( गैर-मानक बोली से पुनर्निर्देशित ) Show
एक गैर-मानक बोली या स्थानीय बोली [1] [2] एक ऐसी बोली या भाषा की विविधता है जिसे एक मानक बोली के संस्थागत समर्थन या स्वीकृति से ऐतिहासिक रूप से लाभ नहीं हुआ है। किसी भी बोली की तरह, एक गैर-मानक बोली में व्याकरण की आंतरिक रूप से सुसंगत प्रणाली होती है । यह शब्दावली के एक विशेष सेट के साथ जुड़ा हो सकता है , और विभिन्न उच्चारणों , शैलियों और रजिस्टरों का उपयोग करके बोली जाती है । [३] जैसा कि अमेरिकी भाषाविद् जॉन मैकहॉर्टर ने पुराने अमेरिकी इतिहास में अमेरिकी दक्षिण में बोली जाने वाली कई बोलियों के बारे में वर्णन किया है , जिसमें पुरानी अफ्रीकी-अमेरिकी वर्नाक्युलर अंग्रेजी शामिल है , " दक्षिणी सफेद बागान मालिकों का अक्सर गैर-मानक भाषण , गिरमिटिया नौकरों की गैर-मानक ब्रिटिश बोलियां , और वेस्ट इंडियन पेटोइस , [...] थेगैर मानक नहीं बल्कि उप मानक। " [4] दूसरे शब्दों में, विशेषण" गैरमानक "नहीं मतलब है कि बोली आंतरिक रूप से गलत है, कम तार्किक, या अन्यथा अवर है, केवल यह है कि यह सामाजिक रूप से माना जाता है आदर्श नहीं है लिया जाना चाहिए या सार्वजनिक भाषण के लिए मुख्यधारा (हालांकि इसे अक्सर सामाजिक रूप से प्रेरित पोस्ट-हॉक युक्तिकरण के परिणामस्वरूप कलंकित किया जाता है )। [५] वास्तव में, भाषाविद सभी गैर-मानक बोलियों को एक भाषा की व्याकरणिक रूप से पूर्ण किस्मों के रूप में मानते हैं। इसके विपरीत, यहां तक कि यहां तक कि कुछ प्रतिष्ठा बोलियों को गैर-मानक माना जा सकता है। एक सीमा मामले के रूप में, एक गैर-मानक बोली का अपना लिखित रूप भी हो सकता है, हालांकि तब यह माना जा सकता है कि शब्दावली अस्थिर और/या अस्वीकृत है, और यह सरकार या शैक्षणिक संस्थानों द्वारा लगातार और/या आधिकारिक रूप से समर्थित नहीं है। लिखित में गैर-मानक बोलियों का सबसे प्रमुख उदाहरण साहित्य या कविता में रिपोर्ट किए गए भाषण की गैर-मानक ध्वन्यात्मक वर्तनी होगी (उदाहरण के लिए, जमैका के कवि लिंटन क्वेसी जॉनसन के प्रकाशन ) जहां इसे कभी-कभी आंखों की बोली के रूप में वर्णित किया जाता है । यह सभी देखें
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ग्रन्थसूची
मानक भाषा को कई नामों से पुकारते हैं। इसे कुछ लोग ‘परिनिष्ठित भाषा’ कहते हैं और कई लोग ‘साधु भाषा’। इसे ‘नागर भाषा’ भी कहा जाता है । अंग्रेजी में इसे Standard Language’ कहते हैं। मानक का अर्थ होता है एक निश्चित पैमाने के अनुसार गठित। मानक भाषा का अर्थ होगा, ऐसी भाषा जो एक निश्चित पैमाने के अनुसार लिखी या बोली जाती है। मानक भाषा व्याकरण के अनुसार ही लिखी और बोली जाती है अर्थात् मानक भाषा का
पैमाना उसका व्याकरण है। हम जब किसी अपरिचित व्यक्ति से मिलते हैं तो उससे मानक भाषा में ही बातचीत करते हैं, जब हम कक्षा में किसी प्रश्न का उत्तर देते हैं तो हम मानक भाषा का ही प्रयोग करते हैं। हम पत्र-व्यवहार में मानक भाषा ही लिखते हैं। समाचार पत्रों में जो भाषा लिखी जाती है, वह भी मानक ही होती है। आकाशवाणी और दूरदर्शन के समाचार मानक भाषा में ही प्रसारित किए जाते हैं। हमारे प्रशासन के सारे कामकाज मानक भाषा में ही सम्पन्न होते हैं। कहने का आशय यह है कि मानक भाषा हमारे बृहत्तर समाज को सांस्कृतिक
