कवि ने अपने को अभागा क्यों कहा है? - kavi ne apane ko abhaaga kyon kaha hai?

विषयसूची

Show
  • 1 कवि का प्राण क्यों गिर रहा है?
  • 2 कवि को अपने घर की याद कब आती है?
  • 3 कवि ने अपने आपको अभागा क्यों कहा है?
  • 4 कवि की नजर में क्या तीर रहा था?
  • 5 घर की याद आ रही है क्या करूं?
  • 6 कवि अपनी वास्तविक स्थिति को पिता से क्यों छिपाना चाहता है?

कवि का प्राण क्यों गिर रहा है?

इसे सुनेंरोकेंआकाश में बादल घिरकर बारिश करने लगते हैं। ऐसे में कवि के मन को स्मृतियाँ घेर रही हैं। जैसे-जैसे पानी गिर रहा है, वैसे-वैसे कवि के हृदय में प्रियजनों की स्मृतियाँ चलचित्र की तरह उभरती जा रही हैं। पानी के बरसने के कारण ही उसके प्राण व मन घर की याद में व्याकुल हो जाते हैं।

कवि को अपने घर की याद कब आती है?

इसे सुनेंरोकेंयह कविता जेल प्रवास के दौरान लिखी गई। एक रात लगातार बारिश हो रही थी तो कवि को घर की याद आती है तो वह अपनी पीड़ा व्यक्त करता है। इस काव्यांश में पिता व माँ के बारे में बताया गया है। व्याख्या-सावन की बरसात में कवि को घर के सभी सदस्यों की याद आती है।

कवि को घर की याद क्यों आ रही थी?

इसे सुनेंरोकेंकवि को जेल-प्रवास के दौरान घर से विस्थापन की पीड़ा सालती है। कवि के स्मृति-संसार में उसके परिजन एक-एक कर शामिल होते चले जाते हैं। घर की अवधारणा की सार्थक और मार्मिक याद कविता की केंद्रीय संवेदना है। सावन के बादलों को देखकर कवि को घर की याद आती है।

पानी गिरने से कवि क्या कहना चाहता है?

इसे सुनेंरोकेंकवि ने पानी गिरने के दो अर्थ दिए हैं। पहले अर्थ में यहाँ वर्षा हो रही है। दूसरे अर्थ में, बरसात को देखकर कवि को घर की याद आती है तथा इस कारण उसकी आँखों से आँसू बहने लगे हैं। कवि ने भाइयों को भुजाओं के समान कर्मशील व बलिष्ठ बताया है।

कवि ने अपने आपको अभागा क्यों कहा है?

इसे सुनेंरोकेंकवि स्वयं को अभागा कहता है, क्योंकि वह परिवार के सदस्यों भाइय, बहनों, और वृद्ध माता-पिता के सानिध्य से दूर है। उसे उनके प्यार की कमी खल रहीं हैं। 2, कवि स्वयं को इसलिए अभागा कहता है, वयोंकि वह जेल में बंद है। सावन के अवसर पर सारा परिवार इकट्ठा हुआ है और वह उनसे दूर है।

कवि की नजर में क्या तीर रहा था?

इसे सुनेंरोकेंक: कवि का नाम भवानी प्रसाद मिश्र तथा काविता क नाम घर की याद है। ग: एक रात लगातार बारिश हो रही थी तो कवि को घर की याद आती है तो वह अपनी पीड़ा व्यक्त करता है। इस काव्यांश में पिता व माँ के बारे में बताया गया है। व्याख्या-सावन की बरसात में कवि को घर के सभी सदस्यों की याद आती है।

सोने पर सुहागा पांचवां पुत्र कौन सा है?

इसे सुनेंरोकेंकवि के पिता को आज अपने स्वर्ण बेटे हेटे क्यों लग रहे होंगे? उत्तर -कवि के पिता अपने चार बेटों को सोने के समान मानते थे तथा पांचवें को सुहागा । आज उनका पांचवां बेटा जो उन्हें सबसे प्यारा लगता है , जेल में उनसे दूर बैठा है। अतः उसके बिना चारों बेटे उन्हें तुच्छ लग रहे होंगे ।

कवी सजीले सावन से क्या प्रार्थना करता है?

