पंडित अलोपीदीन की गाड़ी कहां क्यों और किसने रखी थी? - pandit alopeedeen kee gaadee kahaan kyon aur kisane rakhee thee?

Naman Ka Daroga Class 11th Summary, Explanation and Question Answers

हैलो बच्चों!

आज हम कक्षा 11वीं की पाठ्यपुस्तक

आरोह भाग-1 का पाठ पढ़ेंगे

“नमक का दरोगा”

Namak Ka Daroga Hindi Aroh Part 1 Chapter 1

पाठ के लेखक प्रेमचंद हैं।

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बच्चों, पाठ के सार को समझने से पहले पाठ के लेखक के जीवन परिचय को जानते हैं।

पंडित अलोपीदीन की गाड़ी कहां क्यों और किसने रखी थी? - pandit alopeedeen kee gaadee kahaan kyon aur kisane rakhee thee?

लेखक परिचय: प्रेमचंद

पंडित अलोपीदीन की गाड़ी कहां क्यों और किसने रखी थी? - pandit alopeedeen kee gaadee kahaan kyon aur kisane rakhee thee?
Premchand

जीवन परिचय: प्रेमचंद का जन्म 1880 ई. में उत्तर प्रदेश के लमही गाँव में हुआ। इनका मूल नाम धनपतराय था। इनका बचपन अभावों में बीता। इन्होंने स्कूली शिक्षा पूरी करने के बाद पारिवारिक समस्याओं के कारण बी.ए. तक की पढ़ाई मुश्किल से पूरी की। ये अंग्रेजी में एम.ए. करना चाहते थे, लेकिन पारिवारिक जिम्मेदारियों को पूरा करने के लिए नौकरी करनी पड़ी। गाँधी जी के असहयोग आंदोलन में सक्रिय होने के कारण उन्होंने सरकारी नौकरी से त्यागपत्र दे दिया। राष्ट्रीय आंदोलन से जुड़ने के बाद भी उनका लेखन कार्य सुचारु रूप से चलता रहा। ये अपनी पत्नी शिवरानी देवी के साथ अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलनों में हिस्सा लेते रहे। इनका निधन 1936 ई. में हुआ।

रचनाएँ: प्रेमचंद का साहित्य संसार अत्यंत विस्तृत है। ये हिंदी कथा-साहित्य के शिखर पुरुष माने जाते हैं। इनकी रचनाएँ निम्नलिखित हैं-

उपन्यास: सेवासदन, प्रेमाश्रम, रंगभूमि, निर्मला, कायाकल्प, गबन, कर्मभूमि, गोदान।

कहानी-संग्रह: सोजे-वतन, मानसरोवर (आठ खंड में), गुप्त-धन।

नाटक: कर्बला, संग्राम, प्रेम की देवी।

निबंध-संग्रह: कुछ विचार, विविध प्रसंग।

साहित्यिक विशेषताएँ: हिंदी साहित्य के इतिहास में कहानी और उपन्यास की विधा के विकास का काल-विभाजन प्रेमचंद को ही केंद्र में रखकर किया जाता रहा है। वस्तुत: प्रेमचंद ही पहले रचनाकार हैं जिन्होंने कहानी और उपन्यास की विधा को कल्पना और रुमानियत की  धुंध से निकालकर यथार्थ की ठोस जमीन पर प्रतिष्ठित किया। उनकी हिंदुस्तानी भाषा अपने पूरे ठाट-बाट और जातीय स्वरूप के साथ आई है।

साहित्य के बारे में प्रेमचंद का कहना है-

“साहित्य वह जादू की लकड़ी है जो पशुओं में ईंट-पत्थरों में पेड़-पौधों में भी विश्व की आत्मा का दर्शन करा देती है।”

पाठ का सारांश : नमक का दारोगा

पात्र :

  1. मुंशी वंशीधर (लेखक प्रेमचंद)
  2. पडित अलोपीदीन

‘नमक का दारोगा’ प्रेमचंद की बहुचर्चित कहानी है जो आदर्शान्मुख यथार्थवाद का एक मुकम्मल उदाहरण है। यह कहानी धन के ऊपर धर्म की जीत है। ‘धन’ और ‘धर्म’ को क्रमश: सद्वृत्ति और असद्वृत्ति, बुराई और अच्छाई, असत्य और सत्य कहा जा सकता है। कहानी में इनका प्रतिनिधित्व क्रमश: पडित अलोपीदीन और मुंशी वंशीधर नामक पात्रों ने किया है। ईमानदार कर्मयोगी मुंशी वंशीधर को खरीदने में असफल रहने के बाद पंडित अलोपीदीन अपने धन की महिमा का उपयोग कर उन्हें नौकरी से हटवा देते हैं, लेकिन अंत में सत्य के आगे उनका सिर झुक जाता है। वे सरकारी विभाग से बखास्त वंशीधर को बहुत ऊँचे वेतन और भत्ते के साथ अपनी सारी जायदाद का स्थायी मैनेजर नियुक्त करते हैं और गहरे अपराध-बोध से भरी हुई वाणी में निवेदन करते हैं –

“परमात्मा से यही प्रार्थना है कि वह आपको सदैव वही नदी के किनारे वाला बेमुरौवत, उद्दंड, किंतु धर्मनिष्ठ दरोगा बनाए रखे।“

नमक का विभाग बनने के बाद लोग नमक का व्यापार चोरी-छिपे करने लगे। इस काले व्यापार से भ्रष्टाचार बढ़ा। अधिकारियों के पौ-बारह थे। लोग दरोगा के पद के लिए लालायित थे। मुंशी वंशीधर भी रोजगार को प्रमुख मानकर इसे खोजने चले। इनके पिता अनुभवी थे। उन्होंने घर की दुर्दशा तथा अपनी वृद्धावस्था का हवाला देकर नौकरी में पद की ओर ध्यान न देकर ऊपरी आय वाली नौकरी को बेहतर बताया। वे कहते हैं कि मासिक वेतन तो पूर्णमासी का चाँद है जो एक दिन दिखाई देता है और घटते-घटते लुप्त हो जाता है। ऊपरी आय बहता हुआ स्रोत है जिससे सदैव प्यास बुझती है। आवश्यकता व अवसर देखकर विवेक से काम करो। वंशीधर ने पिता की बातें ध्यान से सुनीं और चल दिए। धैर्य, बुद्ध आत्मावलंबन व भाग्य के कारण नमक विभाग के दरोगा पद पर प्रतिष्ठित हो गए। घर में खुशी छा गई।

पंडित अलोपीदीन की गाड़ी कहां क्यों और किसने रखी थी? - pandit alopeedeen kee gaadee kahaan kyon aur kisane rakhee thee?

