⇔दोस्तो आज की पोस्ट मे हम हिन्दी साहित्य मे प्रयोगवाद (Pryogvaad) को अच्छे से पढ़ेंगे ⇒ ‘डाॅ. नगेन्द्र’ के अनुसार – ‘‘हिन्दी साहित्य में ‘प्रयोगवाद’ नाम उन कविताओं के लिए रूढ़ हो गया है, जो कुछ नये भाव बोधों, संवेदनाओं तथा उन्हें प्रेषित करने वाले शिल्पगत चमत्कारों को लेकर शुरू-शुरू में ‘तार-सप्तक’ के माध्यम से सन् 1943 ई. में प्रकाशन जगत् में आयी और जो प्रगतिशील कविताओं के साथ विकसित होती गयीं तथा जिनका पर्यवसान (समापन) नयी कविता में हो गया।’’ ⇒ ‘डाॅ. गणपति चन्द्रगुप्त’ के अनुसार – ‘‘सन् 1943 ई. में अज्ञेय के नेतृत्व में हिन्दी कविता के क्षेत्र में एक नये आन्दोलन का प्रवर्तन हुआ, जिसे अब तक विभिन्न संज्ञाएँ – ‘प्रयोगवाद’, ‘प्रपद्यवाद’, ‘नयी कविता’ आदि प्रदान की गयी हैं। ये संज्ञाएँ इसके विकास की विभिन्न अवस्थाओं एवं दिशाओं को सूचित करती हैं; यथा – प्रारम्भ में जबकि कवियों का दृष्टिकोण एवं लक्ष्य स्पष्ट नहीं था, नूतनता की खोज के लिए केवल प्रयोग की घोषणा की गयी थी तो इसे ‘प्रयोगवाद’ कहा गया।’’ – इसी आन्दोलन की एक शाखा ने श्री नलिन विलोचन शर्मा के नेतृत्व में प्रयोग को अपना साध्य स्वीकार करते हुए अपनी कविताओं के लिए ‘प्रपद्यवाद’ का प्रयोग किया। – डाॅ. जगदीश गुप्त एवं लक्ष्मीकान्त वर्मा ने इसे अधिक व्यापक क्षेत्र प्रदान करते हुए ‘नयी कविता’ नाम से प्रचारित किया। ⇒ सारांश – उपर्युक्त दोनों विद्वानों के कथनों के आधार पर सारांशतः यह कहा जा सकता है कि ‘‘सन् 1943 ई. में अज्ञेय द्वारा संपादित ‘तार-सप्तक’ के माध्यम से नये भावों, नये विचारों एवं नये प्रयोगों के साथ जो काव्य हिन्दी में रचा गया, उसे ही ‘प्रयोगवाद’ के नाम से पुकारा जाता है।’’ विशेष तथ्य –1. ‘तार सप्तक’ के कवियों ने इस काव्यधारा की कविताओं के लिए ‘प्रयोगवाद’ शब्द का प्रयोग नहीं करके ‘प्रयोगशील’ अथवा ‘प्रयोग’ शब्दों का ही प्रयोग किया था। 2. इस काव्यधारा की कविताओं को ‘प्रयोगवाद’ नाम सर्वप्रथम आचार्य नंद दुलारे वाजपेयी ने अपने एक निबंध ‘प्रयोगवादी रचनाएँ’ में प्रदान किया था। 3. अज्ञेय (सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन अज्ञेय) इस काव्यधारा के प्रवर्तक माने जाते हैं। उनके द्वारा संपादित ‘प्रतीक’ पत्रिका से इसकी शुरूआत हुई मानी जाती है। 4. लक्ष्मीकांत वर्मा के अनुसार ‘‘प्रयोगवाद ज्ञान से अज्ञान की ओर बढ़ने की बौद्धिक जागरुकता है।’’ 5. आगे चलकर ‘प्रयोगवाद’ का ही विकास ‘नयी कविता’ के नाम से हुआ था। 6. डाॅ. बच्चन सिंह के अनुसार ‘‘प्रयोगवाद का मूलाधार ‘वैयक्तिक्ता’ या ‘व्यक्तिवाद’ (प्राइवेसी) है।’’ 