इसे सुनेंरोकेंकवि सजीले सावन को अपना संदेशवाहक बनाता है और उससे प्रार्थना करता है कि वह चाहे कितना भी बरस ले किन्तु उसके पिता के मर्म को दुखी न करे। वह पिता को जाकर बताए कि भवानी जेल में मस्त है।

घर की याद आ रही है क्या करूं?

इसे सुनेंरोकेंघर से दूर अपने घर की याद सताए तो आप एक और किताब पढ़कर राहत महसूस कर सकते हैं. इसका नाम है ‘द मास्टर एंड द मार्गरिटा’. घर से दूर होने पर घर की याद आ रही हो तो भी.

कवि अपनी वास्तविक स्थिति को पिता से क्यों छिपाना चाहता है?

इसे सुनेंरोकेंकविता की अंतिम 12 पंक्तियों में कवि अपनी यथार्थ स्थिति व मन की दशा को अपने परिजनों से छिपाना चाहता है। इसका कारण यह है कि वह अपनी सत्य स्थिति को बताकर अपने परिवारजनों को और अधिक दुखी नहीं करना चाहता। अपने बेटे के दुखों को जानकर प्रत्येक माता-पिता दुखी होते हैं। यही स्थिति कवि के परिजनों की भी है।

कवि के पिता किसका नाम ले कर रो पड़े होंगे?

इसे सुनेंरोकेंकवि के पिता ने जब सभी भाई-बहनों को खड़े या खेलते देखा होगा तो उन्हें पाँचवें पुत्र भवानी की याद आई होगी। वे उसका नाम लेकर रो पड़े होंगे।

घर की याद कविता के आधार पर पानी के रात भर गिरने और प्राणमन घिरने में परस्पर क्या संबंध है?

इसे सुनेंरोकेंपानी के रात भर गिरने और प्राण-मन के घिरने में परस्पर क्या संबंध है? उत्तर:- पानी के रात भर गिरने और प्राण-मन के घिरने में परस्पर संबंध कवि की बीती स्मृति और उससे होने वाली पीड़ा से है। पानी के लगातार बरसने के कारण कवि को अपने घर-परिवार के सदस्यों की याद आ गई। इस कारण उसके प्राण व मन घर की याद में व्याकुल हो जाते हैं।


आज पानी गिर रहा है,
बहुत पानी गिर रहा है,
रात भर गिरता रहा है,
प्राण मन घिरता रहा है,

बहुत पानी गिर रहा है,
घर नज़र में तिर रहा है,
घर कि मुझसे दूर है जो,
घर खुशी का पूर है जो,

घर कि घर में चार भाई,
मायके में बहिन आई,
बहिन आई बाप के घर,
हाय रे परिताप के घर!

घर कि घर में सब जुड़े हैं,
सब कि इतने कब जुड़े हैं
चार भाई चार बहिनें,
भुजा भाई प्यार बहिनें,

घर की याद कविता का प्रसंग - प्रस्तुत पद्यांश कवि श्री भवानी प्रसाद मिश्र की कारावास के दौरान रचित कविता 'घर की याद' में उद्धृत है। इसमें कवि को सावन के महीनेमें कारावास में रहते हुए अपने बहिन भाइयों की याद आती है। कवि कहता है कि-

