निम्नलिखित में से कौन लुसियन पाई के अनुसार राजनीतिक विकास का लक्षण नहीं है? - nimnalikhit mein se kaun lusiyan paee ke anusaar raajaneetik vikaas ka lakshan nahin hai?

राजनीतिक विकास पर लुसियन पाई के विचार बताइये। 

  1. अथवा राजनीतिक विकास के सम्बन्ध में लुसियन पाई के विचारों का विवेचन कीजिए।
  2. अथवा राजनीतिक विकास के सम्बन्ध में लूसियन पाई के विश्लेषण को स्पष्ट कीजिए

लुसियन पाई के विचार

राजनीतिक विकास-लुसियन पाई का विश्लेषण :  'राजनीतिक विकास' संकल्पना पर विचार करने वाले विद्वानों में लुसियन पाइ का विचार अग्रणी है। पाई ने सन् 1963 से इस विषय पर गम्भीर रूप से सोचना प्रारम्भ कर दिया।लुसियन पाई के शब्दों में, "राजनीतिक विकास, संस्कृति का विसरण (diffusion) और जीवन के पुराने प्रतिमानों को नयी माँगों के अनुकूल बनाने, उन्हें उनके साथ मिलाने या उनके साथ सामंजस्य बैठाना है।" उसने इस बात पर बल दिया कि राजनीतिक विकास की दिशा में पहला कदम राष्ट्र-राज्य व्यवस्था का विकास है। उसने राजनीतिक विकास के प्रतीकों को तीन विभिन्न स्तरों पर देखा-कुल आबादी की दृष्टि से और राज्य व्यवस्था का संगठन की दृष्टि से।

डॉ० एस० पी० वर्मा के शब्दों में लुसियन पाई ने राजनीतिक विकास के समस्त साहित्य पर एक अमिट छाप छोड़ी है। उसने अपने ग्रन्थ Aspects of Political Development' में पर्याप्त विस्तार से राजनीतिक विकास की संकल्पना का विश्लेषण प्रस्तुत किया है। पाई के प्रमुख विचार इस प्रकार हैं

(1) राजनीतिक विकास आर्थिक विकास की राजनीतिक पूर्व शर्त के रूप में राजनीतिक विकास - राजनीति की एक ऐसी स्थिति को कहा जाये जो आर्थिक उन्नति, प्रगति और समृद्धि में सहायक हो। व्यवहार में यह दृष्टिकोण निषेधात्मक है। इससे राजनीतिक विकास आर्थिक विकास के साथ जुड़कर रह जाता है। इन दोनों को मिलाना तर्कसंगत नहीं है।

(2) औद्योगिक समाजों के लिए विशिष्ट राजनीति के रूप में राजनीतिक विकास - राजनीतिक विकास की धारणा भी आर्थिक विकास से जुड़ी हुई है। इसमें यह माना गया है कि औद्योगिक जीवन भी एक ऐसे सामान्य प्रकार के राजनीतिक जीवन को प्रकट करता है जिसको हर समाज प्राप्त करना चाहता है। यह धारणा भी आर्थिक विकास के साथ राजनीतिक विकास को जोड़ने वाली होने के कारण अमान्य हो जाती है।

(3) राजनीतिक आधुनिकीकरण के रूप में राजनीतिक विकास - कोलमैन लिप्सैट, आदि यह मानते हैं कि राजनीतिक विकास से अभिप्राय विकसित पश्चिमी और आधुनिक देशों का अध्ययन है और साथ ही उन तौर-तरीकों का अध्ययन है जिनका अनुकरण करने का प्रयास विकासशील देश कर रहे हैं। पाई के अनुसार, ऐसे दृष्टिकोण में इस तथ्य की अवहेलना की गयी है कि पिछड़े और विकासशील देशों की अपनी ऐतिहासिक परम्पराएँ हैं जिन्हें वे हर चीज को पश्चिमी और आधुनिक का अनुकरण कर पाने की खातिर छोड़ने के लिए तैयार नहीं होंगे।

(4) राष्ट्रीय राज्य के व्यवहार के रूप में राजनीतिक विकास - कुछ लोग यह मानते हैं कि राजनीतिक विकास में राजनीतिक जीवन का संगठन और राजनीतिक कार्यों की सम्पन्नता उन मापदण्डों के अनुसार होती जो एक आधुनिक राष्ट्रीय राज्य में अपेक्षित है। इस दृष्टिकोण को अस्वीकार करते हुए पाई का कहना हैकि राष्ट्रवाद राजनीतिक विकास को सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक शर्त तो है लेकिन यह कोई पर्याप्त शर्त नहीं है। राजनीतिक विकास को राष्ट्र निर्माण के सर्वसम होने योग्य समझा जाता है, न कि केवल राष्ट्र राज्य के साथ।