7. ‘प्रयोगवाद’ को ‘प्रगतिवाद की प्रतिक्रिया’ भी कहा जाता है। 8. डाॅ. गणपतिचंद्र गुप्त ने ‘प्रयोगवाद एवं नयी कविता’ दोनों काव्य आन्दोलनों को संयुक्त रूप से ‘‘अतियथार्थवादी काव्य परम्परा’’ नाम प्रदान किया है। 9. हिन्दी का प्रयोगवादी आन्दोलन मूलतः पश्चिम (अंग्रेजी) के ‘न्यू सिगनेचर’ आन्दोलन से प्रभावित नजर आता है। न्यू सिगनेचर – सन् 1932 ई. में ‘न्यू सिगनेचर’ शीर्षक से एक काव्य संग्रह ‘ब्रिटेन’ में प्रकाशित हुआ था। इसमें स्टेफेन स्फेंडर, आडेन, लेहमान, एम्पसन आदि की रचनाएँ संगृहीत थीं। 10. अज्ञेय ने इस काव्यधारा के लिए ‘प्रयोगवाद’ नाम को स्वीकार नहीं किया था। इन्होंने ‘दूसरा सप्तक’ (1951 ई.) की भूमिका में इस नाम का घोर विरोध किया था तथा ‘प्रतीक’ पत्रिका के जून-1951 के अंक में इस काव्य के लिए ‘नयी कविता’ संज्ञा का प्रयोग किया था। 11. प्रयोगवाद को प्रतीकवाद भी कहा जाता है,
‘प्रयोगवादी कविता’ नवीन प्रतीक विधान से युक्त है। 13. प्रयोगवादी कविताओं में मध्यमवर्गीय व्यक्ति की जीवन की पीड़ा के अनेक स्वर उभरे हैं, परन्तु इसमें दमित कामवासना की प्रधानता देखने को मिलती है। 14. ‘लोक कल्याण की उपेक्षा’ प्रयोगवाद का सबसे बड़ा दोष माना जाता है। 15. प्रयोगवादी कवि यथार्थवादी हैं। वे भावुकता के स्थान पर ठोस बौद्धिकता को स्वीकार करते हैं। 16. प्रयोगधर्मिता की प्रयोगवादी काव्य का इष्ट है। भाषा, शिल्प, छंद, अलंकार, प्रतीक, बिम्ब, उपमान आदि की दृष्टि से इन कवियों ने नये-नये प्रयोग किये हैं। 17. नन्द दुलारे वाजपेयी ने प्रयोगवाद को ‘बैठे ठाले लोगों का धंधा’ कहकर पुकारा है। ‘‘तारसप्तक’’ ⇔ ‘तार सप्तक’ मूलतः ‘प्रभाकर माचवे’ के दिमाग की उपज मानी जाती है, परन्तु इसके प्रवर्तन का श्रेय अज्ञेय को प्रदान किया जाता है। ⇒ अज्ञेय ने ‘तारसप्तक’ के कवियों के बारे में लिखा है- ‘‘ये सातों कवि किसी एक स्कूल के नहीं हैं। वे राही नहीं, अपितु ‘राहों के अन्वेषी’ हैं।’’ हिन्दी साहित्य जगत् में अब तक चार ‘तार-सप्तकों’ की स्थापना हो चुकी है
तार सप्तक ट्रिक्स # taar saptak tricks 1. तार-सप्तक-1943 ई.(1) अज्ञेय (2) नेमिचंद्र जैन (3) रामविलास शर्मा (4) मुक्तिबोध 2. दूसरा-सप्तक- 1951 ई.(1) हरिनारायण व्यास (2) धर्मवीर भारती (3) रघुवीर सहाय (4) शकुन्तला माथुर Trick :- हरि धर्म के लिए रघुवीर ने शकुन्तला को नरेश सिंह के भवन से निकाल दिया। 3. तीसरा-सप्तक-1959 ई.(1) कुँवर नारायण (2) केदारनाथ सिंह (3) सर्वेश्वर दयाल सक्सेना Trick:- कुँवर केदार के सर्व विजय की कीर्ति प्रयाग से लेकर मदनपुर तक फैल गयी। 4. चौथा -सप्तक-1979 ई.(1) अवधेश कुमार (2) राजकुमार कुंभज (3) श्रीराम वर्मा (4) राजेन्द्र किशोर Trick:- अवधेश के राजकुमार श्रीराम ने राजेन्द्र नन्दकिशोर को सुमन के साथ स्वदेश भेज दिया। तार सप्तक विशेषः
