सार लेखन से क्या आशय है सोदाहरण स्पष्ट कीजिए - saar lekhan se kya aashay hai sodaaharan spasht keejie

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सार लेखन से क्‍या आशय है? सोदाहरण स्पष्ट कीजिए।

 सार लेखन: विचारों को भाषा में अभिव्यक्त करने की अनंत संभावनाएँ छिपी होती हैं। कई बार हम छोटी-से-छोटी बात का वर्णन बहुत विस्तार से करते हैं, तो कई बार बहुत लंबी-चौड़ी विस्तृत बात को एकदम थोड़े शब्दों में व्यक्त कर लेते हैं।

जिस प्रकार, छोटी-सी बात को विस्तार देना एक कला है, उसी प्रकार, विस्तार से कही गई बात को कम शब्दों में व्यक्त कर देना भी एक कला है।

विस्तार से कही गई बात को कम शब्दों में व्यक्त करना ही सार-लेखन कहलाता है। आइए, इस पाठ में हम इस कला का अभ्यास करें। आइए, हम समझें कि सार-लेखन क्या होता है और हमारे लिए उसकी क्या उपयोगिता है।

यह तो आप जानते ही हैं कि हमारे जीवन में व्यस्तताएँ निरंतर बढ़ती ही जा रही हैं और समय का अभाव होता जा रहा है। आप यह भी जानते हैं कि मनुष्य के सारे क्रियाकलापों में भाषा की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है।

आपने बहुतों को यह कहते सुना होगा – “जा-जा, काम करने दे, फालतू बातें मत कर।” इसका अर्थ हुआ कि फालतू बातें न करके उचित, उपयुक्त और संक्षिप्त बात करने का महत्त्व है।

मतलब यह है कि भाषा का ऐसा प्रयोग किया जाना चाहिए, जिससे समय की बचत हो। अगर कम शब्दों का प्रयोग करेंगे, तो समय भी कम खर्च होगा और दूसरा आदमी भी हमारी बात ध्यानपूर्वक सुनेगा।

उदाहरण: हमारे देश में अशिक्षित प्रौढ़ों की संख्या करोड़ों में है। यदि हम किसी प्रकार इनके मानस-मंदिरों में शिक्षा की ज्योति जगा सकें, तो सबसे महान धर्म और सबसे पवित्र कर्तव्य का पालन होगा।

रेलगाड़ी और बिजली की बत्ती से भी अपरिचित लोगों का होना हमारी प्रगति पर कलंक है। प्रौढ़-शिक्षा योजना इनको प्रबुद्ध नागरिक बनाने की दिशा में क्रियाशील है। इस योजना से गाँवों में एक सीमा तक आत्मनिर्भरता आएगी। हर बात के लिए शहरों की ओर ताकने की प्रवृत्ति समाप्त होगी।

निरर्थक रूढ़ियों और अंधविश्वासों में फंसे हुए और अपनी गाढ़े पसीने की कमाई को नगरों की भेंट चढ़ाने वाले ये हमारे भाई प्रौढ़ शिक्षा से निश्चित ही सचेत और विवेकी बनेंगे।

स्वास्थ्य, सफाई, उन्नति, कृषि तथा आपसी सद्भावना के प्रति प्रौढ़ शिक्षा इनको जागरूक बना सकती है। इससे इनकी मेहनत की कमाई डॉक्टरों की जेबों में जाने से और कचहरियों में लुटने से बचेगी।

सबसे बड़ा लाभ तो प्रौढ़ शिक्षा द्वारा यह होगा कि करोड़ों लोग नए ढंग से देखने, सुनने और समझने के साथ-साथ अच्छा आचरण करने में समर्थ होंगे।

हमारे करोड़ों देशवासी आज भी अशिक्षित और पिछड़े हुए हैं। सारे संसार के सामने हम इस कलंक को सिर झुकाए सह रहे हैं ।

भारत की उन्नति चंद नगरों को जगमग कर देने से नहीं होगी, उसकी सच्ची उन्नति का पैमाना तो यही ग्राम-समुदाय है जिसकी पढ़ने की आयु निकल चुकी, जो स्वयं पढ़ने के महत्त्व से अपरिचित हैं, जिसका तन-मन-धन नगरीय सभ्यता शताब्दियों से लूटती चली आ रही है।

ऐसे अज्ञान और अशिक्षा के अंधकार में जीवन बिताने वाले करोड़ों भाइयों-बहनों के प्रति यदि हम आज सचेत और उत्तरदायी बनने की बात सोच रहे हैं, तो देश का बड़ा सौभाग्य है।

सारः

अशिक्षित व्यक्ति समाज के लिए कलंक है। प्रौढ़-शिक्षा के माध्यम से व्यक्ति अपने अधिकार और कर्तव्यों के प्रति जागरूक होंगे, नई दृष्टि से सोचने-समझने की शक्ति भी उनमें उत्पन्न होगी।