स्तर पर आपस में जोड़ती है और हम उसी के माध्यम से एक-दूसरे तक पहुँचते हैं। मानक भाषा हमारी बात दूसरों तक ठीक उसी रूप में पहुँचाती है जो हमारा आशय होता है। अत: मानक भाषा सर्वमान्य भाषा होती है, वह व्याकरण सम्मत होती है और उसमें निश्चत अर्थ सम्प्रेषित करने की क्षमता होती है। गठन और सम्प्रेषण की एकरूपता उसका सबसे बड़ा लक्षण है। यह भाषा सांस्कृतिक मूल्योंं का प्रतीक बन जाती है। धीरे-धीरे इस मानक भाषा की शब्दावली, उसका व्याकरण, उसके उच्चारण का स्वरूप निश्चित और स्थिर हो जाता है और इसका प्रसार और
विस्तार पूरे भाषा क्षेत्र में हो जाता है। इस प्रकार मानक भाषा की परिभाषा निम्नलिखित शब्दों में दी जा सकती है : ‘‘मानक भाषा किसी भाषा के उस रूप को कहते हैं जो उस भाषा के पूरे क्षेत्र में शुद्ध माना जाता है तथा जिसे उस प्रदेश का शिक्षित और शिष्ट समाज अपनी भाषा का आदर्श रूप मानता है और प्राय: सभी औपचारिक स्थितियों में, लेखन में, प्रशासन और शिक्षा के माध्यम के रूप में यथासाध्य उसी का प्रयोग करता है।’’
इस दृष्टि से आज हिन्दी भी एक मानक भाषा है अर्थात् जहाँ-जहाँ हिन्दी लिखी या पढ़ी जाती है या पढ़े-लिखे लोग उसका व्यवहार करना चाहते हैें तो इस बात का ध्यान रखा जाता है कि वह व्याकरणसम्मत हो और उसका व्याकरण वही हो जो सर्वमान्य है। मानक हिन्दी का अर्थ एवं विशिष्टताएँमानक हिन्दी के अर्थमानक हिन्दी भाषा का अर्थ हिन्दी भाषा के उस स्थिर रूप से है जो अपने पूरे क्षेत्र में शब्दावली तथा व्याकरण की दृष्टि से समरूप है। इसलिए वह सभी लोगों द्वारा मान्य है, सभी लोगों द्वारा सरलता से समझी जा सकती है। अन्य भाषा रूपों के मुकाबले वह अधिक प्रतिष्ठित है। मानक हिन्दी भाषा ही देश की अधिकृत हिन्दी भाषा है। वह राजकाज की भाषा है। ज्ञान, विज्ञान की भाषा है, साहित्य-संस्कृति की भाषा है। अधिकांश विद्वान, साहित्यकार, राजनेता औपचारिक अवसरों पर इसी भाषा का प्रयोग करते हैं। आकाशवाणी व दूरदर्शन पर जिस हिन्दी में समाचार प्रसारित होते हैं, प्रतिष्ठित समाचार पत्रों एवं पत्रिकाओं में जिस हिन्दी का प्रयोग होता है, जिस हिन्दी में सामान्यत: मूल लेखन व अधिकृत अनुवाद होता है, वह मानक हिन्दी भाषा ही है। मानक हिन्दी भाषा, हिन्दी के विभिन्न रूपों में सर्वमान्य रूप है। वह रूप पूरी तरह सुनिश्चित व सुनिर्धारित है तथापि इसमें गतिशीलता भी है। मानक हिन्दी की विशिष्टताएँमानक भाषा के जितने लक्षण ऊपर बतलाए गए हैं वे सभी लक्षण मानक हिन्दी भाषा में विद्यमान हैं। कुछ विद्वानों के अनुसार मानक भाषा में चार तत्त्वों का होना आवश्यक है-
