कितने रंग का मिटटी होता है?... Show
चेतावनी: इस टेक्स्ट में गलतियाँ हो सकती हैं। सॉफ्टवेर के द्वारा ऑडियो को टेक्स्ट में बदला गया है। ऑडियो सुन्ना चाहिये। भारत में संभवत आठ प्रकार के मिट्टी में विभाजित किया गया है लेकिन प्रमुख चार है लाल मिट्टी काली मिट्टी दोमट मिट्टी और चिकनी मिट्टी थैंक यू सो मच Romanized Version 1 जवाब Vokal App bridges the knowledge gap in India in Indian languages by getting the best minds to answer questions of the common man. The Vokal App is available in 11 Indian languages. Users ask questions on 100s of topics related to love, life, career, politics, religion, sports, personal care etc. We have 1000s of experts from different walks of life answering questions on the Vokal App. People can also ask questions directly to experts apart from posting a question to the entire answering community. If you are an expert or are great at something, we invite you to join this knowledge sharing revolution and help India grow. Download the Vokal App! कितने रंग का मिटटी होता है?...चेतावनी: इस टेक्स्ट में गलतियाँ हो सकती हैं। सॉफ्टवेर के द्वारा ऑडियो को टेक्स्ट में बदला गया है। ऑडियो सुन्ना चाहिये। रंग के आधार पर मिट्टी कई प्रकार के होते हैं जैसे कि लाल मिट्टी इन में आयरन ऑक्साइड की अधिकता होती है काली मिट्टी इसमें अल्मुनियम ऑक्साइड की अधिकता होती है रे गुरु मिट्टी यह मटमैला या भूरे रंग का होता है इसमें उमस की मात्रा अधिक होती है अब बांगर मिट्टी यह काले भूरे रंग की होती है इसमें भी इस उमस की मात्रा अधिक होती है तो पदार्थों के पाए जाने का आधार पर मिट्टियों के रंग अलग-अलग प्रकार के होते हैं Romanized Version 1 जवाब Vokal App bridges the knowledge gap in India in Indian languages by getting the best minds to answer questions of the common man. The Vokal App is available in 11 Indian languages. Users ask questions on 100s of topics related to love, life, career, politics, religion, sports, personal care etc. We have 1000s of experts from different walks of life answering questions on the Vokal App. People can also ask questions directly to experts apart from posting a question to the entire answering community. If you are an expert or are great at something, we invite you to join this knowledge sharing revolution and help India grow. Download the Vokal App! इस लेख मे हम जानेगे कि मिट्टी कितने प्रकार की होती है ? mitti kitne prakar ki hoti hai और मिट्टी के गुणों के बारे मे चर्चा करेंगे। पृथ्वी के उपरी सतह पर मोटे, मध्यम और बारीक कार्बनिक तथा अकार्बनिक मिश्रित कण देखने को मिलते हैं जिनको मृदा कहा जाता है।नदियों के द्धारा बहाकर लाई जाने वाली मिट्टी को जलोढ मिट्टी के नाम से जाना जाता है। और जब इस मिट्टी की खुदाई की जाती है तो नीचे चट्टान नहीं मिलती है वरन पानी निकल आता है।