(5) प्रशासकीय और वैज्ञानिक विकास के रूप में राजनीतिक विकास - पारसन्स और वेबर ने इस बात पर जोर दिया है कि राजनीतिक विकास का समाज की प्रशासनिक और कानूनी व्यवस्था से बड़ा गहरा सम्बन्ध है, अतः प्रभावपूर्ण नौकरशाही की स्थापना आवश्यक है। पाई का कहना है कि यदि प्रशासन पर अधिक जोर दिया तो इससे राज्य व्यवस्था में असन्तुलन पैदा हो जायेगा और असन्तुलन राजनीतिक विकास के रास्ते में रूकावट बन सकता है।

(6) बहुसंख्यक जन-समुदाय के योगदान के रूप में राजनीतिक विकास - यदि जनता अधिक-से-अधिक राजनीतिक कार्यों में भाग ले तो राजनीतिक विकास सम्भव है। मताधिकार के विस्तार को सार्वजनिक सहभागिता के माध्यम से निर्णय निर्माण प्रक्रिया का विकसित रूप समझा जाता है। पाई का कहना है कि ऐसे दृष्टिकोण से भ्रष्टाचारी जनोत्तेजकों का प्रभाव बढ़ जायेगा।

(7) लोकतन्त्र के निर्माण के रूप में राजनीतिक विकास - इस दृष्टिकोण के अनुसार राजनीतिक विकास का अर्थ है लोकतान्त्रिक संस्थाओं और व्यवहारों की स्थापना । पाई का कहना है कि विकास और लोकतन्त्र को परस्पर आबद्ध और अभिन्न नहीं मानना चाहिए क्योंकि ये दोनों ही भिन्न बातें हैं।

(8) स्थायित्व और व्यवस्थित परिवर्तनों के रूप में राजनीतिक विकास - इस विचार के अनुसार विकास सामाजिक और आर्थिक विकास से सम्बन्धित है। यह दृष्टिकोण प्रायः राजनीतिक स्थायित्व की धारणा पर केन्द्रित है जो कि उद्देश्यपूर्ण और व्यवस्थित परिवर्तन की क्षमता पर निर्भर करता है। पाई का कहना है कि विकास से सम्बन्धित इस दृष्टिकोण की मुख्य समस्या यह है कि कितनी व्यवस्था आवश्यक अथवा वांछनीय है और किस उद्देश्य के लिए परिवर्तन निर्देशित होना चाहिए।

(9) गतिशीलता और शक्ति के रूप में राजनीतिक विकास-इस विचार के अनुसार, हम राजनीतिक व्यवस्थाओं का मूल्यांकन इस आधार पर कर सकते हैं कि वे अपनी पूर्ण शक्ति का प्रयोग किस स्तर अथवा मात्रा में करती हैं। पाई का कहना है कि इस प्रकार की व्याख्या को लोकतान्त्रिक व्यवस्था पर ही लागू किया जा सकता है।

(10) सामाजिक परिवर्तन की बहुविमितीय प्रक्रिया के रूप में राजनीतिक विकास- राजनीतिक विकास किसी-न-किसी रूप में सामाजिक और आर्थिक परिवर्तन के अन्य पहलुओं से घनिष्ठ रूप में सम्बन्धित हैं। विकास के अन्य रूपों से राजनीतिक विकास को पूर्णरूप से अलग करने की कोशिश करना आवश्यक और अनुपयुक्त है। पाई इस आधार पर इस विचार की प्रशंसा करता है कि यहाँ विकास रूप एक-दूसरे से सम्बद्ध हैं विकास कार्य आधुनिकीकरण ही है।

लुसियन पाई राजनीतिक विकास की अवधारणा पर गहराई से विचार करने वाले प्रमुख विद्वान हैं। उनके अनुसार, राजनीतिक विकास का अर्थ करते समय इसके निर्माणक तत्वों को ध्यान में रखना आवश्यक है। उसके अनुसार, हम राजनीतिक विकास को तीन स्तरों पर होने वाले विकासों के रूप में परिभाषित कर सकते हैं

(i) सम्पूर्ण जनसंख्या के सन्दर्भ में -इस दृष्टि में राजनीतिक विकास का अर्थ है कि राजनीतिक व्यवस्था की जनता की प्रकृति में कोई मौलिक परिवर्तन हुए हैं या नहीं। जनता व्यवस्था में उदासीन है अथवा सहभागी, जनता नौकरशाही पर निर्भर है अथवा प्रशासन में सहभागी है, आदि। अगर किसी व्यवस्था की जनता में अभिवृत्तात्मक व व्यावहारिक परिवर्तन हो जायें तो इस आधार पर राजनीतिक व्यवस्था को राजनीतिक दृष्टि से विकसित कहा जायेगा।

