[ २७ ] Show रमज़ान के पूरे तीस रोज़ के बाद आज ईद आई है। कितना मनोहर; कितना
सुहावना प्रभात है। वृक्षों पर कुछ अजीब हरियाली है, खेतों में कुछ अजीब रौनक है, आसमान पर कुछ अजीब लालिमा है। आज का सूर्य देखो, कितना प्यारा, कितना शीतल है, मानों संसार को ईद की बधाई दे रहा है। गाँव में कितनी हलचल है। ईदगाह जाने की तैयारियाँ हो रही हैं। किसी के कुरते में बटन नहीं है। पड़ोस के घर से सुई-तागा लेने दौड़ा जा रहा है। किसी के जूते कड़े हो गये हैं, उनमें तेल डालने के लिए तेली के घर भागा जाता है। जल्दी-जल्दी बैलों की सानी-पानी दे दें। ईदगाह से लौटते-लौटते दोपहर हो जायेगा। तीन कोस का पैदल
रास्ता, फिर सैकड़ों आदमियों से मिलना-भेंटना। दोपहर के पहले लौटना असम्भव है। लड़के सबसे यादा प्रसन्न हैं। किसी ने एक रोज़ा रखा है, वह भी दोपहर तक, किसी ने वह भी नहीं है लेकिन ईदगाह जाने की खुशी उनके हिस्से की चीज़ हैं। रोज़े बड़े-बूढ़े के लिए होंगे। इनके लिए तो ईद है। रोज़ ईद का नाम रटते थे। आज वह आ गई। अब जल्दी पड़ी है कि लोग ईदगाह क्यों नहीं चलते। इन्हें गृहस्थी को चिन्ताओं से क्या प्रयोजन 1 सेवैयों के लिए दूध और शक्कर घर में है या नहीं, इनकी बला से, ये तो सेवैयाँ खायेंगे। वह क्या जानें कि
अब्ज़ान क्यों बदहवास चौधरी कायमअली के घर दौड़े जा रहे हैं। उन्हें क्या खबर कि चौधरी आज अखें बदल लें, तो यह सारी ईद मुहर्रम हो जाय। उनकी अपनी जेब में तो कुबेर को धन भरा हुआ है। बार-बार जेब से अपना खजाना निकालकर गिनते हैं और खुश होकर फिर रख लेते हैं। महमूद गिनता है, एक-दो, दस-बारह, ! उसके पास बारह पैसे हैं। मोहसिन के। थास एक, दो, तीन, आठ, नौ, पन्द्रह पैसे हैं। इन्हीं अनगिनती पैसों में अनगिनत चीजें लायेंगे-खिलौने, मिठाइयाँ, बिगुल, गेंद और जाने क्या-क्या। और सासे ज्यादा प्रसन्न हैं हामिद। वह
चार-पाँच साल का अरो-सूरत, दुबला-पतला लड़का, जिसका बाप गत वर्ष हैजे को भेंट हो गया और माँ न जाने क्यों पीली होती-होती। एक दिन मर गईं। किसी को पता न चलो, क्या बीमारी है। कहती भी तो कौन हामिद भीतर जाकर दादी से कहता है- तुम डरना नहीं अम्माँ, मैं सबसे पहले आऊँगा। बिल्कुल न डरना। अमीना का
दिल कचोट रहा है। गाँव के बच्चे अपने-अपने बाप के साथ जी रहे हैं। हामिद का'बाप अमीना के सिवा और कौन है। उसे कैसे अकेले मेले जाने दे। उस भीड़भाड़ में बच्चा कहीं खो जाय तो क्या हो। नहीं, अमीना उसे यों न जाने देगी। नन्ही-सी जान ! तीन कोस चलेगा कैसे। पैर में छाले पड़ जायेंगे। जूते भी तो नहीं हैं। वह थोड़ी-थोड़ी दूर पर उसे गोद ले लेगी ; लेकिन यहाँ सेवैयाँ कौन पकायेगा १ पैसे होते तो लौटते-लौटते सब साम्राग्री जमा करके चटपट बना लेती। यह तो घण्ट चीजें जमा करने लगेंगे। माँगे हों का तो भरोसा ठहरा।
