लंकारोहण के लिए वानरों के कितने दल बनाए गए? - lankaarohan ke lie vaanaron ke kitane dal banae gae?

Bal Ram Katha Class 6 Questions and Answers Summary Chapter 9 राम और सुग्रीव

CBSE Class 6 / By Prasanna

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Class 6 Hindi Bal Ram Katha Chapter 9 Question Answers Summary राम और सुग्रीव

Bal Ram Katha Class 6 Question Answers Chapter 9

प्रश्न 1.
सुग्रीव कौन थे? वे ऋष्यमूक पर्वत पर क्यों रहते थे?
उत्तर:
सुग्रीव किष्किंधा के वानरराज के छोटे पुत्र थे। सुग्रीव के बड़े भाई का नाम बाली था। पिता के न रहने पर बाली राजा बने। पहले दोनों भाइयों में बहुत प्रेम था। राज-काज में किसी बात को लेकर मन-मुटाव हो गया। फिर झगड़ा हो गया। बाली सुग्रीव को मार डालने पर उतर आया। जान बचाने के लिए सुग्रीव को ऋष्यमूक पर्वत पर जाना पड़ा।

प्रश्न 2.
राम-लक्ष्मण को अपनी ओर आते देख सुग्रीव के मन में क्या विचार आया?
उत्तर:
जब सुग्रीव ने दो युवकों को अपनी ओर आते देखा तो उसने सोचा कि ये दोनों अवश्य ही बाली के गुप्तचर हैं। ये मुझे मारने आ रहे हैं। सुग्रीव ने तत्काल अपने साथियों को बुलाकर कहा कि हमें ऋष्यमूक पर्वत छोड़ देना चाहिए।

प्रश्न 3.
हनुमान ने किस प्रकार सुग्रीव और राम की मित्रता कराई?
उत्तर:
हनुमान यह जानने के लिए कि आखिर ये दो युवक कौन हैं? राम-लक्ष्मण के पास आए। राम-लक्ष्मण तो पहले ही सुग्रीव से मिलना चाहते थे। हनुमान ने बड़ी चतुरता से राम और लक्ष्मण के बारे में जान लिया। हनुमान समझ गए कि राम और सुग्रीव की स्थिति एक जैसी ही है। दोनों को एक-दूसरे की सहायता चाहिए। एक अयोध्या से निर्वासित है, दूसरा किष्किंधा से। एक की पत्नी रावण उठा ले गया है, दूसरे की पत्नी उसके भाई ने छीन ली है। ये दोनों मित्र हो सकते हैं।

प्रश्न 4.
सीता-हरण की बात सुनने के बाद सुग्रीव ने राम को क्या दिखाया?
उत्तर:
राम ने जब सुग्रीव को सीता-हरण की बात सुनाई तो वे आभूषणों की एक पोटली लेकर आए। राम ने सीता के उन आभूषणे को तुरंत पहचान लिया।

प्रश्न 5.
सुग्रीव ने राम की शक्ति की परीक्षा क्यों और कैसे ली?
उत्तर:
राम देखने में सुकुमार थे। उनको देखकर उनकी शक्ति का अनुमान नहीं होता था। सुग्रीव ने कहा कि मेरा भाई बाली बहुत बलशाली है, उसे हराना आसान नहीं है। वह शाल के सात वृक्षों को एक साथ झकझोर सकता है। राम ने बाण उठाकर तीर चलाया। शाल के सातों वृक्ष एक ही बाण में कटकर गिर पड़े।

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प्रश्न 6.
सुग्रीव और बाली के युद्ध का वर्णन करो।
उत्तर:
राम के कहने पर सुग्रीव ने बाली को ललकारा। बाली और सुग्रीव में भयंकर युद्ध हुआ। दोनों भाइयों की एक जैसी सूरत होने के कारण राम पहचान ही नहीं पाए कि इनमें बाली कौन-सा है। सुग्रीव बाली से हार कर राम के ऊपर क्रोधित हुआ। राम ने उसे समझाकर पुनः बाली के पास भेजा। इस बार जब बाली ने सुग्रीव पर वार किया तो राम के एक ही बाण से बाली घायल होकर गिर पड़ा। इस प्रकार सुग्रीव किष्किंधा के राजा बन गए।

प्रश्न 7.
राजा बनने के बाद सुग्रीव राम को दिए अपने वचन को भूल गया तो राम ने उसे याद दिलाने के लिए क्या किया?
उत्तर:
लक्ष्मण सुग्रीव को समझाने किष्किंधा आए। वहाँ पहुँचकर लक्ष्मण के धनुष की टंकार सुनकर सुग्रीव काँप गया। उसे राम को दिया वचन पुनः याद आ गया।

प्रश्न 8.
लंकारोहण के लिए क्या योजना बनाई गई?
उत्तर:
लंकारोहण के लिए वानरों के चार दल बनाए गए। दक्षिण-पश्चिम की ओर जाने वाले दल का नेतृत्व अंगद को सौंपा गया। इस दल में हनुमान, नल-नील और जामवंत भी थे।

प्रश्न 9.
लंकारोहण के लिए जाते समय राम ने हनुमान को अपने पास क्यों बुलाया?
उत्तर:
राम ने अपनी अँगुली से अँगूठी उतारकर हनुमान को देते हुए कहा कि जब सीता से तुम्हारी भेंट हो तो यह अँगूठी उन्हें दे देना। वे इसे पहचान जाएँगी कि मैंने तुम्हें भेजा है।

प्रश्न 10.
संपाति कौन था? उसने वानरों को क्या सलाह दी?
उत्तर:
संपाति जटायु का भाई था। उसने बताया कि सीता को रावण लंका लेकर गया है। सीता तक पहुँचने के लिए आपको यह समुद्र पार करना होगा।

प्रश्न 11.
वानर दल चिंता में क्यों पड़ गया? उनकी चिंता का निवारण किस प्रकार हुआ?
उत्तर:
सामने विशाल समुद्र को देखकर वानर दल चिंता में पड़ गया, क्योंकि इतने विशाल समुद्र को पार कैसे किया जाए। तभी जामवंत की दृष्टि हनुमान जी पर पड़ी। हनुमान जी में अपार शक्ति थी, लेकिन हनुमान जी को अपमी शक्ति का अनुमान नहीं था। उनकी सोई हुई शक्ति को जगाना पड़ता था। जामवंत ने हनुमान जी की सोई हुई शक्ति को जगा दिया।

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Bal Ram Katha Class 6 Chapter 9 Summary

राम और लक्ष्मण सुग्रीव से मिलने ऋष्यमूक पर्वत की ओर चल पड़े। सुग्रीव ऋष्यमूक में निर्वासित होकर दिन बिता रहा था। सुग्रीव किष्किंधा के वानरराज के छोटे पुत्र थे। पिता के न रहने पर बाली राजा बना। पहले बाली और सुग्रीव में बहुत प्यार था, परन्तु बाद में किसी बात को लेकर मन-मुटाव हो गया। बाली के डर के कारण ही सुग्रीव यहाँ रहने लगा था। एक दिन सुग्रीव ने राम-लक्ष्मण को ऋष्यमूक पर्वत की ओर आते देखा तो उसको लगा कि ये बाली के दूत हैं। हमें इस स्थान को छोड़ देना चाहिए। सुग्रीव के प्रमुख साथी हनुमान ने कहा कि मैं पता लगाता हूँ कि ये कौन हैं? हनुमान वेश बदलकर गए और उन्होंने पाया कि ये राम हैं जो सुग्रीव से मित्रता करना चाहते हैं।

सुग्रीव से मिलवाने के लिए हनुमान राम और लक्ष्मण को कंधे पर बैठाकर ऋष्यमूक पर्वत पहुँच गए। अग्नि को साक्षी मानकर दोनों ने मित्रता निभाने की कसम खाई। राम ने सुग्रीव से कहा कि तुम बाली को युद्ध के लिए ललकारो। मैं तुम्हारी सहायता करूँगा। सुग्रीव के ललकारने पर दोनों भाइयों का युद्ध हुआ, परन्तु दोनों भाइयों को दूर से पहचानना मुश्किल था। सुग्रीव बाली से बुरी तरह पिटकर आए और राम पर कुपित होने लगे। राम ने कहा-“मित्र! आप पुनः बाली को युद्ध के लिए ललकारो। अबकी बार मुझसे भूल नहीं होगी। सुग्रीव ने बाली को एक बार फिर ललकारा। दोनों भाइयों का युद्ध हुआ। जैसे ही बाली ने सुग्रीव की ओर घूसा उठाया, राम ने उस पर बाण चला दिया।

