RBSE Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 10 वाख Show
वाख Summary in Hindiकवि-परिचय – ललद्यद कश्मीरी भाषा की लोकप्रिय कवयित्री हैं। उनका जन्म सन् 1320 के लगभग कश्मीर स्थित पाम्पोर के सिमपुरा गाँव में हुआ था। इनका निधन सन् 1391 के आसपास माना जाता है। इनके जीवन के बारे में प्रामाणिक जानकारी नहीं मिलती। इन्हें लल्लेश्वरी, लला, ललयोगेश्वरी, ललारिका आदि नामों से भी जाना जाता है। इनकी काव्य-शैली को ‘वाख’ कहते हैं। इनका कोई स्वतंत्र ग्रन्थ नहीं है। इनके ‘वाख’ सैकड़ों वर्षों से मौखिक रूप में पीढ़ी-दर-पीढी चले आ रहे हैं। इन्हें भक्तिकाल के कवियों में गिना जाता है। पाठ-परिचय – प्रस्तुत पाठ में ललद्यद के चार वाखों का हिन्दी-अनुवाद पद्यात्मक रूप में दिया गया है। इन वाखों में ईश्वर-प्राप्ति के लिए किये गये प्रयासों की व्यर्थता, बाह्याडम्बरों का विरोध, माया-मोह से मुक्ति का सन्देश के महत्त्व का निरूपण किया गया है। साथ ही सामाजिक जीवन में भेद-भाव का विरोध और आत्मज्ञान का महत्त्व भी इनमें दर्शाया गया है। इन वाखों का अनुवाद मीरा कान्त द्वारा किया गया है। भावार्थ एवं अर्थग्रहण सम्बन्धी प्रश्न वाख 1. रस्सी कच्चे धागे की, खींच रही मैं नाव। कठिन-शब्दार्थ :
भावार्थ : कवयित्री ललद्यद कहती है कि यह जीवन कच्चे धागे की डोर के समान नाशवान है जिसके सहारे मैं प्रभु भक्ति की नाव को खे रही हूँ। न जाने ईश्वर मेरी पुकार या प्रार्थना कब सुनेगा और कब इस संसार रूपी सागर से पार करा देगा अर्थात् मुक्ति दे सकेगा। मेरे सारे प्रयास व्यर्थ हो रहे हैं, जैसे मिट्टी के कच्चे सकोरे से पानी टपकता रहता है अर्थात् उसमें से पानी न टपके-रुका रहे ऐसा प्रयास करना व्यर्थ रहता है। कवयित्री कहती है कि उसके मन में रह-रहकर एक तड़प या दर्द उठता रहता है और इस नश्वर संसार को छोड़कर ईश्वर के पास जाने की इच्छा हो रही है। प्रश्न 1. ‘खींच रही मैं नाव’-इसमें ‘नाव’ से
क्या आशय है?
2. खा-खाकर कुछ पाएगा नहीं, कठिन-शब्दार्थ :
भावार्थ : कवयित्री ललद्यद कहती है कि हे मनुष्य ! इन सांसारिक विषय- वासनाओं में लीन मत हो, इन भोगों से तुझे कुछ भी मिलने वाला नहीं है। लेकिन भोगों को पूरी तरह त्यागो भी नहीं। इससे मन में अहंकार का भाव उत्पन्न होगा। इसलिए तू भोग और त्याग के मध्य उचित संतुलन रखते हुए जी। अर्थात् इंद्रियों पर उचित संयम रख कर जी। इसी संशय की मनोदशा में प्रभु प्राप्ति के बन्द द्वार खुल जायेंगे और परमात्मा का साक्षात्कार हो सकेगा। प्रश्न 1. ‘खा-खाकर कुछ.पाएगा नहीं’ से क्या अभिप्राय है?
3. आई सीधी राह से, गई न सीधी राह। कठिन-शब्दार्थ :
भावार्थ : कवयित्री ललद्यद कहती है कि वह इस संसार में परमात्मा की प्राप्ति के लिए सीधी राह से आयी, परन्तु वह जीवन में उस सीधी राह पर नहीं चल पायी। उसने हठयोग का सहारा लेकर गलत राह का चयन कर लिया और वह जीवनभर सुषुम्ना नाड़ी को साधने का प्रयास करती रही। कुंडलिनी जागरण के प्रयास में लगी रही। इसी में सारा जीवन बीत गया। जीवन-यात्रा के अन्त में जब उसने अपनी जेब टटोली, तो उसे कुछ भी नहीं मिला। अब उसे चिन्ता हो रही है कि संसार रूपी विशाल नदी को पार कराने वाले ईश्वर रूपी माझी को अब वह उतराई कहाँ से दे पायेगी? अर्थात् अब उसके पास देने के लिए कुछ नहीं बचा है, क्योंकि उसने ईश्वर-भक्ति की ओर कोई ध्यान नहीं दिया। प्रश्न 1. कवयित्री ने अपना दिन कैसे बिता दिया?
