ओलंपिक में पहले भारतीय कौन थे? - olampik mein pahale bhaarateey kaun the?

भारतीय पहलवानों ने अब तक ओलंपिक में सात पदक जीते हैं। हॉकी के बाद कुश्ती ऐसा खेल है, जिसमें भारतीय एथलीटों ने समर ओलंपिक गेम्स में सबसे ज्यादा सफलता हासिल की है।

ओलंपिक पदक जीतने वाले पहले भारतीय पहलवान केडी जाधव थे, जिन्होंने 1952 के हेलसिंकी खेलों में कांस्य पदक जीता था।

हालांकि इसके बाद भारत को कुश्ती में अपने दूसरे पदक के लिए 56 सालों का इंतज़ार करना पड़ा। चीन के बीजिंग में हुए 2008 ओलंपिक खेलों में सुशील कुमार ने कांस्य पदक जीतकर, इस लंबे इंतज़ार को खत्म किया। उसके बाद से भारतीय पहलवानों ने कुश्ती में पिछले चार ओलंपिक में से प्रत्येक में कम से कम एक पदक जीता है।

चलिए जानते हैं कि भारतीय पहलवानों ने ये कैसे किया।

केडी जाधव - 1952 हेलसिंकी ओलंपिक में मेंस फ्रीस्टाइल 57 किग्रा में ब्रॉन्ज़ मेडल

केडी जाधव स्वतंत्रता के बाद भारत के पहले व्यक्तिगत ओलंपिक पदक विजेता बने, जब उन्होंने 1952 के हेलसिंकी ओलंपिक में पुरुषों के बैंटमवेट (57 किग्रा) फ्रीस्टाइल में कांस्य पदक जीता।

बचपन से कुश्ती के शौकीन माने जाने वाले केडी जाधव की बेहतरीन तकनीक ने उन्हें कई राष्ट्रीय खिताब दिलाए। उन्होंने साल 1948 लंदन में अपना ओलंपिक डेब्यू किया, जहां वे छठे स्थान पर रहे।

शुरुआत में केडी जाधव 1952 खेलों के लिए भारतीय ओलंपिक टीम का हिस्सा नहीं थे, लेकिन उन्होंने अधिकारियों को समझाने और हेलसिंकी जाने के लिए राष्ट्रीय चैंपियन निरंजन दास को तीन बार हराया।

क्राउडफंडिंग के सहारे उन्होंने ओलंपिक के अपने खर्चों को पूरा किया। केडी जाधव ने अपने पहले तीन मुकाबले जीते, चौथे राउंड में उन्हें बाई मिली थी और पांचवें दौर में राशिद मम्मडबेयोव ने उन्हें हरा दिया।

बिना किसी आराम के केडी जाधव को अपने पदक राउंड मैच की शुरुआत करनी पड़ी। स्वर्ण पदक विजेता जापान के शोहाची इशी के खिलाफ उनका पहला मुक़ाबला हुआ, लेकिन इस मैच में उनपर थकावट दिखी और वो ये मुक़ाबला हार गए।

हालांकि, केडी जाधव ने कांस्य पदक जीतने के लिए पूरी ताकत लगा दी। इस तरह केडी जाधव स्वतंत्र भारत के पहले व्यक्तिगत ओलंपिक पदक जीतने वाले पहले एथलीट बन गए।

सुशील कुमार - बीजिंग 2008 में मेंस फ्रीस्टाइल 66 किग्रा में ब्रॉन्ज़ मेडल

सुशील कुमार ने अपने कुश्ती के सपने को साकार करने के लिए बहुत त्याग किया और 2003 एशियन चैंपियनशिप में कांस्य पदक जीतकर अपने सफर की शुरुआत की।

उन्होंने एथेंस 2004 में पहली बार ओलंपिक में भाग लिया, लेकिन 60 किग्रा वर्ग के एलिमिनेशन राउंड में अपने दोनों मुकाबले हारकर जल्द ही बाहर हो गए।

