Bihar Board Class 12 Political Science Solutions Chapter 3 नियोजित विकास की राजनीति Textbook Questions and Answers, Additional Important Questions, Notes. Show
Bihar Board Class 12 Political Science नियोजित विकास की राजनीति Textbook Questions and Answersप्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. उत्तर: (क) – (ii) (ख) – (i) (ग) – (ii) (घ) – (iv) प्रश्न 5. दूसरा मतभेद प्राथमिकताओं को लेकर था। कुछ लोग निजी क्षेत्र को प्राथमिकता दे रहे थे व अन्य सार्वजनिक क्षेत्र में अधिक आर्थिक गतिविधियाँ व निवेश के पक्ष में थे ताकि राज्य के माध्यम से आर्थिक विकास हो ताकि उसका अधिक से अधिक लाभ जनता तक पहुँच सके। तीसरा मुद्दा कृषि बनाम उद्योग था। जिस पर विभिन्न सोच के लोगों में मतभेद था। कुछ लोग जैसे पंडित जवाहरलाल नेहरू भारत की गरीबी, बेरोजगारी की समस्या का हल औद्योगिकरण के द्वारा करना चाहते थे जबकि अन्य वर्ग के लोगों का यह मानना था कि ग्रामीण क्षेत्र कृषि की कीमत पर अगर औद्योगिकरण किया जाता है तो वह कृषि क्षेत्र के लिए हानिकारक होना इसी संदर्भ में ग्रामीण बनाम शहरी मुद्दा भी इस अवसर पर रहा कि ग्रामीण क्षेत्र को अधिक निवेश व विकास की जरूरत है शहरी विकास ग्रामीण विकास की कीमत पर नहीं होना चाहिए। इस प्रकार से नियोजन की प्रक्रिया कई प्रकार के मतभेदों से घिरी रही लेकिन क्योंकि सभी राष्ट्रीय हितों से प्रेरित थे अतः मतभेद होते हुए भी समायोजन व आम सहमति के माध्यम से मतभेद दूर किए गए तथा उचित रास्ता अपनाया गया। जैसे निजी क्षेत्र व सार्वजनिक क्षेत्र को प्राथमिकता देते हुए मिश्रित अर्थव्यवस्था अपनाई गई। ग्रामीण क्षेत्र के साथ शहरी क्षेत्र का विकास भी निश्चित किया गया। इसी प्रकार से कृषि विकास व औद्योगिक विकास में भी सम्बन्ध स्थापित किया गया। प्रश्न 6. दूसरी पंचवर्षीय योजना का समय 1957 से 1962 तक का था। इस पंचवर्षीय योजना के प्रमुख रूप से निर्माता पी.सी. महालनोबिस थे। यह योजना प्रथम पंचवर्षीय योजना से इस रूप में मिली थी कि इसमें जोर औद्योगीकरण पर दिया। अर्थात् इस योजना कि प्राथमिकता औद्योगिक विकास पर थी जबकि प्रथम योजना में प्राथमिकता कृषि विकास पर थी। प्रथम योजना का मूलमंत्र था धीरज, लेकिन दूसरी योजना की कोशिश तेज गति से संरचनात्मक बदलाव करने की थी। सरकार ने देशी उद्योगों को संरक्षण देने के लिए आयात पर भारी शुल्क लगाया। संरक्षण की इस नीति से निजी क्षेत्र व सार्वजनिक क्षेत्र के उद्योगों को आगे बढ़ने में मदद मिली। प्रश्न 7. इस स्थिति से निपटने के लिए कुछ नए उपयों का सूत्रपात किया गया जिसमें से एक थी हरित क्रान्ति। हरित क्रान्ति का अर्थ था विज्ञान तकनीकी, रसायनिक खाद, उन्नत बीजों का प्रयोग करके अन्न उत्पादन को बढ़ाना। 1960 के दशक में ही भारत में हरित क्रान्ति का सूत्रपात किया गया। इसका प्रयोग पहले केवल उन राज्यों में किया गया जो पहले से ही अपेक्षाकृत संसाधन रखने वाले राज्य थे। इन राज्यों में हरियाणा, पंजाब व उत्तर पश्चिमी उत्तर प्रदेश के क्षेत्र थे। निश्चित रूप से हरित क्रान्ति से अन्न पैदावार में बड़ी क्रान्ति आयी। हरित क्रान्ति के दो निम्न सकारात्मक परिणाम –