घर की याद कविता का व्याख्या - सावन का महीना शुरू हो गया है। आज पानी की झड़ी लगी हुई है। लगातार बरसात हो रही है। पानी बहुत अधिक मात्रा में गिर रहा है।सारी रात बरसात होती रही है। अधिक बरसात होने के कारण मन की कल्पनाएँ और प्राण उसी में केंद्रित हैं। साँसें उसी में अटकी हुई हैं। ऐसे मेंकवि को अपने घर की अपने परिवार के सदस्यों की बहुत याद आ रही है। उसका घर उसकी आँखों के सामने घूम रहा है। उसका घर यद्यपि जेलसे बहुत दूर है फिर भी खुशियों से परिपूर्ण है। घरों में हर तरह के सुख व खुशियाँ हैं। घर में चार भाई रहते हैं। ससुराल से बहिन आई हुई थी। उनसबकी उसे बहुत याद आती है। बहिन अपने पिता के घर सुख पाने आई थी लेकिन वहाँ उसे अपने भाई के जेल जाने का समाचार मिला तो बहुत दुखी हुई। कवि का घर पर न होना सभी को मानसिक कष्ट दे रहा है । सुख से परिपूर्ण घर दुःख से भर गया था। घर की याद आते ही उसे यह भीयाद आया कि घर के सभी सदस्य इन दिनों इकट्ठे हुए होंगे। सावन के महीने को मानने के लिए सभी जुड़े होंगे। देखा जाए तो साल में इतने लोग कब जुड़ पाते हैं। चारों भाई और चारों बहिनें घर में इकट्ठे होंगे। कवि के भाई कठिनाइयों में हमेशा साथ देने के कारण उसकी भुजाएँ हैं और बहिनें स्नेह की साक्षात् मूर्ति हैं। बहिनों ने उसे बहुत प्यार दिया है।

घर की याद कविता का विशेष - सन् 1942 के दौरान कारावास के एकांत कक्ष में लिखी गई इस कविता में प्राकृतिक वातावरण का सजीव चित्रण हुआ है। प्रकृति की निस्तब्धता का चित्रण पृष्ठभूमि के रूप में किया गया है। देश, काल और वातावरण का सजीव चित्रण है। कविता को आत्मकथात्मक ढंग से विकसित किया गया है। मुक्त छंद है। तुकाग्रह का गुण उल्लेखनीय है। भाषा अत्यंत सरल, सहज और विषयानुकूल है।

और माँ बिन पढ़ी मेरी,
दुख में वह गढ़ी मेरी
माँ कि जिसकी गोद में सिर,
रख लिया तो दुख नहीं फिर,

माँ कि जिसकी स्नेह धारा,
का यहाँ तक भी पसारा,
उसे लिखना नहीं आता,
जो कि उसका पत्र पाता।

पिता जी जिनको बुढ़ापा,
एक क्षण भी नहीं व्यापा,
जो अभी भी दौड़ जाएँ,
जो अभी भी खिलखिलाएँ,

मौत के आगे न हिचकें,
शेर के आगे न बिचकें,
बोल में बादल गरजता,
काम में झंझा लरजता,

घर की याद कविता का प्रसंग - यहाँ कवि ने कारावास के दौरान अनुभूत क्षणों के दुख को साकार करते हुए कहा है कि -

घर की याद कविता का भावार्थ - मेरी माँ अनपढ़ हैं और उन्हें मेरे कारण बहुत दुख उठाने पड़ते हैं। मानो दुखों ने ही उनके व्यक्तित्व का निर्माण किया है। मेरी माँ भले हीपढ़-लिख न सकती हों लेकिन उन्होंने मेरे दुखों को सदैव बाँटा है। उनकी गोद में सिर रखते ही मेरे सारे दुख मिल जाते थे। दुख का कोई अहसासही नहीं होता था। ऐसा लगता था कि कभी दुख से सामना ही नहीं हुआ। मेरी माँ ममता का स्रोत थी। कारावास में उनके न होने पर भी उनके स्नेहकी धारा का प्रसार मुझ तक पहुँच रहा था। अंतर्मन में उनके स्नेह को याद कर कारावास में भी दुख कुछ कम हो जाते हैं। उन्हें लिखना नहीं आता, नहीं तो प्रतिदिन मैं उनके लिखे पत्र प्राप्त करता। कवि अपने पिता के विषय में बताता है कि पिताजी उम्र में चाहे बड़े हो गए हों, किंतु मन से वे बूढ़े कभी नहीं हुए। वे पल भर के लिए भी उत्साहहीन नहीं हुए। वे हमेशा कर्मठ और उत्साही रहे हैं। अभी भी उनमें इतनी शक्ति है। कि दौड़-दौड़कर काम करते हैं। अभी भी वे युवाओं की भाँति खिल-खिलाकर हँसने की इच्छा और उत्साह रखते हैं। जीवन के दुखों ने उनको निराश नहीं होने दियाहै। पिताजी इतने बहादुर हैं कि मौत के सामने आने पर भी उसका सामना करने में पीछे नहीं हटेंगे। उनके आगे बढ़ते कदमों को मौत का भय भीनहीं रोक पाया। यदि साक्षात् शेर उनके सम्मुख आ जाए तो वीरतापूर्वक उससे संघर्ष करेंगे, डरकर भागेंगे नहीं बादलों की घोर गरज के समान उनकी आवाज़ बुलंद है। आवाज़ में निडरता और भक्ति की गूँज है। उनकी कार्य करने की फुर्ती इतनी तीव्र है कि तूफान का वेग भी उनके सामने तुच्छ लगने लगता है। वे प्रत्येक कार्य को शीघ्रातिशीघ्र पूरा कर डालते हैं।