बाली की मृत्यु के बाद सुग्रीव का राज्याभिषेक किया गया तथा अंगद को युवराज बनाया गया। राम किष्किंधा से लौट आए। वर्षा के कारण आगे जाना कठिन था। सुग्रीव राजभवन में जाकर रंग-रलियों में लीन हो गए। लगता था कि सुग्रीव अपना वचन भूल गए हैं। राम सुग्रीव के इस व्यवहार से क्षुब्ध थे। राम के कहने से लक्ष्मण सुग्रीव को समझाने किष्किंधा की ओर चले। लक्ष्मण ने वहाँ पहुँचकर धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ाई और डोरी को खींचा। धनुष की टँकार से सुग्रीव काँप गया और उसको अपना वचन याद आ गया। राम के पास जाने से पूर्व सुग्रीव ने हनुमान को वानर सेना एकत्र करने का निर्देश दिया। राम और सुग्रीव बात कर ही रहे थे कि वानर सेना भी वहाँ पहुँच गई।

सीता की खोज के लिए चार दल बनाए गए। अंगद को दक्षिण दिशा की ओर जाने वाले दल का नेता बनाया गया। उस दल में हुनमान, नल और नील भी थे। राम और सुग्रीव की जय-जयकार करते हुए वानर निर्धारित दिशाओं की ओर चल पड़े। राम ने हनुमान को अपने पास बुलाकर एक अंगूठी देते हुए कहा कि जब तुम्हारी भेंट सीता से हो तो तुम यह अँगूठी उसे दे देना। सीता पहचान जाएगी कि तुम मेरे दूत हो।

दक्षिण दिशा की ओर जाने वाली टोली समुद्र के किनारे पहुँच गई। समुद्र को देखकर सभी चिंता में पड़ गए कि अब आगे कैसे जाया जाए। तभी उनको संपाति मिला जिसने बताया कि सीता लंका में है। समुद्र पार करना कोई आसान काम न था। तभी उनमें सबसे बुद्धिमान जामवंत ने सुझाव दिया कि हनुमान यह कार्य कर सकते हैं। जामवंत ने हनुमान की सोई हुई शक्ति को जगा दिया। हनुमान लंका जाने को तैयार हो गए।

Bal Ram Katha Class 6 Questions and Answers Summary Chapter 8 सीता की खोज

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Class 6 Hindi Bal Ram Katha Chapter 8 Question Answers Summary सीता की खोज

Bal Ram Katha Class 6 Question Answers Chapter 8

प्रश्न 1.
मारीच की. माया देखने के बाद राम के मन में क्या-क्या आशंकाएँ उठ रही थीं?
उत्तर:
राम ने मारीच की माया व उसका छल से कुटिया से दूर ले जाना देख लिया था। राम के मन में आशंका थी कि यदि लक्ष्मण ने भी मारीच की आवाज सुनी होगी तो कहीं वे सीता को अकेला न छोड़ आए हों। सीता अकेली रही तो राक्षस उसे मार डालेंगे।

प्रश्न 2.
राम लक्ष्मण पर क्यों क्रुद्ध हुए?
उत्तर:
राम लक्ष्मण को सीता की रखवाली एवं रक्षा के लिए छोड़कर गए थे। लक्ष्मण सीता को अकेले छोड़कर आ गए थे। लक्ष्मण ने राम की आज्ञा की अवहेलना की थी। राम के क्रोधित होने का यही कारण था।

प्रश्न 3.
राम को क्रोधित जानकर लक्ष्मण ने अपनी सफाई में क्या कहा?
उत्तर:
लक्ष्मण ने कहा, “देवी सीता ने मुझे विवश कर दिया भ्राते! उनके कटु वचन मैं सहन नहीं कर सका। कटाक्ष और उलाहना नहीं सुन सका। मैं जानता था कि आप सकुशल होंगे। तब भी मुझे कुटिया छोड़कर आना पड़ा।”

प्रश्न 4.
सीता को कुटिया में न पाकर राम की कैसी दशा हुई?
उत्तर:
सीता को कुटिया में न पाकर राम उन स्थानों की ओर भागे जहाँ सीता जा सकती थी। राम की दशा विक्षिप्तों जैसी हो गई। वे शोक में पेड़-पौधों, चट्टानों, पशु-पक्षियों से सीता के बारे में पूछ रहे थे।

प्रश्न 5.
राम को दुखी देखकर लक्ष्मण ने क्या किया?
उत्तर:
लक्ष्मण से राम का दुख देखा नहीं गया। लक्ष्मण ने राम को समझाते हुए कहा कि आप आदर्श पुरुष हैं। आपको धैर्य रखना चाहिए। इस तरह दुख से कातर नहीं होना चाहिए। हम मिलकर सीता की खोज करेंगे। वे जहाँ भी होंगी, हम उन्हें खोज निकालेंगे।

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प्रश्न 6.
वन में भटकते हुए राम टूटे हुए रथ को देखकर असमंजस में क्यों पड़ गए?
उत्तर:
राम ने वन में जब टूटा हुआ रथ, मरा हुआ सारथी व घोड़े देखे तो उनको लगा कि अवश्य ही किसी ने राक्षसों को चुनौती दी होगी। लगता है यहाँ थोड़ी देर पहले ही संघर्ष हुआ है। तभी उन्होंने वहाँ वह माला देखी जिसको सीता ने अपनी वेणी में गूंथ रखा था। निश्चित तौर पर सीता राक्षसों के चंगुल में फँस गई है।

प्रश्न 7.
पक्षिराज जटायु किस प्रकार घायल हुआ था? जटायु ने राम को क्या जानकारी दी?
उत्तर:
जब रावण सीता का हरण कर उसे रथ पर ले जा रहा था तो सीता का विलाप सुनकर जटायु रावण के रथ पर झपटा। उसने रावण का रथ तोड़ डाला। रावण ने जटायु के पंख काट डाले। वह जमीन पर गिर पड़ा।

जटायु ने राम से कहा, “सीता को रावण उठा ले गया है। वह उसे दक्षिण-पश्चिम दिशा की ओर ले गया है।”

प्रश्न 8.
कबंध कैसा राक्षस था?
उत्तर:
कबंध एक विशालकाय राक्षस था। वह बहुत ही डरावना था। मोटे माँसपिंड जैसा। उसकी गर्दन भी नहीं थी और केवल एक आँख थी। दाँत बाहर निकले हुए थे। जीभ साँप की तरह लंबी और लपलपाती हुई थी।

प्रश्न 9.
राम द्वारा कबंध के हाथ काट दिए जाने पर उसने राम से क्या आग्रह किया? और उसने राम को क्या जानकारी दी?
उत्तर:
कबंध ने आग्रह किया कि उसका संस्कार राम स्वयं करें। कबंध ने राम को बताया कि आप पंपासर के निकट ऋष्यमूक पर्वत पर जाएँ। वहाँ वानरराज सुग्रीव निर्वासित जीवन व्यतीत कर रहे हैं। आप सुग्रीव से सहायता का आग्रह करें। सुग्रीद के पास विशाल वानर सेना है। सुग्रीव सीता को अवश्य ही खोज निकालेंगे।

प्रश्न 10.
शबरी कौन थी? उसे किसकी प्रतिक्षा थी?
उत्तर:
शबरी मतंग ऋषि की शिष्या थी। उसकी आयु बहुत हो गई थी। उसका शरीर भी जर्जर हो गया था। वह हर पल राम् की प्रतीक्षा किया करती थी। मतंग ऋषि ने शबरी को बताया था कि एक दिन राम आश्रम में अवश्य आयेंगे।

प्रश्न 11.
राम को आश्रम में देखकर शबरी ने क्या किया? शबरी ने राम को क्या सलाह दी?
उत्तर:
राम को आश्रम में देखकर शबरी बहुत प्रसन्न हुई। उसने राम की खूब सेवा की तथा मीठे फल खिलाए। सीता की खोर के लिए शबरी ने राम से कहा कि आप सुग्रीव से मित्रता कीजिए। सीता की खोज में वे अवश्य ही तुम्हारी सहायत करेंगे।

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Bal Ram Katha Class 6 Chapter 8 Summary

मारीच का वध करने के बाद आशंका से घिरे राम शीघ्रतापूर्वक कुटिया की ओर आ रहे थे। मार्ग में उनको लक्ष्मण आते दिखाई दिए। राम और अधिक आशंकित हो गए। राम ने लक्ष्मण का बायाँ हाथ जोर से पकड़ लिया। दोनों भाइयों को डर ने घेर लिया था। राम ने लक्ष्मण से कहा कि तुमने मेरी आज्ञा का उल्लंघन क्यों किया? तो लक्ष्मण ने कहा कि सीता ने मुझे विवश कर दिया। मैं उनके कटाक्ष और उलाहने नहीं सुन सका।

