निम्नलिखित में से कौन ऊर्जा संरक्षण अधिनियम की महत्वपूर्ण विशेषताएं हैं - nimnalikhit mein se kaun oorja sanrakshan adhiniyam kee mahatvapoorn visheshataen hain

(2001 का अधिनियम संख्यांक 52)


{29 सितम्बर, 2001}

ऊर्जा के दक्षतापूर्ण उपयोग तथा उसके संरक्षण और उससे सम्बन्धित या उसके आनुषंगिक विषयों का उपबन्ध करने के लिये अधिनियम

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भारत गणराज्य के बावनवें वर्ष में संसद द्वारा निम्नलिखित रूप में यह अधिनयिमत हो:-

अध्याय 1


प्रारम्भिक


1. संक्षिप्त नाम, विस्तार और प्रारम्भ

(1) इस अधिनियम का संक्षिप्त नाम ऊर्जा संरक्षण अधिनियम, 2001 है।
(2) इसका विस्तार जम्मू-कश्मीर राज्य के सिवाय सम्पूर्ण भारत पर है।
(3) यह उस तारीख को प्रवृत्त होगा, जो केन्द्रीय सरकार, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, नियत करे और इस अधिनियम के भिन्न-भिन्न उपबन्धों के लिये भिन्न-भिन्न तारीखें नियत की जा सकेंगी और ऐसे किसी उपबन्ध में इस अधिनियम के प्रारम्भ के प्रति निर्देश का यह अर्थ लगाया जाएगा कि वह उस उपबन्ध के प्रवृत्त होने के प्रति निर्देश है।

2. परिभाषाएँ

इस अधिनियम में, जब तक कि सन्दर्भ से अन्यथा अपेक्षित न हो,-

(क) “प्रत्यायित ऊर्जा सम्परीक्षक” से 1{ऐसा सम्परीक्षक अभिप्रेत है जिसके पास धारा 13 की उपधारा (2) के खण्ड (त) के उपबन्धों के अनुसार प्रत्यायित ऊर्जा सम्परीक्षक अभिप्रेत है};
(ख) “अपील अधिकरण” से 1{धारा 30 में निर्दिष्ट, ऊर्जा संरक्षण अपील अधिकरण अभिप्रेत है;
1{(ग) “भवन” से धारा 14 के खण्ड (त) और धारा 15 के खण्ड (क) के अधीन ऊर्जा संरक्षण निर्माण संहिता से सम्बन्धित नियमों के अधिसूचित किये जाने के पश्चात ऐसी कोई संरचना या परिनिर्माण अथवा संरचना या परिनिर्माण का भाग अभिप्रेत है और जिसके अन्तर्गत कोई विद्यमान संरचना या परिनिर्माण अथवा संरचना या परिनिर्माण का भाग भी है जिसमें 100 किलोवाट (के डब्ल्यू) का संयोजित भार या 120 किलोवाट ऐम्पियर (केवीए) और उससे अधिक की माँग संविदा है तथा जिसका वाणिज्यिक प्रयोजनों के लिये उपयोग किया जाता है या उपयोग किये जाने के लिये आशयित है;
(घ) “ब्यूरो” से धारा 3 की उपधारा (1) के अधीन स्थापित ऊर्जा दक्षता ब्यूरो अभिप्रेत है;
(ङ) “अध्यक्ष” से शासी परिषद का अध्यक्ष अभिप्रेत है;
(च) “अभिहित अभिकरण” से धारा 15 के खण्ड (घ) के अधीन अभिहित कोई अभिकरण अभिप्रेत है;
(छ) “अभिहित उपभोक्ता” से धारा 14 के खण्ड (ङ) के अधीन विनिर्दिष्ट कोई उपभोक्ता अभिप्रेत है;
(ज) “ऊर्जा” से जीवाश्मी ईंधनों, न्यूक्लीय पदार्थों या सामग्री, जल विद्युत से व्युत्पन्न किसी रूप में ऊर्जा अभिप्रेत है और इसके अन्तर्गत विद्युत ऊर्जा या ऊर्जा के नवीकरणीय स्रोतों से उत्पादित विद्युत या ग्रिड से सम्बन्धित जैवभार है;
(झ) “ऊर्जा सम्परीक्षा” से ऊर्जा के उपयोग का सत्यापन, मानीटरी और विश्लेषण अभिप्रेत है जिसमें ऊर्जा दक्षता के सुधार के लिये सिफारिशें और लागत लाभ विश्लेषण और ऊर्जा खपत में कमी लाने पर कार्य योजना युक्त तकनीकी रिपोर्ट का प्रस्तुतीकरण सम्मिलित है;
(ञ) “ऊर्जा संरक्षण निर्माण संहिता” से उस क्षेत्र के, जिसमें ऊर्जा का उपयोग किया जाता है, प्रति वर्गमीटर के रूप में अभिव्यक्त ऊर्जा उपभोग के मान और मानक अभिप्रेत हैं और इसमें निर्माण का अवस्थान भी है;
(ट) “ऊर्जा उपभोग मानक” से प्रक्रिया के सन्नियम और धारा 14 के खण्ड (क) के अधीन विनिर्दिष्ट ऊर्जा उपभोग के मानक अभिप्रेत हैं;
(ठ) “ऊर्जा प्रबन्ध केन्द्र” से भारत सरकार के तत्कालीन ऊर्जा मंत्रालय के विद्युत विभाग के संकल्प सं० 7(2)/87- ईपी (जिल्द 4), तारीख 5 जुलाई, 1989 के अधीन स्थापित और सोसाइटी रजिस्ट्रीकरण अधिनियम, 1860 (1860 का 21) के अधीन रजिस्ट्रीकृत ऊर्जा प्रबन्ध केन्द्र अभिप्रेत है;
(ड) “ऊर्जा प्रबन्धक” से कोई ऐसा व्यष्टि अभिप्रेत है जिसके पास धारा 14 के खण्ड (ड) के अधीन विहित अर्हताएँ हैं;
2{(डक) “ऊर्जा बचत प्रमाणपत्र” से धारा 14क की उपधारा (1) के अधीन अभिहित उपभोक्ताओं को जारी किया गया कोई ऊर्जा बचत प्रमाणपत्र अभिप्रेत है;
(डकक) “उपस्कर या साधित्र” से कोई ऐसा उपस्कर या साधित्र अभिप्रेत है जिसमें ऊर्जा की खपत, उत्पादन, पारेषण या प्रदाय होता है और जिसके अन्तर्गत कोई ऐसी युक्ति भी है जिसमें किसी रूप में ऊर्जा की खपत होती है और जो वांछित संकर्म करती है,;
(ढ) “शासी परिषद” से धारा 4 में निर्दिष्ट शासी परिषद अभिप्रेत है;
(ण) “सदस्य” से शासी परिषद का सदस्य अभिप्रेत है और इसके अन्तर्गत अध्यक्ष भी है;
(त) “अधिसूचना” से, यथास्थिति, भारत के राजपत्र या किसी राज्य के राजपत्र में अधिसूचना अभिप्रेत है;
(थ) “विहित” से इस अधिनियम के अधीन बनाए गए नियमों द्वारा विहित अभिप्रेत है;
(द) “विनियम” से इस अधिनियम के अधीन ब्यूरो द्वारा बनाए गए विनियम अभिप्रेत हैं:
(ध) “अनुसूची” से इस अधिनियम की अनुसूची अभिप्रेत है;
(न) “राज्य आयोग” से विद्युत विनियामक आयोग अधिनियम, 1998 (1998 का 14) की धारा 17 की उपधारा (1) के अधीन स्थापित राज्य विद्युत विनियामक आयोग अभिप्रेत है;
(प) उन शब्दों और पदों का, जो इस अधिनियम में प्रयुक्त हैं और परिभाषित नहीं हैं किन्तु भारतीय विद्युत अधिनियम, 1910 (1910 का 9) या विद्युत (प्रदाय) अधिनियम, 1948 (1948 का 54) या विद्युत विनयामक आयोग अधिनियम, 1998 (1998 का 14) में परिभाषित हैं, वही अर्थ हैं जो उन अधिनियमों में हैं।

अध्याय 2


ऊर्जा दक्षता ब्यूरो


3. ऊर्जा दक्षता ब्यूरो की स्थापना और निगमन

(1) ऐसी तारीख से, जो केन्द्रीय सरकार, अधिसूचना द्वारा, नियत करे, इस अधिनियम के प्रयोजनों के लिये ऊर्जा दक्षता ब्यूरो के नाम से एक ब्यूरो की स्थापना की जाएगी।
(2) ब्यूरो, पूर्वोक्त नाम का शाश्वत उत्तराधिकार और सामान्य मुद्रा वाला निगमित निकाय होगा, जिसे इस अधिनियम के उपबन्धों के अधीन रहते हुए, जंगम और स्थावर दोनों प्रकार की सम्पत्ति का अर्जन, धारण और व्ययन करने की और संविदा करने की शक्ति होगी तथा उक्त नाम से वह वाद लाएगा या उस पर वाद लाया जाएगा।
(3) ब्यूरो का प्रधान कार्यालय दिल्ली में होगा।
(4) ब्यूरो, भारत में अन्य स्थानों पर कार्यालय स्थापित कर सकेगा।

4. ब्यूरो का प्रबन्ध

(1) ब्यूरो के कार्यकलापों का साधारण अधीक्षण, निदेशन और प्रबन्ध शासी परिषद में निहित होगा जो कम-से-कम बीस किन्तु छब्बीस से अनधिक सदस्यों से मिलकर बनेगी, जिनकी नियुक्ति केन्द्रीय सरकार द्वारा की जाएगी।
(2) शासी परिषद निम्नलिखित सदस्यों से मिलकर बनेगी, अर्थात:-

(क) मंत्री जो विद्युत से सम्बन्धित केन्द्रीय सरकार के मंत्रालय या विभाग का भारसाधक है ....... पदेन अध्यक्ष;
(ख) भारत सरकार का ऐसा सचिव जो विद्युत से सम्बन्धित केन्द्रीय सरकार के मंत्रालय या विभाग का भारसाधक है....... पदेन सदस्य;
(ग) भारत सरकार का ऐसा सचिव, जो पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस से सम्बन्धित केन्द्रीय सरकार के मंत्रालय या विभाग का भारसाधक है ....... पदेन सदस्य;
(घ) भारत सरकार का ऐसा सचिव, जो कोयला से सम्बन्धित केन्द्रीय सरकार के मंत्रालय या विभाग का भारसाधक है ....... पदेन सदस्य;
(ङ) भारत सरकार का ऐसा सचिव, जो गैर-पारम्पिरक ऊर्जा स्रोत से सम्बन्धित केन्द्रीय सरकार के मंत्रालय या विभाग का भारसाधक है ....... पदेन सदस्य;
(च) सचिव, भारत सरकार जो परमाणु ऊर्जा से सम्बन्धित केन्द्रीय सरकार के मंत्रालय या विभाग का भारसाधक है....... पदेन सदस्य;
(छ) सचिव, भारत सरकार जो उपभोक्ता मामलों से सम्बन्धित केन्द्रीय सरकार के मंत्रालय या विभाग का भारसाधक है ....... पदेन सदस्य;
(ज) विद्युत (प्रदाय) अधिनियम, 1948 (1948 का 54) के अधीन स्थापित केन्द्रीय विद्युत प्राधिकरण का अध्यक्ष....... पदेन सदस्य;
(झ) कर्नाटक सोसाइटीज एक्ट, 1960 (1960 का कर्नाटक अधिनियम सं० 17) के अधीन रजिस्ट्रीकृत केन्द्रीय विद्युत अनुसन्धान संस्थान का महानिदेशक ....... पदेन सदस्य;
(ञ) सोसाइटी रजिस्ट्रीकरण अधिनियम, 1860 (1860 का 21) के अधीन रजिस्ट्रीकृत एक सोसाइटी, पेट्रोलियम कंजरवेशन रिसर्च एसोसिएशन का कार्यपालक निदेशक ....... पदेन सदस्य;
(ट) कम्पनी अधिनियम, 1956 (1956 का 1) के अधीन निगमित कम्पनी, सेन्ट्रल माइन प्लानिग एंड डिजाइन इंस्टीट्यूट लिमिटेड का अध्यक्ष-एवं-प्रबन्ध निदेशक ....... पदेन सदस्य;
(ठ) भारतीय मानक ब्यूरो अधिनियम, 1986 (1986 का 63) के अधीन स्थापित भारतीय मानक ब्यूरो का महानिदेशक .......पदेन सदस्य;
(ड) महानिदेशक, राष्ट्रीय परीक्षण गृह, प्रदाय विभाग, वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय कोलकाता....... पदेन सदस्य;
(ढ) कम्पनी अधिनियम, 1956 (1956 का 1) के अधीन निगमित कम्पनी, इण्डियन रीन्यूएबल एनर्जी डेवलपमेंट ऐजेन्सी लिमटेड का प्रबन्ध निदेशक .......पदेन सदस्य;
(ण) पाँच विद्युत क्षेत्रों में से प्रत्येक से एक सदस्य जो उक्त क्षेत्र के राज्यों का प्रतिनिधित्व करेंगे और जो केन्द्रीय सरकार द्वारा नियुक्त किये जाएँगे ....... सदस्य;
(त) केन्द्रीय सरकार द्वारा उन व्यक्तियों में से जो केन्द्रीय सरकार की राय में उद्योग, उपस्कर और साधित्र विनिर्माता, वास्तुविद और उपभोक्ताओं का प्रतिनिधित्व करने में सक्षम हैं, सदस्यों के रूप में नियुक्त किये जाने वाले चार से अनधिक उतने व्यक्ति जो विहित किये जाएँ ....... सदस्य;
(थ) दो से अनधिक उतनी संख्या में व्यक्ति जो शासी परिषद द्वारा सदस्य के रूप में नामनिर्दिष्ट किये जाएँ....... सदस्य;
(द) महानिदेशक, ब्यूरो .......पदेन सदस्य-सचिव।

