राजस्थान का बिश्नोई समाजहम अपने आपको पर्यावरण के लिए समर्पित होने का स्वांग रचते रहे. ख़ास कर जब हम अपने मित्रों के साथ पिकनिक में जाया करते . वहां दूसरों द्वारा फैलाये हुए कचरे को इकठ्ठा कर उठा लाते. यह मेरी आदत नहीं थी, लगता है एक मजबूरी रही जिससे लोग मुझे पर्यावरण प्रेमी के रूप में जानें. अपने आप को इस तरह पर्यावरण के लिए संवेदनशील होने का भ्रम पाल रखा है. Show
पर्यावरण के लिए सजग और प्रकृति से घनिष्ट राजस्थान के बिश्नोई समाज के बारे में कुछ लिखने की चाहत एक अरसे से रही है परन्तु आज ऐसा कुछ हुआ कि लिखने की जरूरत ही नहीं पड़ी. यहाँ मैं उल्लेख करना चाहूँगा श्री राहुल सिंह के सिंहावलोकन में उनकी ताजा प्रविष्टि “फ़िल्मी पटना” का जहाँ उनके शब्दों के जादू से ही सिनेमास्कोप बन गया है. चित्रों की आवश्यकता ही नहीं है. शब्द अपने आप में सक्षम हैं इस बात से कोई विरोध नहीं है परन्तु चित्र भी उतने ही सक्षम होते हैं. यह चित्र श्री विजय बेदी के द्वारा काफी मशक्कत के बाद लिया गया है और श्री गौरव घोष जी के टिपण्णी से सहमति जताने के बाद के खोज बीन में यहाँ उपलब्ध हुआ था: http://sixteenbynine.co/thousand-words-in-snap एक और चित्र गूगल बाबा की मेहरबानी से मिला जिसे श्री हिमांशु व्यास ने लिया है. हिन्दुस्थान टाइम्स में वे छायाकार हैं.रतन सिंह शेखावत जी के द्वारा प्रेषित मेल में निहित सुझाव का सम्मान करते हुए एक वीडिओ भी प्रस्तुत है: This entry was posted on अक्टूबर 19, 2010 at 10:31 अपराह्न and is filed under Ecology, Environment, History, Khejarali, Rajasthan, Religion, Social, Vishnoi. You can follow any responses to this entry through the RSS 2.0 feed. You can leave a response, or trackback from your own site. यादों के झरोखे से : हरियाणा में बसे बिश्नोई समाज की महत्वपूर्ण जानकारी | अधिवक्ता मनीराम बिश्नोईबिश्नोई पन्थ 'विश्नोई' एक धर्म है जिसकी स्थापना गुरु जम्भेश्वरजी (जाम्बोजी) ने वर्तमान राजस्थान के जिला बीकानेर को तहसौल, नोखा के गाँव तालवा (अब मुकाम) की सीमा में स्थित रेतीले पहाड़ 'सम्भराथल' पर कार्तिक बदी अष्टमी, विक्रमी संवत् 1542 (सन 1485) को की थी। इस पन्थ में सभी जातियों के लोग शामिल हुए हैं परन्तु अस्सी प्रतिशत जाट जाति से विश्नोई बने थे। शेष बीस प्रतिशत में ब्राह्मण, राजपूत, अहौर, कुरमी, वैश्य, सुनार, गायणा, सुधार, नाई, त्यागी, कसबी, बेहड़, मेघवाल हैं। हरियाणा का बिश्नोई समाजचूंकि हरियाणा के बिश्नोइयों के पूर्वज राजस्थान से आये थे, अत: उनकी बोली और पहनावा राजस्थानी है। तीन दशक पहले तक बिश्नोई पुरुष सफेद कपड़े पहनते थे तथा महिलाएँ लाल रंग के वस्त्र पहना करती थी। सर्दियों में महिलाएँ धावला (लाल रंग का ऊनी