Advertisement Remove all ads Show Advertisement Remove all ads Short Note ‘अट नहीं रही है’ कविता का प्रतिपाद्य अपने शब्दों में लिखिए। Advertisement Remove all ads Solution‘अट नहीं रही है’ कविता में फागुन महीने के सौंदर्य का वर्णन है। इस महीने में प्राकृतिक सौंदर्य कहीं भी नहीं समा रहा है और धरती पर बाहर बिखर गया है। इस महीने सुगंधित हवाएँ वातावरण को महका रही हैं। पेड़ों पर आए लाल-हरे पत्ते और फूलों से यह सौंदर्य और भी बढ़ गया है। इससे मन में उमंगें उड़ान भरने लगी हैं। Concept: पद्य (Poetry) (Class 10 A) Is there an error in this question or solution? Advertisement Remove all ads Chapter 5: सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' - उत्साह और अट नहीं रही है - अतिरिक्त प्रश्न
Q 10Q 9Q 11 APPEARS INNCERT Class 10 Hindi - Kshitij Part 2 Chapter 5 सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' - उत्साह और अट नहीं रही है Advertisement Remove all ads ‘अट नहीं रही’ के आधार पर बसंत ऋतु की शोभा का उल्लेख कीजिए।कवि ने बसंत में प्रकृति की शोभा का सुंदर उल्लेख किया है। ऐसा लगता है जैसे इस ऋतु में सुंदरता प्रकृति के कण-कण में समा-सी जाती है। प्रकृति के कोने-कोने से अनूठी-सी सुगंध भर जाती है जिससे कवियों की कल्पना ऊँची उड़ान लेने लगती है। चाह कर भी प्रकृति की सुंदरता से आँखें हटाने की इच्छा नहीं होती। नैसर्गिक सुंदरता के प्रति मन बंध कर रह जाता है। जगह-जगह रंग-बिरंगे और सुगंधित फूलों की शोभा दिखाई देने लगती है। 509 Views ‘अट नहीं रही’ में विद्यमान रहस्यवादिता को स्पष्ट कीजिए। निराला जी को प्रकृति के कण-कण में परमात्मा की अज्ञात सत्ता दिखाई देती है। वह उसका रहस्य जानना चाहता है पर जान नहीं पाता। उसे यह तो प्रतीत होता है कि प्रकृति के परिवर्तन के पीछे कुछ-न-कुछ तो अवश्य है। वह ईश्वर ही हो सकता है जो परिवर्तन का कारण बनता है। कहीं साँस लेते
हो, कवि निराला को प्रकृति के कण-कण में ईश्वरीय सत्ता की छवि के दर्शन होते हैं। उन्हें प्रकृति के चल में छिपे उसी का रूप दिखाई देता है। 428 Views निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर उसकी सप्रसंग व्याख्या कीजिये: प्रसंग- प्रस्तुत कविता हमारी पार-पुस्तक क्षितिज भाग- 2 में संकलित की गई है जिसके रचयिता छायावादी काव्य धारा के प्रमुख कवि श्री सूर्यकांत त्रिपाठी निराला हैं। इसे मूल रूप से उनकी काव्य-रचना ‘राग-विराग’ में संकलित किया गया था। कवि ने इसमें फागुन की मादकता को प्रकट किया है जिसकी सुंदरता और उल्लास सभी दिशाओं में फैला हुआ है। व्याख्या- कवि कहता है कि शरीर में फागुन की यह सुंदरता किसी भी प्रकार समा नहीं पा रही है। वह महमि के कण- कण से फूट रही है। अपने रहस्यवादी भावों को प्रकट करते हुए कवि कहता है कि हे प्रिय, पता नहीं आप कहा बैठ कर अपनी सांस के द्वारा प्रकृति के कोने-कोने को सुगंध से भर रहे हैं। आप ऊंची कल्पना के आकाश में उड़ने के लिए मन को पंख प्रदान कर देते हो। आप ही मन में तरह-तरह की कल्पनाओं को जन्म देते हैं। आप की सुंदरता ही सब तरफ व्याप्त है। वह अत्यधिक आकर्षक और सुंदर है। कवि कहता है कि मैं उसकी ओर से अपनी आँख हटाना चाहता हूँ पर वह वहाँ से दूर हट नहीं पा रही। इस सुंदरता में मन बंध कर रह गया है। पेड़ों की सभी डांलियां पत्तों से पूरी तरह लद गई हैं। कहीं तो पत्ते हरे हैं और कहीं कोंपलों में लाली छाई हैं। उनके बीच सुंदर-सुगंधित फूल खिल रहे हैं। ऐसा लगता है कि उनके कंठों में सुगंध से भरे फूलों की मालाएँ पड़ी हुई हैं। हे प्रिय, आप जगह-जगह शोभा के वैभव को छूट-कूट कर भर रहे हैं पर वह अपनी पुष्पलता के कारण उसमें समा नहीं पा रही और चारों ओर बिखरी पड़ी है। 