हिन्दी भाषा की ऐतिहासिकता तो सर्वविदित है। इसका एक गौरवशाली इतिहास है, विपुल साहित्यिक परम्परा है। शताब्दियों से लोग हिन्दी भाषा का प्रयोग करते आ रहे हैं। हिन्दी का मानक रूप भी गत शताब्दी में आकार लेने लगा था। राष्ट्रीय आन्दोलन के दौरान हिन्दी का मानक स्वरूप विकसित होने लगा और स्वतंत्रता के पश्चात तो हिन्दी का मानक स्वरूप सुनिश्चित व सुनिर्धारित हो गया। मानक हिन्दी में जीवन्तता भी है। जीवन्तता इसी से सिद्ध होती है कि प्रसिद्ध वैज्ञानिक डॉ. जयन्त नारलीकर ‘ब्रह्माण्ड के स्वरूप’ पर अपना व्याख्यान मानक हिन्दी भाषा में देते हैं। कविता और कहानी से लेकर विज्ञान और दर्शन तक सभी क्षेत्रों में आज मानक हिन्दी भाषा का प्रयोग होता है। यह भाषा नए युग के साथ चलने में पूरी तरह सक्षम है। मानक हिन्दी में स्वायत्तता भी है। वह किसी अन्य भाषा पर टिकी हुई नहीं है। उसकी स्वतंत्र शब्दावली और अपना व्याकरण है। इन चारों तत्त्वों के प्रकाश में यही कहा जा सकता है कि मानक हिन्दी भाषा एक सशक्त गतिशील और सर्वमान्य भाषा है। मानक हिन्दी के स्वरूप एवं प्रकारमानक हिन्दी के स्वरूपहिन्दी की आधुनिक मानक शैली का विकास हिन्दी भाषा की एक बोली, जिसका नाम खड़ीबोली है के आधार पर हुआ है। हिन्दी मानक भाषा है, जबकि खड़ीबोली उसकी आधारभूत भाषा का वह क्षेत्रीय रूप है जो दिल्ली, रामपुर, मुरादाबाद, बिजनौर, मेरठ, सहारनपुर आदि में बोला जाता है। खड़ीबोली क्षेत्र में रहने वाले प्राय: प्रत्येक वर्ग के व्यक्ति द्वारा जो कुछ बोला जाता है वह खड़ीबोली है किन्तु जैसे ब्रज, बुन्देली, निमाड़ी अथवा मारवाड़ी क्षेत्रो में हिन्दी की शिक्षा प्राप्त व्यक्ति परस्पर सम्भाषण अथवा औपचारिक अवसरों पर मानक हिन्दी बोलते हैं वैसे ही खड़ीबोली क्षेत्र के व्यक्ति भी औपचारिक अवसरों पर मानक हिन्दी का प्रयोग करते हैं। हम इसको इस तरह समझें- मैथिलीशरण गुप्त चिरगाँव के थे। वे घर में बुन्देलखण्डी बोलते थे। हजारीप्रसाद द्विवेदी बलिया के थे, वे घर में भोजपुरी बोलते थे किन्तु ये सभी व्यक्ति जब साहित्य लिखते हैं तो मानक हिन्दी का व्यवहार करते हैं। संक्षेप में मानक भाषा अपनी भाषा का एक विशिष्ट प्रकार्यात्मक स्तर है। अब हम हिन्दी के निम्नलिखित चार वाक्य लेंगे और देखेंगे कि मानक भाषा की कसौटी पर कौन-सा वाक्य सही उतरता है :
विभिन्न क्षेत्रीय एवं सामाजिक भिन्नताओं के आधार पर तीसरे एवं चौथे प्रकार्यात्मक स्तरों के अनेक भेद हो सकते हैं। किन्तु पहले या दूसरे वाक्य का व्यवहार औपचारिक स्तर पर मानक भाषा में सर्वत्र होगा। हिन्दी का सही रूप जो सर्वत्र एक-सा है, सर्वमान्य है, व्याकरणसम्मत है और सम्भ्रांत है, मानक हिन्दी का वाक्य है। मानक हिन्दी के प्रकारहिन्दी के अनेक रूप हैं और अनेक अर्थ हैं। हिन्दी के सारे रूपों को हम सुविधा के लिए दो वर्गों में बाँट सकत हैं-
हिन्दी की क्षेत्रीय बोलियाँ छोटे-छोटे क्षेत्रों या छोटे-छोटे समुदायों के बीच ही प्रचलित हैं। सामान्य हिन्दी इन सब रूपों का महत्तम-समापवर्तक रूप है। यदि बोलीगत सारे रूप हिन्दी की परिधि पर हैं तो उनका एक रूप ऐसा भी है जो केन्द्रवर्ती रूप है। वह केन्द्रवर्ती रूप ही मानक हिन्दी का रूप है। विभिन्न बोलियों के क्षेत्रीय अथवा सामुदायिक रूपों का मानक भाषा के रूप में पर्यवसान कई कारणों से होता है। इन कारणों को हम संक्षेप में निम्नानुसार उल्लिखित कर सकते हैं-