(3) शासी परिषद ऐसी सभी शक्तियों का प्रयोग और ऐसे सभी कार्य तथा बातें कर सकेगी जिनका प्रयोग या जो कार्य और बातें ब्यूरो द्वारा की जा सकेंगी।

(4) उपधारा (2) के खण्ड (ण), खण्ड (त) और खण्ड (थ) में निर्दिष्ट प्रत्येक सदस्य, अपना पद, उस तारीख से, जिसको वह अपना पद ग्रहण करता है, तीन वर्ष की अवधि के लिये धारण करेगा।

(5) उपधारा (2) के खण्ड (ण), खण्ड (त) और खण्ड (थ) में निर्दिष्ट सदस्यों को सन्दत्त की जाने वाली फीस और भत्ते तथा रिक्तियों को भरे जाने की रीति और उनके कृत्यों के निर्वहन में अनुसरण की जाने वाली प्रक्रिया वह होगी जो विहित की जाये।

5. शासी परिषद के अधिवेशन

(1) शासी परिषद ऐसे समयों और स्थानों पर अधिवेशन करेगी और अपने अधिवेशनों में कारबार के संव्यवहार से सम्बन्धित (जिसके अन्तर्गत ऐसे अधिवेशनों में गणपूर्तित भी है) प्रक्रिया के ऐसे नियमों का पालन करेगी, जो विनियमों द्वारा उपबन्धित किये जाएँ।

(2) अध्यक्ष या यदि वह किसी कारण से शासी परिषद के अधिवेशन में उपस्थित होने में असमर्थ है, तो उस अधिवेशन में उपस्थित सदस्यों द्वारा अपने में से चुना गया कोई अन्य सदस्य, अधिवेशन की अध्यक्षता करेगा।

(3) शासी परिषद के किसी अधिवेशन के समक्ष आने वाले सभी प्रश्नों का विनिश्चय उपस्थित और मत देने वाले सदस्यों के बहुमत से किया जाएगा और मत बराबर होने की दशा में, अध्यक्ष का या उसकी अनुपस्थिति में, अध्यक्षता करने वाले व्यक्ति का द्वितीय या निर्णायक मत होगा।

6. रिक्तियों, आदि से ब्यूरो, शासी परिषद या समिति की कार्यवाहियों का अविधिमान्य न होना

ब्यूरो या शासी परिषद अथवा किसी समिति का कोई कार्य या कार्यवाही केवल इस आधार पर अविधिमान्य नहीं होगी कि-

(क) ब्यूरो या शासी परिषद अथवा समिति में कोई रिक्ति है या उसके गठन में कोई त्रुटि है; या
(ख) ब्यूरो के महानिदेशक या सचिव या शासी परिषद अथवा समिति के सदस्य के रूप में कार्यरत किसी व्यक्ति की नियुक्ति में कोई त्रुटि है; या
(ग) ब्यूरो या शासी परिषद अथवा समिति की प्रक्रिया में ऐसी अनियमितता है जिससे मामले के गुणागुण पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है।

7. सदस्य का पद से हटाया जाना

केन्द्रीय सरकार, धारा 4 की उपधारा (2) के खण्ड (ण), खण्ड (त) और खण्ड (थ) में निर्दिष्ट किसी सदस्य को हटा देगी, यदि-

(क) वह दिवालिया है या उसे किसी समय दिवालिया न्यायनिर्णीत किया गया है;
(ख) वह विकृतचित्त का है और उसे किसी सक्षम न्यायालय द्वारा ऐसा घोषित किया गया है;
(ग) उसे किसी ऐसे अपराध के लिये सिद्ध दोष ठहराया गया है जिसमें, केन्द्रीय सरकार की राय में, नैतिक अधमता अन्तर्वलित है;
(घ) उसने, केन्द्रीय सरकार की राय में, अपने पद का इस प्रकार दुरुपयोग किया है, जिससे कि उसका पद पर बने रहना लोकहित के लिये अहितकर है:

परन्तु इस खण्ड के अधीन किसी सदस्य को तब तक नहीं हटाया जाएगा जब तक कि उसे इस विषय पर सुनवाई का उचित अवसर नहीं दे दिया गया हो।

8. सलाहकार समितियों और अन्य समितियों का गठन

(1) इस निमित्त बनाए गए किन्हीं विनियमों के अधीन रहते हुए, ब्यूरो, इस अधिनियम के प्रारम्भ की तारीख से छह मास के भीतर, अपने कृत्यों के दक्षतापूर्ण निर्वहन के लिये सलाहकार समितियों का गठन कर सकेगा।

(2) प्रत्येक सलाहकार समिति एक अध्यक्ष और ऐसे अन्य सदस्यों से मिलकर बनेगी जो विनियमों द्वारा अवधारित किये जाएँ।

(3) उपधारा (1) में अन्तर्विष्ट शक्तियों पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, ब्यूरो, उपस्करों या प्रक्रियाओं की बाबत ऊर्जा संरक्षण के मानक या सन्नियम तय करने के लिये उतनी संख्या में विशेषज्ञों की तकनीकी समितियों का गठन कर सकेगा जितनी वह आवश्यक समझे।

9. ब्यूरो महानिदेशक

(1) केन्द्रीय सरकार अधिसूचना द्वारा ऐसे योग्य और ख्याति प्राप्त व्यक्तियों में से जिन्हें ऊर्जा उत्पादन, प्रदाय और ऊर्जा प्रबन्ध, मानकीकरण और ऊर्जा के दक्ष उपयोग और उसके संरक्षण से सम्बन्धित विषयों में पर्याप्त ज्ञान और अनुभव हो, महानिदेशक नियुक्त करेगी।

(2) केन्द्रीय सरकार, अधिसूचना द्वारा, भारत सरकार के उप सचिव की पंक्ति से अनिम्न व्यक्ति को ब्यूरो के सचिव के रूप में नियुक्त करेगी।

(3) महानिदेशक, उस तारीख से, जिसको वह अपना पद ग्रहण करता है 3{पाँच वर्ष} की अवधि के लिये या साठ वर्ष की आयु प्राप्त करने तक, इनमें से जो भी पहले हो, पद धारण करेगा।

(4) महानिदेशक को सन्देय वेतन और भत्ते और सेवा के अन्य निबन्धन और शर्तें तथा ब्यूरो के सचिव के अन्य निबन्धन और शर्तें वे होंगी जो विहित की जाएँ।

(5) शासी परिषद द्वारा कार्यकलापों के साधारण अधीक्षण, निदेशन और प्रबन्ध के अधीन रहते हुए, ब्यूरो महानिदेशक, ब्यूरो का मुख्य कार्यकारी प्राधिकारी होगा।

(6) ब्यूरो महानिदेशक, ब्यूरो की ऐसी शक्तियों का प्रयोग और ऐसे कर्तव्यों का निर्वहन करेगा जो विनियमों द्वारा अवधारित किये जाएँ।

10. ब्यूरो के अधिकारी और कर्मचारी

(1) 4{ब्यूरो, ब्यूरो में उतने अन्य अधिकारियों और कर्मचारियों को नियुक्त कर सकेगा जितने वह इस अधिनियम के अधीन उसके कृत्यों के दक्षतापूर्ण निर्वहन के लिये आवश्यक समझे।

(2) उपधारा (1) के अधीन नियुक्त ब्यूरो के अधिकारियों और अन्य कर्मचारियों की सेवा के निबन्धन और शर्तें वे होंगी जो विहित की जाएँ।

11. ब्यूरो के आदेशों और विनिश्चयों का अधिप्रमाणन

ब्यूरो के सभी आदेशों और विनिश्चयों को महानिदेशक या महानिदेशक द्वारा इस निमित्त प्राधिकृत ब्यूरो के किसी अन्य अधिकारी के हस्ताक्षर द्वारा अधिप्रमाणित किया जाएगा।

अध्याय 3


ऊर्जा प्रबन्ध केन्द्र की आस्तियों, दायित्वों, आदि का ब्यूरो को अन्तरण


12. ऊर्जा प्रबन्ध केन्द्र की आस्तियों, दायित्वों और कर्मचारियों का अन्तरण

(1) ब्यूरो की स्थापना की तारीख से ही,-

(क) इस अधिनियम से भिन्न किसी विधि में या किसी संविदा या अन्य लिखत में ऊर्जा प्रबन्ध केन्द्र के प्रति किसी निर्देश को ब्यूरो के प्रति निर्देश समझा जाएगा;
(ख) ऊर्जा प्रबन्ध केन्द्र की या उससे सम्बन्धित सभी जंगम और स्थावर सम्पत्ति और आस्तियाँ ब्यूरो में निहित हो जाएँगी;
(ग) ऊर्जा प्रबन्ध केन्द्र के सभी अधिकार और दायित्व ब्यूरो को अन्तरित हो जाएँगे और वे उसके अधिकार और दायित्व होंगे;
(घ) खण्ड (ग) के उपबन्धों पर प्रतिकूलित प्रभाव डाले बिना, उस तारीख से ठीक पहले ऊर्जा प्रबन्ध केन्द्र के प्रयोजनों के लिये या उसके सम्बन्ध में उक्त केन्द्र द्वारा या उसके लिये उपगत सभी ऋण, बाध्यताएँ और दायित्व, उसके साथ की गई सभी संविदाएँ और किये जाने के लिये वचनबद्ध सभी मामले और बातें ब्यूरो के द्वारा, उसके साथ या उसके लिये उपगत की गई या किये जाने के लिये वचनबद्ध समझी जाएँगी;
(ङ) उस तारीख के ठीक पूर्व ऊर्जा प्रबन्ध केन्द्र को शोध्य सभी धनराशियाँ ब्यूरो के लिये शोध्य समझी जाएँगी;
(च) उस तारीख के ठीक पूर्व ऊर्जा प्रबन्ध केन्द्र द्वारा या उसके विरुद्ध संस्थित सभी वाद और अन्य विधिक कार्यवाहियाँ या वे वाद और अन्य विधिक कार्यवाहियाँ जो संस्थित की जा सकती हैं, ब्यूरो द्वारा या उसके विरुद्ध जारी रखी जा सकेंगी या संस्थित की जा सकेंगी; और
(छ) उस तारीख के ठीक पूर्व ऊर्जा प्रबन्ध केन्द्र के अधीन कोई पद धारण करने वाला प्रत्येक कर्मचारी ब्यूरो में अपना पद उसी अवधि तक और पारिश्रमिक, छुट्टी, भविष्य निधि, सेवानिवृत्ति या सेवान्त प्रसुविधाओं की बाबत सेवा के उन्हीं निबन्धनों और शर्तों पर धारण करेगा जो यदि ब्यूरो की स्थापना नहीं की गई होती तो वह ऐसा पद धारण करता और ब्यूरो के कर्मचारी के रूप में या उस तारीख से छह मास के समाप्त होने तक ऐसा करता रहेगा यदि ऐसा कर्मचारी ब्यूरो का ऐसी अवधि के भीतर कर्मचारी न होने का विकल्प लेता है।

