प्रश्न; संस्था को परिभाषित करते हुए इसके सामाजिक कार्य एवं इसके समाजशास्त्रीय महत्व को बताइये। Show
अथवा" संस्था की परिभाषा दीजिए। इसकी विशेषताओं की विवेचना कीजिए। अथवा" संस्था से आप क्या समझते हैं? संस्था के मुख्य लक्षण बताइए। अथवा" संस्था के मुख्य कार्यों का वर्णन कीजिए। उत्तर-- संस्था किसे कहते हैं?(sanstha kya hai)समाज मे दो प्रकार के हित होते हैं-- समान्य हित, और विशिष्ट हित। समान्य हित समान्य आवश्यकताओं की पूर्ति करते हैं, जबकि विशिष्ट हित मे किसी विशिष्ट आवश्यकता की पूर्ति की जाती है। इन विशिष्ट आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए समिति का निर्माण किया जाता है। इन समितियों के द्वारा उद्देश्यों की प्राप्ति तभी सम्भव है, जबकि समिति का संचालन एक व्यवस्था के द्वारा हो, कुछ नियम और कार्यप्रणालियों को अपनाया जाता हैं। समिति की इन्ही कार्य-प्रणालीयों और नियमों को संस्था कहा जा सकता हैं। इस प्रकार परिवार, राज्य, विवाह और सरकार सभी संस्थाएं हैं। जब समिति बनाते हैं, तब ये सामान्य कार्य-व्यापार के संचालन तथा सदस्यों के पस्पर नियमन के लिए नियम और कार्यप्रणालियां भी बनाते हैं। ये नियम ही संस्थाएं हैं। संस्था का अर्थ (sanstha ka arth)मानव के कुछ सामान्य हित तथा कुछ विशेष हित होते हैं। सामान्य हितों कि पूर्ति के लिए बनाये गये संगठनों को समुदाय कहते हैं। विशेष हितों की पूर्ति के लिए बनाये गये संगठनों को समिति कहते हैं। इन विशेष उद्देश्यों या हितों को कार्य रूप मे परिणित करने के लिए जो साधन, तौर-तरीकों, विधियां, प्रणालियाँ आदि उपयोग मे लायी जाती हैं, उन्हें संस्थायें कहा जाता हैं। संस्था की परिभाषा (sanstha ki paribhasha)बोगार्डस के अनुसार, " एक सामाजिक संस्था समाज का वह ढांचा होता हैं, जो मुख्य रूप से सुव्यवस्थित विधियों के द्वारा व्यक्तियों की जरूरतों की पूर्ति के लिए संगठित किया जाता हैं।" राॅस के अनुसार," सामाजिक संस्थाएं संगठित मानवीय संबंधों की वह व्यवस्था हैं जो सामान्य इच्छा द्वारा स्थापित या स्वीकृत होती हैं।" मैरिल और एलरिज के अनुसार," सामाजिक संस्थाएं आचरण के वे प्रतिमान हैं, जो मनुष्य को मुख्य आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए निर्मित हुए हैं।" संस्था के कार्य अथवा महत्व (sanstha ke karya)संस्था के कार्य एवं महत्व को निम्नलिखित बिन्दुओं द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है-- 1. सामाजिक नियन्त्रणों के साधनों की व्यवस्था 4. मानव-व्यवहारों की नियंत्रक संस्था मनुष्य के व्यवहारों को नियंत्रित करती हैं। संस्था के पीछे सामूहिक स्वीकृत होती हैं। अतः व्यक्ति संस्था के निर्देशों का सहसा उल्लंघन नहीं करता। जैसे-- हिन्दुओं में आज भी अन्तर्जातीय विवाह प्रचलित नहीं हैं, क्योंकि हिन्दु धर्म इसे स्वीकार नहीं करता। 