वैसे तो मिट्टी कई प्रकार की होती हैं लेकिन सभी प्रकार की मिट्टी चट्टानों से ही बनती है।जिन स्थानों पर जलवायु के अंदर फेरबदल नहीं हुआ है। वहां पर उपर की मिट्टी खोदने पर आपको नीचे चट्टाने मिल सकती हैं। हालांकि नीचे की चट्टानों की गुण धर्म उपर की रेत से अलग हो सकते हैं।यदि हम एक चट्टान की उपरी परत का अध्ययन करें तो वहां पर चट्टानो के छोटे छोटे टुकडे मिलेंगे जो अभी मिट्टी के अंदर नहीं बदले हैं लेकिन इस प्रक्रिया से वे गुजर रहे हैं। इन टुकड़ों के गुण धर्म मिट्टी से मिलती हैं। तो अब वैज्ञानिक यह साफ कर चुके हैं कि सभी प्रकार की मिट्टी की उत्पति चट्टानों से हुई है। चट्टानों के विघटन का परिणाम ही मिट्टी है। जैसा कि पूर्व मे बताया गया कि पहले धरती एक आग का गोला हुआ करती थी जो बाद मे ठंडा हुई और चट्टानों की रेत को नदियों द्धारा इधर उधर लेकर जाया गया और उसके बाद जैसे जैसे नदियां सुखती गई रेत जमती चली गई । आज हम जिस भू भाग पर रह रहे हैं वहां पर कभी विशाल समुद्र हुआ करते थे । नीचे की चट्टानों से यदि हम उपर की तरफ बढ़ते हैं तो अंत मे हमको वह मिट्टी मिलेगी जिसपर हम खेती करते हैं।और यही वह रेत है जिस पर इंसान आदिकाल से अपने खाने के लिए अन्न उगाता हुआ आ रहा है। जलोढ़ रेत अन्न के लिए बहुत ही उपयोगी है। इसी लिए तो विश्व की प्राचीन सभ्यताएं नदी के किनारे विकसित हुई थी। असल मे हमारे खेतों की मिट्टी में चट्टानों के खनिजों के साथ-साथ, पेड़ पौधों के सड़ने से, कार्बनिक पदार्थ भी मिल जाएंगे । वैज्ञानिक विश्लेषण से यह पता चला है कि चट्टानों की छीजन क्रिया चलती रहती है और इसी से रेत का विकास होता है।चट्टानों के रासायनिक अवयव बदलते रहते हैं । हालांकि एक बारिकी चट्टान और मिट्ठी के अंदर अंतर होता है।चट्टान के उपरी भाग के अंदर खनीज पाये जाते हैं। और रेत का रंग बदलने का पहला कारण यह है कि इसके अंदर अनेक प्रकार के जीव और जंतू मिलते रहते हैं। इसके अलावा सड़े गले पेड़ पौधों के साथ मिट्टी की प्रतिक्रिया होती है। इससे मिट्टी के गुण और संरचना बदल जाती है। यदि चट्टान और मिट्टी की तुलना करें तो पाएंगे कि इन दोनों के अंदर काफी अंतर है। मिट्टी के अंदर यह अंतर अकार्बनिक पदार्थों के मिलने की वजह से आता है। प्राकृतिक क्रियाओं की मदद से चट्ठानों का क्षय होता रहता है और मिट्टी के अंदर बदलती रहती हैं । इस प्रक्रिया के अंदर तापमान ,वर्षा और ऑक्सीजन वैगरह सहायक होते हैं। सर्वप्रथम 1879 ई० में डोक शैव ने मिट्टी का वर्गीकरण किया था और उन्होंने भारत की मिट्टी को 5 भागों मे बांटा था लेकिन बाद मे भारतिय कृषि अनुसंधान परिषद ने मिट्टी को 8 भागों के अंदर बांटा था। अब हम इन्हीं 8 मिट्टी के प्रकार के बारे मे चर्चा करने वाले हैं।
