कवयित्री किस रस्सी से कौन सी नाव खींचना चाहती हैं? - kavayitree kis rassee se kaun see naav kheenchana chaahatee hain?

उत्तर: कवयित्री के प्रयास ऐसे ही हैं जैसे कोई मिट्टी के कच्चे सकोरे में पानी भरने की कोशिश कर रहा हो। ऐसे में पानी जगह से जगह से रिसने लगता है और कसोरा भर नहीं पाता है। कवयित्री को लगता है कि भक्त के प्रयास निरर्थक साबित हो रहे हैं।

Question 3: कवयित्री को ‘घर जाने की चाह’ से क्या तात्पर्य है?

उत्तर: यहाँ पर भगवान से मिलने की इच्छा को घर जाने की चाह बताया गया है।

Question 4: भाव स्पष्ट कीजिए:

  1. जेब टटोली कौड़ी न पाई।

    उत्तर: आखिर में जब भक्त की नाव को भगवान पार लगा देते हैं तो वह कृतध्न होकर उन्हें कुछ देना चाहता है। लेकिन भक्त की श्रद्धा की पराकाष्ठा ऐसी है कि उसे लगता है कि उसके पास देने के लिए कुछ भी नहीं है। जो कुछ उसने जीवन में पाया वो सब तो भगवान का दिया हुआ है। वह तो खाली हाथ इस संसार में आया था और खाली हाथ ही वापस गया।

  2. खा-खाकर कुछ पाएगा नहीं, न खाकर बनेगा अहंकारी।

    उत्तर: यदि कोई आडम्बर से भरी हुई पूजा करता है तो उससे कुछ नहीं मिलता है। पूजा नहीं करने वाला अपने अहंकार में डूब जाता है।

Question 5: बंद द्वार की साँकल खोलने के लिए ललद्यद ने क्या उपाय सुझाया है?

उत्तर: बंद द्वार की साँकल खोलने के लिए कवि ने इंद्रियों पर विजय प्राप्त करने का सुझाव दिया है। इसका मतलब है कि यदि आप सच्चे मायने में भगवान को पाना चाहते हैं तो आपको लोभ और लालच से मोहभंग करना होगा।

Question 6: ईश्वर प्राप्ति के लिए बहुत से साधक हठयोग जैसी कठिन साधना भी करते हैं, लेकिन उससे भी लक्ष्य प्राप्ति नहीं होती। यह भाव किन पंक्तियों में व्यक्त हुआ है?

उत्तर: आई सीधी राह से, गई न सीधी राह्।
सुषुम सेतु पर खड़ी थी, बीत गया दिन आह।

Question 7: ‘ज्ञानी’ से कवयित्री का क्या अभिप्राय है?

उत्तर: वैसा मनुष्य ज्ञानी होता है जिसे अपने आप की सही पहचान होती है। कवयित्री का मानना है कि जो मनुष्य मंदिर-मस्जिद या विभिन्न देवी देवताओं में उलझा रहता है उसे ज्ञान नहीं मिल पाता है। जिसने आत्मज्ञान प्राप्त कर लिया वही सच्चा ज्ञानी है।

Question 8: हमारे संतों, भक्तों और महापुरुषों ने बार बार चेताया है कि मनुष्यों में परस्पर किसी भी प्रकार का कोई भेदभाव नहीं होता, लेकिन आज भी हमारे समाज में भेदभाव दिखाई देता है:

  1. आपकी दृष्टि में इस कारण देश और समाज को क्या हानि हो रही है?

    उत्तर: आज का समाज धर्म और जाति के नाम पर बँटा हुआ है। कई जगह सांप्रदायिक झगड़े होते हैं। कई बार एक जाति के लोग किसी अन्य जाति के लोगों के खिलाफ हथियार उठा लेते हैं। इससे पारस्परिक सौहार्द्र मिट जाता है। एक आदमी का दूसरे आदमी पर से विश्वास उठ जाता है।

  2. आपसी भेदभाव को मिटाने के लिए अपने सुझाव दीजिए।

    उत्तर: हमें धर्म या समुदाय की सीमाओं से परे होकर एक दूसरे के साथ भाईचारा बढ़ाने पर जोर देना चाहिए। हमें दूसरे के धर्म की इज्जत करनी चाहिए। आपसी सहयोग से ही हर तरफ खुशहाली और तरक्की आएगी।

    उत्तर: कवयित्री भवसागर पार होने के प्रति इसलिए चिंतित है क्योंकि वह नश्वर शरीर के सहारे भवसागर पार करने का निरंतर प्रयास कर रही है परंतु जीवन का अंतिम समय आ जाने पर भी उसे अच्छी प्रार्थना स्वीकार होती प्रतीत नहीं हो रही है।

    प्रश्न: कवयित्री ने अपने व्यर्थ हो रहे प्रयासों की तुलना किससे की है और क्यों?

