Ras Hindi Grammar (रस), Ras Class 10 Explanation, Notes, Difficult Word meaning
Show
Ras Vichar – रस विचारIn this lesson, we will study Hindi Grammar topic for CBSE class 10 Hindi – “Ras”. We will cover definition of ras (रस का अर्थ), parts of ras (रास के अंग), types of ras (रस के प्रकार). Examples of all types of ras have been explained. See Video for Explanation and Summary of the Ras VicharTop Ras Definition – रस का अर्थरस का शाब्दिक अर्थ है ‘आनन्द’। काव्य को पढ़ने या सुनने से जिस आनन्द की अनुभूति होती है, उसे ‘रस’ कहा जाता है।रस का सम्बन्ध ‘सृ’ धातु से माना गया है। जिसका अर्थ है – जो बहता है, अर्थात जो भाव रूप में हृदय में बहता है उसी को रस कहते है। रस को ‘काव्य की आत्मा’ या ‘प्राण तत्व’ माना जाता है। रस उत्पत्ति को सबसे पहले परिभाषित करने का श्रेय भरत मुनि को जाता है। उन्होंने अपने ‘नाट्यशास्त्र’ में आठ प्रकार के रसों का वर्णन किया है।भरतमुनि ने लिखा है- विभावानुभावव्यभिचारी- संयोगद्रसनिष्पत्ति अर्थात विभाव, अनुभाव तथा संचारी भावों के संयोग से रस की निष्पत्ति होती है। Parts of Ras – रस के अवयवरस के चार अवयव या अंग हैं:- 1) स्थायी भाव 2) विभाव 3) अनुभाव 4) संचारी या व्यभिचारी भाव स्थायी भाव स्थायी भाव का मतलब है प्रधान भाव। प्रधान भाव वही हो सकता है जो रस की अवस्था तक पहुँचता है। साहित्य में वे मूल तत्व जो मूलतः मनुष्यों के मन में प्रायः सदा निहित रहते और कुछ विशिष्ट अवसरों पर अथवा कुछ विशिष्ट कारणों से स्पष्ट रूप से प्रकट होते हैं। काव्य या नाटक में एक स्थायी भाव शुरू से आख़िरी तक होता है। स्थायी भावों की संख्या 9 मानी गई है। स्थायी भाव ही रस का आधार है। एक रस के मूल में एक स्थायी भाव रहता है। अतएव रसों की संख्या भी 9 हैं, जिन्हें नवरस कहा जाता है।मूलत: नवरस ही माने जाते हैं। बाद के आचार्यों ने 2 और भावों वात्सल्य और भगवद विषयक रति को स्थायी भाव की मान्यता दी है। इस प्रकार स्थायी भावों की संख्या 11 तक पहुँच जाती है और तदनुरूप रसों की संख्या भी 11 तक पहुँच जाती है। शृंगार रस में ही वात्सल्य और भक्ति रस भी शामिल हैं |
विभाव साहित्य में, वह कारण जो आश्रय में भाव जाग्रत या उद्दीप्त करता हो। स्थायी भावों के उद्बोधक कारण को विभाव कहते हैं। विभाव दो प्रकार के होते हैं-
आलंबन विभाव जिसका आलंबन या सहारा पाकर स्थायी भाव जगते हैं, आलंबन विभाव कहलाता है। आलंबन विभाव के दो पक्ष होते हैं:-
जिसके मन में भाव जगे वह आश्रयालंबन तथा जिसके प्रति या जिसके कारण मन में भाव जगे वह विषयालंबन कहलाता है। उदाहरण : यदि राम के मन में सीता के प्रति प्रेम का भाव जगता है तो राम आश्रय होंगे और सीता विषय। उद्दीपन विभाव जिन वस्तुओं या परिस्थितियों को देखकर स्थायी भाव उद्दीप्त होने लगता है उद्दीपन विभाव कहलाता है। जैसे- चाँदनी, कोकिल कूजन, एकांत स्थल, रमणीक उद्यान आदि। अनुभाव वे गुण और