
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