(2) औद्योगिक विवाद अधिनियम, 1947 (1947 का 14) में या तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि में किसी बात के होते हुए भी, ब्यूरो द्वारा इस धारा के अधीन अपनी नियमित सेवा के किसी कर्मचारी के आमेलित किये जाने से ऐसा कर्मचारी उस अधिनियम या अन्य विधि के अधीन किसी प्रतिकर के लिये हकदार नहीं होगा और ऐसा कोई दावा किसी न्यायालय, अधिकरण या अन्य प्राधिकारी द्वारा ग्रहण नहीं किया जाएगा।

अध्याय 4


ब्यूरो की शक्तियाँ और कृत्य


13. ब्यूरो की शक्तियाँ और कृत्य

(1) ब्यूरो, अभिहित उपभोक्ताओं, अभिहित अभिकरणों और अन्य अभिकरणों के साथ प्रभावी रूप से समन्वय करेगा, इस अधिनियम द्वारा या इसके अधीन उसे समनुदेशित कृत्यों का निर्वहन करने में विद्यमान संसाधनों और अवसरंचना को मान्यता देगा तथा उसका उपयोग करेगा।

(2) ब्यूरो ऐसे कृत्यों का निर्वहन और ऐसी शक्तियों का प्रयोग कर सकेगा जो उसे इस अधिनियम द्वारा या उसके अधीन सौंपे जाएँ तथा विशेषतः ऐसे कृत्यों और शक्तियों के अन्तर्गत निम्नलिखित कार्य करने के कृत्य और शक्तियाँ भी सम्मिलित हैं-

(क) धारा 14 के खण्ड (क) के अधीन अधिसूचित किये जाने के लिये अपेक्षित प्रक्रिया के लिये मान और ऊर्जा उपभोग मानक केन्द्रीय सरकार को सिफारिश करना;

5{(कक) धारा 14क के अधीन ऊर्जा बचत प्रमाणपत्र जारी करने के लिये केन्द्रीय सरकार को सिफारिश करना;}
(ख) वे विशिष्टियाँ जिनका उपस्कर या साधित्रों पर सम्प्रदर्शित करना या लेबल लगाना अपेक्षित है और धारा 14 के खण्ड (घ) के अधीन उनके सम्प्रदर्शन की रीति केन्द्रीय सरकार को सिफारिश करना;
(ग) ऊर्जा के ऐसे किसी उपयोगकर्ता या उपयोगकर्ताओं के किसी वर्ग को अभिहित उपभोक्ता के रूप में, धारा 14 के खण्ड (ङ) के अधीन अधिसूचित करने के लिये केन्द्रीय सरकार को सिफारिश करना;
(घ) धारा 14 के खण्ड (त) के अधीन ऊर्जा संरक्षण निर्माण संहिता के लिये मार्गदर्शक सिद्धान्त विहित करने के लिये उपयुक्त कदम उठाना;
(ङ) ऊर्जा के दक्ष उपयोग तथा उसके संरक्षण के सम्बन्ध में जागरुकता पैदा करने और जानकारी का प्रसार करने के लिये सभी आवश्यक उपाय करना;
(च) ऊर्जा के दक्ष उपयोग और उसके संरक्षण की तकनीकों में कार्मिकों और विशेषज्ञों के लिये प्रशिक्षण की व्यवस्था और उसका आयोजन करना;
(छ) ऊर्जा संरक्षण के क्षेत्र में परामर्शी सेवाओं को मजबूत करना;
(ज) ऊर्जा संरक्षण के क्षेत्र में अनुसन्धान और विकास का सम्प्रवर्तन करना;
(झ) परीक्षण और प्रमाणन प्रक्रिया का विकास करना और उपस्कर और साधित्रों के ऊर्जा संरक्षण के लिये प्रमाणन और परीक्षण के लिये सुविधाओं का सम्प्रवर्तन करना;
(ञ) ऊर्जा के दक्षतापूर्ण उपयोग और उसके संरक्षण के सम्प्रवर्तन के लिये पायलट परियोजनाओं और निर्देशन परियोजनाओं को तैयार करना और उनके कार्यान्वयन को सुकर बनाना;
(ट) ऊर्जा दक्ष प्रक्रियाओं, उपस्करों, युक्तियों और प्रणालियों के उपयोग का सम्प्रवर्तन करना;
(ठ) ऊर्जा दक्षता परियोजनाओं के नवीनतम वित्त पोषण का सम्प्रवर्तन करना;
(ड) ऊर्जा के दक्ष उपयोग और उसके संरक्षण का सम्प्रवर्तन करने के लिये संस्थाओं को वित्तीय सहायता देना;
(ढ) ऊर्जा के दक्ष उपयोग और उसके संरक्षण का सम्प्रवर्तन करने के लिये प्रदान की गई सेवाओं के लिये वह फीस उद्गृहीत करना जो विनियमों द्वारा अवधारित की जाये;
(ण) प्रत्यायित ऊर्जा सम्परीक्षकों की सूची रखना जो विनियमों द्वारा विनिर्दिष्ट की जाये;
6{(त) विनियमों द्वारा, ऐसी अर्हताएँ, मानदण्ड और शर्तें, जिनके अधीन रहते हुए कोई व्यक्ति ऊर्जा सम्परीक्षक के रूप में प्रत्यायित हो सकेगा और ऐसे प्रत्यायन के लिये प्रक्रिया विनिर्दिष्ट करना;
(थ) विनियमों द्वारा वह रीति और समय के अन्तराल विनिर्दिष्ट करना जिसमें ऊर्जा सम्परीक्षा की जाएगी;
(द) अभिहित उपभोक्ताओं द्वारा अभिहित या नियुक्त किये जाने वाले 6{ऊर्जा सम्परीक्षकों और ऊर्जा प्रबन्धकों, के लिये, विनियमों द्वारा प्रमाणन प्रक्रिया विनिर्दिष्ट करना;
(ध) शिक्षा संस्थाओं, बोर्डों, विश्वविद्यालयों या स्वशासी निकायों में ऊर्जा के दक्ष उपयोग और उसके संरक्षण के बारे में शिक्षा पाठ्यक्रम तैयार करना और उनके पाठ्य विवरणों में ऐसा पाठ्यक्रम सम्मिलित करने के लिये उनके साथ समन्वय करना;
7{(धक) ऊर्जा संरक्षण के क्षेत्र में, जिसके अन्तर्गत ऊर्जा प्रबन्धकों और ऊर्जा सम्परीक्षकों का प्रमाणीकरण भी है, क्षमता निर्माण और सेवाओं को सुदृढ़ बनाने के लिये परीक्षा का संचालन करना;}
(न) ऊर्जा के दक्ष उपयोग और उसके संरक्षण से सम्बन्धित ऐसे अन्तरराष्ट्रीय सहयोग कार्यक्रमों को कार्यान्वित करना जो उसे केन्द्रीय सरकार द्वारा समनुदेशित किये जाएँ;
(प) ऐसे अन्य कृत्य करना जो विहित किये जाएँ।

अध्याय 5


ऊर्जा के दक्ष उपयोग और उसके संरक्षण को सुकर बनाने और प्रवर्तित करने की केन्द्रीय सरकार की शक्ति


14. ऊर्जा के दक्ष उपयोग और उसके संरक्षण को प्रवर्तित करने की केन्द्रीय सरकार की शक्ति

केन्द्रीय सरकार, अधिसूचना द्वारा, ब्यूरो के परामर्श से-

(क) ऐसे किसी उपस्कर या साधित्र के लिये जो ऊर्जा का उपभोग, उत्पादन, पारेषण या प्रदाय करता है, प्रक्रिया के लिये मान और ऊर्जा उपभोग के मानक विनिर्दिष्ट कर सकेगी;
(ख) इस अधिनियम के प्रयोजनों के लिये, यथास्थिति, उपस्कर या साधित्र अथवा उपस्करों या साधित्रों के वर्ग को विनिर्दिष्ट कर सकेगी;
(ग) खण्ड (ख) के अधीन विनिर्दिष्ट उपस्कर या साधित्रों के विनिर्माण या विक्रय या क्रय या आयात को तब तक के लिये प्रतिषिद्ध कर सकेगी जब तक कि ऐसा उपस्कर या साधित्र ऊर्जा उपभोग के मानकों के अनुरूप न हो:

8{परन्तु इस धारा के खण्ड (क) के अधीन जारी की गई अधिसूचना की तारीख से छह मास की अवधि के भीतर उपस्कर या साधित्र के विनिर्माण या विक्रय या क्रय या आयात का प्रतिषेध करने वाली कोई अधिसूचना जारी नहीं की जाएगी:

परन्तु यह और कि केन्द्रीय सरकार, बाजार, शेयर और उपस्कर या साधित्र पर समाघात करने वाले प्रौद्योगिकीय विकास को ध्यान में रखते हुए और लेखबद्ध किये जाने वाले कारणों से, पहले परन्तुक में निर्दिष्ट छह मास की उक्त अवधि को छह मास से अनधिक की और अवधि के लिये विस्तारित कर सकेगी;
(घ) खण्ड (ख) के अधीन विनिर्दिष्ट उपस्कर पर या साधित्रों पर या लेबलों पर ऐसी विशिष्टियों का ऐसी रीति में जो विनियमों द्वारा विनिर्दिष्ट की जाये, सम्प्रदर्शन करने का निदेश दे सकेगी;
(ङ) उपभोग की गई ऊर्जा की गहनता या मात्रा को और ऊर्जा दक्ष उपस्करों के प्रयोग में बदलने में अपेक्षित विनिधान की रकम और उसमें विनिधान करने की उद्योग की क्षमता और उद्योग द्वारा अपेक्षित ऊर्जा दक्ष मशीनरी और उपस्कर की उपलभ्यता को ध्यान में रखते हुए, इस अधिनियम के प्रयोजनों के लिये 8{अनुसूची में यथाविर्निदष्ट ऊर्जा सघन उद्योगों और अन्य स्थापनों में ऊर्जा के किसी उपयोक्ता या उपयोक्ताओं के वर्ग को अभिहित उपभोक्ता के रूप में} विनिर्दिष्ट कर सकेगी;
(च) अनुसूची में विनिर्दिष्ट ऊर्जा गहनता उद्योगों की सूची में परिवर्तन कर सकेगी;
(छ) अभिहित उपभोक्ताओं के लिये ऐसे ऊर्जा उपभोग मान या मानक स्थापित और विहित कर सकेगी जो वह आवश्यक समझे:

