नमस्कार दोस्तों हमारा प्रश्न है कि दोस्तों यहां पर में प्रश्न में पूछा गया कि जल प्रदूषण रोकने के छह विधियां लिखिए ठीक है तो दोस्तों में बताना है कि जल प्रदूषण को किस तरह से रोक सकते हैं और इसे किस तरह से यहां पर हमें 6 विधियों का वर्णन करना है ठीक है तो सबसे पहले दोस्तों में क्लिक करके यहां पर वीडियो को देखते हैं वर्णन की कौन-कौन सी विधियां हैं जो हमारी ज़रूरत प्रदूषण को रोकती है तो दोस्तों हम जानते हैं कि सबसे पहले हम जानते हैं दोस्तों की हमारे जो घरों में अत्यधिक मात्रा में क्या निकलती अपशिष्ट पदार्थ निकलती है तो उसे एकत्रित करने के लिए क्या करना चाहिए हमें प्रत्येक घरों में सेप्टिक टैंक का निर्माण होना चाहिए तो हम कह सकते हैं कि चलकर प्रदूषण को रोकने के लिए हमारी जो पहली विधि है वह क्या है हम कह सकते हैं कि यहां पर प्रत्येक घरों में प्रत्येक घरों में सेप्टिक टैंक ठीक है जिसे हम कहते हैं सेप्टिक टैंक का निर्माण होना चाहिए निर्माण होना Show चाहिए यह दोस्तों सेप्टिक टैंक किस तरह से मदद करती है यह हमारे अपशिष्ट पदार्थों को स्टार्ट करके संरक्षित करने में मदद करती है ठीक है तो हम कह सकते हैं कि सभी प्रत्येक घरों में सेप्टिक टैंक बनाऊंगा होना चाहिए दूसरी भी दी क्या दोस्तों जल की जो स्त्रोत हैं उनमें जानवरों की सफाई नहीं करवानी चाहिए ठीक है तो हमारे जो तालाब हैं या फिर एकत्रित चलकर जो स्रोत हैं वहां पर क्या होता है यहां पर जो जानवरों की सफाई होती है इससे हमारा क्या होता है जब का प्रदूषण होता है तो हम कह सकते हैं कि जल स्रोतों पर जल स्रोतों में जानवर की सफाई ना करें ठीक है इससे हमारे क्या होंगे जल का प्रदूषण रुकेगा उसी तरह से दोस्तों हमारी ज्योति त्रिवेदी है वह कह व्हाट्सएप पदार्थों को नदी और तालाब में नहाने ठीक है क्योंकि दोस्तों हम जानते हैं कि जो हमारे व्यर्थ पदार्थ है जो घरों से निकलते हैं कूड़े कचरे उन्हें हम क्या करते हैं जल में मिलाकर नदियों में या तालाबों में बहा देते हैं जिससे हमारे जेब का प्रदूषण होता है तो यह दोस्तों इस से हम नाभा कर हम अपने जॉब के प्रदूषण को रोक सकते हैं इसी तरह से दोस्तों कितना थी और उर्वरक की अधिकता में प्रयोग ना करके ठीक है क्योंकि दोस्तों हम जानते हैं कि खेतों में हम अत्यधिक मात्रा में अधिक एकनाथी और उर्वरक पदार्थों का उपयोग करते हैं तो वह जल के साथ मिलकर हमारी जल को प्रदूषित करती है तो हम दोस्तों इसका जो उपयोग है वह अधिकता में ना करके जब के प्रदूषण को बचा सकते हैं इसी तरह से दोस्तों मैं जो पांचों उपाय है वह क्या नुकसानदायक कीटनाशकों पर प्रतिबंध लगा कर ठीक है तो हम क्या सकते हैं दोस्तों जो हमारे अत्यधिक नुकसान दायक ना सके उन्हें पूर्णत प्रतिबंध लगाकर हम अपने जल के प्रदर्शन को बचा सकते हैं इसी तरह