मिट्टी कितने प्रकार की होती है जलोढ़ मिट्टी या कछार मिट्टी (Alluvial soil)जलोढ मिट्टी को अलूवियम मिट्टी भी कहा जाता है। यह नदी के द्धारा बहाकर लाई गई मिट्टी होती है। इसके अंदर बजरी के कण होते हैं और कुछ महिन कण होते हैं। यही सबसे उपजाउ मिट्टी होती है । यह सबसे अधिक नदी के किनारों पर देखने को मिलती है। यह मिट्टी भारत के 8 वर्ग किलोमीटर के अंदर फैली हुई है।उत्तरी मैदान के अंदर नदियों के द्धारा बहाकर लाई गई रेत को कछारी के नाम से जाना जाता है। यह 40 प्रतिशत भू भाग पर पाई जाती है। गंगा ,यमुना और सतलज जैसी नदियों की वजह से इसका निर्माण हुआ है। जब नदी के अंदर बाढ़ आती है तो नदी की रेत पानी के साथ मैदानी ईलाकों के अंदर आ जाती है। बाढ़ का पानी सुखने के बाद वहां पर खेती की जाती है। भारत के अंदर 50 प्रतिशत उत्पादन इसी मिट्टी के अंदर होता है। वर्षा कितने प्रकार की होती है type of rain in hindi बिहार में गरीबी के 11 कारण के बारे मे जानिए तराइन का मैदान कहाँ है ? तरावड़ी के मैदान के बारे मे जानकारी तराइन का तृतीय युद्ध कब ? third battle of tarain in hindi जलोढ मिट्टी को दो प्रकार की बताया गया है।एक खादर जलोढ मिट्टी होती है जो पहले नदियों के द्धारा बहाकर लाई गई होती है। जबकि दूसरी नविन जलोढ़ मिट्टी होती है। नविन जलोढ़ मिट्टी खेती के लिए सबसे अधिक उपयुक्त होती है। ज्वार, मटर, लोबिया, काबुली चना तंबाकू, कपास, चावल, गेहूं, बाजरा, काला चना, हरा चना, सोयाबीन, मूंगफली, सरसों, तिल, जूट, मक्का, तिलहन आदि जलोढ़ मिट्टी के अंदर होती हैं। सिन्धु, गंगा और ब्रह्मपुत्र इन तीन नदियों के द्धारा जलोढ़ मिट्टी लाई जाती है।पूर्वी तटीय मैदानों में यह मिट्टी कृष्णा, गोदावरी, कावेरी और महानदी के डेल्टा में प्रमुख रूप से पाई जाती है|यह मिट्टी सतलज, गंगा, यमुना, घाघरा,गंडक, ब्रह्मपुत्र और इनकी सहायक नदियों द्वारा लाई जाती है काली मिट्टी या रेगुर मिट्टी (Black soil)भारत की मिट्टी से काली मिट्टी सबसे अलग देखने को मिलती है।नाइट्रोजन,पोटास इसमे बहुत कम होते हैं। लेकिन यह कपास की खेती के लिए सबसे अधिक उपयुक्त होती है। इसी वजह से इसको कपास मिट्टी भी कहा जाता है। इस मिट्टी में मैग्नेशियम,चूना,लौह तत्व तथा कार्बनिक पदार्थों की कमी नहीं होती है और इसका काला रंग टिटेनीफेरस मैग्नेटाइड एंव जीवांश की वजह से होता है। काली मिट्टी को तीन अलग अलग भागों के अंदर बांटा गया है। जिनके बारे मे भी आपको जानने की जरूरत है।
काली मिट्टी के मामले मे गुजरात दूसरा स्थान रखता है।मिट्टी का निर्माण ज्वालामुखी के उदगार के कारण बैसाल्ट चट्टान के टूटने से हुआ है।अलग अलग जगहों पर काली मिट्टी को अलग अलग नाम से जाना जाता है। जैसे दक्षिण भारत के अंदर काली मिट्टी को रेगूड़ व केरल मे शाली कहा जाता है। लोहे के अंश की वजह से इस मिट्टी का रंग काला होता है।यह भारत के अंदर लगभग 5.46 लाख वर्ग किमी मे फैली हुई है। मिट्टी कितने प्रकार की होती है लाल मिट्टी (Red soil)यह मिट्टी लाल पीले और चॉकलेटी रंग की होती है।चट्टानों के टूटने से यह मिट्टी बनती है। यह गीली होने पर हल्की पीली दिखती है।