घाघरा) और लाल रंग का ऊनी लूंकार (ऊनी मोटी चद्दर) ओढ़ा करती थी। बिश्नोइयों में ' करेवा प्रथा' प्रचलित है परन्तु करेवा केवल देवर के साथ किया जाता है। यानी जेठ के साथ करेवा नहीं होता है। बिश्नोइयों में मुर्दा को ज़मीन में गाड़ने की प्रथा है। बिश्नोईजन प्रतिदिन प्रातः हवन करते हैं। महिलाएँ सायं गुरुजी की जोत घी में जलाती हैं। बिश्नोई एक ईश्वर (विष्णु) को मानते हैं तथा मूर्ति पूजा नहीं करते। सभी बिश्नोई मन्दिरों में रोजाना हवन करने की परम्परा है। इस पन्थ के लोग अपने गांवों की सीमा में किसी को शिकार नहीं करने देते और न ही हरा वृक्ष काटने देते हैं। पर्यावरण प्रेम के कारण विश्नोई पन्थ एक मिसाल है। इनके धर्म का एक मूल सिद्धान्त है कि 'जीव दया पालणी, रूंख लीला (हरा) न घावो'। श्रीमती रामीदेवी धर्मपत्नी श्री रामेश्वर बिश्नोई निवासी नाढोड़ी, जिला फतेहाबाद ने अपने खेत में मिले लावरिस हिरण के बच्चे को अपने शिशु-पुत्र के साथ दूसरे स्तन का दूध पिलाकर बड़ा किया। इसी प्रकार गांव धांगड़ जिला फतेहाबाद की श्रीमती रामेश्वरी बिश्नोई ने अपने पिता के खेत में मिले लावारिस हिरण के बच्चे को अपने स्तन से दूध पिलाकर पाला-पोसा। उल्लेखनीय है कि बिश्नोइयों की आबादी वाले क्षेत्रों में हिरण प्रचुर संख्या में हैं।
हरियाणा में बिश्नोई राजस्थान की किस-किस जगह से आकर बसेहरियाणा प्रदेश की स्थापना के समय जो जिला हिसार था, केवल इसी जिले में बिश्नोई पन्थ के लोग आबाद थे। वर्तमान में हिसार जिले से तीन अन्य जिलों का निर्माण हुआ- भिवानी, सिरसा तथा फतेहाबाद सन 1803 में इस क्षेत्र पर अंग्रेजों की सत्ता कायम हुई तब दो जिले-हिसार तथा सिरसा (सन 1837 में) बनाये गये। सिरसा जिले को सन् 1884 में भंग कर दिया गया और उप-मण्डल सिरसा को जिला हिसार में ही मिला दिया गया जबकि उप-मण्डल फाजिल्का को जिला फिरोजपुर में मिला दिया गया। हरियाणा में बिश्नोईजन राजस्थान की पूर्व रियासतों-जैसलमेर, मारवाड़, जोधपुर और बीकानेर में अकाल पड़ने पर तत्कालीन क्षेत्र हिसार और सिरसा में बस गये। स्वामी ब्रह्मानन्द ने अपनी पुस्तक 'इतिहास प्रदीप' (रचना सन् 1926 तथा प्रकाशन सन् 2009) के पृष्ठ 8 पर लिखा है कि मारवाड़ (जोधपुर) राज्य के नैणावास, बिचपड़ी, पोलावास आदि गाँवों के बिश्नोईजन सम्वत् 1703 विक्रमी (1646 ईस्वी) में पलायन करके कुछ समय अलवर राज्य में रहे और फिर दिल्ली सूबा (वर्तमान हरियाणा) के बहादुरगढ़ में रहे। उनमें से कुछ हिसार की तरफ चले गये और कुछ (संयुक्त प्रान्त) मेरठ, मुजफ्फरनगर और मुरादाबाद जिलों की तरफ चले गये। स्वर्गीय हवलदार धन्नाराम खोखर सरपंच टोकस कुल के बही भाट के बतलाये अनुसार सूचित किया कि उनके पूर्वजों ने गाँव तिलवासणी तहसील बिलाड़ा, जिला जोधपुर (राजस्थान) आकर सबसे