राम ने चलने की गति और बढ़ा दी। राम ने कुटिया के समीप जाकर सीता को पुकारा, परन्तु उधर से कोई उत्तर नहीं आया। राम भागते हुए आश्रम पहुँचे। वे सीते! सीते! पुकारते रहे। उन्होंने सीता को हर जगह देखा। विरह में वे गोदावरी के किनारे गए। राम ने एक-एक चट्टान, पत्थरों से, पेड़-पक्षियों से प्रश्न किया। राम की मानसिक स्थिति विक्षिप्तों जैसी हो गई। राम लक्ष्मण से अयोध्या जाने को कह रहे थे। लक्ष्मण ने उनको समझाते हुए कहा-आप आदर्श पुरुष हैं” आपको धैर्य रखना चाहिए। हम सीता की खोज करेंगे। सीता जहाँ भी होगी उसे ढूँढ़ निकालेंगे।

वन में सीता की खोज करते हुए राम ने एक टूटा हुआ रथ, मरा हुआ सारथी व घोड़े देखे। वहाँ पड़ी पुष्पमाला भी वही थी जो सीता के गले में थी। वहीं से थोड़ी दूर पक्षिराज जटायु दिखाई दिए जो लहूलुहान थे। जटायु ने राम को बताया कि सीता को रावण उठाकर ले गया है और उसने ही मेरी यह दशा की है। रावण उन्हें लेकर दक्षिण-पश्चिम दिशा की ओर गया है। यह कहते ही जटायु ने प्राण त्याग दिए।

जटायु ने सीता के बारे में महत्त्वपूर्ण सूचना दे दी थी। वे दक्षिण-पश्चिम दिशा की ओर चल पड़े। रास्ते में अनेक प्रकार की कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। रास्ते में उनको कबंध नाम का राक्षस मिला जिसकी गर्दन गिरी हुई थी। राक्षस कबंध ने राम की शक्ति के बारे में सुन रखा था। कबंध ने राम से कहा कि वे उसका अंतिम संस्कार कर दें। कबंध ने राम से कहा-“आप दोनों पंपा सरोवर के निकट ऋष्यमूक पर्वत पर जाएँ और सुग्रीव से मिलें। वह अवश्य सीता को खोज निकालेंगे। कबंध की साँस टूटने लगी थी। उसका अंत निकट था। राम-लक्ष्मण को अपने निकट बुलाते हुए उसने कहा-“पंपा सरोवर के पास मतंग ऋषि का आश्रम है। वहीं उनकी शिष्या शबरी रहती है। आगे जाने से पूर्व शबरी से अवश्य मिल लेना।” यह कहते-कहते कबंध ने अपने प्राण त्याग दिए। राम ने कबंध का अंतिम संस्कार किया और पंपासर की ओर चल पड़े।

कबंध की बातों से राम का बहुत ढाढ़स बढ़ा। राम को सुग्रीव की क्षमता और उनकी वानर सेना की शक्ति का पता था। वे जल्दी सुग्रीव तक पहुँचना चाहते थे। ऋष्यमूक पर्वत का रास्ता पंपा सरोवर होकर जाता था। पंपा सरोवर का प्राकृतिक सौंदर्य अद्भुत था। मतंग ऋषि का आश्रम उसी सरोवर के किनारे था। शबरी की कुटिया आश्रम में ही थी। वह बहुत जर्जर शरीर वाली व अधिक आयु वाली थी। वह रोज राम की प्रतीक्षा किया करती थी, क्योंकि ऋषि ने बताया था कि राम एक दिन आश्रम में आयेंगे।

राम को आश्रम में देखकर शबरी की खुशी का ठिकाना न रहा। उसने राम की बहत आव-भगत की तथा खाने के लिए मीठे फल दिए। राम ने उससे सीता के संबंध में पूछा तो उसने कहा कि आप सुग्रीव से मित्रता कीजिए, वह आपकी सहायता अवश्य करेगा। अगले दिन राम ऋष्यमूक पर्वत चले गए। अब उनका मन शांत था।

Bal Ram Katha Class 6 Questions and Answers Summary Chapter 7 सोने का हिरण

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Class 6 Hindi Bal Ram Katha Chapter 7 Question Answers Summary सोने का हिरण

Bal Ram Katha Class 6 Question Answers Chapter 7

प्रश्न 1.
राम को कुटी से निकलते देख मायावी हिरण ने क्या किया?
उत्तर:
जैसे ही राम अपनी कुटी से बाहर निकले मायावी हिरण कुलाचें भरता हुआ जंगल की ओर दौड़ा। राम भी उसके पीछे दौड़े। उसने राम को बहुत छकाया। वह लुका-छिपी करता हुआ राम को बहुत दूर ले गया। जब भी राम उसे पकड़ने का प्रयास करते, वह भागकर दूर चला जाता। अपने सारे प्रयास विफल होते देख राम ने उसे जिंदा पकड़ने का विचार त्याग दिया और उस पर बाण चला दिया।

प्रश्न 2.
बाण लगने पर मायावी हिरण ने क्या किया?
उत्तर:
बाण लगने पर मायावी हिरण ने अपने रूप के साथ-साथ अपनी आवाज भी बदल ली। वह राम की आवाज बनाकर बोला-“हा सीते! हा लक्ष्मण!” बाण का प्रहार गहरा था। मारीच उसे अधिक देर तक सहन नहीं कर सका और जल्द ही उसके प्राण-पखेरू उड़ गए।

प्रश्न 3.
मारीच की पुकार सुनकर राम ने क्या किया?
उत्तर:
राम को समझते देर नहीं लगी। मायावी मारीच की पूरी चाल सामझ में आ गई थी। हिरण जानबूझकर उसे कुटिया से दूर ले जाने के लिए भागता रहा। राम षड्यंत्र का अगला चरण विफल करना चाहते थे। अतः वे तेज कदमों से कुटिया की ओर चल पड़े।

प्रश्न 4.
मायावी पुकार का लक्ष्मण पर क्या असर हुआ?
उत्तर:
मायावी पुकार सुनकर लक्ष्मण उसका रहस्य समझ गए। उन्होंने अपना धनुष संभाल लिया। वे राक्षसों की अगली चाल का सामना करने के लिए तैयार थे।

प्रश्न 5.
सीता मायावी हिरण की आवाज सुनकर विचलित क्यों हो गई?
उत्तर:
सीता को लगा कि राम के प्राण संकट में हैं। उन्होंने लक्ष्मण से तुरंत राम की सहायता के लिए जाने को कहा। लक्ष्मण ने सीता को बहुत समझाया, परन्तु सीता ने लक्ष्मण की एक न सुनी। सीता क्रोध से उबल पड़ी और लक्ष्मण पर तरह-तरह के लांछन लगाने लगी।

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प्रश्न 6.
सीता ने लक्ष्मण पर क्या-क्या लांछन लगाए?
उत्तर:
सीता ने लक्ष्मण को फटकारते हुए कहा कि तुम्हारा मन पवित्र नहीं है। कलुषित है। पाप है उसमें। मैं समझ सकती हूँ कि तुम अपने भाई की सहायता के लिए क्यों नहीं जा रहे हो। सीता ने यहाँ तक कह दिया कि कहीं वे भरत के गुप्तचर तो नहीं हैं।

प्रश्न 7.
सीता की बातों का लक्ष्मण पर क्या असर हुआ?
उत्तर:
सीता की बातों से लक्ष्मण को गहरा आघात पहुँचा। उनका हृदय छलनी हो गया। उन्होंने पलटकर कोई और उत्तर नहीं दिया। सिर झुकाकर सब कुछ सुन लिया। वे सीता की पीड़ा को समझ रहे थे।

प्रश्न 8.
रावण ने पंचवटी में सीता के पास जाकर क्या प्रस्ताव रखा?
उत्तर:
रावण तपस्वी के वेश में सीता के पास पहुँचा। सीता ने साधु समझकर उसका स्वागत किया। रावण ने अपना परिचय देते हुए कहा-“सुमुखी! मैं राक्षसों का राजा रावण हूँ। मेरा नाम लेने पर लोग थरथरा उठते हैं। लेकिन तुम सबसे अलग हो सुंदरी। तुम्हारे लिए मैं स्वयं चलकर आया हूँ। मेरी रानी बनकर मेरे साथ चलो और सोने की लंका में रहो।”