उस दिन फ़हीमन के कपड़े सिये थे, आठ आने पैसे मिले थे। उस अठन्नी को ईमान की तरह बचाती वली आती थी इसी ईद के लिए है लेकिन कल ग्वालन सिर पर सवार हो गई तो क्या करती । हामिद के लिए कुछ नहीं है, तो दो पैसे का दूध तो चाहिए ही। अब गाँव से मेला चला। और बच्चों के साथ हामिद भी जा रहा था। कभी सब-के-सब दौड़कर आगे निक्षल जाते। फिर किसी पेड़ के नीचे खड़े होकर साथवालों का इन्तजार करते। यह लोग क्यों इतना धीरे-धीरे चल रहे हैं। हामिद के पैर में तो जैसे पर लग गये हैं। वह कभी थक सकता है। शहर का दोसन आ गया सड़क के दोनों ओर अमरों के बचे हैं। पक्को चार-दोवारी बनी हुई है। पेड़ों में आम और लीचियाँ लगी हुई हैं। कभी-कभी कोई लड़की ककड़ी उठाकर आम पर निशाना। लगता है। सालीं अन्दर से गाली देता हुआ निकलता है। लड़के वहाँ से एक फल। पर हैं। खूब हँस रहे हैं। माली को कैसा उल्लू बनाया है। बड़ी-बड़ी इमारतें आने लगी। यह अदालत है, यह कालेज है, यह क्लबघर है। इतने बड़े कालेज में कितने लड़के पढ़ते होंगे सव लड़के नहीं हैं जी। बड़े-बड़े आदमी हैं, सच ! उनकी बड़ी-बड़ी मूंछे हैं। इतने बड़े हो गये, अभी तक पढते जाते हैं। न जाने कृष तक पढ़ेंगे और क्या करेंगे इतना पढ़कर। हामिद कै मदरसे में दो तीन बड़ेबड़े लड़के हैं, चिलकुल तीन कौड़ो के, रोज मार खाते हैं, काम से जी चुरानेवाले। इस जगह को उसी तरह के लोग होंगे और क्या। क्लधर में जादू होता है। सुना है, यहाँ मुरदे की खोपड़ियाँ दौड़ती हैं। और बड़े-बड़े तमाशे होते हैं, पर किसी को अन्दर नहीं जाने देते है और यहाँ शाम को साइन लीग खेलते हैं। बड़-बड़े आदमी खेलते हैं, मूछों-डाढ़ वाले। और मेमें भी खेलती हैं। सच ! हमारी अम्माँ को वह दे दो, क्या नाम है, वट, तो उसे पकड़ ही न सके। घुमाते ही लुढक जायँ। महमूद ने कहा---हमारी अम्मीजान को तो हाथ कांपने गे, अल्ला कसम। मोहसिन बौला --- चलो, मनों आटा पीस डालती हैं। ज़रा-सा बैट पकड़ लेंगी, तो हाथ काँपने लगेंगे। सैकड़ों घड़े पानी रोज़ निकालती हैं। पाँच धड़े तो तेरी भैस पी नाती है। किसी मेम को एक घड़ा पानी भरना पड़े तो आँखों तले अँधेरा आ जाय। [ ३० ]महमूद---लेकिन दौड़ती तो नहीं, उछल-कूद तो नहीं सकतीं। मोहसिन-हाँ, उछल-कूद नहीं सकतों , लेकिन उस दिन मेरो, गाय खुल गई थी और चौधरी के खेत में जा पड़ी थी, तो अम्म! इतना तेज दौड़ी कि मैं उन्हें न पा सका, सच। आगे चले। हलवाइयों की दुकाने शुरू हुई। आज खूब सजी हुई थी। इतनी मिठाइयाँ कौन खतिा है ? देखो न, एक-एक दुकान पर मन होंगी। सुना है, रात को जिज्ञात आर खरीद लें जाते हैं। अब्बा कहते थे कि आधी रात को एक आदमो इर दूकान पर जाता है और जितना माल घचा हौता है, वह सब तुलच देता है और सचमुच के रुपये देता है, बिलकुल ऐसे ही रुप्ये। हामिद को यकीन न आया---ऐसे रुपये जिन्नात को छहाँ से मिल जायँगे ? हसिन ने कहा---जिन्नात को रुपये को क्या कमी ? जिस खजाने में चाहे वळे जायें। लोहे के दरवाज़ तक उन्हें नहीं रोक सकते जनाव, आप हैं किस फेर में। हीरे-जवाहरात तक उनके पास रहते हैं। जिससे खुश हो गये, उसे टोकरों जवाहरात दे दिये। अभी यहीं बैठे हैं, पाँच मिनट में