बाल्यावस्था के समापन अर्थात 13 वर्ष की आयु से किशोरावस्था आरंभ होती है। इस अवस्था को तूफान एवं संवेदी अवस्था कहा गया है। हैडो कमेटी की रिपोर्ट में कहा गया है 11 से 12 वर्ष की आयु में बालक की नस में ज्वार उठना आरंभ होता है इसे किशोरावस्था के नाम से पुकारा जाता है। यदि इस ज्वार का बाढ़ के समय ही उपयोग कर लिया जाए एवं इसकी शक्ति और धारा के साथ नई
यात्रा आरंभ की जाए तो सफलता प्राप्त की जा सकती है। Contents किशोरावस्था
मनोवैज्ञानिकों का कहना है कि इस अवस्था की अवधि साधारणतः 7 या 8 वर्ष से 12 से 18 वर्ष तक की आयु तक होती है। अवस्था के आरंभ होने की स्थिति आयु, लिंग, प्रजाति, जलवायु, संस्कृति व्यक्ति के स्वास्थ्य आदि पर निर्भर करती है। सामान्यता बालको से कि किशोरावस्था लगभग 12 वर्ष की आयु में आरंभ होती है। भारत में यह पश्चिम के ठंडे देशों की अपेक्षा एक वर्ष पहले ही आरंभ हो जाती है। किशोरावस्था के विकास के सिद्धांतकिशोरावस्था में बालकों और बालिकाओं में क्रांतिकारी शारीरिक, मानसिक, सामाजिक और संवेगात्मक परिवर्तन होते हैं। इन परिवर्तनों के संबंध में दो सिद्धांत प्रचलित हैं।
किशोरावस्था की विशेषताएंप्रावस्था को दबाव, तनाव एवं तूफान की अवस्था माना गया है। इस अवस्था की विशेषताओं को एक शब्द परिवर्तन में व्यक्त किया जा सकता है। परिवर्तन शारीरिक, सामाजिक और मनोवैज्ञानिक होता है। परिवर्तनों की ओर संकेत किया गया है, उनसे संबंधित विशेषताएं निम्नलिखित हैं-
इस प्रकार हम देखते हैं कि किशोरावस्था में बालक में अनेक नवीन विशेषताओं के दर्शन होते हैं। किशोरावस्था में शिक्षा का स्वरूपकिशोरावस्था आरंभ होने के समय से ही शिक्षा को एक निश्चित स्वरूप प्रदान किया जाना अनिवार्य है, इस शिक्षा का स्वरूप क्या होना चाहिए। आइए समझते हैं-
1. शारीरिक विकास के लिए शिक्षाकिशोरावस्था में शरीर में अनेक क्रांतिकारी परिवर्तन होते हैं, जिन को उचित शिक्षा प्रदान करके शरीर को सबल और सुडौल बनाने का उत्तरदायित्व विद्यालय पर है। दहा उसे निम्नलिखित का आयोजन करना चाहिए।
2. मानसिक विकास के लिए शिक्षाकिशोर की मानसिक शक्तियों का सर्वोत्तम और अधिकतम विकास करने के लिए शिक्षा का स्वरूप उसकी रूचियों, रुझानों, दृष्टिकोण और योग्यताओं के अनुरूप होना चाहिए। अतः उसकी शिक्षा में निम्न को स्थान दिया जाना चाहिए।
3. संवेगात्मक विकास के लिए शिक्षाकिशोर अनेक प्रकार के संवेगो से संघर्ष करता है। इन नंबरों में से कुछ उत्तम और कुछ निकृष्ट होते हैं। अतः शिक्षा में इस प्रकार के विषयों और पाठ्य सहगामी क्रियाओं को स्थान दिया जाना चाहिए जो निकृष्ट संवेगों का दमन या मार्गांतीकरण और उत्तम संवेगों का विकास करें। इस उद्देश्य से कला, विज्ञान, साहित्य, संगीत, सांस्कृतिक कार्यक्रम आदि की सुंदर व्यवस्था की जानी चाहिए। 4. सामाजिक संबंधों की शिक्षाकिशोर अपने समूह को अत्यधिक महत्व देता है और उसमें आचार विचार की अनेक बातें सीखता है। महाविद्यालय में ऐसे समूहों का संगठन किया जाना चाहिए, जिनकी सहायता ग्रहण करके किशोर उत्तम सामाजिक व्यवहार और संबंधों के पाठ सीख सकें। इस दिशा में सामूहिक क्रियाएं, सामूहिक खेल और स्काउटिंग अत्यधिक उपयोगी सिद्ध हो सकते हैं। 5. व्यक्तिगत विभिन्नताओं के अनुसार शिक्षाकिशोर में व्यक्तिगत विभिन्नता और आवश्यकताओं को सभी शिक्षाविद स्वीकार करते हैं। अतः विद्यालयों में विभिन्न पाठ्यक्रमों की व्यवस्था की जानी चाहिए जिससे किशोरों की व्यक्तिगत मांगों को पूर्ण किया जा सके। इस बात पर बल देते हुए माध्यमिक शिक्षा आयोग ने लिखा है- “हमारे माध्यमिक विद्यालयों को छात्रों की विभिन्न प्रवृत्तियों, रुचियों और योग्यताओं को पूर्ण करने के लिए विभिन्न शैक्षिक कार्यक्रमों की व्यवस्था करनी चाहिए।” 