मस्ती का आलम से कवि का क्या अभिप्राय है? - mastee ka aalam se kavi ka kya abhipraay hai?

निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए-
हम दीवानों की क्या हस्ती,
हैं आज यहाँ, कल वहाँ चलें,
मस्ती का आलम साथ चला,
हम धूल उड़ाते जहाँ चले।

आए बनकर उल्लास अभी,
आँसू बनकर बह चल अभी,
सब कहते ही रह गए. अरे,
तुम कैसे आए, कहाँ चले?

‘धूल उड़ाते जहाँ चले’ शब्दों का क्या अर्थ है?

  • उनके कदमों से धूल उठती है।
  • बलिदानी वीर जहाँ भी जिस ओर जोश से बढ़ते है उनके कदमो से सारे वातावरण में धूल छा जाती है अर्थात् सब ओर उनका अस्तित्व दिखाई देता है।
  • तेज कदमों से चलना
  • तेज कदमों से चलना


B.

बलिदानी वीर जहाँ भी जिस ओर जोश से बढ़ते है उनके कदमो से सारे वातावरण में धूल छा जाती है अर्थात् सब ओर उनका अस्तित्व दिखाई देता है।

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भिखमंगों की दुनिया में बेरोक प्यार लुटानेवाला कवि ऐसा क्यों कहता है कि वह अपने हृदय पर असफलता का एक निशान भार की तरह लेकर जा रहा है? क्या वह निराश है या प्रसन्न है?


कवि संसार के लोगों के प्रति स्वच्छंद रूप में प्रेम लुटाता है क्योंकि उसका मानना है कि इस दुनिया के लोग सदैव दूसरों से पाने की चाहत रखते हैं। सभी को प्रसन्न रखने पर भी उसका हृदय द्रवित है, उसके हृदय पर असफलता का निशान है कि अपने जीवनकाल में उसने बहुत प्रयत्न करके भी स्वतंत्रता प्राप्त नहीं की।

इसके लिए कवि निराश तो नहीं लेकिन यह टीस उसके मन में अवश्य है कि उसके भरसक प्रयत्नों से भी देश आजाद न हो सका। साथ ही उसे प्रसन्नता इस बात की है कि उसने स्वतंत्रता प्राप्ति हेतु हर संभव प्रयत्न किया है।

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जीवन में मस्ती होनी चाहिए, लेकिन कब मस्ती हानिकारक हो सकती है? सहपाठियों के बीच चर्चा कीजिए।


यह सही है कि जीवन में मस्ती अर्थात् मजा होना चाहिए क्योंकि इससे ही व्यक्ति जीवन मैं आनंद व हर्ष अनुभव करता है। लेकिन यदि हमारे द्वारा की गई मस्ती किसी को नुकसान पहुँचाए तो उसे हम मस्ती का नाम नहीं दे सकते।

हम बलि-वीरों की मस्ती को सर्वश्रेष्ठ व आनंददायक मानते हैं क्योंकि लाख कठिनाइयाँ सहने पर भी वे संतुष्ट व आनंदित रहते हैं। उनके हृदय में सदा आगे बढ़ने की चाह बनी रहती है। अपने जीवनकाल में कुछ विशेष कार्य करके वे लोगों के लिए प्रेरक बनना चाहते हैं।

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कविता में ऐसी कौन-सी बात है जो आपको सबसे अच्छी लगी?


