लेखक प्रेमचंद ने मासिक वेतन को पूर्णिमा सी का चांद क्यों कहा है? - lekhak premachand ne maasik vetan ko poornima see ka chaand kyon kaha hai?

Namak Ka Daroga Class 11 Question Answer ,

Namak Ka Daroga Class 11 Question Answer Hindi Aroh Bhag 1 Chapter 1 , नमक का दरोगा कक्षा 11 के प्रश्न उत्तर हिंदी आरोह भाग 1 पाठ 1 

नमक का दरोगा कक्षा 11 के प्रश्न उत्तर

Note –

  1. “नमक का दरोगा” पाठ के MCQS पढ़ने के लिए Link में Click करें – Next Page
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Namak Ka Daroga Class 11 NCERT Solution

प्रश्न 1.
कहानी का कौन-सा पात्र आपको सर्वाधिक प्रभावित करता है और क्यों?
उत्तर-

इस कहानी का मुख्य नायक दरोगा बंशीधर अपनी ईमानदारी , धर्मनिष्ठा व कर्तव्य परायणता जैसे दुर्लभ गुणों के कारण हमें सबसे अधिक प्रभावित करता है। वह एक ऐसे विभाग में कार्य करता है जहां आला अधिकारी से लेकर चपरासी तक , हर कोई भ्रष्ट है और हर वक्त रिश्वतखोरी के चक्कर में रहते हैं।

पंडित अलोपीदीन तो अपने धन से उसकी ईमानदारी को खरीदने की कोशिश करते हैं। यहां तक कि नायक के पिता भी नायक को भ्रष्ट होने की ही सीख देते हैं।

इतना सब कुछ होने के बावजूद भी नायक बंशीधर अपनी ईमानदारी पर कायम रहते हुए अपने कर्तव्य को निभाते है। भले ही उसे इस चक्कर में अपनी नौकरी भी गंवानी पड़ती है। मगर अंततः पंडित अलोपीदीन भी उसकी इमानदारी के आगे नतमस्तक हो , उसे अपनी जायदाद का मैनेजर नियुक्त करते हैं। 

प्रश्न 2.
“नमक का दारोगा” कहानी में पंडित अलोपीदीन के व्यक्तित्व के कौन-से दो पहलू (पक्ष) उभरकर आते हैं?
उत्तर-

पंडित अलोपीदीन को अपने धन का बहुत घमंड था और उसे यह भी विश्वास था कि वह किसी को भी अपने धन के बल पर खरीद सकता है। इसीलिए उसने दरोगा बंशीधर को भी रिश्वत देने की कोशिश की।

गिरफ्तार होने के बाद जब उसे अदालत में लाया गया तो उसने वहां पर भी वकीलों और गवाहों को अपने पैसे से खरीद कर अपने आप को सभी आरोपों से मुक्त करवा दिया। जो उसके भ्रष्ट , बेईमान और चालाक होने का सबूत देते हैं।

लेकिन उसके व्यक्तित्व का एक उजला पक्ष भी है जो बेहद प्रशंसनीय है। वंशीधर को दरोगा की नौकरी से निकलवाने के बाद पंडित अलोपीदीन को मन ही मन बहुत पछतावा हुआ। क्योंकि वह जानता था कि आज के समय में बंशीधर जैसे ईमानदार व कर्तव्यपरायण व्यक्ति मिलना मुश्किल है। वह उसकी ईमानदार से भी प्रभावित था। इसीलिए उसने उसे अपनी सारी जायदाद का स्थाई मैनेजर नियुक्त कर दिया। 

प्रश्न 3.
कहानी के लगभग सभी पात्र समाज की किसी-न-किसी सच्चाई को उजागर करते हैं। निम्नलिखित पात्रों के संदर्भ में पाठ से उस अंश को उद्धृत करते हुए बताइए कि यह समाज की किस सच्चाई को उजागर करते हैं ?