2008 के बीजिंग ओलंपिक में जाने से पहले सुशील कुमार ने 2006 एशियाई खेलों और 2007 एशियाई चैंपियनशिप में कांस्य पदक जीता था।

उन्होंने अपना वेट कैटेगरी बदला और 66 किग्रा के अपने पहले मुक़ाबले में उन्हें यूक्रेन के एंड्री स्टैडनिक से हार मिली। हालांकि, स्टैडनिक के फाइनल में पहुंचने की वजह से सुशील कुमार ने रेपचेज राउंड के माध्यम से पदक जीतने का दूसरा मौका हासिल किया।

सुशील कुमार ने संयुक्त राज्य अमेरिका के डग श्वाब और बेलारूस के अल्बर्ट बतिरोव को हराया। कांस्य पदक मैच में कजाकिस्तान के लियोनिद स्पिरिडोनोव को एक संघर्षपूर्ण मुक़ाबले में हराकर 56 वर्षों से चले आ रहे कुश्ती में भारत के पदक के सूखे को खत्म किया।

सुशील कुमार - लंदन 2012 में मेंस फ्रीस्टाइल 66 किग्रा में सिल्वर मेडल

बीजिंग में कांस्य पदक जीतने के चार साल बाद, सुशील कुमार ने लंदन 2012 में रजत पदक जीता। इस तरह वो दो व्यक्तिगत ओलंपिक पदक जीतने वाले पहले भारतीय बन गए।

सुशील कुमार अब तक ग्रीष्मकालीन खेलों में व्यक्तिगत स्पर्धा में दो पदक जीतने वाले एकमात्र भारतीय हैं।

लंदन 2012 ओलंपिक में जाने से पहले सुशील कुमार ने खुद को भारत के सर्वश्रेष्ठ पहलवान के रूप में स्थापित किया और 2010 राष्ट्रमंडल खेलों और एशियाई चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक जीता।

हालांकि, कंधे की चोट की वजह से वो लंदन ओलंपिक से पहले कुछ महीनों के लिए एक्शन से बाहर थे और क्वालीफाइंग टूर्नामेंट जीतने के बाद सिर्फ ग्यारह घंटे में लंदन ओलंपिक्स के लिए क्वालीफाई किया।

हालांकि, सुशील कुमार का खेलों से ठीक पहले वजन बढ़ गया था और उन्हें अपनी वेट कैटेगरी की सीमा के भीतर रहने के लिए काफी मेहनत करनी पड़ी। इस प्रयास ने उन्हें शारीरिक और मानसिक रूप से प्रभावित किया।

भारतीय पहलवान अपने पहले मुकाबले में मौजूदा ओलंपिक चैंपियन रमजान साहिन को हराने से पहले अपनी वजन को हासिल कर चुके थे।

टीम के अन्य पहलवानों ने उन्हें मुकाबलों के लिए तैयार करने के लिए लगातार उनके शरीर की मालिश की, सुशील कुमार ने अपने क्वार्टर फाइनल और सेमीफाइनल मैच जीते।

फाइनल से एक रात पहले पेट में किसी समस्या से जूझने के बाद, सुशील कुमार जापान के तातुहिरो योनेमित्सु के खिलाफ नहीं टिक सके और उन्हें रजत पदक से संतोष करना पड़ा। इस तरह वो दो व्यक्तिगत ओलंपिक पदक जीतने वाले पहले भारतीय एथलीट बन गए।

सुशील कुमार ने लंदन 2012 में रजत पदक जीता।

फोटो क्रेडिट 2012 Getty Images

योगेश्वर दत्त - लंदन 2012 में मेंस फ्रीस्टाइल 60 किग्रा में ब्रॉन्ज़ मेडल

ओलंपिक पदक जीतने का सपना देखने की शुरुआत तब हुई थी, जब योगेश्वर दत्त ने अटलांटा 1996 में दिग्गज लिएंडर पेस को टेनिस का कांस्य पदक जीतते हुए देखा।

