लीची के लिए कौन सा शहर प्रसिद्ध है? - leechee ke lie kaun sa shahar prasiddh hai?

डेटा इंटेलीजेंस डेस्क. बिहार के मुजफ्फरपुर में चमकी बुखार से मौतों के बाद से लीची विवादों में है। मुजफ्फरपुर ब्रांड लीची और चमकी के कनेक्शन को लेकर न कोई प्रमाण है और न कोई प्रामाणिक शोध, लेकिन लीची खाने वालों के मन में एक वहम और डर बैठ गया है। दिलचस्प बात यह है कि अभी तक जिस बीमारी की जड़ तक विशेषज्ञ नहीं पहुंच सके, उसके लिए बिना प्रमाण लीची को जिम्मेदार ठहरा दिया गया। अज्ञात बीमारी से 170 से ज्यादातर छोटे बच्चों की मौत हुई और उनमें से बहुतों ने तो लीची का स्वाद तक नहीं चखा। पिछले दिनों भाजपा सांसद राजीव प्रताप रूडी ने लोकसभा में चमकी बुखार का मामला उठाया। रूड़ी ने कहा था कि, हो सकता है कि यह चीन की साजिश हो क्योंकि भारत के बाद सबसे ज्यादा लीची वहीं होती है।

सिर्फ मुजफ्फरपुर में ही ऐसा क्यों हुआ?

भास्कर मोबाइल ऐप के अक्षय बाजपेयी ने लीची और चमकी के कनेक्शन के लिए मुजफ्फरपुर स्थित राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केन्द्र के निदेशक डॉ विशाल नाथ से विस्तार से इस पूरे मामले को समझा। उन्होंने कहा कि, \' ये विडम्बना है कि जिस लीची का हर गर्मी में देश के हर कोने में इंतजार रहता है, उसे सिर्फ कहे-सुने दावों के कारण आरोपी बना दिया गया है।\'  डॉक्टर्स किसी एक नतीजे पर नहीं पहुंच पा रहे। चमकी बुखार का सब अलग-अलग कारण बता रहे हैं। देशभर में लीची का जितना उत्पादन होता है, उसका सिर्फ 10% मुजफ्फरपुर में होता है।अगर लीची से बीमारी हो रही है तो बाकी जगह भी ऐसे मामले सामने क्यों नहीं आ रहे? सिर्फ मुजफ्फरपुर में ही ऐसा क्यों हो रहा है?

रिसर्च के नाम पर लीची बदनाम हो गई 
लीची और बीमारी का कथित कनेक्शन लंदन के एक मेडिकल जर्नल \'द लैन्सेट\' में प्रकाशित शोध के बाद वायरल हुआ। कहा गया कि लीची में प्राकृतिक रूप से पाए जाने वाले पदार्थ हाइपोग्लाइसीन-ए और मिथाइल इनसाइक्लोप्रोपीलग्लाईसीन (दोनों रसायन पूरे पके हुए लीची के फल में कम मात्रा में पाए जाते हैं) शरीर में फैटी एसिड मेटाबॉलिज्म में रुकावट पैदा करते हैं। ऐसे में खाली पेट लीची खाने से शरीर में ब्लड शुगर एकाएक गिर जाती है। खासकर तब जब रात का खाना न खाने की वजह से ब्लड शुगर का लेवल पहले से कम हो और सुबह खाली पेट लीची खा ली जाए, तो चमकी का खतरा बढ़ जाता है।  

एसबेस्टस की छत भी कटघरे में

एक नई रिपोर्ट में प्राेग्रेसिव मेडिकाे एंड साइंटिफिक फाेरम के अध्ययन के मुताबिक, दिल्ली एम्स और पटना के सात डाॅक्टराें की टीम ने मुजफ्फरपुर जिले के कई गांवाें का भ्रमण कर माैतों की एक वजह एसबेस्टस की छत काे भी बताया है। डॉक्टरों ने कुपोषण और जागरूकता की कमी के अलावा घरों में एसबेस्टस (सीमेंट से बनी) की छत को भी एक बड़ा कारण बताया है। एसबेस्टस की छत के नीचे रहने वाले अधिकतर बच्चे उमस भरी गर्मी की चपेट में आने के बाद चमकी से पीड़ित हुए। 

लीची को निर्दोष साबित करे सरकार
बिहार लीची उत्पादक संघ के अध्यक्ष बच्चा प्रसाद सिंह कहते हैं कि पिछले साल भारत सरकार ने बिहार की शाही लीची को जीआई टैग के साथ का पेटेंट दिया था, पर इस साल कुछ लोगों ने बुखार के नाम पर लीची को बदनाम किया है। सरकार को जल्द से जल्द चमकी बुखार के असली कारणों को पता लगाकर लीची को निर्दोष साबित करने के प्रयास करने चाहिए, अन्यथा हजार करोड़ से ज्यादा का लीची कारोबार खत्म हो जाएगा। सरकार को लोगों के मन से बिहार की लीची का डर दूर करना बहुत जरूरी नहीं तो अगले साल भी नुकसान झेलना पड़ेगा। 

