कलकतिया स्टिक कैसे तैयार होती थी - kalakatiya stik kaise taiyaar hotee thee

     Jharkhand Board Class 8 History Notes | झारखंड में हॉकी  

   JAC Board Solution For Class 8TH (Social Science) History Chapter 11

□ आइए याद करें―

प्रश्न 1. रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए-

(क) आयरलैण्ड में हॉकी को ............... के नाम से जाना जाता

है।

(ख) हॉकी को ओलंपिक में ................ शामिल किया गया।

(ग) ................ झारखंड की पहली महिला अंतर्राष्ट्रीय हॉकी

खिलाड़ी हैं।

(घ) ph2

उत्तर―(क) हर्ली   (ख) 1900 ई०   (ग) सावित्री पूर्ति

(घ) जयपाल सिंह मुंडा   (ङ) सिल्बानुस डुंगडुंग

प्रश्न 2. निम्न प्रश्नों के उत्तर संक्षेप में लिखिए―

(क) कलकतिया स्टिक कैसे तैयार होती थी?

उत्तर― बाँस एवं केंद्र की लकड़ी का प्रयोग हॉकी स्टिक बनाने में

किया जाता था। बाँस की गोलाकार जड़ों को छील-छाल कर गेंद बनाया

जाता था। बाँस जड़ के पास प्राकृतिक रूप से हॉकी स्टीक की तरह टेढ़ा

होता है। केंद की डाली को आग पर सेक कर उसके आगे के हिस्से को

टेढ़ा करने के लिए जमीन में गाड़ दिया जाता था और शेष हिस्से को रस्सी

से खींच कर झुकाते हुए किसी भारी पत्थर से बाँध दिया जाता था। लगभग

तीन सप्ताह तक ऐसी स्थिति में रखने पर वह हॉकी स्टिक बन जाता है।

इसे कलकतिया स्टिक कहा जाता था।

(ख) एस्ट्रो टर्फ स्टेडियम में हॉकी क्यों खेला जाता है ?

उत्तर―आज हॉकी के खेल में अत्याधुनिक तकनीक का व्यवहार

ज्यादा होने लगा है। एस्ट्रोटर्फ स्टेडियम में इन तकनीकों का प्रयोग आसान

होता है। खिलाड़ियों के घायल होने की संभावना कम हो जाती है।

□ आइए चर्चा करें:

प्रश्न 3. 1928 से 1956 तक अंतराष्ट्रीय स्तर पर भारतीय हॉकी

टीम के दबदबे को कैसे स्पष्ट किया जा सकता है ?

उत्तर―1885-86 में भारत का पहला हॉकी क्लब कलकत्ता में बना।

धीरे-धीरे इसका विस्तार बम्बई, बिहार, उड़ीसा, दिल्ली आदि प्रांतों में

हुआ। 1928 ई० में एम्सटर्डम ओलंपिक में भारत ने पहला स्वर्ण पदक

जीता। 1928 से 1956 तक भारत ने हॉकी के लगातार छ: ओलंपिक स्वर्ण

पदक जीतकर पूरी दुनियाँ में अपनी धाक जमा दी। इस दौरान लगातार 24

मैचों में विजयी रहा, जिसमें 178 गोल दागे जबकि विपक्षी टीमें मात्र 7

गोल ही दाग सकी। पुनः मैक्सिको ओलंपिक (1968) तक दो और स्वर्ण

पदक हासिल किया।

प्रश्न 4. मेजर ध्यानचंद को हॉकी का जादूगर क्यों कहा जाता

था?

उत्तर― भारतीय हॉकी टीम को अंतर्राष्ट्रीय सम्मान दिलाने में मेजर

ध्यानचंद का सराहनीय योगदान रहा है। ओलंपिक में सर्वाधिक गोल उन्हीं

के नाम रही थी। जर्मन तानाशाह हिटलर भी उसकी प्रतिभा के कायल थे।

उनकी अगुवाई में ओलंपिक कामनवेल्थ, एशिया कप में भारतीय हॉकी

ने अभूतपूर्व सफलता पायी। इसी वजह से उन्हें हॉकी का जादूगर कहा

जाता था।

प्रश्न 5.आपके अनुसार बरियातू हॉकी सेंटर को इतनी सफलता

क्यों प्राप्त हुई?

