कौटिल्य के अनुसार राज्य के कौन कौन से तत्व है तथा सप्तांग सिद्धांत का वर्णन कीजिए? - kautily ke anusaar raajy ke kaun kaun se tatv hai tatha saptaang siddhaant ka varnan keejie?

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कौटिल्य के अनुसार राज्य के सात आवश्यक तत्व

  • January 18, 2018

सप्तांग राज्य की कल्पना प्राचीन भारतीय विचारको के अनुसार एक जीवित शरीर की कल्पना है जिसके सात अंग होते है। श्रग्वेद में समस्त संसार की कल्पना विराट पुरुष के रूप में कई गई है जिसके अवयव द्वारा सृष्टि की विभिन्न रूपो का बोध कराया गया।

कौटिल्य भारतीय राजनीति के रंगमंच पर प्रथम विचारक है जिसने राज्य को पूर्ण रूप से परिभाषित किया कौटिल्य ने कौटिल्य ने राज्य के सात अंग माने राज्य की सात अंगों के कारण ही राज्य की प्रकृति के संबंध में कौटिल्य का सिद्धांत “सप्तांग सिद्धांत” कहलाता है।

कौटिल्य राज्य के सावयवी रूप में विश्वास रखते थे उनके अनुसार राज्य की सात प्रकृतियाँ है- स्वामी,अमात्य, जनपद, दुर्ग,कोष,दंड,और मित्र। राज्य का अस्तित्व इन्ही के आपसी संबंधों व सहयोग पर आश्रित है राज्य को इसमें प्रमुख प्रकृति मन गया है।

