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भारत में आयोजन से अभिप्राय राज्य के अभिकरणों के द्वारा देश की आर्थिक सम्पदा और सेवाओं के एक निश्चित समय हेतु आवश्यकताओं का पूर्वानुमान लगाना है। वर्तमान परिस्थिति में कल्याणकारी राज्य (Welfare State) की अवधारणा में नियोजन के द्वारा समाज को विकसित करने का लक्ष्य रखा जाता है और यह व्यक्त किया जाता है कि आर्थिक एवं सामाजिक नियोजन साथ-साथ चलते हैं। चूँकि भारतीय अर्थव्यवस्था एक मिश्रित अर्थव्यवस्था है जहाँ सार्वजनिक एवं निजी क्षेत्र का सह अस्तित्व पाया जाता है जिसमें आर्थिक नियोजन को विकास की प्रक्रिया में केन्द्रीय स्थान दिया गया है। आर्थिक नियोजन के उद्देश्यों में आर्थिक विकास को बढ़ावा देना गरीबी एवं बेरोजगारी की समस्या का निवारण करना, सामाजिक न्याय एवं आत्मनिर्भरता प्राप्त करना, निवेश एवं पूंजी निर्माण में वृद्धि करना, मानव संसाधन का विकास करना एवं समावेशी विकास निहित है। भारत में नियोजन का इतिहास (History of Planning in India) :- भारत में नियोजित आर्थिक विकास का प्रारम्भ सन् 1951 में प्रथम पंचवर्षीय योजना के प्रारम्भ होने के साथ हुआ परन्तु आर्थिक नियोजन का सैद्धान्तिक प्रयास स्वतंत्रता प्राप्ति के पूर्व ही प्रारम्भ हो गया था। वर्ष 1934 ई0 में एम. विश्वेश्वरैया ने ’भारत के लिए नियोजित अर्थव्यवस्था (Planed Economy in India) नामक पुस्तक की रचना की। सन् 1938 ई0 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने सर्वप्रथम राष्ट्रीय नियोजन समिति का गठन किया जिसके अध्यक्ष पं0 जवाहर लाल नेहरू थे। सन् 1944 ई0 में अर्देशिर दलाल की अध्यक्षता में मुम्बई के 8 उद्योगपतियों ने एक 15 वर्षीय योजना ’बाम्बे प्लान’ प्रस्तुत की। महात्मा गांधी के आर्थिक विचारों से पीड़ित होकर सन् 1944 ई0 में श्री मन्नारायण ने एक योजना प्रस्तुत की जिसे गांधीवादी योजना के नाम से जाना जाता है। 1945 ई0 में मजदूर नेता एम0एन0 राय द्वारा जन योजना (People’s Plane) प्रस्तुत की गयी। 1946 ई0 में अन्तरिम सरकार के गठन के साथ ही नियोजन एवं विकास की समस्या के अध्ययन के लिए उच्च स्तरीय सलाहकारी नियोजन बोर्ड की स्थापना की गयी। जो केन्द्र में एक स्थायी नियोजन कमीशन की स्थापना के लिए संस्तुति दी। जनवरी 1950 ई0 में जय प्रकाश नारायण ने एक योजना प्रस्तुत की जिसे सर्वोदय योजना के नाम से जाना जाता है। योजना आयोग (Planning Commission) के0सी0 नियोगी समिति 1946 की संस्तुति के आधार पर योजना आयोग का गठन 15 मार्च 1950 को एक गैर संवैधानिक परामर्शदात्री संस्था के रूप में किया गया। भारत में योजना आयोग का पदेन अध्यक्ष प्रधानमंत्री होता है। इसके सदस्यों एवं उपाध्यक्ष का कोई निश्चित कार्यकाल नहीं होता है और न ही कोई निश्चित योग्यता। सरकार की इच्छा से सदस्यों की नियुक्ति होती है और इनकी संख्या सरकार की इच्छा पर निर्भर होती हैं। योजना आयोग के कार्य : – योजना आयोग को निम्नलिखित कार्य सौंपे गए हैं-