हरियाणा में योगेश्वर दत्त का गांव अपनी कुश्ती संस्कृति के लिए लोकप्रिय था और एक युवा के रूप में, उन्होंने अपनी महत्वाकांक्षाओं को साकार करने के लिए खेल को आगे बढ़ाने का विकल्प चुना।

भारतीय पहलवान ने एथेंस 2004 में अपना ओलंपिक पदार्पण किया और बीजिंग 2008 के लिए भी टीम में जगह बनाई, लेकिन दोनों में पदक के दौर से पहले ही बाहर हो गए।

हालांकि, बार बार मिल रही हार ने उन्हें लंदन 2012 में पदक जीतने के लिए और दृढ़ बना दिया।

योगेश्वर दत्त ने घुटने और पीठ की चोटों से जूझते हुए लंदन ओलंपिक के लिए जगह बनाई और अपना पहला मुकाबला जीता और फिर 16वें राउंड में विश्व चैंपियन बेसिक कुदुखोव से हार गए।

हालांकि, कुदुखोव फाइनल में पहुंच गए, जिससे योगेश्वर दत्त को रेपचेज राउंड के माध्यम से पदक जीतने का एक और मौका मिल गया।

आंख की चोट के बावजूद, योगेश्वर दत्त ने ओलंपिक कांस्य जीतने और अपने आजीवन सपने को पूरा करने के लिए लगातार तीन मुकाबले जीते।

साक्षी मलिक - रियो 2016 में वूमेंस फ्रीस्टाइल 58 किग्रा में ब्रॉन्ज़ मेडल

साक्षी मलिक ने 2016 रियो ओलंपिक में कांस्य पदक जीतकर भारत में महिला कुश्ती के एक नए अध्याय की शुरुआत की।

खेलों से पहले, साक्षी मलिक ओलंपिक कट बनाने के लिए मुश्किल दौर से गुजर रही थीं क्योंकि उनको राष्ट्रमंडल खेलों की चैंपियन गीता फोगाट के समान भार वर्ग में कुश्ती लड़ना पड़ा।

हालांकि किस्मत ने पलटी मारी और साक्षी मलिक को रियो ओलंपिक की टीम में जगह बनाने का मौका मिल गया।

गीता फोगाट ने ओलंपिक क्वालीफायर में एक मुकाबले को छोड़ने का फैसला किया, जिसके कारण उन्हें निलंबित कर दिया गया और साक्षी मलिक को तुरंत अंतिम ओलंपिक क्वालीफाइंग इवेंट के लिए टीम में जगह दे दी गई थी।

उस साल 24 वर्षीय साक्षी मलिक ने रियो 2016 के लिए अपना ओलंपिक टिकट हासिल करने के लिए फाइनल में जगह बनाई।

भारतीय पहलवान ने अपने पहले दो मुकाबले जीते और अंतिम आठ में ROC की रजत पदक विजेता वेलेरिया कोब्लोवा से हार गईं।

रेपचेज राउंड में साक्षी मलिक ने अपने दूसरे मौके का फायदा उठाया और दो मुक़ाबले जीतकर कांस्य पदक अपने नाम कर लिया। इस तरह ओलंपिक में पदक जीतने वाले साक्षी मलिक पहली भारतीय महिला पहलवान बन गईं।

रवि कुमार दहिया – टोक्यो 2020 मेंस फ्रीस्टाइल 57 किग्रा में सिल्वर मेडल

रवि कुमार दहिया हरियाणा राज्य के एक और महान खिलाड़ी हैं जिन्होंने ओलंपिक पदक अपने नाम किया।

विश्व चैंपियनशिप में लगातार दो एशियन चैंपियनशिप स्वर्ण और एक कांस्य जीतने वाले रवि कुमार को 57 किग्रा फ्रीस्टाइल वर्ग में चौथी वरीयता प्राप्त थी।

सोनीपत के इस पहलवान ने टोक्यो में शानदार शुरुआत की। उन्होंने कोलंबिया के ऑस्कर टाइगरोस (13-2) और बुल्गारिया के जॉर्जी वांगेलोव (14-4) को तकनीकी श्रेष्ठता से हराकर सेमीफाइनल में प्रवेश किया।