सर्दी के मौसम की रात में नमक के सिपाही नशे में मस्त थे। वंशीधर ने छह महीने में ही अपनी कार्यकुशलता व उत्तम आचार से अफसरों का विश्वास जीत लिया था। यमुना नदी पर बने नावों के पुल से गाड़ियों की आवाज सुनकर वे उठ गए। उन्हें गोलमाल की शंका थी। जाकर देखा तो गाड़ियों की कतार दिखाई दी। पूछताछ पर पता चला कि ये पंडित अलोपीदीन की है। वह इलाके का प्रसिद्ध जमींदार था जो ऋण देने का काम करता था। तलाशी ली तो,  पता चला कि उसमें नमक है। पंडित अलोपीदीन अपने सजीले रथ में ऊँघते हुए जा रहे थे तभी गाड़ी वालों ने गाड़ियाँ रोकने की खबर दी। पंडित सारे संसार में लक्ष्मी को प्रमुख मानते थे। न्याय, नीति सब लक्ष्मी के खिलौने हैं। उसी घमंड में निश्चित होकर दरोगा के पास पहुँचे। उन्होंने कहा कि मेरी सरकार तो आप ही हैं। आपने व्यर्थ ही कष्ट उठाया। मैं सेवा में स्वयं आ ही रहा था। वंशीधर पर ईमानदारी का नशा था। उन्होंने कहा कि हम अपना ईमान नहीं बेचते। आपको गिरफ्तार किया जाता है।

यह आदेश सुनकर पंडित अलोपीदीन हैरान रह गए। यह उनके जीवन की पहली घटना थी। बदलू सिंह उसका हाथ पकड़ने से घबरा गया, फिर अलोपीदीन ने सोचा कि नया लड़का है। दीनभाव में बोले-आप ऐसा न करें। हमारी इज्जत मिट्टी में मिल जाएगी। वंशीधर ने साफ मना कर दिया। अलोपीदीन ने चालीस हजार तक की रिश्वत देनी चाही, परंतु वंशीधर ने उनकी एक न सुनी। धर्म ने धन को पैरों तले कुचल डाला।

सुबह तक हर किसी की ज़ुबान पर यही किस्सा था। पंडित के व्यवहार की चारों तरफ निंदा हो रही थी। भ्रष्ट व्यक्ति भी उसकी निंदा कर रहे थे। अगले दिन अदालत में भीड़ थी। अदालत में सभी पडित अलोपीदीन के माल के गुलाम थे। वे उनके पकड़े जाने पर हैरान थे। इसलिए नहीं कि अलोपीदीन ने क्यों यह कर्म किया बल्कि इसलिए कि वह कानून के पंजे में कैसे आए? इस आक्रमण को रोकने के लिए वकीलों की फौज तैयार की गई। न्याय के मैदान में धर्म और धन में युद्ध ठन गया। वंशीधर के पास सत्य था, गवाह लोभ से डाँवाडोल थे।

मुंशी जी को न्याय में पक्षपात होता दिख रहा था। यहाँ के कर्मचारी पक्षपात करने पर तुले हुए थे। मुकदमा शीघ्र समाप्त हो गया। डिप्टी मजिस्ट्रेट ने लिखा कि पंडित अलोपीदीन के विरुद्ध प्रमाण आधारहीन है। वे ऐसा कार्य नहीं कर सकते। दरोगा का दोष अधिक नहीं है, परंतु एक भले आदमी को दिए कष्ट के कारण उन्हें भविष्य में ऐसा न करने की चेतावनी दी जाती है। इस फैसले से सबकी बाँछे खिल गई। खूब पैसा लुटाया गया जिसने अदालत की नींव तक हिला दी। वंशीधर बाहर निकले तो चारों तरफ से व्यंग्य की बातें सुनने को मिलीं। उन्हें न्याय, विद्वता, उपाधियाँ आदि सभी निरर्थक लगने लगे।

वंशीधर की बखास्तगी का पत्र एक सप्ताह में ही आ गया। उन्हें कर्तव्यनिष्ठता का दंड मिला। दुखी मन से वे घर चले गए । उनके पिता खूब बड़बड़ाए। यह अधिक ईमानदार बनता है। जी चाहता है कि तुम्हारा और अपना सिर फोड़ लें। उन्हें अनेक कठोर बातें कहीं। माँ की तीर्थयात्रा की आशा मिट्टी में मिल गई। पत्नी कई दिन तक मुँह फुलाए रही।

एक सप्ताह के बाद अलोपीदीन सजे रथ में बैठकर मुंशी के घर पहुँचे। वृद्ध मुंशी उनकी चापलूसी करने लगे तथा अपने पुत्र को कोसने लगे। अलोपीदीन ने उन्हें ऐसा कहने से रोका और कहा कि कुलतिलक और पुरुषों की कीर्ति उज्ज्वल करने वाले संसार में ऐसे कितने धर्मपरायण कर्तव्यनिष्ठ व्यक्ति  हैं जो धर्म पर अपना सब कुछ अर्पण कर सकें। उन्होंने वंशीधर से कहा कि इसे खुशामद न समझिए। आपने मुझे परास्त कर दिया।

वंशीधर ने सोचा कि वे उसे अपमानित करने आए हैं, परंतु पंडित की बातें सुनकर उनका संदेह दूर हो गया। उन्होंने कहा कि यह आपकी उदारता है। आज्ञा दीजिए।