कलकत्ता पहुँच जायें। हामिद ने फिर पूछा---जिन्नात बहुत बड़े-बड़े होते होगे ? मोहसिन---एक-एक आसमान के बराबर होता है जी। ज़मीन पर खड़ा हो जाय तो उसका सिर आसमान से ना लगे ; मगर चाहे तो एक लोटे में घुस जाय। हामिद---लोग उन्हें कैसे खुश करते होंगे ? कोई मुझे वह मन्तर बता दे, दो एक जिन्न को खुश कर लें। मोइसिन---अब यह तो मैं नहीं मानता; लेकिन चौधरी साहब के काबू में बहुत-से जिन्नात हैं। कोई चीज़ चोरी जाय, चौधरी साहब उसका पता लगा देंगे और चोर का नाम भो बता देंगे। जुमरातो की बछवा उस दिन खो गया था। तीन दिन हैरान हुए, कहीं न मिली। तब झक मारकर चौधरी के पास गये। चौधरी ने तुरन्त जता दिया, मवेशीखाने में है और वहीं मिला। जिन्नात कर उन्हें सारे जहान की खबरें दे जाते हैं। अब उसकी समझ में आ गया कि चौधरी के पास क्यों इतना धन है, और क्यों उनकी इतना सम्मान है। आने चले। यह पुलिस लाइन है। यहाँ सब
कानिसटिबिल कवायद करते हैं। [ ३१ ] हामिद ने पूछा---यह लोग चोरी करवाते हैं, तो कोई इन्हें पकड़ता नहीं ? मोहसिन उसकी नादानी पर दया दिखाकर बोला—-अरे पागल, इन्हें कौन पकया ? पकड़नेवाळे तो यह लोग खुइ हैं। लेकिन अल्लाह इन्हें सजा भी खूब देता है। इराम का माल हराम में जाता है। थोड़े ही दिन हुए, माँमू के घर में आग लग गई। सारी लेई-पूंजी जल गई। एक वरतन तक न बचा। कई दिन पेड़ के नीचे सोये, अल्ला कसम, पेड़ के नीचे। फिर न जाने कहाँ से एक सौ कर्ज लाये तो घरतन-भड़े आये। हामिद---एक सौ तौ पचास से ज़्यादा होते हैं ? ‘कहाँ पचास, कहाँ एक सौ। पचास एक थैली-भर होता है। वो तो दो थैलियों मैं भी न आये। अब बस्ती घनी होने लगी थी। ईदगाह जानेवालों की टोलियाँ नज़र आने लगीं। एक-से-एक भड़कीले वस्त्र पहने हुए। कोई इक्के-ताँगे पर सवार, कोई मोटर पर, सभी इत्र में बसे, सभी के दिलों में उमग। ग्रामीण का यह छोटा-सा दल, अपनी विपन्नता से बेखबर, सन्तोष और धैर्य में
मगन प्वला जा रहा था। बच्चों के लिए नगर की सभी चीजें अनोखी थी। जिस चीज़ की ओर ताकते, ताकते ही रह जाते। और पीछे से बार-बार हार्न की आवाज़ होने पर भी न चेतते। हामिद तौ मोटर के नीचे जाते-जाते बचा। [
३२ ] ( २ ) नमाज़ खत्म हो गई है। लोग आपस में गले मिल रहे हैं। तव मिठाई और खिलौने की दुकान पर धावा होता है। ग्रामीणों का यह दल इस विषय में चालकों से कम उत्साही नहीं है। यह देखो, हिंडोला है। एक पैसा देकर चढ़ जा। कभी आसमान पर जाते हुए मालूम होगे, को जमोन पर गिरते हुए। यह चखी है, लकड़ी के हाथी, घोड़े, ऊँट छड़ों से लटके हुए हैं। एक पैसा देकर बैठ जाओ और, पचीख चकरों का मजा लो। महमूद और मोहसिन और भूरे और सम्मी इन घोड़ों और ऊँटों पर बैठते हैं। हामिद दूर खड़ा है। तीन ही पैसे तो उसके पास है। अपने कोष का एक तिहाई ज़रा सा चक्कर खाने के लिए नहीं दे सकता है। सच चखियों से उतरते हैं। अब खिलौने लेंगे। इधर दुकानों की कतार लगी हुई है।' तरह-तरह के खिलौने हैं–सिपाहों और गुजरिया, राजा और वकील और भिदती और धोबिन और साधू। वाह ! तिने सुन्दर खिलौने हैं। अब बोला ही। म्वाइते हैं। महमूद विवाह लेता है, खाक थर्दी
