अर्थ Metaphorically, सफाई भी, कभी कभी, मन की एक अवस्था है कि शुद्ध, नैतिक,
धार्मिक, बस, नोबल, ऊपरवाला और नैतिक भलाई की विशेषता है को दर्शाता है। इस कारण से, यह अक्सर कहा जाता है कि, “साफ-सफाई भक्ति के बगल में है।” यह बीमारी से हमारे शारीरिक स्वास्थ्य की रक्षा करता है, बे पर हानिकारक बैक्टीरिया और अन्य रोगाणुओं को ध्यान में रखते हुए। इसके अलावा पढ़ें: साफ-सफाई पर लघु अनुच्छेद Shefali is Essaybank’s editor-in-chief. She describes herself as a teacher and professional writer and
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स्वस्थ जीवन के लिए दैनिक साफ सफाई अत्यंत जरूरी: यादवदतिया | स्वस्थ जीवन के लिए प्रतिदिन साफ सफाई जरूरी है। स्वच्छता केवल शरीर के साफ होने से नहीं आती है बल्कि घर के आसपास भी साफ सफाई भी जरूरी है। प्रतिदिन घर के आसपास सफाई रखने से बीमारियां नहीं फैलेंगी । क्योंकि गंदगी के कारण ही बीमारियां फैलती हैं। यह बात नवोदय विद्यालय प्राचार्य जेएन यादव ने सोमवार को ग्राम इमलिया में स्वच्छता पखवाड़े के तहत आयोजित जागरूकता रैली कार्यक्रम में कही। अंत में नवोदय विद्यालय के प्राचार्य द्वारा ग्रामीणों एवं स्थानीय विद्यालय के छात्र-छात्राओं को बताया गया कि जरूरी नहीं कि हम बहुत महंगे साबुन या लोशन आदि के द्वारा ही साफ-सफाई रखें जबकि इनके अभाव में हम स्वच्छ पानी का प्रयोग करके भी अच्छी साफ-सफाई रख सकते हैं। उन्होंने साफ-सफाई के महत्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि स्वस्थ जीवन के लिए आसपास स्वच्छता होना बहुत ही आवश्यक है। वातावरण स्वच्छ रहेगा तो हमारा शरीर भी स्वस्थ रहेगा क्योंकि स्वच्छता ही अच्छे स्वास्थ्य का आधार है। इस दौरान एमपी आर्या, ऋतुराज वशिष्ठ, रामलखन याज्ञिक, मदीना खान, एसएस दुबे, हरचरण आदि मौजूद रहे। हमें सफाई की रूपरेखा के साथ उसकी दृष्टि और तरीके को भी थोड़ा समझ लेना चाहिए। अंग्रेजी में कहावत है कि ‘रोग का इलाज करने की अपेक्षा रोग न होने देना कहीं अच्छा है।’ वास्तव में सफाई का असली मतलब तो है गन्दगी न होने देना, न कि गन्दा करके उसे साफ करना। आजकल सफाई के सम्बंध में एक विचित्र धारणा हो गयी है। जितना स्थान लोगों के आँखों के सामने आता है, उतना ही स्थान साफ रखा जाय, यह बात मनुष्य की आदत में दाखिल हो गयी है। यह धारणा इतनी संस्कारभूत हो गयी है कि हमारे घर के पीछे, असबाब के नीचे, छप्पर और मकानों के कोने अर्थात् ऐसी जगहें, जहाँ किसी की नजर एकाएक नहीं जाती, गन्दगी से हमेशा भरपूर रहती हैं। जहाँ की सफाई में थोड़ी मेहनत की ही जरूरत होती है, सामान आदि हटाने की जरूरत होती है, वहाँ भी आदमी सफाई को टालता है। संस्कार दीर्घसूत्रताऐसी प्रवृत्ति हमारे देश में इतनी व्यापक हो गयी है कि हमें इस प्रश्न के मूल कारण पर गम्भीरतापूर्वक विचार करना होगा। सदियों की गुलामी के कारण हमारे देश में किसी चीज की जिम्मेदारी लेने का माद्दा प्रायः खतम हो गया है। लगातार गरीबी के कारण कुछ लोगों को होश भी नहीं है। अनेक ऐसे कारण हैं, जिनसे देश में स्फूर्ति और व्यवस्था लगभग नहीं रह गयी है। जिंदगी के प्रति दिलचस्पी न रहने के हर बात में दीर्घसूत्री बन जाना भी स्वाभाविक ही है। आलस्य, काहिली और लापरवाही इन्हीं कारणों से फैली है। वस्तुतः सफाई के बारे में जो गलतफहमी दिखलायी दे रही है, उसका मूल कारण भारत के लोगों की संस्कारभूत दीर्घसूत्रता ही मालूम पड़ती है। राष्ट्रध्वज समारोहपूर्वक फहराने के पश्चात् पुनः कभी उसकी ओर ध्यान न देने से उसकी सर्वत्र बुरी हालत दीख पड़ती