संयुक्त राष्ट्र ने मानवाधिकारों के साथ कैसे मदद की है? - sanyukt raashtr ne maanavaadhikaaron ke saath kaise madad kee hai?

मानवाधिकार विशेषज्ञों और अंतर-सरकारी निर्णय निर्माताओं के अनुरोधों के जवाब में, हम ऐसी अंतर्दृष्टि प्रदान कर रहे हैं जो COVID-19 संकट के दौरान सड़क की स्थितियों में बच्चों के साथ काम करने के बारे में हमारे नेटवर्क से जो सुन रही है, उस पर प्रकाश डालती है।

हिंसा, सामाजिक सुरक्षा, और सड़क पर रहने वाले बच्चों की संकट की धारणा - COVID-19 के दौरान बच्चों के अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र महासचिव को CSC सबमिशन

सुरक्षित आश्रय, आवश्यक सेवाएं और सूचना तक पहुंच - मानवाधिकार परिषद के दौरान स्ट्रीट चिल्ड्रेन के लिए कंसोर्टियम द्वारा वक्तव्य मानवाधिकार के लिए संयुक्त राष्ट्र उच्चायुक्त के साथ आभासी अनौपचारिक बातचीत

विकासशील देशों में कोरोनावायरस के प्रभाव की निगरानी - अंतर्राष्ट्रीय विकास समिति को सीएससी प्रस्तुत करना

सड़क पर रहने वाले बच्चों के अधिकारों पर प्रभाव और 2030 सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी) को पूरा करना - ओएचसीएचआर एचएलपीएफ प्रस्तुत करने के लिए इनपुट: सड़क की स्थितियों में बच्चों के अधिकारों पर COVID-19 का प्रभाव

सुभेद्यताएं और मानवाधिकार - अत्यधिक गरीबी और मानवाधिकारों पर विशेष प्रतिवेदक को नोट

पर्याप्त आवास और COVID-19 तक पहुंच का अधिकार - आवास पर विशेष प्रतिवेदक को नोट

आपकी सरकार के साथ वकालत के लिए त्वरित मार्गदर्शिका

इस COVID-19 महामारी के दौरान सड़क से जुड़े बच्चों की मदद करने के लिए सरकार के लिए हमारे त्वरित गाइड का उपयोग करें:

  • स्व-पृथक या घर पर संगरोध के आदेश के तहत सड़क पर रहने वाले बच्चों के सार्वजनिक स्थानों पर रहने के क्या अधिकार हैं?
  • इंटरनेट या समाचार पत्रों तक सीमित पहुंच के साथ सड़क पर रहने वाले बच्चों को कैसे सूचित किया जा सकता है, और सरकारें कोविड -19 की जानकारी को व्यापक रूप से कैसे सुलभ बना सकती हैं?
  • महामारी के दौरान सड़क पर रहने वाले बच्चों की स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुँच सुनिश्चित करने के लिए सरकारों को क्या करना चाहिए?
  • सरकारें यह कैसे सुनिश्चित कर सकती हैं कि सड़क पर रहने वाले बच्चे भोजन की अपनी बुनियादी जरूरतों को पूरा कर सकें?

कॉर्पोरेट भागीदारी और दाता

हम बदलाव के लिए एक अग्रणी आवाज बनने के लिए अधिवक्ताओं, शोधकर्ताओं और प्रभावितों को एक साथ ला रहे हैं, और हम दुनिया भर के उन संगठनों का समर्थन कर रहे हैं जो सड़क पर रहने वाले बच्चों के साथ सीधे काम करते हैं, जिन्हें तत्काल आश्रय, भोजन, स्वच्छ पानी और स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच की आवश्यकता होती है। यह एक बहुत बड़ा काम है और आपका समर्थन पहले से कहीं अधिक महत्वपूर्ण है।

नेटवर्क सदस्यों की कहानियां

हमें बताएं कि आपके क्षेत्र में सड़क से जुड़े बच्चे और बेघर युवा कैसे प्रभावित होते हैं, और हम संदेश को दूर-दूर तक साझा करेंगे।

आंदोलन और घटती आपूर्ति पर बढ़ते प्रतिबंधों का सामना कर रहे संगठनों के बीच सूचनाओं को साझा करने की सुविधा के लिए हमने एक सरल रूप स्थापित किया है ताकि हम वैश्विक स्तर पर 140 से अधिक संगठनों के अपने नेटवर्क में साझा करने के लिए उपयोगी जानकारी एकत्र कर सकें ।

हम सीएससी नेटवर्क के सदस्यों के साथ देश-स्तरीय और क्षेत्रीय कॉल का आयोजन कर रहे हैं ताकि वे चिंताओं पर चर्चा कर सकें, अच्छी प्रथाओं का आदान-प्रदान कर सकें और एक दूसरे का समर्थन कर सकें। शामिल होने के लिए [email protected] से संपर्क करें।