घर की याद कविता का विशेष - यहाँ कवि ने कारावास के एकाकी वातावरण में माँ-बाप की मधुर यादों का हृदय स्पर्शी चित्रण किया है। आत्मकथा को गीत शैली में प्रस्तुत किया है। भाषा सरल, सहज एवं भावानुकूल है।

आज गीता पाठ करके,
दंड दो सौ साठ करके,
खूब मुगदर हिला लेकर,
मूठ उनकी मिला लेकर,

जब कि नीचे आए होंगे,
नैन जल से छाए होंगे,
हाय, पानी गिर रहा है,
घर नज़र में तिर रहा है,

चार भाई चार बहिनें,
भुजा भाई प्यार बहिनें,
खेलते या खड़े होंगे,
नजर उनको पड़े होंगे।

पिता जी जिनको बुढ़ापा,
एक क्षण भी नहीं व्यापा,
रो पड़े होंगे बराबर,
पाँचवें का नाम लेकर,

घर की याद कविता का प्रसंग - यहाँ कवि ने कारावास के दौरान सावन के महीने में बरसते पानी को देखकर अपने स्नेहिल पिता का स्मरण करते हुए कहा है कि

घर की याद कविता का व्याख्या - आज लगातार वर्षा की झड़ी लगी हुई है और पिताजी मुझे याद कर रहे होंगे। हमेशा की तरह उन्होंने अपनी दिनचर्या का आरंभ गीता पाठ से किया होगा। उसके बाद दो सौ साठ बार दंड बैठक लगाई होंगी। उसके बाद मुगदर हिलाकर उसकी मूठ मिलाई होगी। व्यायाम करने के बाद जब वे नीचे कमरे में आए होंगे तब मुझे याद करके उनकी आँखों में अपने आप ही आँसू आ गए होंगे। अपने पिता को याद करके कवि इतने भावविह्वल हो गए कि बार-बार बरसते हुए पानी को देखते और घर को याद करके व्याकुल हो जाते। बार-बार घर और पिता का चेहरा उनके सामने घूम रहा था। कवि कहता है कि मेरे चार भाई और चार बहिनें हैं। मेरे भाई संकट के समय और आवश्यकता पड़ने पर मेरी भुजाओं के समान सहायता करते हैं। उनका मुझे बहुत सहारा है। मेरी बहिनें मुझे बहुत स्नेह करती हैं। वर्षा की इस झड़ी के समय वे या तो खेल रहे होंगे या फिर खड़े होकर प्राकृतिक सौंदर्य का आनंद ले रहे होंगे। ऐसे में जब पिताजी की नजर उन पर पड़ी होगी और उनमें मुझे न पाकर उनका मन बहुत बेचैन हुआ होगा। मेरी कमी उन्हें बहुत खली होगी। पिताजी जो मन से कभी बूढ़े नहीं हुए, कभी हताश नहीं हुए, उन्होंने अपने चेहरा पर कभी दुख की एक भी रेखा नहीं आने दी आज उन्हीं की आँखों से पाँचवें का नाम लेकर आँसू बरसने लगे होंगे। जिन पर दुख का कोई प्रभाव नहीं होता था, वे मुझे याद कर लगातार रोते रहे होंगे।