4. थल-थल में बसता है शिव ही, कठिन-शब्दार्थ :
भावार्थ : ईश्वर की सर्वव्यापकता बतलाती हुई कवयित्री कहती है कि ईश्वर थल-थल अर्थात् हर जगह रहता है, ईश्वर सर्वव्यापक है। इसलिए हमें धार्मिक एवं जातीय संकीर्णताओं से ऊपर उठते हुए हिन्दू एवं मुसलमान में कोई भेद नहीं करना चाहिए। यदि हम स्वयं को सच्चा ज्ञानी समझते हैं, तो पहले हमें स्वयं को पहचानना चाहिए। जब हम स्वयं को जान जायेंगे तो अपने भीतर रहने वाले अर्थात् आत्मा में रहने वाले ईश्वर को भी आसानी से पहचान लेंगे। प्रश्न 1. कवयित्री ने शिव का निवास कहाँ बताया है?
RBSE Class 9 Hindi वाख Textbook Questions and Answersप्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. (ख) खा-खाकर कुछ पाएगा नहीं, प्रश्न 5. प्रश्न 6. प्रश्न 7. रचना और अभिव्यक्ति – प्रश्न 8. (ख) आपसी भेदभाव मिटाने का सबसे अच्छा उपाय यह है कि हमें उन बातों की चर्चा नहीं करनी चाहिए जिससे आपसी भेदभाव बढे। हमें आपसी प्रेम, सौहार्द्र और एकता पर बल देना चाहिए। जाति समाप्त की जानी चाहिए। सभी सम्प्रदायों और धर्मों को बिना किसी भेद-भावों के दूसरे के त्योहारों में मिलकर भाग लेना चाहिए। संक्षेप में इन उपायों से आपसी भेदभाव दूर हो सकता है। पाठेतर सक्रियता – भक्तिकाल में ललद्यद के अतिरिक्त
तमिलनाडु की आंदाल, कर्नाटक की अक्क महादेवी और राजस्थान की मीरा जैसी भक्त कवयित्रियों के बारे में जानकारी प्राप्त कीजिए एवं उस समय की सामाजिक परिस्थितियों के बारे में कक्षा में चर्चा कीजिए। ललद्यद कश्मीरी कवयित्री हैं, कश्मीर पर एक अनुच्छेद लिखिए। कश्मीर का जन-जीवन यद्यपि विषमतापूर्ण रहा है, तथापि यहाँ के लोग बड़े हँसमुख, मिलनसार, अतिथि सेवा करने वाले तथा सुन्दर हैं। यहाँ की संस्कृति अपनी अनेक विशेषताओं के कारण अनुपम मानी जाती है। यहाँ पर हिन्दू-मुसलमान एकता के अनेक पवित्र स्थल हैं। भले ही कुछ वर्षों से भ्रष्ट राजनीति के कारण यहाँ पर रक्तपात का दौर रहा, अशान्त वातावरण रहा, परन्तु यहाँ के निवासियों में मानवता का लोप नहीं हुआ है। आज भी सभी दृष्टियों से कश्मीर भारत का सिरमौर प्रदेश है। RBSE Class 9 Hindi वाख Important Questions and Answersप्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. बोधात्मक प्रश्न – प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. प्रश्न 7. प्रश्न 8. प्रश्न 9. प्रश्न 10. प्रश्न 11. प्रश्न 12. प्रश्न 13. प्रश्न 14.
प्रश्न 15.
प्रश्न 16. कवयित्री के जी में रह रह कर क्या उठती है?जी में उठती रह-रह हूक, घर जाने की चाह है घेरे।। मेरे । थल-थल में बसता है शिव ही, भेद न कर क्या हिंदू-मुसलमां । ज्ञानी है तो स्वयं को जान, वही है साहिब से पहचान ।।
कवयित्री के मन में बार बार हूक क्यों उठ रही है?कवयित्री के मन में रह रह हूक इसलिए उठ रही है क्योंकि उनके मन में घर जाने की चाह है अर्थात् परमात्मा से मिलने की इच्छा है किंतु वह पूरी नहीं हो रही है।
कवयित्री ने अपने जीवन में क्या अनुभव किया है?उत्तर:- कवयित्री इस संसारिकता तथा मोह के बंधनों से मुक्त नहीं हो पा रही है ऐसे में वह प्रभु भक्ति सच्चे मन से नहीं कर पा रहीं है। अत: उसे लगता है उसके द्वारा की जा रही सारी साधना व्यर्थ हुई जा रही है इसलिए उसके द्वारा मुक्ति के प्रयास भी विफल होते जा रहे हैं।
कवयित्री ललद्यद ने मनुष्य के जीवन की तुलना किससे की है और क्यों?प्रश्न: कवयित्री ने अपने व्यर्थ हो रहे प्रयासों की तुलना किससे की है और क्यों? उत्तर: कवयित्री ने अपने व्यर्थ हो रहे प्रयासों की तुलना कच्चे सकोरों से की है। मिट्टी के इन कच्चे सकोरों में जल रखने से जल रिसकर बह जाता है और सकोरा खाली रहता है उसी प्रकार कवयित्री के प्रयास निष्फल हो रहे हैं।
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