से दोस्तों हमारे जो छठवां और महत्वपूर्ण उपाय है वह कहें पानी शुद्धीकरण इकाई के उद्योगों की स्थापना करके ठीक है तू भी दोस्तों जानते हैं कि जो हमारे पानी शुद्धिकरण की इकाई है जिसे हम क्या कहते हैं वाटर ट्रीटमेंट प्लांट इन के जरिए हम शुद्ध जिलों की प्राप्ति करते हैं तो इसकी अधिक से अधिक की स्थापना करके हमें अपने जल के प्रदूषण को बचा सकते हैं तो इस तरह से दोस्तों यह हो गए हमारे जल प्रदूषण को रोकने के महत्वपूर्ण उपाय जो कि मैं प्रेस में पूछे गए थे और दोस्तों मेरे प्रश्न पूछा गया था जो कि हमारे प्रश्न का उत्तर है तो आशा करता हूं तो आपके पास में समझ आया होगा धन्यवाद गंगा सहित देश की सभी नदियों को प्रदूषण से बचाने के लिए नई सरकार को छोटे-छोटे उपाय करने होंगे। सीएसई ने गहरे अध्ययन के बाद 10 बिंदु सुझाए हैं, जिन पर सरकार गौर कर सकती है। नई सरकार को यह समझना होगा कि सभी नदियां प्रदूषित हो चुकी हैं। 36 में से 31 राज्य एवं केंद्र शासित प्रदेशों से गुजर रही नदियों में प्रदूषण बढ़ रहा है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के आंकड़ों के मुताबिक 2015 में नदियों के 32 हिस्से (स्ट्रेच) प्रदूषित थे, जो 2018 में बढ़कर 45 हो गए। अनियोजित शहरीकरण के कारण नदी के किनारों पर अशोधित जल की मात्रा काफी बढ़ गई है। नदी का पानी पीने के लिए शहरों में भेजा जाता है और शहरों से सीवेज और औद्योगिक प्रदूषित पानी वापस नदी में पहुंच जाता है। ऐसे में, यह बेहद जरूरी हो गया है कि देश के सभी जलाशयों की तत्काल सफाई की जाए। एनडीए की पिछली सरकार ने स्वच्छता को प्राथमिकताओं में सबसे ऊपर रखा था। इसमें शौचालय निर्माण और राष्ट्रीय नदी गंगा की सफाई प्रमुख तौर पर शामिल थी। वैसे तो भारत ने खुले में शौच से मुक्ति के उद्देश्य को हासिल करने के लिए 1986 में एक अभियान की शुरुआत की थी। इसका मकसद लोगों की जीवन गुणवत्ता में सुधार करना था, लेकिन इस अभियान का कोई लक्ष्य वर्ष निर्धारित नहीं किया गया था। इसलिए जो परिणाम सामने आए, वे बहुत अस्पष्ट थे। अगले 28 वर्षों में कई अन्य कार्यक्रम शुरू किये गए, लेकिन इनमें केवल मशीनों (हार्डवेयर) की बात की गई। 2014 में शुरू हुए स्वच्छ भारत मिशन को सबसे अधिक प्रचार मिला। तय किया गया कि यह मिशन अक्टूबर 2019 तक पूरा हो जाएगा और भारत को खुले में शौच मुक्त (ओडीएफ) कर दिया जाएगा। कहा गया कि इस मिशन के तहत शौचालय बनाए जाएंगे और उनका इस्तेमाल भी होगा। लाखों की संख्या में शौचालय बनाए गए, हालांकि इस बात पर विवाद भी हुआ कि अगर उन इलाकों में पानी ही नहीं होगा तो शौचालयों का इस्तेमाल कैसे होगा। बावजूद इसके, यह लेख लिखते समय भारत के ग्रामीण घरों में 100 फ़ीसदी शौचालय का लक्ष्य हासिल किया जा चुका होगा। ऐसे में, एनडीए सरकार द्वारा बड़ी संख्या में बनाए गए शौचालय को प्रबंधन के साथ-साथ नई सरकार को इस बात पर भी ध्यान देना होगा की इससे उत्पन्न होने वाला वेस्ट का निपटारा कैसे किया जाएगा। वाटर ऐड इंडिया 2018 की स्टडी बताती है कि ग्रामीण इलाकों में बनाए गए लगभग 57.8 लाख शौचालयों का डिजाइन की गलत था। इन शौचालयों में केवल एक ही गड्ढा था या इनके सेफ्टी टैंक का डिजाइन गलत था। 