मातृभाषा माता की बोली, मदर्स टंग का ही परिनिष्ठित साहित्यिक रूप होती है ! भाषा -शिक्षण की दृष्टि से इस परिनिष्ठित भाषा का ही महत्व है, क्योंकि यह हमारे साहित्य, ज्ञान -विज्ञान की भाषा है, वही शिक्षित जनोचित शिष्ट भाषा है ! वही पत्र-पत्रिकाओं की भाषा है, और वही समस्त सामाजिक क्रिया-कलापों में संचार की भाषा है ! यही भाषा हमारी सहज अभिव्यक्ति का साधन है और उसी भाषा में हमारे भाव एवं विचार बनते और स्फुटित होते हैं ! हमलोगो की मातृभाषा हिंदी है ! सामान्यतः जिस भाषा को व्यक्ति अपने शिशु काल में अपनी माता एवं सम्पर्क में आने वाले अन्य व्यक्तियों का अनुकरण करके सीखता है, उसे उस व्यक्ति की मातृभाषा कहते हैं। परन्तु भाषा विज्ञान में इसे बोली कहा जाता है। भाषा वैज्ञानिक कई समान बोलियों की प्रतिनिधि बोली को विभाषा और कई समान विभाषाओं की प्रतिनिधि विभाषा को भाषा कहते हैं। और यही भाषा यथा क्षेत्र के व्यक्तियों की मातृभाषा मानी जाती है। Show
Contents
मातृभाषाभाषा शिक्षण की दृष्टि से भी मातृभाषा से तात्पर्य इसी भाषा से होता है। प्रायोगिक दृष्टि से मनुष्य अपने परिवार अथवा क्षेत्र में मौखिक रूप से चाहे जिस विभाषा की चाहे जिस बोली का प्रयोग करता हो परन्तु लिखित रूप में वह इसी सर्वमान्य भाषा का प्रयोग करता है। और यही इस क्षेत्र के व्यक्तियों की मातृभाषा मानी जाती है। अब यदि हम मातृभाषा को परिभाषा में बांधना चाहें तो निम्नलिखित रूप में परिभाषित कर सकते हैं
मातृभाषा का महत्त्वमातृभाषा मनुष्य के विकास की आधारशिला होती है। इसके माध्यम से ही वह भावाभिव्यक्ति करता है, इसी के माध्यम से विचार करता है और इसी के माध्यम से विचार-विनिमय करता है। मातृभाषा सामाजिक व्यवहार एवं सामाजिक अन्तःक्रिया की भी आधार होती है। प्रायः सभी समाज अपनी शिक्षा का माध्यम भी मातृभाषा को ही बनाते हैं। शिक्षा का माध्यम होने के नाते यह अन्य भाषाओं एवं समस्त ज्ञान-विज्ञान को सीखने-सिखाने का साधन होती है। इस प्रकार व्यक्ति एवं समाज दोनों के विकास में मातृभाषा की आधारभूत भूमिका होती है। मातृभाषा हिन्दी की तो एक और विशेषता है और वह यह कि यह हमारे देश की जन भाषा, सम्पर्क भाषा, राष्ट्रभाषा और राजभाषा है। इतना ही नहीं अपितु कई प्रान्तों-दिल्ली, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान और बिहार की भी राजभाषा है। इस प्रकार हमारे देश में मातृभाषा हिन्दी का महत्त्व और भी अधिक है। मातृभाषा के महत्त्व को हम अग्रलिखित रूप में क्रमबद्ध कर सकते हैं- अभिव्यक्ति का सरलतम माध्यम एवं मानव विकास की आधारशिलामातृभाषा को बच्चे जन्म के कुछ दिन बाद ही सीखना प्रारम्भ कर देते हैं, इस भाषा पर उनका सहज अधिकार होता है। मनुष्य अपने भावों एवं विचारों की अभिव्यक्ति जितनी सरलता एवं सहजता से अपनी मातृभाषा के माध्यम से करते हैं उतनी सरलता और सहजता से किसी अन्य भाषा के माध्यम से नहीं। मातृभाषा मानव विकास की आधारशिला होती है। शिक्षा का माध्यम एवं अध्ययन-अध्यापन की आधारशिलामातृभाषा भावाभिव्यक्ति एवं विचार-विनिमय का सरलतम माध्यम होती है इसलिए प्रायः सभी समाज इसे अपने बच्चों की शिक्षा का माध्यम बनाते हैं। जिन क्षेत्रों की मातृभाषा शिक्षा के माध्यम हेतु सक्षम नहीं होती उन क्षेत्रों में भी प्रारम्भिक शिक्षा का माध्यम