राष्ट्रीय विकास परिषद (National Development Council) NDC :-.राष्ट्रीय विकास परिषद एक गैर संवैधानिक संस्था है जिसका गठन आर्थिक नियोजन हेतु राज्यों एवं योजना आयोग के बीच समन्वय स्थापित करने के लिए किया गया था। इसका गठन 6 अगस्त 1952 ई0 में किया गया। प्रधानमंत्री इसके अध्यक्ष तथा योजना आयोग का सचिव इसका भी सचिव होता है। जहाँ योजना आयोग का कार्य योजना निर्माण तक ही सीमित है वहीं राष्ट्रीय विकास परिषद सहकारी संघवाद का सर्वोत्तम उदाहरण है। के. सन्थानम ने राष्ट्रीय विकास परिषद को सर्वोच्च मंत्रि परिषद (Superb Cabinet) की संज्ञा दी है। राष्ट्रीय विकास परिषद के कार्य:- निम्न कार्य हैं-
अन्तर्राज्यीय परिषद (Interstate Council) :- अन्तर्राज्यीय परिषद एक संवैधानिक संस्था है केन्द्र तथा राज्यों के मध्य समन्वय स्थापित करने के लिए राष्ट्रपति द्वारा इसका गठन किया जाता है। अनुच्छेद 263 के अनुसार राष्ट्रपति को इसकी स्थापना करने तथा उसके संगठन, प्रक्रिया तथा दायित्वों के बारे में व्यवस्था करने का अधिकार है। यह संस्था परामर्शदात्री के रूप में कार्य करती है। इसके निम्नलिखित कार्य हैं-
भारत में प्रथम पंचवर्षीय योजना (1 अप्रैल 1951 से 31 मार्च 1956 :-यह योजना हैरेड डोमर माडल पर आधारित थी इस योजना की मुख्य प्राथमिकता कृषि क्षेत्र में विकास करना था तथा देश को युद्ध एवं विभाजन के असंतुलन से सुरक्षित करना था। वर्ष 1952 ई0 में सामुदायिक विकास कार्यक्रम एवं 1953 ई0 में राष्ट्रीय प्रसार सेवा का प्रारम्भ किया गया। इस योजना के लक्ष्य निम्न थे-
द्वितीय पंचवर्षीय योजना (1 अप्रैल 1956 से 31 मार्च 1961) :-यह योजना भारतीय सांख्यिकीय संगठन के निर्देशक प्रो0 पी.सी. महालनोविस के माॅडल पर आधारित थी। इस योजना का मूलभूत उद्देश्य देश में औद्योगीकरण की प्रक्रिया को प्रारम्भ करना जिससे भारतीय अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ आधार पर विकास किया जा सके। 1956 ई0 में घोषित की गयी औद्योगिक नीति में समाजवादी तरीके से समाज की स्थापना को स्वीकार किया गया। इस योजना के निम्न लक्ष्य निर्धारित किये गये थे-
तृतीय पंचवर्षीय योजना (31 अप्रैल 1961 से 31 मार्च 1966) :-इस योजना में भारतीय अर्थव्यवस्था को आर्थिक गतिशीलता की अवस्था (Take -off-Stage) पहुँचाने का लक्ष्य था। इस योजना में पहली बार आगत-निर्गत माॅडल का प्रयोग किया गया आधारभूत उद्योगों के साथ-साथ कृषि को महत्व दिया गया। इस योजना के निम्नलिखित उद्देश्य थे-