हरित क्रान्ति के दो निम्न नकारात्मक परिणाम थे –
प्रश्न 8. परन्तु इसी बीच एक अन्य सोच का जन्म हुआ जिसमें कृषि के स्थान पर औद्योगिक विकास को अधिक प्राथमिकता देने पर बल दिया गया क्योंकि गरीबी व बेरोजगारी को दूर करने के लिए कृषि के स्थान पर उद्योगों को अधिक उपयुक्त समझा गया। इस विचार को दूसरी पंचवर्षीय योजना (1956-1961) में लागू किया गया। पी.सी. महालनोबिस के नेतृत्व में अर्थशास्त्रियों और योजनाकारों की एक टोली ने यह योजना तैयार की थी। इस योजना में औद्योगीकरण पर दिए गए जोर ने भारतीय अर्थव्यवस्था के विकास को एक नया आयाम दिया। परन्तु कुछ नए मुद्दों व समस्याओं अर्थात् विवादों का भी जन्म हुआ। इसमें सबसे बड़ा मुद्दा कृषि बनाम उद्योग बना विवाद यह था कि किस क्षेत्र में अधिक संसाधन लगाए जाए। कुछ लोगों का यह मानना था कि दूसरी पंचवर्षीय योजना में औद्योगिक विकास को अधिक प्राथमिकता देने से कृषि विकास के हितों का नुकसान हुआ है। जे.सी. कुमारप्पा जैसे गाँधीवादी अर्थशात्रियों ने एक वैकल्पिक योजना का खाका तैयार किया जिसमें ग्रामीण औद्योगीकरण पर बल दिया। उनका तर्क यह था कि अगर औद्योगीकरण ही करना है तो कृषि के क्षेत्र में औद्योगीकरण किया जाना चाहिए ताकि ग्रामों में रहने वाले लोगो को रोजगार मिले व उनके जीवन में सुधार किया जा सके। जबकि अन्य वर्ग के लोगों का यह मानना था कि बगैर भारी औद्योगीकरण के गरीबी का निवारण नहीं किया जा सकता। इन लोगों का मानना था कि ग्रामीण व कृषि विकास के लिए भी औद्योगीकरण विकास आवश्यक है। प्रश्न 9.
विपक्ष में –
प्रश्न 10. (क) यहाँ लेखक किस अंतर्विरोध की चर्चा कर रहा है? ऐसे अंतर्विरोध के राजनीतिक
परिणाम क्या होंगे? उत्तर: (ख) कांग्रेस की सरकार के निर्णय ने निजी निवेश के लिए उदार आर्थिक नीतियाँ अपनाई और उसके बढ़ाने के लिए विशेष कदम उठाए। सरकार ने ये कार्य बड़े-बड़े पूँजीपतियों व उद्योगपतियों के समूह के दबाव में उठाये। (ग) कांग्रेस पार्टी एक अनुशासित दल जिसमें पंडित जवाहर लाल नेहरू का चमत्कारिक व प्रभावशाली नेतृत्व था। अतः यह मानना गलत ही होगा कि कांग्रेस के केन्द्रीय नेतृत्व व प्रान्तीय नेतृत्व में किसी प्रकार का अन्त:विरोध था। अधिकांश राज्यों में कांग्रेस दल की ही सरकारें थीं जिनको केन्द्र के लगभग सभी निर्णय मान्य होते थे। Bihar Board Class 12 Political Science नियोजित विकास की राजनीति Additional Important Questions and Answersअतिलघु उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर प्रश्न 1.
प्रश्न 2. 1. समाजवादी सिद्धान्त: 2. उदारवादी पूँजीवादी सिद्धान्त: प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5.
प्रश्न 6. प्रश्न 7.
प्रश्न 8. प्रश्न 9. प्रश्न
10.
प्रश्न 11. प्रश्न 12.
प्रश्न 13. प्रश्न 14. इस संकट के प्रमुख कारण निम्न थे –
प्रश्न 15.
