Q.23: फूल के विभिन्न भागों के चित्र बनाकर वर्णन करो। Show उत्तर : फूल-पुष्पी पौधों में फूल लैंगिक जनन में सहायता करता है। फूलों की सहायता से बीज बनते हैं। फूल में एक आधारी भाग होता है जिस पर फूल के सभी भाग लगे होते हैं। इसे पुष्पासन कहते हैं। फूल के मुख्य चार भाग होते हैं-
पुष्पीय पौधों में पुष्प एक अत्यन्त महत्त्वपूर्ण अंग है। आकारकीय (Morphological) रूप से पुष्प एक रूपान्तरित प्ररोह (स्तम्भ) है जिस पर गाँठे तथा रूपान्तरित पुष्पी पत्तियाँ लगी रहती हैं। पुष्प प्रायः तने या शाखाओं के शीर्ष अथवा पत्ती के अक्ष (Axil) में उत्पन्न होकर प्रजनन (Reproduction) का कार्य करती है तथा फल एवं बीज उत्पन्न करता है। पुष्प की रचना: पुष्प एक डंठल द्वारा तने से सम्बद्ध होता है। इस डंठल को वृन्त या पेडिसेल (Pedicel) कहते हैं। वृन्त के सिरे पर स्थित चपटे भाग को पुष्पासन या थेलामस (Thalamus) कहते हैं। इसी पुष्पासन पर पुष्प के विविध पुष्पीय भाग (Floral Parts) एक विशेष प्रकार के चक्र (Cycle) में व्यवस्थित होते हैं। पुष्प के चार मुख्य भाग होते हैं-
बाह्य दलपुंज एवं दलपुंज को पुष्प का सहायक अंग या अनावश्यक भाग तथा पुमंग एवं जायांग को पुष्प का आवश्यक भाग कहा जाता है। पुमंग एवं जायांग पुष्प के वास्तविक जनन भाग हैं। पुमंग पुष्प का नर जनन भाग तथा जायांग मादा जनन भाग है।
पुतन्तु पतला सूत्रनुमा भाग होता है जो पुंकेसर को पुष्पासन से जोड़ता है। पुंकेसर में एक द्विपालिक (bilobed) रचना होती है जिसे परागकोष (Anthers) कहते हैं। परागकोष में चार कोष्ठ होते हैं, जिन्हें परागपुट (Pollen sacs) कहते हैं । परागपुट में ही परागकण (Pollen grains) की उत्पत्ति होती है। परागकण ही वास्तविक नर युग्मक (Male gamete) होता है। जब परागकोष पक जाते हैं तब वे फट जाते हैं और परागकण प्रकीर्णन के लिए तैयार होते हैं। योजी (Connective) पुतन्तु तथा परागकोष को जोड़ने का काम करता है।
बीजाण्ड की रचना (Structure of ovule): बीजाण्ड साधारणतः अण्डाकार होता है। यह एक बीजाण्ड वृन्त (Funiculus) द्वारा बीजाण्डसन से सम्बद्ध रहता है। जिस स्थान पर बीजाण्ड बीजाण्ड-वृन्त द्वारा लगा रहता है उस हिस्से को हाइलम (Hilum) कहते हैं। बीजाण्ड वृन्त आगे बढ़कर बीजाण्ड से मिलकर एक स्थान बनाता है, जिसे रैफे (Raphe) कहते हैं। बीजाण्ड के मुख्य भाग का बीजीण्डकाय (nucellus) कहते हैं, जो दो आवरणों से ढका रहता है- बाहरी अध्यावरण (Outer integument) एवं भीतरी अध्यावरण (Inner integument)l बीजाण्ड का जो भाग अध्यावरण से ढका नहीं रहता है, उस स्थान को बीजाण्ड द्वार (Micropyle) कहते हैं। बीजाण्ड द्वार के ठीक विपरीत हिस्से को कैलाजा (Chalaza) कहते हैं। बीजाण्ड के भीतर भ्रूणकोष (Embryosac) होता है। इस भ्रूणकोष के भीतर मादा युग्मक (अंडाणु) उपस्थित होता है। भ्रूणकोष परिपक्व होकर निषेचन (Fertilization) के लिए तैयार होता है। नोट:
पुष्प का कार्य पुष्प का मुख्य कार्य लिंगीय प्रजनन द्वारा फल तथा उसके अन्दर बीज का निर्माण करना है। परागण (Pollination): परागकणों (Pollengrains) के परागकोष (Anther) से मुक्त होकर उसी जाति के पौधे के जायांग (Gynoecium) के वर्तिकाग्र (stigma) तक पहुँचने की क्रिया को परागण कहते हैं। परागण के प्रकार Type of Pollination: परागण दो प्रकार के होते हैं-
परागण की विधियां (Methods of pollination): परागण की निम्नलिखित विधियां हैं–
निषेचन (Fertilization): परागण के पश्चात निषेचन की क्रिया प्रारम्भ होती है। परागनली (Pollen tube) बीजाण्ड (ovule) में प्रवेश करके बीजाण्डासन को भेदती हुई भ्रूणपोष (Endosperm) तक पहुँचती है और परागकणों को वहीं छोड़ देती है। इसके पश्चात् एक नर युग्मक एक अण्डकोशिका से संयोजन करता है। इसे ही निषेचन कहते हैं। अब निषेचित अण्ड (Fertilized egg) युग्मनज (zygote) कहलाता है। यह युग्मनज बीजाणुभिद की प्रथम इकाई है। निषेचन के पश्चात बीजाण्ड से बीज, युग्मनज से भ्रूण (embryo) तथा अण्डाशय से फल का निर्माण होता है। आवृत्तबीजी पौधों (Angiospermic plants) में निषेचन को त्रिक संलयन (Triple fusion) कहते हैं। निषेचन के पश्चात् पुष्प में होने वाले परिवर्तन: निषेचन के पश्चात् पुष्प में निम्नलिखित प्रकार के परिवर्तन देखने को मिलते हैं-
फल का निर्माण (Formation of Fruits): फल का निर्माण अण्डाशय (Ovary) से होता है। परिपक्व अण्डाशय को ही फल (Fruit) कहा जाता है। परिपक्व अण्डाशय की भित्ति फल-भित्ति (Pericarp) का निर्माण करती है। फल-भित्ति मोटी या पतली हो सकती है। मोटी फलभित्ति में प्रायः तीन स्तर हो जाते हैं। बाहरी स्तर को बाह्य फलभित्ति (Epicarp), मध्य स्तर को मध्य फलभिति (Mesocarp) तथा सबसे अन्दर के स्तर को अन्त:फलभिति (Endocarp) कहते हैं। फल के प्रकार: फल के मुख्यतः दो प्रकार होते हैं-
सम्पूर्ण फलों को तीन भागों में विभाजित किया गया है-
(a) सरस फल (succulent fruits)- इस प्रकार का सरल फल रसदार, गुदेदार तथा अस्फुटनशील होता है। जैसे- आम, नारियल आदि। सरस फल छ: प्रकार के होते हैं– (i) अष्ठिल फल (Drupe): जैसे- आम, बेर, नारियल, सुपारी आदि। (ii) पीपो (Pepo): जैसे- खीरा, ककड़ी, लौकी, तरबूज आदि। (iii) हेस्पिरीडियम (Hespiridium): जैसे- संतरा, मुसम्मी, नीबू आदि। (iv) बेरी (Berry): जैसे- टमाटर, अमरूद, मिर्च, अंगूर, केला आदि। (v) पोम (Pome): जैसे- सेब, नाशपाती आदि। (vi) बैलस्टा (Balausta): जैसे- अनार। (b) शुष्क फल (Dry fruits): यह नौ प्रकार का होता है- (i) कैरियोप्सिस (Caryopsis): जैसे- गेहूँ, मक्का, जौ, धान आदि। (ii) सिप्सेला (Cypsella): जैसे- गेंदा, सूर्यमुखी आदि। (iii) नट (Nut): जैसे- सिंघाड़ा, लीची, काजू आदि। (iv) फली (Legume or pod): जैसे- मटर, सेम, चना आदि। (v) सिलिक्यूआ (siliqua): जैसे- सरसों, मूली, आदि। (vi) कोष्ठ विदारक (Loculicidal): जैसे- भिण्डी, कपास, आदि। (vii) लोमेन्टम (Lomentum): बबूल, इमली, मूंगफली आदि। (viii) क्रेमोकार्प (Cremocarp): जैसे- सौंफ, जीरा, धनिया आदि। (ix) रेग्मा (Regma): जैसे- रेड़ी।