इस योजना में रूपये का अवमूल्यन किया गया था तथा 1964 ई0 में यूनिट ट्रस्ट आॅफ इण्डिया (UTI) और इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट बैंक आॅफ इण्डिया (IDBI) की स्थापना की गयी। इसी योजना के अन्तर्गत 1965 ई0 में भारतीय खाद्य निगम (FCI) और कृषि कीमत आयोग (APC) की स्थापना की गयी। नोटः- प्रथम तीनों पंचवर्षीय योजना में सरकार द्वारा ट्रिकल डाउन थियरी का अनुसरण किया गया। तीन वार्षिक योजनाएं (1966-67 से 1968-69 तक) :- भारतीय योजनाकाल के दौरान 1 अप्रैल 1966 से 31 मार्च 1969 को योजना अवकाश (Plan Holiday) नाम दिया गया। तीनों वार्षिक योजनाओं के दौरान नई कृषि नीति अपनाई गयी और कृषि उत्पादन को बढ़ाने के लिए उच्च गुणवत्ता वाले बीज के वितरण उर्वरक का व्यापक पैमाने पर प्रयोग, सिचाई क्षमता का विस्तार व भू-संरक्षण पर जोर दिया गया। 1966 ई0 में हरित क्रान्ति की शुरूआत की गयी एवं 1969 ई0 में नारीमन समिति की सिफारिश पर लीड बैंक योजना शुरू की गयी। चौथी पंचवर्षीय योजना (1 अप्रैल 1969 से 31 मार्च 1974 तक) :-इस योजना का प्रारूप डी0आर0 गाडगिल द्वारा तैयार किया गया था। यह योजना आगत-निर्गत माॅडल पर आधारित थी। इस योजना का मुख्य उद्देश्य स्थिरता के साथ आर्थिक विकास (Growth With Stability तथा आत्मनिर्भरता की अधिकाधिक प्राप्ति (Progress Towards Self Reliance) था। इस योजना के निम्नलिखित लक्ष्य निर्धारित किये गये थे-
इसी योजना अवधि के दौरान जुलाई 1969 ई0 में 14 वाणिज्यिक बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया गया। सूखा प्रवण क्षेत्र कार्यक्रम (DPAP) की शुरूआत। पांचवीं पंचवर्षीय योजना (1 अप्रैल 1974 से 31 मार्च 1979) :-यह योजना भी आगत निर्गत माॅडल पर आधारित थी इस योजना का मुख्य उद्देश्य गरीबी का उन्मूलन और आत्मनिर्भरता प्राप्त करना था। इस योजना में 66 विषय क्षेत्र लिए गये थे योजना का विकास लक्ष्य 4.4 प्रतिशत निर्धारित था लेकिन वार्षिक वृद्धि दर 4.8 प्रतिशत की दर से हुई। यह योजना समय से पूर्व ही बन्द कर दी गयी थी। इस योजना के दौरान 1974 ई0 में न्यूनतम आवश्यकता कार्यक्रम की शुरूआत की गई तथा 2 अक्टूबर 1975 को क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक की स्थापना की गयी साथ ही 1977-78 ई0 में खाद्य के बदले अनाज कार्यक्रम की शुरूआत की गयी। अनवरत योजना (Rowling Plan (1878-1980) :- पांचवी पंचवर्षीय योजना को एक वर्ष पहले समाप्त करके एक नई योजना 1 अप्रैल 1978 को प्रारम्भ की गयी। जिसे अनवरत योजना के नाम से जाना जाता है। इसका प्रतिपादन गुन्नार मिर्डाल ने किया। अनवरत योजना के समय ही 1979 ई0 में ग्रामीण युवा स्वरोजगार प्रशिक्षण कार्यक्रम की शुरूआत की गयी जिसे 1999 ई0 में स्वर्ण जयन्ती ग्राम स्वरोजगार योजना में मिला दिया गया। छठीं पंचवर्षीय योजना (1 अप्रैल 1980 से 31 मार्च 1985) :-यह योजना विकेन्द्रीकरण पर आधारित थी जिसमें गरीबी निवारण एवं रोजगार सृजन को सबसे अधिक महत्व दिया गया। IRDP, NERP, TRYSEM, DWACRA, RLEGP जैसी ग्रामीण बेरोजगारी उम्मूलन कार्यक्रम सम्पूर्ण देश में छठीं योजना में ही लागू किये गये। योजना आयोग के कार्यदल द्वारा ’गरीबी निर्देशांक’ अर्थात ग्रामीण क्षेत्रों में 2400 कैलोरी और शहरी क्षेत्रों में 2100 कैलोरी प्रतिदिन उपभोग गरीबी रेखा के रूप में परिभाषित