नकेनवाद या प्रपद्यवाद – 1956 ई. ⇒ ‘अज्ञेय’ द्वारा संपादित ‘तारसप्तक’ व ‘दूसरा-सप्तक’ से प्रेरित होकर ‘नलिन विलोचन शर्मा’ ने अपने दो साथियों ‘केसरी कुमार’ और ‘नरेश कुमार’ को मिलाकर ‘नकेनवाद’ (तीनों व्यक्तियों के नामों के प्रथम अक्षर के आधार पर) की स्थापना की थी। इसे ही ‘प्रपद्यवाद’ के नाम से भी पुकारा जाता है। ⇒ ‘नकेनवाद के प्रपद्यवाद’ का प्रकाशन 1956 ई. में हुआ था। ⇒ डाॅ. बच्चन सिंह के अनुसार ‘प्रपद्यवाद’ एक प्रकार का ‘रूपवाद’ या ‘कलावाद’ था। ⇔ प्रपद्यवाद के विविध सूत्र – प्रपद्यवाद के प्रतिनिधि के रूप में ‘केसरी कुमार’ ने इसके विविध सूत्रों की चर्चा की थी, जिसमें से कुछ निम्न प्रकार है- 1. प्रपद्यवाद भाव और व्यंजना का स्थापत्य है। 3. प्रपद्यवाद पूर्ववर्तियों की महान् परिपाटियों को निष्प्राण मानता है। 5. प्रपद्यवाद दूसरों के अनुकरण की तरह अपना अनुकरण भी वर्जित मानता है। वस्तुत: नकेनवादियों का यह प्रपद्यवाद ‘अज्ञेय’ के प्रयोगवाद की स्पर्धा में खड़ा किया गया आंदोलन था, जो कालान्तर में अज्ञेय से भी आगे प्रयोगवादी काव्यधारा की प्रमुख प्रवृत्तियाँ (विशेषताएँ) –
प्रगतिवाद व प्रयोगवाद में मुख्य अन्तर –1. ‘प्रगतिवादी कविता’ में शोषित वर्ग/निम्न वर्ग को केन्द्र में रखा गया है, जबकि ‘प्रयोगवादी कविता’ में स्वयं के जीये हुए/भोगे हुए यथार्थ जीवन का चित्रण प्राप्त होता है। 2. प्रगतिवादी कविता ‘विचारधारा को महत्व’ देती है, जबकि प्रयोगवादी कविता ‘अनुभव को महत्व’ देती है। 3. प्रगतिवादी कविता में सामाजिक भावना की प्रधानता दिखायी देती है, जबकि प्रयोगवादी कविता में व्यक्तिगत भावना की प्रधानता दिखायी देती है। 4. प्रगतिवादी कविता में ‘विषयवस्तु को अधिक महत्व’ दिया गया है, जबकि प्रयोगवादी कविता में ‘कलात्मकता को अधिक महत्व’ दिया गया है। तारसप्तक के कवियों का वर्गीकरण⇒ ‘तार सप्तक’ और ‘प्रतीक’ पत्रिका को देखकर यह स्पष्ट होता है कि इनमें संगृहीत या प्रकाशित कवियों के अनुभव के क्षेत्र, दृष्टिकोण और कथानक एक जैसे नहीं हैं। डाॅ. नगेन्द्र ने