(क)वृद्ध मुंशी

उत्तर-

“नौकरी में ओहदे की ओर ध्यान देना। यह तो पीर की मजार है। निगाह चढ़ावे और चादर पर रखनी चाहिए। ऐसा काम ढूंढना जहां कुछ ऊपरी आय हो। मासिक वेतन तो पूर्णमासी का चांद है।  जो एक दिन दिखाई देता है और घटते-घटते लुप्त हो जाता है……”।

बंशीधर के पिता के इस कथन से पता चलता है कि समाज में भ्रष्टाचार व बेईमानी की जड़ें कितनी गहरी थी। साथ में पिता अपने घर की दयनीय आर्थिक स्थिति को सुधारने व जवान होती बेटियों की शादी की चिंता में बेटे को भ्रष्टाचार और रिश्वतखोरी का मार्ग अपनाने की सीख देते हैं।

वह अपने बेटे को ऐसी नौकरी करने की सलाह देते हैं जहां पद प्रतिष्ठा भले ही कम हो मगर ऊपरी आमदनी ज्यादा होती हो। 

(ख) वकील

उत्तर-

 “वकीलों ने यह फैसला सुना और उछल पड़े”। 

इस कथन से न्यायिक व्यवस्था में फैले भ्रष्टाचार का पता चलता है। जहां पंडित अलोपीदीन ने वकीलों को बड़ी आसानी से अपने पैसे के बल पर खरीद लिया था। 

(ग)शहर की भीड़

उत्तर-

“जिसे देखिए , वही पंडित जी के इस व्यवहार पर टीका टिप्पणी कर रहा था। निंदा की बौछारों हो रही थी। मानो संसार से अब पापी का पाप कट गया। पानी को दूध के नाम पर बेचने वाला ग्वाला , कल्पित रोजाना पर्चे भरने वाले अधिकारी वर्ग , रेल में बिना टिकट सफर करने वाले बाबू लोग ,  जाली दस्तावेज बनाने वाले सेठ और साहूकार , यह सब-के-सब देवताओं की भांति गर्दन चला रहे थे….” ।

इन पंक्तियों से पता चलता है कि समाज के हर वर्ग के लोग कहीं ना कहीं भ्रष्टाचार में लिफ्त थे।  चाहे वह दूधवाला हो या ट्रेन में बिना टिकट यात्रा करने वाला। लेकिन ये सब वो लोग थे जिन्हें अपनी गलतियां नजर नहीं आती थी लेकिन दूसरों का तमाशा देखने के लिए सबसे आगे रहते थे। 

पंडित अलोपीदीन के गिरफ्तार होने पर शहर की भीड़भाड़ की टीका-टिप्पणी करना , समाज के लोगों की संवेदनहीनता को दर्शाता है। 

प्रश्न 4.
निम्न पंक्तियों को ध्यान से पढ़िए ?

“नौकरी में ओहदे की ओर ध्यान मत देना, यह तो पीर का मज़ार है। निगाह चढ़ावे और चादर पर रखनी चाहिए। ऐसा काम ढूँढ़ना जहाँ कुछ ऊपरी आय हो। मासिक वेतन तो पूर्णमासी का चाँद है जो एक दिन दिखाई देता है और घटते-घटते लुप्त हो जाता है। ऊपरी आय बहता हुआ स्रोत है जिससे सदैव प्यास बुझती है। वेतन मनुष्य देता है , इसी से उसमें वृद्धि नहीं होती। ऊपरी आमदनी ईश्वर देता है , इसी से उसकी बरकत होती है , तुम स्वयं विद्वान हो , तुम्हें क्या समझाऊँ”।

(क) यह किसकी उक्ति है?

उत्तर-

यह दरोगा बंशीधर के पिता का कथन है। 

(ख) मासिक वेतन को पूर्णमासी का चाँद क्यों कहा गया है ?

उत्तर-

जिस प्रकार पूर्णिमा के दिन आसमान में पूरा चांद दिखाई देता है। और फिर दिन-प्रतिदिन घटते- घटते अमावस्या के दिन तक पूरी तरह से दिखाई देना बंद हो जाता है।

ठीक उसी प्रकार महीने के पहले दिन व्यक्ति को मासिक वेतन मिलता है। लेकिन धीरे-धीरे घर व अन्य जरूरतों को पूरा करने में सारा वेतन खर्च होता चला जाता है और महीने के अंत तक यह पूरी तरह से समाप्त हो जाता है। इसीलिए ऐसे “पूर्णमासी का चाँद” कहा गया हैं। 

(ग) क्या आप एक पिता के इस वक्तव्य से सहमत हैं ?