किया गया। इस योजना के उद्देश्यों में राष्ट्रीय आय में वृद्धि करना, प्रौद्योगिकी का आधुनिकीरण करना, गरीबी एवं बेरोजगारी में कमी लाना एवं परिवार नियोजन के द्वारा जनसंख्या नियंत्रण करना, निहित था। इसी योजना के दौरान 1980 में 6 बैंको का राष्ट्रीयकरण किया गया तथा 12 जुलाई 1982 को नाबार्ड की स्थापना एवं 1982 में ही एक्जिम बैंक की स्थापना की गयी। सातवीं पंचवर्षीय योजना (1 अप्रैल 1985 से 31 मार्च 1990) :-इस योजना का मुख्य उद्देश्य आर्थिक समृद्धि आधुनिकीरण आत्मनिर्भरता एवं खाद्यान्न उत्पादन में वृद्धि, रोजगार अवसरों में वृद्धि था। योजना अवधि के दौरान अर्थव्यवस्था में आर्थिक वृद्धिदर रिकार्ड 5.6ः तक पहुँच गयी थी। इस योजना के निम्नलिखित लक्ष्य थे-
नोट :- प्रो0 राज कृष्णा ने 7वीं योजना को हिन्दू वृद्धिदर के रूप में वर्णित किया है। आठवीं पंचवर्षीय योजना (1 अप्रैल 1992 से 31 मार्च 1997) :-केन्द्र में दो वर्षों में राजनीतिक परिवर्तन के कारण आठवीं पंचवर्षीय योजना समय पर प्रारम्भ नहीं की जा सकी थी। राष्ट्रीय विकास परिषद ने योजना के प्रारूप को 23 मई 1952 को मंजूरी दी। यह योजना यूलर माॅडल पर आधारित थी जिसमें मानवीय संसाधन का विकास को सर्वाधिक महत्व दिया गया था। आठवीं पंचवर्षीय योजना में वार्षिक विकास दर का लक्ष्य 5.6ः निर्धारित किया गया था। इस योजना के मूलभूत उद्देश्य निम्नलिखित हैं-
इस योजना के दौरान 1 जनवरी 1995 को भारत W.T.O का सदस्य बना। शिक्षित बेरोजगारों के लिए 1993 में प्रधानमंत्री रोजगार योजना शुरू की गयी। वार्षिक योजनाएं :- राजनीति अस्थायित्व एवं भुगतान असंतुलन के कारण 1990-92 के दौरान पंचवर्षीय योजना चालू नहीं की जा चुकी। इस योजनाकाल में 1991 ई0 में भारत में आर्थिक सुधार जिसमें उदारीकरण, निजीकरण व वैश्विकरण की घोषणा की गयी। सरकार ने 1990 में लघु उद्योगों के विकास के लिए सिडवी (Small Industrial Development Bank of India-SIDVI) की शुरूआत की। नवीं पंचवर्षीय योजना (1 अप्रैल 1997 से 31 मार्च 2002) :-नवीं पंचवर्षीय योजना में सकल घरेलू उत्पाद में 7ः वार्षिक वृद्धि दर का लक्ष्य था। किन्तु बाद में इसे घटाकर 6.5% कर दिया गया। इस योजना का मुख्य उद्देश्य सामाजिक न्याय एवं समानता के साथ आर्थिक समृद्धि था। इस बात के लिए योजना अवधि के दौरान जीवन स्तर रोजगार सृजन आत्मनिर्भरता एवं क्षेत्रीय सन्तुलन पर विशेष जोर दिया गया। दसवीं पंचवर्षीय योजना (1 अप्रैल 2002 से 31 मार्च 2007) :-इस योजना में 7.7% की औसत सालाना वृद्धि दर प्राप्त होने का अनुमान लगाया गया था जो कि अब तक किसी भी योजना में प्राप्त की सर्वोच्च वृद्धि दर है। अर्थव्यवस्था के तीनों प्रमुख क्षेत्रों कृषि, उद्योग व सेवा में दसवीं योजना के दौरान प्राप्त की गयी वृद्धि दरें इनके लिए निर्धारित किये गये लक्ष्यों से काफी निकट रही हैं। कृषि में 4 प्रतिशत सालान वृद्धि का योजना का लक्ष्य था। इस क्षेत्र में 2.30 प्रतिशत