  • स्वामी – स्वामी यानी संप्रभु अर्थात प्रशासन का सर्वोच्च प्रधान। राजा कार्यपालिका व प्रशासन का प्रधान है।सम्पूर्ण राज्य की सफलता राजा की राजनीति पर निर्भर होती है। कौटिल्य राजा की शिक्षा पर अधिक जोर देता है अशिक्षित राजा बिना युद्ध के राज्य को नष्ट कर देता है ।कौटिल्य ने राजा के चार गुणों का वर्णन किया है उच्च कुल का होना, दानी,विनयशील, सत्य बोलनेवाला,अनुशासनशील,संयमी,हँसमुख, साहसी। कौटिल्य के अनुसार राजा सैनिक शक्ति के साथ साथ स्नेह ,प्यार के साथ भी शासन करता है।
  • मंत्री या अमात्य – राज्य का दूसरा महत्वपूर्ण अंग कौटिल्य ने मंत्री बताया ।मंत्री या अमात्य का अर्थ प्रशासनिक अधिकारी से लिया जाता है जिसका कार्य राजा को गुप्त मंत्रणा देना होता है मंत्री की सलाह राजा के लिए कवच की तरह होती है जो राज्य प्रशासन का प्रमुख आवश्यक तत्व भी होती है ऐसे व्यक्ति को मंत्री बनाना चाहिए जो गुणवान तथा बुद्धिमान हो व अपने सहयोगियों, संबंधियों या चापलूस व्यक्ति को मंत्री पद पर नियुक्त नही करना चाहिए।
  • जनपद- राज्य का तीसरा अंग जनपद के नाम से जाना जाता है हालांकि कौटिल्य ने इसकी कहीं स्पष्ट व्याख्या नहीं की लेकिन इसका अर्थ भूप्रदेश के साथ  साथ राज्य की जनसंख्या से भी लिया जाता है कौटिल्य का मत है कि राजा को समय समय पर जनपद के पुनर्गठन करना चाहिय ,जहाँ शुद्रो व किसानों का आवास हो। कौटिल्य के अनुसार जनपद एक ऐसा प्रदेश हो जहां की जलवायु स्वास्थवर्धक हो ,भूमि खेती योग्यव उपजाऊ हो,घने जंगल,नदियाँ,पशुधन,खनिज पदार्थो की बहुलता हो।
  • दुर्ग- राज्य की सुरक्षा हेतु दुर्ग या किलेबंदी महत्वपूर्ण स्थान रखती है। जनपदों की सीमाओं पर यह दुर्ग बने होते थे। कौटिल्य ने इसके लिए दो शब्द दुर्गविधान तथा दुर्गनिवेश दिए। लड़ाई के समय यही दुर्ग रक्षा -सामग्री के भंडार के रुप मे काम करे थे। कौटिल्य के चार प्रकार के दुर्ग का वर्णन किया। जैसे चारो तरफ पानी से घिरा हुआ दुर्ग,रेगिस्तान से घिरा हुआ दुर्ग,पर्वत से घिरा हुआ दुर्ग, वन से घिरा हुआ दुर्ग।
  • कोष- प्रत्येक राज्य व जनता के सुख व समृद्धि हिती अर्थव्यवस्था का होना अति आवश्यक होता है। कौटिल्य के अनुसार खजाना ऐसा हो ‘जो स्वयं की कमाई से ,धर्म की कमाई से तथा पूर्वजों की कमाई से संचित हो।कोष धन -धान्य ,चांदी ,सोने रत्नों से ,नकदी आदि से भरा होना चाहिय। कौटिल्य ने राज्य कोष की आवश्यकता शत्रु पर नियंत्रण रखने,युद्ध लड़ने व आपातकाल की स्तिथि से लड़ने के लिए बताई।
  • दण्ड एवं बल- दण्ड का अभिप्राय सेना से है। राजा व राज्य की सुरक्षा हेतु सेना कज प्रमुख भूमिका होती है जिस राजा के पास एक मजबूत सेना होती है उसके मित्र तो मित्र होते ही है शत्रु भी मित्र बन जाते है। अतः शांति व व्यवस्था की स्थापना हेतु यह अति आवश्यक होती है यह राजा की सैनिक शक्ति और दंडनीति का प्रतिनिधित्व करती है कौटिल्य का मत है कि जरूरत पड़ने पर वैश्य व शूद्रों को भी सेना में लिया जा सकता है।व सैनिको का आज्ञाकारी ,प्रशिक्षित व धैर्यशील होना आवश्यक है।
  • मित्र – सप्तम सिद्धांत का अंतिम तत्व मित्र है जिसे कुछ ग्रंथकारों ने सुदृढ़ भी कहा है ।कौटिल्य का मत है कि राज्य की सुरक्षा और अस्तित्व के लिए पड़ोस में मित्र राज्यो का होना अति आवश्यक है। मित्र राज्यो का सहयोग न केवल राज्य के अस्तित्व के लिए महत्वपूर्ण है बल्कि साथ ही अंतर राज्य संबंधों की दृष्टि से भी प्रमुख है देखा जाय तो यह एक प्रकार से अंतरराष्ट्रीय कानून की व्यवस्था तथा आधुनिक राष्ट्र राज्य की अवधारणा के अस्तित्व का पूर्वानुभस देता है।

 कौटिल्य का साप्तांग सिद्धान्त 

कौटिल्य के अनुसार राज्य के सात अंग 

कौटिल्य के अनुसार राज्य के कौन कौन से तत्व है तथा सप्तांग सिद्धांत का वर्णन कीजिए? - kautily ke anusaar raajy ke kaun kaun se tatv hai tatha saptaang siddhaant ka varnan keejie?


कौटिल्य का साप्तांग सिद्धान्त

  • भारत के प्राचीनतम ग्रन्थ ऋग्वेद में राज्य की कल्पना विराट पुरुष की तरह की गई है। कौटिल्य प्राचीन भारत का पहला विद्वान था जिसने राज्य के संबंध में इतने स्पष्ट विचार रखे है। 
  • कौटिल्य ने राज्य संबंधी अपने विचार में राज्य को सात अंगों का मिश्रण बताया। उनकी मान्यता थी कि राज्य  शरीर रूपी सात अंगों से मिलकर बना है। कतिपय यही कारण है कि कौटिल्य का राज्य के सात अंगों का सिद्धान्त साप्तांग सिद्धान्त कहलाया। 

कौटिल्य के अनुसार राज्य के सात अंग 

कौटिल्य ने अपनी पुस्तक अर्थशास्त्र" के छठे अधिकरण के पहले अध्याय में राज्य के सात अंगों का उल्लेख किया है। 