प्रश्न 9.
रावण और जटायु के युद्ध का वर्णन करो।
उत्तर:
रावण के उड़ने वाले रथ पर सीता विलाप करती हुई जा रही थी। वह पेड़-पौधों और पशु-पक्षियों से कह रही थी कि कोई उसके राम को बता दे कि रावण ने उसका हरण कर लिया है। गिद्धराज जटायु ने सीता का विलाप सुना तो उसने ऊँची उड़ान भरकर रावण के रथ पर हमला कर दिया। जटायु ने रथ को क्षत-विक्षत कर दिया। क्रोध में आकर रावण ने जटायु के पंख काट दिए। जटायु धरती पर गिर पड़ा।

प्रश्न 10.
सीता मार्ग में अपने आभूषण उतार-उतारकर क्यों फेंक रही थीं?
उत्तर:
सीता ने अपने आभूषण उतार-उतारकर इसलिए फेंकने शुरू कर दिए ताकि राम को पता चल जाए कि रावण सीता को किस ओर ले गया है।

प्रश्न 11.
रावण ने सीता को प्रभावित करने के लिए क्या-क्या किया?
उत्तर:
रावण ने सीता को अपने धन-वैभव से प्रभावित करना चाहा, परन्तु सीता पर कोई असर नहीं पड़ा। उसने सीता को अपने बल-पराक्रम का हवाला देकर डराया-धमकाया, परन्तु सीता पर कोई असर न होता देख उसे राक्षसियों के पहरे में अशोक वाटिका में बंदी बनाकर रख लिया।

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Bal Ram Katha Class 6 Chapter 7 Summary

राम को कुटी से निकलते देखकर मायावी हिरण कुलाचें भरने लगा। वह लुकता-छिपता भागता रहा। इस प्रकार राम को बहुत दूर ले गया। राम ने उसको जिंदा पकड़ना असंभव जान उस पर बाण चलाया। बाण लगते ही वह गिर पड़ा और अपने असली रूप में आ गया। धरती पर पड़े वह करुण आवाज में “हा सीते! हा लक्ष्मण।” कहकर चिल्लाया। बाण का प्रहार गहरा था, अतः जल्दी ही उसके प्राण-पखेरू उड़ गए।

रावण एक वृक्ष के पीछे खड़ा होकर अपनी चाल सफल होते देख रहा था। मारीच की पुकार राम ने सुनी तो उन्हें समझते देर नहीं लगी। वे षड्यंत्र का अगला चरण विफल करना चाहते थे। वे जल्दी से कुटिया पर पहुँच जाना चाहते थे। यह मायावी पुकार सीता और लक्ष्मण ने भी सुनी थी। लक्ष्मण तत्काल रहस्य को समझ गए। वे राक्षसों की अगली चाल का सामना करने के लिए तैयार हो गए। सीता वह आवाज सुनकर विचलित हो गई थी। उसने लक्ष्मण को पुकारा कि जल्दी आओ, तुम्हारे भाई किसी भारी संकट में फँस गए हैं। लक्ष्मण ने सीता को समझाते हुए कहा कि राम संकट में नहीं हैं। यह मायावी राक्षसों की चाल है। लक्ष्मण को इस प्रकार शांत देखकर सीता क्रोध से उबल पड़ी। उसे लगा कि लक्ष्मण जानबूझकर राम को अपने रास्ते से हटाना चाहते हैं। उन्होंने लक्ष्मण से कहा कि तुम्हारा मन पवित्र नहीं है। तुम भरत के गुप्तचर हो। सीता की इन बातों का लक्ष्मण को गहरा आघात लगा। लक्ष्मण ने सीता को तरह-तरह से समझाना चाहा, परन्तु वह नहीं मानी।

लक्ष्मण राम की खोज में निकल पड़े, तभी वहाँ रावण आ पहुँचा। सीता ने साधु समझकर उसका स्वागत किया। रावण ने अपना परिचय देते हुए कहा कि तुम्हारे लिए मैं स्वयं चलकर आया हूँ। मेरे साथ चलो और सोने की लंका में रहो। सीता क्रोधित होकर बोली-मैं तुम्हारे साथ नहीं जाऊँगी। मैं राम की पत्नी हूँ। शायद तुमको उनकी शक्ति का अनुमान नहीं है। तुम चले जाओ, नहीं तो तुम्हारा सर्वनाश हो जाएगा। रावण ने सीता की बात को अनसुना करके उसे खींचकर रथ में बैठा लिया। सीता रावण से स्वयं को छुड़ाने का प्रयास करती रही। वह स्वयं को असहाय पाकर विलाप करने लगी। मार्ग में वह नदी, पर्वत, पशु-पक्षियों से बताती जा रही थी कि राम को बता दें कि रावण ने उसका हरण कर लिया है। गिद्धराज जटायु ने जब सीता का विलाप सुना तो वह ऊँची उड़ान भरकर रावण के रथ पर झपटा। रावण ने जटायु के पंख काट दिए। जटायु ने रावण का स्थ तोड़ दिया। रावण सीता को अपनी बगल में दबाकर दक्षिण दिशा की ओर उड़ने लगा। सीता को अब अपने बचाव की कोई आशा नहीं थी। उसने अपने आभूषण उतारकर फेंकने शुरू कर दिये ताकि राम को पता चल सके कि सीता किस मार्ग से गई है।

रावण ने लंका पहुँचकर सीता को धन-वैभव से प्रभावित करना चाहा। सीता के किसी भी प्रकार न मानने पर रावण ने उस पर राक्षसियों का पहरा बैठा दिया। उसने सीता से कहा कि मैं तुम्हें एक वर्ष का समय देता हूँ। निर्णय तुम्हें करना है। मेरी रानी बनकर लंका में राज करोगी या विलाप करते हुए जीवन बिताओगी। सीता रावण को राम की शक्ति के बारे में बताती रही व तरह-तरह से रावण को धिक्कारती रही। रावण भी सोचने लगा कि खर-दूषण को मारने वाला अवश्य ही शक्तिशाली होगा। रावण ने राम-लक्ष्मण को मारने के लिए अपने सबसे बलशाली राक्षसों को पंचवटी भेजा। रावण ने सीता को अशोक वाटिका में बंदी बना दिया। पहरा कड़ा कर दिया। राक्षसियों को आदेश दिया कि सीता को किसी भी तरह का शारीरिक कष्ट नहीं होना चाहिए। केवल इसके मन को दुख पहुँचाओ और अपमानित करो। रावण के सभी प्रयास विफल गए। वह रो-रोकर दिन काट रही थी। सोने के हिरण ने उन्हें सोने की लंका में पहुँचा दिया था।

Bal Ram Katha Class 6 Questions and Answers Summary Chapter 6 दण्डक वन में दस वर्ष

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Class 6 Hindi Bal Ram Katha Chapter 6 Question Answers Summary दण्डक वन में दस वर्ष

Bal Ram Katha Class 6 Question Answers Chapter 6

प्रश्न 1.
राम चित्रकूट से दूर क्यों चले जाना चाहते थे?
उत्तर:
चित्रकूट अयोध्या से केवल चार दिन की दूरी पर था। यदि राम वहाँ रहते तो अयोध्या से वहाँ आना-जाना लगा रहता। वे उनसे राय भी माँगते। उनको राय देना राजकाज में हस्तक्षेप करने के समान था। राम ने चित्रकूट में न ठहरने का मन बना लिया। इसका एक अन्य कारण भी था-अब यह वन राक्षसों से रहित हो गया था। तपस्वी अब निर्भय होकर तपस्या कर सकते थे।

प्रश्न 2.
दण्डक वन कैसा था? राम को देखकर मुनिगण प्रसन्न क्यों हुए?
उत्तर:
दण्डक वन बहुत ही घना था। पशु-पक्षियों और वनस्पतियों से परिपूर्ण था। इस वन में अनेक तपस्वियों के आश्रम थे, साथ ही राक्षसों की भी कमी न थी। राक्षस अनुष्ठानों में विघ्न डालकर तपस्वियों को कष्ट देते थे। मुनियों ने राम का स्वागत करते हुए कहा कि आप उन दुष्ट मायावी राक्षसों से हमारी रक्षा करें। अब राम राक्षसों से उनकी रक्षा करेंगे, यही सोचकर मुनिगण प्रसन्न थे।

प्रश्न 3.
सुतीक्ष्ण मुनि ने, अगस्त्य मुनि के बारे में राम को क्या बताया?
उत्तर:
सुतीक्ष्ण मुनि ने राम को अगस्त्य मुनि से भेंट करने की सलाह दी। अगस्त्य मुनि विंध्याचल पर्वत पार करने वाले पहले ऋषि थे। मुनि ने राम को गोदावरी के तट पर जाने को कहा।