उत्तर― झारखण्ड में हॉकी की शुरूआत फादर जे०सी० हिवतली के

विशेष योगदान से हुयी है। इनके पुत्र एडवर्ड हिवटली ने पहली हॉकी टीम

बनाई। वे राँची के बरियातु के विशष थे। इनके प्रयास से माली, बाबर्ची,

बढ़ई, धोबी आदि इनके टीम में शामिल हुए। खिलाड़ियों ने अपनी लगन,

मेहनत व इच्छाशक्ति के बल में राष्ट्रीय पहचान बनाई। इस सेंटर ने देश

को डॉ० से ज्यारा राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय महिला हॉकी खिलाड़ी दिये हैं।

प्रश्न 6. महिला हॉकी में जनजातीय युवतियों का बर्चस्व क्यों

है?

उत्तर―जनजातीय युवतियाँ शारीरिक रूप से मजबूत और प्रतिभा को

धनी होती हो। राज्य खेल परिषद् और भारतीय खेल प्राधिकरण (साईं) के

संयुक्त प्रयास से प्रतिभाओं को तलाशने की योजना बनाई गयी। अच्छे खेल

प्रशिक्षकों के, कदिन परिश्रम और जनजातियों को नैसर्गिक प्रतिभा के

कारण महिला हाँकी में जनजातीय युवतियाँ का बर्चस्व है।

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झारखंड में हॉकी पाठ 11लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर, Ncert Solution For Class 8th history के इस पोस्ट में आप सभी विद्यार्थियों का स्वागत है, इस पोस्ट के माध्यम से पाठ से जुड़े सभी महत्वपूर्ण लघु उत्तरीय प्रश्न के उत्तर इस पोस्ट पर कवर किया गया है, जो परीक्षा की दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण है, और पिछले कई परीक्षाओं में भी इस तरह के प्रश्न पूछे जा चुके हैं, इसलिए इस पोस्ट को कृपया करके पूरा अवश्य करें तो चलिए शुरू करते हैं-

झारखंड में हॉकी पाठ 11अति लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर
झारखंड में हॉकी पाठ 11लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर
झारखंड में हॉकी पाठ 11दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर

1 कलकतिया स्टिक कैसे तैयार होती थी ?
उत्तर-हॉकी स्टिक और गेंद की अनुपलब्धता की समस्या का समाधान बिल्कुल देशी ढंग से निकाला गया। फैक्ट्री निर्मित हॉकी स्टिक को उन दिनों छोटानागपुर के अनेक गाँवों में कलकतिया स्टिक भी कहा जाता था।

जो उत्साही आदिवासी खिलाड़ी कलकतिया स्टिक जुगाड़ नहीं कर पाते। वे बाँस और पेड़ की टहनियों को काटकर उन्हें हॉकी स्टिक की शक्ल दे देते थे। बाँस एवं केंद की लकड़ी का प्रयोग स्टिक बनाने में ज्यादा किया जाता था। बाँस की गोलाकार जड़ों को छिलकर गेंद की शक्ल दे दी जाती थी।

बाँस का पौधा स्वाभाविक रूप से जड़ के पास हॉकी स्टिक की तरह कुछ टेढ़ा हुआ करता था, जबकि केंद की डाली को आग पर सेंककर उसके आगे के हिस्से को टेड़ा करने के लिए जमीन में गाड़ दिया जाता था और उसके शेष हिस्से को रस्सी से खींचकर झुकाते हुए किसी भारी पत्थर या अन्य सहारे से बांध दिया जाता था।

लगभग तीन सप्ताह तक ऐसी स्थिति में रखने में वह डाली हॉकी स्टिक की तरह टेढ़ी हो जाया करती थी। इसे कलकतिया स्टिक कहा जाता था।

2 एस्ट्रो टर्फ स्टेडियम में हॉकी क्यों खेला जाता है ?
उत्तर-एस्ट्रो टर्फ स्टेडियम में हॉकी इसलिए खेला जाता है क्योंकि एस्ट्रो टर्फ मैदान पूरी तरह समतल होता है।

इसमें कृत्रिम घास उगाई जाती है, जो साधारण घास की अपेक्षा अधिक मजबूत होती है, जिससे खेल के दौरान यह उखड़ती नही है, और एक बड़ी समस्या जैसे खेल के दौरान मैदान में गड्ढे होने की समस्या से छुटकारा मिल जाता है। इस मैदान पर दिन और रात दोनों समय मैच खेले जा सकते है।

