समाजविज्ञान में सामाजिक समूहों को अलग-अलग तरह से वर्गीकृत किया जाता है ताकि उन्हें अच्छी तरह समझा-समझाया जा सके। समूहों को एक-दूसरे से कई तरह से भेद किया जा सकता है। उदाहरण के लिए प्राथमिक समूह (primary group) छोटे आकार का वह समूह है जिसके सदस्य आपस में निकट, वैयक्तिक, चिरस्थायी सम्बन्ध रखते हैं। (जैसे- परिवार, बचपन के मित्र) । इसके विपरीत द्वितीयक समूह (secondary group) वे समूह हैं जिनके सदस्यों के बीच अन्तःक्रियाएँ अधिक अवैयक्तिक होती हैं और वे साझे हित पर आधारित होते हैं।[1] Show
प्राथमिक समूह[संपादित करें]प्राथमिक समूह की अवधारणा का जिक्र सर्वप्रथम सी एच कूली (Charles Cooley) ने अपनी पुस्तक 'सोशल ऑर्गनाइजेशन' (१८09) में किया। [2] कूली के अनुसार प्राथमिक समूहों से हमारा तात्पर्य उन समूहों से हैं, जिनमें सदस्यों के बीच आमने सामने घनिष्ठ संबंध होते हैं। साथ ही पारस्परिक सहयोग इसकी अनिवार्य विशिष्टता होती है। ऐसे समूह अनेक अर्थों में प्राथमिक होते हैं, विशेष रूप से इस अर्थ में कि ये व्यक्ति के सामाजिक स्वभाव और विचार के निर्माण में बुनियादी यानी प्राथमिक योगदान देते हैं। इस अवधारणाा को प्रस्तुत करने के पीछे कूली का मुख्य उद्देश्य यह प्रदर्शित करना था कि मानव व्यक्तित्व के विकास में कुछ ऐसे समूह होते हैं, जिनकी महत्वपूर्ण या प्राथमिक भूमिका होती है। कूली की परिभाषा से स्पष्ट है कि प्राथमिक समूह में शारीरिक निकटता, घनिष्ठ सम्बन्ध एवं पारस्परिक सम्बंध का होना आवश्यक है। कूली ने परिवार, पड़ोस और क्रीड़ा समूह को एक अच्छा उदाहरण माना है। इन उदाहरणों से स्पष्ट है कि प्राथमिक समूह की सबसे बड़ी विशेषताओं में 'वयं भावना' (wefeeling) बहुत महत्वपूर्ण है। प्राथमिक समूह अपने आप में बहुत ही मजबूती से बंधा हुआ समूह है, जिसमें आमने-सामने के संबंधों के अलावा एकता की भावना प्रबल रूप से पायी जाती है। सदस्यों में एक सामान्य सामाजिक मूल्यों के प्रति कटिबद्धता पाई जाती है। कूली ने अपनी परिभाषा में जिस आमने सामने का संबंध का उल्लेख किया है वह समाजशास्त्रियों के बीच काफी विवाद का विषय बन गया। के डेविस ने कहा कि आमने-सामने का संबंध प्राथमिक समूह का आधार नहीं हो सकता, क्योंकि कभी-कभी आमने सामने का संबंध रखते हुए भी दो व्यक्तियों के बीच घनिष्ठ संबंध नहीं पनपते, इसके उलट लंबे समय तक आमने-सामने संबंध न होते हुए भी घनिष्ठ संबंध पनप सकता है। उदाहरण के लिए, लंबे समय तक एक दूसरे के आमने सामने होते हुए भी ऑफिस के कर्मचारियों में जरूरी नहीं कि घनिष्ठता पनप पाए, जबकि पिता-पुत्र में हजारों किलोमीटर की दूरी और लंबे समय से दूर रहने के बावजूद घनिष्ठता पनपती है। ई फैरिस ने भी कहा है कि आमने सामने के संबन्ध के अभाव में भी सामाजिक निकटता पायी जा सकती है। नातेदारी समूह इस बात का एक अच्छा उदाहरण है जहां लोग एक दूसरे के आमने सामने नहीं होते हैं, इसके बावजूद उनके बीच आपसी निकटता की भावना पायी जाती है। दूसरी ओर के बीयरस्टेट ने कूली के विचारों को अप्रत्यक्ष रूप से समर्थन प्रदान करते हुए यह कहा कि, कूली के द्वारा उल्लिखित आमने-सामने शब्द को शाब्दिक रूप में लेना ठीक नहीं है। बल्कि प्रतीकात्मक रूप में लेना है। इस शब्द के द्वारा कूली मात्र संबंधों की घनिष्ठता का बोध करना चाहते हैं। प्राथमिक समूह की विशेषताएँ[संपादित करें]प्राथमिक समूह की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