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पेश है कुछ कहानियाँ:

2008 में यूके में स्थापित इंटरनेशनल डेवलपमेंट एनजीओ StreetInvest ने COVID-19 की ओर संसाधनों को पुनर्निर्देशित करने के लिए अपने सभी कार्यक्रमों को रोक दिया है। विशेष रूप से वे सड़क पर काम करने वालों के लिए जमीनी समर्थन पर अपनी आलोचना को जारी रखने में सक्षम होने के लिए काम कर रहे हैं, सीधे आपातकालीन प्रतिक्रिया आपूर्ति वितरित कर रहे हैं और सड़क पर रहने वाले बच्चों को स्वास्थ्य सेवाएं प्राप्त करने के लिए रचनात्मक तरीके खोज रहे हैं। इसका एक शानदार उदाहरण मोम्बासा और कुमासी में उनकी सड़क पर काम करने वाली टीमें हैं जो एक स्वास्थ्य कार्यकर्ता को अपने साथ लाने के लिए खर्च का भुगतान कर रही हैं।

तुर्की में स्थित माया वक्फी बच्चों और युवा वयस्कों की सुरक्षा पर केंद्रित है। इस्तांबुल में रहने वाले 500,000 से अधिक सीरियाई शरणार्थियों के साथ, महामारी से पहले की स्थिति पहले से ही चुनौतीपूर्ण थी। इस्तांबुल में अपने युवा और बच्चों के केंद्र को बंद करने के लिए मजबूर, वे देखभाल करने वालों और माता-पिता के लिए अधिकारों, अधिकारों और बाल संरक्षण से संबंधित मुद्दों के बारे में ऑनलाइन सूचना सत्र चला रहे हैं, बच्चों और उनके माता-पिता को फोन पर मनोवैज्ञानिक परामर्श प्रदान करते हैं, और स्वच्छता किट और भोजन वितरित करते हैं। पैकेज उन लोगों के लिए जिन्हें उनकी सबसे ज्यादा जरूरत है।

पिछले महीने चीनी युद्धपोत 'यूआन वांग 5' के श्रीलंका पहुंचने के बाद से भारत और श्रीलंका के बीच आपसी रिश्तों में दूरियां आने के लगातार संकेत मिल रहे हैं.

भारत सरकार ने श्रीलंका के हंबनटोटा बंदरगाह में इस युद्धपोत के रुकने पर सार्वजनिक रूप से चिंता ज़ाहिर की थी. इसके बाद भी श्रीलंका सरकार ने इस युद्धपोत को हंबनटोटा में रुकने की इजाज़त दी.

इसके कुछ हफ़्तों बाद ही भारत सरकार ने बीते सोमवार को श्रीलंका के तमिल समुदाय के मानवाधिकारों के मुद्दे पर संयुक्त राष्ट्र की मानवाधिकार संस्था यूएनएचसीआर में श्रीलंका को घेरा है.

श्रीलंका ने अपने बचाव में कहा है कि वह मानवाधिकारों को सहेजने और उनके विकास की दिशा में काम कर रहा है.

चीन ने इस मुद्दे पर श्रीलंका का बचाव करते हुए भारत का नाम लिए बग़ैर कहा है कि वह मानवाधिकारों के नाम पर श्रीलंका के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप का विरोध करता है.

  • भारत का पड़ोसी देश श्रीलंका 1948 में ब्रिटेन से आज़ाद हुआ.
  • श्रीलंका की आबादी क़रीब 2 करोड़ 20 लाख है, सिंहला बहुसंख्यक हैं, तमिल और मुसलमान अल्पसंख्यक
  • राजपक्षे परिवार पिछले कई वर्षों से सत्ता में रहा है
  • 1983 में तमिल विद्रोही संगठन एलटीटीई और सरकार के बीच गृहयुद्ध छिड़ा
  • भारत सरकार ने 1987 में उत्तरी श्रीलंका में शांति स्थापित करने के उद्देश्य से अपनी शांति सेना भेजी
  • 2005 में प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे राष्ट्रपति चुनाव में विजयी रहे
  • 2009 में एलटीटीई के साथ लंबा युद्ध समाप्त हुआ, तमिल विद्रोही हारे, महिंदा राजपक्षे नायक बनकर उभरे
  • तब गोटाबाया राजपक्षे रक्षा मंत्री थे जो 2019 में राष्ट्रपति बने, वे महिंदा राजपक्षे के छोटे भाई हैं
  • 2022 में कई महीनों के ज़बर्दस्त विरोध के बाद पहले महिंदा राजपक्षे ने प्रधानमंत्री पद से और फिर गोटाबाया ने राष्ट्रपति पद से इस्तीफ़ा दिया
  • रनिल विक्रमसिंघे पहले प्रधानमंत्री और फिर राष्ट्रपति बनाए गए, वो 2024 तक पद पर रहेंगे
  • श्रीलंका में राष्ट्रपति देश, सरकार और सेना प्रमुख होता है

भारत ने इस मामले में क्या कहा?