कविता में हमें सबसे अच्छी लगी दीवानों की ‘मस्ती’। सुख-दुख सब सहते हुए भी वै मस्त हैं उन्हें किसी की परवाह नहीं। मस्ती में जीकर जान हथेली पर रखकर देश को स्वतंत्र करवाना चाहते हैं।

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एक पंक्ति में कवि ने यह कहकर अपने अस्तित्व को नकारा है कि “हम दीवानों की क्या हस्ती, हैं आज यहाँ, कल वहाँ चले।” दूसरी पंक्ति में उसने यह कहकर अपने अस्तित्व को महत्व दिया है कि “मस्ती का आलम साथ चला, हम धूल उड़ाते जहाँ चले।” यह फाकामस्ती का उदाहरण है। अभाव में भी खुश रहना फाकामस्ती कही जाती है।
कविता में इस प्रकार की अन्य पंक्तियाँ भी हैं उन्हें ध्यानपूर्वक पढ़िए और अनुमान लगाइए कि कविता में परस्पर विरोधी बातें क्यों की गई हैं?


ऐसे परस्पर विरोधी विचारों का समावेश कविता में इसलिए किया गया है क्योंकि बलिदानी वीर अपने विचारों उद्यम व बलिदान पथ के स्वयं ही मालिक थे। उनके विचारों में दुख-सुख, उल्लास-अश्रु, बंधन-मुक्ति आदि शब्दों का कोई महत्त्व न था। उनका लक्ष्य तो था देश को स्वाधीन करवाना और इस हेतु वे निरंतर कार्यरत रहते हैं।

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कवि ने अपने आने को ‘उल्लास’ और जाने को ‘आँसू बनकर बह जाना’ क्यों कहा है?


कवि का मानना है कि जब वे अपने बंधु-बांधवों से मिलने आते हैं तो सबके चेहरों पर खुशी छा जाती है और जब सहसा जाने की बात आती है तो वही खुशी अश्रुओं का रूप धारण कर लेती है अर्थात् उनके जाने का दुख सहन नहीं होता। लेकिन वीरों को तो अपने चुने मार्ग पर बढ़ना ही होता है।

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दीवानों की कोई हस्ती नहीं होती है, मतलब उन्हें इसका कोई घमंड नहीं होता कि वे कितने बड़े आदमी हैं, और ना ही इसका मलाल होता है कि उन्हें किसी चीज की कमी है। ऐसे लोगों को किसी स्थान विशेष या किसी व्यक्ति विशेष से ऐसा लगाव नहीं होता कि उनके बिना वे रह न सकें। ऐसे लोगों को परिवर्तन पसंद होता है। उनका मानना होता है कि जीवन में एक ही चीज स्थायी है और वह है परिवर्तं। उनके साथ हमेशा मस्ती यानि खुशी का आलम होता है और वे जहाँ भी जाते हैं गम को धूल में उड़ा देते हैं। उनकी सकारात्मक ऊर्जा के कारण दुख कोसों दूर भाग जाते हैं।

आये बनकर उल्लास अभी,
आंसू बनकर बह चले अभी
सब कहते ही रह गये अरे
तुम कैसे आये, कहाँ चले?

वे किसी जगह पर जाते हैं तो एक उल्लास की तरह सबमें जोश का संचार कर देते हैं। जब वे कहीं से जाते हैं तो आंसू की तरह जाते हैं। पीछे लोग अफसोस करते रह जाते हैं उनके चले जाने का। ऐसे लोग कहीं भी ज्यादा देर तक टिकते नहीं हैं। अंग्रेजी में एक कहावत है कि ऑल नाईस थिंग्स कम इन स्मॉल पैकेज। इसका मतलब हुआ कि हर अच्छी बात की मियाद छोटी होती है। इसलिए जब कोई अच्छी बात होती है तो लगत है कि वह बहुत थोड़े समय के लिए टिकती है। जाहिर है उसके समाप्त हो जाने से कोई भी दुखी हो जाता है।

किस ओर चले यह मत पूछो?
चलना है बस इसलिए चले
जग से उसका कुछ लिए चले
जग को अपना कुछ दिए चले

उनका काम होता है चलते रहना। दिशा कोई भी हो चलते रहने का नाम ही जिंदगी है। जो असली दीवाने होते हैं वो हमेशा संसार से कुछ लेते रहते हैं और बदले में उसे कुछ ना कुछ देते रहते हैं। उनकी जिंदगी में कभी भी कोई अर्धविराम नहीं आता है, पूर्णविराम तो बहुत दूर की बात है।