द्वितीयक समूह[संपादित करें]कूली द्वारा प्रतिपादित प्राथमिक समूह जब काफी लोकप्रिय हो गया तो कुछ विद्वानों ने इसके प्रतिकूल सामाजिक व्यवस्थ की भी बात कही, जो द्वितीयक समूह (secondary group) के रूप में प्रचलित हुआ। इस तरह के समूह में आमने-सामने का सम्बन्ध काफी कमजोर होता है। समूह के सदस्यों के बीच घनिष्ठता की कमी होती है। जैसे दुकानदार-ग्राहक का संंबंध, डॉक्टर-रोगी का संबंध, नेता और अनुयायी का संबंध, ऑफिसर एवं किरानी का संबध। ऐसे संबंधों को लोग योजनाबद्ध रूप में या जानबूझकर निर्मित करते हैं। द्वितीयक समूह के संबंधों में स्थायित्व की कमी एवं संबंधों का छिछलेपन का होना स्वाभाविक है क्योंकि साधारणतया इसका आकार प्राथमिक समूह की तुलना में काफी बड़ा होता है। सदस्यों के बीच हमेशा आमने सामने का संबंध नहीं हो पाता है। लोग ऐसे समूहों का निर्माण स्वार्थवश करते हैं। अत: सदस्यों के बीच में स्वाभाविक रूप से संवेगात्मक-भावनात्मक लगाव की कमी होती है। द्वितीयक समूह की परिभाषाएँ[संपादित करें]
कोल के विचार से स्पष्ट है कि द्वितीयक समूह के सदस्यों के बीच संबंधों में आत्मीयता की कमी होती है। प्राथमिक समूह की तुलना में इसके सदस्यों के बीच अन्तःक्रियाएं भी काफी कम मात्रा में पायी जाती हैं। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि आकार में बड़ा होने के कारण इसके सदस्यों में दूरी बहुत होती है।
द्वितीयक समूह की विशेषताएँ[संपादित करें]द्वितीयक समूह की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
सन्दर्भ समूह[संपादित करें]संदर्भ समूह (Reference group) का प्रयोग सबसे पहले हर्बर्ट हाइमन ने १९४२ में किया। इसका उपयोग उन्होंने स्कूल के बच्चों के एक अध्ययन के संदर्भ में किया था। इस संदर्भ में उन्होंने पाया कि निम्न वर्ग से आने वाले बच्चों का व्यवहार भी उच्च वर्ग से आने वाले बच्चों की तरह हो गया है। ये बच्चे अपने मूल समूह के अनुरूप व्यवहार न करके एक ऐसे समूह के रूप में व्यवहार कर रहे थे, जिसके वे स्वयं सदस्य नहीं थे। हाइमन के अनुसार उच्च वर्ग के बच्चों का समूह निम्न वर्ग के बच्चों के लिए 'संदर्भ समूह' का कार्य कर रहा था। हाइमन के शब्दों में निम्नवर्ग के बच्चों के लिए उच्च वर्ग सन्दर्भ समूह हुआ। सन्दर्भ समूह की अवधारणा मुख्यतः इस तथ्य की ओर हमारा ध्यान आकृष्ट करती है कि मानव व्यवहार तथा उसके व्यक्तित्व के विकास में प्रायः कुछ गैर सदस्यता समूहों की भी महत्वपूर्ण भूमिका होती है। इन्हीं गैर सदस्यता समूहों के लिए, हाइमन ने 'सन्दर्भ समूह' जैसे शब्द का प्रयोग किया है। इन्हें सन्दर्भ समूह इसलिए कहा जाता है, क्योंकि ये समूह किसी व्यक्ति के समक्ष ऐसा सन्दर्भ प्रस्तुत करते हैं जिसके आधार पर वह व्यक्ति न सिर्फ अपना एवं अपनी स्थिति का मूल्यांकन करता है, बल्कि दूसरों की हैसियत का भी मूल्यांकन करता है। सन्द[संपादित करें]र्भ[संपादित करें]
समूह क्या है इसके मुख्य प्रकार?- एक समूह को ऐसे दो या दो से अधिक व्यक्तियों की एक संगठित व्यवस्था के रूप में परिभाषित किया जा सकता है जो एक दूसरे से अंतःक्रिया करते हैं एवं परस्पर निर्भर होते हैं, जिनकी एक जैसी अभिप्रेरणाएँ होती हैं, सदस्यों के बीच निर्धारित भूमिका संबंध होता है और सदस्यों के व्यवहार को नियमित या नियंत्रित करने के लिए प्रतिमान या ...
समूह कितने प्रकार के होते हैं?अनुक्रम. 1 प्राथमिक समूह 1.1 प्राथमिक समूह की विशेषताएँ. 2 द्वितीयक समूह 2.1 द्वितीयक समूह की परिभाषाएँ 2.2 द्वितीयक समूह की विशेषताएँ. 3 सन्दर्भ समूह. 4 सन्द. सामाजिक समूह कितने प्रकार का होता है?' ड्वाइट सैंडरसन (Dwight Sanderson) ने संरचना के आधार पर समूहों को तीन श्रेणियों में विभाजित किया है। उसने समूहों को अनैच्छिक (Involuntary), ऐच्छिक (Voluntary) एवं प्रतिनिधिक (Delegate) में विभाजित किया। अनैच्छिक समूह नातेदारी (Kinship) पर आधारित होता है यथा परिवार मनुष्य अपनी इच्छा से अपने परिवार का चयन नहीं करता।
समूह से आप क्या समझते है?सामाजिक समूहों का समाजशास्त्रीय अध्ययन 20वीं शताब्दी में ही प्रारम्भ हुआ है । इससे पहले अधिकांश विद्वान् समाज के उद्भव एवं विकास को समझने में ही लगे हुए थे । औद्योगिक क्रान्ति के परिणामस्वरूप सामाजिक समूहों के सदस्यों में पाए जाने वाले सम्बन्धों में तीव्र गति में परिवर्तन हुए जिसे समझने के प्रयास किए जाने लगे ।
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