उत्तर-

नहीं , मैं दरोगा बंशीधर के पिता के इस कथन से पूरी तरह से असहमत हूं। क्योंकि रिश्वत लेना और भ्रष्टाचार करना , दोनों ही गलत है। अगर व्यक्ति अपनी जरूरतों को नियंत्रित करते हुए चले तो अपनी मेहनत और ईमानदारी से वह जो भी कमाता है उसमें उसका आराम से गुजारा हो सकता है। और मेहनत से कमाये हुए धन से जीवन में सुख-शान्ति बनी रहती है। 

प्रश्न 5.
“नमक का दारोगा” कहानी के कोई दो अन्य शीर्षक बताते हुए उसके आधार को भी स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-

नमक का दरोगा के दो अन्य शीर्षक निम्न है। 

1. ईमानदार दरोगा – यह कहानी पूरी तरह से बंशीधर की ईमानदारी पर टिकी है। जो भ्रष्ट लोगों के बीच में रहकर भी अपने कर्तव्य को पूर्ण ईमानदारी के साथ निभाता है।

2. ईमानदारी का फल दरोगा बंशीधर की ईमानदारी के कारण ही उसे अंत में पंडित अलोपीदीन अपना मैनेजर नियुक्त करता हैं। 

प्रश्न 6.
कहानी के अंत में अलोपीदीन के वंशीधर को अपना मैनेजर नियुक्त करने के पीछे क्या कारण हो सकते हैं ? तर्क सहित उत्तर दीजिए। आप इस कहानी का अंत किस प्रकार करते ?
उत्तर-

पंडित अलोपीदीन खुद एक भ्रष्ट , बेईमान व चालाक व्यक्ति था। वह यह समझता था कि पैसे के बल पर किसी भी व्यक्ति को खरीदा जा सकता है या कोई भी काम करवाया जा सकता हैं। लेकिन जब उसने अपने जीवन में पहली बार किसी ऐसे व्यक्ति (दरोगा वंशीधर) को देखा जिसकी ईमानदारी को वह अपने पैसे से नहीं खरीद पाया तो वह आश्चर्य चकित रह गया। 

पंडित अलोपीदीन यह भी जानता था कि आज के समय में इस तरह के ईमानदार , कर्तव्य परायण व धर्मनिष्ठ व्यक्ति मिलना मुश्किल है। और उसको अपने मैनेजर के रूप में किसी ऐसे ही व्यक्ति की जरूरत थी जो अपना काम पूरी ईमानदारी के साथ करें। इसीलिए उसने उसे मैनेजर के पद पर नियुक्त किया।

मैं भी इस कहानी का अंत कुछ इसी तरह से करता। 

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पाठ के आसपास

प्रश्न 1.

दरोगा बंशीधर गैरकानूनी कार्यो की वजह से पंडित अलोपीदीन को गिरफ्तार करता है। लेकिन कहानी के अंत में इसी पंडित अलोपीदीन की सहृदयता पर मुग्ध होकर उसके यहां मैनेजर की नौकरी करने को तैयार हो जाता है। आपके विचार से वंशीधर को ऐसा करना उचित था का ऐसा करना उचित था ? आप उसकी जगह होते तो क्या करते ?

उत्तर-

दरोगा बंशीधर का पंडित अलोपीदीन की सहृदयता पर मुग्ध होकर उसके यहां मैनेजर की नौकरी करने को तैयार हो जाना उचित नहीं था। पंडित अलोपीदीन बहुत ही चालक , बेईमान व भ्रष्ट व्यक्ति हैं।

वह जानता था कि दरोगा बंशीधर बहुत ही ईमानदार हैं और उसे अपने व्यवसाय को संभालने के लिए ऐसे ही किसी आदमी की जरूरत थी। इसीलिए वह सिर्फ अपने फायदे के लिए उसे मैनेजर के पद पर नियुक्त करता हैं। 

मगर दरोगा बंशीधर भी पंडित अलोपीदीन की असलियत जानते थे। इसीलिए वो अपने आत्मसम्मान व स्वाभिमान को बरकरार रखते हुए इस नौकरी को ठुकरा सकते थे। 

मैं अगर उसकी जगह होता तो , मैं यह नौकरी कभी स्वीकार नहीं करता। 

प्रश्न 2.

नमक विभाग के दरोगा पद के लिए बड़े- बड़ों का जी ललचाता था। वर्तमान समाज में ऐसा कौन सा पद होगा जिसे पाने के लिए लोग लालायित रहते होंगे और क्यों ?

उत्तर-

वर्तमान समय में लगभग सभी सरकारी विभागों में ऊपरी आमदनी कमाने की संभावनाएं बनी रहती ही हैं। लेकिन कुछ विभाग जैसे लोक निर्माण विभाग , बिजली व जल विभाग , आयकर , आयात- निर्यात विभाग आदि में जाने को लोग ज्यादा लालायित रहते हैं। क्योंकि यहां ऊपरी आमदनी मिलने की संभावना ज्यादा रहती है। 

प्रश्न 3.