2018 में सेंटर फॉर साइंस एंड इंवायरमेंट द्वारा जुटाए गए आंकड़ों के मुताबिक लगभग 4,077 टन शौच घरों के पास ही खुले में डंप किया जा रहा है। यह अध्ययन उन इलाकों में किया गया, जहां सीवर लाइनें नहीं थी, इन इलाकों में शौचालयों से जुड़े हुए दो गड्ढे (टिवन पिट) बनाए गए हैं, लेकिन यहां या तो भूजल सतह कम है या यहां पानी के जमाव होने की संभावना देखी गई। इतना ही नहीं, सेप्टी टैंक या गड्डे में जमा मल कीचड़ को किसान बिना शोधित किए अपने खेतों में खाद के रूप में इस्तेमाल कर रहे थे या वातावरण में डंप किया जा रहा था। परिणामस्वरूप इससे आसपास के लोगों के स्वास्थ्य के लिए खतरा पैदा हो गया। मल कीचड़ एवं सेप्टेज प्रबंधन (एफएसएसएम) को लेकर 2017 में बनी राष्ट्रीय नीति में भी अधिक से अधिक शौचालय बनने पर इस तरह की चुनौतियों की संभावना जताई गई है। चूंकि स्वच्छ भारत मिशन के तहत जिन घरों में शौचालय नहीं हैं, वहां सीवर न होने की स्थिति में सेप्टिक टैंक और गड्डे बनने हैं, ऐसी स्थिति में मानव अपशिष्ट की रोकथाम काफी हद तक हो जाएगी, लेकिन इसका सुरक्षित निपटारा (डिस्पोजल) एक बड़ी चुनौती बन गया है। ऐसे में नई सरकार को इस दिशा में गंभीरता से सोचना होगा और ऐसी तकनीक का इंतजाम करना होगा, जिससे उसी जगह पर (ऑन साइट) ही मल कीचड़ का सुरक्षित तरीके से शोधित किया जा सके। अन्यथा शौचालय बनाने पर की गई मेहनत बेकार जाएगी। साथ ही, मल कीचड़ न केवल मिट्टी, बल्कि भूजल और जलाश्यों को भी प्रदूषित करेगा। एनडीए ने यह माना था कि देश के स्वच्छता का मतलब भारत के सबसे बड़े नदी क्षेत्र की सफाई करना है। वह नदी क्षेत्र जो देश के 26 प्रतिशत भूभाग को कवर करता है और लगभग 43 प्रतिशत आबादी इससे जुड़ी है। इस राष्ट्रीय नदी की सफाई तीन दशक पहले शुरू हुई थी, यह एक दुखद स्थिति है कि नदी आज भी स्नान करने लायक नहीं है। नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) में अगस्त 2018 को केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) ने एक रिपोर्ट दी, जिसमें कहा गया कि गंगा नदी की 70 निरीक्षण केंद्रों पर जांच की गई तो उसमें से केवल 5 केंद्रों पर गंगा का पानी पीने लायक स्थिति में था, जबकि केवल सात निरीक्षण केंद्र ऐसे थे, जहां का पानी नहाने के लिए उपयुक्त है।