3 1928 से 1956 तक अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारतीय हॉकी टीम के दबदबे को कैसे स्पष्ट किया जा सकता है ?
उत्तर-स्वतंत्रता से पहले ही भारतीय हॉकी टीम ने सफलता की नई इबारत लिखना प्रारंभ कर दिया। एम्सटर्डम ऑलंपिक (1928) से मैक्सिकों ओलंपिक (1968) तक भारत ने हॉकी में आठ स्वर्ण पदक जीते।

1928 से 1956 तक भारत ने हॉकी के लगातार छह ओलंपिक स्वर्ण पदक जीतकर पूरे दुनिया में अपनी धाक जमा दी। इस दौरान लगातार 24 मैचों में अपना विजयी अभियान जारी रखा। भारतीय टीम का प्रभाव विश्व हॉकी में कितना था, इसका अंदाजा इससे लगाया जा सकता है, कि इस अवधि में भारत ने विपक्षी टीमों के खिलाफ 178 गोल दागे जबकि भारत के विरुद्ध 24 मैचों में विपक्षी टीमें सिर्फ 7 गोल ही दाग सकी।

हॉकी टीम को अंतर्राष्ट्रीय सम्मान दिलाने में ध्यानचंद, रूप सिंह, बलबीर सिंह, धनराज पिल्लै, जफर इकबाल, माइकल किंडो, दिलीप तिर्की व मोहम्मद शाहिद सहित अन्य लोगों का महत्वपूर्ण योगदान है। मेजर ध्यानचंद की प्रतिभा के कायल जर्मन तानाशाह हिटलर भी थे।

4 मेजर ध्यानचंद को हॉकी का जादूगर क्यों कहा जाता था?
उत्तर-मेजर ध्यानचंद ने पहले ही मैच में 6 गोल, ओलम्पिक खेलों में 35 गोल और अंतर्राष्ट्रीय मैचों में 400 गोलों का कीर्तिमान बनाया। मेजर ध्यानचंद जब हॉकी लेकर मैदान में उतरते थे
तो गेंद इस तरह उनकी स्टिक से चिपक जाती थी जैसे वे किसी जादू की स्टिक से हॉकी खेल रहे हों।

हॉलैंड में एक मैच के दौरान हॉकी में चुंबक होने की आशंका में उनकी स्टिक तोड़कर देखी गई। जापान में एक मैच के दौरान उनकी स्टिक में गोंद लगे होने की बात भी कही गई। जर्मन तानाशाह हिटलर भी उनकी प्रतिभा के कायल थे।

उनकी अगुवाई में ओलंपिक कॉमनवेल्थ, एशिया कप में भारतीय हॉकी ने अभूतपूर्व सफलता पायी। ध्यानचंद ने हॉकी में जो कीर्तिमान बनाएँ, उन तक आज भी कोई खिलाड़ी नहीं पहुँच सका है। इसलिए मेजर ध्यानचंद को हॉकी का जादूगर कहा जाता था।

5 आपके अनुसार बरियातू हॉकी सेंटर को इतनी सफलता क्यों प्राप्त हुई ?
उत्तर-1974-75 में तत्कालीन बिहार सरकार ने राज्य खेल परिषद्का गठन किया और भारतीय खेल प्राधिकरण के संयुक्त प्रयास से प्रतिभाओं को तलाशने की योजना बनाई। इसके तहत 12-13 साल की प्रतिभाओं का चयन कर योग्य शिक्षकों के देखरेख में उनको प्रशिक्षण देने का काम शुरू किया गया।

इसी क्रम में राँची स्थित राजकीय बालिका उच्च विद्यालय, बरियातू में आदिवासी लड़कियों के लिए हॉकी प्रशिक्षण केंद्र की स्थापना की गई। खेल मंत्रालय ने हॉकी प्रशिक्षक कुलवंत सिंह को राँची भेजा। जिसके बाद महिला हॉकी के इतिहास में सुनहरे पन्ने एक के बाद एक जुड़ते चले गए।

इस हॉकी सेंटर ने देश को 50 से ज्यादा राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय महिला हॉकी खिलाड़ी दिये। ऐसी उपलब्धि संभवतः देश के किसी अन्य विद्यालय या प्रशिक्षण केन्द्र के खाते में दर्ज नहीं है। ncert note