लघु उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर प्रश्न 1. उस समय दुनिया में प्रमुख रूप से दो मॉडल प्रचलित थे, एक तो समाजवादी मॉडल एक पश्चिमी उदारवादी पूँजीवादी मॉडल। यद्यपि भारत में समाजवादी चिन्तन का व्यापक प्रभाव था परन्तु उदारवादी विचारधारा के आधार पर स्वतंत्र अर्थव्यवस्था के समर्थन भी मौजूद थे। कांग्रेस में अनेक नेता यहाँ तक कि पंडित जवाहर लाल नेहरू जैसे भी समाजवादी सिद्धान्तों से प्रभावित थे। कांग्रेस ने स्वयं गुवाहाटी अधिवेशन में समाजवादी सिद्धान्तों को अपनाने का प्रस्ताव पारित किया। संविधान की प्रस्तावना में भी बाद में समाजवाद जोड़ा गया व संविधान में ही चौथे भाग में अर्थात् राज्य की नीति के निर्देशक तत्वों के अध्याय में समाजवादी सिद्धान्तों के आधार पर अर्थव्यवस्था को बनाने का निर्देश दिया गया है। लेकिन पूँजीवादी विचारकों की भावी मजबूत थी। जिन्होंने अपना दबाव बनाया व भारत में मिश्रित अर्थव्यवस्था को अपनाया गया। प्रश्न 2. प्रश्न
3.
वामपंथी वे राजनीतिक दल होते हैं जो कि सामाजिक परिवर्तन व आर्थिक परिवर्तन तेजी से समाज में आमूल परिवर्तन करके लाना चाहते हैं। ये राज्य की भूमिका को सीमित करना चाहते हैं। आमतौर से वामपंथी दल किसान मजदूर व अन्य गरीब वर्गों के हितेशी माने जाते हैं। भारत में साम्यवादी दलों को वामपथी दल कहा जाता है ये उस सरकार का समर्थन करते हैं जो समाज के कमजोर वर्गों के हितों को सुरक्षित करें। उधर दक्षिणपंथी वे राजनीतिक दल के होते हैं सामाजिक आर्थिक व्यवस्था में स्थिरता अर्थात् यथास्थिति बनाए रखना चाहते हैं अर्थात् कोई बड़ा क्रांतिकारी परिवर्तन का विरोध करते हैं। ये राजनीतिक दल परम्पराओं में विश्वास करते हैं व पुरानी परम्पराओं को बनाए रखना चाहते हैं। भारतीय जनता पार्टी व शिवसेना, अकाली दल व मुस्लिम लीग को हम दक्षिणपंथी दल मान सकते हैं। इसके अलावा जो राजनीतिक दल बीच का रास्ता अपनाते हैं उनको केन्द्रपंथी कहते हैं। कांग्रेस, जनतादल व अन्य दल केन्द्रपंथी है। प्रश्न 4.
प्रश्न 5. समाजवाद का प्रभाव उन दिनों पूरी दुनिया में था। भारत में समाजवादी चिन्तन के आधार पर समाज का विकास करने के लिए उपयुक्त परिस्थितियाँ थीं। कांग्रेस के अनेक नेता समावादी मॉडल के पक्षधर रहे। प्रारम्भ में भारत में कई दशकों समाजवादी सिद्धान्तों के आधार पर सामाजिक आर्थिक विकास किया गया। परन्तु कुछ लोग उदारवादी पूँजीवादी मॉडल के पक्षधर थे जो राज्य को कम से कम क्षेत्र देकर व्यक्ति को अधिक से अधिक स्वतन्त्रता के पक्षधर रहे। अन्त में भारत में मिश्रित अर्थव्यवस्था के मॉडल को भारत के सामाजिक व आर्थिक विकास के लिए अपनाया गया। प्रश्न 6.
प्रश्न 7. योजना आयोग का कार्य –
प्रश्न 8.