प्रश्न 4.
पंचवटी के मार्ग में राम और जटायु की भेंट का वर्णन करो।
उत्तर:
पंचवटी के मार्ग में राम को एक विशालकाय पक्षी मिला। सीता उसके स्वरूप को देखकर डर गई। लक्ष्मण ने उसे मायावी राक्षस समझा। लक्ष्मण धनुष उठा ही रहे थे कि जटायु ने उनसे कहा कि मुझसे डरो मत; मैं तुम्हारे पिता का मित्र हूँ। वन में तुम्हारी सहायता करूँगा।

प्रश्न 5.
पंचवटी में लक्ष्मण ने कैसी कुटिया बनाई?
उत्तर:
पंचवटी में लक्ष्मण ने बहुत सुंदर कुटिया बनाई। मिट्टी की दीवारें बनाईं। बाँस के खंभे लगाए। कुश और पत्तों से छप्पर डाला। कुटिया ने उस मनोरम पंचवटी को और सुंदर बना दिया। कुटी के आस-पास सुंदर पुष्प-लताएँ थीं। हिरण घूमते थे और मोर नाचते थे।

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प्रश्न 6.
शूर्पणखा कौन थी? लक्ष्मण ने शूर्पणखा के नाक-कान क्यों काट लिए?
उत्तर:
शूर्पणखा लंका के राजा रावण की बहिन थी। शूर्पणखा ने पंचवटी में जब राम को देखा तो वह उनकी सुंदरता पर मोहित हो गई। शूर्पणखा ने राम के साथ विवाह करने का प्रस्ताव रखा। राम ने यह कहकर कि मैं तो विवाहित हूँ शूर्पणखा के प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया। शूर्पणखा फिर लक्ष्मण के पास गई। लक्ष्मण ने पुनः उसको राम के पास जाने को कहा। बार-बार इस आने-जाने के खेल में शूर्पणखा क्रोधित होकर सीता पर झपटी। लक्ष्मण ने आगे बढ़कर शूर्पणखा के नाक-कान काट लिए।

प्रश्न 7.
नाक-कान कटने के बाद शूर्पणखा ने क्या किया?
उत्तर:
शूर्पणखा उसी जंगल में रहने वाले अपने चचेरे भाइयों खर व दूषण के पास गई। खर-दूषण ने जब शूर्पणखा की दशा देखी तो उनके क्रोध की सीमा न रही। उन्होंने चौदह राक्षस भेजे। वे राक्षसों की पूरी सेना के साथ आए। राम इसके लिए पहले से ही तैयार थे। भयंकर युद्ध हुआ। खर-दूषण सेना सहित मारे गए।

प्रश्न 8.
रावण ने सीता का हरण करने की क्यों सोची?
उत्तर:
जब खर-दूषण के साथ राम का युद्ध हो रहा था तो अकंपन नाम का एक राक्षस भाग कर रावण के पास गया। उसने रावण को पूरा विवरण बताते हुए कहा कि राम को युद्ध में हराना आसान नहीं है। यदि उसकी पत्नी सीता का हरण कर लिया जाए तो उसके प्राण पत्नी के वियोग में स्वयं ही निकल जाएँगे।

प्रश्न 9.
रावण मारीच के पास क्यों गया? मारीच ने रावण को क्या समझाया?
उत्तर:
रावण सीता-हरण के लिए मारीच की मदद चाहता था, इसलिए वह उसके पास गया। मारीच राम की शक्ति से परिचित था। उसने रावण को समझाते हुए कहा कि सीता का हरण करना विनाश को आमंत्रण देना है। रावण मारीच की बात मान गया और लंका लौट आया।

प्रश्न 10.
शूर्पणखा ने सीता-हरण के लिए रावण को क्या-क्या कहकर उकसाया?
उत्तर:
शूर्पणखा चीखती-चिल्लाती और विलाप करती हुई रावण के पास पहुंची। वह रावण को धिक्कार रही थी। उसके पौरूष को ललकारते हुए शूर्पणखा ने कहा-“तेरे महाबली होने का क्या लाभ? तेरे रहते मेरी यह दुर्गति! तेरा बल किस दिन के लिए है? तू किसी को मुँह दिखाने के लायक नहीं रह गया है!” मैं सीता को तुम्हारे लिए लाना चाहती थी। मैंने जब उन्हें बताया कि मैं रावण की बहिन हूँ, क्रोध में लक्ष्मण ने मेरे नाक-कान काट लिए।

प्रश्न 11.
रावण ने दोबारा मारीच को क्या कहकर सीता-हरण में सहायता के लिए तैयार किया?
उत्तर:
जब रावण मारीच के पास दुबारा गया तो मारीच ने पुनः वही बात कही कि सीता-हरण का विचार त्याग दो। रावण ने उसकी नहीं सुनी और उसे डाँटकर कहा कि वह उसकी सहायता करे। मारीच को पता था कि यदि वह इस बार राम के पास गया तो उनके हाथों अवश्य मारा जाएगा। रावण उसके मनोभावों को समझते हुए बोला कि हो सकता है राम तुम्हें मार दे, लेकिन न जाने पर तुम्हारी मेरे हाथों मृत्यु निश्चित है। विवश होकर मारीच को रावण का आदेश मानना पड़ा।

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Bal Ram Katha Class 6 Chapter 6 Summary

भरत चित्रकूट से राम की खड़ाऊँ लेकर अयोध्या लौट चुके थे। राम पर्णकुटी के बाहर एक शिलाखंड पर बैठे सोच रहे थे कि अयोध्या यहाँ से चार दिन की दूरी पर है। अतः लोगों का आना-जाना यहाँ लगा ही रहेगा। वे राय माँगेंगे। यह राज-काज में हस्तक्षेप की तरह होगा। राम ने वहाँ से कहीं दूर चले जाने की सोची। तीनों मुनि अत्रि से विदा लेकर दण्डक वन की ओर चल पड़े। यह वन बहुत धना था। इसमें अनेक तपस्वियों के आश्रम थे। राक्षस भी कम नहीं थे। मुनियों ने राम से कहा कि आप राक्षसों से हमारी रक्षा करें। स्थान और आश्रम बदलते हए राम और लक्ष्मण दण्डकारण्य में दस वर्ष तक रहे। राम ने क्षरभंग मुनि के आश्रम में पहुँचकर उनकी राक्षसों से रक्षा की। सुतीक्ष्ण मुनि ने राम को अगस्त्य ऋषि से भेंट करने की सलाह दी। अगस्त्य विंध्याचल पार करने वाले पहले ऋषि थे।

पंचवटी के मार्ग में राम को जटायु नाम का एक विशालकाय पक्षी मिला। उसने कहा-मैं तुम्हारे पिता का मित्र हूँ। वन में तुम्हारी सहायता करूँगा। पंचवटी में लक्ष्मण ने बहुत ही सुंदर कुटिया बनाई। राम निरंतर राक्षसों का संहार करते रहे। एक दिन राम-लक्ष्मण और सीता कुटिया के बाहर बैठे वहाँ के प्राकृतिक सौंदर्य को निहार रहे थे, तभी रावण की बहिन शूर्पणखा वहाँ आई। राम को देखकर वह उन पर आसक्त हो गई। एक सुंदर स्त्री का रूप धारण करके वह राम के पास आकर बोली कि मैं तुमसे विवाह करना चाहती हूँ। राम ने बता दिया कि उनका विवाह हो चुका है। इसके बाद वह लक्ष्मण के पास गई। लक्ष्मण ने उसको पुनः राम के पास भेज दिया। यह खेल कई बार हुआ तो क्रोध में आकर शूर्पणखा ने सीता पर झपट्टा मारा। लक्ष्मण ने तत्काल उठकर शूर्पणखा के नाक कान काट लिए।

शूर्पणखा अपने कटे नाक-कान लेकर अपने चचेरे भाइयों खर, दूषण के पास गई, जो उसी वन में रहते थे। वे बदला लेने के लिए पंचवटी में राक्षसी सेना के साथ आए। राम ने उन सबका संहार कर दिया। कुछ राक्षस भाग गए। भागने वालों में एक राक्षस का नाम था-अकंपन। उसने सीधे रावण के पास जाकर पूरा वृत्तांत सुनाया। उसने कहा-राम को युद्ध में पराजित करना असंभव है। उससे बदला लेने का एक ही उपाय है सीता का अपहरण कर लिया जाए। वह स्वयं ही मर जाएगा।