अलोपीदीन ने कहा कि नदी तट पर आपने मेरी प्रार्थना नहीं सुनी, अब स्वीकार करनी पड़ेगी। उसने एक स्टांप पत्र निकाला और पद स्वीकारने के लिए प्रार्थना की। वंशीधर ने पढ़ा। पंडित ने अपनी सारी जायदाद का स्थायी मैनेजर छह हजार वार्षिक वेतन, रोजाना खर्च, सवारी, बंगले आदि के साथ नियत किया था। वंशीधर ने काँपते स्वर में कहा कि मैं इस उच्च पद के योग्य नहीं हूँ। ऐसे महान कार्य के लिए बड़े अनुभवी मनुष्य की जरूरत है।

अलोपीदीन ने वंशीधर को कलम देते हुए कहा कि मुझे अनुभव, विद्वता, मर्मज्ञता, कार्यकुशलता की चाह नहीं। परमात्मा से यही प्रार्थना है कि वह आपको सदैव वही नदी के किनारे वाला बेमुरौवत, उद्दंड, कठोर, परंतु धर्मनिष्ठ दरोगा बनाए रखे। वंशीधर की आँखें डबडबा आई। उन्होंने काँपते हुए हाथ से मैनेजरी के कागज पर हस्ताक्षर कर दिए। अलोपीदीन ने उन्हें गले लगा लिया।


Namak Ka Daroga Chapter 1 Hindi Aroh Part 1 Question Answers

नमक का दरोगा प्रश्न व उत्तर

प्रश्न. 1. कहानी का कौन-सा पात्र आपको सर्वाधिक प्रभावित करता है और क्यों?

उत्तर: हमें इस कहानी का पात्र वंशीधर सबसे अधिक प्रभावित करता है। वह ईमानदार, शिक्षित, कर्तव्यपरायण व धर्मनिष्ठ व्यक्ति है। उसके पिता उसे बेईमानी का पाठ पढ़ाते हैं, घर की दयनीय दशा का हवाला देते हैं, परंतु वह इन सबके विपरीत ईमानदारी का व्यवहार करता है। वह स्वाभिमानी है। अदालत में उसके खिलाफ गलत फैसला लिया गया, परंतु उसने स्वाभिमान नहीं खोया। उसकी नौकरी छीन ली गई। कहानी के अंत में उसे अपनी ईमानदारी का फल मिला। पंडित अलोपीदीन ने उसे अपनी सारी जायदाद का आजीवन मैनेजर बनाया।

प्रश्न. 2. नमक का दारोगा’ कहानी में पंडित अलोपीदीन के व्यक्तित्व के कौन-से दो पहलू (पक्ष) उभरकर आते हैं?

उत्तर: पं. अलोपीदीन अपने क्षेत्र के नामी-गिरामी सेठ थे। सभी लोग उनसे कर्ज लेते थे। उनको व्यक्तित्व एक शोषक-महाजन का सा था, पर उन्होंने सत्य-निष्ठा का भी मान किया। उनके व्यक्तित्व की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं –

  1. लक्ष्मी उपासक – उन्हें धन पर अटूट विश्वास था। वे सही-गलत दोनों ही तरीकों से धन कमाते थे। नमक का व्यापार इसी की मिसाल है। साथ ही वे कठिन घड़ी में धन को ही अपना एकमात्र हथियार मानते थे। उन्हें विश्वास था कि इस लोक से उस लोक तक संसार का प्रत्येक काम लक्ष्मी जी की दया से संभव होता है। इसीलिए वंशीधर की धर्मनिष्ठा पर उन्होंने उछल-उछलकर वार किए थे।
  2. ईमानदारी के कायल – धन के उपासक होते हुए भी उन्होंने वंशीधर की ईमानदारी का सम्मान किया। वे स्वयं उसके द्वार पर पहुँचे और उसे अपनी सारी जायदाद सौंपकर मैनेजर के स्थाई पद पर नियुक्त किया। उन्हें अच्छा वेतन, नौकर-चाकर, घर आदि देकर इज्ज़त बख्शी।

प्रश्न. 3. कहानी के लगभग सभी पात्र समाज की किसी-न-किसी सच्चाई को उजागर करते हैं। निम्नलिखित पात्रों के संदर्भ में पाठ से उस अंश को उद्धृत करते हुए बताइए कि यह समाज की किस सच्चाई को उजागर करते हैं

(क) वृद्ध मुंशी

(ख) वकील

(ग) शहर की भीड़

उत्तर: (क) वृद्ध मुंशी-यह वंशीधर का पिता है जो भ्रष्ट चरित्र का प्रतिनिधि है। इसे धन में ही सब कुछ दिखाई देता है। यह अपने बच्चों को ऊपर की कमाई तथा आम आदमी के शोषण की सलाह देता है।

पाठ में यह अंश उसके विचारों को व्यक्त करता है-

उनके पिता एक अनुभवी पुरुष थे। समझाने लगे-बेटा! घर की दुर्दशा देख रहे हो। ऋण के बोझ से दबे हुए हैं। लड़कियाँ हैं, वह घास-फूस की तरह बढ़ती चली जाती हैं। मैं कगारे पर का वृक्ष हो रहा हूँ न मालूम कब गिर पड़। अब तुम्हीं घर के मालिक-मुख्तार हो। नौकरी में ओहदे की ओर ध्यान मत देना, यह तो पीर का मजार है। निगाह चढ़ावे और चादर पर रखनी चाहिए। ऐसा काम ढूँढ़ना जहाँ कुछ ऊपरी आय हो। मासिक वेतन तो पूर्णमासी का चाँद है जो एक दिन दिखाई देता है और घटते-घटते लुप्त हो जाता है। ऊपरी आय बहता हुआ स्रोत है जिससे सदैव प्यास बुझती है। वेतन मनुष्य देता है, इसी से उसमें वृद्ध नहीं होती। ऊपरी आमदनी ईश्वर देता है, इसी से उसकी बरकत होती है, तुम स्वयं विद्वान हो, तुम्हें क्या समझाऊँ। इस विषय में विवेक की बड़ी आवश्यकता है। मनुष्य को देखो, उसकी आवश्यकता को देखो और अवसर को देखो, उसके उपरांत जो उचित समझो, करो। गरजवाले आदमी के साथ कठोरता करने में लाभ-ही-लाभ है, लेकिन बेगरज को दाँव पर पाना जरा कठिन है। इन बातों को निगाह में बाँध लो। यह मेरी जन्मभर की कमाई है। वे बेटे द्वारा रिश्वत न लेने पर उसकी पढ़ाई-लिखाई को व्यर्थ मानते हैं-‘‘ पढ़ना-लिखना सब अकारण गया। ”