पहले गाँव मोधवान (वर्तमान तहसील सिवानी, जिला भिवानी) आबाद किया। वहाँ कोई परिवार नहीं है क्योंकि वे सब वहाँ से पलायन कर गये बिधवान गाँववासी बरजांगी गोदारा (बिश्नोई) मूलवासी पल्ली वर्तमान जिला भिवानी में बिश्नोई आबाद हुए। बिश्नोईयों ने (लीलस कालवास (तहसील हिसार) को जाम्भा तहसील फलोदी जिला जोधपुर (राजस्थान) से पलायन करके आये हुए कालू जानी ने बसाया उसी गाँव से उनके साथ हुए जाणी, लाम्बा, जाखड़, गिल्ला आदि के बिश्नोईजन इस गाँव में आबाद हुए। बाद में कालू जाणी के वंशज कुशला सादूल अपने पूर्वज आजुजों के नाम गाँव आजपुर बसाया जिसका नाम प्रथम बन्दोबस्त समय अंग्रेज बन्दोबस्त अधिकारी ने बाबा आदम के नाम से बदलकर आदमपुर रख दिया। इस तरह बिश्नोई राजस्थान से आकर नये-नये गाँव बसाते रहे। गाँव खैरेको वर्तमान तहसील व जिला सिरसा को गाँव चौधरीवाली (वर्तमान तहसील आदमपुर) से आकर कड़वासरा गोत्र के बिश्नोइयों ने आबाद किया चौधरीवाली के कड़वासरे गाँव अयालकी तहसील फतेहाबाद में आबाद हुए और चौधरीवाली के कड़वासरों ने ही गाँव चमारखेड़ा वर्तमान तहसील सादुलशहर, जिला गंगानगर को आबाद किया। वहाँ कुएँ का पानी खारा होने से वे गाँव चौटाला (वर्तमान तहसील डबवाली, जिला सिरसा) से पानी ले जाया करते थे जो बारह कोस (छत्तीस किलोमीटर) पर था। गाँव पौथावास (निकट खेजड़ली, जिला जोधपुर) से पलायन करके आये हुए बैनोवाल गोत्र के बिश्नोइयों ने गाँव बुर्ज भंगु बसाया था। तमाम गाँव इनकी मिल्कियत है और यह हरियाणा का एक प्रसिद्ध गाँव है। इस गाँव के वासी चौधरी बृजलालजी बैनीवाल हरियाणा के प्रथम बिश्नोई थे जिन्होंने महेन्द्रा कॉलेज, पटियाला से 1933 ई. में बी.ए. पास किया था, तब यह कॉलेज कलकत्ता विश्वविद्यालय से जुड़ा हुआ था। चौधरी बृजलाल बाद में मारवाड़ (जोधपुर) रियासत की पुलिस में थानेदार भर्ती हुए और एस.पी. के पद से सेवानिवृत्त हुए। गाँव रामपुरा विश्नोइयाँ (तहसील डबवाली) पहले दादू पन्थियों की मिल्कियत में था जिसे गाँव असरावाँ (वर्तमान तहसील आदमपुर) से पलायन करके इस गाँव में आबाद हुए गोदारा गोत्र के बिश्नोइयों ने खरीद लिया। ये सभी गाँव बिश्नोइयों की मिल्कियत है। गाँव रूपाणा बिश्नोइयाँ को राजस्थान से पलायन करके आये हुए विश्नोइयों ने बसाया जो विश्नोइयों की मिल्कियत है। गाँव गंगा सिख-साधुओं की मिल्कियत है, जहाँ आबादी बिश्नोइयों की है। विशेषकर तरड़ गोत्र के बिश्नोईजन गाँव जसरासर (तत्कालीन बीकानेर रियासत) से पलायन कर यहाँ आबाद हुए हैं। गाँव जांडवाला बिश्नोइयाँ को गाँव रासीसर (तत्कालीन बीकानेर रियासत) से आये हुए सौगढ़ गोत्रीय विश्नोइयों ने आबाद किया, पूरा गाँव उनके स्वामित्व में है। गाँव चौटाला में धारणियाँ गोत्र में के विश्नोईजन बीकानेर रियासत के गाँव सांवतसर से आकर आबाद