क्रिया के जिस रूप से उसके होने या करने के समय का पता चले उसे क्या कहते हैं? - kriya ke jis roop se usake hone ya karane ke samay ka pata chale use kya kahate hain?

क्रिया ( Kriya ) के जिस रूप से उसके होने के समय का बोध होता है, उसे काल ( Kaal : Tense) कहते हैं! काल के द्वारा क्रियाओं के बीते समय, वर्तमान समय और आने वाले समय का बोध होता है; जैसे – गीता ने नृत्य किया था, गीता नृत्य कर रही है, गीता नृत्य करेगी!

काल के भेद (Kinds of Tense) –

काल के तीन भेद होते हैं! १. भूतकाल (Past Tense)  २. वर्तमान काल (Present Tense)  ३. भविष्यत् काल (Future Tense)

१. भूतकाल – क्रिया का वह रूप जिससे उसके बीत चुके समय में होने का पता चलता है, उसे भूतकाल की क्रिया कहते हैं! जैसे – महेश ने मकान बेचा, बस जोधपुर पहुँच गई!

भूतकाल के भेद – (i) सामान्य भूत (Past Indefinite)  (ii) आसन्न भूत (Immediate Past)  (iii) पूर्ण भूत (Past Perfect)  (iv) अपूर्ण भूत (Past Imperfect)  (v) संदिग्ध भूत (Doubtful Past)  (vi) हेतुहेतुमद् भूत (Conditional Past)

(i) सामान्य भूत – जिस काल से क्रिया के भूतकाल में सामान्य रूप से होने का बोध होता है, उसे सामान्य भूत की क्रिया कहते हैं! जैसे – विमान उड़ा, बिजली चमकी आदि!

(ii) आसन्न भूत – क्रिया के जिस रूप से यह पता चले की क्रिया अभी अभी समाप्त हुई है अर्थात् क्रिया कुछ समय पहले ही हुई है, उसे आसन्न भूत की क्रिया कहते हैं! जैसे – महिमा ने नल बंद किया है, गणेश आकार बैठा ही है आदि!

(iii) पूर्ण भूत – क्रिया के जिस रूप से उसके भूतकाल में पूर्ण हो जाने का बोध होता है, उसे पूर्ण भूत की क्रिया कहते हैं; जैसे – मुकेश साईकिल चला चूका था, क्या तुमने खाना खाया था? आदि!

(iv) अपूर्ण भूत – क्रिया का वह रूप जिसमें क्रिया के भूतकाल में आरंभ होकर उसके पूरा न होने का बोध होता है, उसे अपूर्ण भूत की क्रिया कहते हैं; जैसे – मनीषा कपड़ा धो रही थी, नल से पानी टपक रहा था आदि!

(v) संदिग्ध भूत – क्रिया के जिस रूप से उसके भूतकाल में पूरा होने के बारे में संदेह बना रहता है, उसे संदिग्ध भूत की क्रिया कहा जाता है; जैसे – आदित्य स्कूटर ठीक करा लाया होगा!

(vi) हेतुहेतुमद् भूत – क्रिया का वह रूप जिससे उसके भूतकाल में हो सकने का बोध हो परंतु क्रिया न हो सकी हो, उसे हेतुहेतुमद् भूत कहते हैं! इसमें भूतकाल की एक क्रिया किसी दूसरी क्रिया पर आधारित होती है! जैसे – मम्मी होती तो चॉकलेट ले देती!

२. वर्तमान काल – क्रिया का वह रूप जिससे उसके वर्तमान समय में होने का बोध होता है, उसे वर्तमान काल कहते हैं; जैसे – अमिताभ चाय बेचता है, गणेश खेतों में हल चला रहा है!

वर्तमान काल के भेद (Kinds of Present Tense) – (i) सामान्य वर्तमान (Present Indefinite)  (ii) संदिग्ध वर्तमान (Doubtful Present)  (iii) अपूर्ण वर्तमान (Present Continuous)

(i) सामान्य वर्तमान – वर्तमान काल में सामान्य रूप से होने वाली क्रियाओं को सामान्य वर्तमान की क्रियाएँ कहते हैं; जैसे – पुजारी मंदिर में पूजा कराते हैं, राधिका दलेर मेहंदी के गीत सुनती है!

(ii) संदिग्ध वर्तमान – ऐसी क्रियाएँ जिनके वर्तमान समय में होने के विषय में अनिश्चितता होती है, उन्हें संदिग्ध वर्तमान की क्रिया कहते हैं; जैसे – स्वामी गोपाल गोलोक आश्रम जाते होंगे, मदन गोपाल यमुना में स्नान करते होंगे!

(iii) अपूर्ण वर्तमान – ऐसी क्रियाएँ जिनके वर्तमान काल में हो रहे होने का बोध होता है, उन्हें अपूर्ण वर्तमान की क्रियाएँ कहते हैं! इसमें काम जारी रहने का पता चलता है; जैसे – दर्शना सोनीपत जा रही है! नमन भोजन कर रहा है!