परन्तु केन्द्रीय सरकार, ऐसे पहलुओं को ध्यान में रखते हुए जो विहित किये जाएँ, भिन्न-भिन्न अभिहित उपभोक्ताओं के लिये भिन्न-भिन्न माल और मानक विहित कर सकेगी;
(ज) खण्ड (क) के अधीन विनिर्दिष्ट उपभोग की गई ऊर्जा की मात्रा या ऊर्जा उपभोग के सन्नियमों और मानकों को ध्यान में रखते हुए, अनुसूची में विनिर्दिष्ट ऊर्जा गहन उद्योगों को किसी प्रत्यायित ऊर्जा सम्परीक्षक द्वारा ऊर्जा की सम्परीक्षा ऐसी रीति में और समय-अन्तरालों पर, जो विनियमों द्वारा विनिर्दिष्ट किये जाएँ, कराने के लिये निदेश दे सकेगी;
(झ) यदि ऊर्जा के दक्ष उपयोग और उसके संरक्षण के लिये वह आवश्यक समझती है तो किसी अभिहित उपभोक्ता को किसी प्रत्यायित ऊर्जा सम्परीक्षक द्वारा ऊर्जा की सम्परीक्षा कराए जाने के लिये निदेश दे सकेगी;
(ञ) उन विषयों को विनिर्दिष्ट कर सकेगी जो धारा 17 की उपधारा (2) के अधीन निरीक्षण के प्रयोजनों के लिये सम्मिलित किये जाएँगे;
(ट) किसी अभिहित उपभोक्ता को यह निदेश दे सकेगी कि वह अभिहित अभिकरण को ऐसे प्रारूप में और ऐसी रीति में तथा ऐसी अवधि के भीतर जो विहित की जाये, उपभोग की गई ऊर्जा के सम्बन्ध में और प्रत्यायित ऊर्जा सम्परीक्षक की सिफारिश पर की गई कार्रवाई की जानकारी दे;
(ठ) किसी अभिहित उपभोक्ता को यह निदेश दे सकेगी कि वह ऊर्जा के दक्ष उपयोग और उसके संरक्षण के लिये क्रियाकलापों का प्रभारी ऊर्जा प्रबन्धक अभिहित या नियुक्त करें और अभिहित अभिकरण को प्रत्येक वित्तीय वर्ष के अन्त में ऊर्जा उपभोग के स्तर के बारे में ऐसे प्रारूप में और ऐसी रीति में, जो विहित की जाये, रिपोर्ट प्रस्तुत करे;
(ड) खण्ड (ठ) के अधीन अभिहित या नियुक्त किये जाने वाले 8{ऊर्जा सम्परीक्षकों और ऊर्जा प्रबन्धकों} के लिये न्यूनतम अर्हता विहित कर सकेगी;
(ढ) प्रत्येक अभिहित उपभोक्ता को ऊर्जा उपभोग मानकों या मानों का पालन करने का निदेश दे सकेगी;
(ण) किसी ऐसे अभिहित उपभोक्ता को, जो खण्ड (छ) में विहित ऊर्जा खपत सन्नियम और मानकों को पूरा न करता हो, ऊर्जा के दक्ष उपयोग और उसके संरक्षण के लिये एक स्कीम तैयार करने और ऐसी स्कीम को, विनधान की आर्थिक व्यवहार्यता को ध्यान में रखते हुए, 8{ऐसे प्रारूप में, ऐसे समय के भीतर और ऐसी रीति में, जो विहित की जाये, कार्यान्वित करने के लिये निदेश दे सकेगी;
(त) ऐसे भवन या भवन प्रक्षेत्र में ऊर्जा के दक्ष उपयोग और उसके संरक्षण के लिये ऊर्जा संरक्षण निर्माण संहिता विहित कर सकेगी;
(थ) ऊर्जा संरक्षण निर्माण संहिता में, उन्हें क्षेत्रीय और स्थानीय जलवायु की दशाओं के अनुरूप बनाने के लिये संशोधन कर सकेगी;
(द) अभिहित उपभोक्ता के रूप में भवन या भवन प्रक्षेत्र के स्वामी या अधिभोगी को ऊर्जा के दक्ष उपयोग और उसके संरक्षण के लिये ऊर्जा संरक्षण निर्माण संहिता के उपबन्धों का पालन करने का निदेश दे सकेगी;
(ध) यदि वह आवश्यक समझे तो किसी भवन में ऊर्जा के दक्ष उपयोग और उसके संरक्षण के लिये खण्ड (द) में निर्दिष्ट किसी अभिहित उपभोक्ता को ऐसे भवन के सम्बन्ध में किसी प्रत्यायित ऊर्जा सम्परीक्षक से ऐसी रीति में और ऐसे समय-अन्तरालों पर, जो विनियमों द्वारा विनिर्दिष्ट किया जाये, ऊर्जा की सम्परीक्षा कराने के लिये निदेश दे सकेगी;
(न) ऊर्जा के दक्ष उपयोग और उसके संरक्षण के सम्बन्ध में जागरुकता पैदा करने और जानकारी का प्रसार करने के बारे में सभी आवश्यक उपाय कर सकेगी;
(प) ऊर्जा के दक्ष उपयोग और उसके संरक्षण की तकनीकों में कार्मिकों और विशेषज्ञों के प्रशिक्षण की व्यवस्था और उसका आयोजन कर सकेगी;
(फ) ऊर्जा दक्ष उपस्कर या साधित्रों के उपयोग के लिये अधिमानी व्यवहार को प्रोत्साहन देने के लिये आवश्यक कदम उठा सकेगी:

परन्तु खण्ड (त) से खण्ड (ध) के अधीन शक्तियों का प्रयोग सम्बद्ध राज्य के परामर्श से किया जाएगा।

9{14क. ऊर्जा बचत प्रमाणपत्र जारी करने की केन्द्रीय सरकार की शक्ति

(1) केन्द्रीय सरकार, ऐसे अभिहित उपभोक्ता को ऊर्जा बचत प्रमाणपत्र जारी कर सकेगी, जिसकी ऊर्जा की खपत उस प्रक्रिया के अनुसार जो विहित की जाये, विहित मानों और मानकों से कम है।

(2) ऐसा अभिहित उपभोक्ता, जिसकी ऊर्जा खपत विहित मानों या मानकों से अधिक है, विहित मानों और मानकों का अनुपालन करने के लिये ऊर्जा बचत प्रमाणपत्र क्रय करने का हकदार होगा।

14ख. ऊर्जा का मूल्य विनिर्दिष्ट करने की केन्द्रीय सरकार की शक्ति

केन्द्रीय सरकार, ब्यूरो के परामर्श से इस अधिनियम के प्रयोजनों के लिये उपभोग की गई ऊर्जा के समतुल्य तेल का प्रति मीटरी टन मूल्य विहित कर सकेगी।,

अध्याय 6


ऊर्जा के दक्ष उपयोग और उसके संरक्षण को सुकर बनाने और प्रवर्तित करने की राज्य सरकार की शक्ति


15. ऊर्जा के दक्ष उपयोग और उसके संरक्षण के लिये कतिपय उपबन्धों को प्रवर्तित करने की राज्य सरकार की शक्ति

राज्य सरकार, अधिसूचना द्वारा, ब्यूरो के परामर्श से-

(क) ऊर्जा संरक्षण निर्माण संहिता का, उसको क्षेत्रीय और स्थानीय जलवायु दशाओं के अनुरूप बनाने के लिये, संशोधन कर सकेगी और उसके द्वारा बनाए गए नियमों द्वारा भवनों में ऊर्जा के उपयोग के सम्बन्ध में ऊर्जा संरक्षण निर्माण संहिता को विनिर्दिष्ट और अधिसूचित कर सकेगी;
(ख) अभिहित उपभोक्ता के रूप में भवन या भवन प्रक्षेत्र के स्वामी या अधिभोगी को ऊर्जा संरक्षण निर्माण संहिता के उपबन्धों का पालन करने का निदेश दे सकेगी;
(ग) यदि वह ऊर्जा के दक्ष उपयोग और उसके संरक्षण के लिये आवश्यक समझे तो खण्ड (ख) में निर्दिष्ट किन्हीं अभिहित उपभोक्ताओं को यह निदेश दे सकेगी कि वे ऊर्जा की किसी प्रत्यायित ऊर्जा सम्परीक्षक द्वारा ऐसी रीति में और ऐसे समय-अन्तरालों पर सम्परीक्षा कराएँ जो विनियमों द्वारा विनिर्दिष्ट किये जाएँ;
(घ) अभिहित अभिकरण के रूप में किसी अभिकरण को राज्य के भीतर इस अधिनियम के उपबन्धों को समन्वित, विनियमित और प्रवर्तित करने के लिये अभिहित कर सकेगी;
(ङ) ऊर्जा के दक्ष उपयोग और उसके संरक्षण के सम्बन्ध में जागरुकता पैदा करने और जानकारी के प्रसार के लिये सभी आवश्यक उपाय कर सकेगी;
(च) ऊर्जा के दक्ष उपयोग और ऊर्जा संरक्षण की तकनीकों में कार्मिकों और विशेषज्ञों के प्रशिक्षण की व्यवस्था और उसका आयोजन कर सकेगी;
(छ) ऊर्जा के दक्ष उपस्कर या साधित्रों के उपयोग के लिये अधिमानी व्यवहार किये जाने को प्रोत्साहन देने के लिये कदम उठा सकेगी;
(ज) किसी अभिहित उपभोक्ता को यह निदेश दे सकेगी कि वह अभिहित अभिकरण को ऐसे उपभोक्ता द्वारा उपभोग की गई ऊर्जा के सम्बन्ध में जानकारी ऐसे प्रारूप में और ऐसी रीति में तथा ऐसी अवधि के भीतर दें, जो उसके द्वारा बनाए गए नियमों द्वारा विनिर्दिष्ट की जाये;
(झ) धारा 17 की उपधारा (2) के अधीन निरीक्षण के प्रयोजनों के लिये सम्मिलित किये जाने वाले विषयों को विनिर्दिष्ट कर सकेगी।

16. राज्य सरकार द्वारा निधि की स्थापना

(1) राज्य सरकार राज्य के भीतर ऊर्जा के दक्ष उपयोग और उसके संरक्षण के सम्प्रवर्तन के प्रयोजनों के लिये निधि का गठन करेगी जिसे राज्य ऊर्जा संरक्षण निधि कहा जाएगा।

(2) निधि में वे सभी अनुदान और उधार जमा किये जाएँगे जो इस अधिनियम के प्रयोजनों के लिये राज्य सरकार या केन्द्रीय सरकार या अन्य संगठन या व्यष्टि द्वारा दिये जाएँगे।

(3) निधि का उपयोजन इस अधिनियम के उपबन्धों को कार्यान्वित करने के लिये उपगत व्ययों को पूरा करने के लिये किया जाएगा।

(4) उपधारा (1) के अधीन सृजित निधि का ऐसे व्यक्तियों या किसी प्राधिकारी द्वारा ऐसी रीति में प्रशासन किया जाएगा जो राज्य सरकार द्वारा बनाए गए नियमों में विनिर्दिष्ट की जाये।

17. निरीक्षण की शक्ति

(1) अभिहित अभिकरण, इस अधिनियम के प्रारम्भ की तारीख से पाँच वर्ष की समाप्ति पर उतने निरीक्षण अधिकारी नियुक्त कर सकेगा जितने वह धारा 14 के खण्ड (क) में विनिर्दिष्ट ऊर्जा उपभोग के मानकों का पालन सुनिश्चित करने के प्रयोजन के लिये या यह सुनिश्चित करने के लिये कि धारा 14 के खण्ड (ख) में विनिर्दिष्ट उपस्कर या साधित्र पर लेबल पर विशिष्टियाँ सम्प्रदर्शित की गई हैं अथवा ऐसे अन्य कृत्यों का पालन करने के प्रयोजनार्थ, जो उन्हें सौंपे जाएँ, आवश्यक समझे।

(2) इस अधिनियम के अधीन बनाए गए किन्हीं नियमों के अधीन रहते हुए, निरीक्षक अधिकारी को निम्नलिखित की बाबत शक्तियाँ प्राप्त होंगी-

(क) धारा 14 के खण्ड (ख) के अधीन विनिर्दिष्ट उपस्कर या साधित्रों पर या उनके सम्बन्ध में चलाई जाने वाली किसी संक्रिया अथवा जिसकी बाबत धारा 14 के खण्ड (क) के अधीन ऊर्जा मानक विनिर्दिष्ट किये गए हैं, निरीक्षण करना;
(ख) अभिहित उपभोक्ता के किसी ऐसे स्थान में प्रवेश करना जिसमें किसी क्रियाकलाप के लिये ऊर्जा का उपयोग किया जाता है और किसी स्वत्वधारी, नियोजक, निदेशक, प्रबन्धक या सचिव अथवा ऐसे किसी अन्य व्यक्ति से इस बारे में अपेक्षा करना जो किसी रीति से उपस्थित होकर या उसमें सहायता करके ऊर्जा की सहायता से किये जा रहे किसी क्रियाकलाप को कर रहा है-

(i) उसे-
(अ) ऐसे किसी उपस्कर या साधित्र का, जिसके लिये अपेक्षा की जाये और जो ऐसे स्थान पर उपलब्ध हो;
(आ) ऊर्जा उपभोग सन्नियम सुनिश्चित करने के लिये किसी उत्पादन प्रक्रिया का, निरीक्षण करने की आवश्यक सुविधा प्रदान करे;