और लाल पगड़ीवाला, कन्धे पर ' धन्इ रखे हुए, मालूम होता है, अभी कवायद किये चला आ रहा है। मोहसिन को , भिक्षी पसन्द आया। कमर झुकी हुई है, ऊपर मशक रखे हुए है। मशक का मुंह मोहसिन कहता हैं--- मेरा भिश्ती रोज़ पानी दे जायेगा ; साँझ-सवेरे। महमूद ---और मेरा सिपाही घर का पहरा देगा। कोई चौर आयेगा, तो फौरन बन्दूक फैर कर देगा। नूरे और मेरा वकील खूब मुकदमा लड़ेगा। सम्मी और मेरी धोबिन रोज कपड़े धोयेगी। हामिद खिलौनों की निन्दा करता है---मिट्टी ही है तो हैं, गिरें तो चकनाचूर हो जायें; लेकिन ललचाई हुई अखिों से खिलौनों को देख रहा है। और चाहता है कि अरा देर के लिए उन्हें हाथ में ले सकता। उसके हाथ अनायास ही लपकते हैं; लेकिन लड़के इतने त्यागी नहीं होते, विशेषकर जब अभी नया शौक हैं। हामिद कल्चता रह जाता है। खिलौने के बाद मिठाइयाँ आती हैं। किसी ने रेवड़ियाँ ली हैं, किसी ने गुलाम जामुन, किसी ने सोहन हलवा। मज़ से खा रहे हैं। हामिद उनकी बिरादरी से पृथक है। अभागे ३ पास तीन पैसे हैं। क्यों नहीं कुछ लेकर खाता १ ललचाई अखि से सबकी ओर देखता हैं। मोहसिन कहता है--- हामिद, यह रेउड़ी ले जा, कितनी खुशबूदार है ! हामिद को सन्देह हुआ, यह केवल क्रूर विनोद है, मोहसिन इतना उदार नहीं है। लेकिन यह जानकर भी वह उसके पास जाता है। मोहसिन दोने से एक रेउड़ी निकालकर हामिद की और बढ़ाता है। हामिद हाथ फैलाता है। मोहसिन रेउड़ीं अपने मुंह में रख लेता है। महमूद, नूरे और सम्मी खूब
तालियाँ बजा-धजाकर हँसते हैं। हामिद खिसिया जाता है। [ ३४ ] मोहसिन---अच्छा, अवको ज़रूर देंगे हामिद, अल्ला कसम ले जा। हामिद---रखे रहौ। क्या मेरे पास पैसे नहीं हैं ? सम्मी--- तीन ही पैसे तो हैं। तोन पैसे में क्या-क्या लोगे ? महमूद---हमसे गुलाब जामुन ले जाव हामिद। मोहसिन बदमाश है। हामिद---मिठाई कौन बड़ो नेमत है। किताब में इसकी कितनी बुराइयाँ लिखीं हैं। मोहसिंन--–लेकिन दिल में कह रहे होगे कि मिले तो खा लें। अपने पैसे क्यों नहीं निकालते ? महमूद--हम समझते हैं, इसकी चालाको। जद हमारे सारे पैसे खर्च हो जायेंगे, तो इमें ललचाललचाकर खायेगा। मिठाइयों के बाद कुछ
दूकानें लोहे को चोज को। कुछ गिलट और कुछ नकल नहीं की। लड़कों के लिए यहाँ कोई आकर्षण न था । वह सब आगे बढ़ जाते हैं । हामिद लोहे की दूकाने पर रुक जाता है। कई चिमटे रखे हुए थे। उसे खयाल आया, दादी के पास चिमठा नहीं है। तवे ३ रोटियाँ उतारतो हैं, तो हाध जल जाता है। अगर वह चिमटा ले कर दादो को दे दे, तो वह कितनो प्रसन्न होंगी फिर उनकी उँगलियाँ कभी न जलेंगी। घर में एक काम की चीज़ हो जायेगी। खिलौने से क्या फायदा। व्यर्थ में पैसे खराब होते हैं। जरा देर हो तो खुश होती है। फिर तो खिलौने को कोई अाँख उठाकर नहीं