क्रियाएँ जिनसे रस का बोध हो। मनोगत भाव को व्यक्त करने वाले शरीर-विकार अनुभाव कहलाते हैं। अनुभावों की संख्या 8 मानी गई है- (1) स्तंभ (2) स्वेद (3) रोमांच (4) स्वर-भंग (5) कम्प (6) विवर्णता (रंगहीनता) (7) अश्रु (8) प्रलय (संज्ञाहीनता/निश्चेष्टता) । संचारी या व्यभिचारी भाव मन में संचरण करने वाले (आने-जाने वाले) भावों को संचारी या व्यभिचारी भाव कहते हैं, ये भाव पानी के बुलबुलों के सामान उठते और विलीन हो जाने वाले भाव होते हैं। संचारी भावों की कुल संख्या 33 मानी गई है- Note (नोट) – (1) शृंगार रस को ‘रसराज/ रसपति’ कहा
जाता है।
Types of Ras – रस के प्रकाररस के ग्यारह भेद होते है- (1) शृंगार रस (2) हास्य रस (3) करूण रस (4) रौद्र रस (5) वीर रस (6) भयानक रस (7) बीभत्स रस (8) अदभुत रस (9) शान्त रस (10) वत्सल रस (11) भक्ति रस । श्रृंगार रस नायक नायिका के सौंदर्य तथा प्रेम संबंधी वर्णन को श्रंगार रस कहते हैं श्रृंगार रस को रसराज या रसपति कहा गया है। इसका स्थाई भाव रति होता है नायक और नायिका के मन में संस्कार रूप में स्थित रति या प्रेम जब रस कि अवस्था में पहुँच जाता है तो वह श्रंगार रस कहलाता है इसके अंतर्गत सौन्दर्य, प्रकृति, सुन्दर वन, वसंत ऋतु, पक्षियों का चहचहाना आदि के बारे में वर्णन किया जाता है। श्रृंगार रस – इसका स्थाई भाव रति है उदाहरण
– भरे भौन में करत है, नैननु ही सौ बात श्रंगार के दो भेद होते हैं संयोग श्रृंगार जब नायक नायिका के परस्पर मिलन, स्पर्श, आलिगंन, वार्तालाप आदि का वर्णन होता है, तब संयोग शृंगार रस होता है। उदाहरण – वियोग श्रृंगार जहाँ पर नायक-नायिका का परस्पर प्रबल प्रेम हो लेकिन मिलन न हो अर्थात् नायक – नायिका के वियोग का वर्णन हो वहाँ वियोग रस होता है। वियोग का स्थायी भाव भी ‘रति’ होता है। जैसे निसिदिन बरसत नयन हमारे, सदा रहति पावस ऋतु हम पै जब ते स्याम सिधारे॥ हास्य रस हास्य रस मनोरंजक है। हास्य रस नव रसों के अन्तर्गत स्वभावत: सबसे अधिक सुखात्मक रस प्रतीत होता है। हास्य रस का स्थायी भाव हास है। इसके अंतर्गत वेशभूषा, वाणी आदि कि विकृति को देखकर मन में जो प्रसन्नता का भाव उत्पन्न होता है, उससे हास की उत्पत्ति होती है इसे ही हास्य रस कहते हैं। हास्य दो प्रकार का होता है -: आत्मस्थ और परस्त आत्मस्थ हास्य केवल हास्य के विषय को देखने मात्र से उत्पन्न होता है ,जबकि परस्त हास्य दूसरों को हँसते हुए देखने से प्रकट होता है। उदाहरण – नया उदाहरण- मैं ऐसा महावीर हूं, पापड़ तोड़ सकता हूँ। अगर गुस्सा आ जाए, तो कागज को मरोड़ सकता हूँ।। करुण रस Important Questions and Answers इसका स्थायी भाव शोक होता है। इस रस में किसी अपने का विनाश या अपने का वियोग, द्रव्यनाश एवं प्रेमी से सदैव विछुड़ जाने या दूर चले जाने से जो दुःख या वेदना उत्पन्न होती है उसे करुण रस कहते हैं ।