प्रश्न 9. कृषि को ही भारत में विभाजन का सबसे अधिक खामयाजा उठाना पड़ा था। भाखड़ा नांगल जैसी विशाल परियोजनाओं के लिए बड़ी धन राशि निश्चित की गई थी। इन सभी का उद्देश्य सिंचाई के साधन बढ़ाकर कृषि के क्षेत्र में पैदावार बढ़ाना था क्योंकि अभी तक अनाज पैदावार व जनसंख्या वृद्धि में एक बड़ा अन्तर था। कृषि पूरी तरह प्रकृति पर निर्भर करती है। अतः इस स्थिति में प्रथम पंचवर्षीय योजना में कृषि विकास पर प्राथमिकता देना आवश्यक था व उचित भी था। इस योजना में ही जमीन सुधार जैसे कार्यक्रम प्रारम्भ किए गए व अधिक से अधिक जमीन को कृषि के लिए तैयार किया गया। प्रश्न 10. प्रश्न
11. इसके अतिरिक्त उद्योगों ने कृषि की अपेक्षा निवेश को अधिक आकर्षित किया। क्योंकि इस योजना में कृषि को उचित प्राथमिकता नहीं मिल पायी। अत: खाद्यान्न संकट बढ़ गया। भारत में योजनाकारों को उद्योग व कृषि के बीच सन्तुलन साधने में भारी कठिनाई आई। इसके अलावा औद्योगीकरण की नीति के सम्बन्ध में भी योजनाकारों व अन्य विशेषज्ञों में मतभेद था। कुछ लोग कृषि से जुड़े उद्योगों के पक्ष में थे व अन्य भारत में विकास के लिए भारी उद्योगों की स्थापना के पक्ष में थे। इसके अलावा औद्योगीकरण की नीति को लागू करने में भी स्थानीय लोगों के विरोध का भी सामना करना पड़ा। अनेक सामाजिक संगठनों व वातावरण बचाओ अभियान से जुड़े लोगों ने भी भारी औद्योगीकरण का विरोध किया। प्रश्न 12.
प्रश्न 13. 1970 के दशक में कृषि वैज्ञानिक श्री एम.एस.स्वामीनाथन के विचारों व प्रयासों के आधार पर भारत के उत्तरी राज्यों विशेषकर पंजाब हरियाणा व पश्चिमी उत्तर प्रदेश में पैदावार बढ़ाने के उद्देश्य से कृषि के लिए वैज्ञानिक व तकनीकी का प्रयोग किया गया। नए उपकरण व मशीनों का प्रयोग किया गया। अधिक पैदावार देने वाले उन्नत बीजों का प्रयोग किया। रासायनिक खाद व दवाइयों का प्रयोग कर अनाज पैदावार में अत्यधिक वृद्धि की गई। इस प्रकार से इन नई विधियों व रासायनिक खाद के प्रयोग से पैदावार में हुई वृद्धि को हरित क्रान्ति के नाम से जाना गया। हरित क्रान्ति प्रारम्भ में केवल कुछ विकसित राज्यों तक ही सीमित रही व इसका लाभ भी उच्च किसानों व बड़े जमींदारों को मिला इस कारण से किसानों में भी हरित क्रान्ति के प्रभावों के कारण विशिष्ट वर्ग पैदा हो गया। प्रश्न 14. दीर्घ उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर प्रश्न 1. प्रथम पंचवर्षीय योजना में कार्य को प्राथमिकता दी गई क्योंकि कृषि ही भारत की सबसे प्रमुख पूँजी है व भारत की अधिकांश जनता कृषि पर ही निर्भर करती है। अतः ग्रामीण विकास भारत समाज के सामाजिक व आर्थिक विकास के लिए आवश्यक समझा गया। नियोजन की प्रक्रिया जो पंडित जवाहर लाल नेहरू के कुशल निर्देशन में प्रारम्भ हुई, राजनीतिकरण व विवादों के घेरे से नहीं बच पायी। इस सम्बन्ध में जो प्रमुख विवाद सामने आए वो निम्न प्रकार के थे। 1. वैचारिक विवाद-सबसे प्रमुख विवाद नियोजन के सम्बन्ध में अपनाई जाने वाली विचारधारा के सम्बन्ध में उत्पन्न हुआ जो समाजवादी चिन्तक थे वे चाहते थे कि आर्थिक गतिविधियाँ सार्वजनिक क्षेत्र में दी जाए जिनके संचालन में राज्य की अधिक से अधिक भूमिका हो। सार्वजनिक क्षेत्र में ही अधिक निवेश हो। परन्तु दूसरी ओर उदारवादी चिन्तक इस बात पर जोर देते थे कि व्यक्तिगत स्वतन्त्रता को विकसित करने के लिए अधिक से अधिक भूमिका व महत्व निजी क्षेत्र के विकास को दिया जाए। 