वार्षिक वृद्धि अनंतिम आँकड़ों के अनुसार प्राप्त की गई है। उद्योगों व सेवाओं के क्षेत्रों में क्रमशः 8.90 प्रतिशत व 9.40 प्रतिशत वार्षिक वृद्धि का लक्ष्य था। इन क्षेत्रों में क्रमशः 9.17 प्रतिशत व 9.30 प्रतिशत की सालाना वृद्धि दसवीं पंचवर्षीय योजना में प्राप्त की गई हैं। अनंतिम आँकड़ों के अनुसार इस योजना में निवेश की दर (Rate of Investment) सकल घरेलू उत्पाद का 32.1 प्रतिशत रही है, जबकि लक्ष्य 28.41 प्रतिशत का था। सकल घरेलू बचते जीडीपी के 23.31 प्रतिशत रखने का लक्ष्य था, जबकि वास्तविक उपलब्धि लक्ष्य से कहीं अधिक जीडीपी का 31.9 प्रतिशत रही है। योजनाकाल में मुद्रास्फीति की दर औसतन 5.0 प्रतिशत रखने का लक्ष्य था, जबकि वास्तव में यह 5.02 प्रतिशत रही थी। 11वीं पंचवर्षीय योजना (2007 से 2012) :-इस योजना को राष्ट्रीय विकास परिषद में 19 दिसम्बर 2007 को अनुमोदित किया। योजना में 9ः की औसत वृद्धि दर के साथ अन्तिम वर्ष 2011-12 में 10 प्रतिशत वृद्धि दर का लक्ष्य रखा गया था। 11वीं पंचवर्षीय योजना के दृष्टि पत्र में प्रमुख बिन्दु इस प्रकार हैं-
12वीं पंचवर्षीय योजना (2012 से 2017) :-राष्ट्रीय विकास परिषद की 27 दिसम्बर 2012 को सम्पन्न बैठक में 12वीं पंचवर्षीय योजना को स्वीकृत प्रदान की गयी। बारहवीं पंचवर्षीय योजना का केन्द्र बिन्दु निम्न हैं-तीव्र सम्पोषणीय और अधिक समावेशी विकास (Faster Sustainable and More Inclusive Growth) 12वीं पंचवर्षीय योजना के मुख्य लक्ष्य निम्नलिखित हैं-
नोट :- वर्तमान एनडीए सरकार द्वारा योजना आयोग के स्थान पर नीति आयोग का गठन 1 जनवरी 2015 को किया गया। भारत में नियोजन से आप क्या समझते हैं?भारत में आयोजन से अभिप्राय राज्य के अभिकरणों के द्वारा देश की आर्थिक सम्पदा और सेवाओं के एक निश्चित समय हेतु आवश्यकताओं का पूर्वानुमान लगाना है।
नियोजन से आप क्या समझते हैं?वर्तमान परिस्थितियों को ध्यान में रखकर किसी लक्ष्य की प्राप्ति के लिए भविष्य की रुपरेखा तैयार करने के लिए आवश्यक क्रियाकलापों के बारे में चिन्तन करना आयोजन या नियोजन (Planning) कहलाता है। यह प्रबन्धन का प्रमुख घटक है।
भारतीय नियोजन क्या है इसके कार्य एवं उद्देश्य लिखिए?वास्तव में नियोजन की आवश्यकता उस समय पड़ती है जब किसी एक क्रिया को पूरा करने के लिए अनेक विकल्प विद्यमान हों। - चित्र 4.1 - नियोजन - उद्देश्यों को विचार में रखना और उनको कार्य रूप देना । रखा जाए तो वातावरण की अवस्थाओं में परिवर्तनों के कारण सारी व्यावसायिक योजनाएँ व्यर्थ हो जाती हैं।
नियोजन विकास क्या है?मेरी कुशिंग नाइल्स - ''नियोजन किसी उदद्ेश्य को पूरा करने के लिए सर्वोत्तम कार्यपथ का चुनाव करने एवं विकास करने की जागरूक प्रक्रिया है। यह वह प्रक्रिया है जिस पर भावी प्रबन्ध प्रकार्य निर्भर करता है''। जार्ज आर. टेरी - ''नियोजन भविष्य में झोंकने की एक विधि है।
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