सीता के हरण के लिए रावण ने अपने मामा मारीच से भेंट की। मारीच ने ऐसा करने से मना किया, क्योंकि ऐसा करना विनाश को निमंत्रण देने के समान था। थोड़ी देर बाद विलाप करती हुई शूर्पणखा लंका पहुँची। वह रावण को धिक्कार रही थी। उसने कहा कि सीता अतीव सुंदरी है। मैं तो उसे तुम्हारे लिए लाना चाहती थी। क्रोध में लक्ष्मण ने मेरे नाक-कान काट लिए। इस बार रावण पुनः मारीच के पास गया और डाँट-डपटकर सीता-हरण के लिए राजी कर लिया।

मारीच जानता था कि यदि वह दोबारा राम के पास गया तो अवश्य ही मारा जाएगा। रावण ने मारीच के मन की बात भाँपते हुए कहा कि वहाँ जाने पर हो सकता है राम तुम्हें मार दे, परन्तु यदि तू न गया तो मेरे हाथों मारा जाएगा। मारीच को रावण का आदेश मानना ही पड़ा। रथ में बैठकर रावण और मारीच पंचवटी पहुँचे। मारीच सोने का हिरण बनकर कुटिया के आसपास घूमने लगा। रावण तपस्वी का वेश धारण कर एक पेड़ के पीछे छिप गया। सीता ने जब हिरण को देखा तो वह उस पर मुग्ध हो गई। राम को इस वन में सोने का हिरण होने पर संदेह था। सीता उनके सामने उस हिरण को मारकर लाने का आग्रह करने लगी। सीता की प्रसन्नता के लिए राम हिरण के पीछे चले गए। कुटी से निकलते समय राम ने लक्ष्मण को बुलाकर सीता की रक्षा का आदेश दिया। लक्ष्मण सीता की रक्षा के लिए धनुष लेकर कुटिया के बाहर खड़े हो गए।

Bal Ram Katha Class 6 Questions and Answers Summary Chapter 5 चित्रकूट में भरत

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Class 6 Hindi Bal Ram Katha Chapter 5 Question Answers Summary चित्रकूट में भरत

Bal Ram Katha Class 6 Question Answers Chapter 5

प्रश्न 1.
भरत ने ननिहाल में रात्रि में क्या सपना देखा था?
उत्तर:
भरत ने सपने में देखा कि समुद्र सूखं गया है। चंद्रमा धरती पर गिर पड़ा। वृक्ष सूख गए। एक राक्षसी पिता को खींचकर ले जा रही है। वे रथ पर बैठे हैं और रथ को गधे खींच रहे हैं।

प्रश्न 2.
भरत जब अयोध्या पहुंचे तो उन्होंने वहाँ क्या देखा?
उत्तर:
भरत जब अयोध्या पहुँचे तो उनको नगर सामान्य नहीं लगा। अनिष्ट की आशंका उनके मन में और गहरी हो गई। वहाँ की सड़कें सूनी थीं। बाग-बगीचे उदास थे। पक्षी भी कलरव नहीं कर रहे थे।

प्रश्न 3.
पिता की मृत्यु का समाचार सुनकर भरत की कैसी दशा हुई? कैकेयी ने भरत को क्या समझाया?
उत्तर:
पिता की मृत्यु का समाचार सुनकर भरत शोक में डूब गए। वें दहाड़ मारकर गिर पड़े और मूर्छित हो गए। कैकेयी ने भरत को उठाकर ढांढस बँधाते हुए कहा कि यशस्वी कुमार शोक नहीं करते। तुम्हारा इस प्रकार दुखी होना उचित नहीं है। यह राजगुणों के विरुद्ध है।

प्रश्न 4.
यह जानकर कि उसकी माँ के कारण ही यह सब हुआ। भरत ने अपनी माँ से क्या कहा?
उत्तर:
भरत ने क्रोधित होते हुए कैकेयी से कहा कि तुमने घोर अनर्थ किया है। तुम अपराधिनी हो। वन तुम्हें जाना चाहिए था, राम को नहीं। पिता को खोकर और भाई से बिछुड़कर मेरे लिए इस राज्य का कोई अर्थ नहीं है। तुमने पाप किया है। इतना साहस तुममें कहाँ से आया। किसने तुम्हारी बुद्धि भ्रष्ट की। तुम्हारा अपराध क्षमा करने के योग्य नहीं है। मैं राजपद ग्रहण नहीं करूँगा।

प्रश्न 5.
जब शत्रुघ्न को पता चला कि इस सारे घटनाक्रम की जड़ मंथरा है तो उसने क्या किया?
उत्तर:
शत्रुघ्न मंथरा को बालों से पकड़कर खींचते हुए भरत के सामने लाए। शत्रुघ्न उसे जान से मार देना चाहता था। किसी तरह भरत ने बीच-बचाव किया।

प्रश्न 6.
मुनि वशिष्ठ ने भरत से क्या आग्रह किया?
उत्तर:
वशिष्ठ अयोध्या का राजसिंहासन रिक्त नहीं देखना चाहते थे। वे खाली सिंहासन के खतरों से परिचित थे। उन्होंने सभा बुलाई और भरत -शत्रुघ्न को भी आमंत्रित किया। वशिष्ठ ने भरत से राज-काज संभालने की बात कही। भरत ने महर्षि का आग्रह अस्वीकार कर दिया। भरत बोले-मुनिवर! यह राज्य राम का है, वही इसके अधिकारी हैं। मैं राजगद्दी पर बैठने का पाप नहीं कर सकता।”

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प्रश्न 7.
राम ने अपने रहने के लिए कुटिया कहाँ बनाई थी?
उत्तर:
भरद्वाज के आश्रम में पहुँचने के बाद महर्षि भरद्वाज ने उनको एक सुंदर पहाड़ी दिखाई। ‘चित्रकूट’ नामक इस स्थान पर ही राम ने अपने लिए पर्ण कुटी बनाई।

प्रश्न 8.
शृंगवेरपुर के राजा निषादराज ने जब भरत के साथ सेना देखी तो उन्हें क्या संदेह हुआ?
उत्तर:
निषादराज ने सोचा कि कहीं भरत राजमद में आकर आक्रमण करने तो नहीं आ रहा?

प्रश्न 9.
भरत द्वारा दिए गए किस समाचार को सुनकर राम सन्न रह गए?
उत्तर:
भरत ने जब पिता की मृत्यु का समाचार राम को दिया तो वे शोक में डूब गए।

प्रश्न 10.
भरत ने राम से क्या विनती की?
उत्तर:
भरत ने राम से राज-ग्रहण की विनती की। उन्होंने राम से अयोध्या लौटने का आग्रह किया। राम ने कहा कि पिता की आज्ञा का पालन अनिवार्य है। पिता की मृत्यु के बाद मैं उनका वचन नहीं तोड़ सकता।

प्रश्न 11.
राम ने वशिष्ठ एवं अन्य सभासदों को अयोध्या लौट चलने के प्रस्ताव को क्या कहकर अस्वीकार किया?
उत्तर:
राम ने कहा-“चाहे चंद्रमा अपनी जगह छोड़ दे, सूर्य पानी की तरह ठंडा हो जाए, हिमालय शीतल न रहे, समुद्र की मर्यादा भंग हो जाए; परंतु मैं पिता की आज्ञा से विरत नहीं हो सकता। मैं उन्हीं की आज्ञा से वन आया हूँ, उन्हीं की आज्ञा से भरत को राजगद्दी संभालनी चाहिए।”

प्रश्न 12.
भरत के किस आग्रह को राम ने स्वीकार कर लिया?
उत्तर:
भरत ने कहा कि आप नहीं लौटेंगे तो मैं भी खाली हाथ नहीं जाऊँगा। आप मुझे अपनी खड़ाऊँ दे दें। मैं चौदह वर्ष उन्हीं की आज्ञा से राज-काज चलाऊँगा।

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Bal Ram Katha Class 6 Chapter 5 Summary

भरत अपनी ननिहाल में थे। उन्होंने एक विचित्र स्वप्न देखा कि समुद्र सूख गया है। चंद्रमा धरती पर गिर पड़ा है। वृक्ष भी सूख गए हैं। वे रथ पर बैठे हैं, जिसे गधे खींच रहे हैं। भरत अपने मित्रों से स्वप्न का वर्णन कर ही रहे थे, तभी अयोध्या से एक घुड़सवार वहाँ पहुँचा। भरत को तुरन्त अयोध्या बुलाया गया था। भरत को कैकेयराज ने विशाल सेना के साथ विदा किया। वे आठ दिन बाद अयोध्या पहुँचे। अयोध्या को देखकर उनका मन शंकित हो गया। सब कुछ सूना-सूना लग रहा था। भरत राजभवन पहुंचे तो कैकेयी ने उन्हें गले लगाते हुए महाराज के निधन का संदेश दिया। भरत यह सुनकर शोक में डूब गए।

