काव्य से रस किस प्रकार उत्पन्न होता है, यह काव्यशास्त्र का शाश्वत प्रश्न रहा है। संस्कृत काव्यशास्त्र के आद्याचार्य भरत मुनि ने अपने विख्यात रससूत्र में रस निष्पत्ति पर विचार करते हुए लिखा- Show
अर्थात् विभाव, अनुभाव और संचारी भाव के संयोग से रस की निष्पत्ति होती है। विभाव अनुभाव और संचारी भाव तो स्पष्ट था किंतु संयोग और निष्पत्ति के अर्थ को लेकर परवर्ती आचार्यों ने अनेक मत प्रकट किए। इनमें चार मत उल्लेखनीय हैं-
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रस निष्पत्ति
उन्होंने माना है की जिस प्रकार नाना प्रकार के व्यंजनों औषधियों एवं द्रव्य प्रदार्थ के मिश्रण से भोज्य रस की उत्पत्ति होती है उसी प्रकार नाना प्रकार के भावो के संयोग से स्थायी भाव भी नाट्य रस को प्राप्त हो जाता है। Popular posts from this blog काव्य प्रयोजन से तात्पर्य काव्य रचना के उद्देश्य
से होता है।काव्य के लिखने का उद्देश्य होता है तथा काव्य के पढ़ने का भी उद्देश्य होता है।काव्य प्रयोजन काव्य प्रेरणा से भिन्न होता है क्योंकि काव्य प्रयोजन का आशय काव्य रचना के बाद होने वाले लाभ से होता है। भरतमुनि ने काव्य प्रयोजन पर कोई विशेष टिप्पणी नही दी है।लेकिन उन्होंने यह माना है कि दुख,परिश्रम,शोक तथा साधना से परेशान व्यक्ति को शांति प्रदान करना काव्य का प्रयोजन होना चाहिए।साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि काव्य में रस, अर्थ, लोकमंगल की अवधारणा,
कांता सम्मुख उपदेश, बुद्धि का विकास करने वाला होना चाहिए। आचार्य भामह का मत -आचार्य भामह ने अपने ग्रन्थ "काव्यालंकार" में लिखा है कि-उत्तम काव्य का प्रमुख लक्ष्य धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की सिद्धि के साथ ही कला की विलक्षणता का पृथक होना एवम कीर्ति तथा प्रीति का प्रसार करना होना चाहिए। सूत्र धर्मार्थ काम मोक्षेषु बेचक्षण्यं कलासु च। करोति कीर्ति प्रीतिञ्च साधुकाव्य निबन्धनम् ।। आचार्य दण्डी का
मत- आचार्य दण काव्य हेतु काव्य हेतु से तात्पर्य काव्य की उत्पत्ति का कारण है। बाबू गुलाबराय के अनुसार 'हेतु' का अभिप्राय उन साधनों सेे है, जो कवि की काव्य रचना में सहायक होते है। काव्य हेतु पर सर्वप्रथम् 'अग्निपुराण '
में विचार किया गया है। काव्य हेतु पर विभिन्न आचार्यो के मत इस प्रकार है- आचार्य भामह का मत- इनके अनुसार " उन्होंने कविता के लिए प्रतिभा के महत्व को असंदिग्ध रूप से उसे स्वीकार किया है।उन्होंने माना है कि गुरु के उपदेश से मन्द बुद्धि व्यक्ति भी शास्त्रो का यथेष्ट (जैसा है) अध्ययन करके शास्त्रज्ञ बन सकता है किन्तु काव्य रचना तो किसी
प्रतिभावान आदमी के बस की बात है।प्रतिभा के महत्व को स्वीकार करते हुए भामह ने काव्य के लिए छः साधनों को आवश्यक माना है- 1-सब्द 2-छंद 3-अभिधानाय 4-इतिहास कथा 5-लोक कथा 6-युक्ति और कला आचार्य भामह ने अपने ग्रंथ 'काव्यालंकार' में वर्णित किया है- गुरुदेशादध्येतुं शास्त्रं जङधिममोअ्प्यलम् । रस निष्पत्ति से आप क्या समझते है?भट्टनायक रस निष्पत्ति का आशय 'भुक्ति' तथा संयोग का अर्थ-भोज्य भाजक सम्बन्ध से लगाते है। अभिनवगुप्त ने माना है कि रस की प्राप्ति के लिए न तो उत्पत्ति की जरूरत है, न ही अनुमिति की जरूरत है और न ही भुक्ति की जरूरत है बल्कि इस सब के बावजुद रस की केवल अभिव्यक्ति होती है।
रस निष्पत्ति के कितने व्याख्याकार हैं?रस के चार प्रमुख व्याख्याकार हैं- भट्ट लोल्लट, भट्ट शंकुक, भट्ट नायक और अभिनवगुप्त, जिन्होंने रस सिद्धान्त पर व्यापक रूप से अपना मत रखा है। भरत के सूत्र का सर्वप्रथम व्यख्याता भट्ट लोल्लट हैं। भटलोल्लट ने रस का भोक्ता वास्तविक रामादि एवं नट को माना है, रस की स्थिति मूल पात्रों में को माना है।
रस की परिभाषा लिखिए तथा बताइए कि रस की निष्पत्ति कैसे होती है?किसी कार्य या साहित्य को पढ़ने, सुनने या देखने से पाठक, श्रोता या दर्शक को जिस आनंद की अनुभूति होती है, उसे रस कहते हैं। भरतमुनि के अनुसार, "विभावानुभाव व्यभिचारि संयोगाद्रस निष्पत्तिः" अतः जब स्थायी भाव का संयोग विभाव, अनुभव और व्यभिचारी (संचारी) भाव से होता है, तब रस की निष्पत्ति होती है।
रस निष्पत्ति किसकी पुस्तक है?रस-निष्पति
रस के संबंध हर बिंदु पर विचार करने के लिए हमें भरतमुनि के प्रसिध्द सूत्र - विभावानुभावव्यभिचारिसंयोगाद् रसनिष्पति:।
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