अपने अनुभवों के आधार पर बताइए कि जब आपके तर्कों ने आपके भ्रम को पुष्ट किया हो।  

उत्तर-

समाज में कुछ लोग ऐसे भी हैं जो बहुत लोक लुभावनी बातें करते हैं लेकिन खुद अपनी बातों पर अमल नहीं करते हैं। हमारे क्षेत्र के विधायक साहब को एक स्कूल के वार्षिक समारोह में अतिथि के रूप में बुलाया गया था जहां वो अपने भाषणों के द्वारा बच्चों को ईमानदारी का पाठ पढ़ा रहे थे।

और खुद को भी बिल्कुल पाक-साफ व ईमानदारी से कार्य करने वाला “जनता का सच्चा हितैषी” बताने की कोशिश में लगे थे। जिसे सुनकर मैं भ्रमित था। मेरा मन नहीं मान रहा था क्योंकि मैंने उनकी बेईमानी के कई किस्से सुने थे।  

कुछ दिनों बाद अखबार के माध्यम से पता चला कि क्षेत्र के विकास के लिए आई विधायक निधि को विधायक साहब खुद ही खा गए और विकास सिर्फ कागजों में ही करा दिया। मेरे तर्क ने मेरे भ्रम को पुष्ट किया। 

Namak Ka Daroga Class 11 Question Answer 

समझाइए तो जरा

प्रश्न 1.

नौकरी में ओहदे की ओर ध्यान मत देना , यह तो पीर की मजार है। निगाह चढ़ावे और चादर पर रखनी चाहिए ?

उत्तर –

नमक का दरोगा कहानी में यह पंक्तियां बंशीधर के पिता द्वारा कही गई है। ये पंक्तियां आज के समय में भी उतनी ही प्रसांगिक है जितनी तब थी ।क्योंकि आज भी लोग ऐसे पदों को पाने के लिए ज्यादा प्रयासरत रहते हैं जहां पर पद प्रतिष्ठा भी अच्छी हो , साथ में अच्छे मासिक वेतन के साथ साथ जबरदस्त ऊपरी आमदनी भी होती हो। 

कुछ लोग पद प्रतिष्ठा से ज्यादा ऊपरी आमदनी को अधिक महत्वपूर्ण मानते हैं। क्योंकि कुछ ऐसे भी पद होते हैं जो पद प्रतिष्ठा के हिसाब से भले ही छोटे हों मगर उसमें आमदनी जबरदस्त होती हैं। जैसे हमारे सरकारी विभागों में बाबू का पद (क्लर्क) आदि। 

प्रश्न 2.

इस विस्तृत संसार में उनके लिए धैर्य अपना मित्र , बुद्धि पथ प्रदर्शक और आत्मावलंबन ही अपना सहायक था ?

उत्तर –

यह बात कहानी के मुख्य पात्र दरोगा बंशीधर के लिए कही गई है। जो नमक विभाग में व्याप्त भ्रष्टाचार और जबरदस्त ऊपरी कमाई के लालच के प्रभाव से अपने आप को बचाने की कोशिश करते हैं। 

ये पंक्तियों उन लोगों पर सटीक बैठती हैं जो अपना जीवन पूरी सच्चाई , इमानदारी , धैर्य व कर्तव्यनिष्ठ होकर जीना पसंद करते हैं। भ्रष्टाचार व बेईमानी से दूर रहते हैं।

प्रश्न 3.

तर्क ने भ्रम को पुष्ट किया ?

उत्तर –

एक रात बंशीधर जब गहरी नींद में सोए हुए थे। तब अचानक गाड़ियों व मल्लाहों की आवाज से उनकी नींद खुल गई। और वो सोचने लगते हैं कि इतनी रात गये गाड़ियां पुल क्यों पार कर रही हैं। कोई ना कोई गड़बड़ अवश्य है।

उन्होंने अपने इस भ्रम को तर्क देकर सोचने की कोशिश की तो उन्हें लगा कि शायद कोई गैर कानूनी काम किया जा रहा है। मौके पर पहुंच कर देखा तो उनका भ्रम व तर्क दोनों सही साबित हुए। 

प्रश्न 4.