देखतः। या तो घर पहुँचतेपहुँचते ट-फूट बाबर हो जायेंगे। चिमटा कितने काम को चीज़ है। रोटियाँ तवे से उतार लो चूल्हे में सेंक लो । फौई आग माँगने आये तो चटपट चूल्हे से आग निकालसर उसे दे दो । अम्म बेचारो को कहाँ फुरसत है कि आजार आयें, और इतने पैसे ही कहाँ मिलते हैं। रोज़ हाथ जला लेती हैं। हामिद के साथ आगे बढ़ गये हैं। सबील पर सब-के-सब शर्बत पी रहे हैं। देखो, सब कितने लालची हैं। इतनी मिठाइयाँ लों, मुझे किसी ने एक भो न दी। उस पर कहते हैं, मेरे साथ खेलौ। मेरा यह काम करो। अप अगर किसी ने कोई काम करने को कहा
तो यूछेगा। खायें मिठाइयाँ, आप मुंह सई, फोड़े-फुन्सियाँ निकलेंगी, आप ही ज़बान चटोरी हो जायगी। तो घर से पै३ चुरायेंगे और मर खायेंगे। किताब में झूठ बातें थोड़े हो लिवो है। मेरो जवान क्यों खराब होगी। अम्माँ चिमूटा देखते ही दौड़ दूकानदार ने उसकी और देखा और कोई आदमी साथ न देखकर कहा--ब्रह तुम्हारे काम का नहीं है जी ! - ‘विकाऊ है कि नहीं है।’ ‘बिकाऊ क्यों नहीं है। और यहीं क्यों लाद लायें हैं ? ’ ‘तो बताते क्यों नहीं, के पैसे का है ?’ ‘छै पैसे लगेंगे।’ ‘हामिद का दिल बैठ गया।’ ‘ठीक-ठीक बताओ।' ‘ठीक-ठीक पाँच पैसे लगेंगे, लेना हो लो, नहीं चलते बनो।’ ‘हामिद ने कलेजा मजबूत करके कहा---तीन पैसे लोगे ?’ यह तो हुआ वह आगे बढ़ गया कि दुकानदार की घुड़कियाँ न सुने। लेकिन दुकानदार ने घुड़कियाँ नहीं दीं। बुलाकर चिमटा दे दिया। हामिद ने उसे इस तरह धे पर रखा, मानें बन्दूक है और शान से अकृढ़ता हुआ सङ्घियों के पास आया। जरा सुने, सब-के-सब क्या-क्या आलोचनाएँ करते हैं। ' मोहसिन ने हँसकर कहा---यह चिमटा क्यों लाया पगले। इसे क्या करेगा। [ ३६ ]हामिद ने चिमटे को ज़मीन पर पटकर कहा--ज़र अपना भिश्ती ज़मीन पर गिरा दो। सारी पसलियाँ चूर-चूर हो जायें बचा की। महमूद बोला---तो यह चिमटा कोई खिलौना है ? हामिद---खिलौना क्यों नहीं है ? अभी कन्धे पर रखा, वन्दुक हो गई। हाथ में ले लिया, फकीरों का चिमटा हो गया, चाहें तो इससे मजीरे का काम ले सकता हैं। एक चिमटी जमा हैं, तो तुम लोगों के सारे खिलौने की जान निकल जाय। तुम्हारे खिलौने कितना हो जोर लगायें, मेरे चिमटे का बाल भो बाँका नहीं कर सकते। मेरा बहादुर शेर है--चिमटा। सम्मी ने खेजरो ली थी। प्रभावित होकर बोला---मेरो खेजरी से बदलोगे ? दो आने की है। हामिद ने खंजरी की ओर उपेक्षा से देखा -मेरा चिमटा चाहे तो तुम्हारो बँजरी का पेट फाड़ डाले। बस, एक चमड़े की झिल्ली लगा दी, ढब-ढब बोलने लगी। ज़रा-सा पानी ला जाय तो खतम हो जाय। मेरा बहादुर चिमटा आग में, पानी में, अधो मे, तूफ़ान में, बराबर इटा खड़ा रहेगा। चिमटे ने भी सभी को मोहित कर लिया ; लेकिन अब पैसे किसके पाख़ धरे हैं। फिर मेले से दूर निकल आये हैं, नौ कव के चञ गये, धूप तेज हो रही है। घर पहुंचने की जल्दी हो रही है। बाप से ज़िद भो करें, तो चिमटा नहीं मिल सकता। हामिद है बड़ा चालाक। इसी लिए बदमाश ने अपने पैसे बचा रखे थे। अब बालकों के दो दल हो गये हैं। मोहसिन, महमूद, सुम्मी और नूरे एक तरफ हैं, हामिद अकेला धूसरी तरफ। शास्त्रार्थ हो रहा है। सम्मी तो विधी हो गया। दूसरे पक्ष से जा मिला; लेनिन मोहसिन, महमूद और नुरे भी, हामिद से एक-एक, दो-दो साल बड़े होने पर भी हामिद के आघात से आतंकित हो उठे हैं। उसके पास न्याय का बल है और नीति की शक्ति। एक ओर मिट्टो है, दूसरो और लोहा, जो इस वक्त अपने को फौलाद कह रहा है । वह अजेय है, घातक है। अगर कोई शेर। जाय, तो मियाँ भिश्तो के छक्झे छूट जायें, मियाँ सिपाही मिट्टो
को बन्दुक छोड़कर भागे, वोल साह्य को नानी मर जाय, चुरों में मुंह छिपाकर जमीन पर लेट जावें। मगर यह चिमटा, यह वहादुर, यह रुस्तमे-हिन्द लपककर शेर को गरदन पर सवार हो जायगा और उसकी अखें निकाल लेगा। [
३७ ] हामिद ने आखिरी छोर लगाकर कहा--- भिश्ती झो एक डॉट बतायेगा, तो दौड़ा हुआ पानी लाकर उसके द्वार पर छिड़कने लगेगा। मोहसिन परास्त हो गया ; पर महमूद ने कुमक पहुँचाई-अगर अचा पड़ जायें तो अदालत में बँध-बँधे फिरेंगे। तब त वकील साहव के ही पैरो पड़ेंगे। हामिद इस प्रबल तर्क का जवाब न दे सका। उसने पूछा-हमें पकड़ने कौन जायेगा ? नूरे ने अकड़कर कहा---यह सिपाही बन्दूकवाला। हामिद ने मुंह चिढ़ाकर छह ---यह बेचारे हम बहादुर रुस्तमै-हिन्द छौ पड़ेगे ! अच्छा लाओ, अभी ज़रा कुस्ती हो जाये। इसी सूरत देखकर दूर से भागेंगे। पकड़ेगे क्या बेचारे। मोहदिन को एक नई चौट सूझ गईं---तुम्हारे चिमटे का ६ रोज़ आगे में बढ़ेगा। उसने वहा था कि हामिद लाजवाब हो जायगा ; लेकिन यह बात न हुई। हामिद ने तुरंत जवाब दिया---आह में बहादुर ही कूदते हैं जनाव, तुम्हारे यह वकील, सिपाही और भित्ती लेढिय की तरह घर में घुस जायेंगे। अग में कूदना वह काम हैं, जो यह रुस्तमे-हिन्द ही कर सकता है। अहमूद ने एक ज़ोर लगाया-वकील साहब कुरसी-मेज पर बैठेंगे, तुम्हारा चिमटा तो दायरचीखाने में ज़मीन पर पड़ा रहेगा। इस तर्क ने सम्मी और नूरे को भी सजीव कर दिया। कितने ठिकाने की बात कही है पट्ठे ने। चिमदा बावरचौरवाने में पड़ा रहने के सिवा और क्या कर सकता है। हामिद को कोई फड़कता हुआ जवाब न सूझा तो उसने धाँधली शुरू कीमेरा चिमटा वावरचौखाने में नहीं रहेगा। वळील साइन कुरसी पर बैठेंगे, तो जाकर उन्हें जमीन पर पटक देगा और इनका कानून- उनके पेट में डाल देगा। बात कुछ बनी नहीं। खासी गालो-गलौज थी ; हेकिन कानून कौ पैट में डालनेवाली बात छा गईं। ऐसी छा गई कि तीनों सूरसा मुंह ताकते रह गये, मान कोई धेलचा कॅकौआ किसी गण्डेवाले कीए को काट गया हो। कानून मुंह से बाहर निकलनेवाली चीज़ है। उसको पेट के अन्दर डाल दिया जाना, बेतुकी-सी बात होने पर भी कुछ नयापन रखती है। हामिद ने मैदान मार दिया। उसका चिमटा