उनके अनुसार सात अंग निम्न है:- 

1.स्वामी अथवा राजा

2.अमात्य 

3.जनपद 

4.दुर्ग 

5.कोष 

6.दंड

7. मित्र 

कौटिल्य के अनुसार राजा कैसा होना चाहिए 

1.स्वामी अथवा राजा:-

  • कौटिल्य के सात अंगों के सिद्धान्त में स्वामी अथवा राजा का सर्वाधिक महत्वपूर्ण स्थान है। कौटिल्य की स्पष्ट मान्यता थी कि राज्य की सफलता राजा पर निर्भर करती है। 
  • कौटिल्य को भारत में प्राचीन समय में पाये जाने वाले गणतन्त्रों का पर्याप्त ज्ञान था परन्तु वह योग्य कल्याणकारी राजा का प्रबल समर्थक था। कतिपय यही कारण था कि उसने राजा की योग्यतागुणों तथा नीतियों का व्यापक उल्लेख अर्थशास्त्र में किया है ।
  • बी0पी0 सिंह का स्पष्ट मत है कि कौटिल्य की शासन प्रणाली में राजा शासन की धुरी है और शासन संचालन में सक्रिय रूप से भाग लेने और शासन को गति प्रदान करने में राजा का एकमात्र स्थान है।" 
  • कौटिल्य राजा में आदर्श रूप देखता है। उसका राजा सर्वगुण सम्पन्न एक आदर्श व्यक्ति है।
  • कौटिल्य के राजा संबंधी विचार प्लेटो के आदर्श राजा या दार्शनिक शासक (Philosopher King) के समान है। वह स्पष्ट करता है कि राजा दृढ़ निश्चयीविचारशीलसत्यवादी वृद्धों के प्रति सम्मान का भाव रखने वालाविवेकपूर्णदूरदर्शी उत्साही तथा युद्ध में चतुर होना चाहिए। उसमें कठिन समय में साहस न छोड़ने तथा समस्या को पकड़ने की क्षमता होनी चाहिए। वह राजा में राजकोष की वृद्धि की क्षमता रखने की क्षमता होना आवश्यक मानता है।
  • कौटिल्य राजा में आध्यात्मिक एवं नैतिक गुण को भी आवश्यक मानता है। उसका मानना है कि कुछ गुण स्वभाव से होते है परन्तु कुछ गुण अभ्यासअध्ययन से विकसित किये जा सकते है। कतिपय यहीं कारण है कि वह राजा की शिक्षा पर बहुत बल देता है। उसकी स्पष्ट मान्यता थी कि जिस प्रकार घुन लगी लकड़ी जल्द नष्ट हो जाती है उसी प्रकार अशिक्षित राजकुल बिना किसी युद्ध के नष्ट हो जाते है।
  • कौटिल्य के अनुसार राजा को दण्ड नीतिराज्य शासनसैनिक शिक्षामानव शास्त्रइतिहासधर्मशास्त्र तथा अर्थशास्त्र का जानकार होना चाहिए। राजा को अपनी इन्द्रियों पर सदैव अंकुश रखना चाहिए। 
  • कौटिल्य के सात अंगों के सिद्धान्त में राजा का स्थान सर्वोच्च है। राजा राज्य रूपी शरीर में मस्तिष्क के समान है। जिस प्रकार मस्तिष्क के अक्षमता का प्रभाव सम्पूर्ण शरीर के अंगों पर पड़ता है उसी प्रकार अयोग्य राजा से सम्पूर्ण राज्य ही अस्वस्थ्य हो जाता है ।

