नौली क्रिया का अभ्यास कैसे किया जाता है? - naulee kriya ka abhyaas kaise kiya jaata hai?

नौली क्रिया का अभ्यास कैसे किया जाता है? - naulee kriya ka abhyaas kaise kiya jaata hai?

June 19, 2019 Yoga 7,133 Views

नौलि क्रिया

पेट की नलों को बाहर निकालकर पेट को हिलाने की क्रिया को नौली कहा जाता है। यह पेट के लिए महत्वपूर्ण व्यायाम माना जाता है।

नौलि क्रिया करने की विधि:

सुबह खाली पेट शौच के बाद इसका अभ्यास करें। इसके लिए सीधे खड़े हो जाएं, दोनों पैरों में थोड़ा अंतर रख लें। अब सांस भरें और पूरी सांस निकालते हुए आगे झुकें, हाथों को जंघाओं पर रख लें, अब पेट को अंदर की तरफ खींचें और पेट की मध्य नलों को ढीला करते हुए बाहर की ओर निकालें। इस क्रिया को मध्य नौली कहा जाता है। जब तक सांस बाहर रोक सकें, नौलि निकालकर रखें। जब सांस रोक नहीं पाएं, तब पेट को ढीला छोड़कर सीधे खड़ें हो जाएं। इस प्रकार तीन से चार बार इसका अभ्यास कर लें।

सावधानियां:

पेट में घाव, पेट का ऑपरेशन हुआ हो, हर्निया, हाईपर ऐसिडिटी, टली नाभि, हृदय रोग, उच्च रक्तचाप और कमर दर्द आदि विकारों में इसका अभ्यास न करें।

नौलि क्रिया करने के लाभ:

यह बंध जीवनी शक्ति को बढ़ाकर दीर्घायु बनाता है। शरीर को सुडौल और स्फूर्तिदायक बनाए रखता है, पेट के सभी अंगों को स्वस्थ बनाने वाला है। मोटापा नहीं आने देता, आंतों को बल देता है। डायबिटीज़ में बड़ा लाभकारी है, भूख ना लगना, कब्ज, गैस, एसीडिटी आदि पेट के रोगों को दूर करने वाला है।

बार-बार पेशाब जाना आदि मूत्रदोष में आराम पहुंचाता है। लीवर से निकलने वाले एंजाइम्स को बैलेंस करता है। किडनी को स्वस्थ बनाए रखता है। नाभि स्थित ‘समान’ वायु को बल देता है। ऊर्जा को उर्ध्वमुखी करने में सहयोगी है, सुषुम्ना नाड़ी के द्वार को खोलने में मदद करता है, साथ ही स्वाधिष्ठान व मणिपूर चक्र को जगाने वाला है।

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नौली क्रिया कैसे की जाती है?

बाबा रामदेव योग यात्रा : योग यात्रा के आज के एपिसोड में बाबा रामदेव से जानें की क्या होती है नौली क्रिया.

नौलिक्रिया से पूर्व कौन सी क्रिया करनी चाहिए?

नौली क्रिया का अभ्यास करने के लिए सबसे पहले उड्डियान बंध का अभ्यास करें।

नौली क्रिया से पहले कौन सी क्रिया करनी चाहिए?

मल द्वार को अनेक बार संकुचित कर ढीला छोड़े। इससे शरीर की पाचन शक्ति बढ़ती है तथा शरीर मजबूत बनता है। नौली क्रिया : यह क्रियाओं में सर्वश्रेष्ठ है। यह पेट के लिए महत्वपूर्ण व्यायाम है।

नौली क्रिया के कितने प्रकार होते हैं?

नौली क्रिया षटकर्मों के शुद्धिकरण की चौथी क्रिया है। जठराग्नि को बढ़ाने वाली इस क्रिया में पेट की मांसपेशियों की मालिश हो जाती हैं तथा उदर कि क्रियाशीलता में वृद्धि होती हैंनौली क्रिया के अत्यधिक अभ्यास से कुंडलिनी जागरण होता है इस कारण नौली क्रिया को शक्तिचालिनी भी कहते हैं