तार-सप्तक के कवियों को निम्नानुसार वर्गीकृत किया है- 2. विचारों और क्रियाओं दोनों से समाजवादी – इस श्रेणी में ‘राम विलास शर्मा’ व ‘गजानन माधव मुक्तिबोध’ को शामिल किया जाता है। 3. प्रगतिवादी कविता के द्वारा व्यक्त होते हुए जीवन-मूल्यों और सामाजिक प्रश्नों को असत्य या सत्याभास मानकर अपने व्यक्तिगत जीवन में तड़पने वाली गहरी संवेदनाओं को ही रूपायित करने वाले अन्य सभी कवि लगभग इसी श्रेणी के हैं। प्रायः ये सभी कवि मध्यवर्ग से संबंधित हैं। प्रयोगवादी काव्य धारा के प्रमुख कवि1. सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन ‘अज्ञेय’ प्रमुख रचनाएँ –(क) काव्यात्मक रचनाएँ – 1. भग्नदूत – 1933 ई. 2. चिन्ता – 1942 ई. 3. इत्यलम् – 1946 ई. 6. इन्द्रधनु
रौंदे हुए – 1957 ई. 8. आंगन के पार द्वार- 1961 ई. 9. कितनी नावों में कितनी बार 11. महावृक्ष के नीचे 12. नदी की बाँक पर छाया-1981 16. सावन मेघ 17. अन्तर्गुहावासी (कविता) (ख) कहानी संग्रह 1. परम्परा 2. त्रिपथगा 3. जयदोल (ग) उपन्यास
विशेष तथ्य – 1. ‘अज्ञेयजी’ के द्वारा निम्नलिखित पत्र-पत्रिकाओं का संपादन कार्य किया गया था – (3) दिनमान (दिल्ली से प्रकाशित पत्र) काव्य संकलन – (1)तार-सप्तक (2)
दूसरा-सप्तक (3) तीसरा सप्तक 2. ‘आंगन के पार द्वार’ रचना के लिए इनको 1964 ई. में ‘साहित्य अकादमी पुरस्कार’ प्राप्त हुआ था। (1) सलिला (2) चक्रांतशिला (3) असाध्य वीणा 3. ‘कितनी नावों में कितनी बार’ रचना के लिए इनको 1978 ई. में ‘भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार’ प्राप्त हुआ था। 5. इनका जीवन यायावारी एवं क्रान्तिकारी रहा, जिसके कारण ये किसी एक व्यवस्था से बँध कर नहीं रह सके। 7. इनके काव्य की मूल प्रवृत्ति आत्म-स्थान या अपने आपको थोपने की रही है। अर्थात् इन्होंने स्वयं का गुणगान करके दूसरों को तुच्छ सिद्ध करने का प्रयास किया है। 8. इनकी कविताओं में प्रकृति, नारी, काम वासना आदि विभिन्न विषयों का निरुपण हुआ है, किन्तु वहाँ भी ये अपने ‘अहं’ और ‘दंभ’ को छोड़ नहीं पाये है। 9. ‘हरी घास पर क्षण भर’ इनकी प्रौढ़ रचना मानी जाती है। इसमें बुलबुल, श्यामा, फुदकी, दंहगल, कौआ जैसे विषयों को लेकर कवि ने अपनी अनुभूति का परिचय दिया है। 10. ‘बावरा-अहेरी’ इनके जीवन दर्शन को प्रतिबिम्बित करने वाली रचना है। 12. हिन्दी साहित्य में इनको ‘कठिन गद्य का प्रेत’ भी कहा जाता है। नोट:- ‘केशवदास’ को ‘कठिन काव्य का प्रेत’ कहते हैं। 13. इनकी ‘असाध्य वीणा’ कविता में मौन भी है, अद्वैत भी है, रचना प्रक्रिया भी है, रहस्य भी है। यदि नहीं है तो संवेदना। यह इनकी ‘प्रतिनिधि कविता’ भी मानी जाती है। यह कविता जैन बुद्धिज्म (ध्यान संप्रदाय या अ-शब्द सम्प्रदाय) पर आधारित मानी जाती है। 