    उत्तर: कवयित्री ने अपने व्यर्थ हो रहे प्रयासों की तुलना कच्चे सकोरों से की है। मिट्टी के इन कच्चे सकोरों में जल रखने से जल रिसकर बह जाता है और सकोरा खाली रहता है उसी प्रकार कवयित्री के प्रयास निष्फल हो रहे हैं।

    प्रश्न: कवयित्री के मन में कहाँ जाने की चाह है? उसकी दशा कैसी हो रही है?

    उत्तर: कवयित्री के मन में परमात्मा की शरण में जाने की चाह है। यह चाह पूरी न हो पाने के कारण उसकी दशा चिंताकुल है।

    प्रश्न: बंद द्वार की साँकल खोलने के लिए कवयित्री क्या आवश्यक मानती है?

    उत्तर: बंद द्वार की साँकल खोलने के लिए कवयित्री का मानना है कि मनुष्य को भोग लिप्ता से आवश्यक दूरी बनाकर भोग और त्याग के बीच का मध्यम मार्ग अपनाना चाहिए। उसे संयम रखते हुए भोग और त्याग में समान भाव रखना चाहिए।

    प्रश्न: ‘न खाकर बनेगा अहंकारी’ – कवयित्री ने ऐसा क्यों कहा है?

    उत्तर: ‘न खाकर बनेगा अहंकारी’ – कवयित्री ने ऐसा इसलिए कहा है क्योंकि भोग से दूरी बनाते-बनाते लोग इतनी दूरी बना लेते हैं कि वे वैराग्य धारण कर लेते हैं। उन्हें अपनी इंद्रियों को वश में करने के कारण घमंड हो जाता है। वे स्वयं को सबसे बड़ा तपस्वी मानने लगते हैं।

    प्रश्न: कवयित्री किसे साहब मानती है? वह साहब को पहचानने का क्या उपाय बताती है?

    उत्तर: कवयित्री परमात्मा को साहब मानती है, जो भवसागर से पार करने में समर्थ हैं। वह साहब को पहचानने का यह उपाय बताती है कि मनुष्य को आत्मज्ञानी होना चाहिए। वह अपने विषय में जानकर ही साहब को पहचान सकता है।

    प्रश्न: ‘रस्सी’ यहाँ किसके लिए प्रयुक्त हुआ है और वह कैसी है?

    उत्तर: यहाँ रस्सी से कवयित्री का तात्पर्य स्वयं के इस नाशवान शरीर से है। उनके अनुसार यह शरीर सदा साथ नहीं रहता। यह कच्चे धागे की भाँति है जो कभी भी साथ छोड़ देता है और इसी कच्चे धागे से वह जीवन नैया पार करने की कोशिश कर रही है।

    प्रश्न: कवयित्री द्वारा मुक्ति के लिए किए जाने वाले प्रयास व्यर्थ क्यों हो रहे हैं?

    उत्तर: कवयित्री के कच्चेपन के कारण उसके मुक्ति के सारे प्रयास विफल हो रहे हैं अर्थात् उसमें अभी पूर्ण रुप से प्रौढ़ता नहीं आई है जिसकी वजह से उसके प्रभु से मिलने के सारे प्रयास व्यर्थ हैं। वह कच्ची मिट्टी के उस बर्तन की तरह है जिसमें रखा जल टपकता रहता है और यही दर्द उसके हृदय में दु:ख का संचार करता रहा है, उसके प्रभु से उसे मिलने नहीं दे रहा।

    प्रश्न: कवयित्री का ‘घर जाने की चाह’ से क्या तात्पर्य है?