(ii) उसके द्वारा जाँच किये गए या सत्यापित किये गए किसी उपस्कर या साधित्र के स्टाक की तालिका तैयार करे;
(iii) किसी व्यक्ति का ऐसा कथन लेखबद्ध करे जो इस अधिनियम के अधीन ऊर्जा के दक्ष उपयोग और उसके संरक्षण के लिये लाभदायक या सुसंगत हो।

(3) निरीक्षक अधिकारी अभिहित उपभोक्ता के किसी ऐसे स्थान में ऐसे समय के दौरान जिसके दौरान ऐसा स्थान उत्पादन या उससे सम्बन्धित कारबार करने के लिये खुला है, प्रवेश कर सकेगा-

(क) जहाँ ऊर्जा की सहायता से कोई क्रियाकलाप चलाया जा रहा हो; और
(ख) जहाँ धारा 14 के खण्ड (ख) के अधीन अधिसूचित कोई उपस्कर या साधित्र रखा गया है।

(4) इस धारा के अधीन कार्यरत निरीक्षक अधिकारी, ऐसे स्थान से जिसमें उसने प्रवेश किया है, किसी भी कारण से कोई भी उपस्कर या साधित्र या लेखाबही अथवा कोई अन्य दस्तावेज वहाँ से नहीं हटाएगा और न ही हटवाएगा।

18. निदेश जारी करने की केन्द्रीय सरकार और राज्य सरकार की शक्ति

केन्द्रीय सरकार या राज्य सरकार, इस अधिनियम के अधीन अपनी शक्तियों का प्रयोग और अपने कृत्यों का पालन करते हुए तथा ऊर्जा के दक्ष उपयोग और उसके संरक्षण के लिये किसी व्यक्ति, अधिकारी, प्राधिकारी या किसी अभिहित उपभोक्ता को लिखित में ऐसे निदेश जारी कर सकेगी जो वह इस अधिनियम के प्रयोजनों के लिये ठीक समझे और ऐसा व्यक्ति, अधिकारी, प्राधिकारी या कोई अभिहित उपभोक्ता ऐसे निदेश का पालन करने के लिये आबद्ध होगा।

स्पष्टीकरण

शंकाओं से बचने के लिये यह घोषित किया जाता है कि इस धारा के अधीन निदेश जारी करने की शक्ति के अन्तर्गत-

(क) किसी उद्योग, या भवन या भवन प्रक्षेत्र में प्रक्रिया के लिये सन्नियमों और ऊर्जा उपभोग के मानकों का विनियमन; या
(ख) उपस्कर और साधित्रों के लिये ऊर्जा संरक्षण के विनियमन के लिये, निदेश देने की शक्ति भी है।

अध्याय 7


ब्यूरो का वित्त, लेखा और सम्परीक्षा


19. केन्द्रीय सरकार द्वारा अनुदान और उधार

केन्द्रीय सरकार, संसद द्वारा इस निमित्त विधि द्वारा किये गए सम्यक विनियोग के पश्चात ब्यूरो को या राज्य सरकारों को ऐसी धनराशियों का अनुदान और उधार दे सकेगी जिन्हें सरकार आवश्यक समझे।

20. केन्द्रीय सरकार द्वारा निधि की स्थापना

(1) ‘केन्द्रीय ऊर्जा संरक्षण निधि’ नामक एक निधि का गठन किया जाएगा और उसमें निम्नलिखित जमा किया जाएगा-

(क) केन्द्रीय सरकार द्वारा धारा 19 के अधीन ब्यूरो को दिया गया कोई अनुदान और उधार;
(ख) इस अधिनियम के अधीन ब्यूरो द्वारा प्राप्त सभी फीसें;
(ग) ब्यूरो द्वारा अन्य स्रोतों से, जो केन्द्रीय सरकार द्वारा विनिश्चित किये जाएँ, प्राप्त सभी धनराशियाँ।

(2) निधि का उपयोजन निम्नलिखित की पूर्ति के लिये किया जाएगा-

(क) ब्यूरो के महानिदेशक, सचिव, अधिकारियों और अन्य कर्मचारियों के वेतन, भत्ते और अन्य पारिश्रमिक;
(ख) धारा 13 के अधीन ब्यूरो के अपने कृत्यों का आशयित करने में व्यय;
(ग) धारा 4 की उपधारा (5) के अधीन शासी परिषद के सदस्यों को सन्दत्त की जाने वाली फीस और भत्ते;
(घ) इस अधिनियम द्वारा प्राधिकृत उद्देश्यों और प्रयोजनों के लिये व्यय।

21. ब्यूरो की उधार लेने की शक्तियाँ

(1) ब्यूरो, केन्द्रीय सरकार की सहमति से या केन्द्रीय सरकार द्वारा उसे दिये गए किसी साधारण या विशेष प्राधिकार के निबन्धनों के अनुसार, ऐसे किसी स्रोत से धन उधार ले सकेगा जिसे वह इस अधिनियम के अधीन अपने किसी या सभी कृत्यों का निर्वहन करने के लिये उचित समझे।

(2) केन्द्रीय सरकार, उपधारा (1) के अधीन ब्यूरो द्वारा लिये गए उधारों की बाबत मूलधन के प्रतिसन्दाय और उस पर ब्याज के सन्दाय की ऐसी रीति में, जिसे वह उचित समझे, गारंटी दे सकेगी।

22. बजट

ब्यूरो, प्रत्येक वित्तीय वर्ष में अगले वित्तीय वर्ष के लिये अपना बजट ऐसे प्रारूप में और ऐसे समय पर तैयार करेगा जो विहित किया जाये, जिसमें ब्यूरो की प्राक्कलित प्राप्तियाँ और व्यय दर्शित किया जाएगा और उसे केन्द्रीय सरकार को भेजेगा।

23. वार्षिक रिपोर्ट

ब्यूरो, प्रत्येक वित्तीय वर्ष में पूर्ववर्ती वित्तीय वर्ष के दौरान अपने क्रियाकलापों का पूर्ण वृत्तान्त देते हुए अपनी वार्षिक रिपोर्ट ऐसे प्रारूप में और ऐसे समय पर, जो विहित किया जाये, तैयार करेगा और उसकी एक प्रति केन्द्रीय सरकार को प्रस्तुत करेगा।

24. वार्षिक रिपोर्ट का संसद के समक्ष रखा जाना

केन्द्रीय सरकार, धारा 23 में निर्दिष्ट वार्षिक रिपोर्ट को, उसके प्राप्त होने के पश्चात, यथाशीघ्र संसद के दोनों सदनों के समक्ष रखवाएगी।

25. लेखा और सम्परीक्षा

(1) ब्यूरो उचित लेखा और अन्य सुसंगत अभिलेख बनाए रखेगा तथा लेखाओं का एक वार्षिक विवरण ऐसे प्रारूप में, जो केन्द्रीय सरकार द्वारा भारत के नियंत्रक-महालेखा परीक्षक से परामर्श करके विहित किया जाये, तैयार करेगा।

(2) ब्यूरो के लेखाओं की सम्परीक्षा भारत के नियंत्रक-महालेखा परीक्षक द्वारा ऐसे अन्तरालों पर की जाएगी जो उसके द्वारा विनिर्दिष्ट किये जाएँ और ऐसी सम्परीक्षा के सम्बन्ध में उपगत कोई व्यय ब्यूरो द्वारा भारत के नियंत्रक-महालेखा परीक्षक को सन्देय होगा।

(3) भारत के नियंत्रक-महालेखा परीक्षक और ब्यूरो के लेखाओं की सम्परीक्षा के सम्बन्ध में उसके द्वारा नियुक्त किसी व्यक्ति के ऐसी सम्परीक्षा के सम्बन्ध में वही अधिकार तथा विशेषाधिकार और प्राधिकार होंगे जो साधारणतया नियंत्रक-महालेखा परीक्षक को सरकारी लेखाओं की सम्परीक्षा के सम्बन्ध में हैं और विशिष्टतया, उसे बहियों, लेखाओं, सम्बन्धित वाउचरों तथा अन्य दस्तावेजों तथा कागजपत्रों के पेश किये जाने की माँग करने और ब्यूरो के कार्यालयों का निरीक्षण करने का अधिकार होगा।

(4) भारत के नियंत्रक-महालेखा परीक्षक द्वारा या उसके द्वारा इस निमित्त नियुक्त किसी अन्य व्यक्ति द्वारा यथाप्रमाणित ब्यूरो के लेखे, उनकी सम्परीक्षा रिपोर्ट के साथ, प्रतिवर्ष केन्द्रीय सरकार को भेजे जाएँगे और वह सरकार उन्हें संसद के प्रत्येक सदन के समक्ष रखवाएगी।

अध्याय 8


शास्तियाँ और न्यायनिर्णयन


26. शास्ति

(1) यदि कोई व्यक्ति धारा 14 के खण्ड (ग), खण्ड (घ) या खण्ड (ज) या खण्ड (झ) या खण्ड (ट) या खण्ड (ठ) 10*** या खण्ड (द) या खण्ड (ध) अथवा धारा 15 के खण्ड (ख) या खण्ड (ग) या खण्ड (ज) के उपबन्धों का अनुपालन करने में असफल रहेगा तो वह ऐसी प्रत्येक असफलता के लिये ऐसी शास्ति का जो 11{दस लाख रुपए} से अधिक नहीं होगी और असफलता जारी रहने की दशा में ऐसे प्रत्येक दिन के लिये जिसके दौरान ऐसी असफलता जारी रहती है, ऐसी अतिरिक्त शास्ति का जो 11{दस हजार रुपए} तक की हो सकेगी, दायी होगा:

परन्तु कोई व्यक्ति इस अधिनियम के प्रारम्भ की तारीख से पाँच वर्ष के भीतर शास्ति देने का भागी होगा।

12{(1क) यदि कोई व्यक्ति, धारा 14 के खण्ड (ढ) के उपबन्धों का अनुपालन करने में असफल रहेगा तो वह ऐसी शास्ति का जो दस लाख रुपए से अधिक की नहीं होगी और असफलता जारी रहने की दशा में ऐसी अतिरिक्त शास्ति का जो इस अधिनियम के अधीन विहित ऊर्जा के समतुल्य तेल के प्रति मीटरी टन मूल्य से कम की नहीं होगी, अर्थात जो विहित मानकों से अधिक होगी, दायी होगा।}

(2) इस धारा के अधीन सन्देय कोई रकम, यदि उसका सन्दाय नहीं किया गया है, ऐसे वसूल की जाएगी मानो वह भू-राजस्व की कोई बकाया हो।

27. न्यायनिर्णयन करने की शक्ति

(1) राज्य आयोग, धारा 26 के अधीन न्यायनिर्णयन करने के प्रयोजनार्थ सम्बन्धित व्यक्ति को सुनवाई का युक्तियुक्त अवसर देने के पश्चात केन्द्रीय सरकार द्वारा विहित की जाने वाली रीति में, कोई शास्ति अधिरोपित करने के प्रयोजनार्थ जाँच करने के लिये अपने किसी सदस्य को न्यायनिर्णायक अधिकारी नियुक्त करेगा।

(2) न्यायनिर्णायक अधिकारी को, कोई जाँच करने के दौरान किसी ऐसे व्यक्ति को, जो मामले के तथ्यों और परिस्थितियों से परिचित हो, साक्ष्य देने या कोई ऐसा दस्तावेज प्रस्तुत करने के लिये, जो न्यायनिर्णायक अधिकारी की राय में जाँच की विषय वस्तु के लिये उपयोगी या उससे सुसंगत हो, समन करने और उसे हाजिर कराने की शक्ति होगी और यदि ऐसी जाँच पर उसका समाधान हो जाता है कि वह व्यक्ति धारा 26 में विनिर्दिष्ट किन्हीं धाराओं के उपबन्धों का अनुपालन करने में असफल हो गया है, तो वह उस धारा के उन खण्डों में से किसी के उपबन्धों के अनुसार ऐसी शास्ति अधिरोपित कर सकेगा, जो वह ठीक समझे:

परन्तु जहाँ किसी राज्य में राज्य आयोग स्थापित नहीं किया गया है, वहाँ उस राज्य की सरकार उक्त राज्य में विधि कार्यों से सम्बद्ध सचिव के समतुल्य पंक्ति से अनिम्न अपने किसी अधिकारी को इस धारा के प्रयोजनार्थ न्यायनिर्णायक अधिकारी नियुक्त करेगी और ऐसा अधिकारी उस राज्य में राज्य आयोग की स्थापना के बाद उसके द्वारा न्यायनिर्णायक अधिकारी की नियुक्ति पर से ही न्यायनिर्णायक अधिकारी नहीं रहेगा:

परन्तु यह और कि जहाँ किसी राज्य सरकार द्वारा नियुक्त कोई न्यायनिर्णायक अधिकारी, न्यायनिर्णायक अधिकारी नहीं रहता वहाँ वह, राज्य आयोग द्वारा नियुक्त न्यायनिर्णायक अधिकारी को अपने द्वारा न्यायनिर्णीत सभी मामले अन्तरित कर देगा और तत्पश्चात राज्य आयोग द्वारा नियुक्त न्यायनिर्णायक अधिकारी ऐसे मामलों में शास्तियों का अधिनिर्णय करेगा।

28. न्यायनिर्णायक अधिकारी द्वारा विचार में ली जाने वाली बातें

धारा 26 के अधीन शास्ति की मात्रा का न्यायनिर्णयन करते समय, न्यायनिर्णायक अधिकारी निम्नलिखित बातों का सम्यक ध्यान रखेगा, अर्थात:
(क) व्यतिक्रम के परिणामस्वरूप किये गए अननुपातिक अभिलाभ या अनुचित लाभ की मात्रा, जहाँ मात्रा निर्धारित करने योग्य हो;
(ख) व्यतिक्रम की आवृतिमय प्रकृति।

29. सिविल न्यायालय की अधिकारिता न होना

ऐसे किसी विषय की बाबत जिसमें इस अधिनियम के अधीन नियुक्त न्यायनिर्णायक अधिकारी या अपील अधिकरण को इस अधिनियम द्वारा या इसके अधीन अवधारण करने की शक्ति हो, किसी सिविल न्यायालय को कोई वाद या कार्यवाही ग्रहण करने की अधिकारिता नहीं होगी और इस अधिनियम द्वारा या उसके अधीन प्रदत्त किसी शक्ति के अनुसरण में की गई या की जाने वाली किसी कार्रवाई की बाबत किसी न्यायालय या अन्य प्राधिकारी द्वारा कोई व्यादेश अनुदत्त नहीं किया जाएगा।

अध्याय 9


ऊर्जा संरक्षण अपील अधिकरण


13{30. अपील अधिकरण

विद्युत अधिनियम, 2003 (2003 का 36) की धारा 110 के अधीन स्थापित अपील अधिकरण, विद्युत अधिनियम, 2003 के उपबन्धों पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, इस अधिनियम के प्रयोजनों के लिये अपील अधिकरण होगा और इस अधिनियम के अधीन न्यायनिर्णायक अधिकारी या केन्द्रीय सरकार या राज्य सरकार या किसी अन्य प्राधिकारी के आदेशों के विरुद्ध अपीलों की सुनवाई करेगा।}

31. अपील अधिकरण को अपील

(1) किसी न्यायनिर्णायक अधिकारी या केन्द्रीय सरकार या राज्य सरकार या किसी अन्य प्राधिकारी द्वारा इस अधिनियम के अधीन किये गए किसी आदेश से व्यथित कोई व्यक्ति, ऊर्जा संरक्षण अपील अधिकरण को अपील कर सकेगा:

परन्तु न्याय निर्णायक अधिकारी के शास्ति अधिरोपित करने वाले आदेश के विरुद्ध अपील करने वाला कोई व्यक्ति, अपील फाइल करते समय शास्ति की रकम जमा कराएगा:

परन्तु यह और कि जहाँ किसी विशेष मामले में, अपील अधिकरण की यह राय हो कि ऐसी शास्ति का निक्षेप ऐसे व्यक्ति के लिये असम्यक कठिनाई पैदा करेगा वहाँ अपील अधिकरण, ऐसे निक्षेप से अभिमुक्ति दे सकेगा जो कि ऐसी शर्तों के अधीन रहते हुए होगी जो वह शास्ति की वसूली को सुरक्षित करने के लिये अधिरोपित करना ठीक समझे।

(2) उपधारा (1) के अधीन प्रत्येक अपील उस तारीख से जिसको न्याय निर्णायक अधिकारी या केन्द्रीय सरकार या राज्य सरकार या किसी अन्य प्राधिकारी द्वारा किये गए आदेश की प्रति व्यथित व्यक्ति द्वारा प्राप्त की जाती है, पैंतालीस दिन की अवधि के भीतर फाइल की जाएगी और वह ऐसे प्रारूप में, ऐसे रूप में सत्यापित और ऐसी फीस के साथ होगी जो विहित की जाये:

परन्तु अपील अधिकरण, उक्त पैंतालीस दिन की अवधि की समाप्ति के पश्चात अपील ग्रहण कर सकेगा यदि उसका यह समाधान हो जाये कि उस अवधि के भीतर अपील फाइल न करने के लिये पर्याप्त कारण था।

(3) अपील अधिकरण, उपधारा (1) के अधीन अपील की प्राप्ति पर, अपील के पक्षकारों को सुनवाई का अवसर देने के पश्चात, जिस आदेश के विरुद्ध अपील की गई है उसकी पुष्टि करते हुए, उपान्तिरत करते हुए या अपास्त करते हुए, जैसा वह ठीक समझे, आदेश पारित कर सकेगा।

(4) अपील अधिकरण अपने द्वारा किये गए प्रत्येक आदेश की एक प्रति अपील के पक्षकारों को या केन्द्रीय सरकार या राज्य सरकार या किसी अन्य प्राधिकारी को भेजेगा।

(5) उपधारा (1) के अधीन अपील अधिकरण के समक्ष फाइल की गई अपील यथासम्भव शीघ्रता से निपटाई जाएगी और अपील की प्राप्ति की तारीख से एक सौ अस्सी दिन के भीतर अपील को अन्तिम रूप से निपटाने का पर्यास किया जाएगा:

परन्तु जहाँ कोई अपील एक सौ अस्सी दिन की उक्त अवधि के भीतर निपटाई न जा सके वहाँ अपील अधिकरण उक्त अपील को उक्त अवधि के भीतर न निपटाने के लिये कारणों को लेखबद्ध करेगा।

(6) अपील अधिकरण, इस अधिनियम के अधीन, यथास्थिति, न्याय निर्णायक अधिकारी या केन्द्रीय सरकार या राज्य सरकार या किसी अन्य प्राधिकारी द्वारा किये गए किसी आदेश की, यथास्थिति, किसी कार्यवाही के सम्बन्ध में वैधता, औचित्य या शुद्धता की परीक्षा के प्रयोजनार्थ स्वप्रेरणा से या अन्यथा, ऐसी कार्यवाहियों के अभिलेख मँगवाएगा और मामले में ऐसा आदेश करेगा जो वह ठीक समझे।

14{31क. अपील अधिकरण की प्रक्रिया और शक्तियाँ

विद्युत अधिनियम, 2003 (2003 का 36) की धारा 120 से धारा 123 तक (जिसमें दोनों धाराएँ सम्मिलित हैं) के उपबन्ध, यथावश्यक परिवर्तन सहित अपील अधिकरण को, इस अधिनियम के अधीन उसके कृत्यों के निर्वहन में, इस प्रकार लागू होंगे, जैसे वे विद्युत अधिनियम, 2003 के अधीन उसके कृत्यों के निर्वहन में उसको लागू होते हैं।,

15***44. अपीलार्थी का विधि व्यवसायी या प्रत्यायित सम्परीक्षक की सहायता लेने और सरकार का प्रस्तुतीकरण अधिकारियों की नियुक्ति करने का अधिकार

(1) इस अधिनियम के अधीन अपील अधिकरण को अपील करने वाला कोई व्यक्ति अपील अधिकरण के समक्ष अपना मामला प्रस्तुत करने के लिये या तो स्वयं उपस्थित हो सकता है या अपनी पसन्द के, यथास्थिति, किसी विधि व्यवसायी या प्रत्यायित ऊर्जा सम्परीक्षक की सहायता ले सकता है।

(2) केन्द्रीय सरकार या राज्य सरकार, यथास्थिति, एक या अधिक विधि व्यवसायियों या अपने किसी अधिकारियों को प्रस्तुतीकरण अधिकारियों के रूप में कार्य करने के लिये प्राधिकृत कर सकती है और उस प्रकार प्राधिकृत प्रत्येक व्यक्ति अपील अधिकरण के समक्ष किसी अपील की बाबत मामले का प्रस्तुतीकरण कर सकता है।

45. उच्चतम न्यायालय को अपील

अपील अधिकरण के किसी विनिश्चय या आदेश से व्यथित कोई व्यक्ति, उसको अपील अधिकरण के विनिश्चय या आदेश के संसूचित किये जाने की तारीख से साठ दिन के भीतर सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 (1908 का 5) की धारा 100 में विनिर्दिष्ट एक या अधिक आधारों पर उच्चतम न्यायालय में अपील फाइल कर सकेगा:

परन्तु उच्चतम न्यायालय, यदि उसका यह समाधान हो जाये कि अपीलार्थी उक्त अवधि के भीतर अपील फाइल करने से पर्याप्त कारणवश निवारित हुआ था, साठ दिन से अनधिक और अवधि के भीतर अपील फाइल करने के लिये अनुज्ञात कर सकेगा।

अध्याय 10


प्रकीर्ण


46. ब्यूरो को निदेश जारी करने की केन्द्रीय सरकार की शक्ति

(1) ब्यूरो, इस अधिनियम के पूर्वगामी उपबन्धों पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, इस अधिनियम के अधीन अपनी शक्तियों का प्रयोग और अपने कृत्यों का पालन करते समय, नीति के प्रश्नों पर उन निदेशों से बाध्य होगा जो केन्द्रीय सरकार समय-समय पर उसे लिखित में दे:

परन्तु ब्यूरो को, जहाँ तक साध्य हो, इस उपधारा के अधीन कोई निदेश दिये जाने से पूर्व अपना मत व्यक्त करने का अवसर दिया जाएगा।

(2) कोई प्रश्न नीति का है या नहीं, इस सम्बन्ध में केन्द्रीय सरकार का विनिश्चय अन्तिम होगा।

47. ब्यूरो को अधिक्रांत करने की केन्द्रीय सरकार की शक्ति

(1) यदि किसी समय केन्द्रीय सरकार की यह राय हो-

(क) कि गम्भीर आपात स्थिति के कारण ब्यूरो, इस अधिनियम के उपबन्धों द्वारा या उनके अधीन उस पर अधिरोपित कृत्यों और कर्तव्यों का निर्वहन करने में असमर्थ है; या
(ख) कि ब्यूरो ने, इस अधिनियम के अधीन केन्द्रीय सरकार द्वारा जारी किये गए किसी निदेश के अनुपालन में या इस अधिनियम के उपबन्धों द्वारा या उनके अधीन उस पर अधिरोपित कृत्यों और कर्तव्यों के निर्वहन में कोई व्यतिक्रम किया है और ऐसे व्यतिक्रम के परिणामस्वरूप ब्यूरो की वित्तीय स्थिति में ह्रास हुआ है या ब्यूरो के प्रशासन में ह्रास हुआ है; या
(ग) जहाँ ऐसी परिस्थितियाँ विद्यमान हैं जो लोकहित में ऐसा करना आवश्यक बनाती है, तो केन्द्रीय सरकार, अधिसूचना द्वारा, उक्त अधिसूचना में विनिर्दिष्ट छह मास से अनधिक अवधि के लिये ब्यूरो को अधिक्रांत कर सकती है।