घर की याद कविता का विशेष- कवि ने स्मृति शैली में पिता की याद, उनके गुणों की याद और उनकी दिनचर्या का वर्णन सुंदर ढंग से किया है। कवि को अपने दुख कीअपेक्षा पिता के दुख की अधिक चिंता है। सावन की झड़ी को देखकर संवेदनशील मन की भाव-धारा बहती चली जा रही है।

पाँचवाँ मैं हूँ अभागा,
जिसे सोने पर सुहागा,
पिता जी कहते रहे हैं,
प्यार में बहते रहे हैं,

आज उनके स्वर्ण बेटे,
लगे होंगे उन्हें हेटे,
क्योंकि मैं उनपर सुहागा
बँधा बैठा हूँ अभागा,

और माँ ने कहा होगा,
दुख कितना बहा होगा,
आँख में किसलिए पानी
वहाँ अच्छा है भवानी

वह तुम्हारा मन समझकर,
और अपनापन समझकर,
गया है सो ठीक ही है,
यह तुम्हारी लीक ही है,


घर की याद कविता का प्रसंग - कारावास में बंद कवि की आँखों के सामने घर की मधुर स्मृतियाँ एक-एक करके आ रही हैं और वह बेचैन होता जा रहा है। कवि घर की स्मृतियों का सजीव चित्रण करते हुए कहता है कि-

घर की याद कविता का व्याख्या- पाँचवाँ व्यक्ति मैं हूँ जिसने उनको दुख दिए हैं, उन्हें रुलाया है। मैं अभागा हूँ क्योंकि मेरे कारण ही पिताजी को दुख मिला। पिताजी मुझेसोने पर सुहागा कहा करते थे अर्थात् मुझे चारों भाइयों से सबसे बड़ा भाग्यशाली एवं प्रतिभावान मानते थे। उन्होंने सबसे अधिक प्यार मुझे ही दिया है। लेकिन आज के सुहावने मौसम में उन्होंने मुझे नहीं देखा होगा तो उन्हें अपने अन्य चार बेटे कपूत लगे होंगे। पिताजी ने मेरे अभाव में उनचार बेटों को भी अपना प्यार नहीं दे पाए होंगे। जब पिताजी मेरे विषय में विचार कर भावुक हो उठे होंगे तो माँ ने उनको धैर्य बँधाया होगा। माँ नेउन्हें ढाढ़स देते हुए कहा होगा कि आप आँसू मत बहाइए। हमारा बेटा भवानी तो शुभ कार्य के लिए जेल गया है। इन शब्दों ने पिताजी के दुख को बहुत कम कर दिया होगा। माँ ने यह भी बताया होगा कि मैं उनकी इच्छा को समझकर और उनके ममत्व को समझकर ही देश सेवा की ओर बढ़ा हूँ। बेटे ने पिता की इच्छा को मानकर जेल जाना पसंद किया तो यह उसने ठीक काम ही किया है, उसने पिता की परंपरा को आगे बढ़ाकर अच्छा काम किया है।

घर की याद कविता का विशेष - कवि को अपने दुख की अपेक्षा पिता के दुख की अधिक चिंता है। संवेदनशील मन के द्वारा एक साथ अनेक बातों के सोचने का सुंदर चित्रण किया है। आत्मकथात्मक शैली है। भाषा में प्रवाह गुण उल्लेखनीय है।

पाँव जो पीछे हटाता,
कोख को मेरी लजाता,
इस तरह होओ न कच्चे,
रो पड़ेंगे और बच्चे,

पिता जी ने कहा होगा,
हाय, कितना सहा होगा,
कहाँ, मैं रोता कहाँ हूँ,
धीर मैं खोता, कहाँ हूँ,

हे सजीले हरे सावन,
हे कि मेरे पुण्य पावन,
तुम बरस लो वे न बरसें,
पाँचवें को वे न तरसें,

मैं मजे में हूँ सही है,
घर नहीं हूँ बस यही है,
किंतु यह बस बड़ा बस है,
इसी बस से सब विरस है,


घर की याद कविता का प्रसंग-कवि कारावास में बैठे पिता के विषय में सोचते-सोचते माँ के विचारों का विश्लेषण करने लगते हैं। वे मन में स्नेहिल माता-पिता के उत्तर-प्रत्युत्तर की कल्पना करते हुए कहते हैं कि

