किसी देश के लिए संविधान में शक्तियों और जिम्मेदारियों का साफ-साफ निर्धारण क्यों जरूरी है - kisee desh ke lie sanvidhaan mein shaktiyon aur jimmedaariyon ka saaph-saaph nirdhaaran kyon jarooree hai

भारतीय संविधान के बारे में निम्नलिखित प्रत्येक निष्कर्ष की पुष्टि में दो उदाहरण दें:


  1. भारतीय संविधान जन-जन की आशाओं एवं आकांक्षाओं का एक पवित्र दस्तावेज़ हैं। यह उसकी संस्कृति, सभ्यता एवं शासन का दर्पण हैं। उदहारण के लिए: छुआछूत को संविधान के अनुच्छेद 18 द्वारा समाप्त कर दिया गया हैं।
  2. भारतीय संविधान भारत के लोगो के अधिकारों की रक्षा करता हैं। यह ऐसे मौलिक नियमों को निश्चित करता हैं जो समाज में रहने वाले लोगों में समन्वय तथा आपसी विश्वास की स्थापना करते है।


शासकों की सीमा का निर्धारण करना संविधान के लिए क्यों जरूरी है ? क्या कोई ऐसा भी संविधान हो सकता है जो नागरिकों को कोई अधिकार न दे।


शासकों की सीमा का निर्धारण:

  1. शासकों की सीमा का निर्धारण करना संविधान के लिए इसलिए जरुरी हैं ताकि शासक निरंकुश एवं तानाशाह न बन सकें अथवा लोगो की स्वतंत्रता बरकरार रहे।
  2. शासकों द्वारा बनाए गए कानून सदैव उचित हो एवं जनता के हित में हो। इसलिए भी शासकों की सीमा का निर्धारण करना अनिवार्य हो जाता हैं।

एक राजशाही संविधान में, एक राजा का फैसला होता है लेकिन लोकतांत्रिक संविधानों में, लोग निर्णय लेते हैं। आज के समय में ऐसा कोई संविधान नहीं हो सकता, जो अपने नागरिकों को कोई अधिकार न दे। 


किसी देश के लिए संविधान में शक्तियों और जिम्मेदारियों का साफ़-साफ़ निर्धारण क्यों जरूरी है? इस तरह का निर्धारण न हो तो क्या होगा ?


शक्ति विभाजन भारतीय संविधान का सर्वाधिक महत्वपूर्ण लक्षण है, राज्य की शक्तियां केंद्रीय तथा राज्य सरकारों मे विभाजित होती है। दोनों सत्ताएँ एक-दूसरे के अधीन नही होती है, वे संविधान से उत्पन्न तथा नियंत्रित होती है। दोनों की सत्ता अपने अपने क्षेत्रो मे पूर्ण होती है। देश के शासन को सुचारु रूप से चलाने के लिए शक्तियों और जिम्मेदारियों का निर्धारण किया जाना आवश्यक हो जाता हैं। यदि इस तरह का स्पष्ट निर्धारण न किया जाए तो अनिश्चितता बढ़ जाएगी जिसके परिणामस्वरूप केंद्र एवं राज्यों में मतभेद एवं गतिरोध की संभावना बनी रहेगी।


भारतीय संविधान के बारे में निम्नलिखित प्रत्येक निष्कर्ष की पुष्टि में दो उदाहरण दें:
संविधान ने शक्तियों का बँटवारा इस तरह किया कि इसमें उलट-फेर मुश्किल है।


दो उदाहरण:

  1. भारतीय संविधान के अंतर्गत शक्तियों का बँटवारा विधायिका, कार्यपालिका तथा न्यायपालिका में इस प्रकार किया गया हैं की कोई एक संस्था संविधान के ढाँचे को नष्ट नहीं कर सकती।
  2. भारतीय संविधान में शक्तियों का बटवारा निम्न तीन सूचियों के आधार पर किया गया हैं जिसमें उल्ट-फेर मुश्किल हैं:
    1. संघीय सूची: 97 विषय 
    2. राज्य सूची: 66 विषय
    3. समवर्ती सूची: 47 विषय

अवशेष शक्तियाँ केंद्र के पास हैं।


भारतीय संविधान के बारे में निम्नलिखित प्रत्येक निष्कर्ष की पुष्टि में दो उदाहरण दें:
संविधान का निर्माण विश्वसनीय नेताओं द्वारा हुआ। उनके लिए जनता के मन में आदर था।


इस बारे में दो निम्न नामों के उदहारण दिए जा सकते हैं:

  1. डॉ राजेंद्र प्रसाद: संविधान निर्माता उच्च कोटि के विद्वान थे। डॉ. राजेंद्र प्रसाद संविधान सभा के अध्यक्ष थे जिन्हे बाद में भारत गणराज्य का प्रथम राष्ठ्रपति नियुक्त किया गया।
  2. डॉ. बी.आर अंबेडकर: डॉ. भीमराव अम्बेडकर को भारत में दलितों और पिछड़े वर्ग के मसीहा के रूप में देखा जाता है। वह 1947 में स्वतंत्र भारत के संविधान की रचना के लिए संविधान सभा द्वारा गठित ड्राफ्टिंग समिति के अध्यक्ष थे।


इनमे से कौन सा संविधान का प्रकार नहीं है?

यह गणराज्‍य भारत के संविधान के अनुसार शासित है जिसे संविधान सभा द्वारा 26 नवम्‍बर 1949 को ग्रहण किया गया तथा जो 26 जनवरी 1950 को प्रवृत्त हुआ।

1 इनमें कौन सा संविधान का कार्य नहीं है क यह नागरिकों के अधिकार की गारंटी देता है?

जन्मस्थान के आधार पर देश के किसी भी नागरिक के साथ भेदभाव नहीं किया जा सकता। इस प्रकार समानता का अधिकार भारतीय संविधान में दिया गया एक मौलिक अधिकार है।

निम्न में से कौन सा संविधान का कार्य नहीं है?

इस उदाहरण से स्पष्ट है कि कानून और नैतिक मूल्यों के बीच गहरा संबंध है।

किसी देश के संविधान में शक्तियों और जिम्मेदारियों का साफ साफ निर्धारण करना क्यों जरूरी है?

शासकों की सीमा का निर्धारण करना संविधान के लिए इसलिए जरुरी हैं ताकि शासक निरंकुश एवं तानाशाह न बन सकें अथवा लोगो की स्वतंत्रता बरकरार रहे। शासकों द्वारा बनाए गए कानून सदैव उचित हो एवं जनता के हित में हो। इसलिए भी शासकों की सीमा का निर्धारण करना अनिवार्य हो जाता हैं।