नई सरकार को इसे तत्काल मानना होगा कि शहरी और ग्रामीण दोनों क्षेत्रों में शौचालयों से निकलने वाले कचरे का प्रबंधन अच्छी तरह से नहीं किया गया तो गंगा नदी को स्वच्छ करने का काम बेकार जाएगा। गंगा के बेसिन में बसे गांवों को ओडीएफ बनाने का उद्देश्य गंगा में मल के कॉलिफॉर्म स्तर को कम करना है। गंगा से सटे पांच राज्यों के प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों द्वारा उपलब्ध कराए गए आंकड़ों के मुताबिक मई 2018 में गंगा बेसिन शहरों में मल कॉलिफॉर्म का स्तर 2,40000 प्रति 100 मिलीलीटर था, जबकि तय मानकों के मुताबिक 2,500 प्रति 100 मिलीलीटर होना चाहिए था। उसी जगह पर सफाई सुविधाओं (ऑन साइट सेनिटेशन) का अधिक से अधिक इंतजाम करना होगा, ताकि शौचालय के आसपास ही मल अपशिष्ट को शोधित किया जाए, वर्ना ये अपशिष्ट गंगा को प्रदूषित करेंगे। प्रदूषण फैलाने में सीवरेज से अधिक मल अपशिष्ट की भूमिका है, इसलिए इसकी चिंता करनी होगी। सेंटर फॉर साइंस एंड इंवायरमेंट (सीएसई) ने सुरक्षित स्वच्छता और सुरक्षित भविष्य के लिए निम्नलिखित अंतरालों को अपनाने की बात करता है।
हमारे पास सतत विकास लक्ष्य 2030 को हासिल करने के लिए मात्र दस साल का समय बचा है। नई सरकार को इस दिशा में काम करना होगा। स्वच्छ भारत बनने के लिए हमारी चुनौती केवल इतना भर से पूरी नहीं हो जाती कि शौचालय की बिल्डिंग बना दी जाए, बल्कि शौचालय से आशय सफाई के
पूरे इंतजाम हों, जो सस्ते भी हैं और टिकाऊ भी। देश सफाई पर सहस्त्राब्दी विकास लक्ष्य को हासिल करने में नाकाम रहा है, इसलिए संस्थानों को मजबूत करने की जरूरत है और सतत जल एवं स्वच्छता सेवाओं के लिए बनी नीतियों के पालन के लिए नियामक ढांचा तैयार करने की जरूरत है। नदियों को बचाने के लिए हमें क्या करना चाहिए?नदियों को प्रदूषण मुक्त रखने के लिए हमें प्लास्टिक की थैलियां, बोतल या अन्य सामग्री नदियों में या उनके किनारे नहीं फेंकना चाहिए। इससे कचरा उड़कर नदियों में चला जाता है। नदियों को साफ रखना चाहिए। नदियों में सिर्फ मिट्टी की ही मूर्तियां विसर्जित करनी चाहिए।
नदियों की सुरक्षा के लिए कौन?इसमें शौचालय निर्माण और राष्ट्रीय नदी गंगा की सफाई प्रमुख तौर पर शामिल थी।
नदियों को प्रदूषित होने से कैसे बचाएं?Solution : जल - प्रदूषण को निम्न छः विधियों द्वारा नियंत्रित किया जाता है <br> ( 1 ) प्रत्येक घरों में सेप्टिक टैंक होना चाहिए । <br> ( 2 ) जल स्त्रोतों में जानवरों की सफाई न करना । <br> ( 3 ) व्यर्थ पदार्थों को नदी , तालाब व पोखरों में न बहाना । <br> ( 4 ) कीटनाशी व उर्वरकों का अधिकता में प्रयोग न करना ।
नदियों की स्वच्छता क्या है?नमामि गंगा मिशन का उद्देश्य गंगा नदी के किनारे कृषि कार्यों को प्राकृतिक और जैविक बनाना, किसानों की आय में सुधार करना और नदी से जुड़े पर्यावरण, मिट्टी, पानी व जैव विविधता का संरक्षण करना है।
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