अच्छा हुआ देर से उड़ी अफवाह

लीची के बारे में कथित दुष्प्रचार के कारण इसकी बिक्री और निर्यात में तेजी से गिरावट आई। अब मुजफ्फरपुर की शाही लीची पेड़ों पर लटकी सूख रही है या गोदामों में पड़ी सड़ रही है। लीची के बड़े व्यवसायी और \'लीचीका इंटरनेशनल प्राइवेट कंपनी\' के केपी ठाकुर ने बताया कि इस साल बुखार के डर ने थोक कारोबारियों को मांग में कटौती के लिए मजबूर किया है। दिल्ली में लीची के होल सेल सप्लायर आदर्श चंद्रा कहते हैं कि लीची की बदनामी के कारण मार्केट पर असर जरूर पड़ा है लेकिन मुजफ्फरपुर का माल अफवाहों से पहले उठ चुका था तो इस साल कम नुकसान हुआ। 

1) लीची की कहानी: चीन से मुजफ्फरपुर तक

माना जाता है कि लीची सबसे पहले दक्षिण चीन के गुआंगडॉन्ग और फुजियान प्रांत में 1059 में जंगली पौधे से बागों तक पहुंची। चीन में लीची को प्रेम का प्रतीक भी माना जाता है। किंवदंती है कि लीची चीन के तांग वंश के राजा जुआंग जोंग का पसंदीदा फल था, लेकिन राजा का राज्य उत्तर की ओर था और इस फल की पैदावार सिर्फ दक्षिण में होती थी इसलिए इसे तेज गति से दौड़ने वाले घोड़ों पर लादकर महल तक पहुंचाया जाता था।

करीब 700 साल तक बाकी दुनिया में लीची को लेकर कोई जानकारी नहीं थी। 18वीं सदी की शुरुआत में फ्रांसीसी यात्री पियरे सोन्नरे ने दक्षिणी चीन की अपनी यात्रा के दौरान इस फल को चखा और इसके बाग देखे। उसके बाद उन्होंने अपने पत्रों और रिपोर्ट में पश्चिमी दुनिया को लीची से रूबरू कराया। 1764 में इसे रियूनियन द्वीप में जोसेफ फ्रैंकोइस द पाल्मा द्वारा लाया गया और इसके बाद यह मैडागास्कर और भारत, दक्षिण-पूर्व एशिया, दक्षिण अफ्रीका, वियतनाम, ब्राजील, थाईलैंड, ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका तक पहुंची।

राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केंद्र के निदेशक डॉ. विशाल नाथ बताते हैं कि भारत में लीची 1770 के आसपास चीन से आई। इतिहास बताता है कि यह पहले पूर्वोत्तर इलाके में आई। त्रिपुरा में लीची की खेती 1700 के आखिर में शुरू हो गई थी। फिर वहां से कुछ सालों बाद असम, बंगाल और बिहार तक पहुंची। बिहार में लोगों के पास जमीन के बड़े-बड़े टुकड़े थे, ऐसे में यहां इसकी बागवानी की जाने लगी। 

भारत में लीची के फल सबसे त्रिपुरा में पक कर तैयार होते है। इसके बाद रांची और पूर्वी सिंहभूम (झारखंड), मुर्शिदाबाद (पं. बंगाल), मुजफ्फरपुर और समस्तीपुर (बिहार), उत्तर प्रदेश के तराई क्षेत्र, पंजाब, उत्तरांचल के देहरादून और पिथौरागढ़ की घाटी में फल पकते हैं।

भारत में अभी करीब साढ़े छह लाख से सात टन लीची का उत्पादन हो रहा है। करीब 1 लाख हेक्टेयर एरिया में लीची की खेती की जा रही है। लीची का एक पेड़ 200 से 300 तक भी फल देता है। राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केंद्र में ही 100 से 150 साल पुराने पेड़ लगे हैं।

अब बिहार के अलावा पंजाब, तमिलनाडु, कर्नाटक और महाराष्ट्र के कुछ हिस्सों में भी लीची की खेती होती है। दुनिया में चीन के बाद भारत ऐसा देश है, जहां सबसे ज्यादा लीची उगाई जाती है। 50 लाख से ज्यादा लोग प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से इससे जुड़े हुए हैं। देश में लीची उत्पादन में बिहार का हिस्सा लगभग 50 फीसदी है।

लीची के लिए कौन सा शहर प्रसिद्ध है? - leechee ke lie kaun sa shahar prasiddh hai?