संयुक्त राष्ट्र (यूएनएचसीआर का मुख्यालय जेनेवा) में भारत के स्थाई प्रतिनिधि इंद्रमणि पांडेय ने कहा है कि भारत सरकार हमेशा से ये मानती रही है कि यूएन चार्टर के सिद्धांतों को ध्यान में रखते हुए मानवाधिकारों एवं रचनात्मक अंतरराष्ट्रीय संवाद एवं सहयोग को बढ़ाना देशों की ज़िम्मेदारी है.

श्रीलंका में रहने वाले तमिल समुदाय के प्रति अपनी चिंताएं ज़ाहिर करते हुए भारत ने कहा कि श्रीलंका ने नस्लीय समस्या के निदान के लिए जिस राजनीतिक हल को अमल में लाने की बात की थी, उस दिशा में अब तक पर्याप्त प्रगति नहीं हुई है. ये संविधान के 13वें संशोधन के ज़रिए किया जाना था जिससे प्रांतीय परिषदों को शक्ति मिले और जल्द से जल्द प्रांतीय परिषदों के चुनाव हों.

भारतीय राजनयिक ने ये भी कहा कि भारत मानता है कि श्रीलंका में शांति और सुलह का रास्ता संयुक्त श्रीलंका के ढांचे के तहत राजनीतिक समाधान से होकर गुजरता है जिसमें श्रीलंका के तमिल समुदाय के लिए न्याय, शांति, समानता और सम्मान सुनिश्चित हो.

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श्रीलंका के विदेश मंत्री एमयूएम अली सबरी

श्रीलंका अपने बचाव में क्या बोला?

श्रीलंका के विदेश मंत्री एमयूएम अली सबरी ने यूएनएचसीआर में कहा है कि उनकी सरकार मानवाधिकारों के संरक्षण की दिशा में काम कर रही है.

उन्होंने कहा, "तमाम चुनौतियों के बावजूद, श्रीलंका स्वतंत्र लोकतांत्रिक संस्थाओं के ज़रिए मानवाधिकारों के संरक्षण और सुलह की दिशा में आंकी जा सकने वाली प्रगति करने के लिए समर्पित है."

उन्होंने कहा है कि एशिया के सबसे पुराने लोकतांत्रिक समुदायों में से एक श्रीलंका के लोगों ने अपने लोकतांत्रिक मूल्यों को कायम रखते हुए दृढ़ता और चुनौतियों को झेलने की क्षमता का परिचय दिया है.

सबरी ने कहा कि "इस समय श्रीलंका की प्राथमिकता अर्थव्यवस्था को पटरी पर लौटाना है. लेकिन श्रीलंकाई लोगों के मानवाधिकारों को आगे बढ़ाना भी हमारे लिए इतना ही ज़रूरी है."

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चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के साथ श्रीलंका के राष्ट्रपति रनिल विक्रमसिंघे

इस मुद्दे पर क्या बोला चीन?

भारत की ओर से घेरे जाने के बाद चीन ने श्रीलंका का समर्थन किया है.

संयुक्त राष्ट्र में चीन के स्थायी प्रतिनिधि चेन शू ने यूएनएचसीआर में दिए अपने बयान को ट्विटर पर साझा करते हुए लिखा है, "मैंने श्रीलंका की संप्रभुता और स्वतंत्रता की सुरक्षा के प्रति अपना मजबूत समर्थन जाहिर किया है. मैं सभी पक्षों से आग्रह करता हूं कि वे विकास के लिए स्वतंत्र रूप से रास्ता चुनने के श्रीलंका के अधिकार का सम्मान करें."

चीनी के सरकारी अख़बार ग्लोबल टाइम्स ने भी ट्वीट करके चेन शू का बयान जारी किया है.

इस बयान में लिखा गया है, "चीन मानवाधिकारों को बढ़ाने एवं उनके संरक्षण की दिशा में श्रीलंका के प्रयासों की सराहना करता है और मानवाधिकारों के ज़रिए श्रीलंका के आंतरिक मामलों में दखल देने की कोशिशों का विरोध करता है."

भारत और श्रीलंका के रिश्तों पर नज़र रखने वाले विश्लेषक भारत की इस प्रतिक्रिया को बेहद दिलचस्पी से देख रहे हैं.