घर की याद कविता का व्याख्या - माँ ने कहा होगा कि हमारा बेटा स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय भाग नहीं लेता और जेल जाने से पीछे हटता तो वह मेरे दूध को लज्जित करता, माँ-बाप के नाम को बट्टा लगाता। परंतु जेल जाकर उसने हमारे नाम को रोशन किया है। इस तरह से माँ ने पिताजी को समझाया होगा ताकि वे भावुक होकर रो न पड़ें। यदि वे रोने लगेंगे तो घर के सब प्राणी रोने लगेंगे। माँ ने पिताजी से कहा होगा कि तुम दुखी और व्याकुल मत होओ, मन दुखी हुआ तो सारा घर दुखी हो जाएगा।

पिताजी ने माँ से कहा होगा कि वे रो नहीं रहे हैं। ऐसा करते हुए उन्होंने कई तरह से अपना मन समझाया होगा, पता नहीं मन-ही-मन कितना दुख सहा होगा, दूसरों को दिखाने के लिए ऊपर से शांत बने रहे होंगे। उन्होंने कहा होगा कि मैं बिलकुल भी अधीर नहीं हो रहा हूँ। दुख को सहने की उनमें अपार क्षमता है।

कवि सावन को संबोधित करते हुए कहता है कि हे आनंद प्रदान करने वाले सावन के महीन, तुम मुझे मेरे पुण्य कर्मों से प्राप्त हुए हो। तुम चाहेकितने बरस लो, लेकिन कुछ ऐसा करना कि उन्हें मेरी याद न सताये और वे आँसू न बहाएँ। वे अपने पाँचवें बेटे के लिए बिलकुल न तरसें। उनसे कहना कि मैं यहाँ पर बहुत खुश हूँ। सभी सुविधाएँ उपलब्ध हैं। बस एक यही कमी है कि मैं घर पर नहीं हूँ और कोई दुख नहीं है। किंतु यह कमी सबसे बड़ी कमी है। इसी कमी के कारण जेल में रहना अच्छा नहीं लगता, किसी प्रकार की प्रसन्नता नहीं होती। वहाँ की सभी सुविधाएँ फीकी लगती हैं।

घर की याद कविता का विशेष —यहाँ कवि ने एक मनोवैज्ञानिक सत्य प्रकट किया है कि बड़े लोग बच्चों के सामने अपनी अंतर्वेदना को छिपाने के लिए बहाना बना लेतेहैं। 'यह बस बड़ा बस है' में निहित मार्मिकता उल्लेखनीय है। बरस बरसें में यमक अलंकार है। भाषा सरल, सहज एवं भावाभिव्यक्ति में समर्थ है।

किंतु उनसे यह न कहना,
उन्हें देते धीर रहना,
उन्हें कहना लिख रहा हूँ,
उन्हें कहना पढ़ रहा हूँ,

काम करता हूँ कि कहना,
नाम करता हूँ कि कहना,
चाहते हैं लोग कहना,
मत करो कुछ शोक कहना

और कहना मस्त हूँ मैं,
कातने में व्यस्त हूँ मैं,
वज़न सत्तर सेर मेरा,
और भोजन ढेर मेरा,

कूदता हूँ, खेलता हूँ,
दुख डट कर ठेलता हूँ,
और कहना मस्त हूँ मैं,
यों न कहना अस्त हूँ मैं,