रुस्तमे विजेता को हारनेवालों से जो सरकार मिलना स्वाभाविक है, वह हामिद को भी मिला। औरों ने तीन-तीन, चार-चार आने पैसे खर्च किये , पर ई काम की चीज न ले सके। हामिद ने तीन पैसे में रंग जमा लिया। सच ही तो है, खिलौनों का क्या भरोसा ? ट-फूट जायँगे। हामिद का चिमटा तो बना रहेगा बरस। सन्धि की शर्त तय होने लगी। मोहसिन ने कहा---ज़रा अपनी चिमटा दो, हम भी देखें। तुम हमारा भिश्ती लेकर देखो। महमूद धौर नूरे ने भी अपने-अपने खिलौने पेश किये। हामिद को इन शर्तों के मानने में कोई पत्ति न थो। चिमठा वारो-शारों से सबके हाथ में गया ; और उनके खिलौने वारो-वारों से हामिद के हाथ में आये। कितने खूबसूरत खिलौने हैं। हामिद ने हारनेवालों के आँसू पोंछे---मैं तुम्हें चिढ़ा रहा था, सच। यह लोहे का चिमटा भला इन खिलौनों को क्या बराबरी करेगा। मालूम होता है, अब क्या, अब बोले। लेकिन मोहसिन को पार्टी को इस दिलासे से सन्तोष नहीं होता। चिमटे। सिक्का खूब बैठ गया है। चिय हुआ टिक अब पानी से नहाँ छू रहा। मोहसिन---लेकिन इन खिलौनों के लिए कोई हमें दु तो न देगी ? महमूद---दुआ ची लिये फिरते हो। उल्टे मार में पड़े। अम्माँ ज़रूर कहूँगी कि मेले में यही मिट्टी के खिलौने तुम्हें मिले ? हामिद को स्वीकार करना पड़ा कि खिलौनों को देखकर किसी को माँ इतनी खुश न होगो, जितनी दादो चिमटे को देखकर हमीद। तौर पैसों हीं में तो उसे सब कुछ झरना था, और उन पैसों के इस उपयोग पर पछतावे को बिलकुल ज़रत से थी। फिर अब तो चिमटा रुस्तमे-हिन्द हैं और सभी विलौन का बादशाह। रास्ते में मसूद को भूवे लाये। उसके चार ने केले खाने को दिये । महमुद ने फेल हामिद को साझा बनाया। उनके अन्य मित्र मैं इ ताइवें रह गये। यह उच्च चिमटे का प्रसाद। [ ३९ ] ( ३ ) ग्यारह बजे सारे गाँव में हलचल मच गई। मेलेवाले आ गये। मोहसिन की। छोटी बहन ने दौड़ कर भिश्ती उसके हाथ से छीन लिया और मारे खुशी के जो उछली, तो मियाँ भिश्ती नीचे आ रहे और सुरलोक सिधारे। इस पर भाई-बहन में मार-पीट हुई। दोनों खूब थे। उनकी अम्माँ यह शोर सुनकर बिगड़ और दोन को ऊपर से दो-दो चाटें और लगाये। मियाँ नूरे के वकील का अन्त उनके प्रतिष्ठानुकूल इससे ज्यादा गौरवमय हुआ। चकौल ज़मीन पर या ताक पर तो नहीं बैठ सकता। उसी मर्यादा का विचार तो करना ही होगा। दीवार में दो खुटिया गाड़ी गईं। उन पर लकड़ी का एक पटरी रखा गया। पटरी पर छापेज़ या कालीन बिछाया गया। वकील साहव राजा भौज को अति सिंहासन पर विराजे। नूरे ने उन्हें पखा झलना शुरू किया। अदालतों में खस की टट्टियाँ और बिजली के पंखे रहते हैं। क्या यहां मामूली पखा भी हों। कानून की गर्मी दिमाग़ पर चढ़ जायगी झि नहीं। बाँस छ। पखा आया और नूरे हवी करने लगे। मालूम नहीं, पंखे की हवा से, या पखे की चोट से वकील साहब स्वर्ग लोक से मृत्युलोक में आ रहे और उनका सादी का चोला माही में मिल गया। फिर बड़े जौर शोर से मातम हुआ और वकील साहय की अस्थि घूर पर डाल दो गई। अब रहा मद्दमूद का सिपाही। उसे चटपट गाँव का पहरा देने का चार्ज