लोहा, ऐल्युमिनियम और चूना इसके अंदर सबसे अधिक मात्रा मे पाया जाता है। कपास, गेहूँ, दाल, मोटे अनाज को उगाने के लिए सबसे अच्छी होती है लेकिन इसके अंदर बाजरे की फसल अधिक होती है। मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखण्ड, पश्चिमी बंगाल, मेघालय, नागालैण्ड, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, तमिलनाडु तथा महाराष्ट्र के अंदर देखने को मिलती है। भारत में 5.18 लाख वर्ग किमी0 के अंदर लाल मिट्टी देखने को मिलती है। इसके अलावा तमिलनाडु राज्य के अंदर सबसे अधिक लाल मिट्टी देखने को मिलती है। नाइट्रोजन एवं फॉस्फोरस मात्रा इस मिट्टी मे कम होती है। और इसका लाल रंग आयरनर ऑक्साइड(Fe2O3) की वजह से होता है। लाल मिट्टी की विशेषताओं में झरझरा और भुरभुरा संरचना, चूना , कंकर और मुक्त कार्बोनेट्स की अनुपस्थिति और घुलनशील लवण की थोड़ी मात्रा शामिल है । लाल मिट्टी की रासायनिक संरचना गैर घुलनशील पदार्थ 90.47%, शामिल लोहा 3.61%, एल्यूमिनियम 2.92%, कार्बनिक पदार्थ 1.01%, मैग्नीशियम 0.70%, चूना 0.56%, कार्बन डाइऑक्साइड 0.30%, पोटाश 0.24%, सोडा 0.12%, फॉस्फोरस 0.09% और नाइट्रोजन 0.08% होते हैं। लैटराइटमिट्टी (Laterite)लैटराइट मिट्टी (Laterite) ऐसे भागों के अंदर देखने को मिलती है । जहां पर शुष्क मौसम और बारिश का मौसम बार बार आता रहता है।लेटेराइट चट्टानों के टूटने से इस मिट्टी का निर्माण हुआ है। इसमे लोहा, ऐल्युमिनियम और चूना , पोटाश आदि की मात्रा अधिक होती है।लैटराइट मिट्टी लाल रंग लिये हुए होती है।यह मिट्टी अम्लिये होने की वजह से चाय और कहवा के उत्पादन के लिए सबसे अधिक उपयुक्त होती है। भारत के अंदर यह कई जगहों पर पाई जाती है। जैसे तमिलनाडू के पहाड़ी भागों मे , केरल के समुद्र तट के आस पास,उडिसा के पठार और महाराष्ट्र के अंदर भी यह मिट्टी देखने को मिलती है। उड़ीसा का जगन्नाथ पुरी तथा आंध्र प्रदेश का गोदावरी जिला और मालाबार, दक्षिण कनारा, चिंगलपट जिला तथा त्रावनकोर, कोचीन, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश एवं कर्नाटक के अंदर इस मिट्टी का बड़ी मात्रा के अंदर खनन हो रहा है। घर के निर्माण मे इस मिट्टी का ही प्रयोग किया जाता है।यदि मिट्टी के अंदर लोहे की मात्रा अधिक होती है तो लोहे को प्राप्त किया जा सकता है। इसी प्रकार से एलुमिनियम की मात्रा अधिक होने से यह भी प्राप्त किया जा सकता है। लटेराइट यह भारत, मलाया, पूर्वी द्वीपसमूह, ऑस्ट्रेलिया, अफ्रीका, दक्षिण अमरीका, क्यूबा आदि स्थानों पर पाया जाता है।लैटेराइट के कई प्रकार होते हैं। जिनके बारे मे भी हमे बात करनी चाहिए
क्वार्टज़ाइट और सिलिकामय शैलों से लेटलाइट मिट्टी नहीं बनती है। बाकी सभी प्रकार की शैलों से इसका निर्माण होता है।भारत में दक्षिणी के अंदर जो लेटराइट मिलता है उसकी मोटाई 100 मीटर तक पहुंच सकती है।इस मिट्टी के तीन स्तर होते हैं। लैटराइट मिट्टी की सबसे उपरी परत के अंदर लौहे की मात्रा सबसे अधिक होती है।जबकि उसके बाद की परत के अंदर ऐल्यूमिनियम अधिक होता है। शैल सिलिकेट होने की वजह से ग्रीष्म ,धूप और बारिश व जीवाणूओं व वनस्पतियों से इनका क्षय होता है।सिलिकेट टूटकर पानी वैगरह के साथ बहकर लैटराइट मिट्टी बनाते हैं। लेटेराइट मिट्टी बहुत ही प्राचीन है। अतिनूतन युग (Pliocene) से भी इसको प्राचीन माना गया है। कहीं कहीं पर इसके अंदर पाषाणकालिन औजार भी मिले हैं। भारत के लैटेराइट को उच्चस्तरीय व निम्नस्तरीय लैटेराइट दो भागों के अंदर बांटा गया है।२,००० फुट पर पाई जाने वाली लैटराइट को उच्चस्तरीय लैटराइट कहा गया है। जबकि इससे नीचे पाई जाने वाली लैटराइट को निम्नस्तरीय लैटेराइट के नाम से जाना जाता है। शुष्क मृदा (Arid soils)रेगिस्तानी मिट्टी भी इसको कहा जाता है। यह शुष्क या शुष्क या अर्ध-शुष्क जलवायु में बनता है। यहां पर कम वनस्पति पाई जाती है।एरिडिसोल में कार्बनिक पदार्थों की बहुत कम एकाग्रता होती है। पानी की कमी एरिडिसोल की प्रमुख विशेषता होती है। सिलिकेट क्लेज़, सोडियम, कैल्शियम कार्बोनेट, जिप्सम ,जैसे खनीज इसके अंदर होते हैं। नाइट्रोजन एवं कार्बनिक पदार्थों की मात्रा कम होती है। इसके अंदर तिलहन का उत्पादन अधिक होता है। जैसे बाजरा ज्वार आदि का उत्पादन अच्छा होता है। लवण मृदा या क्षारीय मिट्टी (Saline soils)लवण मृदा के अंदर क्षार और लवण प्रमुखता से पाये जाते हैं।शुष्क जलवायु वाले स्थानों पर यह लवण भूरे-श्वेत रंग के रूप में भूमि पर देखने को मिलते हैं। इस मिट्टी लवण की वनस्पति के अलाव किसी भी प्रकार की वनस्पति नहीं उगपाती है।यहां पर पानी का सही तरीके से निकास नहीं होने की वजह से बारिश का पानी गड्डों के अंदर जमा हो जाता है। और गर्मी की वजह से वाष्प बनकर उड़ जाता है। यह मिट्टी उत्तर प्रदेश, पंजाब एवं महाराष्ट्र व तमिलनाडू और आंध्रप्रदेश के अंदर भी पाई जाती है। धान वा जौ इस प्रकार की मिट्टी के लिए सबसे अधिक उपुक्युत होते हैं। इस मृदा के अंदर धुलनशील लवणों की मात्रा अधिक होने की वजह से पौधे का विकास प्रभावित होता है।इसके अंदर कैलिसियम ,मैग्नििशियम अधिक मात्रा मे होते हैं। इस मिट्टी के अंदर अच्छे पानी की मदद से सिंचाई की जाती है। और लवण को पानी के साथ बहा दिया जाता है। काफी प्रयास के बाद इसको खेती करने के योग्य बनाया जा सकता है। लवणिय मृदा को बहुत ही आसानी से पहचाना जा सकता है।
पीटमय मृदा (Peaty soil) तथा जैव मृदा (Organic soils)जैव मृदा को दलदली मृदा के नाम से जाना जाता है। और यह मृदा भारत के अंदर केरल ,तराखंड और पश्चिम बंगाल मे पाई जाती है।इस मिट्टी के अंदर फास्फोरस और पोटाश की मात्रा कम होती है।इसके अंदर लवण की मात्रा अधिक होती है लेकिन यह फसल के लिए अच्छी होती है। वन एवं पर्वतीय मिट्टीपर्वतीय मिट्टी के अंदर सबसे अधिक कंकड पत्थर पाये जाते हैं। और इसके अंदर पोटाश, फास्फोरस एवं चूने की कमी होती है। पहाड़ी क्षेत्रों के अंदर इसी प्रकार की मिट्टी होती है। यहां पर झूम खेती की जाती है। खासकर नागालैंड के अंदर इसी प्रकार की मिट्टी पाई जाती है। पर्वतिय मिट्टी को 3 भागों के अंदर बांटा गया है। आइए इसके बारे मे भी जान लेते हैं।