(ख) वकील-वकील समाज के उस पेशे का प्रतिनिधित्व करते हैं जो सिर्फ अपने लाभ की फिक्र करते हैं। उन्हें न्याय-अन्याय से कोई मतलब नहीं होता उन्हें धन से मतलब होता है। अपराधी के जीतने पर भी वे प्रसन्न होते हैं-“वकीलों ने यह फैसला सुना और उछल पड़े। स्वजन बांधवों ने रुपयों की लूट की। उदारता का सागर उमड़ पड़ा। उसकी लहरों ने अदालत की नींव तक हिला दी।“

वकीलों ने नमक के दरोगा को चेतावनी तक दिलवा दी-

“यद्यपि नमक के दरोगा। मुंशी वंशीधर का अधिक दोष नहीं है, लेकिन यह बड़े खेद की बात है कि उसकी उद्दंडता और विचारहीनता के कारण एक भलेमानस को झेलना पड़ा। नमक के मुकदमे की बढ़ी हुई नमकहलाली ने उसके विवेक और बुद्ध को भ्रष्ट कर दिया। भविष्य में उसे होशियार रहना चाहिए।“

(ग) शहर की भीड़-शहर की भीड़ तमाशा देखने का काम करती है। उन्हें निंदा करने व तमाशा देखने का मौका चाहिए। उनकी कोई विचारधारा नहीं होती। अलोपीदीन की गिरफ्तारी पर शहर की भीड़ की प्रतिक्रिया देखिए-

दुनिया सोती थी, पर दुनिया की जीभ जागती थी। सवेरे देखिए तो बालक-वृद्ध सबके मुँह से यही बात सुनाई देती थी। जिसे देखिए, वही पंडित जी के इस व्यवहार पर टीका-टिप्पणी कर रहा था, निंदा की बौछार हो रही थीं. मानो संसार से अब पापी का पाप कट गया। पानी को दूध के नाम से बेचनेवाला ग्वाला, कल्पितबनानेवाले सेठ और साहूकार, यह सब-के-सब देवताओं की भाँति गरदनें चला रहे थे। जब दूसरे दिन पंडित अलोपीदीन अभियुक्त होकर कांस्टेबलों के साथ, हाथों में हथकड़ियाँ, हृदय में ग्लानि और क्षोभभरे, लज्जा से गरदन झुकाए अदालत की तरफ चले, तो सारे शहर में हलचल मच गई। मेलों में कदाचित् आँखें इतनी व्यग्र न होती होंगी। भीड़ के मारे छत और दीवार में कोई भेद न रहा।

प्रश्न. 4. निम्न पंक्तियों को ध्यान से पढ़िए-नौकरी में ओहदे की ओर ध्यान मत देना, यह तो पीर का मज़ार है। निगाह चढ़ावे और चादर पर रखनी चाहिए। ऐसा काम ढूँढ़ना जहाँ कुछ ऊपरी आय हो। मासिक वेतन तो पूर्णमासी का चाँद है जो एक दिन दिखाई देता है और घटते-घटते लुप्त हो जाता है। ऊपरी आय बहता हुआ स्रोत है जिससे सदैव प्यास बुझती है। वेतन मनुष्य देता है, इसी से उसमें वृद्धि नहीं होती। ऊपरी आमदनी ईश्वर देता है, इसी से उसकी बरकत होती है, तुम स्वयं विद्वान हो, तुम्हें क्या समझाऊँ।

(क) यह किसकी उक्ति है?

(ख) मासिक वेतन को पूर्णमासी का चाँद क्यों कहा गया है?

(ग) क्या आप एक पिता के इस वक्तव्य से सहमत हैं?

उत्तर: (क) यह उक्ति (कथन) नौकरी पर जाते हुए पुत्र को हिदायत देते समय वृद्ध मुंशी जी ने कही थी।

(ख) जिस प्रकार पूरे महीने में सिर्फ एक बार पूरा चंद्रमा दिखाई देता है, वैसे ही वेतन भी पूरा एक ही बार दिखाई देता है। उसी दिन से चंद्रमा का पूर्ण गोलाकार घटते-घटते लुप्त हो जाता है, वैसे ही उसी दिन से वेतन भी घटते-घटते समाप्त हो जाता है। इन समानताओं के कारण मासिक वेतन को पूर्णमासी का चाँद कहा गया है।

(ग) एक पिता के द्वारा पुत्र को इस तरह का मार्गदर्शन देना सर्वथा अनुचित है। माता-पिता का कर्तव्य बच्चों में अच्छे संस्कार डालना है। सत्य और कर्तव्यनिष्ठा बताना है। ऐसे में पिता के ऐसे वक्तव्य से हम सहमत नहीं हैं।

प्रश्न. 5. ‘नमक का दारोगा’ कहानी के कोई दो अन्य शीर्षक बताते हुए उसके आधार को भी स्पष्ट कीजिए।

उत्तर: इस कहानी के अन्य शीर्षक हो सकते हैं-

(क) सत्य की जीत- इस कहानी में सत्य शुरू में भी प्रभावी रहा और अंत में भी वंशीधर के सत्य के सामने अलोपीदीन को हार माननी पड़ी है।

(ख) ईमानदारी- वंशीधर ईमानदार था। वह भारी रिश्वत से भी नहीं प्रभावित हुआ। अदालत में उसे हार मिली, नौकरी छूटी, परंतु उसने ईमानदारी का त्याग नहीं किया। अंत में अलोपीदीन स्वयं उसके घर पहुँचा और इस गुण के कारण उसे अपनी समस्त जायदाद का मैनेजर बनाया।

प्रश्न. 6. कहानी के अंत में अलोपीदीन के वंशीधर को नियुक्त करने के पीछे क्या कारण हो सकते हैं? तर्क सहित उत्तर दीजिए। आप इस कहानी का अंत किस प्रकार करते?