प्रायः उन क्षेत्रों की मातृभाषा को ही बनाया जाता है। इस प्रकार मातृभाषा अन्य भाषाओं एवं समस्त ज्ञान – विज्ञान को सीखने का साधन होती है, अध्ययन-अध्यापन की आधारशिला होती है। बच्चों के सर्वांगीण विकास में सहायकबच्चों के विकास में सबसे अधिक भूमिका उसकी मातृभाषा और उसके साहित्य की होती है। आज हमारे देश में शिक्षा के द्वारा बच्चों की शारीरिक, मानसिक, वैयष्टिक एवं सामाजिक, सांस्कृतिक, नैतिक एवं चारित्रिक और व्यावसायिक विकास करने पर सर्वाधिक बल दिया जा रहा है। इनके अतिरिक्त लोकतन्त्र और नागरिकता की शिक्षा और राष्ट्रीय लक्ष्यों की प्राप्ति पर भी बल है। इस समय राष्ट्रीय लक्ष्यों में जनसंख्या शिक्षा, पर्यावरण शिक्षा और वैज्ञानिक प्रवृत्ति का विकास मुख्य हैं। राष्ट्रीय एकता और अन्तर्राष्ट्रीय अवबोध समय की सबसे बड़ी मांगे हैं। कुछ शिक्षाविद् शिक्षा द्वारा बच्चों के आध्यात्मिक विकास पर भी बल देते हैं। इन सब उद्देश्यों की प्राप्ति में मातृभाषा और उसके साहित्य की मूल भूमिका होती है।
मातृभाषा हिन्दी की एक और विशेषताहिन्दी भारत की कुल जनसंख्या के आधे से अधिक व्यक्तियों की मातृभाषा है। यह भारत की जनभाषा, सम्पर्क भाषा, राष्ट्रभाषा और राजभाषा है और साथ ही उत्तर प्रदेश, उत्तराखण्ड, दिल्ली, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, बिहार और झारखण्ड प्रान्तों की भी राजभाषा है। यह बात दूसरी है कि अंग्रेजी सह राजभाषा के रूप में अभी तक प्रयोग की जाती है। देश की एकता और अखण्डता और उसके त्वरित विकास के लिए हमारे देश में मातृभाषा हिन्दी का सर्वाधिक महत्त्व है। सौ बातों की एक बात यह है कि विचार और भाषा परस्पर अभिन्न रूप से सम्बद्ध हैं। मनुष्य के विचार उसकी अपनी मातृभाषा में उठते, पनपते और समाप्त होते हैं। भाषा के अभाव में विचार नहीं किया जा सकता और विचार के अभाव में प्रगति नहीं की जा सकती। मनुष्य ने अब तक जो भी प्रगति की है उसका मूल आधार उसकी मातृभाषा ही है। मानव जीवन में सर्वाधिक महत्त्व उसकी मातृभाषा का ही होता है। मातृभाषा क्या है और इसका महत्व?मातृभाषा हमें राष्ट्रीयता से जोड़ती है और देश प्रेम की भावना उत्प्रेरित भी करती है। मातृभाषा ही किसी भी व्यक्ति के शब्द और संप्रेषण कौशल की उद्गम होती है। एक कुशल संप्रेषक अपनी मातृभाषा के प्रति उतना ही संवेदनशील होगा जितना विषय-वस्तु के प्रति। मातृभाषा व्यक्ति के संस्कारों की परिचायक है।
मातृभाषा हमारी क्या है?मातृभाषा वह भाषा है जो हम जन्म के साथ सीखते हैं. जहां हम पैदा होते है, वहां बोली जाने वाली भाषा खुद ही सीख जाते हैं. आसान भाषा में समझें तो जो भाषा हम जन्म के बाद सबसे पहले सीखते हैं, उसे ही अपनी मातृभाषा मानते हैं.
मातृभाषा क्या है और उदाहरण दीजिए?उदाहरण जैसे- भारत की राष्ट्रभाषा हिंदी है। मातृभाषा - भाषा का वह रूप जिसे बालक सबसे पहले अपने परिवार में रहकर सीखता है वह मातृभाषा कहलाती है। वह भाषा जिसे बालक अपनी माता या परिवार से सीखता है, 'मातृभाषा' कहलाती है। जन्म के बाद प्रथम जो भाषा का प्रयोग करते है वही हमारी मातृभाषा है।
मातृभाषा क्या है pdf?-मातृभाषा का शाब्दिक अर्थ है माँ से सीखी हुई भाषा ! बालक यदि माता-पिता के अनुकरण से किसी विभाषा को सीखता है तो वह विभाषा ही उसकी मातृभाषा कही जाती है !
|