है। वर्षा-आँधी में उसकी दुर्दशा देखते रहना किसी को बुरा भी नहीं लगता। कमरे में सुन्दर तस्वीर टाँगते समय जितना उत्साह रहता है, बाद में उसके कील से जैसे-तैसे लटकी रहने और बुरी मालूम होने का दोष दिमाग में भी नहीं आता। धूल से भरी वह तस्वीर भद्दी दीख पड़ती है, मगर उसे साफ करने में दिलचस्पी नहीं रहती। इसी प्रकार दूसरे अनेक कार्य भी बड़े शौक से शुरू किए जाते हैं, पर बाद में उन पर ख्याल नहीं किया जाता। ऐसी मिसालों की कमी नहीं है। संस्थाओं में टट्टी-पेशाब के स्थान ठीक बनाकर भी बाद में उनके टेड़े-मेढ़े पड़े रहने और स्त्रियों के पर्देवाली जगहों के पर्दे टूटे हुए लटकते रहने की बात तो अक्सर पायी जाती है। उसी स्थान पर स्नान भी किया जाता है, परन्तु उस पर्दे पर ध्यान नहीं दिया जाता। इस प्रकार देखा जाता है कि आलस्य और दीर्घसूत्रता के कारण कोई भी काम ठीक नहीं हो पाता। सफाई के काम में हमारा यह चरित्र बहुत बड़ा बाधक है। इसलिए जो लोग सफाई के शिक्षण की बात सोचते हैं, हमारे इस जातीय दोष के प्रति विशेष ध्यान देना चाहिए सफाई दो प्रकार सेध्यान में रहे कि कूड़े में दो प्रकार की चीजें होती हैं: एक तो वे, जो अपने मूलरूप में ही काम में लायी जा सकती हैं। दूसरी वे, जिनको उपयोगी बनाने के लिए उन पर कुछ काम करके उन्हें तैयार करनी पड़ती हैं। लकड़ी, ईंट, पत्थर, जानवरों के खाने लायक घास के अंश पहले प्रकार की चीजों में हैं। पत्ते, फूस, झाड़ जंगल, कागज, रूई, सूत, चिथड़े, टट्टी, पेशाब आदि दूसरे प्रकार की चीजें हैं, जिन्हें भिन्न-भिन्न प्रकार की प्रक्रियाओं के द्वारा उपयोगी बनाया जा सकता है। दूसरी बात यह है कि हमें सफाई की रूपरेखा के साथ उसकी दृष्टि और तरीके को भी थोड़ा समझ लेना चाहिए। अंग्रेजी में कहावत है कि ‘रोग का इलाज करने की अपेक्षा रोग न होने देना कहीं अच्छा है।’ वास्तव में सफाई का असली मतलब तो है गन्दगी न होने देना, न कि गन्दा करके उसे साफ करना। समाज में जितनी प्रकार की गंदगियाँ दिखाई देती हैं, उनमें बहुत तो ऐसी हैं, जो स्वाभाविक हैं। बाकी सब मानव द्वारा निर्मित हैं। अगर मनुष्य में गन्दगी न करने की बुनियादी नागरिक कर्तव्य पालन करने की वृत्ति हो, तो सफाई की बुनियादी नागरिक कर्तव्य पालन करने की वृत्ति हो, तो सफाई की 75 प्रतिशत समस्या अपने-आप हल हो जाय। रास्ता चलते कागज फाड़कर फेंकना, अनावश्यक चीजों को जहाँ-तहाँ फेंक देना, कमरे में सामान को जहाँ-तहाँ रख देना, यत्र-तत्र, मल-मूत्र और थूक का त्याग करना इत्यादि गंदगी फैलानेवाली आदतें कम-से-कम भारत में कुसंस्कार बनकर बैठ गयी हैं। अतः आज सफाई मुख्यतः दो प्रकार से करनी होगीः एक तो व्यक्ति में गन्दा करने की आदत उत्पन्न करना और दूसरी, गन्दगी को साफ करना। यदि लोगों में पहले किस्म की सफाई का संस्कार पैदा हो भी जाय, तब भी प्रकृति द्वारा गन्दगी होती रहेगी और उसकी सफाई की आवश्यकता बराबर बनी रहेगी। पतझड़ के पत्ते, वर्षा के झाड़-जंगल, आँधी-तूफान की धूल, मिट्टी आदि प्राकृतिक गन्दगियाँ हैं। इस प्रकार गन्दगी दो तरह से फैलती हैः एक प्रकृति द्वारा और दूसरी, अव्यवस्थित यानी गन्दे आदमी द्वारा। सफाई का सिद्धान्तसफाई पर वैज्ञानिक दृष्टि से विचार करते समय हमें उपर्युक्त प्रवृत्ति का ध्यान रखना होगा। सफाई का हम जो सिद्धांत बनायें, उसमें यह क्षमता होनी चाहिए कि वह हमारे कुसंस्कारों को भी मिटा सके। सफाई का सिद्धान्त निम्न प्रकार होने से कदाचित सफलता मिल सके। 