यधपि वियोग श्रंगार रस में भी दुःख का अनुभव होता है लेकिन वहाँ पर दूर जाने वाले से पुनः मिलन कि आशा बंधी रहती है। अर्थात् जहाँ पर पुनः मिलने कि आशा समाप्त हो जाती है करुण रस कहलाता है। इसमें निःश्वास, छाती पीटना, रोना, भूमि पर गिरना आदि का भाव व्यक्त होता है। या किसी प्रिय व्यक्ति के चिर विरह या मरण से जो शोक उत्पन्न होता है उसे करुण रस कहते है। उदाहरण – रही खरकती हाय शूल-सी, पीड़ा उर में दशरथ के। वीर रस जब किसी रचना या वाक्य आदि से वीरता जैसे स्थायी भाव की उत्पत्ति होती है, तो उसे वीर रस कहा जाता है। इस रस के अंतर्गत जब युद्ध अथवा कठिन कार्य को करने के लिए मन में जो उत्साह की भावना विकसित होती है उसे ही वीर रस कहते हैं। इसमें शत्रु पर विजय प्राप्त करने, यश प्राप्त करने आदि प्रकट होती है इसका स्थायी भाव उत्साह होता है। सामान्यत: रौद्र एवं वीर रसों की पहचान में कठिनाई होती है। इसका कारण यह है कि दोनों के उपादान बहुधा एक – दूसरे से मिलते-जुलते हैं। कभी-कभी रौद्रता में वीरत्व तथा वीरता में रौद्रवत का आभास मिलता है,लेकिन रौद्र रस के स्थायी भाव क्रोध तथा वीर रस के स्थायी भाव उत्साह में अन्तर स्पष्ट है। उदाहरण – बुंदेले हर बोलो के मुख हमने सुनी कहानी थी। खूब लड़ी मर्दानी वो तो झाँसी वाली रानी थी।। आद्याचार्य भरतमुनि ने वीर रस के तीन प्रकार बताये हैं – दानवीर, धर्मवीर, युद्धवीर । – युद्धवीर युद्धवीर का आलम्बन शत्रु, उद्दीपन शत्रु के पराक्रम इत्यादि, अनुभाव गर्वसूचक उक्तियाँ, रोमांच इत्यादि तथा संचारी धृति, स्मृति, गर्व, तर्क इत्यादि होते हैं। – दानवीर दानवीर के आलम्बन तीर्थ, याचक, पर्व, दानपात्र इत्यादि तथा उद्दीपन अन्य दाताओं के दान, दानपात्र द्वारा की गई प्रशंसा इत्यादि होते हैं। – धर्मवीर धर्मवीर में वेद शास्त्र के वचनों एवं सिद्धान्तों पर श्रद्धा तथा विश्वास आलम्बन, उनके उपदेशों और शिक्षाओं का श्रवण-मनन इत्यादि उद्दीपन, तदनुकूल आचरण अनुभाव तथा धृति, क्षमा आदि धर्म के दस लक्षण संचारी भाव होते हैं। धर्मधारण एवं धर्माचरण के उत्साह की पुष्टि इस रस में होती है। रौद्र रस इसका स्थायी भाव क्रोध होता है। जब किसी एक पक्ष या व्यक्ति द्वारा दुसरे पक्ष या दुसरे व्यक्ति का अपमान करने अथवा अपने गुरुजन आदि कि निन्दा से जो क्रोध उत्पन्न होता है उसे रौद्र रस कहते हैं।इसमें क्रोध के कारण मुख लाल हो जाना, दाँत पिसना, शास्त्र चलाना, भौहे चढ़ाना आदि के भाव उत्पन्न होते हैं। काव्यगत रसों में रौद्र रस का महत्त्वपूर्ण स्थान है। भरत ने ‘नाट्यशास्त्र’ में शृंगार, रौद्र, वीर तथा वीभत्स, इन चार रसों को ही प्रधान माना है, अत: इन्हीं से अन्य रसों की उत्पत्ति बतायी है। उदाहरण – श्रीकृष्ण के सुन वचन अर्जुन क्षोभ से जलने लगे। सब शील अपना भूल कर करतल युगल मलने लगे॥ संसार देखे अब हमारे शत्रु रण में मृत पड़े। करते हुए यह घोषणा वे हो गए उठ कर खड़े॥ अद्भुत रस जब ब्यक्ति के मन में विचित्र अथवा आश्चर्यजनक वस्तुओं को देखकर जो विस्मय आदि के भाव उत्पन्न होते हैं उसे ही अदभुत रस कहा जाता है इसके अन्दर रोमांच, औंसू आना, काँपना, गद्गद होना, आँखे फाड़कर देखना आदि के भाव व्यक्त होते हैं। इसका स्थायी भाव आश्चर्य होता है। उदाहरण – देख यशोदा शिशु के मुख में, सकल विश्व की माया। क्षणभर को वह बनी अचेतन, हिल न सकी कोमल काया॥ भयानक रस जब किसी भयानक या बुरे व्यक्ति या वस्तु को देखने या उससे सम्बंधित वर्णन करने या किसी दुःखद घटना का स्मरण करने से मन में जो व्याकुलता अर्थात परेशानी उत्पन्न होती है उसे भय कहते हैं उस भय के उत्पन्न होने से जिस रस कि उत्पत्ति होती है उसे भयानक रस कहते हैं इसके अंतर्गत कम्पन, पसीना छूटना, मुँह सूखना, चिन्ता आदि के भाव उत्पन्न होते हैं। इसका स्थायी भाव भय होता है। उदाहरण – कचो के चिकने काले, व्याल, केंचुली, काँस, सिबार ॥ उदाहरण – विकल बटोही बीच ही, पद्यो मूर्च्छा खाय॥ भयानक रस के दो भेद हैं-
स्वनिष्ठ भयानक वहाँ होता है, जहाँ भय का आलम्बन स्वयं आश्रय में रहता है और परनिष्ठ भयानक वहाँ होता है, जहाँ भय का आलम्बन आश्रय में वर्तमान न होकर उससे बाहर, पृथक् होता है, अर्थात् आश्रय स्वयं अपने किये अपराध से ही डरता है। बीभत्स रस इसका स्थायी भाव जुगुप्सा होता है । घृणित वस्तुओं, घृणित चीजो या घृणित व्यक्ति को देखकर या उनके संबंध में विचार करके या उनके सम्बन्ध में सुनकर मन में उत्पन्न होने वाली घृणा या ग्लानि ही वीभत्स रस कि पुष्टि करती है दुसरे शब्दों में वीभत्स रस के लिए घृणा और जुगुप्सा का होना आवश्यक होता है। वीभत्स रस काव्य में मान्य नव रसों में अपना विशिष्ट स्थान रखता है। इसकी स्थिति दु:खात्मक रसों में मानी जाती है। इसके परिणामस्वरूप घृणा, जुगुप्सा उत्पन्न होती है।इस दृष्टि से करुण, भयानक तथा रौद्र, ये तीन रस इसके सहयोगी या सहचर सिद्ध होते हैं। शान्त रस से भी इसकी निकटता मान्य है, क्योंकि बहुधा बीभत्सता का दर्शन वैराग्य की प्रेरणा देता है और अन्तत: शान्त रस के स्थायी भाव शम का पोषण करता है। साहित्य रचना में इस रस का प्रयोग बहुत कम ही होता है। तुलसीदास ने रामचरित मानस के लंकाकांड में युद्ध के दृश्यों में कई जगह इस रस का प्रयोग किया है। उदाहरण- मेघनाथ माया के प्रयोग से वानर सेना को डराने के लिए कई वीभत्स कृत्य करने लगता है, जिसका वर्णन करते हुए तुलसीदास जी लिखते है- ‘विष्टा पूय रुधिर कच हाडा बरषइ कबहुं उपल बहु छाडा’ (वह कभी विष्ठा, खून, बाल और हड्डियां बरसाता था और कभी बहुत सारे पत्थर फेंकने लगता था।) उदाहरण – आँखे निकाल उड़ जाते, क्षण भर उड़ कर आ जाते शान्त रस मोक्ष और आध्यात्म की भावना से जिस रस की उत्पत्ति होती है, उसको शान्त रस नाम देना सम्भाव्य है। इस रस में तत्व ज्ञान कि प्राप्ति अथवा संसार से वैराग्य होने पर, परमात्मा के वास्तविक रूप का ज्ञान होने पर मन को जो शान्ति मिलती है। वहाँ शान्त रस कि उत्पत्ति होती है जहाँ न दुःख होता है, न द्वेष होता है। मन सांसारिक कार्यों से मुक्त हो जाता है मनुष्य वैराग्य प्राप्त कर लेता है शान्त रस कहा जाता है। इसका स्थायी भाव