कौटिल्य के अनुसार अमात्य या मंत्री

2. अमात्य या मंत्री:-

  • सामान्यतः अमात्य का अर्थ मंत्री से लिया जाता है। कौटिल्य अमात्य के अर्न्तगत मंत्री एवं प्रशासनिक अधिकारियों दोनों से रखता है। 
  • कौटिल्य का मत था कि जिस प्रकार एक पहिये की गाड़ी नहीं चल सकती उसी प्रकार एक व्यक्ति सम्पूर्ण प्रशासन नहीं चला सकता है। राजा को प्रशासन में सहयोगियों से परामर्श लेना चाहिए। 
  • कौटिल्य के अनुसार सभी कार्यों की सफलता अमात्यों पर निर्भर करती है। 
  • कृषि आदि कार्यों की सफलता राजवंश अन्तपाल आपत्तियों का प्रतिवाद उपनिवेशों की स्थापना अपराधियों को दण्ड तथा राज करो का निग्रह सम्पूर्ण कार्य अमात्यों द्वारा सम्पन्न होते है।
  • कौटिल्य का स्पष्ट मत था कि योग्यअनुभवी व्यक्ति को बिना किसी पक्षपात के अमात्य बनाना चाहिए। 
  • कौटिल्य का मत है कि उनकी चरित्र परीक्षा के बाद नियुक्ति होना चाहिए। अमात्यों को उनकी क्षमता के अनुसार कार्य सौंपे जाने चाहिए।

कौटिल्य के अनुसार जनपद

3.जनपद:- जनपद कौटिल्य के राज्य रूपी शरीर का तीसरा अंग है । 

  • कौटिल्य का जनपद से अर्थ उस भू-भाग में निवास करने वाले नागरिकों अथवा निवासियों से है। उसका मानना था कि जनपद के अभाव में राज्य की कल्पना भी नहीं की जा सकती है। 
  • कौटिल्य का स्पष्ट मत था कि दूसरे प्रदेशों से लोगों को आमंत्रित कर नये जनपद स्थापित किये जाय। 
  • प्रत्येक जनपद में कम से कम 100 घर तथा अधिक से अधिक 500 घर वाले गांव बसाये जाय जिसमें किसान एवं शूद्र अधिक हो। 
  • एक गांव दूसरे से दो कोस से अधिक दूर न हो। 
  • जनपद के संगठन के संबंध में कौटिल्य स्पष्ट करता है कि आठ सौ गांवों के बीच स्थानीयचार सौ गांवों के बीच द्रोणमुख दो सौ गांवों के बीच ख्खावटिक तथा दस गांवों के समूह के रूप में संग्रहण की स्थापना की जाय। 

कौटिल्य जनपद निर्माण की योजना

  • प्रशासनिक दृष्टि से जनपदस्थानीयद्रोणमुखखावटिक संग्रहण और गांव में बंटा होगा। कौटिल्य राज्य के छोटे आकार में विश्वास करता था ।
  • कौटिल्य जनपद निर्माण की पूरी योजना देता है जिसमें प्रारम्भ में तथा सीमान्त में किले बने हो जिसमें अन्न व पानी प्रचुरता से हो। आपात काल में बन एवं पर्वत में जा रक्षा की जा सके। 
  • जनपद के पास शत्रु राजा के विरोधियों की संख्या अधिक होनी चाहिए। शत्रु राज्य कमजोर होना चाहिए। उसके पास घने जंगल हो जो कीमती लकड़ीहिंसक पशुओं से भरे हो ।
  • इसके अन्दर नदी तालाब हो तथा इसकी जलवायु अच्छी हो। निवासियों में नीच वर्ग की आबादी अधिक हो तथा मेहनती लोगों की अधिकता हो। ऐसा जनपद सम्पन्न जनपद होगा। 
  • कौटिल्य ने जनपद के निवासियों के संदर्भ में स्पष्ट किया है कि वह निष्ठावान स्वाभिमानी और सम्पन्न होनी चाहिए। वह सरल हदय वालीराजा के करो को स्वेच्छा से चुकाने वाली होनी चाहिए । 
  • प्रजा के अन्दर स्व-अनुशासन तथा कर्तव्य परायणता होनी चाहिए। 

कौटिल्य के अनुसार दुर्ग

4.दुर्गः:- कौटिल्य ने अपने अर्थशास्त्र में दो तरह के दुर्ग का वर्णन किया है:-

1. दुर्ग विधान 

2. दुर्ग निवेश

 दुर्ग विधान

  • दुर्ग विधान का कौटिल्य का आशय मुख्य दुर्ग से है। इसमें वह मुख्य दुर्ग के निर्माण पर बल देता है। 