भरत तुरंत राम के पास जाना चाहते थे। कैकेयी ने बताया कि राम को महाराज ने चौदह वर्ष का वनवास दे दिया है। लक्ष्मण और सीता भी उनके साथ गए हैं। कैकेयी ने दोनों वरदान की पूरी कथा भरत को सुनाई और कहा-अयोध्या का निष्कंटक राज्य अब तुम्हारा है। भरत ने चीखते हुए कहा-तुमने घोर अपराध किया है। वन राम को नहीं, तुम्हें जाना चाहिए था। मुझको यह राज्य नहीं चाहिए, तभी सभासद भी वहाँ आ गए। भरत ने कहा कि माँ के अपराध में मेरा कोई हाथ नहीं है। मैं राम के पास जाऊँगा और उनको मनाकर लाऊँगा। भरत स्वयं पर नियंत्रण नहीं रख सके। वे मूर्छित होकर गिर पड़े। वे कौशल्या के पैरों पर गिरकर रोने लगे। कौशल्या ने भरत से कहा-पुत्र! तुम राज करो, पर मुझ पर एक दया करो कि मुझे राम के पास भिजवा दो। भरत ने कहा-माता! मैं राम का अहित कभी नहीं सोच सकता। कौशल्या ने भरत को क्षमा कर दिया।

सुबह तक शत्रुघ्न को पता चल गया कि कैकेयी के कान किसने भरे हैं। वे मंथरा को बालों से पकड़कर खींचते हुए भरत के पास लाए। भरत ने बीच-बचाव करके मंथरा को छुड़वा दिया।

मुनि वशिष्ठ अयोध्या की गद्दी को खाली नहीं रहने देना चाहते थे। उन्होंने भरत से गद्दी संभालने के लिए कहा। भरत ने वशिष्ठ के प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया। उसने कहा-हम वन जायेंगे और राम को वापिस लायेंगे। भरत गुरु वशिष्ठ और अन्य नगरवासियों के साथ वन की ओर चल पड़े। भरत के साथ विशाल सेना भी थी। भरत को राम के चित्रकूट आने की सूचना मिल गई थी। निषादराज विशाल सेना को देखकर कुछ शंकित से हुए। सही स्थिति का पता चलने पर उन्होंने भरत की अगवानी की। आगे घने जंगल में राम पर्णकुटी बनाकर लक्ष्मण और सीता के साथ रह रहे थे। लक्ष्मण ने देखा कि विशाल सेना चली आ रही है। सेना का ध्वज पहचानकर लक्ष्मण ने राम से कहा कि भरत हमें मारने के लिए आ रहा है। राम ने लक्ष्मण को समझाया कि वह हमसे मिलने आया होगा। लक्ष्मण राम की बात मान गए।

भरत अपनी सेना को पहाड़ी से नीचे रोककर शत्रुघ्न को साथ लेकर नंगे पाँव ऊपर चढ़े। राम एक शिला पर बैठे हुए थे। भरत दौड़कर राम के चरणों में गिर पड़े। भरत पिता की मृत्यु का समाचार देने का साहस नहीं जुटा पा रहे थे। बड़ी कठिनाई से उन्होंने यह समाचार राम को दिया। राम शोक में डूब गए। राम पहाड़ी से उतरकर गुरुजनों व माताओं से मिलने नीचे उतरे। राम ने सहज भाव से कैकेयी को प्रणाम किया। कैकेयी मन ही मन पश्चाताप कर रही थी। अगले दिन भरत ने राम से अयोध्या लौटने का आग्रह किया। राम ने कहा-पिता की आज्ञा का पालन अनिवार्य है। पिता की मृत्यु के बाद मैं उनका वचन नहीं तोड़ सकता। इस समय यही उचित है कि तुम राज-काज संभालो, यह पिता की आज्ञा है।

मुनि वशिष्ठ भी बार-बार राम से लौटने का अनुरोध कह रहे थे। वे कह रहे थे-रघुकुल की परंपरा में राजा ज्येष्ठ पुत्र ही होता है। राम ने दृढ़ता पूर्वक उनके अनुरोध को अस्वीकार कर दिया। राम जब किसी भी तरह लौटने को तैयार नहीं हुए तो भरत ने कहा कि मैं भी खाली हाथ नहीं जाऊँगा। आप मुझे अपनी खड़ाऊँ दे दें। चौदह वर्ष उन्हीं की आज्ञा से राज-काज चलाऊँगा। भरत का यह आग्रह राम ने स्वीकार कर लिया। भरत राम की चरण-पादुकाएँ लेकर अयोध्या लौटे। उन पादुकाओं का पूजन किया गया और उनको गद्दी पर स्थापित कर दिया।

Bal Ram Katha Class 6 Questions and Answers Summary Chapter 4 राम का वन-गमन

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Class 6 Hindi Bal Ram Katha Chapter 4 Question Answers Summary राम का वन-गमन

Bal Ram Katha Class 6 Question Answers Chapter 4

प्रश्न 1.
महामंत्री सुमंत्र असहज क्यों थे?
उत्तर:
राम के राज्याभिषेक का इतना बड़ा आयोजन हो रहा था, परन्तु महाराज कल शाम से दिखाई नहीं दे रहे थे। उनका मन शंकित हो रहा था। इस कारण वे असहज लग रहे थे।

प्रश्न 2.
महाराज के बारे में सुमंत्र के पूछने पर कैकेयी ने क्या उत्तर दिया?
उत्तर:
कैकेयी का कहना था कि चिंता की कोई बात नहीं है। महाराज राज्याभिषेक के उत्साह में रातभर जागे हैं। वे बाहर निकलने से पूर्व राम से मिलना चाहते हैं। आप उन्हें बुला लाइए।

प्रश्न 3.
किसी के कुछ न बोलने पर राम के पूछने पर कैकेयी ने राम से क्या कहा?
उत्तर:
कैकेयी ने राम से कहा कि महाराज दशरथ ने मुझे एक बार दो वरदान दिए थे। मैंने कल रात वही दोनों वर माँगे जिनसे वे पीछे हट रहे हैं। यह शास्त्र-सम्मत नहीं है। मैं चाहती हूँ कि राज्याभिषेक भरत का हो और तुम चौदह वर्ष वन में रहो।

प्रश्न 4.
कैकेयी की बात को सुनकर राम की क्या प्रतिक्रिया हुई?
उत्तर:
राम ने संयत होकर कैकेयी की बात को सुनकर कहा-“पिता का वचन अवश्य पूरा होगा। भरत को राजगद्दी दी जाए। मैं आज ही वन चला जाऊँगा।”

प्रश्न 5.
राम ने कौशल्या को कैसे समझाया?
उत्तर:
राम ने कौशल्या से कहा-“माता, यह राजाज्ञा नहीं बल्कि एक पिता की आज्ञा है। उनकी आज्ञा का उल्लघंन मेरी शक्ति से परे है।” कौशल्या भी जब साथ चलने के लिए बोलीं तो उन्होंने कहा-“पिता जी को इस समय आपकी सेवा की आवश्यकता है। अतः आप यहीं रहकर पिता जी की सेवा करें।

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प्रश्न 6.
राम के वन-गमन को लेकर लक्ष्मण का क्या विचार था?
उत्तर:
राम के इस प्रकार वन जाने से लक्ष्मण असमहत थे। वे इसे कायरों का जीवन मानते थे। लक्ष्मण ने राम से कहा- “आप बाहुबल से अयोध्या का सिंहासन लें, देखता हूँ कौन विरोध करता है।”

प्रश्न 7.
राम ने सीता को अयोध्या में ही रहने को कहा। सीता ने क्या तर्क देकर राम की बात का खंडन किया?
उत्तर:
सीता ने राम से कहा कि मेरे पिता का आदेश है कि मैं छाया की तरह सदा आपके साथ रहूँ। राम को सीता की बात माननी पड़ी।

प्रश्न 8.
राम के वन-गमन का समाचार सुनकर नगरवासियों की क्या प्रतिक्रिया थी?
उत्तर:
नगरवासी दशरथ और कैकेयी को धिक्कार रहे थे। वे लोग बहुत ही उदास थे। सड़कें उनके आँसुओं से गीली हो गई थीं। वे नहीं चाहते थे कि राम और सीता वन को जाएं।

प्रश्न 9.
राम जब आशीर्वाद लेने अपने पिता के पास गए तो उन्होंने राम से क्या कहा?
उत्तर:
दशरथ ने राम से कहा-“पुत्र, मेरी मति मारी गई। मैं वचनबद्ध हूँ, परन्तु तुम्हारे ऊपर कोई बंधन नहीं है। तुम मुझे बंदी बना लो और राज-काज संभालो। यह सिंहासन केवल तुम्हारा है।”

