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गीता का अर्थ क्या है? इसे कुछ लोग गीतोपनिषद् क्यों कहते है? क्या गीतोपनिषद् कहना सही है? श्रीमद्भगवद्गीता को गीता क्यों कहते है? प्रश्न थोड़े अजीब है, लेकिन कई लोग इन प्रश्नों का उत्तर जानना चाहते है। इसलिए हम इन प्रश्नों पर एक-एक करके पर विस्तार से चर्चा करेंगे। गीता का शाब्दिक अर्थ क्या है?गीता शब्द का कोई अर्थ नहीं है, चाहे आप हिन्दी शब्दकोश में खोज करें या संस्कृत के विद्वान से पूछें। सब यही कहेंगे कि गीता शब्द का कोई अर्थ नहीं है क्योंकि गीता जैसा कोई शब्द नहीं है। जैसे संगीत शब्द का अर्थ है, लेकिन संगीता शब्द का अर्थ कुछ भी नहीं है। इसी तरह गीत शब्द का अर्थ है लेकिन गीता का नहीं। हाँ! कुछ लोग ये अवश्य कहेंगे की गीता का अर्थ गीत होता है क्योंकि गीता के शब्द छन्द बद्ध है और श्री कृष्ण ने इसे गाया है इसलिए गीता का अर्थ गीत है। लेकिन ये सत्य नहीं है। क्या गीता का अर्थ गीत है?गीत में आ की मात्रा जोड़ देने से गीता शब्द बनता है। ध्यान दे, यदि गीत का अर्थ भी वही है जो गीता का है, तो फिर गीता शब्द की कोई आवश्यकता नहीं है? शब्दों में कभी ‘आ’ जोड़कर कभी ‘ई’ जोड़कर शब्दों का नवनिर्माण क्यों करे? जब पहले ही गीत शब्द है तो गीत ही होना चाहिए। श्रीमद्भगवद्गीत यह लिखना चाहिए था, इसमें आ की मात्रा निरर्थक क्यों जोड़ा जाये? लेकिन गीता शब्द को हम अस्वीकार भी नहीं कर सकते क्योंकि पुराणों के श्लोकों में गीता शब्द मिलता है। अतः प्रश्न बड़ा गंभीर है, हमें गीता शब्द को स्वीकार भी करना है और गीता शब्द का कोई अर्थ नहीं है यह भी स्वीकार करना है। इसका समाधान आगे इस लेख में हो जायेगा। क्या श्रीमद्भगवद्गीता, गीतोपनिषद् है?श्रीमद्भगवद्गीता ही गीतोपनिषद् है। यह दोनों ही नाम महाभारत के या कहें गीता के पुष्पिका से लिया गया है। प्रत्येक अध्याय की समाप्ति में पुष्पिका दी जाती है। पुष्पिका अर्थात् अध्याय के अंत में वह वाक्य जिसमें कहे हुए प्रसंग की समाप्ति सूचित की जाती है। यह आपको लगभग सभी ग्रंथ में मिलेगी और यह महाभारत एवं गीता के सभी अध्यायों में भी है। महाभारत भीष्म पर्व का पच्चीसवाँ अध्याय ही श्रीमद्भगवद्गीता का पहला अध्याय है। दोनों ही ग्रंथों में इस प्रकार पुष्पिका दिया गया हैं- इति श्रीमन्महाभारते भीष्मपर्वणि श्रीमद्भगवद्गीतापर्वणि श्रीमद्भगवद्गीतासूपनिषत्सु ब्रह्मविद्यायां योगशास्त्रे श्रीकृष्णार्जुनसंवादेऽर्जुनविषादयोगो नाम प्रथमोऽध्यायः॥१॥ अर्थात् :- इस प्रकार श्रीमहाभारत भीष्मपर्व के श्रीमद्भगवद्गीता पर्व के अन्तर्गत ब्रह्मविद्या एवं योगशास्त्ररूप श्रीमद्भगवद्गीतोपनिषद्, श्रीकृष्णार्जुन संवाद में ‘अर्जुन विषाद योग’ नामक पहला अध्याय पूर्ण हुआ। भीष्मपर्व में पच्चीसवाँ अध्याय पूर्ण हुआ। ॐ तत्सदिति श्रीमद्भगवद्गीतासूपनिषत्सु ब्रह्मविद्यायां योगशास्त्रे अर्थात् :- इस प्रकार ऊँ, तत्, सत्- इन भगवन्नामों के उच्चारण पूर्वक ब्रह्मविद्या एवं योगशास्त्ररूप श्रीमद्भगवद्गीतोपनिषद् श्रीकृष्णार्जुन संवाद में ‘अर्जुन विषाद योग’ नामक पहला अध्याय पूर्ण हुआ। उपर्युक्त महाभारत और गीता दोनों की पुष्पिका एक सी है एवं दोनों में ‘श्रीमद्भगवद्गीतासूपनिषत्सु’ (श्रीमद्भगवद्गीतोपनिषद्) लिखा मिलता है। वेदव्यास जी ने श्रीमद्भगवद्गीतोपनिषद् लिखा क्योंकि इसमें उपनिषदों का सारतत्त्व संग्रहीत है। अतः इस ग्रंथ का यह नाम स्वयं महर्षि वेदव्यास जी ने दिया है। श्रीमद्भगवद्गीता को गीता क्यों कहते है?