क्योंकि इसी बयान में भारत ने ये भी कहा है कि 'श्रीलंका के मौजूदा संकट ने ऋण आधारित अर्थव्यवस्था की सीमाओं को उजागर कर दिया है और जीवन स्तर पर इसके असर को भी सामने ला दिया है."

विश्लेषक इसे नाम लिए बग़ैर चीन की ओर संकेत बता रहे हैं.

तक्षशिला संस्थान से जुड़े यूसुफ़ उंझावाला ने एक ट्वीट करके लिखा है, "भारत ने श्रीलंका में तमिल समुदाय की समस्याओं के राजनीतिक हल की दिशा में पर्याप्त प्रगति नहीं होने पर चिंता जताई है. इसके साथ ही कर्ज के बोझ तले दबी अर्थव्यवस्था के संकट पर भी बात की है. ये घटनाक्रम हंबनटोटा में चीनी युद्धपोत आने एवं भारत द्वारा इस पर सार्वजनिक रूप से चिंता व्यक्त करने के कुछ दिन बाद सामने आया है."

अब तक भारत का रुख क्या रहा?

भारत सरकार एक लंबे समय से श्रीलंका में रहने वाले तमिल समुदाय के मुद्दों के राजनीतिक समाधान के लिए श्रीलंका सरकार पर दबाव बनाती आ रही है.

भारत सरकार चाहती है कि श्रीलंका 1987 में हुए भारत-श्रीलंका समझौते के तहत लाए गए 13वें संशोधन को पारित करे.

लेकिन श्रीलंका के सत्तारूढ़ दल श्रीलंका पीपुल्स पार्टी के बहुमत वाले सिंघला समुदाय के कट्टरपंथी नेता साल 1987 में बनाए गए प्रांतीय परिषद व्यवस्था को पूरी तरह ख़त्म करने के पक्षधर हैं.

लेकिन भारत इस मुद्दे पर इस तरह सार्वजनिक रूप से अपना पक्ष रखने से बचता रहा है.

इससे पहले 23 मार्च, 2021 को संयुक्त राष्ट्र की मानवाधिकार एजेंसी यूएनएचसीआर में श्रीलंका के ख़िलाफ़ लाए गए एक प्रस्ताव में भारत मतदान की प्रक्रिया से दूर रहा था.

ये प्रस्ताव एक ऐसे समय आया था जब तमिलनाडु विधानसभा चुनाव की ओर बढ़ रहा था और श्रीलंकाई तमिल समुदाय का मुद्दा स्थानीय राजनीति में काफ़ी अहम है.

पर तमाम सकारात्मक राजनीतिक समीकरणों के बावजूद भारत ने इस वोटिंग प्रक्रिया में हिस्सा नहीं लिया.

लेकिन चीनी युद्धपोत 'यूआन वांग 5' के श्रीलंका के हंबनटोटा बंदरगाह पर खड़े होने से जुड़ी चिंताएं सार्वजनिक रूप से दर्ज कराने के बाद भी उसे इजाज़त मिलने के बाद भारत का रुख़ बदलता दिख रहा है.

हालांकि, भारत सरकार हाल ही में श्रीलंका की आर्थिक संकट से उबरने में मदद करने के लिए उसे 3.8 अरब डॉलर की आर्थिक मदद दे चुकी है.

संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा मानवाधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा कब की गई थी * 1 Point?

इस घोषणा के परिणामस्वरूप संयुक्त राष्ट्र संघ ने 10 दिसम्बर 1948 को मानवाधिकार की सार्वभौमिक घोषणा अंगीकार की।

मानवाधिकार के उद्देश्य क्या है?

सही उत्तर शांति और सुरक्षा स्थापित करना है। मानवाधिकारों का मुख्य उद्देश्य शांति और सुरक्षा स्थापित करना है।

अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार क्या है?

अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार दिवस हर साल 10 दिसंबर को मनाया जाता है। यह दिन समानता, शांति, न्याय, स्वतंत्रता और मानव गरिमा की सुरक्षा को बढ़ावा देने के लिए मनाया जाता है।

मानवाधिकारों से आप क्या समझते हैं मानवाधिकारों की प्रकृति पर चर्चा करें?

मानव अधिकार ही समाज में ऐसा वातावरण उत्पन्न करते हैं जिसमें सभी व्यक्ति समानता के साथ निर्भीक रूप से मानव गरिमा के साथ जीवन कायम कर पाते हैं । मूलत: पश्चिम से आयातित मानवाधिकार शब्द की भी मूल संकल्पना कुछ ऐसी ही है, जिसमें मानव अधिकारों की धारणा को आवश्यक रूप से न्यूनतम मानव आवश्यकताओं पर आधारित माना है ।