मिल गया ; लेकिन पुलिस का सिपाही कोई साधारण व्यक्ति तो नहीं, जो अपने पैरों चले। वह पालकी पर चलेगा। एक टोकरी आई, उसमें कुछ लाल रङ्ग के फटे-पुराने चिथड़े बिछाये गये, जिसमें सिपाही साहब आराम से लेटें। नूरे ने यह टोकरी उठाई और अपने द्वार का चक्कर लगाने लगे। उनके दोनों छोटे भाई सिपाही की तरफ से ‘छोनेवाले, जागते लहो’ पुकारते चलते हैं। मगर रात तो अंधेरी होनी चाहिए। महमूद को ठोकर लग जाती है। टोकरी उसके हाथ से छूटकर गिर पछुती है और मियाँ सिपाही अपनी बन्दूक लिये ज़मीन पर आ जाते हैं और उनकी एक टॉग में
विकार आ जाता है। महमुद को आज ज्ञात हुआ कि वह अच्छा डाक्टर है। उसको ऐसा मरहम मिल गया है, जिससे वह इट टाँग को आनन-फानन जोड़ सकता है। केवल - गूलर का दूध चाहिए। गूलर का दूध आता है। टाँग जोड़ दी जाती है। लेकिन सिपाही को ज्यों ही खड़ा किया जाता है, टॉग जवाब दे देती है। शल्यक्रिया असफल अब मियाँ हामिद का हाल सुनिए। अमीना उसकी आवाज़ सुनते ही दौड़ी और उसे गोद में उठाकर प्यार करने लगी। सद्दसा उसके हाथ में चिमटा देखकर वह चौकी । ‘यह चिमटा कहाँ था ?’ ‘मैंने मोल लिया है।’ ‘तीन पैसे दिये ।' अमीना ने छाती पीट की। यह कैसा बेसमझ लड़का है कि दोपहर हुआ, कुछ खाया न पिया। लाया क्या, चिमटा ! सारे मेले में तुझे और कोई चीज़ न मिली, जो यह लोहे का चिमटा उठा लाया ? हामिद ने अपराधी भाव से कहा--- तुम्हारी उंगलियों तवे से जल जाती थीं; इसलिए मैंने उसे के लिया। बुढ़िया का क्रोध तुरन्त स्नेह में बदल गया, और स्नेह भी वह नहीं, जो गर्भ होता है और अपनी सारी फस, शब्दों में बिखेर देता है। यह मूक स्नेह धा, खूब औस, रस और स्वाद से भरा हुआ। बच्चे में कितना त्याग और कितना सद्भाव और ? कितना विवेक है। दूसरों को खिलौने लेते और मिठाई खाते देखकर इसका मुद कितना ललचाया होगा। इतना ज़ब्त इससे हुआ कैसे ! वह भी इसे अपनी बुढ़िया दादी की याद बनी रही। अमीना का मन गदगद हो गया। और अब एक बड़ी विचित्र वात हुई। हामिद के इस चिमटे से भी विचित्र। बच्चे हामिद ने चुढे हामिद का पार्ट खेला था। युढ़िया अमीना घाला अमीना बन गई। वह रोने लगी। दामन फेडर हामिद को दुआएँ देतीं जाती थी और को अ-बड़ी बूं। निती जाती थी। हामिद इसका रहस्य क्या समझता ! महमूद कौन सा खिलौना खरीदता है?महमूद ने कौन-सा खिलौना खरीदा? उत्तर: महमूद ने सिपाही खरीदा। उसकी वर्दी खाकी रंग की थी तथा 'पगड़ी लाल रंग की थी।
मोहसिन ने क्या खरीदा?नूरे ने मेले में क्या खरीदा? उत्तर : नूरे ने मेले में एक शानदार वकील का खिलौना खरीदा। प्रश्न 12.
ईदगाह पाठ में महमूद ने कौन सा खिलौना खरीदा?सभी बच्चे तरह-तरह के खिलौने खरीदते हैं, मिठाईयाँ खाते हैं। महमूद सिपाही, मोहसिन भिश्ती, नूरे वकील, सम्मी खजरी खरीदते हैं।
हामिद ने मेले से क्या खरीदा और क्यों?ईद के मौके पर वह अपनी दादी से तीन पैसे लेकर अपने दोस्तों के साथ मेले में जाता है। उसके दोस्त मेले में खूब मस्ती करते हैं, खिलौने खरीदते हैं लेकिन हामिद को मेले में भी अपनी दादी का ख्याल आता है और वह तीन पैसे में दादी के लिए चिमटा खरीद लेता है, क्योंकि उसकी दादी जब खाना बनाती है तो उनके हाथ जल जाते हैं।
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