साथ ही, वे शोषण के शिकार भी नहीं बनेंगे। भारत की उन्नति का अर्थ है – गाँवों की उन्नति। यह तभी संभव है, जब वहाँ के अधिक-से-अधिक नागरिक शिक्षित हों। प्रौढ़-शिक्षा कार्यक्रम ही इसका एकमात्र उपचार है।

इसे सफल बनाना हम सबका कर्तव्य है। इससे देश का गौरव बढ़ेगा।

किसी विस्तृत लेख को पढ़-समझकर कम शब्दों में उसी बात को स्पष्ट रूप से व्यक्त करने की कला को सारांश या सार लेखन कहा जाता है। एक नजर में ये दोनों एक ही लगते हैं, परंतु सार लेखन और सारांश में थोड़ा-सा अंतर है। और आज हम इसी के बारे में बात करेंगे कि सार लेखन क्या है? सारांश/संक्षेपण और सार लेखन में क्या अंतर है?

सारांश में केवल उस मूल तथ्य को प्रस्तुत किया जाता है, जिसके इर्द-गिर्द मूल अवतरण का विकास और विस्तार होता है। इसके लेखन में सभी महत्त्वपूर्ण तथ्यों को प्रस्तुत नहीं किया जाता। सारांश के आकार विस्तार के संबंध में कोई निश्चित नियम नहीं, पर इतना निश्चित है कि यह मूल अंश के एक-तिहाई से कम ही होता है अर्थात् सारांश सार लेखन से कम शब्दों में होता है।

सार लेखन क्या है?

कम-से-कम शब्दों में दूसरे के कथ्य को समेटने की कला को ही सार लेखन कहा जाता है। सार लेखन के लिए भाषा की समझ और अभिव्यक्ति की क्षमता दोनों ही आवश्यक हैं। इससे अभिव्यक्ति में निखार आता है। विषय को ध्यानपूर्वक पढ़ने, उसे समझने और विचारों को केंद्रित करने का अभ्यास भी होता है।

संक्षिप्तता आज के जीवन की आवश्यकता है। अनावश्यक शब्दाडंबर को त्याग कर किसी विषय के मुख्य-मुख्य बिंदुओं को सार रूप में प्रस्तुत कर अपने साथ दूसरों का समय भी बचाया जा सकता है। इस कला में निपुणता अभ्यास तथा सूझबूझ से प्राप्त होती है। पत्रकार, वकील, न्यायाधीश, अध्यापक तथा व्यापारी सभी के लिए इस कला में कौशल प्राप्त करना लाभकारी है।

किसी भी कला में कुशलता प्राप्त करने के लिए सतत अभ्यास, धैर्य और अटूट विश्वास की आवश्यकता होती है। जैसा कहा जा चुका है कि पर्याप्त अभ्यास भी जरुरी है जिसके अभाव में निखार नहीं आता। अभ्यास के माध्यम से सार लेखन में दक्षता तभी प्राप्त होगी जब लेखक अपने सन्मुख किसी अच्छे सार लेखक का निर्देशन प्राप्त करना रहे।

सार लेखक के ज्ञान का विस्तार जितना अधिक होगा उसे अच्छा सार लेखक बनने में उतनी ही मदद मिलेगी। भाषा ऐसी साफ सुथरी तथा मंजी हुई हो कि प्रत्येक शब्द अपनी बोल स्वयं कहता नजर आए। भाषा का परिमार्जन भी विशद् अध्ययन से भी सम्भव होता है।

किसी साहित्यिक रचना के लेखन तथा सार लेखन में मौलिक अंतर है। साहित्यिक रचना के सृजन में लेखक को मनोभावों के विस्तार के लिए पर्याप्त अवकाश है, कल्पना के घोड़ों को दौड़ाने के लिए उसे काफ़ी छूट है, जबकि सार लेखक स्वतंत्रता से वंचित है। कल्पना और रंजन के लिए यहाँ लेशमात्र भी स्थान नहीं है। सार लेखक के लिए कलम की साधना अनिवार्य तत्त्व है।

एक अच्छा सार कैसे लिखें?