(2) उपधारा (1) के अधीन ब्यूरो को अधिक्रांत करने वाली अधिसूचना के प्रकाशन पर,-

(क) धारा 4 की उपधारा (2) के खण्ड (ण), खण्ड (त) और खण्ड (थ) में निर्दिष्ट सभी सदस्य, अधिक्रांत किये जाने की तारीख से, अपना पद रिक्त कर देंगे;
(ख) वे सभी शक्तियाँ, कृत्य और कर्तव्य जो इस अधिनियम के उपबन्धों द्वारा या के अधीन ब्यूरो द्वारा या उसके निमित्त प्रयोग की जा रही थीं या निर्वहन किये जा रहे थे, जब तक कि उपधारा (3) के अधीन ब्यूरो पुनर्गठित न किया जाये, केन्द्रीय सरकार द्वारा निदिष्ट किये जाने वाले व्यक्ति या व्यक्तियों द्वारा प्रयोग की जाएँगी और निर्वहन किये जाएँगे;
(ग) ब्यूरो के स्वामित्वाधीन या नियंत्रणाधीन सभी सम्पत्ति जब तक कि उपधारा (3) के अधीन ब्यूरो का पुनर्गठन न हो, केन्द्रीय सरकार में निहित होंगी।

(3) उपधारा (1) के अधीन जारी की गई अधिसूचना में विनिर्दिष्ट अधिक्रांत की जाने की अवधि की समाप्ति पर केन्द्रीय सरकार, नई नियुक्ति द्वारा ब्यूरो का पुनर्गठन कर सकती है और ऐसी दशा में ऐसा/ऐसे व्यक्ति जो उपधारा (2) के खण्ड (क) के अधीन अपना/अपने पद रिक्त करता है/करते हैं, नियुक्ति के लिये निरर्हित नहीं समझा जाएगा/समझे जाएँगे:

परन्तु केन्द्रीय सरकार, अधिक्रांत किये जाने की अवधि की समाप्ति से पूर्व, किसी समय, इस उपधारा के अधीन कार्रवाई कर सकेगी।

(4) केन्द्रीय सरकार, उपधारा (1) के अधीन जारी की गई अधिसूचना और इस धारा के अधीन की गई किसी कार्रवाई और ऐसी कार्रवाई किये जाने के लिये दायी परिस्थितियों की पूर्ण रिपोर्ट संसद के प्रत्येक सदन के समक्ष शीघ्रतम रखवाएगी।

48. कम्पनियों द्वारा व्यतिक्रम

(1) जहाँ कोई कम्पनी, धारा 14 के खण्ड (ग) या खण्ड (घ) या खण्ड (ज) या खण्ड (झ) या खण्ड (ट) या खण्ड (ठ) या खण्ड (ढ) या खण्ड (द) या खण्ड (ध) अथवा धारा 15 के खण्ड (ख) या खण्ड (ग) या खण्ड (ज) के उपबन्धों का अनुपालन करने में व्यतिक्रम करती है वहाँ ऐसा प्रत्येक व्यक्ति जो ऐसे उल्लंघन के समय कम्पनी का भारसाधक था और कम्पनी के कारबार के संचालन के लिये कम्पनी के प्रति उत्तरदायी था और साथ ही कम्पनी के बारे में यह समझा जाएगा कि उन्होंने उक्त उपबन्धों के उल्लंघन में कार्य किया है और वे अपने विरुद्ध कार्रवाई किये जाने और तद्नुसार धारा 26 के अधीन शास्ति अधिरोपित किये जाने के लिये दायी होंगे:

परन्तु इस उपधारा की कोई बात किसी ऐसे व्यक्ति को इस अधिनियम में उपबन्धित शास्ति का भागी नहीं बनाएगी यदि वह यह साबित कर देता है कि पूर्वोक्त उपबन्धों का उल्लंघन उसकी जानकारी के बिना किया गया था या उसने पूर्वोक्त उपबन्ध का उल्लंघन किये जाने का निवारण करने के लिये, सब सम्यक तत्परता बरती थी।

(2) उपधारा (1) में किसी बात के होते हुए भी, जहाँ धारा 14 के खण्ड (ग) या खण्ड (घ) या खण्ड (ज) या खण्ड (झ) या खण्ड (ट) या खण्ड (ठ) या खण्ड (ढ) या खण्ड (द) या खण्ड (ध) अथवा धारा 15 के खण्ड (ख) या खण्ड (ग) या खण्ड (ज) के उपबन्धों का उल्लंघन किसी कम्पनी द्वारा किया गया है और यह साबित हो जाता है कि वह उल्लंघन कम्पनी के किसी निदेशक, प्रबन्धक, सचिव या अन्य अधिकारी की सहमति या मौनानुकलता से किया गया है या उस उल्लंघन का किया जाना उसकी किसी उपेक्षा के कारण माना जा सकता है वहाँ ऐसा उल्लंघन ऐसे निदेशक, प्रबन्धक, सचिव या अन्य अधिकारी द्वारा किया गया समझा जाएगा और तद्नुसार अपने विरुद्ध कार्यवाही किये जाने और शास्ति अधिरोपित किये जाने का भागी होगा।

स्पष्टीकरण

इस धारा के प्रयोजन के लिये “कम्पनी” से कोई निगमित निकाय अभिप्रेत है और इसके अन्तर्गत फर्म या व्यष्टियों का अन्य संगम है।

49. आय पर कर से छूट

आयकर अधिनियम, 1961 (1961 का 43) या आय, लाभ या अभिलाभ पर कर से सम्बन्धित तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य अधिनियमिति में अन्तर्विष्ट किसी बात के होते हुए भी-

(क) ब्यूरो;
(ख) अपने गठन से ब्यूरो के स्थापन की तारीख तक विद्यमान ऊर्जा प्रबन्ध केन्द्र, व्युत्पन्न अपनी आय, लाभ या अभिलाभ की बाबत आयकर या किसी अन्य कर के सन्दाय के लिये दायी नहीं होगा।

50. सद्भावपूर्वक की गई कार्रवाई के लिये संरक्षण

इस अधिनियम या इसके अधीन बनाए गए नियमों या विनियमों के अधीन सद्भावपूर्वक की गई या की जाने के लिये आशयित किसी बात के लिये कोई भी वाद, अभियोजन या अन्य विधिक कार्यवाही केन्द्रीय सरकार या महानिदेशक या सचिव या राज्य सरकार या उन सरकारों के किसी अधिकारी या राज्य आयोग या इसके सदस्यों या ब्यूरो के किसी सदस्य या अधिकारी या अन्य कर्मचारी के विरुद्ध नहीं होगी।

51. प्रत्यायोजन

ब्यूरो, साधारण या विशेष लिखित आदेश द्वारा, ऐसी शर्तों के, यदि कोई हों, अधीन रहते हुए जो उक्त आदेश में विनिर्दिष्ट की जाएँ, किसी सदस्य, समिति के सदस्य, ब्यूरो के अधिकारी या किसी अन्य व्यक्ति को, अधिनियम के अधीन अपनी उन शक्तियों और कृत्यों का (धारा 58 के अधीन शक्तियों के सिवाय) प्रत्यायोजन कर सकेगा जिन्हें वह आवश्यक समझे।

52. सूचना अभिप्राप्त करने की शक्ति

धारा 14 के खण्ड (ख) में विनिर्दिष्ट उपस्कर या साधित्र का प्रत्येक अभिहित उपभोक्ता या विनिर्माता, ब्यूरो को ऐसी जानकारी देगा और किसी उपस्कर या साधित्र के सम्बन्ध में उपयोजित किसी सामग्री या पदार्थ के ऐसे नमूने देगा जिनकी ब्यूरो द्वारा अपेक्षा की जाये।

53. छूट देने की शक्ति

यदि केन्द्रीय सरकार या राज्य सरकार की यह राय है कि लोकहित में ऐसा करना आवश्यक या समीचीन है तो वह अधिसूचना द्वारा और ऐसी शर्तों के अधीन रहते हुए जो अधिसूचना में विनिर्दिष्ट की जाएँ, किसी अभिहित उपभोक्ता या अभिहित उपभोक्ताओं के वर्ग को इस अधिनियम के सभी या किन्हीं उपबन्धों के प्रवर्तन से छूट प्रदान कर सकेगी:

परन्तु, यथास्थिति, केन्द्रीय सरकार या राज्य सरकार, किसी अभिहित उपभोक्ता या अभिहित उपभोक्ताओं के वर्ग को पाँच वर्ष से अधिक अवधि के लिये छूट नहीं देगी:

परन्तु यह और कि, यथास्थिति, केन्द्रीय सरकार या राज्य सरकार ऐसी छूट देने से पूर्व ऊर्जा दक्षता ब्यूरो से परामर्श करेगी।

54. अपील अधिकरण के अध्यक्ष,सदस्यों, अधिकारियों और कर्मचारियों, राज्य आयोग के सदस्यों, ब्यूरो के महानिदेशक, सचिव, सदस्यों, अधिकारियों और कर्मचारियों का लोक सेवक होना

16*** ब्यूरो के सदस्य, महानिदेशक, सचिव, अधिकारी और अन्य कर्मचारी, जब वे इस अधिनियम के किसी उपबन्ध के अनुसरण में कार्य कर रहे हों या उनके द्वारा ऐसा किया जाना तात्पर्यित हो, भारतीय दण्ड संहिता (1860 का 45) की धारा 21 के अर्थ में लोक सेवक होंगे।

55. निदेश देने की केन्द्रीय सरकार की शक्ति

केन्द्रीय सरकार उक्त राज्य में इस अधिनियम को प्रवर्तित करने के लिये उस राज्य सरकार या ब्यूरो को निदेश दे सकेगी।

56. नियम बनाने की केन्द्रीय सरकार की शक्ति

(1) केन्द्रीय सरकार, इस अधिनियम के उपबन्धों को कार्यान्वित करने के लिये अधिसूचना द्वारा नियम बना सकेगी।

(2) विशिष्टतया और पूर्वगामी शक्ति की व्यापकता पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बना ऐसे नियम निम्नलिखित सभी या किन्हीं विषयों के लिये उपबन्ध कर सकेंगे-

(क) केन्द्रीय सरकार द्वारा धारा 4 की उपधारा (2) के खण्ड (ण), खण्ड (त) और खण्ड (थ) के अधीन सदस्यों के रूप में नियुक्त किये जाने वाले व्यक्तियों की संख्या;
(ख) धारा 4 की उपधारा (5) के अधीन सदस्यों को सन्दत्त किये जाने वाली फीस और भत्ते;
(ग) धारा 9 की उपधारा (4) के अधीन महानिदेशक को सन्देय वेतन और भत्ते और उसकी सेवा के अन्य निबन्धन और शर्तें तथा ब्यूरो के सचिव की सेवा के अन्य निबन्धन और शर्तें;
(घ) धारा 10 की उपधारा (2) के अधीन ब्यूरो के अधिकारियों और अन्य कर्मचारियों की सेवा के निबन्धन और शर्तें;
(ङ) धारा 13 की उपधारा (2) के खण्ड (प) के अधीन यथाविहित अन्य कृत्यों का ब्यूरो द्वारा पालन;
(च) धारा 14 के खण्ड (छ) के अधीन अभिहित उपभोक्ताओं के लिये ऊर्जा उपभोग के मान या मानक;
(छ) धारा 14 के खण्ड (छ) के परन्तुक के अधीन भिन्न-भिन्न अभिहित उपभोक्ताओं के लिये भिन्न-भिन्न सन्नियम और मानक;
(ज) वह प्रारूप और रीति जिसमें तथा वह समय जिसके भीतर उपभोग की गई ऊर्जा और धारा 14 के खण्ड (ट) के अधीन प्रत्यायित ऊर्जा लेखापरीक्षक की सिफारिश पर की गई कार्रवाई के सम्बन्ध में सूचना दी जाएगी;
(झ) वह प्रारूप और रीति जिसमें धारा 14 के खण्ड (ठ) के अधीन ऊर्जा उपभोग की स्थिति प्रस्तुत की जाएगी;
(ञ) धारा 14 के खण्ड (ड) के अधीन 17{ऊर्जा सम्परीक्षकों और ऊर्जा प्रबन्धकों, के लिये न्यूनतम अर्हताएँ;
(ट) धारा 14 के खण्ड (ण) के अधीन स्कीम तैयार करने के लिये और इसके क्रियान्वयन का प्रारूप और रीति;
(ठ) धारा 14 के खण्ड (त) के अधीन ऊर्जा संरक्षण निर्माण संहिता;
18{(ठक) धारा 14क की उपधारा (1) के अधीन ऊर्जा बचत प्रमाणपत्र जारी करने के लिये प्रक्रिया विहित करना;
(ठकक) धारा 14ख के अधीन उपभोग की गई ऊर्जा के समतुल्य तेल का प्रति मीटरी टन मूल्य;
(ड) धारा 17 की उपधारा (2) के अधीन निरीक्षण से सम्बन्धित विषय;
(ढ) वह प्रारूप जिसमें और वह समय जिस पर ब्यूरो धारा 22 के अधीन अपना बजट तैयार करेगा;
(ण) वह प्रारूप जिसमें और वह समय जिस पर ब्यूरो धारा 23 के अधीन अपनी वार्षिक रिपोर्ट तैयार करेगा;
(त) वह प्रारूप जिसमें धारा 25 के अधीन ब्यूरो के लेखे रखे जाएँगे;
(थ) धारा 27 की उपधारा (1) के अधीन जाँच करने की रीति;
(द) धारा 31 की उपधारा (2) के अधीन अपील फाइल करने के लिये प्रारूप और फीस;
19****(फ) कोई अन्य विषय जो विहित किया जाना हो या किया जाये या जिसके सम्बन्ध में नियमों द्वारा उपबन्ध किया जाना हो या किया जाये।