घर की याद कविता का प्रसंग -यहाँ कवि सावन को संदेश देते हुए कहता है कि

घर की याद कविता का व्याख्या - हे सावन! तुम मेरे पिताजी के पास जाकर मेरे दुखों का बखान मत करना। उन्हें यह न कहना कि मैं घर की कमी अनुभव कर रहा हूँ। मुझेयहाँ सब कुछ फीका-फीका लग रहा है। तुम उन्हें धैर्य बँधाना। उन्हें कहना कि मैं कविता-लेखन में लगा रहता हूँ। उनसे कहना कि मैं नियमित रूप पर अपना अध्ययन कार्य कर रहा हूँ। उन्हें यह कहकर तसल्ली देना कि मैं यहाँ बेकार और दुखी नहीं बैठा हूँ। मैं यहाँ सब दुख भुलाकर काम करनेमें लगा रहता हूँ। मैं यहाँ ऐसे काम कर रहा हूँ जिससे मेरा बड़ा नाम होगा। मुझे यश की प्राप्ति होगी। यहाँ के सभी लोग मुझे प्यार करते हैं।इसलिए वे मेरे में दुखी न हों। उनसे कहना कि मैं यहाँ सुख व आनंद से रह रहा हूँ। मेरा सारा समय चरखा कातने में बीत जाता है। यहाँ भी मेरा वज़न सत्तर सेर है साथ ही मैं खाना भी खूब रुचिपूर्वक खाता हूँ । मैं यहाँ खेलता-कूदता हुआ खूब आनंद मना रहा हूँ। दुखों का सामना करने में मैं समर्थ हूँ। मैं दुखों को धक्के मार कर दूर भगा देता हूँ। मैं उनसे डरता नहीं हूँ बल्कि उनक दृढ़ता से सामना करता हूँ। हे सावन! उनसे कहना कि यहाँ पर मैं बहुत खुश हूँ। उन्हें यह मत बताना कि मैं यहाँ दुखी और उदास रहता हूँ।

घर की याद कविता का विशेष —यहाँ कवि ने अपने अंतर्द्वद्व का सजीव चित्रण किया है। वे दुखी होते हुए भी पिताजी को अपने दुख का आभास भी नहीं कराना चाहते हैं। सावन को संदेशवाहक बनाकर कवि ने आंतरिक भावों की अभिव्यक्ति की है। संदेश शैली है। भाषा में लयात्मकता है।

हाय रे, ऐसा न कहना,
है कि जो वैसा न कहना,
कह न देना जागता हूँ,
आदमी से भागता हूँ,

कह न देना मौन हूँ मैं,
खुद न समझैं कौन हूँ मैं,
देखना कुछ बक न देना,
उन्हें कोई शक न देना,

हे सजीले हरे सावन,
हे कि मेरे पुण्य पावन,
तुम बरस लो वे न बरसें,
पाँचवें को वे न तरसें।


घर की याद कविता का प्रसंग -यहाँ कवि ने सावन के बादलों को संदेशवाहक बनाकर उन्हें अपना संदेश देते हुए कहा है कि

घर की याद कविता का व्याख्या - हे सावन ! तुम मेरे दुखी पिता को मेरी वास्तविक मनःस्थिति के विषय में कुछ भी मत बताना। अगर तुम उन्हें सच्चाई बता दोगे तो वे दुखसे पागल हो जाएँगे। उन्हें यह मत बताना कि मैं घर की याद में रात-रात भर जागता रहता हूँ। मैं आदमियों से अलग रहकर अकेला ही समय बितारहा हूँ। मुझे अकेले रहकर घर की याद करना अच्छा लगता है। हे सावन ! पिताजी से यह मत कहना कि मैं यहाँ बहुत चुप रहता हूँ। यह भी मत कहना कि मैं इतना बदल गया हूँ, स्वयं को पहचानना भी मुश्किल हो गया है। उनके आगे तुम कोई उल्टी-पुल्टी बात मत कहना कि जिससे उन्हें किसी प्रकार का कोई संदेह हो जाए। यदि तुम उनको यहाँ की वास्तविकता के विषय में बता दोगे तो वे बहुत दुखी होंगे। हे हरे-भरे सजीले सावन! हे आनंददायी सावन! हे मेरे पवित्र पुण्य कर्मों से प्राप्त सावन ! तुम चाहे कितनी ही बरसात कर लो, लेकिन ऐसी कोई भी बात पिताजी से मत कहना जिससे वे दुखी होकर रोने लगें। पिताजी को ऐसा कुछ न कहना जिससे वे अपने पाँचवें बेटे से मिलने के लिए तरसने लगें।

घर की याद कविता का विशेष - यहाँ कवि ने स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेने वालों का घर छोड़कर जेल में बंद होकर छटपटाने का यथार्थ चित्रण किया है। कवि अपनेपिता को दुखी नहीं करना चाहता है। सावन का मानवीकरण किया गया है। मुहावरों का भी प्रयोग किया है। तत्सम शब्दों के साथ स्थानीय शब्दों का भी प्रयोग किया गया है। छंदमुक्त काव्य है। खड़ी बोली को अपनाया गया है। भाषा सरल, सहज और भावानुकूल है।

घर की याद कविता का प्रश्न उत्तर 

1- पानी के रात भर गिरने और प्राण-मन के घिरने में परस्पर क्या संबंध है?