2. कृषि बनाम उद्योग-आर्थिक नियोजन के क्षेत्र में इसका प्रमुख विवाद कृषि बनाम उद्योग से सम्बन्धित था। दूसरी पंचवर्षीय योजना में जब उद्योगों के विकास को प्राथमिकता दी गई अनेक गाँधीवादी नेताओं व विचारकों ने विरोध किया कि कृषि विकास की कीमत पर उद्योग विकास करना ग्रामीण क्षेत्र के लिए हानिकारक रहेगा क्योंकि देश के अधिकतम लोग खेती पर अर्थात् कृषि पर निर्भर करते हैं। अतः भारी उद्योग देश के हित में नहीं है। 3. सार्वजनिक क्षेत्र बनाम निजी क्षेत्र-भारत में मिश्रित अर्थव्यवस्था को अपनाने पर तो समझौता हो गया परन्तु इसके दोनों क्षेत्रों में प्रतिस्पर्धा पैदा कर दी जिससे एक विवाद को जन्म मिला। 4. ग्रामीण क्षेत्र बनाम शहरी क्षेत्र-नियोजन की राजनीति के संदर्भ में ही ग्रामीण क्षेत्र व शहरी क्षेत्र की भावनाओं को जन्म मिला। प्रश्न 2. पहले कुछ दशकों में सार्वजनिक क्षेत्र में बहुत उत्साह से कार्य हुआ परन्तु इसके बाद सार्वजनिक क्षेत्र में होने वाली गतिविधियों से कोई अधिक लाभ नहीं हुआ। पहले दशकों में सार्वजनिक क्षेत्र ने स्टील उत्पादन, बीज उत्पादन, तेल उत्पादन, खाद उत्पादन, दवाइयों के उत्पादन व सीमेंट उत्पादन में अच्छे परिणाम दिए परन्तु इसके बाद सार्वजनिक क्षेत्र में कई प्रकार के दोष पैदा हो गए जिससे इसके परिणाम पर ही नकारात्मक प्रभाव पड़ा बल्कि निजी क्षेत्र को विकसित होने का अवसर भी प्राप्त हुआ। इस सबके परिणामस्वरूप 1990 के बाद निजीकरण, उदारीकरण व वैश्वीकरण के प्रभाव में सार्वजनिक क्षेत्र का महत्व काफी घट गयीं। सार्वजनिक क्षेत्र के दोष –
सार्वजनिक क्षेत्र में उपरोक्त दोष होने के कारण सार्वजनिक क्षेत्र का महत्त्व घट गया। सरकार को भी अपनी नीति में परिवर्तन करना पड़ा। कई महत्वपूर्ण अनुसंधान बंद किए गए व इन गतिविधियों को निजी क्षेत्र में लाया गया। आज ऐसी स्थिति है कि सार्वजनिक क्षेत्र में चलने वाली महत्वपूर्ण गतिविधियाँ जैसे, यातायात, संचार व्यवस्था, बीमा, बैंकिंग, उड्यान को भी निजी क्षेत्र में दे दिया गया है। वस्तुनिष्ठ प्रश्न एवं उनके उत्तर I. निम्नलिखित विकल्पों में सही का चुनाव कीजिए। प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. II. मिलान वाले प्रश्न एवं उनके उत्तर उत्तर: (1) – (स) (2) – (द) (3) – (य) (4) – (ब) (5) – (अ) नियोजित विकास से आप क्या समझते हैं?उद्योग लगाने की अनुमति नहीं दी गई, तो इससे एक बुरी मिसाल कायम होगी और देश में पूँजी निवेश को बाधा पहुँचेगी।
नियोजित विकास का क्या लाभ है?भारत में विकास के लिए नियोजित विकास का तरीका अपनाया गया जिसका मुख्य लक्ष्य अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों के तीव्र विकास के साथ-साथ ही कमजोर वर्गों के लिए सामाजिक न्याय उपलब्ध कराना था । अर्थात् भारत में विकास योजनाओं का मुख्य लक्ष्य न्याय के साथ आर्थिक वृद्धि प्राप्त करना था ।
नियोजित से आप क्या समझते हैं?Answer. Answer: वर्तमान परिस्थितियों को ध्यान में रखकर किसी लक्ष्य की प्राप्ति के लिए भविष्य की रुपरेखा तैयार करने के लिए आवश्यक क्रियाकलापों के बारे में चिन्तन करना आयोजन या नियोजन (Planning) कहलाता है।
नियोजन के क्या लक्षण होते हैं?भारत में नियोजन के लक्षण (Characteristics of planning in India In Hindi). उपलब्ध संसाधनो का अधिकतम प्रयोग. औद्योगीकरण में क्रमबद्ध वृद्धि.. कृषि एवं पशुपालन का समानांतर विकास.. इलेक्ट्रॉनिक एवं संप्रेषण क्षेत्र में तीव्र गति से आगे बढ़ाना.. शासकीय कार्यतंत्र / नौकरशाही में पारदर्शिता लाना.. |