हुए। बाद में वे लोग संगरिया और रियासत भावलपुर (वर्तमान में पाकिस्तान) में आबाद हुए। अब भी कई गोत्रों के अनेक बिश्नोई आबाद है। हरियाणा से पलायन कर कुछ बिश्नोई परिवार वर्तमान तहसील अबोहर, जिला फिरोजपुर (पंजाब), वर्तमान राजस्थान के जिले श्रीगंगानगर और हनुमानगढ़ आबाद हुए तो प्रचुर संख्या में रियासत भावलपुर के जिला भावलनगर में आबाद हुए। पाकिस्तान बनने पर रियासत भावलपुर के अधिकांश बिश्नोई हरियाणा में पुनर्स्थापित हुए। राजस्थान के जिले श्रीगंगानगर व हनुमानगढ़ में कुछ आबाद हुए तो बहुत थोड़े से परिवार पंजाब में आबाद हुए। राजस्थान से पलायन करके आये हुए कई बिश्नोई परिवार हिसार नगर के पूर्वी भाग में आबाद हुए थे जहाँ वर्तमान में मोहल्ला सैनियान है। यहाँ रहते हुए शिकार के बारे उनका रोजाना मुसलमानों और अंग्रेजों से झगड़ा रहता था, अतः उन्होंने हिसार नगर का परित्याग कर दिया और अपनी सुविधानुसार अन्य गाँवों में बस गये। ठण्डी सड़क पर मनफूलसिंह नगर उस समय एक पूनिया गोत्रीय बिश्नोई परिवार द्वारा लगाये गये बाग की जगह पर बसाया गया है। उस परिवार की काफी जमीन बाद में अर्बन एस्टेट नम्बर दो विकसित करने हेतु अधिग्रहण कर लो। (गाँव लांधड़ी सुखलम्बरान तहसील हिसार के पूनिया परिवार उसी बिश्नोई के वंशज हैं।) हिसार नगर में वर्ष 1947 में केवल चार विश्नोई परिवारों के पास अपने मकान थे जबकि वर्तमान में यहाँ 1000 परिवार रहते हैं और 500 के अपने मकान हैं। नगर के मोहल्ला उदयपुरियां में बिश्नोई मन्दिर है जिसका परिसर अति विशाल है। मन्दिर के अतिरिक्त सभा भवन, पुस्तकालय तथा अनेक दुकानें हैं। तीस हजार व्यक्तियों के बैठने का विशदाकारीय प्रांगण है। इसकी स्थापना 1946 में हुई थी। शहर में ही जवाहरनगर के निकट दूसरा बिश्नोई मन्दिर स्थित है जिसमें गुरु जम्भेश्वर सीनियर सेकेण्डरी स्कूल संचालित किया जा रहा है। दोनों ही स्थान बिश्नोई सभा, हिसार (पंजीकृत 1947) की सम्पदा हैं और सम्पूर्ण व्यय का भार इस सभा द्वारा किया जा रहा है। बिश्नोई सभा, हिसार जून 1950 से ' अमर ज्योति' नामक मासिक पत्रिका का प्रकाशन कर रही है। मन्दिर में 'गुरु का भण्डारा' बारह मास चलता है। हरियाणा के बिश्नोईयों ने राजनैतिक, प्रशासनिक व अन्य क्षेत्रों में गाड़े झंडेजब बिश्नोईजन राजस्थान से पलायन कर हरियाणा में आबाद हुए तो उनका मुख्य व्यवसाय पशुपालन एवं कृषि था। इस क्षेत्र में बिश्नोईजन सबसे आगे थे। अब ये पशुपालन एवं खेती के अतिरिक्त विविध सेवाओं एवं अन्य व्यवसायों में है। हरियाणा के पृथ्वीराज विश्नोई, IAS आयुक्त पद पर, ओमप्रकाश धारणियां एक्सीयन, अशोक कुमार बिश्नोई एचसीएस, इन्द्रपाल बिश्नोई एचसीएस, भालसिंह बिश्नोई एचसीएस, हनुमानसिंह विश्नोई चीफ इंजीनियर एचएएल बंगलौर हैं। इसके अलावा सेना