पुंजफल भी चार प्रकार के होते हैं- (i) बेरी का पुंजफल (Etaerio of berries): जैसे–शरीफा। (ii) अष्ठिल का पुंजफल (Etaerio of drupes): जैसे- रसभरी। (iii) फालिकिल का पुंजफल (Etaerio of folicles): जैसे- चम्पा, मदार, सदाबहार आदि। (iv) एकीन का पुंजफल (Etaerio of achenes): जैसे-कमल, स्ट्राबेरी आदि।
संग्रथित फल दो प्रकार के होते हैं- (i) सोरोसिस (sorosis): जैसे- शहतूत, कटहल, धनिया पुष्पासन एवं बीज (ii) साइकोनस (syconus): जैसे- बरगद, गूलर, सिंघाड़ा बीजपत्र अंजीर आदि। फल, पौधों के लिए लाभदायक है, क्योंकि यह बेल मध्य एवं अन्तः फलभित्ति तरुण बीजों की रक्षा करता है। यह बीजों के प्रकीर्णन टमाटर फलभिति एवं बीजाण्डसन (Dispersal) में सहायता करता है। फलों व उनके उत्पादन परिदल एवं बीज के अध्ययन को पोमोलॉजी (Pomology) कहते हैं।
अनिषेक फलन (Parthenocarpy): कुछ पौधों में बिना निषेचन के ही अण्डाशय से फल का निर्माण हो जाता है। इस तरह बिना निषेचित हुए फल के विकास को अनिषेक फलन कहते हैं। ऐसे फल बीजरहित होते हैं। जैसे- पपीता, नारंगी, अंगूर, अनन्नास आदि। पुष्प के चार भाग कौन कौन से होते हैं?पौधे के पुष्प के मुख्य रूप से चार भाग होते हैं-. बाह्य दल (Calyx). दल (Corolla). पुंकेसर या पुमंग (Androecium). स्त्रीकेसर या जायांग (Gynoecium or Pistil). पुष्प के कितने भाग होते हैं?UPLOAD PHOTO AND GET THE ANSWER NOW! Step by step video & image solution for [object Object] by Biology experts to help you in doubts & scoring excellent marks in Class 10 exams.
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पुष्प में कितने भाग होते है?. पुष्प कितने प्रकार के होते हैं?पुष्पीय उपांगो की संख्या के आधार पर पुष्प : त्रितयी पुष्प : जब पुष्पीय उपांग तीन के गुणक में हो तो उसे त्रितयी पुष्प कहते है। ... . सहपत्र की उपस्थिति के आधार पर पुष्प : सह्पत्री पुष्प : जब पुष्प के साथ सहपत्र उपस्थित हो तो उसे सह्पत्री पुष्प कहते है। ... . बाह्यदल , दल पुमंग व अंडाशय की सापेक्ष स्थिति के आधार पर. पुष्प के मुख्य कार्य कौन कौन से हैं?पुष्प का कार्य
पुष्प का मुख्य कार्य लिंगीय प्रजनन द्वारा फल तथा उसके अन्दर बीज का निर्माण करना है। परागण (Pollination): परागकणों (Pollengrains) के परागकोष (Anther) से मुक्त होकर उसी जाति के पौधे के जायांग (Gynoecium) के वर्तिकाग्र (stigma) तक पहुँचने की क्रिया को परागण कहते हैं।
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