जब भी आप दुविधा में हों तो रुकना नहीं बल्कि चलते रहना चाहिए। कहते हैं कि पानी यदि ठहर जाए तो दूषित हो जाता है। हर व्यक्ति इस दुनिया से बहुत कुछ लेता है और दुनिया को कुछ न कुछ देता है। यही शाश्वत है।

दो बात कही, दो बात सुनी
कुछ हँसे और फिर कुछ रोये
छककर सुख दुख के घूंटों को
हम एक भाव से पिए चले

वे लोगों से बातों के जरिये दुख सुख बाँटते हैं और सुख और दुख दोनों के घूँट छककर और मजा लेकर पीते हैं। दीवाने भावुक होते हैं इसलिए अपनी हंसी और अपने आंसुओं को कभी नहीं रोकते हैं। ऐसे लोग खुलकर हँसते हैं और खुलकर रोते भी हैं। ऐसे लोग सुख और दुख दोनों को पूरी तरह आत्मसात करना जानते हैं।

हम भिखमंगों की दुनिया में
स्वच्छंद लुटाकर प्यार चले
हम एक निसानी सी उर पर
ले असफलता का भार चले

कवि कहता है कि यह दुनिया वैसे लोगों से भरी पड़ी है जिनके दिल और दिमाग तंग होते हैं। प्यार बाँटने के मामले में अधिकतर लोग भिखारी की तरह होते हैं। लेकिन दीवाने अपना प्यार खुले हाथ से लुटाते फिरते हैं। इसके बावजूद कवि को लगता है कि दीवाने अन्य लोगों में उदारता की इस भावना को भरने में असफल हो जाते हैं। इसलिए दीवाने उस असफलता को अपने दिल से लगा कर बैठते हैं।

अधिकतर लोग स्नेह बाँटने के मामले में भिखारी होते हैं। अक्सर लोग अपने चिर परिचितों के साथ तो गर्मजोशी से बातें करते हैं लेकिन अजनबियों से दूरी बनाकर रखते हैं। बहुत कम लोग ऐसे होते हैं जो अजनबियों से भी खुलकर बातें करते हैं। कई बार ट्रेन में सफर करते समय आपको ऐसे लोग मिल जायेंगे। लेकिन ऐसे लोगों से सान्निध्य के बावजूद बाकी लोग अपने रवैये में कोई बदलाव नहीं ला पाते हैं।

अब अपना और पराया क्या?
आबाद रहे रुकने वाले
हम स्वयं बंधे थे और स्वयं
हम अपने बंधन तोड़ चले

इन पंक्तियों में कवि कहता है कि जब कोई दीवाना किसी स्थान या पड़ाव से आगे निकल पड़ता है तो वह अपने सारे बंधन तोड़ देता है। फिर उसके लिए अपने और पराये का कोई मतलब नहीं रह जाता है। दीवाने यह भी मानते हैं कि जो लोग दुनियादारी के बंधन में बंधे हुए हैं वो भी खुशहाल रहें।

लेकिन ज्यादा बेफिक्र जिंदगी जीना भी सही नहीं होता है। जिन कामों में गंभीरता की जरूरत हो वहाँ गंभीर रहना चाहिए, नहीं तो ज्यादा मस्ती आपको कहीं न कहीं असफल होने के लिए बाध्य करेगी। दीवाने लोग रोजमर्रा के जीवन की असफलता को सीने से निशानी की तरह लगा लेते हैं।

उनके लिए कोई अपना या पराया नहीं होता है, और कोई बंधन नहीं होता है। ये बातें कुछ-कुछ सन्यासियों को शोभा दे सकती हैं। लेकिन यदि आप साधारण मनुष्य की तरह जीना चाहते हैं तो आपको अपना पराया अदि के मूल्य को समझना होगा।