लीची की बागवानी करने पर पहले साल ज्यादा खर्च होता है, बाद में सिर्फ मेंटेनेंस का खर्च आता है। एक हेक्टेयर में बागवानी की जाती है, तो औसतन 25 से 30 हजार रुपए का खर्चा आता है। 10 साल में एक हेक्टेयर का खर्च करीब 3 लाख रुपए तक आता है। पौधे की देखभाल अच्छी हो, तो ये सालों तक फल देता है।

लीची के लिए कौन सा शहर प्रसिद्ध है? - leechee ke lie kaun sa shahar prasiddh hai?

पौधा लगाने के चार साल बाद इसमें फल आना शुरू हो जाते हैं, 10 साल पूरे होने पर यह पूरी तरह से परिपक्व हो जाता है और फिर पैदावार बहुत अच्छी होती है। जो लोग इसका व्यावसायिक उत्पादन करते हैं वे 4 मीटर से ज्यादा ऊंचाई नहीं होने देते। एक बार फल तोड़ने पर पुरानी टहनी को भी काट दिया जाता है। फिर नई टहनी आने पर उसमें नया फल आता है। पौधे को जितना छांटा जाता है, उसमें उतने ही नई मंजरियां आते जाते हैं।

लीची की फसल बागवानी के लिए आर्द्र जलवायु उपयुक्त है। वर्षा की कमी में भी आर्द्र जलवायु वाले क्षेत्रों में इसकी खेती की जा सकती है। इसीलिए हर तरह से उत्तरी बिहार उपयुक्त क्षेत्र है। लीची में मंजरी आने के लिए 20 डिग्री से कम तापमान कम से कम 60 दिन होना जरूरी है। आदर्श तापमान 35 से 40 डिग्री सेल्सियस होना चाहिए। यह भी जरूरी है कि तापमान धीरे-धीरे बढ़े। भारत में शाही, अर्ली बेदाना, रोजसेंटड, चायना, कसबा, मंदराजी और लेट-बेदाना प्रमुख व्यापारिक किस्मे हैं।

वैसे तो लीची हर शहर में मिल जाती है लेकिन दिल्ली, अहमदाबाद, पुणे, हैदराबाद, चेन्नई, बनारस ऐसे शहर हैं, जहां बड़ी मात्रा में माल बिकता है। यहां 200 से 250 रुपए किलो तक भाव है। देश के अलावा मिडिल ईस्ट और यूरोप में भी लीची का निर्यात होता है, हालांकि सही गाइडलाइन न होने से चीन के मुकाबले एक्सपोर्ट ज्यादानहीं है। भारत में  दो ही वैरायटी तैयार की जाती हैं।  

एक रिपोर्ट के मुताबिक लीची किसानों से बातचीत में सामने आया कि कीटनाशक के ज्यादा इस्तेमाल के चलते लीची जहरीली हो रही है। पौधे को कीड़ों से बचाने के लिए शक्तिशाली कीटनाशक साइपरमेथ्रिन का छिड़काव जरूरत से ज्यादा किया जा रहा है जिसका असर एक महीने तक रहता है लेकिन किसान पहले ही अधपकी लीची तोड़ लेते हैं। इस वजह से कीटनाशक का असर खत्म नहीं होता। जानवरों के लिए इस्तेमाल होने वाली कुछ दवाओं को भी कुछ किसान लीची के पौधे पर छिड़कते हैं। नेशनल रिसर्च सेंटर कीटनाशक के छिड़काव की गाइडलाइन जारी कर चुका है लेकिन अधिकतर किसान इसे फॉलो नहीं करते। 

भारत में सबसे ज्यादा लीची कहाँ होता है?

भारत में सबसे ज्यादा लीची कहां पैदा होती है? बिहार में देश की 65 प्रतिशत लीची पैदा होती है।

लीची के लिए कौन सा राज्य प्रसिद्ध है?

उल्लेखनीय है देश के कुल लीची उत्पादन में बिहार की हिस्सेदारी 65 प्रतिशत से ज्यादा है। बिहार में कुल 30,600 हेक्टेयर भूमि पर लीची की खेती की जाती है।

बिहार में लीची के लिए कौन सा शहर प्रसिद्ध है?

बिहार में शाही लीची का उत्पादन मुजफ्फरपुर, समस्तीपुर, वैशाली व पूर्वी चंपारण शाही लीची के प्रमुख उत्पादक क्षेत्र हैं।

लीची के उत्पादन में भारत का विश्व में कौन सा स्थान है?

लीची उत्पादन में भारत का विश्व में चीन के बाद दूसरा स्थान है।