57. नियम बनाने की राज्य सरकार की शक्ति

(1) राज्य सरकार, इस अधिनियम के उपबन्धों को कार्यान्वित करने के लिये नियम, अधिसूचना द्वारा, बना सकेगी जो केन्द्रीय सरकार द्वारा बनाए गए नियमों से यदि कोई हों, असंगत नहीं होंगे।

(2) विशिष्टतया और पूर्वगामी शक्ति की व्यापकता पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, ऐसे नियम निम्नलिखित सभी या किन्हीं विषयों के लिये उपबन्ध कर सकेंगे, अर्थात-

(क) धारा 15 के खण्ड (क) के अधीन ऊर्जा संरक्षण निर्माता संहिता;
(ख) वह प्रारूप, रीति और अवधि जिसके भीतर धारा 15 के खण्ड (ज) के अधीन ऊर्जा उपयोग के सम्बन्ध में सूचना दी जाएगी;
(ग) वह व्यक्ति या ऐसा कोई प्राधिकारी जो धारा 16 की उपधारा (4) के अधीन निधि का प्रशासन करेगा और वह रीति जिसमें यह निधि प्रशासित की जाएगी;
(घ) धारा 17 की उपधारा (2) के अधीन निरीक्षण के प्रयोजनों के लिये सम्मिलित किये जाने वाले विषय;
(ङ) ऐसा कोई अन्य विषय जो विहित किया जाना है या किया जाये अथवा जिसकी बाबत नियमों द्वारा उपबन्ध किया जाना है या किया जाये।

58. विनियम बनाने की ब्यूरो की शक्ति

(1) ब्यूरो केन्द्रीय सरकार के पूर्व अनुमोदन से और पूर्व प्रकाशन की शर्त के अधीन रहते हुए, इस अधिनियम के प्रयोजनों को क्रियान्वित करने के लिये इस अधिनियम और तद्धीन बनाए गए नियमों के उपबन्धों से सुसंगत विनियम अधिसूचना द्वारा बना सकेगा।

(2) विशिष्टतया और पूर्वगामी शक्ति की व्यापकता पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, ऐसे विनियम निम्नलिखित विषयों के लिये उपबन्ध कर सकेंगे, अर्थात-

(क) शासी परिषद के अधिवेशनों का समय और स्थान और धारा 5 की उपधारा (1) के अधीन ऐसे अधिवेशनों में अपनाई जाने वाली प्रक्रिया;
(ख) धारा 8 की उपधारा (2) के अधीन गठित सलाहकार समितियों के सदस्य;
(ग) वे शक्तियाँ और कर्तव्य जिनका ब्यूरो के महानिदेशक द्वारा धारा 9 की उपधारा (6) के अधीन प्रयोग और निर्वहन किया जाएगा;
(घ) धारा 13 की उपधारा (2) के खण्ड (ढ) के अधीन ऊर्जा के दक्षतापूर्ण उपयोग और उसके संरक्षण का सम्प्रवर्तन करने के लिये प्रदान की गई सेवाओं के लिये फीस का उद्ग्रहण;
(ङ) धारा 13 की उपधारा (2) के खण्ड (ण) के अधीन प्रत्यायित ऊर्जा सम्परीक्षकों की सूची;
20{(च) धारा 13 की उपधारा (2) के खण्ड (त) के अधीन ऐसी अर्हताएँ, मानदण्ड और शर्तें, जिनके अधीन रहते हुए कोई व्यक्ति ऊर्जा सम्परीक्षक के रूप में प्रत्यायित हो सकेगा और ऐसे प्रत्यायन के लिये प्रक्रिया;}
(छ) वह रीति जिसमें और समय-अन्तराल जिन पर धारा 13 की उपधारा (2) के खण्ड (थ) के अधीन ऊर्जा सम्परीक्षा की जाएगी;
(ज) धारा 13 की उपधारा (2) के खण्ड (द) के अधीन 20{ऊर्जा सम्परीक्षकों और ऊर्जा प्रबन्धकों, के लिये प्रमाणन प्रक्रिया;
(झ) वे विशिष्टयाँ या लेबल जिनका धारा 14 के खण्ड (घ) के अधीन सम्प्रदर्शन किया जाना अपेक्षित है और सम्प्रदर्शन की रीति;
(ञ) धारा 14 के खण्ड (ज) या खण्ड (ध) के अधीन ऊर्जा सम्परीक्षा करने की रीति और समय-अन्तराल;
(ट) धारा 15 के खण्ड (ग) के अधीन प्रत्यायित ऊर्जा सम्परीक्षक द्वारा ऊर्जा सम्परीक्षा करने की रीति और समय-अन्तराल;
(ठ) कोई अन्य विषय जो विनिर्दिष्ट किया जाना अपेक्षित है या किया जाये।

59. नियमों और विनियमों का संसद और राज्य विधान-मंडल के समक्ष रखा जाना

(1) इस अधिनियम के अधीन केन्द्रीय सरकार द्वारा बनाया गया प्रत्येक नियम और बनाया गया प्रत्येक विनियम बनाए जाने के पश्चात यथाशीघ्र संसद के प्रत्येक सदन के समक्ष जब वह सत्र में हो, कुल तीस दिन की अवधि के लिये रखा जाएगा। यह अवधि एक सत्र में अथवा दो या अधिक आनुक्रमिक सत्रों में पूरी हो सकेगी। यदि उस सत्र के या पूर्वोक्त आनुक्रमिक सत्र के ठीक बाद के सत्र के अवसान के पूर्व दोनों सदन उस नियम या विनियम में कोई परिवर्तन करने के लिये सहमत हो जाएँ तो तत्पश्चात वह ऐसे परिवर्तित रूप में ही प्रभावी होगा। यदि उक्त अवसान के पूर्व दोनों सदन सहमत हो जाएँ कि वह नियम या विनियम नहीं बनाया जाना चाहिए तो तत्पश्चात वह निष्प्रभाव हो जाएगा। किन्तु उस नियम या विनियम के ऐसे परिवर्तित या निष्प्रभाव होने से उसके अधीन पहले की गई किसी बात की विधिमान्यता पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ेगा।

(2) राज्य सरकार द्वारा बनाया गया प्रत्येक नियम बनाए जाने के पश्चात यथाशीघ्र जहाँ राज्य के विधान-मंडल के दो सदन हैं वहाँ प्रत्येक सदन के समक्ष और जहाँ राज्य विधान-मंडल का एक ही सदन है वहाँ उस सदन के समक्ष रखा जाएगा।

60. अन्य विधियों का लागू होना वर्जित नहीं

इस अधिनियम के उपबन्ध, तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि के उपबन्धों के अतिरिक्त होंगे न कि उनके अल्पीकरण में।

61. अधिनियम के उपबन्धों का कतिपय दशाओं में लागू न होना

इस अधिनियम के उपबन्ध रक्षा, परमाणु ऊर्जा से सम्बन्धित केन्द्रीय सरकार के मंत्रालय या विभाग या ऐसे ही अन्य मंत्रालयों या विभागों या ऐसे मंत्रालयों या विभागों के नियंत्रणाधीन उपक्रमों या बोर्डों या संस्थाओं को लागू नहीं होंगे, जो केन्द्रीय सरकार द्वारा अधिसूचित किये जाएँ।

62. कठिनाइयों को दूर करने की शक्ति

(1) यदि इस अधिनियम के उपबन्धों को प्रभावी करने में कोई कठिनाई उत्पन्न होती है तो केन्द्रीय सरकार, राजपत्र में प्रकाशित आदेश द्वारा ऐसे उपबन्ध कर सकेगी जो उक्त अधिनियम के उपबन्धों से असंगत न हों और कठिनाई को दूर करने के लिये आवश्यक प्रतीत हों:

परन्तु इस धारा के अधीन ऐसा कोई आदेश इस अधिनियम के प्रारम्भ की तारीख से दो वर्ष की अवधि की समाप्ति के पश्चात नहीं किया जाएगा।

(2) इस धारा के अधीन किया गया प्रत्येक आदेश किये जाने के पश्चात यथाशीघ्र संसद के प्रत्येक सदन के समक्ष रखा जाएगा।

अनुसूची


{धारा 2(ध) देखिए,

21*** ऊर्जा गहनता उद्योगों और अन्य स्थापनों की सूची

1. एल्युमिनियम;
2. उर्वरक;
3. लौह और इस्पात;
4. सीमेंट;
5. लुगदी और कागज;
6. क्लोर अल्कली;
7. चीनी;
8. वस्त्र;
9. रसायन;
10. रेल;
11. पत्तन न्यास;
12. परिवहन सेक्टर (उद्योग और सेवाएँ);
13. पेट्रो-रसायन, गैस क्रेकर, नैप्था क्रेकर और पेट्रोलियम परिष्करण शालाएँ;
14. तापीय विद्युत केन्द्र, जल-विद्युत केन्द्र, विद्युत पारेषण कम्पनियाँ और वितरण कम्पनियाँ;
15. वाणिज्यिक भवन या स्थापन।

सन्दर्भ

1. 2010 के अधिनियम सं० 28 की धारा 2 द्वारा प्रतिस्थापित।
2. 2010 के अधिनियम सं० 28 की धारा 2 द्वारा अन्तःस्थापित।
3. 2010 के अधिनियम सं० 28 की धारा 3 द्वारा प्रतिस्थापित।
4. 2010 के अधिनियम सं० 28 की धारा 4 द्वारा प्रतिस्थापित।
5. 2010 के अधिनियम सं० 28 की धारा 5 द्वारा अन्तःस्थापित।
6. 2010 के अधिनियम सं० 28 की धारा 5 द्वारा प्रतिस्थापित।
7. 2010 के अधिनियम सं० 28 की धारा 5 द्वारा अन्तःस्थापित।
8. 2010 के अधिनियम सं० 28 की धारा 6 द्वारा प्रतिस्थापित।
9. 2010 के अधिनियम सं० 28 की धारा 7 द्वारा अन्तःस्थापित।
10. 2010 के अधिनियम सं० 28 की धारा 8 द्वारा लोप किया गया।
11. 2010 के अधिनियम सं० 28 की धारा 8 द्वारा प्रतिस्थापित।
12. 2010 के अधिनियम सं० 28 की धारा 8 द्वारा अन्तःस्थापित।
13. 2010 के अधिनियम सं० 28 की धारा 9 द्वारा प्रतिस्थापित।
14. 2010 के अधिनियम सं० 28 की धारा 10 अन्तःस्थापित।
15. 2010 के अधिनियम सं० 28 की धारा 11 द्वारा लोप किया गया।
16. 2010 के अधिनियम सं० 28 की धारा 12 द्वारा लोप किया गया।
17. 2010 के अधिनियम सं० 28 की धारा 13 द्वारा प्रतिस्थापित।
18 2010 के अधिनियम सं० 28 की धारा 13 द्वारा अन्तःस्थापित।
19. 2010 के अधिनियम सं० 28 की धारा 13 द्वारा लोप किया गया।
20. 2010 के अधिनियम सं० 28 की धारा 14 द्वारा प्रतिस्थापित।
21. 2010 के अधिनियम सं० 28 की धारा 15 द्वारा लोप किया गया।