न्याय व नीति सब लक्ष्मी के ही खिलौने हैं। इन्हें वह जैसा चाहती है नचाती हैं। 

उत्तर –

उपरोक्त पंक्तियां पंडित अलोपीदीन द्वारा कही गई है। ये पंक्तियां हमारे समाज व हमारी न्याय व्यवस्था में व्याप्त भ्रष्टाचार को उजागर करती हैं।

जो अदालतों धन के बल पर न्याय करती हैं। वहां दोषी तो आसानी से मुक्त हो जाते हैं और कई बार निर्दोषों को सजा मिल जाती हैं। क्या ऐसी अदालतों में साधारण लोग न्याय की कल्पना कर सकते हैं। 

प्रश्न 5.

दुनिया सोती थी , पर दुनिया की जीभ जागती थी। 

उत्तर –

जब दरोगा बंशीधर द्वारा पंडित अलोपीदीन को गिरफ्तार किया गया था। वह रात का वक़्त था और लोग सो रहे थे। लेकिन उनकी गिरफ्तारी की खबर अगले दिन सुबह होने तक पूरे शहर में फैल चुकी थी।

यही बात साबित करती है कि भले ही घटना रात में घटी हो और लोग गहरी नींद में सो रहे हो। मगर धटना के साक्षी कुछ लोगों द्वारा ऐसी बातों बहुत जल्दी फैलाई जाती हैं जिससे सभी लोगों को धटना की जानकारी बहुत जल्दी हो जाती हैं 

प्रश्न 6.

खेद ऐसी समझ पर ! पढ़ाना लिखाना सब अकारथ गया। 

उत्तर –

लेखक ने अपनी इस पंक्तियों के द्वारा समाज के उन लोगों पर कड़ा प्रहार किया है जो पढ़ाई लिखाई को ज्ञान अर्जित करने के बजाए धन अर्जित करने का एक साधन मात्र भर मानते हैं।

जैसे बंशीधर को नौकरी से निकाले जाने के बाद बंशीधर के पिता को लगा कि बंशीधर की सारी पढ़ाई-लिखाई बेकार चली गई है क्योंकि न तो वह बेईमानी कर अपनी नौकरी बचा पाया और न ही दुनियादारी को समझ पाया। 

प्रश्न 6.

धर्म ने धन को पैरों तले कुचल डाला। 

उत्तर –

उपरोक्त पंक्तियों में अपनी गाड़ियों को छुड़ाने के लिए पंडित अलोपीदीन ने बंशीधर को धन का लालच दिया लेकिन वंशीधर अपनी ईमानदारी से अपने कर्तव्य पर अड़े रहे और उन्होंने पंडित अलोपीदीन को गिरफ्तार कर लिया।

तब पंडित अलोपीदीन को लगा कि धर्म ने धन को पैरों तले कुचल दिया यानी वंशीधर ने अपनी ईमानदारी व अपने कर्तव्य को निभाने के लिए पंडित अलोपीदीन द्वारा दी गई रकम को ठुकरा दिया था। 

प्रश्न 7.

न्याय के मैदान में धर्म और धन पर युद्ध ठन गया। 

उत्तर –

पंडित अलोपीदीन को जब अदालत में पेश किया गया तो एक तरफ पंडित अलोपीदीन के धन के बल पर खरीदे हुए वकीलों और गवाहों की पूरी फौज खड़ी थी जो उनके पक्ष में झूठी गवाही व प्रमाण पेश करने को तैयार खड़े थे।

जबकि बंशीधर सिर्फ अपनी सत्यनिष्ठता और ईमानदारी के बल पर वहां खड़े थे।  अदालत में आरोप-प्रत्यारोप का दौर चला। धन ने न्याय को खरीद लिया और एक सच्चे व ईमानदार दरोगा को दोषी ठहरा दिया गया। 

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भाषा की बात

प्रश्न 1.

भाषा की चित्रात्मकता , लोकोक्तियां और मुहावरों के जानदार उपयोग तथा हिंदी-उर्दू के साझा रूप एवं बोलचाल की भाषा के लिहाज से यह कहानी अद्भुत है। कहानी में से ऐसे उदाहरण छांट कर लिखिए और यह भी बताइए कि इनके प्रयोग से कैसे कहानी का कथ्य अधिक असरदार बना। 

उत्तर –

भाषा की चित्रात्मक

  1. वकीलों का फैसला सुनकर उछल पडना। 
  2. अलोपीदीन का मुस्कुराते हुए बाहर आना।
  3. चपरासियों का झुक-झुक कर सलाम करना।
  4. लहरों ने अदालत की नींव हिला दी। 
  5. वंशीधर पर व्यंग बाणों की बौछार। 
  6. अलोपीदीन का सजे धजे रथ पर सवार होकर सोते जागते चले जाना। 