176 Views निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर उसकी सप्रसंग व्याख्या कीजिये: प्रसंग- प्रस्तुत कविता ‘उत्साह’ हमारी पाठ्य-पुस्तक क्षितिज (भाग- 2) में संकलित की गई है जिसके रचयिता सुप्रसिद्ध छायावादी कवि श्री सूर्यकांत त्रिपाठी निराला हैं। कवि ने अपनी कविता में बादलों का आह्वान किया है कि पीड़ित-प्यासे लोगों की आकांक्षाओं को पूरा करें। उन्होंने बादलों को नए अंकुर के लिए विध्वंस और क्रांति चेतना को संभव करने वाला भी माना है। व्याख्या- कवि बादलों से गरज-बरस कर सारे संसार को नया जीवन देने की प्रेरणा देते हुए कहता है कि ओ बादलो, तुम गरजो। तुम सारे आकाश को घेर कर मूसलाधार वर्षा करो; घनघोर बरसो। हे बादलो, तुम अत्यंत सुंदर हो। तुम्हारा स्वरूप सुंदर काले घुंघराले वालों के समान है तथा तुम अबोध बालकों की मधुर कल्पना के समान पाले गए हो। तुम हृदय में बिजली की शोभा धारण करते हो। तुम नवीन सृष्टि करने वाले हो। तुम जल रूपी नया जीवन देने वाले हो और तुम्हारे भीतर वज्रपात करने की अपार शक्ति छिपी हुई है। तुम इस संसार को नवीन प्रेरणा और जीवन प्रदान कर दो। बादलो तुम गरजो और सब में नया जीवन भर दो। गर्मी के तेज ताप के कारण सारी धरती के सारे लोग बहुत व्याकुल और बेचैन हैं, वे उदास हो रहे हैं। अरे बादलो, तुम सीमा हीन आकाश में पता नहीं किस ओर से आकर सब तरफ फैल गए हो। तुम बरस कर इस गर्मी के ताप से तपी हुई धरती को शीतलता प्रदान करो। हे बादलो, तुम गरज-गरज कर बरसो और फिर धरती को शीतल करो। 744 Views पाठ में संकलित निराला की कविताओं के आधार पर विद्रोह के स्वर को स्पष्ट कीजिए। निराला की कविता में विद्रोह का स्वर प्रधान है। कवि ने परंपराओं का विरोध करते हुए मुक्त छंद का प्रयोग हिंदी काव्य को प्रदान किया था। उसे लगा था कि ऐसा करना आवश्यक था क्योंकि नई काव्य परंपराएँ साहित्य का विस्तार करती हैं- कवि ने बादलों के
माध्यम से विद्रोह के स्वर को ऊँचा उठाया है। वह समझते थे इसी रास्ते पर चल कर समाज का कल्याण किया जा सकता है- वास्तव में निराला जीवन पर्यत विद्रोह और संघर्ष के स्वर को कविता के माध्यम से प्रकट करते रहे थे। 585 Views अट नहीं रही है से कवि का आशय क्या है?हट नहीं रही है। वसंत जब साँस लेता है तो उसकी खुशबू से हर घर भर उठता है। कभी ऐसा लगता है कि बसंत आसमान में उड़ने के लिए अपने पंख फड़फड़ाता है। कवि उस सौंदर्य से अपनी आँखें हटाना चाहता है लेकिन उसकी आँखें हट नहीं रही हैं।
अट नहीं रही है कविताओं में किसका वर्णन है?'अट नहीं रही है' कविता में फागुन महीने के सौंदर्य का वर्णन है। इस महीने में प्राकृतिक सौंदर्य कहीं भी नहीं समा रहा है और धरती पर बाहर बिखर गया है। इस महीने सुगंधित हवाएँ वातावरण को महका रही हैं। इस समय प्रकृति अपने चरम सौंदर्य पर होती है और मस्ती से इठलाती है।
कविवर निराला के अनुसार क्या अट नहीं रही है?उत्तर : कवि ने घनघोर बादलों की तुलना बच्चों के काले घुँघराले बालों से की है। उनके अनुसार ये काले-काले बादल बच्चों के काले घुँघराले बालों के समान सुंदर हैं। अट नहीं रही है आभा फागुन की तन सट नहीं रही है। हट नहीं रही है।
अट नहीं रही है कविता के आधार पर बताइए कि कवि की आंख फागुन की सुंदरता से क्यों नहीं हट रही है?फागुन का मौसम तथा दृश्य अत्यंत मनमोहक होता है। चारों तरफ का दृश्य अत्यंत स्वच्छ तथा हरा-भरा दिखाई दे रहा है। पेड़ों पर कहीं हरी तो कही लाल पत्तियाँ हैं, फूलों की मंद-मंद खुश्बू हृदय को मुग्ध कर लेती है। इसीलिए कवि की आँख फागुन की सुंदरता से हट नहीं रही है।
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