३. भविष्यत् काल – क्रिया का वह रूप जिसमें उसके भविष्य में होने का बोध होता है, भविष्यत् काल की क्रिया कहते हैं; जैसे – सुषमा फरीदाबाद जाएगी!

भविष्यत् काल के भेद (Kinds of Future Tense) –  (i) सामान्य भविष्यत् (Future Indefinite)  (ii) संभाव्य भविष्यत् (Doubtful Future)  (iii) हेतुहेतुमद् भविष्यत् (Conditional Future)

(i) सामान्य भविष्यत् – ऐसी क्रियाएँ जिनके भविष्य में सामान्य रूप से होने का बोध होता है, सामान्य भविष्य की क्रियाएँ कहलाती है; जैसे – रामलाल रामगढ़ जाएंगे!

(ii) संभाव्य भविष्यत् – ऐसी क्रियाएँ जिनके भविष्य में होने की संभावना का बोध हो, उसे संभाव्य भविष्यत् की क्रियाएँ कहते हैं; जैसे – शायद विनोद लॉ पढ़ने दिल्ली जाए, विजय राजेन्द्र को शायद रुपया देगा!

(iii) हेतुहेतुमद् भविष्यत् – जो क्रिया भविष्य में होने के लिए कारण पर निर्भर करती है, उसे हेतुहेतुमद् भविष्यत् की क्रियाएँ कहते हैं; जैसे – दीदी आएगी तो जन्मदिन का केक कटेगा, उमेश पहुंचेगा तो हम चलेंगे!

पक्ष (Paksh : Aspect) –

प्रत्येक कार्य-व्यापार किसी काल अवधि के बिच होता है जो प्रारंभ से अंत तक फैला होता है, इस फैली हुई काल अवधि में कार्य-व्यापार को देखना पक्ष कहलाता है! हिंदी में पक्ष के मुख्यतः चार प्रकार के माने गए हैं –

(i) नित्यता बोधक अपूर्ण पक्ष – इसमें क्रिया सामान्य रूप से चलती रहती है और पूरी नहीं होती; जैसे – रवि डॉक्टर है, मोहन अधयापक था!

(ii) आवृति मूलक पक्ष – इसमें क्रिया सदैव बनी रहती है; जैसे – सूर्य पूर्व से निकलता है, सचिन पढ़ता है!

(iii) सातत्य बोधक पक्ष – इसमें उस समय का बोध होता है जब कार्य निरंतर चल रहा हो; जैसे – राकेश पढ़ रहा है, सीता गा रही है!

(iv) पूर्णकालिक पक्ष – इसमें कार्य व्यापार पूरा या समाप्त हो चूका होता है; जैसे – सचिन दौड़ चूका है, गीता ने यह पुस्तक पढ़ी है!

वृत्ति (Vritti : Mood) –

जब क्रिया रूप वक्ता या लेखक की मनोवृत्ति या प्रयोजन की ओर संकेत कर्ता है तो उसे वृत्ति कहते हैं! वृत्ति को क्रियार्थ भी कहते हैं! इसकी क्रियाएँ प्रायः काल निरपेक्ष होती है! क्रियार्थ का तात्पर्य है – क्रिया का अर्थ (प्रयोजन)! वृत्ति के छः मुख्य भेद माने जाते हैं!

१. आज्ञार्थ – इसमें क्रिया के द्वारा आज्ञा, प्रार्थना, उपदेश आदि प्रकट होते हैं; जैसे – सदैव सच बोलो, तुम अपने घर जाओ आदि!

२. इच्छार्थ – इसमें वक्ता की इच्छा, कामना, आशिर्वाद, वरदान, शाप आदि का पता चलता है; जैसे – ईश्वर सबका भला करे!

३. संभावनार्थ – इसमें कार्य होने में संदेह या संशय बना रहता है; जैसे – आज शायद पानी बरसे!

४. निश्चयार्थ – इसमें कथन सूचना प्रधान होता है और इसमें सत्य असत्य की जांच की जा सकती है; जैसे – मुझे कल मुंबई जाना पड़ेगा!

५. संकेतार्थ – इसमें कार्य सिद्धि के लिए वक्ता कुछ शर्तों का पूरा होना आवश्यक समझता है; जैसे – यदि तुम पढ़ते तो पास हो जाते!

६. प्रश्नार्थ – इसमें वक्ता के मन में जिज्ञासा या शंका होती है और वह उसका निर्णय पाने के लिए कोई प्रश्न कर देता है; जैसे – अब मैं क्या करूं? क्या तुम मेरा एक काम कर दोगे?

वाच्य (Vachya : Voice) –

क्रिया के जिस रूप से उसके, कर्ता, कर्म या भाव के अनुसार होने का बोध होता है, उसे वाच्य कहते हैं! जैसे – गोविंद बेर बेचता है! रेशमा के द्वारा पापड़ बेले गए!

वाच्य के भेद (Kinds of Voice) – (i) कर्तृवाच्य (Active Voice)  (ii) कर्मवाच्य (Passive Voice)  (iii) भाववाच्य (Impersonal Voice)

(i) कर्तृवाच्य – जिस वाक्य की क्रिया का संबंध कर्ता से होता है, अर्थात् वाक्य में कर्ता की प्रधानता होती है, उसे कर्तृवाच्य कहते हैं; जैसे – जया ब्लाउज सीती है!