उपर्युक्त कारणों से धीरे-धीरे ऐसी हिन्दी का निर्माण और प्रचलन हुआ जो हिन्दी के विभिन्न क्षेत्रों और समुदायों में समान रूप से समझी जा सकती है और उसका व्यवहार किया जा सकता है। हमारे देश में औद्योगिकीकरण जिस गति से हो रहा है उससे भी क्षेत्रीय और सामुदायिक बोलियों के स्थान पर एक सामान्य भाषा फैल रही है। हिन्दी की शिक्षा का प्रसार भी इन दिनों बहुत हुआ है। आकाशवाणी और दूरदर्शन के प्रभाव के कारण मानक हिन्दी सामान्य जन तक पहुँच रही है। हिन्दी भाषा के मानक और अमानक की पहचानमानक भाषा लिखने के काम आती है और बोलने के भी। लिखित और उच्चरित मानक हिन्दी के जो प्रयोग व्याकरणसम्मत, सर्वमान्य, एकरूप और परिनिष्ठित है उनका संक्षिप्त विवरण निम्नानुसार है।
मानक अमानक इन्दु इन्दू प्रभु प्रभू शम्भु शम्भू
आई मा (मराठी में) आयी आया क्रिया का स्त्रीलिंग रूप लाई धान का खिला हुआ रूप लायी लाया का स्त्रीलिंग रूप भाई बन्धु भायी भाया क्रिया का स्त्रीलिंग रूप इस प्रकार ‘बनिए’ ओर ‘बनिये’ में भी अन्तर करना चाहिए। ‘बनिए’ बनना क्रिया का रूप है जबकि ‘बनिये’ बनिया का बहुवचन है। जिन शब्दों के एकवचन में य हो, उनके बहुवचन और स्त्रीलिंग रूपों में भी य ही होना चाहिए।
किन्तु निम्न वाक्यों में ‘ने’ का प्रयोग अमानक है-
वास्तव में भाषा के मानकीकरण की प्रक्रिया एक लम्बी प्रक्रिया है। अत: जिन शब्दों, अभिव्यक्तियों और वाक्य रूपों का मानकीकरण हो चुका है, उनका पालन करना चाहिए। इन्हें भी आवश्य पढ़े...हमारे बारें मेंMy Name is Jitendra Singh (Rana) और मैं एक सफल शिक्षक बनने की तैयारी कर रहा हूं ! और मैं लखनऊ, उत्तर प्रदेश (भारत) से हूँ। मानक अमानक एवं मानक भाषा क्या है उदाहरण सहित समझाइए?हिंदी में 'मानक' शब्द का प्रयोग अंग्रेजी शब्द 'स्टैंडर्ड' के प्रतिशब्द के रूप में किया जाता है। भाषा का मानक रूप वस्तुतः भाषा के व्याकरण सम्मत शुद्ध, परिनिष्ठित, परिमार्जित रूप को कहा जाता है। इस मुकाम तक पहुँचने के लिए भाषा को कई प्रक्रियाओं से गुजरना पड़ता है।
मानक और अमानक में क्या अंतर है?जैसे 'औरत' का मानक उच्चारण 'अउरत' की तरह होगा, 'ओरत की तरह नहीं। 9- संस्कृत के शब्दों में दो स्वरों को एक साथ लिखना अमानक है, जैसे 'स्थाई' अमानक है, मानक 'स्थायी' है। 10- हिन्दी में आजकल अनुनासिक चिह्न चन्द्रबिन्दु( ) के स्थान पर अनुस्वार लिखा जाने लगा है, जैसे हँस के स्थान पर 'हंस'।
मानक भाषा का क्या अर्थ होता है?मानक भाषा (standard language) किसी भाषा की वह भाषा प्रयुक्ति या भाषिका होती है जो किसी समुदाय, राज्य या राष्ट्र में सम्पर्क भाषा का दर्जा रखे और लोक-संवाद में प्रयोग हो।
मानक अमानक एवं अमानक भाषा क्या है मानक भाषा के प्रमुख लक्षण बताइए?इस भाषा का प्रयोग औपचारिक अवसरों पर किया जाता है । नहीं है । यह भाषा पूर्णतः अशुद्ध होती है । इसका कोई रूप नहीं है ।
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