प्रश्न 10.
“कि तुम मुझे बंदी बनाकर राज संभालो”, पिता के इन वचनों को सुनकर राम की क्या प्रतिक्रिया हुई?
उत्तर:
पिता के इन वचनों ने राम को झकझोर कर रख दिया। वे बहुत दुःखी थे। उन्होंने नीति का साथ नहीं छोड़ा। वे बोले-आंतरिक पीड़ा आपको ऐसा कहने के लिए विवश कर रही है। मुझे राज्य का लोभ नहीं है।

प्रश्न 11.
राम के वन चले जाने पर दशरथ की कैसी दशा हो गई?
उत्तर:
राम के वन चले जाने पर दशरथ की दशा और बिगड़ गई। राम के वन जाने के छह दिन बाद ही दशरथ का देहांत हो गया।

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Bal Ram Katha Class 6 Chapter 4 Summary

कोप-भवन के घटनाक्रम की किसी को जानकारी नहीं थी। सब लोग राम के राज्याभिषेक की तैयारी में लगे थे। महामंत्री सुमंत्र कुछ असहज थे। वे महर्षि वशिष्ठ के पास आए और महाराज के बारे में पूछा । महाराज को पिछली शाम से किसी ने नहीं देखा था। वे इसको आयोजन की व्यस्तता समझ रहे थे। सुमंत्र तत्काल राजभवन पहुंचे। कैकेयी के महल की सीढ़ियाँ चढ़ते हुए उनको एक अनजान-सा भय लग रहा था। सुमंत्र ने देखा कि महाराज कैकेयी के महल में दीन-हीन दशा में पड़े हुए हैं।.सुमंत्र का मन भाँपते हुए कैकेयी ने कहा- “महाराज राज्याभिषेक के उत्साह में रात भर जागे हैं”। महल से बाहर निकलने से पूर्व वे राम से बात करना चाहते हैं। सुमंत्र राम को लेने राम के भवन गए और अपने साथ ही उनको लेकर महाराज के पास आ गए। राम को देखकर महाराज फिर मूर्छित हो गए। कोई कुछ बोलता ही न था।

राम ने कैकेयी से पूछा कि माता तुम्हीं बताओ क्या बात है? कैकेयी ने राम को दो वर माँगने वाली बात बताई और कहा कि महाराज अपने दिए वचन से पीछे हट रहे हैं, जो शास्त्रसम्मत नहीं है। मैं चाहती हूँ कि राज्याभिषेक भरत का हो और तुम चौदह वर्ष तक वन में रहो। राम ने संयत रहकर दृढ़ता पूर्वक कहा-पिता का वचन अवश्य पूरा होगा। भरत.को राजगद्दी मिलेगी और मैं आज ही वन को चला जाऊँगा। कैकेयी के महल से निकलकर राम ने अपनी माता कौशल्या को यह जानकारी दी। कौशल्या यह सुनकर अपनी सुध-बुध खो बैठी। कौशल्या ने इसे राजा का एक गलत निर्णय बताते हुए राम को रोकना चाहा, परन्तु राम ने कहा-यह पिता की आज्ञा है, इसका पालन अवश्य होगा। लक्ष्मण ने राम के इस प्रकार वन जाने को कायरों का कार्य बताया। वे राम से कह रहे थे कि अपने बाहुबल से अयोध्या की गद्दी प्राप्त करो। राम ने लक्ष्मण से कहा कि मुझे अधर्म का सिंहासन नहीं चाहिए।

कौशल्या ने अपने आपको संभालते हुए राम को गले लगाया। वह भी राम के साथ वन को जाना चाहती थीं। राम ने अपनी माता से कहा कि इस समय पिता जी को आपकी सेवा की आवश्यकता है, अतः आप यहीं रहें। इसके बाद राम सीता के पास गए और सारी बात बताई। सीता ने कहा कि मैं भी आपके साथ चलूँगी। राम ने सीता को वन में होने वाली कठिनाइयों के बारे में बताया, परन्तु सीता नहीं मानी। तभी लक्ष्मण भी वहाँ आ गए। वे राम के साथ जाना चाहते थे। राम ने उनको चलने की स्वीकृति दे दी।

राम के वन जाने का समाचार पूरी अयोध्या में फैल चुका था। प्रजा बहुत दुखी थी। वे उनको रोकना चाहते थे। राम अपने पिता की आज्ञा लेने के लिए उनके पास गए। राम को देखकर उनमें प्राणों का संचार हुआ। मंत्रीगण कैकेयी को समझा रहे थे, परन्तु वह अपनी ज़िद पर अड़ी हुई थी। दशरथ राम से कह रहे थे–“पुत्र! मेरी मति मारी गई जो मैंने कैकेयी को दो वर दिए। तुम तो स्वतंत्र हो। तुम मुझे बंदी बनाकर कारागार में डाल दो और राज्य पर अधिकार कर लो।” राम ने कहा-“मुझे राज्य का लोभ नहीं है। आप हमें आशीर्वाद देकर विदा करें।” इसी बीच रानी कैकेयी ने राम-लक्ष्मण और सीता के लिए वल्कल वस्त्र दिए। वे वल्कल वस्त्र पहनकर वन जाने को तैयार हो गए। तभी वशिष्ठ क्रोधित होकर बोले-“सीता वन जाएगी तो समस्त अयोध्यावासी भी वन जायेंगे। भरत सूनी अयोध्या पर राज करेंगे।” राम ने रथ पर चढ़कर सुमंत्र से कहा कि महामंत्री, आप रथ तेजी से चलाएँ। नगरवासी रथ के पीछे दौड़े। राजा दशरथ और नगरवासी भी रथ के पीछे-पीछे चल दिए। उनकी आँखों में आँसू देखकर राम विचलित हो गए। राजा दशरथ लगातार रथ की दिशा में आँखें गड़ाए देखते रहे। जब तक रथ आँखों से ओझल नहीं हो गया। वन अभी भी दूर था। वे तमसा नदी के किनारे पहुँचे। नगरवासी भी साथ-साथ आ रहे थे। उन्होंने भी नदी-किनारे ही रात बिताई। वे नगरवासियों को वहीं छोड़कर चुपचाप वहाँ से आगे चले गए। शाम होते ही वे गंगा नदी के किनारे पहुँचे। निषादराज ने उनका स्वागत किया। अगली सुबह राम ने महामंत्री सुमंत्र को समझा-बुझाकर वापिस भेज दिया।

सुमंत्र खाली रथ लेकर अयोध्या लौटे तो लोगों ने उनको घेर लिया और राम के बारे में पूछा। सुमंत्र बिना कुछ बोले राजभवन गए। दशरथ ने सुमंत्र से राम-लक्ष्मण और सीता के बारे में पूछा। सुमंत्र ने एक-एक कर महाराज के प्रश्नों के उत्तर दिए। राम-गमन के छठे दिन दशरथ ने प्राण त्याग दिए। अगले दिन वशिष्ठ ने मंत्री-परिषद्.से चर्चा की। सबकी एक राय थी कि राजगद्दी खाली नहीं रहनी चाहिए। तय हुआ कि भरत को तत्काल अयोध्या बुलाया जाए।

लंका रोहण के लिए वानरों के कितने दल बनाएं गए?

Answer: लंकारोहण के लिए चार वानरों के दल बनाए गए। Question 85. जामवंत किस बात में सफल हुए? Answer: जामवंत रावण तक पहुँचने में सफल हुए।

लंकारोहन के लिए किसने और कितने दिनों में पुल तैयार किया था?

प्रश्न-1 लंकारोहण के लिए किसने और कितने दिनों में पुल तैयार किया? उत्तर- लंकारोहण के लिए नल ने पाँच दिनों में पुल तैयार किया

लंका जाते समय हनुमान के रास्ते में कौन कौन सी बाधाएं आई?

समुद्र की आज्ञा पाकर मैनाक पर्वत आकाश की ओर ऊंचा उठ गया और तीव्र गति से जाते हुए हनुमान जी के मार्ग में आ गया । हनुमान जी ने समझा कि यह पर्वत उनके मार्ग में बाधा बन रहा है । इसलिए उन्होंने उस पर पद प्रहार करना चाहा ।

विभीषण ने वानरों को क्या दिया?

उत्तर: विभीषण ने रावण को यह समझाने का प्रयास किया कि आप सीता को वापस लौटा दें। राम से युद्ध न करना ही ठीक हैं। इसी में सबकी भलाई है।