दुर्ग निवेश

  • दुर्ग निवेश से उसका आशय दुर्ग के अन्दर के भवनों तथा राज्यों के अन्दर महत्वपूर्ण स्थानों पर निर्मित भवनों से है।

दुर्ग राज्य की रक्षात्मक आक्रामक शक्ति दोनों का प्रतीक है। प्रत्येक राज्य की सुरक्षा के लिए मजबूत किला आवश्यक होता है। किले में सेना की मोर्चाबंदी आक्रमण के लिए गुप्त निकास द्वारगोला बारूद भोजन का बंदोबस्त होना चाहिए।

कौटिल्य के अनुसार दुर्ग की श्रेणियां

कौटिल्य ने दुर्ग को चार श्रेणियों में बांटा है:-

1.औदक दुर्गः- 

  • वह दुर्ग जो चारों ओर से पानी तथा तालाब से घिरा होता है वह औदक दुर्ग कहलाता है।

2.पर्वत दुर्गः- 

  • बड़ी चट्टानों से निर्मितपर्वतों पर स्थित दुर्ग पर्वत दुर्ग कहलाता है। 

3.धान्वन दुर्गः-

  • ये ऐसे दुर्ग होते हैं जो ऐसे मरूस्थलीय जगहों पर बने होते है जहां न तो पानी होता और न ही पहुचंना आसान होता है।

4.वन दुर्गः-

  • घने जंगलों में बना दुर्ग जहां का रास्ता बेहद दुर्गम हो उसे वन दुर्ग की संज्ञा दी। कौटिल्य की मान्यता थी कि औदक और पर्वत दुर्ग संकट के समय राज्य की तथा उसके नागरिकों की रक्षा में सहायक होते हैंजबकि धान्बन दुर्ग एवं वन दुर्ग संकट के समय राजा की सुरक्षा के लिए आवश्यक एवं अति उपयोगी होते हैं।

कौटिल्य के अनुसार कोष

5.कोष- 

  • राज्य में राजा को अनेक काम करने होते हैं। प्रत्येक कार्य के लिए धन की आवश्यकता होती है। अतः प्रत्येक राज्य में कोष अत्याधिक महत्वपूर्ण होता है। 
  • अतः राजा का यह कर्तव्य है कि वह कोष की वृद्धि के लिए सदैव प्रयत्नशील रहे।
  • कौटिल्य का स्पष्ट मत है कि धर्मअर्थकाम में अर्थ प्रधान है। सेनाभूमि समृद्धि आदि सभी में कोष की आवश्यकता होती है। 
  • कौटिल्य की स्पष्ट मान्यता थी कि प्रत्येक राज्य को युद्ध के लिए सदैव तत्पर रहना आवश्यक है। युद्ध हो या न हो परन्तु राज्य को तैयार रहना चाहिए । इन सभी कार्यों के लिए यह आवश्यक है कि राज्य के पास पर्याप्त कोष हो। कोष से सेना एवं दुर्ग दोनों की रक्षा होती है। 
  • कौटिल्य का स्पष्ट मत था कि राजा को कोष को प्रचुर करने के लिए प्रयास करना चाहिए। उसे प्रजा से प्राप्त अनाज का छठा भागव्यापार से दसवांपशुओं के व्यापार से प्राप्त पचासंवा भाग सदैव राजा के द्वारा राजकोष में जमा किया जाए। 
  • कौटिल्य स्पष्ट करता है कि - " राजा प्रजा से इस तरह संग्रह करे जैसे माली बगिया से पके-पके फल लेता है। प्रजा यदि कर देने में असमर्थ है तो उसे कच्चे फल की तरह ग्रहण न किया जाय क्योंकि अशक्त प्रजा से कर संग्रह उसमें असंतोष अथवा विद्रोह करने का कारण होता है।

कौटिल्य के अनुसार दण्ड अथवा सेना

6.दण्ड अथवा सेना: 