(ii) शासकीय और सामान्य व्यवस्थायी निष्पादन के स्तर के सन्दर्भ में - शासकीय और सामान्य व्यवस्थायी निष्पादन के स्तर पर राजनीतिक विकास का अर्थ राजनीतिक व्यवस्था की उस अभिवृद्धि क्षमता से लिया जाता है जिससे वह सार्वजनिक मामलों को अधिकारिक और अच्छी तरह से निष्पादित करने लगती है। इस दृष्टि से राजनीतिक व्यवस्था के विकसित होने का पता इस बात से लगाया जाता है कि क्या राजनीतिक व्यवस्था राजनीतिक मामलों का उचित प्रबन्ध कर पाती है? क्या राजनीतिक विवादों को नियन्त्रित रख पाती है? क्या जनता की माँगों का उचित निबटारा कर पाती है ?

(iii) राजनीति के संगठन के सन्दर्भ में राजनीति के संगठन के रूप में राजनीतिक विकास वाली राजनीतिक अवस्थाओं में तीन बातें पाई जाती हैं -संरचनात्मक विभिन्नीकरण बढ़ जाता है, संरचनाओं में बहुत अधिक प्रकार्यात्मक विशेषीकरण हो जाता है, सहभागी संस्थाओं और संगठनों में अधिकाधिक एकतामयी समन्वय स्थापित हो जाता है। इस प्रकार राजनीतिक व्यवस्था के संगठन के सन्दर्भ में राजनीतिक विकास संरचनात्मक विभिन्नीकरण और कार्यात्मक विशेषीकरण का संकेतक है।

लुसियन पाई ने राजनीतिक विकास के सम्बन्धित इन तीनों लक्षणों को समानता, क्षमता और विभेदीकरण कहा है। वह उन्हीं राजनीतिक व्यवस्थाओं को राजनीतिक विकास के मार्ग पर अग्रसर मानता है जिनमें जनता से समानता का सिद्धान्त लागू हो, राजनीतिक व्यवस्था और सरकार आने वाली माँगों, विवादों और राजनीतिक मामलों का निष्पादन करने में समर्थ हों और इनसे सम्बन्धित संरचनाएँ अलग-अलग और विशेषीकृत होते हुए भी सामंजस्य रखती रहें।

(1) समानता

  • (अ) समानता का पहला अर्थ है नागरिकों का सार्वजनिक तथा सामूहिक स्तर पर व्यवस्था में भाग लेना है जिससे कि नागरिकों में सक्रियता आ सकें। 
  • (ब) समानता का दूसरा अर्थ कानूनों का सार्वदेशिक स्वरूप होना आवश्यक है जो राज्य के सभी सदस्यों पर समान रूप से लागू होता है। 
  • (स) तीसरा, समानता का अर्थ यह है कि राज्य के विभिन्न पदों के लिए भर्ती करते समय अथवा सार्वजनिक पदों पर नियुक्ति करते समय योग्यता तथा कार्य सम्पादन का मापदण्ड लागू होना चाहिए। इन तीन मापदण्डों से यह जाना जा सकता है कि किसी देश में समानता का सिद्धान्त कितना लागू हो सकता है?

(2) क्षमता

  • (अ) किसी राज्य तथा सरकार में आवश्यक कार्यों के सम्पादन की क्षमता कितनी है? 
  • (ब) क्षमता का दूसरा अर्थ सार्वजनिक नीति को लागू करने की कुशलता तथा योग्यता से है। 
  • (स) क्षमता का तीसरा अर्थ है, प्रशासन में विवेकपूर्ण, धर्मनिरपेक्ष दृष्टिकोण का उत्पन्न होना। इन मापदण्डों से किसी देश की क्षमता का ज्ञान होता है।

(3) विभेदीकरण-

  • (अ) विभेदीकरण का अर्थ है समाज तथा राज्य के विभिन्न अंगों, पदों एवं विभागों का सुस्पष्ट होना तथा उनके कार्य निश्चित करना, 
  • (ब) व्यवस्था के विभिन्न राजनीतिक कार्यों की सुस्पष्टता,
  • (स) विभिन्न अंगों की जटिल प्रक्रियाओं का एकीकरण करना जिससे कि व्यवस्था का विघटन न हो।

एलफ्रेड डायमेण्ट के शब्दों में, "राजनीतिक विकास एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके द्वारा एक राजनीतिक व्यवस्था के नये प्रकार के लक्ष्यों को निरन्तर सफल रूप में प्राप्त करने की क्षमता बनी रहती है।"

आमण्ड और पावेल के अनुसार, "राजनीतिक विकास राजनीतिक संरचनाओं का अभिवृद्ध विभिन्नीकरण और विशेषीकरण तथा राजनीतिक संस्कृति का बढ़ा हुआ लौकिकीकरण है।"

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निम्नलिखित में से कौन राजनीतिक विकास की विशेषता नहीं है?

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