उत्तर: कहानी के अंत में अलोपीदीन द्वारा वंशीधर को नियुक्त करने का कारण तो स्पष्ट रूप से यही है कि उसे अपनी जायदाद का मैनेजर बनाने के लिए एक ईमानदार मिल गया। दूसरा उसके मन में आत्मग्लानि का भाव भी था कि मैंने इस ईमानदार की नौकरी छिनवाई है, तो मैं इसे कुछ सहायता प्रदान करूँ। अतः उन्होंने एक तीर से दो शिकार कर डाले।

जहाँ तक कहानी से समापन की बात है तो प्रेमचंद के द्वारा लिखा गया समापन ही सबसे ज्यादा उचित है। पर समाज में ऐसा सुखद अंत किसी किसी ईमानदार को ही देखने को मिलता है। अकसर अपमान ही मिलता है।


पाठ के आस-पास

प्रश्न. 1. दारोगा वंशीधर गैरकानूनी कार्यों की वजह से पंडित अलोपीदीन को गिरफ्तार करता है, लेकिन कहानी के अंत में इसी पंडित अलोपीदीन की सहृदयता पर मुग्ध होकर उसके यहाँ मैनेजर की नौकरी को तैयार हो जाता है। आपके विचार से वंशीधर का ऐसा करना उचित था? आप उसकी जगह होते तो क्या करते?

उत्तर: वंशीधर ईमानदार व सत्यनिष्ठ व्यक्ति था। दारोगा के पद पर रहते हुए उसने पद के साथ नमकहलाली की तथा उस पद की गरिमा को ध्यान में रखते हुए ईमानदारी, सतर्कता से कार्य किया। उसने भारी रिश्वत को ठुकरा कर पंडित अलोपीदीन जैसे प्रभावी व्यक्ति को गिरफ्तार किया। उसने गैरकानूनी कार्य को रोका। उसी अलोपीदीन ने जब उसे अपनी जायदाद का मैनेजर बनाया तो वह उसकी नौकरी करने के लिए तैयार हो गया। वह पद के प्रति कर्तव्यनिष्ठ था। उसकी जगह हम भी वही करते जो वंशीधर ने किया।

प्रश्न. 2. नमक विभाग के दारोगा पद के लिए बड़ों-बड़ों का जी ललचाता था। वर्तमान समाज में ऐसा कौन-सा पद होगा जिसे पाने के लिए लोग लालायित रहते होंगे और क्यों?

उत्तर: वर्तमान समाज में भ्रष्टाचार के लिए तो सभी विभाग हैं। यदि आप भ्रष्ट हैं तो हर विभाग में रिश्वत ले सकते हैं। आज भी पुलिस विभाग सर्वाधिक बदनाम है, क्योंकि वहाँ सभी लोगों से रिश्वत ली जाती है। न्याय व रक्षा के नाम पर भरपूर लूट होती है।

प्रश्न. 3. अपने अनुभवों के आधार पर बताइए कि जब आपके तर्को ने आपके भ्रम को पुष्ट किया हो।

उत्तर: ऐसा जीवन में अनेक बार हुआ है। अभी पिछले दिनों हिंदी अध्यापिका ने कहा कि ‘कल आप लोग कॉपी किताब लेकर मत आना’ यह सुनकर मैंने सोचा ऐसा तो कभी हो नहीं सकता कि हिंदी की अध्यापिका न पढ़ाएँ। कहीं ऐसा तो नहीं कि कल अचानक परीक्षा लें ? और वही हुआ। कॉपी किताब के अभाव में हमारा टेस्ट लिया गया। मुझे जिस बात का भ्रम था, वही पुष्ट हो गया।

प्रश्न. 4. पढ़ना-लिखना सब अकारथ गया। वृद्ध मुंशी जी द्वारा यह बात एक विशिष्ट संदर्भ में कही गई थी। अपने निजी अनुभवों के आधार पर बताइए –

(क) जब आपको पढ़ना-लिखना व्यर्थ लगा हो।

(ख) जब आपको पढ़ना-लिखना सार्थक लगा हो।

(ग) ‘पढ़ना-लिखना’ को किस अर्थ में प्रयुक्त किया गया होगाः

साक्षरता अथवा शिक्षा? क्या आप इन दोनों को समान मानते हैं?

उत्तर: (क) कबीर की साखियाँ और सबद पढ़ते समय जब मुझे यह ज्ञात हुआ कि कबीर किसी पाठशाला में नहीं गए तो मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ कि ऐसा ज्ञानी संत बिना पढ़ा था तो हम ने पढ़कर क्या लाभ उठाया? जब अंत में ईश्वर से संबंध ही जीवन का उद्देश्य है तो पढ़ना लिखना क्या? दूसरी बात यह कि जब भारत का खली नामक भीमकाय रैसलर विश्व चैंपियन बना तभी मुझे पता लगा कि वह बिलकुल पढ़ा-लिखा नहीं है। यह सुनकर लगा कि बिना पढ़े भी धन और ख्याति प्राप्त किए जा सकते हैं।

(ख) मेरे पड़ोस में एक अम्मा जी रहती हैं। उनके दोनों बेटे विदेश में रहते हैं। उनकी चिट्ठी, ई-मेल आदि सब अम्मा जी के लिए हम पढ़कर सुनाते हैं तो हमें लगता है कि हमारा पढ़ा-लिखा होना सार्थक है।

(ग) यहाँ पढ़ना-लिखना को शिक्षा देने के अर्थ में प्रयुक्त किया गया है।

पढ़ना-लिखना –

  1. साक्षरता- जिसे अक्षर ज्ञान हो।
  2. शिक्षा- जो शिक्षित हो।

प्रश्न. 5. ‘लड़कियाँ हैं, वह घास-फूस की तरह बढ़ती चली जाती हैं।‘ वाक्य समाज में लड़कियों की स्थिति की किस वास्तविकता को प्रकट करता है?