14. इनकी कविताओं में ‘ओजमयी पदावली’ देखने को मिलती है। 2. भवानी प्रसाद मिश्र⇒ जन्मकाल – 1914 ई. प्रमुख रचनाएँ – 1. गीत फरोश 2. सतपुड़ा के जंगल 3. चकित है दुःख 9. अनाम तुम आते हो 14. कमल के फूल 15. इदं न मम 20. नीली रेखा तक – 1984 विशेष तथ्य – 1. इन्होंने ’कल्पना’ एवं गाँधी-वाङ्मय’ नामक पत्र/पत्रिकाओं का संपादन कार्य किया था। 3. इनकी सहज भाषा को देखकर गाँधीजी के चरखे की सहजता का सा आभास होता है, जिसके कारण इनको ’कविता का गाँधी’ भी कहा जाता है। 4. मध्य प्रदेश सरकार द्वारा आपको ’शिखर सम्मान’ प्रदान किया गया था। 5. ’बुनी हुई रस्सी’ रचना के लिए इनको 1972 ई. में ’साहित्य अकादमी पुरस्कार’ प्राप्त हुआ था। 3. गजानन माधव ’मुक्तिबोध’⇒ जन्मकाल – 1917 ई. ⇔प्रमुख रचनाएँ – (क) काव्य संग्रह – 1. चाँद का मुँह टेढ़ा है-1964 ई. 2. भूरी-भूरी खाक धूल-1980 ई. (इस काव्य संग्रह का प्रकाशन तो बाद में हुआ था, किन्तु इस कविताएँ कालक्रम की दृष्टि से प्रथम संग्रह से पहले की मानी जाती हैं।) (ख) प्रसिद्ध रचनाएँ – 1. अंधेरे में 2. ब्रह्मराक्षस 3. पूँजीवाद समाज के प्रति 4. भूल गलती 5. दिमागी गुहान्धकार (ग) गद्य रचना – 1. भारत: इतिहास और संस्कृति (मध्यप्रदेश सरकार द्वारा 19 सितम्बर, 1962 ई. को इस पुस्तक पर प्रतिबंध लगा दिया गया था।) 2. इनको ’तीव्र इन्द्रिय बोध का कवि’,
’भयानक खबरों का कवि’ एवं फैंटेसी का कवि’ भी कहा जाता है। 4. इन्होंने कला के निम्न तीन क्षण स्वीकार किये हैं – 4. गिरिजा कुमार माधुर⇒ जन्मकाल – 1918 ई. ⇔ प्रमुख रचनाएँ – 1. मंजीर 2. नाश और निर्माण 3. धूप के धान ⇒ विशेष तथ्य – 1. ये ’रोमानी मिजाज के कवि’ माने जाते हैं। 3. आप मध्यप्रदेश आकाशवाणी एवं दूरदर्शन के ’उपमहानिदेशक’ भी रहे थे। 5. इनकी प्रारम्भिक कविताओं में रोमांस और सौंदर्यलिप्सा की अभिव्यक्ति
हुई हैं तथा उन पर छायावादी शैली का भी पर्याप्त प्रभाव दृष्टिगोचर होता है। 7. अपनी कविताओं में इन्होंने कहीं-कहीं ’सवैया’ छंद को तोङकर एक नया छंदरूप प्रदान किया है। 5. धर्मवीर भारती ⇒ जन्मकाल – 1926 ई. ⇒ प्रमुख रचनाएँ – 1. ठण्डा लोहा-1952 ई. 2. सात गीत वर्ष-1959 ई. 3. अंधा युग (गीतिनाट्य) 6. आद्यन्त-1999 प्रसिद्ध कविताएँ – 1. प्रमथ्यु गाथा 2. सृष्टि आखिरी आदमी 3. देशान्तर ⇒ विशेष तथ्य – 3. इनकी कविताएँ मूलतः गीतात्मक है। इनमें लोक-परिवेश की मस्ती और उल्लास के स्थान पर उदासी और सूनापन अधिक नजर आता है। 