उत्तर- कवि भवानी प्रसाद मित्र कारावास में हैं। सावन के महीने में बरसात होने के कारण उसे अपने घर की याद सताने लगती है। पूरी रात बरसातहोने के कारण कवि को अपने घर-परिवार की एक-एक बात को याद कर बहुत दुख होता है। कहने का अभिप्राय यह है कि एक तरह बादलों से जल बरसता है और दूसरी तरफ़ बरसात को देखकर कवि को अपने परिवार के लोगों की याद आने लगती है।

2- मायके आई बहन के लिए कवि ने घर को परिताप का घर क्यों कहा है?

उत्तर- घर का एक भी सदस्य घर से दूर अकेला यंत्रणाओं को झेल रहा होता है, तो परिवार के सभी सदस्य दुखी हो जाते हैं। वहाँ का वातावरण उदासी एवं करुणा से भर जाता है। यही कारण है कि कवि के कारावास में जाने पर परिवार के सभी सदस्य दुखी हैं और कवि की बहन उसी दुखभरे घर में आई है।

3- पिता के व्यक्तित्व की किन विशेषताओं को उकेरा गया है?

उत्तर- कवि ने अपने पिता की विशेषताएँ बताते हुए कहा है कि पिता की आयु ज्यादा होने पर भी उन पर बुढ़ापे के लक्षण दिखाई नहीं देते। अब भीवे युवाओं की भाँति दौड़ने और ज़ोर से हँसने के लिए तैयार दिखाई देते हैं। वे इतने निडर हैं कि उन्हें मौत का भी भय नहीं हैं। साहसी इतने हैं की शेर का मुकाबला कर सकते हैं। उनकी वाणी में जोश और आवेश है। स्फूर्ति इतनी अधिक है कि तूफान भी शरमा जाता है।

4- निम्नलिखित पंक्तियों में बस शब्द के प्रयोग की विशेषता बताइए।


मैं मजे में हूँ सही है

घर नहीं हूँ बस यही है
किंतु यह बस बड़ा बस है,
इसी बस से बस विरस है '

उत्तर- पहले 'बस' शब्द का प्रयोग कवि ने स्वयं को घर पर अनुपस्थिति के विषय में किया है। दूसरा 'बस' विवशता के लिए प्रयुक्त हुआ है। यहाँ यमक और श्लेष अलंकार है। 'बस' शब्द का बड़ा चमत्कारपूर्ण प्रयोग किया गया है।

5- कविता की अंतिम 12 पंक्तियों को पढ़कर कल्पना कीजिए कि कवि अपनी किस स्थिति व मनःस्थिति को अपने परिजनों से छिपाना चाहता है?

उत्तर- कवि सावन के माध्यम से संदेश भेजकर अपनी मनःस्थिति को अपने परिजनों से छिपाना चाहता है। वह सावन से कहता है कि कारावास की वास्तविक स्थिति का घर जाकर वर्णन मत करना। उन्हें यह मत बताना कि मैं सारी सारी रात जागता रहता हूँ। यहाँ के प्रत्येक व्यक्ति अलगरहता हूँ। यह भी मत कह देना कि मैं एकदम चुप रहता हूँ, किसी से बात तक नहीं करता हूँ। मेरी मानसिक स्थिति इतनी बिगड़ चुकी है कि मैंअपने आपको भी नहीं पहचान पा रहा हूँ। अंत में कहता है कि कोई ऐसी बात मत बोल देना जिनसे परिवार के सदस्यों को कोई संदेह हो जाए।