6. पूर्व व्यावसायिक शिक्षाकिशोर अपने भावी जीवन में किसी ना किसी व्यवसाय में प्रवेश करने की योजना बनाता है। पर वह यह नहीं जानता है कि कौन सा व्यवसाय उसके लिए सबसे अधिक उपयुक्त होगा। उसे इस बात का ज्ञान प्रदान करने के लिए विद्यालय में कुछ व्यवसायियों की प्रारंभिक शिक्षा दी जानी चाहिए। इसी बात को ध्यान में रखकर हमारे देश के बहुद्देशीय विद्यालयों में व्यावसायिक विषयों की शिक्षा की व्यवस्था की गई है। 7. जीवन दर्शन की शिक्षाकिशोर अपने जीवन दर्शन का निर्माण करना चाहता है, पर उचित पथ प्रदर्शन के अभाव में वह ऐसा करने में असमर्थ रहता है। इस कार्य का उत्तरदायित्व विद्यालय पर है। इसका समर्थन करते हुए ब्लेयर, जोंस और सिंपसन ने लिखा है- “किशोर को हमारी जनतंत्र के दर्शन के अनुरूप जीवन के प्रति दृष्टिकोण ओं का विकास करने में सहायता देने का महान उत्तरदायित्व विद्यालय पर है।” 8. धार्मिक व नैतिक शिक्षाकिशोर के मस्तिष्क में विरोधी विचारों में निरंतर द्वंद्व होता रहता है। फल स्वरुप वह उचित व्यवहार के संबंध में किसी निश्चित निष्कर्ष पर नहीं पहुंच पाता है। अतः उसे उदार, धार्मिक और नैतिक शिक्षा दी जानी चाहिए ताकि वह उचित और अनुचित में अंतर करके अपने व्यवहार को समाज के नैतिक मूल्यों के अनुकूल बना सके। इसलिए कोठारी कमीशन ने हमारे माध्यमिक विद्यालयों में नैतिक और आध्यात्मिक मूल्यों की शिक्षा की सिफारिश की है। 9. यौन शिक्षाकिशोर बालकों और बालिकाओं की अधिकांश समस्याओं का संबंध उनकी काम प्रवृत्ति से होता है। अतः विद्यालय में यौन शिक्षा की व्यवस्था होना अति आवश्यक है। यौन शिक्षा की परम आवश्यकता को कोई भी स्वीकार नहीं कर सकता है। इस बात की आवश्यकता है कि किशोर को एक ऐसे वयस्क द्वारा गोपनीय शिक्षा दी जाए जिस पर उसे पूर्ण विश्वास हो। यौन शिक्षा मानव यौन शरीर रचना विज्ञान, लैंगिक जनन, मानव यौन गतिविधि, प्रजनन स्वास्थ्य, प्रजनन अधिकार, यौन संयम और गर्भनिरोध सहित विभिन्न मानव कामुकता से सम्बंधित विषयों सम्बंधित अनुदेशों को कहा जाता है। यौन शिक्षा का सबसे सरलतमा मार्ग माता-पिता अथवा संरक्षक होते हैं। इसके अलावा यह शिक्षा औपचारिक विद्यालयी कार्यकर्मों और सार्वजनिक स्वास्थ्य अभियानों से भी दी जाती है। 10. अपराध प्रवृति पर अंकुशकिशोर में अपराध करने की प्रवृत्ति का प्रमुख कारण है- निराशा। इस कारण को दूर करके उसकी अपराध प्रवृति पर अंकुश लगाया जा सकता है। विद्यालय, उसको उसकी उपयोगिता का अनुभव कराकर उसकी निराशा को कम कर सकता है और इस प्रकार उसकी अपराध प्रवृति को कम कर सकता है।
Join Hindibag किशोरावस्था में कौन कौन से परिवर्तन दिखाई देते हैं?किशोरावस्था में होने वाले सामान्य शारीरिक परिवर्तन
आपके चेहरे और शरीर पर मुंहासे हो सकते हैं। पसीना अधिक आने लगता है और शरीर से पसीने की दुर्गंध भी आ सकती है। आर्मपिट में बाल उगने लगते हैं। जननांगों के आसपास बाल उगने लगते हैं – इसे प्यूबिक हेयर भी कहा जाता है।
किशोरावस्था में संवेगात्मक विकास कैसे होता है?किशोरावस्था में संवेगात्मक व्यवहार में अनेक परिवर्तन आते हैं। वास्तव में किशोरावस्था का आगमन संवेगात्मक व्यवहार में आए तीव्र परिवर्तनों से ही परिलक्षित होता है। किशोरावस्था में जीवन अत्यधिक भावप्रधान होता है। किशोर-किशोरियों में दया, प्रेम, क्रोध, सहानुभूति, सहयोग आदि प्रवृत्तियाँ प्रबल होती हैं।
किशोरावस्था में शरीर में कौन कौन से परिवर्तन होते हैं परिवर्तन के क्या कारण है?किशोर अवस्था शारीरिक परिपक्वता की अवस्था है। इस अवस्था में बच्चे की हड्डियों में दृढ़ता आती है; भूख काफी लगती है। कामुकता की अनुभूति बालक को 13 वर्ष से ही होने लगती है। इसका कारण उसके शरीर में स्थित ग्रंथियों का स्राव होता है।
किशोरावस्था के दौरान होने वाले प्रमुख भावात्मक और संज्ञानात्मक परिवर्तन कौन से हैं?किशोरावस्था में बालक जल्दी से किसी के साथ सहमत नहीं होते। इसका कारण है कि उनमें तर्क-शक्ति का व्यापक विकास हो जाता है। साथ में उनमें प्रश्न पूछने की प्रवृत्ति भी प्रबल हो जाती है, जो उनकी तर्क शक्ति का विकास करती है।
|