मिट्टी के स्तरआपने यदि कभी मिट्टी को खोदा होगा तो पाया होगा कि हम जैसे जैसे जमीन के नीचे जाते हैं। वैसे वैसे मिट्टी की संरचना के अंदर बदलाव आते हैं।जल का प्रपात तथा वायु और सूर्यकिरण की वजह से उपर की मिट्टी कुछ ही समय मे नीचे की मिट्टी से अलग रूप धारण कर लेती है। यदि हम जमीन के अंदर 12 फुट जाएंगे तो हमे मिट्टी का एक अलग स्तर प्राप्त होगा ।वैज्ञानिकों ने मिट्टी के तीन स्तरों को माना है। आमतौर पर जब जल मिट्टी की उपरी परत पर बहता है तो वह अनेक प्रकार के रसायनों को लेकर नीचे जाता है और इससे मिट्टी की संरचना बदल जाती है। जैसा की आप चित्र के अंदर देख सकते हैं। उपर के स्तर औ के अंदर जल आता है जो स्तर ए तक पहुंचता है। और उसके बाद यह स्तर बी तक चला जाता है।और अंतिम स्तर सी होता है। जहां पर बड़ी बड़ी चट्टाने होती हैं। जहां से मिट्टी बनती रहती है। यह बहुत ही गहराई मे होती है। मृदाविज्ञान (Pedology) एक ऐसी शाखा होती है। जिसके अंदर मिट्टी के बारे मे विस्तार से अध्ययन किया जाता है।एक अच्छे कृषक को मिट्टी के अलग अलग स्तरों के बारे मे जानकारी होनी चाहिए । क्योंकि यह एक दूसरे को प्रभावित करते हैं। मिट्टी के अंदर कई प्रकार के कण होते हैं। जिसकी मदद से ही खेती उपयोगी होती है। यही कण मिट्टी के अंदर नमी को बनाए रखने मे काफी सहायक होते हैं। और यह खाध्य पदार्थों को भी अवशोषित करते हैं। मिट्टी के कण भिन्न-भिन्न आकार प्रकार के, कोई बड़े तो कोई छोटे और कोई अति सूक्ष्म, होते हैं।बड़े कणों पर अनेक प्रकार की प्राक्रतिक क्रियाएं होती हैं। जिसकी वजह से यह छोटे कणों के अंदर टूट जाते हैं। और उसके बाद इनसे ही बालू ,काली और चिकनी मिट्टी प्राप्त होती है। मिट्टी के अंदर अलग अलग आकार के कण होने की वजह से अलग अलग प्रकार की मिट्टी बनती हैं और उनके अलग अलग भौतिक गुण होते हैं। मिट्टी के कण समूह बनाते हैं। भिन्न-भिन्न समूह भिन्न-भिन्न प्रकार की मिट्टी उत्पन्न करते हैं। कणों के समूह को कई भागों के अंदर बांटा गया है। जिनपर भी हम बात कर लेते हैं।
मिट्टीकेकणोंकाआकारमिट्ठी के कणों का आकार अलग अलग होता है। जैसा कि उपर बताया गया है।बड़े कणों वाली मिट्टी के अंदर पानी नीचे की तरफ बह जाता है। और मिट्टी जल्दी ही सूख जाती है। जबकि छोटे कणों वाली चिकनी मिट्टी की उपरी परत पर लंबे समय तक पानी बना रहता है। मिट्टी के कण उसके भौतिक गुण को प्रभावित करते हैं। मिट्टीमे Plasticity and Cohesionगुरुत्व, दबाव, प्रणोद जैसी चीजों का प्रभाव मिट्टी पर भी पड़ता है।कार्बनिक पदार्थों की अधिकता की वजह से मिट्टी मे Plasticity आ जाती है।मिट्टी के कण एक दूसरे को खींचते हैं इसी को Cohesion कहा जाता है। Cohesion जितना अधिक होता है।Plasticity भी उतनी ही अधिक हो जाती है। मिट्टी की अम्लता और क्षारीयतामिट्टी में अम्लता और क्षारीयता हो सकती है। यह दोनों ही पौधों के विकास के लिए हानिकारक होती है। अम्लता और क्षारियता को PH के अंदर मापा जाता है।