    उत्तर: कवयित्री का ‘घर जाने की चाह’ से तात्पर्य प्रभु से मिलन है। उसके अनुसार जहाँ प्रभु हैं वहीं उसका वास्तविक घर है।

    प्रश्न: भाव स्पष्ट कीजिए:

    1. जेब टटोली कौड़ी न पाई।
    2. खा-खाकर कुछ पाएगा नहीं, न खाकर बनेगा अहंकारी।

    उत्तर:

    1. यहाँ भाव है कि मैंने ये जीवन उस प्रभु की कृपा से पाया था। इसलिए मैंने उसके पास पहुँचने के लिए कठिन साधना चुनी परन्तु इस चुनी हुई राह से उसे ईश्वर नहीं मिला। मैंने योग का सहारा लिया ब्रह्मरंध करते हुए मैंने पूरा जीवन बिता दिया परन्तु सब व्यर्थ ही चला गया और जब स्वयं को टटोलकर देखा तो मेरे पास कुछ बचा ही नहीं था। अर्थात् काफी समय बर्बाद हो गया और रही तो खाली जेब।
    2. भाव यह है कि भूखे रहकर तू ईश्वर साधना नहीं कर सकता अर्थात् व्रत पूजा करके भगवान नहीं पाए जा सकते अपितु हम अहंकार के वश में वशीभूत होकर राह भटक जाते हैं। (कि हमने इतने व्रत रखे आदि)।

    प्रश्न: बंद द्वार की साँकल खोलने के लिए ललद्यद ने क्या उपाय सुझाया है?

    उत्तर: कवयित्री के अनुसार ईश्वर को अपने अन्त:करण में खोजना चाहिए। जिस दिन मनुष्य के हृदय में ईश्वर भक्ति जागृत हो गई अज्ञानता के सारे अंधकार स्वयं ही समाप्त हो जाएँगे। जो दिमाग इन सांसारिक भोगों को भोगने का आदी हो गया है और इसी कारण उसने ईश्वर से खुद को विमुख कर लिया है, प्रभु को अपने हृदय में पाकर स्वत: ही ये साँकल (जंजीरे) खुल जाएँगी और प्रभु के लिए द्वार के सारे रास्ते मिल जाएँगे। इसलिए सच्चे मन से प्रभु की साधना करो, अपने अन्त:करण व बाह्य इन्द्रियों पर विजय प्राप्त कर हृदय में प्रभु का जाप करो, सुख व दुख को समान भाव से भोगों। यही उपाय कवियत्री ने सुझाए हैं।

    प्रश्न: ईश्वर प्राप्ति के लिए बहुत से साधक हठयोग जैसी कठिन साधना भी करते हैं, लेकिन उससे भी लक्ष्य प्राप्ति नहीं होती। यह भाव किन पंक्तियों में व्यक्त हुआ है?

    उत्तर: यह भाव निम्न पंक्तियों में से लिया गया है:

    आई सीधी राह से, गई न सीधी राह।

    सुषम-सेतु पर खड़ी थी, बीत गया दिन आह!

    जेब टटोली, कौड़ी न पाई।

    माझी को दूँ, क्या उतराई?

    लेखिका के अनुसार ईश्वर को पाने के लिए लोग हठ साधना करते हैं पर परिणाम कुछ नहीं निकलता। इसके विपरीत होता यह है कि हम अपना बहुमूल्य वक्त व्यर्थ कर देते हैं और अपने लक्ष्य को भुला देते हैं। जब स्वयं को देखते हैं तो हम पिछड़ जाते हैं। हम तो ईश्वर को सहज भक्ति द्वारा भी प्राप्त कर सकते हैं। उसके लिए कठिन भक्ति की कोई आवश्यकता नहीं है।

    प्रश्न: ‘ज्ञानी’ से कवयित्री का क्या अभिप्राय है?