4. इनकी कविताओं के प्रमुख विषय रूपासक्ति, उद्दाम कामवासना एवं स्वच्छंद विलास है। (डाॅ. गणपतिचंद्र गुप्त) 5. ’कनुप्रिया’ रचना में राधा के परंपरागत चरित्र को नये रूप में प्रस्तुत करने का प्रयास किया गया है। राधा-कृष्ण के वासनात्मक संबंधों का चित्रण इसमें पूर्ण रुचि एवं सजीवता के साथ किया गया है। 6. आपने ’धर्मयुग’, ’निकष’, एवं ’आलोचना’ नामक तीन पत्रिकाओं का संपादन कार्य किया गया था। 8. आपने ’सिद्ध-साहित्य’ पर शोध-उपाधि प्राप्त की थी। 10. ’पंख, पहिए और पट्टियाँ’ का संबंध ’अंधा युग’ काव्य से माना जाता है। 6. नरेश मेहता⇒ जन्मकाल – 1922 ई. 2. बोलने दो चीङ को 3. मेरा समर्पित एकांत उत्सव 5. तुम मैरा मौन हो-1983 6. महा प्रस्थान 9. उत्सवा 11. प्रार्थना-पुरुष-1985 12. समय देवता (प्रसिद्ध कविता) ⇒ विशेष तथ्य – 1. इनके द्वारा रचित ’संशय की एक रात’ (1962 ई.) नाट्य शैली में लिखी गयी एक लम्बी कविता है। इसमें राम के मन के संशय को चित्रित किया गया है। समुद्र में पुल बंध जाने पर राम का मन संशय से भर जाता है। वे सोचते हैं कि एक सीता के लिए इतना बङा नरसंहार क्यों किया जाये? परन्तु सहयोगियों द्वारा यह कहे जाने पर कि यह युद्ध सीता के लिए नहीं अपितु प्रजा के लिए लङा जा रहा है तो वे युद्ध करने के लिए तैयार हो जाते हैं। 2. ’प्रार्थना-पुरुष’ इनके द्वारा रचित खण्डकाव्य है, जिसमें गाँधीजी के जीवन-चरित्र का वर्णन किया गया है। 4. ’समय देवता’ इनकी लम्बी एवं प्रसिद्ध कविता है, जो इनके ’मेरा समर्पित एकान्त उत्सव’ में संकलित हैं। 7. शमशेर बहादुर सिंह⇒ जन्मकाल – 1911 ई. ⇔ प्रमुख रचनाएँ – 1. अमन का राग 2. चुका भी नहीं हूँ मैं 3. इतने पास
अपने 5. उदिता-1980 ई. 6. बात बोलेगी हम नहीं-1987 ⇒ विशेष तथ्य – 1. ये विचारों से माक्र्सवादी, संस्कारों से व्यक्तिवादी एवं अनुभवों से रूमानी नजर आते हैं। 3. इनकी कविताओं का मुख्य स्वर ’कुंठित प्रेम’ है। 5. इनकी ’अमन का राग’ रचना प्रगतिवादी सरोकारों से
संबंधित एक लम्बी कविता है। नोट:- ’उदिता’ रचना में दो भूमिकाएँ हैं। 7. इन्हें उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से ’मैथिलीशरण गुप्त’ पुरस्कार तथा मध्य प्रदेश सरकार की ओर से ’कबीर सम्मान’ प्रदान किया था। 8. ’चुका भी नहीं हूँ मैं’ रचना के लिए इन्हें 1977 ई. में साहित्य पुरस्कार मिला। 8. रघुवीर सहाय⇒ जन्मकाल – 1929 ई. प्रमुख रचनाएँ –