हालांकि, एक समय रवि के हाथ से फाइनल का टिकट दूर जा रहा था। एक समय कजाकिस्तान के नूरिस्लाम सनायेव ने 9-2 की बड़ी बढ़त हासिल कर ली थी।

लेकिन यहां से भारतीय पहलवान ने बाजी पलट दी। इसके बाद रवि ने अपने विरोधी को मैट से बाहर धकेल कर 9-5 से वापसी की। अब जब मुकाबला खत्म होने में केवल 50 सेकंड बचे थे तो रवि कुमार ने एक टेकडाउन को अंजाम दिया और सनायेव को पिन करके फाइनल में पहुंचकर मुकाबला जीत लिया।

वह फाइनल में दो बार के वर्ल्ड चैंपियन आरओसी के ज़ौर उगुएव से हार गए और रजत पदक ही जीत सके।

बजरंग पुनिया – टोक्यो 2020 में मेंस फ्रीस्टाइल 65 किग्रा में ब्रॉन्ज़ मेडल

दो बार के एशियाई चैंपियन, 2018 एशियाई खेलों के स्वर्ण पदक विजेता और वर्ल्ड चैंपियनशिप के रजत पदक विजेता बजरंग पुनिया ने टोक्यो 2020 में अपने ओलंपिक डेब्यू के साथ कांस्य पदक अपने नाम किया।

मेंस 65 किग्रा वर्ग में दूसरी वरीयता प्राप्त बजरंग पुनिया ने राउंड ऑफ-16 और क्वार्टर-फाइनल में क्रमशः क्रिगिस्तान के एर्नाजार अकमातालिव और ईरान के मोर्टेजा घियासी को हराया। इसके बाद वह अजरबैजान के तीन बार के विश्व चैंपियन हाजी अलीयेव से हार गए।

हालांकि, उन्होंने अगले दिन कज़ाकिस्तान के वर्ल्ड नंबर-3 दौलत नियाज़बेकोव को 8-0 से हराकर कांस्य पदक अपने नाम किया।

ओलंपिक में जीतने वाले पहले भारतीय कौन थे?

केडी जाधव स्वतंत्र भारत के पहले इंडिविज़ुअल ओलंपिक मेडल विजेता बने। लेकिन ओलंपिक पोडियम तक पहुंचने का उनका यह सफर इतना आसान नहीं था।

भारत में पहला ओलंपिक कब हुआ था?

स्वतंत्रता के बाद: तीन हॉकी स्वर्ण और पहला व्यक्तिगत पदक इसलिए 1948 के लंदन ओलंपिक में भारत ने एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में अपने पहले ग्रीष्मकालीन ओलंपिक खेलों मे हिस्सा लिया। उस वक्त भारत ने 1948 ओलंपिक खेलों के लिए अपना सबसे बड़ा दल (9 खेलों में 86 एथलीट) भेजा और भारतीय हॉकी टीम फिर से एक ताकत के रूप में उभरी।

पहला ओलंपिक कहाँ हुआ?

आधुनिक ओलंपिक खेलों का पहला संस्करण ग्रीस में आयोजित हुआ

ओलंपिक खेल में एथलेटिक्स में भारत के लिए पहला गोल्ड मेडल लाने वाले खिलाड़ी कौन थे?

ओलंपिक में ट्रैक एंड फील्ड में पहला स्वर्ण पदक दिलाया 120 साल के इतिहास में नीरज भारत के लिए ट्रैक एंड फील्ड में गोल्ड मेडल लाने वाले पहले भारतीय खिलाड़ी बने थे। अभिनव बिंद्रा के बाद वो दूसरे भारतीय हैं, जिन्होंने एकल स्पर्धा में स्वर्ण पदक जीता। नीरज जैवलिन थ्रो में देश को ओलंपिक में पदक दिलाने वाले पहले खिलाड़ी हैं।