    उत्तर: यहाँ कवयित्री ने ज्ञानी से अभिप्राय उस ज्ञान को लिया है जो आत्मा व परमात्मा के सम्बन्ध को जान सके ना कि उस ज्ञान से जो हम शिक्षा द्वारा अर्जित करते हैं। कवयित्री के अनुसार भगवान कण-कण में व्याप्त हैं पर हम उसको धर्मों में विभाजित कर मंदिरों व मस्जिदों में ढूँढते हैं। जो अपने अन्त:करण में बसे ईश्वर के स्वरुप को जान सके वही ज्ञानी कहलाता है और वहीं उस परमात्मा को प्राप्त करता है। तात्पर्य यह है कि ईश्वर को अपने ही हृदय में ढूँढना चाहिए और जो उसे ढूँढ लेते हैं वही सच्चे ज्ञानी हैं।

    प्रश्न: ‘जेब टटोली कौड़ी न पाई’ के माध्यम से कवयित्री ने क्या कहना चाहा है? इससे मनुष्य को क्या शिक्षा मिलती है?

    उत्तर: ‘जेब टटोली कौड़ी न पाई’ के माध्यम से कवयित्री यह कहना चाहती है कि हठयोग, आडंबर, भक्ति का दिखावा आदि के माध्यम से प्रभु को प्राप्त करने का प्रयास असफल ही होता है। इस तरह का प्रयास भले ही आजीवन किया जाए पर उसके हाथ भक्ति के नाम कुछ नहीं लगता है। भवसागर को पार करने के लिए मनुष्य जब अपनी जेब टटोलता है तो वह खाली मिलती है। इससे मनुष्य को यह शिक्षा मिलती है कि भक्ति का दिखावा एवं आडंबर नहीं करना चाहिए।

    प्रश्न: ‘वाख’ पाठ के आधार पर बताइए कि परमात्मा को पाने के रास्ते में कौन-कौन सी बाधाएँ आती हैं?

    उत्तर: परमात्मा को पाने के रास्ते में आने वाली निम्नलिखित बाधाएँ पाठ में बताई गई हैं:

    1. क्षणभंगुर मानव शरीर और नश्वर साँसों के सहारे मनुष्य परमात्मा को पाना चाहता है।
    2. परमात्मा को पाने के प्रति मन का शंकाग्रस्त रहना।
    3. अत्यधिक भोग में लिप्त रहना या भोग से पूरी तरह दूर होकर वैरागी बन जाना।
    4. मन में अभिमान आ जाना।
    5. सहज साधना का मार्ग त्यागकर हठयोग आदि का सहारा लेना।
    6. ईश्वर को सर्वव्यापक न मानना।
    7. मत-मतांतरों के चक्कर में उलझे रहना।

    इन बाधाओं के कारण प्रभु-प्राप्ति होना कठिन हो जाता है।

    Lalleshwari (1320–1392), locally known mostly as Lal Ded, was a Kashmiri mystic of the Kashmir Shaivism school of philosophy in the Indian subcontinent. She was the creator of the style of mystic poetry called vatsun or Vakhs, literally “speech” (Voice). Known as Lal Vakhs, her verses are the earliest compositions in the Kashmiri language and are an important part in the history of modern Kashmiri literature. She inspired and interacted with many Sufis of Kashmir.

    She is also known by various other names, including Lal Ded, Mother Lalla, Lalla Aarifa, Lal Diddi, Laleshwari, Lalla Yogishwari and Lalishri.

    कवयित्री किस रस्सी से कौन सी नाव खींचना चाहती है?

    1. कवयित्री ललद्यद किस रस्सी से कौन-सी नाव खींचना चाहती है? उत्तर- वह जीवन की कच्चे धागे रूपी रस्सी से प्रभु भक्ति की नाव खींचना चाहती है? 2.

    कवयित्री किससे क्या खींच रही है?

    कवयित्री उसे कैसे खींच रही है? उत्तर: नाव इस नश्वर शरीर का प्रतीक है। कवयित्री उसे साँसों की डोर रूपी रस्सी के सहारे खींच रही है।

    रस्सी कच्चे धागे की खींच रही में नाव में कौन सा अलंकार है?

    Answer: ' रस्सी कच्चे धागे की खींच रही मैं नाव ' में ' रूपक अलंकार ' है ।

    कच्चे धागे की रस्सी तथा नाव से क्या तात्पर्य है?

    नाव का मतलब है जीवन की नैया। इस नाव को हम कच्चे धागे की रस्सी से खींच रहे होते है। कच्चे धागे की रस्सी बहुत कमजोर होती है और हल्के दबाव से ही टूट जाती है। हालाँकि हर कोई अपनी पूरी सामर्थ्य से अपनी जीवन नैया को खींचता है।