उत्तर: यह वाक्य समाज में लड़कियों की हीन दशा को व्यक्त करता है। लड़कियों के युवा होते ही माता-पिता को उनके विवाह आदि की चिंता सताने लगती है। विवाह के लिए दहेज इकट्ठा करना पड़ता है। इनसे परिवार को कोई आर्थिक लाभ नहीं होता।


बच्चों!

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Bharat Mata Class 11th Hindi NCERT Sollutions, Summary, MCQs

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भारत माता कक्षा 11वीं हिन्दी आरोह भाग-1

पंडित जवाहरलाल नेहरू

लेखक परिचय : भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू का जन्म 1889 ई. में इलाहबाद (उत्तर प्रदेश) में हुआ था| उनकी मृत्यु 1964 ई. में नई दिल्ली में हुई थी|

जवाहरलाल नेहरू का जन्म इलाहबाद के एक संपन्न परिवार में हुआ| उनके पिता वहाँ के बड़े वकील थे| नेहरू की प्राथमिक शिक्षा घर पर तथा उच्च शिक्षा इंग्लैंड में हैरो तथा कैंब्रिज में हुई| वही से वकालत भी की| लेकिन नेहरू पर गांधी जी का बहुत प्रभाव पड़ा| उनकी पुकार पर वे वकालत छोड़कर आज़ादी की लड़ाई में जुट गए| आगे चल कर सन् 1929 में वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के लाहौर अधिवेशन के अध्यक्ष बने और पूर्ण स्वतंत्रता की मांग की| नेहरू का झुकाव समाजवाद की ओर भी था| 

सन् 1947 में जब भारत स्वतंत्र हुआ तो नेहरू जी पहले प्रधानमंत्री बने ओर भारत के निर्माण में अंत तक जुटे रहे| उन्होंने देश के विकास के लिए कई योजनायें बनाई, जिनमें आर्थिक ओर औद्योगिक प्रगति तथा वैज्ञानिक अनुसन्धान से लेकर साहित्य,कला, संस्कृति आदि क्षेत्र शामिल थे| नेहरू जी बच्चों के बीच चाचा नेहरू के रुप में जाने जाते थे| शांति अहिंसा ओर मानवता के हिमायती नेहरू ने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विश्वशांति ओर पंचशील के सिद्धांतो का प्रचार किया|   

प्रमुख रचनाएँ:- मेरी कहानी(आत्मकथा), विश्व इतिहास की झलक, हिंदुस्तान की कहानी, पिता के पत्र पुत्री के नाम(हिंदी अनुवाद), हिन्दुस्तान की समस्याएं, स्वाधीनता और उसके बाद, राष्ट्रपिता, भारत की बुनियादी एकता, लड़खड़ाती दुनिया आदि(लेखों और भाषणों का संग्रह)|

पाठ का सारांश

स्वतंत्र भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू द्वारा रचित निबंधात्मक लेख ‘भारत माता’ में भारत की धरती, संस्कृति और यहाँ के लोगो को ‘भारत माता’ की संज्ञा दी गयी है| इस पाठ में उन्होंने भारत माता के वास्तविक स्वरूप की चर्चा की है|

पाठ का सारांश इस प्रकार है :-

किसानों से वार्तालाप – जवाहरलाल जब भी एक जलसे से दूसरे जलसे में जाते थे तो वे वहां पर अपने श्रोताओं से ‘भारत माता’ के वास्तविक स्वरूप की चर्चा भी करते और उन्हें बताते थे कि किस प्रकार से उतर से दक्षिण और पूरब से पश्चिम तक सारा भारत देश एक ही है| उसकी समस्या एक-सी है|  वे उन्हें खैबर दरें से लेकर कन्याकुमारी तक का हाल सुनते थे और यह भी बताते थे कि जहां भी वे जाते है, देश के सभी किसान उनसे इसी प्रकार के सवाल किया करते है वह उन्हें बताते है कि सबकी समस्याएं यही है– गरीबी, कर्ज, पूंजीपतियों का शोषण, ज़मींदार, महाजन, कड़े लगान, सूद, पुलिस अत्याचार, और विदेशी शासन की दासता| नेहरू कोशिश करते कि सभी देशवासी पुरे हिन्दुस्तान के बारे में एक साथ सोचें तथा विदेशी शासन से छुटकारा पाएं|

विदेशी शासन की चर्चा-  जवाहरलाल नेहरू जलसों में अपने भाषणों एवं बातचित के दौरान चीन, स्पेन, अबीसीनिया, यूरोप, मिस्त्र और पश्चिमी एशिया में होने वाले संघर्षों का भी वर्णन किया करते थे| वे उन्हें रूस में हो रहे परिवर्तनों एवं अमेरिका की प्रगति के बारे में भी बताते रहते थे| यो तो किसानों को विदेशों के बारे में समझाना आसान नहीं दिखता था, पर नेहरू जी को यह काम कठिन नहीं लगा| कारण यह था कि किसानों ने पुराने महाकाव्यों तथा कथा-पुराणों की कथा-कहानियां पढ़-सुन रखी थी| कुछ लोगों ने तीर्थ-यात्राएं भी की थी| इसी बहाने वे चारों धामों की यात्राएं करके भारत के चारों कोनो से परिचित हो चुके थे| कुछ सिपाहियों ने बड़ी बड़ी लड़ाइयो में भाग लिया था| कुछ लोग और भी अधिक जागरूक थे| उन्हें सन् 1930  ईo के बाद आयी आर्थिक मंदी के कारण दूसरे देशों का हाल मालूम था|   