सार लेखन की कोई ऐसी विधि नहीं है कि उसको बस याद कर लिया जाए। इसके लिए तो अभ्यास आवश्यक है। इसके लिए धारणा शक्ति को सचेत करने के साथ-साथ आवश्यक-अनावश्यक के विवेक को जगाना पड़ता है।

  • जिस सामग्री का सार अपेक्षित है उसे अत्यंत सावधानी से पढ़ना चाहिए और उसको समझने का प्रयत्न करें।
  • एक बार पढ़ने से काम न चले तो बार-बार पढ़ें और अपने से ही पूछें कि क्या पढ़ रहा हूँ, किसके विषय में विवेचन पढ़ रहा हूँ।
  • इस प्रकार के अनेक प्रश्नों के उत्तरों से समस्या काफ़ी सुलझ जाएगी।
  • बार-बार पढ़कर उसके केंद्रीय भाव के निकट पहुँचने का प्रयास कीजिए।
  • महत्त्वपूर्ण अंशों और उन शब्दों को रेखांकित कीजिए, जिसके आधार पर उस विषय को अपने शब्दों में लिखना है।
  • लेख के वाक्य छोटे-छोटे और भाषा सरल होनी चाहिए।
  • यह ध्यान भी रखना अपेक्षित है कि इस लेखन में मूल अवतरण के प्रयोग सबको छोड़ देना अनिवार्य है।
  • उपयोगी आँकड़े, विशेष नाम तथा अत्यावश्यक तिथियाँ उचित स्थान पर समाहित की जानी चाहिए।
  • इस प्रारंभिक यत्न के बाद मूल को फिर से दुबारा पढ़िए और पता लगाइए कि कुछ महत्त्वपूर्ण अंश छूट तो नहीं गए। यदि ऐसा हुआ है तो उनका समावेश कर लेना उचित होगा।

सार लेखन की विशेषताएँ

सार लेखन में अपनी ओर से कुछ नहीं जोड़ना चाहिए। यदि आवश्यक जान पड़े तो मूल में दिए गए विचारों के क्रम में परिवर्तन किया जा सकता है।

अब अपने सार को फिर से पढ़िए और अनावश्यक अंश को काट दीजिए। वाक्य संकोचन के कौशल का प्रयोग कीजिए। यदि क्रिया, पदबंध लम्बे हैं, तो उनके स्थान पर संक्षिप्त शब्द पद का प्रयोग कीजिए, जिससे अपेक्षित शब्द संख्या की सीमा में आ जाएँ।

यह ध्यान रखना चाहिए कि सार सामान्यतः मूल के एक तिहाई से अधिक लंबा नहीं हो। यह आवश्यक नहीं कि मूल और सार का एक-एक शब्द गिना जाए। एक पंक्ति के कुछ शब्दों से सम्पूर्ण पंक्तियों का अंदाज़ा लगाया जा सकता है। चार-पाँच शब्दों की घटा-बढ़ी सदा अपेक्षित होती है।

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सार लेखन से क्या आशय है?

जिस प्रकार, छोटी-सी बात को विस्तार देना एक कला है, उसी प्रकार, विस्तार से कही गई बात को कम शब्दों में व्यक्त कर देना भी एक कला है । विस्तार से कही गई बात को कम शब्दों में व्यक्त करना ही सार-लेखन कहलाता है।

6 सार लेखन से क्या आशय है सोदाहरण स्पष्ट कीजिए खंड ग?

विषय को ध्यानपूर्वक पढ़ने, उसे समझने और विचारों को केंद्रित करने का अभ्यास भी होता है। संक्षिप्तता आज के जीवन की आवश्यकता है। अनावश्यक शब्दाडंबर को त्याग कर किसी विषय के मुख्य-मुख्य बिंदुओं को सार रूप में प्रस्तुत कर अपने साथ दूसरों का समय भी बचाया जा सकता है। इस कला में निपुणता अभ्यास तथा सूझबूझ से प्राप्त होती है।

सार लेखन से आप क्या तात्पर्य है सार लेखन के समय किन बातों का ध्यान रखना चाहिए?

Explanation:.
सार लिखते समय सबसे पहले मूल अनुच्छेद या विषय-वस्तु को एकाधिक बार ध्यान पूर्वक पढ़ लेना चाहिए। ... .
मूल अनुच्छेद को पढ़ने के बाद महत्त्वपूर्ण तथ्यों, बातों तथा विचारों को रेखांकित कर लिया जाना चाहिए। ... .
इसके बाद मूल में व्यक्त किए गए विचारों, भावों तथा तथ्यों को क्रमबद्ध कर लेना चाहिए।.

सार लेखन क्या है इसकी दो विशेषताएं बताइए?

संक्षेपण की विशेषताएँ १) विषय-वस्तु के मूल भाव की संक्षिप्त, सरल अभिव्यक्ति संक्षेपण या सार लेखन की मुख्य विशेषता होती है। सार-लेखन में मूल भावों, विचारों, बातों तथा कथ्यों का रक्षण आवश्यक होता है। २) मूल अनुच्छेद में व्यक्त या निरूपित मुख्य विचारों एवं भावों की क्रमबध्द स्थापना संक्षेपण की दूसरी महत्वपूर्ण विशेषता है।