⇒ विशेष तथ्य – 1. ’लोग भूल गये हैं’ रचना के लिए इनको 1984 ई. में ’साहित्य अकादमी पुरस्कार’ प्राप्त हुआ। 2. ’सीढ़ियों पर धूप में’ में एक अनाहत जिजीविषा, मध्यवर्गीय जीवन का दवाब, और लोकतंत्र की विडंबनाएँ चित्रित है। 3. ’हँसो-हँसो जल्दी हँसो’ में आपातकाल से संबंधित कविताओं का संग्रह किया गया है। रघुवीर सहाय के हर काव्य संग्रह के प्रारंभ में ’भूमिका’ लिखी गयी है, परन्तु इस काव्य के प्रारम्भ में कोई भूमिका नहीं है। इसके कवि मौन है, बोलने की मनाही है। 9. भारत भूषण अग्रवाल⇒ जन्मकाल – 1919 ई. प्रमुख रचनाएँ –
विशेष तथ्य – 1. इनकी ’छवि के बंधन’ रचना में सौन्दर्य, प्रेम एवं विरह की अनुभूतियों के साथ-साथ निराशा, पीङा, पराजय तथा दर्द की भी अभिव्यक्ति हुई है। 2. इनके द्वारा रचित निम्न गीतों ’लालसेना का गीत’, ’लाल जवानों का पानी’, ’लाल निशान’ आदि में माक्र्सवादी स्वर प्रस्फुटित हुआ है। 3. ’उतना वह सूरज है’ रचना के लिए इन्हें 1978 ई. में साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला था। 10. शकुंतला माथुर⇒ जन्मकाल – 1922 ई. प्रमुख रचनाएँ –
हिंदी साहित्य वीडियो के लिए यहाँ क्लिक करें net/jrf हिंदी नए सिलेबस के अनुसार मूल पीडीऍफ़ व् महत्वपूर्ण नोट्स रस का अर्थ व रस के भेद जानें नई कविता को प्रयोगवाद का एक नया संस्करण क्यों कहा जाता है संक्षेप में बताइए?निष्कर्ष रूप में 1943 से 1953 तक की कविता को प्रयोगवाद एवं 1953 के बाद की कविता को नई कविता की संज्ञा दी जा सकती है । अज्ञेय ने प्रयोग को साधन मानते हुए लिखा है- प्रयोग अपने आप मे इष्ट नहीं है, वरन् साधन है । प्रयोगवाद शब्द को अनुपयुक्त मानते हुए दूसरा सप्तक की भूमिका में सष्ट किया कि प्रयोग का कोई वाद नहीं है।
प्रयोगवाद और नई कविता से आप क्या समझते हैं?कविवर अज्ञेय इस सम्बन्ध में कहते हैं "उनके एकत्र होने का कारण ही यही है कि वे किसी एक स्कूल के नहीं हैं, किसी मंजिल पर पहुँचे हुए नहीं हैं। अभी राही हैं, राही नहीं, राहों के अन्वेषी हैं।" के उपरांत प्रयोगवादी कविता का नाम 'नयी कविता' पड़ गया । विकृतियों को ही अपने काव्य का विषय बनाया है।
नई कविता की परिभाषा क्या है?नयी कविता हिन्दी साहित्य में सन् १९५१ के बाद की उन कविताओं को कहा गया, जिनमें परंपरागत कविता से आगे नये भावबोधों की अभिव्यक्ति के साथ ही नये मूल्यों और नये शिल्प-विधान का अन्वेषण किया गया। यह प्रयोगवाद के बाद विकसित हुई हिन्दी कविता की नवीन धारा है।
नई कविता की मूल संवेदना क्या है?नयी कविता 'भारतीय स्वतंत्रता' के बाद लिखी गयी उन कविताओं को कहा गया, जिनमें परंपरागत कविता से आगे नये भावबोधों की अभिव्यक्ति के साथ ही नये मूल्यों और नये शिल्प-विधानों का अन्वेषण किया गया| यह अन्वेषण साहित्य में कोई नयी वस्तु नहीं है।
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