पंडित अलोपीदीन की गाड़ी कहां क्यों और किसने रखी थी? - pandit alopeedeen kee gaadee kahaan kyon aur kisane rakhee thee?
Pandit Jawahar Lal Nehru

भारत माता की जयके नारे पर नेहरू का प्रश्न– जलसों में कभी-कभी नेहरू जी का स्वागत ‘भारत माता की जय’ के नारों से होता था| तब किसानों से भारत माता के बारे में पूछते थे कि यह कौन है? प्राय: इस बारे में उन्हें कुछ ज्ञान नहीं होता था| एक हट्टे-कट्टे जाट किसान ने उन्हें बताया कि भारत माता का अर्थ है– भारत की धरती| तब नेहरू उनसे पूछते कि कौन-सी धरती- उनके गांव की धरती अथवा जिले, सूबे या पूरे देश की धरती| इस प्रश्न पर फिर सब किसान हैरान रह जाते |

 ‘भारत माता’ की व्याख्या– नेहरू जी उन्हें बताते थे कि ‘भारत माता’ वह सब तो है ही जो वह सोचते है, वह उससे भी अधिक, कुछ और भी है| यहाँ के नदी, पहाड़, जंगल, खेत और करोड़ों भारतीय सब मिलकर ‘भारत माता’ कहलाते है| ‘भारत माता’ की जय का मतलब है कि इन सबकी जय| जब वे लोग स्वं को भी भारत माता का अंग समझते थे तो उनकी आँखों में एक विशेष प्रकार की चमक आ जाती थी|

Bharat Mata Class 11th Question & Answers

Question 1: भारत की चर्चा नेहरू कब और किससे करते थे?

Ans: भारत की चर्चा नेहरू जलसे में आए श्रोताओं से करते थे। नेहरू जी प्रायः जलसों में जाते रहते थे। तब वह जलसे में आए हुए श्रोताओं से भारती की चर्चा किया करते थे।

Question 2: नेहरू जी भारत के सभी किसानों से कौन-सा प्रश्न बार-बार करते थे?

Ans: पं. नेहरू जी भारत के सभी किसानों से ‘भारतमाता की जय’ के विषय में प्रश्न बार-बार किया करते थे। वह उनसे पूछते थे कि किसान जिस भारतमाता की जय करते हैं, वह कौन है? नेहरू जी के इस प्रश्न पर जब लोग जवाब देते की धरती को वे भारतमाता कहते हैं, तो नेहरू जी उनसे फिर प्रश्न करते कि कौन-सी धरती के बारे में बात की जा रही है? इसमें वे अपने गाँव की धरती की बात कर रहे हैं। जिले, सूबे अथवा हिन्दुस्तान की बात कर रहे हैं। इस तरह वह किसानों से प्रश्न बार किया करते थे।

Question 3: दुनिया के बारे में किसानों को बताना नेहरू जी के लिए क्यों आसान था?

Ans: नेहरू जी किसानों को दुनिया के बारे में बताते थे। उन्हें इनके बारे में बताना नेहरू जी के लिए आसान था। किसान पुराणों तथा महाकाव्यों से जुड़ी कथा व कहानियों से अंजान नहीं थे। अतः इन्हीं के माध्यम से नेहरू जी ने देश के विषय में ज्ञान करवा दिया। जलसे में उन्हें इस तरह के लोग भी मिल जाते थे, जिन्होंने कई यात्राएँ तथा तीर्थ किए हुए थे। वे हिन्दुस्तान के कोने-कोने से वाकिफ थे। इनमें से कई सैनिक भी थे, जो युद्ध करने के लिए विदेशों में भी गए थे। अतः जब नेहरू जी दुनिया के बारे में उन्हें बताते, तो उनकी समझ में आ जाता था।

Question 4: किसान सामान्यतः भारत माता का क्या अर्थ लेते थे?

Ans: किसानों के अनुसार उनके देश की धरती ही भारतमाता थी। वह सामान्यतः भारतमाता का यही अर्थ लेते थे।

Question 5: भारतमाता के प्रति नेहरू जी की क्या अवधारण थी?

Ans: भारतमाता के प्रति नेहरू जी की अवधारण किसानों से बिलकुल अलग थी। उनका मानना था कि हमारे देश की धरती, खेत, पहाड़, जंगल, झरने इत्यादि इसके अंग हैं। मगर भारत के सभी लोग जो पूरे देश में हैं, सही मायनों में ये ही भारतमाता हैं।

Question 6: आजादी से पूर्व किसानों को किन समस्याओं का सामना करना पड़ता था?

Ans: आजादी से पूर्व किसानों को इन समस्याओं का सामना करना पड़ता था।

  • कर्ज से युक्त जीवन
  • भूखमरी
  • जमींदारों द्वारा शोषण
  • महाजनों द्वारा शोषण
  • आय से अधिक लगान

Question 7: आजादी से पहले भारत-निर्माण को लेकर नेहरू के क्या सपने थे? आजादी के बाद वे साकार हुए? चर्चा कीजिए।

Ans: आजादी से पहले भारत-निर्माण को लेकर नेहरू के ये सपने थे।

  • भारत को आर्थिक रूप से मज़बूत बनाया जाए।
  • भारत का चहुँमुखी विकास हो।
  • भारत से गरीबी का उन्मूलन हो।
  • भारतीय किसानों की विपत्तियों की समाप्ति हो।
  • भारत में औद्योगिकी क्रांति तथा उसका विकास हो।

आजादी से पहले भारत-निर्माण को लेकर नेहरू ने जो सपने देखे थे, उनमें से कई साकार हो गए हैं। आज भारत आर्थिक रूप से मज़बूत बन गया है। भारत का चहुँमुखी विकास हो रहा है। भारत में औद्योगिकी क्रांति भी हुई है और आज उसका विकास चरम पर है। कुछ सपने हैं, जो आज भी सफल नहीं हुए हैं। आज भी किसानों की विपत्तियों का अंत नहीं हुआ है तथा गरीबी उन्मूलन नहीं हुआ है।