5. व्यवहारों में अनुरूपता प्रत्येक संस्था की अपनी निश्चित, लिखित एवं अलिखित परम्परायें होती हैं। अतः व्यक्तियों को अपनी विशिष्ट आवश्यकता की पूर्ति हेतु निश्चित नियम तथा कार्य-प्रणालियों के अनुरूप ही कार्य करना पड़ता हैं। इससे व्यक्तियों के व्यवहार में अनुरूपता या समानता आ जाती हैं। 6. सामाजिक परिवर्तन में सहायक सामाजिक संस्थायें सामाजिक परिवर्तन में भी सहायक होती हैं। जब मनुष्य एक ही कार्य प्रणाली के अनुसार कार्य करते-करते ऊब जाता है तो वह उनमें परिवर्तन करने का प्रयास करता हैं। संस्थाओं मे इस प्रकार के परिवर्तन सामाजिक परिवर्तन के कारण बन जाते है। 7. संस्था सदस्यों के व्यवहारों मे अनुरूपता लाती हैं 8. सामाजिक अनुकूलन में सहायक समाज के साथ अनुकूलन करने में संस्थायें हमारी मदद करती हैं। अपनी कार्य-प्रणालियों तथा नियमों के द्वारा जटिल परिस्थितियों में किस प्रकार समाज के साथ तादात्म स्थापित करना चाहिए, यह हमें संस्थायें ही बताती हैं। 9. व्यक्ति के कार्य को सरल बनाना प्रस्थिति एवं कार्य का निर्धारण संस्थायें व्यक्ति की समूह में प्रस्थिति एवं तदनुसार उसके कार्यों का निर्धारण करने का महत्वपूर्ण कार्य करती हैं, जैसे-- विवाह के द्वारा पुरूष और स्त्री को पत्नी की प्रस्थिति प्राप्त होती है और उसी के अनुसार उनके कार्यों का निर्धारण भी होता हैं। संस्था की विशेषताएं/आवश्यक तत्व (sanstha ki visheshta)संस्था की निम्नलिखित विशेषताएं एवं आवश्यक तत्व हैं-- 1. निश्चित उद्देश्य शायद यह जानकारी आपके के लिए बहुत ही उपयोगी सिद्ध होगी संस्था क्या है इसकी विशेषताएं लिखिए?समाज द्वारा स्वीकृत नियमों और कार्यप्रणालियों की व्यवस्था को ही संस्था के नाम से जाना जाता है। यह व्यवस्था मनुष्य की जीवन विधियों को व्यवस्थित बनाए रखती है। चूंकि यह नियमों व कार्यप्रणालियों की व्यवस्था है तथा इन्हें हम देख नहीं सकते और ना ही स्पर्श कर सकते हैं। अतः संस्था की प्रकृति अमूर्त प्रकार की होती है।
सामाजिक संस्था के कार्य क्या है?मनुष्य की आवश्यकताओं की पूर्ति
सामाजिक संस्था का सबसे महत्त्वपूर्ण एवं प्रथम कार्य मानव की आवश्यकताओं की पूर्ति करना है। मानव सर्वप्रथम किसी आवश्यकता का अनुभव करता है तथा उसकी पूर्ति हेतु संस्था का जन्म होता है।
संस्था के मुख्य उद्देश्य क्या है?संस्था के कार्य या महत्व संस्था के प्रमुख कार्य निम्नलिखित हैं 1-आवश्यकता की पूर्ति-प्रत्येक संस्था किसी न किसी मानव आवश्यकता की पूर्ति के लिए ही बनती है। संस्था मनुष्यों के लिए उद्देश्य पूर्ति का साधन है,स्वयं उद्देश्य नहीं। 2-व्यवहार का नियंत्रण-संस्था समूह को इच्छा और आज्ञा की प्रतीक होती है।
सामाजिक संस्थाएं कौन कौन से हैं?(क) परिवार, विवाह और नातेदारी, (ख) राजनीति, (ग) अर्थव्यवस्था, (घ) धर्म एवं (ड) शिक्षा होती है, इनका संक्षिप्त वर्णन किया गया है।
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