  • प्राचीन भारत के सभी चिन्तकों ने दण्ड को बहुत महत्व दिया है। 
  • कौटिल्य ने दण्ड का प्रयोग सेना के संदर्भ में किया है। सेना राज्य की सुरक्षा की प्रतीक है ।
  • कौटिल्य का मत है कि जिस राजा के पास अच्छा सैन्य बल होता है उसके मित्र तो बनते है साथ ही उसके शत्रु भी मित्र बन जाते है। 
  • कौटिल्य सेना में क्षत्रियों को अधिकाधिक शामिल करने की बात करता है। उसकी मान्यता है कि आवश्यकता पड़ने पर अन्य जातियों को भी शामिल किया जा सकता है। 
  • कौटिल्य की मान्यता थी कि सैनिकों को स्वाभिमानी होना चाहिए। राजा को उनकी बेहतर सेवा के लिये बेहतर वेतन तथा सुविधा के लिए तैयार रहना चाहिए।
  • कौटिल्य ने सेना में हस्ति सेनाअश्व सेना रथ सेना तथा पैदल सेना का उल्लेख किया है।
  • कौटिल्य इसमें हस्ति सेना को सर्वाधिक महत्व देता है। दण्ड समान रूप से सभी पर लागू होता है अतः सभी पर समान रूप से लागू करने के लिए भी सेना अथवा शक्ति की आवश्यकता होती है। दण्ड अथवा भय के अभाव में सर्वत्र अराजकता उत्पन्न हो जायेगी।
  • कौटिल्य का मत है कि राजा को आपात काल के लिये सदैव तैयार रहना चाहिए। आपातकाल के समय मित्रों की सहायता से मुकाबला किया जाना चाहिए।

कौटिल्य के अनुसार मित्र

7-मित्र

  • "कौटिल्य ने मित्रों पर विशेष बल दिया है। उसका मानना है कि मित्र वंश परम्परागत विश्वासीस्थायी एवं हितैषी होने चाहिए। 

कौटिल्य के अनुसार राज्य के कौन कौन से तत्व हैं तथा सप्तांग सिद्धांत का वर्णन कीजिए?

कौटिल्य राज्य के सावयवी रूप में विश्वास रखते थे उनके अनुसार राज्य की सात प्रकृतियाँ है- स्वामी,अमात्य, जनपद, दुर्ग,कोष,दंड,और मित्र। राज्य का अस्तित्व इन्ही के आपसी संबंधों व सहयोग पर आश्रित है राज्य को इसमें प्रमुख प्रकृति मन गया है। स्वामी – स्वामी यानी संप्रभु अर्थात प्रशासन का सर्वोच्च प्रधान।

कौटिल्य के राज्य के सप्तांग सिद्धांत क्या है स्पष्ट कीजिए?

सप्तांग सिद्धान्त के अन्तर्गत कौटिल्य ने कहा है कि राजा को अपने पड़ोसी राज्यों से मित्रता करनी चाहिए, जिससे आवश्यकता पड़ने पर उनकी सहायता प्राप्त की जा सके। मित्र वंश-परम्परागत, विश्वसनीय तथा हितैषी हों और राजा व उसके राज्य को अपना समझते हों ।

कौटिल्य के अनुसार राज्य में कितने तत्व होते हैं?

कौटिल्य ने राज्य के सात अंग बताये हैं और ये उनका "सप्ताङ्ग सिद्धान्त " कहलाता है - राजा , आमात्य या मंत्री , पुर या दुर्ग , कोष , दण्ड, मित्र । राज्य का क्षेत्रफल बड़ा होता है। अर्थात बड़ा भूभाग से घिरा क्षेत्र।

कौटिल्य के सप्तांग सिद्धांत कौन कौन से हैं?

सप्तांग सिद्धांत.
राजा या स्वामी कौटिल्य ने राजा को राज्य का केंद्र व अभिन्न अंग माना है तथा उन्होनें राजा की तुलना शीर्ष से की है. ... .
अमात्य या मंत्री कौटिल्य ने अमात्य और मंत्री दोनों की तुलना की “आँख” से की है. ... .
जनपद कौटिल्य ने इसकी तुलना “पैर” से की है. ... .
दुर्ग ... .
5) कोष ... .
6) दंड या सेना ... .
7) मित्र.