Question 8: भारत के विकास को लेकर आप क्या सपने देखते हैं? चर्चा कीजिए।

Ans: भारत के विकास को लेकर मैं बहुत से सपने देखती हूँ। वे इस प्रकार हैं-

  • चारों तरफ शिक्षा का प्रचार-प्रसार हो। देश में कोई अशिक्षित न रहे।
  • भारत में कोई गरीब और भूखा न हो।
  • सबके पास पक्के मकान और हर प्रकार की सुख-सुविधाएँ हों।
  • बेरोज़गारी समाप्त हो जाए।
  • भारत की आत्मनिर्भरता हर क्षेत्र में हो।
  • प्रदूषण की समस्या से निजात पा सकें।
  • देश की तेज़ी से बढ़ती आबादी को रोका जा सके।
  • भारत शीघ्र ही विकसित राष्ट्र कहलाए।

Question 9: आपकी दृष्टि में भारतमाता और हिन्दुस्तान की क्या संकल्पना है? बताइए।

Ans: मेरी दृष्टि में भारतमाता और हिन्दुस्तान की संकल्पना नेहरू जी की बतायी अवधारणा से अलग नहीं है। भारतामाता और हिन्दुस्तान मात्र धरती की संकल्पना से नहीं हो सकता। उसमें रहने वाले लोग उसे सुंदर और जीवंत बनाते हैं। उसमें रंग भरते हैं। उनके कारण ही एक धरती स्वरूप पाती है, और नाम पाती है। भारत का स्वरूप तो सबसे निराला है। उसके मस्तक में हिमालय मुकुट के रूप में और सागर उसके चरणों को धोता हुआ प्रतीत होता है। यहाँ सभी धर्मों के लोग प्रेम से साथ रहते हैं।

Question 10: वर्तमान समय में किसानों की स्थिति किस सीमा तक बदली है? चर्चा कर लिखिए।

Ans: वर्तमान समय में किसानों की स्थिति में बहुत बदलाव आया है। अब खेती में अत्याधुनिक मशीनों से काम लिया जाने लगा है। मगर यह अनुपात बहुत कम है। आज भी ऐसे स्थानों पर जो बहुत दूर हैं, वहाँ के किसानों की स्थिति पहले के समान ही है। प्रकृति की मार उनकी मेहनत को नष्ट कर रही है। कर्ज के बोझ तले दबकर वे आत्महत्या करने के लिए विवश हो रहे हैं। आज भी उनके बच्चे भूख से मर रहे हैं। सभी सुख-सुविधाओं से विहीन किसान विपन्नता का जीवन जीने के लिए मजबूर हैं।

Bharat Mata Class 11th MCQs

Q 1. ‘भारत माता’ किसके द्वारा रचित पाठ है?|

A. प्रेमचंद

B. जवाहर लाल नेहरू

C. कृष्ण नाथ

D. कृष्णचंद्र

Ans- B. जवाहर लाल नेहरू

Q 2. ‘भारत’ किस भाषा का शब्द है?

A. हिंदी

B. संस्कृत

C. फ़ारसी

D. अंग्रेज़ी

Ans- B. संस्कृत

Q 3. खैबर दर्रा किस दिशा में है?|

A. उत्तर-पश्चिम

B. उत्तर-पूर्व

C. दक्खिन-पूर्व

D. दक्खिन उत्तर

Ans- A. उत्तर-पश्चिम

Q 4. कन्याकुमारी किस दिशा में है?

A. पूर्व

B. पश्चिम

C. उत्तर

D. दक्षिण

Ans- D. दक्षिण

Q 5. सब से अधिक प्रश्न कौन पूछते थे?

A. मजदूर

B. किसान

C. व्यापारी

D. डॉक्टर

Ans- B. किसान

Q 6. भारत माता दरअसल क्या है?

A. ज़मीन

B. सेना

C. नेता

D. करोड़ों देशवासी

Ans- D. करोड़ों देशवासी

Q 7. किसने यह उत्तर दिया था- “भारतमाता से उनका मतलब धरती से है”?

A. जाट ने

B. अध्यापक ने

C. नेता ने

D. डॉक्टर ने

Ans- A. जाट ने

Q 8. ‘महदूद’ नज़रिया कैसा होता है?

A. विस्तृत

B. सीमित

C. मध्यम

D. निकृष्ट

Ans- A. विस्तृत

Q 9. ‘यक-साँ’ क्या होता है?

A. एक समान

B. अलग-अलग

C. विभाजित

D. मज़बूत

Ans- A. एक समान

Q 10. किस सन् के बाद आर्थिक मंदी पैदा हुई थी?

A. बीस

B. तीस

C. चालीस

D. पचास

Ans- B. तीस

पंडित अलोपीदीन की गाड़ियां कहां क्यों और किसने रोकी थी?

पंडित अलोपीदीन इलाके के सबसे प्रतिष्ठित जमींदार थे। लाखों रुपयों का व्यापार था। वंशीधर ने जब जाँच किया तब पता चला कि गाड़ियों में नमक के ढेले के बोरे हैं। उन्होंने गाड़ियाँ रोक लीं।

पंडित अलोपीदीन कहाँ के रहने वाले थे?

पंडित अलोपीदीन दातागंज के निवासी थे

पंडित अलोपीदीन ने वंशीधर को नौकरी पर क्यों रखा?

दारोगा वंशीधर गैरकानूनी कार्यों की वजह से पंडित अलोपीदीन को गिरफ्तार करता है, लेकिन कहानी के अंत में इसी पंडित अलोपीदीन की सहायता से मुग्ध होकर उसके यहाँ मैनेजर की नौकरी को तैयार हो जाता है।

पंडित अलोपीदीन कौन थे?

पंडित आलोपीदीन एक व्यापारी हैं। अपने व्यापार को चलाने के लिए वे हर अच्छे-बुरे तरीका का प्रयोग करते हैं। वंशीधर को अपने मार्ग से हटाने के लिए वे सारे हथकंडे प्रयोग में लाते हैं। ईमानदार वंशीधर उनके आगे ठहर नहीं पाता और उसे अपने पद से हटा दिया जाता है।