1- सफाई की शुरुआत पिछले भाग में- 2- कूड़ा रखने का स्थान- 3- कूड़े द्वारा सम्पत्ति का उत्पादन- गांधीजी ने सफाई के संबंध में मानव-समाज के लिए एक सनातन मंत्र कहा हैः 4- सफाई की विभिन्न श्रेणियाँ- (अ) गुण-सम्बन्धी-इसमें मुख्य तीन बातें आती हैं: 1. कला-सम्बन्धी, 2. स्वास्थ्य-सम्बन्धी और 3. उद्योग-सम्बन्धी। लीपना, पोतना, अल्पना निकालना, घर-द्वार सजाना आदि काम कला के अन्तर्गत आते हैं। टट्टी, पेशाब और थूक इत्यादि की व्यवस्था करना, मक्खी, मच्छर आदि से रक्षा करना, नाली-नाबदान साफ करना आदि बातें स्वास्थ्य-सम्बन्धी सफाई हैं और इन्हीं चीजों का तथा अन्य कूड़ों का इस्तेमाल करना उद्योग-सम्बन्धी बातें है। (ब) स्थान-संबंधी- इस श्रेणी में प्रधानतः व्यक्तिगत सफाई, आसपास की सफाई और सार्वजनिक सफाई का समावेश है। दाँत, आँख, कान, नाक, नाखून आदि की सफाई, नहाना-धोना, कपड़े, बिस्तर और कमरे की सफाई तथा बर्तन और दूसरे असबाबों की सफाई व्यक्तिगत सफाई है। आँगन, मकान का सामना और पीछा गली- कूचा, नाली आदि की सफाई आसपास की सफाई है। गाँव, सड़क, बाजार, धर्मशाला, मुसाफिरखाना आदि की सफाई सार्वजनिक सफाई है। (स) नीति-संबंधी-सत्यवादिता, सद्व्यवहार, सद्विचार आदि बातें नैतिक सफाई के अंग हैं। आवश्यक दैनिक अथवा जीवन सम्बन्धी सभी बातें इसके अन्तर्गत आती हैं। ऊपर लिखी तीनों प्रकार की स्वच्छताएँ एक-दूसरे से सम्बन्धित हैं। जो लोग इन तीनों प्रकार की सफाई के आदि नहीं है, उन्हें सफाई पसन्द कैसे कहा जा सकता है? वस्तुतः सिर्फ एक ही किस्म की सफाई टिकाऊ नहीं है। मनुष्य सिर्फ व्यक्तिगत सफाई करे और आसपास की तथा सार्वजनिक सफाई न करे, तो वह अपनी व्यक्तिगत सफाई भी कायम नहीं रख सकता। क्योंकि वह जब एक ओर से सफाई करता रहेगा, तो दूसरी ओर से गन्दगी आकर उसकी साफ की हुई चीजों को गन्दा कर देगी। अगर लोग व्यक्तिगत और आस-पास की सफाई कर लें और सार्वजनिक सफाई नहीं हुई, तो वह दूर के खेत की मक्खियों को अपनी थाली में गन्दगी छोड़ने से रोक नहीं सकते। उसी तरह मानसिक गन्दगी के रहते बाहरी सफाई नहीं हो सकती और न बाहरी गन्दगी रखकर मानसिक सफाई ही सम्भव है। गांधीजी ने इस संबंध में मानव-समाज के लिए एक सनातन मंत्र कहा हैः “जो मनुष्य बाह्य वस्तु का अंतर के साथ अनुसंधान करके सर्वांगीण बाह्यशुद्धि रखता है, उसके लिए अन्तःशुद्धि सहज हो जाती है। इससे उलटे, जो अन्तःशुद्धि के प्रयत्न में बाह्यशुद्ध की अवगणना करता है, वह दोनों खोता है।” अतएव सफाई की रूपरेखा को भलीभाँति समझने के लिए इस बात को समझना होगा कि सफाई किसी एक ही दिशा में नहीं हो सकती। सफाई से आप क्या समझते हैं?' वास्तव में सफाई का असली मतलब तो है गन्दगी न होने देना, न कि गन्दा करके उसे साफ करना। आजकल सफाई के सम्बंध में एक विचित्र धारणा हो गयी है। जितना स्थान लोगों के आँखों के सामने आता है, उतना ही स्थान साफ रखा जाय, यह बात मनुष्य की आदत में दाखिल हो गयी है।
साफ सफाई का क्या महत्व है?स्वच्छता एक क्रिया है जिससे हमारा शरीर, दिमाग, कपड़े, घर, आसपास और कार्यक्षेत्र साफ और शुद्ध रहते है। हमारे मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य के लिये साफ-सफाई बेहद जरुरी है। अपने आसपास के क्षेत्रों और पर्यावरण की सफाई सामाजिक और बौद्धिक स्वास्थ्य के लिये बहुत जरुरी है।
साफ सफाई कैसे रखें?घर को व्यवस्थित और साफ-सुथरा रखने के लिए सबसे पहले आप इस बात पर ध्यान दें कि डायनिंग टेबल पर आप किसी भी तरह का घर का सामान इक्कट्ठा करके ना रखें. डायनिंग टेबल आपके खाना खाने की जगह होती है तो इसे फलों, स्पून जैसी चीजों से सजाकर रखें, ना कि सामान को फैलाकर रखें.
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