निर्वेद (उदासीनता) होता है। शान्त रस साहित्य में प्रसिद्ध नौ रसों में अन्तिम रस माना जाता है – "शान्तोऽपि नवमो रस:।" इसका कारण यह है कि भरतमुनि के ‘नाट्यशास्त्र’ में, जो रस विवेचन का आदि स्रोत है, नाट्य रसों के रूप में केवल आठ रसों का ही वर्णन मिलता है। उदाहरण – जब मै था तब हरि नाहिं अब हरि है मै नाहिं वत्सल रस इसका स्थायी भाव वात्सल्यता (अनुराग) होता है। माता का पुत्र के प्रति प्रेम, बड़ों का बच्चों के प्रति प्रेम, गुरुओं का शिष्य के प्रति प्रेम, बड़े भाई का छोटे भाई के प्रति प्रेम आदि का भाव स्नेह कहलाता है यही स्नेह का भाव परिपुष्ट होकर वात्सल्य रस कहलाता है। उदाहरण – बाल दसा सुख निरखि जसोदा, पुनि पुनि नन्द बुलवाति भक्ति रस इसका स्थायी भाव देव रति है। इस रस में ईश्वर कि अनुरक्ति और अनुराग का वर्णन होता है अर्थात इस रस में ईश्वर के प्रति प्रेम का वर्णन किया जाता है। उदाहरण – अँसुवन जल सिंची-सिंची प्रेम-बेलि बोई Ras Chapter Question Answers – प्रश्न अभ्यास1)’रति ‘ किस रस का स्थाई भाव है ? उत्तर – श्रृंगार रस। 2) ‘करुण ‘ रस का स्थाई भाव क्या है ? उत्तर – शोक। 3) ‘वीर ‘रस का स्थाई भाव लिखिए। उत्तर – उत्साह। 4) ‘वात्सल्य’ रस का स्थाई भाव क्या है ? उत्तर – वत्सलता 5) इन पंक्तियों में प्रयुक्त रस का नाम लिखिए – जब धूमधाम से जाती है बारात किसी की सजधज कर। मन करता धक्का दे दुल्हे को,जा बेठुं घोड़े पर।। सपने में ही मुझको अपनी शादी होती दिखती है। उत्तर – हास्य रस। 6) इन पंक्तियों में प्रयुक्त रस का नाम लिखिए – हनुमान की पूँछ में लगन न पाई आग । सिगरी लंका जर गई गए निशाचर भाग ॥ उत्तर- अद्भुत रस रस कितने प्रकार के होते हैं Class 10?भरतमुनि द्वारा रस की परिभाषा
उन्होंने अपने 'नाट्यशास्त्र' में आठ प्रकार के रसों का वर्णन किया है। विभावानुभावव्यभिचारिसंयोगाद्रसनिष्पत्तिः अर्थात् विभाव, अनुभाव तथा व्यभिचारी भाव के संयोग से रस की निष्पत्ति होती है। इस प्रकार काव्य पढ़ने, सुनने या अभिनय देखने पर विभाव आदि के संयोग से उत्पन्न होने वाला आनन्द ही 'रस' है।
रस कितने प्रकार के होते हैं और उनके उदाहरण?रस कितने प्रकार के होते हैं!
रस कितने प्रकार के होते हैं Class 10 PDF?Ras Class 10 Hindi Grammar Notes PDF Download. शृंगार रस (Shringar Ras in Hindi). वीर रस (Veer Ras in Hindi). हास्य रस (Hasya Ras in Hindi). करुण रस (Karun Ras in Hindi). रौद्र रस (Raudra Ras in Hindi). भयानक रस (Bhayanak Ras in Hindi). 7.शान्त रस (Shant Ras in Hindi). 8.वीभत्स रस (Veebhats Ras in Hindi). रस का उदाहरण क्या है?रस के कारर कचवता के पठन , शवर और नाटक के अचभनय से देखने वाले लोगों को आनन चमलता है। शव काव के पठन अथवा शवर एवं दश काव के दश्न तथा शवर मे जो अलौचकक आनन पाप होता है, वही काव मे रस कहलाता है। रस सेचजस भाव की अनुभूचत होती हैवह रस का सथायी भाव होता है। रस, छंद और अलंकार - काव रिना के आवशक अवयव है।
|