में कई वरिष्ठ-कनिष्ठ अधिकारी हैं। हरियाणा की राजनीति में समूचे समाज की भागीदारी है। मनीराम गोदारा पंजाब विधानसभा के सन 1956 में सदस्य, हरियाणा के बिजली और सिंचाई मन्त्री तथा गृहमंत्री रह चुके हैं। सहीराम बिश्नोई पंजाब विधानसभा के सदस्य रह चुके हैं। बारह सालों से भी अधिक समय तक हरियाणा के मुख्यमंत्री रहे चौ. भजनलाल केन्द्रीय कृषिमंत्री पद तक पहुंचे। इनके बड़े पुत्र हरियाणा के उप मुख्यमंत्री रहे हैं। इनके छोटे पुत्र कुलदीप बिश्नोई सांसद और उनकी धर्मपत्नी जसमाँ देवी हरियाणा की विधायक रही हैं। इनके भतीजे श्री दुड़ाराम इस समय हरियाणा के संसदीय सचिव है। पंचायतराज की इकाइयों में सैकड़ों बिश्नोई सदस्य हैं। ओमप्रकाश बिश्नोई हरियाणा लोक सेवा आयोग के सदस्य हैं। हरियाणा के वो शहर-गांव जहां बिश्नोई रहते हैं जिन गाँवों में नहरी सिंचाई होती है, वहाँ के ज्यादातर बिश्नोई अपने खेतों में ढाणी बनाकर निवास करते हैं। जिन गाँवों-शहरों में बिश्नोई पन्थ से सम्बद्ध लोग बहुतायत में रह रहे हैं, वे हैं
उपरोक्त के अलावा कुरुक्षेत्र के काली कम्बली आश्रम के पास श्रीविश्नोई धर्मशाला एवं मन्दिर हैं।पंचकूला के सेक्टर 15 में बिश्नोई धर्मशाला एवं मन्दिर का निर्माण हुआ है। बिश्नोई धर्म के संस्थापक गुरु जम्भेश्वर जी का जन्मदिन भादवा बदी अष्टमी, (1451 ईस्वी) है। प्रतिवर्ष गुरु जन्माष्टमी महोत्सव श्री बिश्नोई मन्दिर हिसार में धूमधाम से मनाया जाता है जिसमें हजारों की संख्या में बिश्नोई पन्थ के लोग सम्मिलित होते हैं।
Join us on Whatsapp लेखक के बारे में पूरे भारत में बिश्नोई की जनसंख्या कितनी है?अधिकांश बिश्नोई जीवन यापन के लिए कृषि और पशुपालन करते हैं. भारत में इनकी कुल जनसंख्या 10 लाख के करीब है. यह मुख्य रूप से राजस्थान में पाए जाते हैं.
बिश्नोई समाज कौन सी कास्ट में आता है?"बिश्नोई" शब्द की उत्पति 20(बीस)+9(नौ) = बिश्नोई से हुई है। कई मान्यताओं के अनुसार श्री गुरु जम्भेश्वर भगवान विष्णु के अवतार माने गए है इनसे बना 'विष्णोई' शब्द कालातंर में परिवर्तित होकर विश्नोई या बिश्नोई हो गया। अधिकांश बिश्नोई जाट राजपूत जाति से बिश्नोई बने है।
बिश्नोई जनजाति कहाँ निवास करते हैं?बिश्नोई अपने आराध्य गुरु जम्भेश्वर के बताए 29 नियमों का पालन करते हैं. इनमें एक नियम वन्य जीवों की रक्षा और वृक्षों की हिफाजत से जुड़ा है. बिश्नोई समाज के लोग सिर्फ रेगिस्तान तक ही महदूद नहीं है. वे राजस्थान के अलावा हरियाणा, पंजाब, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में भी आबाद हैं.
बिश्नोई में कितनी जाती है?बिश्नोई (विश्नोई) हिन्दू धर्म का पंथ है। इस पंथ के संस्थापक जाम्भोजी महाराज है। जाम्भोजी महाराज द्वारा बताये 29 नियमों का पालन करने वाला बिश्नोई है।
|