यदि पीएच 1 से 4 है, मिट्टी अम्लीय है और 4 से 7.5 तक है, तो खारा मिट्टी 7.5 से 14 है, फिर मिट्टी क्षारीय है। मिट्टीके जैवऔरकार्बनिकपदार्थमिट्टी के अंदर जीवाणु, कीटाणु और जीवजंतु पाये जाते हैं जो मिट्टी के गुण के अंदर अनेक प्रकार के बदलाव करते रहते हैं।। मिट्टी कई कार्बनिक योगिकों से बना होता है। इसके अंदर जीवित और मरे हुए पौधे और पशु व माइक्रोबियल होते हैं। मिट्टी में 70% सूक्ष्मजीवों, 22% macrofauna, और 8% जड़ों की बायोमास रचना होती है। एक एकड़ मिट्टी के जीवित घटक में 900 एलबी के केंचुए, 2400 एलबी के कवक, 1500 एलबी के जीवाणु, 133 एलबी के प्रोटोजोआ होते हैं।
मिट्टी के अंदर पाये जाने वाले अकार्बनिक पदार्थआपको पता ही होगा कि मिट्टी के उपजाउपन के लिए अकार्बनिक पदार्थ बहुत ही उपयोगी होते हैं। नाइट्रोजन, पोटैशियम, फॉस्फोरस, कैल्सियम, मैग्नीशियम, सोडियम, कार्बन, ऑक्सीजन , हाइड्रोजन,लौह, गंधक, सिलिका, क्लोरीन , मैंगनीज, जस्ता, निकल, कोबल्ट मोलिब्डेनम, ताम्र आदि तत्व मिट्टी मे होते हैं। लौह भी पौधों के लिए बहुत उपयोगी होता है। यह मिट्टी के अंदर ऑक्साइड के रूप मे रहता है।और गंधक मिट्टी के अंदर सलफैट के रूप मे रहता है। कैल्सियम, मैग्नीशियम और सोडियम क्लोराइड आदि पौधे को मोटा करने का कार्य करते हैं। पोटैशियम सल्फेट और कार्बोनेट पौधे की रसायनिक क्रिया को बेहतर ढंग से करने का कार्य करते हैं।कैल्सियम मिट्टी में पौधे के तने को मजबूत बनाते हैं और मिट्टी की अम्लता को कम करने का कार्य करता है। मिट्टी के अंदर रहने वाली वायुआमतौर पर जब मिट्टी सूख जाती है तो उसके छिद्रों के अंदर वायु प्रवेश कर जाती है। वायु के अंदर कार्बन डाइऑक्साइड और ऑक्सीजन होता है। यह पौधे के लिए उपयोगी होते हैं। और जब मिट्टी के कणों के बीच पानी भरता है तो उसके अंदर भी वायु मिली रहती है। मिट्टी में रहने वाला जलमिट्टी के अंदर मौजूद जल को पौधें की जड़ अवशोषण करती हैं।लेकिन एक ऐसी अवस्था आती है जब मिट्टी के अंदर जल बहुत कम रह जाता है और पौधे सूखने लग जाते हैं। मिट्टी के अंदर कई प्रकार के जल पाये जाते हैं। जिनके बारे मे भी हम आपको बता देते हैं।
मिट्टीकेअंदरपानीधारणहर प्रकार की मिट्टी की पानी धारण की क्षमता अलग अलग होती है।जब एक खेत में पानी भर जाता है, तो मिट्टी का छिद्र स्थान पूरी तरह से पानी से भर जाता है। जिस बल के साथ मिट्टी में पानी होता है वह पौधों के लिए इसकी उपलब्धता निर्धारित करता है। आसंजन के बल पानी को खनिज और धरण सतहों पर दृढ़ता से पकड़ते हैं। नीचे टेबल के अंदर अलग अलग प्रकार की मिट्टी की पानी धारण क्षमता को दिखाया गया है।
पौधों केपोषकतत्वऔरमिट्टीकेअंदरसामान्यरूपसेउपलब्धतत्व
