By: RF competition Copy Share (209) Show प्रगतिवाद– विशेषताएँ एवं प्रमुख कविNov 27, 2021 01:11PM 11094 प्रगतिवाद का परिचयहिंदी साहित्य के इतिहास में प्रगतिवाद को भौतिक जीवन से उदासीन, आत्मनिर्भर, सूक्ष्म और अंतर्मुखी प्रवृत्तियों के विरुद्ध प्रतिक्रिया के रूप में व्यक्त किया गया है। अन्य शब्दों में कहा जाये, तो प्रगतिवाद लोक के विरुद्ध स्थूल जगत की तार्किक प्रतिक्रिया है। प्रगतिवाद को मार्क्स के द्वंदात्मक भौतिकवाद से प्रेरणा प्राप्त हुई थी। सामाजिक चेतना और भावबोध प्रगतिवादी काव्य की अनूठी विशेषता है। प्रगतिवादी काव्य में सामाजिक विचारधारा के साम्यवादी स्वर को महत्वपूर्ण स्थान प्रदान किया गया है। कुछ विद्वानों का कथन है कि राजनीति के क्षेत्र में जो साम्यवाद है, साहित्य के क्षेत्र में वही प्रगतिवाद है। मार्क्सवादी विचारधारा से प्रेरित प्रगतिवादी कवि आर्थिक विषमता को वर्तमान दुःख और अशांति का कारण बताते थे। आर्थिक विषमता के परिणामस्वरूप समाज दो भागों में बँट चुका था– पूँजीपति वर्ग या शोषक वर्ग तथा शोषित वर्ग या सर्वहारा वर्ग। प्रगतिवाद अर्थ, अवसर तथा संसाधनों के समान वितरण के द्वारा ही समाज की उन्नति में विश्वास रखता है। सामान्य जन की प्राण प्रतिष्ठा, श्रम की गरिमा, सामाजिक लोगों के सुख-दुख आदि को प्रस्तुत करना प्रगतिवादी काव्य का प्रमुख लक्ष्य है। प्रगतिवादी काव्य में शोषित वर्ग के प्रति सहानुभूति का भाव व्यक्त किया गया है। यह काव्य उपयोगितावाद और भौतिक दर्शन से प्रभावित है। इस कारण यह प्रगतिवादी काव्य नैतिकता और भावुकता की अपेक्षा बुद्धि व विवेक पर अधिक विश्वास रखता है। हिन्दी के इन 👇 प्रकरणों को भी पढ़िए। प्रगतिवादी काव्य-धारा, कला की अपेक्षा जीवन को, व्यक्ति की अपेक्षा समाज को एवं स्वानुभूति की अपेक्षा सर्वानुभूति को प्रधानता देती है। प्रगतिवादी चेतना के बीज छायावाद में ही पल्लवित होने लगे थे, परंतु तीसरे तथा चौथे दशक में प्रगतिशील आंदोलन ने काव्य को सामाजिकता की ओर उन्मुख किया। फलस्वरूप यथार्थ से सम्पृक्ति, जन-जीवन से संलग्नता, माननीय समस्याओं से सीधे साक्षात्कार, शोषितों के प्रति सहानुभूति का भाव आदि प्रगतिवादी काव्य के प्रमुख विषय बन गए। छायावादी युग के काव्य में केवल किसान वर्ग के प्रति सहानुभूति को व्यक्त किया जाता था, जबकि प्रगतिवादी युग के काव्य में मजदूरों के प्रति भी सहानुभूति व्यक्त की गई। हिन्दी के इन 👇 प्रकरणों को भी पढ़िए। प्रगतिवाद की विशेषताएँप्रगतिवादी काव्य की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं– हिन्दी के इन 👇 प्रकरणों को भी पढ़िए। प्रगतिवादी कवि एवं उनकी रचनाएँप्रगतिवाद के प्रमुख कवि एवं उनकी रचनाएँ निम्नलिखित हैं– हिन्दी के इन 👇 प्रकरणों को भी पढ़िए। आशा है, उपरोक्त जानकारी आपके लिए उपयोगी होगी। I hope the above information will be useful and important. प्रगतिवाद से आप क्या समझते?प्रगतिवाद का अर्थ है ”समाज, साहित्य आदि की निरन्तर उन्नति पर जोर देने का सिद्धांत। ' प्रगतिवाद छायावादोत्तर युग के नवीन काव्यधारा का एक भाग हैं। यह उन विचारधाराओं एवं आन्दोलनों के सन्दर्भ में प्रयुक्त किया जाता है जो आर्थिक एवं सामाजिक नीतियों में परिवर्तन या सुधार के पक्षधर हैं।
प्रगतिवाद से आप क्या समझते हैं प्रगतिवाद कालीन साहित्य की प्रवृत्तियों पर प्रकाश डालिए?प्रगतिवाद काव्य मे शोषितों के प्रति सहानुभूति देखने को मिलती है। प्रगतिवादी कवियों ने व्यक्तिगत सुख-दुःख के भावों की अपेक्षा समाज की गरीबी, भुखमरी, अकाल, बेरोजगारी आदि सामाजिक समस्याओं की अभिव्यक्ति पर बल दिया। प्रगतिवादी काव्य मे "कला को कला के लिए" न मानकर कला को जीवन के लिए' का सिद्धांत अपनाया गया है।
प्रगतिवाद के जनक कौन है?प्रगतिवादी काव्य के प्रवर्तक हैं सुमित्रानंदन पंत : डॉ सिद्धेश्वर
प्रगतिवाद की दो विशेषताएं क्या है?ये कवि मानवता की शक्ति में विश्वास रखते हैं . प्रगतिवादी कवि कविताओं के माध्यम से मानवतावादी स्वर बिखेरता है . वह जाति - पाति, वर्ग भेद, अर्थ भेद से मानव को मुक्त करके एक मंच पर देखना चाहते हैं .
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