श्रीमद्भगवद्गीतोपनिषद् का संधि विच्छेद करे तो श्रीमद्भगवद्गीत + उपनिषद् होता है। इसमें ‘गीत’ का शब्दरूप ‘नपुंसकलिंग’ है और ‘उपनिषद्’ का शब्दरूप ‘स्त्रीलिंग’ है। अतः ‘उपनिषद्’ शब्द ‘स्त्रीलिंग’ है इसलिए उसका विशेषण होने से ‘गीता’ शब्द ‘स्त्रीलिंग’ हो गया। इसीलिए श्रीमद्भगवद्गीता कहा जाता है। यदि अपने उपर्युक्त महाभारत के पुष्पिका को पढ़ा होगा तो उसमें ‘श्रीमद्भगवद्गीतापर्वणि’ शब्द आता है। यहा वेदव्यास जी ने श्रीमद्भगवद्गीतोपनिषद् को छोटा कर “श्रीमद्भगवद्गीता+पर्वणि” अर्थात् “श्रीमद्भगवद्गीता पर्व” शब्द लिखा है। ‘श्रीमद्भगवद्गीता’ को छोटे में लिखे तो यह ‘गीता’ शब्द होता है। इसलिए पुराणों में वेदव्यास जीने और कुछ आचार्यों ने अपने ग्रंथों के श्लोकों में श्रीमद्भगवद्गीता या गीतोपनिषद् न लिखते हुए केवल गीता भी लिखा है। January 6, 2016 Benifits of Gangajal, Gangajal, Gangajal with copper vessel, India, Indian culture, Indian Mythology, Indian River, News, Pride of india, Religious, Uttarkashi Minerals क्या आप जानते हैं कि गीता को गीता क्यों कहते हैं?हिंदू पंचांग के अनुसार, मार्गशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को गीता जयंती का पर्व मनाया जाता है।एक-दूसरे के प्राणों के प्यासे कौरवों और पांडवों के बीच युद्ध शुरू होने से पहले योगीराज भगवान श्रीकृष्ण ने 18 अक्षौहिणी सेना के बीच मोह में फंसे और कर्म से विमुख अर्जुन को गीता का उपदेश दिया था। श्रीकृष्ण ने अर्जुन को
छंद रूप में यानी गाकर उपदेश दिया, इसलिए इसे गीता कहते हैं। चूंकि उपदेश देने वाले स्वयं भगवान थे, अत: इस ग्रंथ का नाम भगवद्गीता पड़ा। भगवद्गीता में कई विद्याओं का वर्णन है, जिनमें चार प्रमुख हैं- अभय विद्या, साम्य विद्या, ईश्वर विद्या और ब्रह्म विद्या। माना गया है कि अभय विद्या मृत्यु के भय को दूर करती है। स्वयं भगवान ने दिया है गीता का उपदेश विश्व के किसी भी धर्म या संप्रदाय में किसी भी ग्रंथ की जयंती नहीं मनाई जाती।
हिंदू धर्म में भी सिर्फ गीता जयंती मनाने की परंपरा पुरातन काल से चली आ रही है क्योंकि अन्य ग्रंथ किसी मनुष्य द्वारा लिखे या संकलित किए गए हैं, जबकि गीता का जन्म स्वयं श्रीभगवान के श्रीमुख से हुआ है- +919811304305 www.gangajal.com / skype @ Gangajal –The Holy Water www.facebook.com/gangajalgangotri www.twitter.com/HolyGangajal Published by GangajalUttarkashi Mineral Corporation at Aungi, Gangotri Valley, Uttarkashi, is the only company duly licensed, approved and authorized by Uttarakhand Government, to pack the holy Gangajal in its purest form. From drawing of Gangajal from the sacred river Ganges till packing, Gangajal is kept untouched from human hands. View all posts by Gangajal Post navigationभगवत गीता को गीता ही क्यों कहा जाता है?गीता का नाम गीता क्यों पड़ा? गीता का अर्थ है गीत। गीता शब्द का अर्थ है गीत और भगवद शब्द का अर्थ है भगवान, अक्सर भगवद गीता को भगवान का गीत कहा जाता है। यह भगवान का गीत है इसलिए गीता का नाम गीता ही पड़ा।
गीता का पूरा नाम क्या है?महाभारत युद्ध आरम्भ होने के ठीक पहले भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को जो उपदेश दिया वह श्रीमद्भगवद्गीता के नाम से प्रसिद्ध है। यह महाभारत के भीष्मपर्व का अंग है।
गीता का शाब्दिक अर्थ क्या होता है?आपको बता दें कि गीता नाम का अर्थ हिंदू, गीत, कविता, भगवद गीता, दर्शन और नैतिकता पर प्रसिद्ध हिंदू धार्मिक ग्रंथ की पवित्र पुस्तक होता है।
गीता की उत्पत्ति कैसे हुई?भगवान श्रीकृष्ण के श्री मुख से प्रकट हुई श्रीमद्भगवद गीता की उत्पत्ति देव भाषा संस्कृत में हुई। अद्वैतवाद के संस्थापक महर्षि वेदव्यास जी द्वारा इसकी रचना की गई । गीता जी की गणना उपनिषदों में की जाती है। गीता जी के ज्ञान को अर्जुन के अतिरिक्त संजय ने सुना और धृतराष्ट्र को सुनाया।
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