पौधे के विकास के लिए कई प्रकार के पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है जैसे कार्बन (C), हाइड्रोजन (H), ऑक्सीजन (O), नाइट्रोजन (N), फॉस्फोरस (P), पोटैशियम (K), सल्फर (S), कैल्शियम (Ca), मैग्नीशियम (Mg), आयरन (Fe) हैं। ), बोरान (B), मैंगनीज (Mn), तांबा (Cu), जस्ता (Zn), मोलिब्डेनम (Mo) एक पौधे को अपना जीवन चक्र पूरा करने के लिए कई प्रकार के तत्वो की आवश्यकता होती है। कुछ तत्व ऐसे होते हैं जो जरूरी होते हैं और कुछ गैर जरूरी होते हैं। यह पौधे को मिट्टी से ही प्राप्त होते हैं मिट्टीकेअंदरप्रदूषणजैसा कि सबको पता है कि अन्न मिट्टी से उत्पन्न होता है। आज प्रदूषण तेजी से बढ़ता जा रहा है। और विकास के नाम पर खुलने वाले उधोग अनेक प्रकार के कचरे को धरती मे छोड़ रहे हैं। जिससे मिट्टी खराब हो रही है और भूमी बंजर होती जा रही है। यदि ऐसे ही चलता रहा तो आने वाले कुछ सालों के अंदर धरती रहने योग्य ही नहीं बचेगी । आजकल आप देख रहे हैं कि उत्पादन बढ़ाने के नाम पर तरह तरह की दवाएं भूमी के अंदर डाली जाती हैं और इससे मिट्टी पूरी तरह से दूषित हो जाती है।कुछ साल बहुत उत्पादन देने के बाद वह पूरी तरह से बेकार हो जाती है। घरेलू कचरा, लौह अपशिष्ट औद्योगिक इकाइयों के अपशिष्ट मिट्टी को दूषित करते हैं।स्ट्रॅान्शियम, कैडमियम, यूरेनियम मिट्टी को पूरी तरह से बेकार बना देते हैं। उधोग धंधों के आस पास की भूमी मे अनेक प्रकार का कचरा छोड़ा जाता है। प्लास्टिक जैसी चीजों का अपघटन नहीं होने की वजह से यह लंबे समय तक भूमी मे बने रहते हैं। और आजकल प्रयोग की जाने वाली पॉलिथिन की थैली जमीन के अंदर अपघटित नहीं होती हैं। आजकल आप देख रहे हैं कि हर गांव और शहर के अंदर पॉलिथिन का ढेर पड़ा हुआ है जो भूमी को बंजर बना रहा है। कृषि के अंदर भी उत्पादन बढ़ाने के लिए रसायनों का प्रयोग तेजी से हो रहा है। कीटनाशकों के प्रयोग की वजह से सूक्ष्म जीव मर रहे हैं और मिट्टी दूषित हो रही है।फास्फेट,नाइट्रोजन एवं अन्य कार्बनिक रासायनिक भूमि के पर्यावरण एवं भूमिगत जल संसाधनों को प्रदूषित कर रहे हैं। और यही रसायन अनाज के माध्यम से हम तक पहुंच जाता है और अनेक प्रकार की बीमारियों को जन्म देता है।पीछे 30 वर्षों के अंदर रसायनों का प्रयोग 30 गुना अधिक बढ़ गया है। मिट्टी कितने प्रकार की होती है ? लेख के अंदर हमने मिट्टी के अलग अलग प्रकार के बारे मे जाना । उम्मीद करते हैं कि आपको यह लेख पसंद आया होगा । यदि आपका कोई सवाल हो तो नीचे कमेंट करके बताएं । मिट्टी कितने रंगों की होती है?मिट्टी की ऊपरी परत का रंग
मिट्टियों के रंग भिन्न भिन्न होते हैं। कुछ मिट्टियाँ सफेद होती है, कुछ लाल, कुछ भूरी, कुछ काली तथा कुछ राख के रंग की। कहीं कहीं पीली मिट्ट भी पाई जाती है।
मिट्टी कितने प्रकार की होती है वर्णन कीजिये?सर्वप्रथम 1879 ई० में डोक शैव ने मिट्टी का वर्गीकरण करते हुए मिट्टी को सामान्य और असामान्य मिट्टी में विभाजित किया, जिसके बाद भारत की मिट्टियाँ स्थूल रूप से पाँच वर्गो में विभाजित की गई है ।
भारत में कितने प्रकार की मिट्टी पाई जाती है?भारत में पाई जाने वाली प्रमुख प्रकार की मिट्टी- जलोढ़ मिट्टी, लाल मिट्टी, काली मिट्टी, पहाड़ी मिट्टी, रेगिस्तानी मिट्टी, लवणीय और क्षारीय मिट्टी, लेटराइट मिट्टी और पीट मिट्टी।
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