लोकोक्तियां एवं मुहावरे

  1. इज्जत धूल में मिलाना
  2. निगाह में बाँध लेना
  3. मुंह में कालिख लगाना
  4. कगारे का वृक्ष
  5. दांव पर पाना
  6. सीधे मुंह बात न करना
  7. आंखें डबडबाना
  8. शूल उठाना
  9. सिर माथे पर लेना
  10. जन्म भर की कमाई
  11. ठिकाना ना होना
  12. कातर दृष्टि से देखना
  13. मुंह छिपाना
  14. मन का मेल मिटाना
  15. हाथ मलना
  16. सिर पीट लेना
  17. मस्जिद में दिया जलाना

 हिंदी एवं उर्दू का साझा रूप

  1. बेगरज को दांव पर पाना जरा कठिन है। 
  2. इन बातों को निगाह में बांध लो  .

बोलचाल की भाषा

  1. बाबू साहब ऐसा न कीजिए , हम मिट जाएंगे। 
  2. क्या करें लड़का अभागा कपूत है। 
  3. कौन पंडित अलोपीदीन दातागंज के। 

उपरोक्त सभी विशेषताओं के कारण कहानी में सजीवता एवं रोचकता बनी रहती हैं जिससे यह कहानी काल्पनिक ना होकर वास्तविक प्रतीत होती है। 

प्रश्न 2.

कहानी में मासिक वेतन के लिए किन-किन विशेषणों का प्रयोग किया गया है। इसके लिए आप अपनी ओर से दो-दो और विशेषण बताइए। साथ ही विशेषण के आधार को तर्क सहित पुष्ट कीजिए

उत्तर –

कहानी में मासिक वेतन के लिए “पूर्णमासी का चांद” और “मनुष्य की देन” जैसे विशेषणों का प्रयोग किया गया है। मासिक वेतन के लिए दो और विशेषण निम्न हैं। 

खून पसीने की कमाई –

क्योंकि व्यक्ति महीने भर पूरी मैंने मेहनत करता है तब जाकर कहीं व्यक्ति के हाथ में मासिक वेतन आता है।

इंतजार का फल मीठा होता है

व्यक्ति पूरे माह अपने मासिक वेतन का इंतजार करता रहता है। जब अगले महीने की शुरुआत में मासिक वेतन मिलता है तो एक अजीब सी खुशी महसूस करता है। 

प्रश्न 3.

दी गई विशिष्ट अभिव्यक्तियों एक निश्चित संदर्भ में निश्चित अर्थ देती हैं। संदर्भ बदलते ही अर्थ भी परिवर्तित हो जाता है। आप किसी अन्य संदर्भ में इन भाषिक अभिव्यक्तियों का प्रयोग करते हुए समझाइए।

उत्तर –

बाबू जी का आशीर्वाद –

 आज जो भी मेरे पास है सब मेरे बाबूजी के आशीर्वाद का ही प्रसाद है।

सरकारी हुकुम

सरकारी हुकुम मिला है तो चुनाव ड्यूटी करनी ही पड़ेगी। 

दातागंज के

पंडित अलोपीदीन दातागंज के रहने वाले थे। 

कानपुर

कानपुर एक औद्योगिक नगर है जहां छोटे-बड़े उद्योग धंधे खूब फलते फूलते हैं। 

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लेखक ने मासिक वेतन को पूर्णमासी का चाँद क्यों कहा है?

मासिक वेतन तो पूर्णमासी का चाँद है जो एक दिन दिखाई देता है और घटते-घटते लुप्त हो जाता है। ऊपरी आय बहता हुआ स्रोत है जिससे सदैव प्यास बुझती है। वेतन मनुष्य देता है, इसी से उसमें वृद्ध नहीं होती। ऊपरी आमदनी ईश्वर देता है, उसी से उसकी बरकत होती है।

ख मासिक वेतन को पूर्णमासी का चाँद क्यों कहा गया है ग क्या आप एक पिता के इस वक्तव्य से सहमत हैं?

Explanation: मासिक वेतन को पूर्णमासी का चाँद कहा गया है, क्योंकि यह भी महीने में एक बार ही दिखाई देता है। इस दिन चाँद बहुत बड़ा दिखाई देता है| इसके बाद यह घटता चला जाता है और अंत में वह समाप्त हो जाता है। इसका अर्थ है कि पद ऊँचा हो यह जरूरी नहीं है, लेकिन जहाँ ऊपरी आय अधिक हो उसे स्वीकार कर लेना।

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