(ii) कर्मवाच्य – जिस वाक्य की क्रिया का संबंध कर्म से होता है, अर्थात् वाक्य में कर्म की प्रधानता होती है, उसे कर्मवाच्य कहते हैं! कर्मवाच्य की क्रियाओं का पुरुष, लिंग और वचन कर्म के अनुसार होता है; जैसे – हलवाई से मिठाइयाँ बनाई गई, चंद्रधर से स्कूटर ठीक किया गया! इस प्रकार के वाक्य में कर्ता के बाद ‘से’ अथवा ‘द्वारा’ का प्रयोग होता है! (क) कर्मवाच्य के कुछ वाक्यों में कर्ता का लोप भी होता है; जैसे – दीपावली नवम्बर में मनाई जाती है! (ख) असमर्थता सूचक वाक्यों में ‘से’ परसर्ग का प्रयोग होता है, ये वाक्य केवल निषेधात्मक रूप में प्रयुक्त होते हैं; जैसे – मुझसे दरवाजा नहीं खोला जाता! (ग) हिंदी में क्रिया का एक ऐसा भी रूप है जो कर्मवाच्य की तरह प्रयुक्त होता है! वह है सकर्मक क्रिया से बना इसका अकर्मक रूप, जिसे व्युत्पन्न अकर्मक कहते हैं; जैसे – दरवाजा खुल गया, गिलास टूट गया!

(iii) भाववाच्य – जिस वाक्य की क्रिया का संबंध कर्ता और कर्म से न होकर भाव से होता है, उसे भाववाच्य कहते हैं! भाववाच्य की क्रियाएँ हमेशा पुल्लिंग, एकवचन तथा अकर्मक होती हैं! जैसे – मुनमुन से चला जाता है! बंदर से घूमा जाता है!

वाच्य परिवर्तन (Change of Voice) –

१. कर्तृवाच्य के साथ लगी विभक्ति हटा दी जाती है और उसके स्थान पर ‘से’ या ‘के द्वारा’ लगाई जाती है! कर्म के साथ लगी विभक्ति भी हटा दी जाती है!

२. कर्तृवाच्य की मुख्य क्रिया को सामान्य भूतकाल की क्रिया में बदल जाता है और ‘जाना’ क्रिया के उचित रूप का प्रयोग किया जाता है!

कर्तृवाच्य से कर्मवाच्य – दीपिका ने खाना बनाया – दीपिका के द्वारा खाना बनाया गया!

कर्मवाच्य से कर्तृवाच्य – बंदर द्वारा बच्चे को काटा गया – बंदर ने बच्चे को काट लिया!

कर्तृवाच्य से भाववाच्य – अध्यापिका जोर से नहीं बोलती – अध्यापिका से जोर से नहीं बोला जाता!

वाच्य संबंधी कुछ महत्वपूर्ण बातें –

  • कर्मवाच्य तथा भाववाच्य में कर्ता के बाद ‘के द्वारा/द्वारा’ या ‘से’ परसर्ग का प्रयोग किया जाता है! बोलचाल की भाषा में ‘से’ का प्रयोग प्रायः निषेधात्मक वाक्यों में किया जाता है!
  • कर्मवाच्य तथा भाववाच्य के निषेधात्मक वाक्यों में जहाँ ‘कर्ता + से’ का प्रयोग होता है वहाँ एक अन्य असमर्थतासूचक अर्थ की भी अभिव्यक्ति होती है; जैसे – मुझसे चावल नहीं खाया जाता!
  • कर्तृवाच्य के सकारात्मक वाक्यों में इसी सामर्थ्य को सूचित करने के लिए क्रिया के साथ ‘सक’ का प्रयोग किया जाता है; जैसे – वे पुस्तक पढ़ सकते हैं!
  • इसी तरह असमर्थतासूचक वाक्यों में ‘सक’ का प्रयोग होता है – मैं यह नौकरी नहीं कर सकता!
  • कर्तृवाच्य के निषेधात्मक वाक्यों को कर्मवाच्य और भाववाच्य दोनों में रूपांतरित किया जा सकता है!
  • कर्मवाच्य के वाक्यों में प्रायः क्रिया में ‘+जा’ रूप लगाकर किया जाता है, ‘सोया जाता है’, ‘किया जाता है’, ‘खाया जाता है’; जैसे – हलवाई मिठाई नहीं बना रहा!
  • हिंदी में अकर्तृवाच्य के वाक्यों में प्रायः कर्ता का लोप कर दिया जाता है; जैसे – पेड़ नहीं काटा जा सकता!
  • हिंदी में क्रिया का एक ऐसा भी रूप है, जो कर्मवाच्य की तरह प्रयुक्त होता है; वह है – सकर्मक क्रिया से बना उसका अकर्मक रूप जिसे व्युत्पन्न कहते हैं; जैसे – गिलास टूट गया!
  • भाववाच्य की क्रिया सदा अन्य पुरुष, पुल्लिंग, एकवचन में रहती है!

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