इसे सुनेंरोकेंपृथ्वी की पर्पटी बनाने वाले किलोमीटर है। खनिज पदार्थ के किसी भी प्राकृतिक पिंड को शैल कहते हैं। शैल विभिन्न रंग, आकार एवं गठन की हो सकती हैं। मुख्य रूप से शैल तीन प्रकार की होती हैं-आग्नेय (इग्नियस) शैल, अवसादी (सेडिमेंट्री) शैल एवं कायांतरित (मेटामोरफ़िक) शैल। शैल किसे कहते हैं और कितने प्रकार के होते हैं? इसे
सुनेंरोकेंउत्पत्ति के आधार पर शैल के तीन प्रकार होते है। आग्नेय शैल। अवसादी शैल। कायान्तरित शैल शैल कितने प्रकार के होते हैं शैलों के प्रकार उनकी विशेषताएं लिखिए? इसे सुनेंरोकेंउत्तर :-एक से अधिक खनिजों से मिलकर शैलों का निर्माण होता है। शैले तीन प्रकार की होती है। इनके तीन वर्गीकरण निम्नलिखित है :- (1) यांत्रिक रूप से निर्मित :- जैसे बालुकाश्म, चूना प्रस्तर शैल आदि। (2) कार्बनिक रूप से निर्मित :- खड़िया, कोयला। (घ) शैल, जिसमें जीवाश्म होते हैं। कायांतरित शैल क्या है इन के प्रकार एवं निर्माण की पद्धति का वर्णन करें? इसे सुनेंरोकेंकायांतरित शैल – जो शैलें ताप अथवा दाब या फिर दोनों के कारण बनती हैं, वे कायांतरित शैल कहलाती हैं। ताप तथा दाब मूल शैल की विशेषताओं को नए खनिजों का निर्माण करके बदल देते हैं। कायांतरित शैल के प्रमुख उदाहरण स्लेट, संगमरमर, हीरा, शिस्ट आदि हैं। पृथ्वी पर खनिज कौन सी
चट्टान में पाए जाते हैं? इसे सुनेंरोकेंलौह अयस्क, मेगनीज, अभ्रक,बांकसाइट, चूना पत्थर, डोलोमाइट इत्यादि इसे सुनेंरोकेंआग्नेय चट्टान (Igneous Rock) आग से बनी चट्टानें यानी ज्वालामुखी से निकले लावा, मैग्मा एवं धूल के कणों के ठंड़ा होने पर जो चट्टाने बनती है वे आग्नेय चट्टाने कहलाती है। इन्हें प्राथमिक या मातृ शैल भी कहा जाता है। इनमें परते एवं जीवाश्म नहीं पाये जाते । पारितंत्र क्या है class 7?
इसे सुनेंरोकेंAnswers : – परितंत्र वह तंत्र जिसमें समस्त जीवधारी आपस में एक-दूसरे के साथ तथा पर्यावरण के उन भौतिक एवं रासायनिक कारकों के साथ परस्पर क्रिया करते हैं जिसमें वे निवास करते हैं ये सब ऊर्जा और पदार्थ के स्थानांतरण द्वारा संबध्द है शैल से आप क्या समझते है? इसे सुनेंरोकेंपृथ्वी की ऊपरी परत या भू-पटल (क्रस्ट) में मिलने वाले पदार्थ चाहे वे ग्रेनाइट तथा बालुका पत्थर की भांति कठोर प्रकृति के हो या चाक या रेत की भांति कोमल; चाक एवं लाइमस्टोन की भांति
प्रवेश्य हों या स्लेट की भांति अप्रवेश्य हों, चट्टान अथवा शैल (रॉक) कहे जाते हैं। Free PDF download of UP Board Solutions for Class 11 Geography : Fundamentals of Physical Geography chapter 5 Minerals and Rocks. All the questions that are asked in UP board exams are completely based on UP Board Books. So it is must that students should
have good knowledge over UP Board Books. पाठ्य-पुस्तक के प्रश्नोत्तर 1. बहुवैकल्पिक प्रश्न प्रश्न (ii) निम्न में से कौन-सा कायान्तरित शैलों का प्रमुख लक्षण है? प्रश्न (iii) निम्न में से कौन-सा एकमात्र तत्त्व वाला खनिज नहीं है? प्रश्न (iv) निम्न में से कौन-सा कठोरतम खनिज है? प्रश्न (v) निम्न
में से कौन-सी शैल अवसादी नहीं है? 2. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 30 शब्दों में दीजिए भूपटल पर पाई जाने वाली शैलों को उनकी संरचना एवं गुणों के आधार पर निम्नलिखित वर्गों में विभक्त किया जाता है
प्रश्न (ii) आग्नेय शैल क्या है? आग्नेय शैल के निर्माण की पद्धति एवं उनके लक्षण बताएँ।। भूगर्भ का तरल एवं तप्त मैग्मा, भूतल पर पहुँचकर ठण्डा होने से रवेदार कणों के रूप में जमकर आग्नेय शैल का रूप धारण कर लेता है। पृथ्वी पर जिस समय आग्नेय चट्टानों की रचना हुई, उस समय धरातल पर जीव-जन्तु नहीं थे, इसलिए इनमें जीवाश्म नहीं पाए जाते। परतविहीन कणों का मिलना इन शैलों का मुख्य लक्षण है। इसीलिए ये शैल अत्यन्त कठोर होती हैं और इन पर अपक्षयं एवं अपरदन को सबसे कम प्रभाव पड़ता है। प्रश्न (iii) अवसादी शैल का क्या अर्थ है? अवसादी शैल के निर्माण की पद्धति बताएँ। प्रश्न (iv) शैली चक्र के अनुसार प्रमुख प्रकार की शैलों के मध्य क्या सम्बन्ध होता है?
प्रश्न (ii) भूपृष्ठीय शैलों में प्रमुख
प्रकार की शैलों की प्रकृति एवं उनकी उत्पत्ति की पद्धति का वर्णन करें। आप उनमें अन्तर स्थापित कैसे करेंगे? चट्टानों
की उत्पत्ति-भूपृष्ठ के नीचे सभी चट्टानें तरल अवस्था में हैं, जिसे मैग्मा कहते हैं। जब मैग्मा आन्तरिक भाग में ठण्डा होता है या लावा के रूप में भूपृष्ठ के बाहर आकर ठण्डा होता है तो आग्नेय चट्टानों की उत्पत्ति होती है। जब बाह्य आग्नेय चट्टानों पर अपक्षय एवं अपरदने दोनों कारक अपना प्रभाव डालते हैं तो ठोस पदार्थ खण्डित होकर शैल चूर्ण में परिवर्तित होता है। इस पदार्थ को अपरदन के कारक अन्यत्र स्थान पर परिवहित करके अनेक परतों के रूप में निक्षेपित करने से परतदार चट्टानों की उत्पत्ति होती है। अत्यधिक ताप
एवं दबाव के कारण जब परतदार एवं आग्नेय चट्टानों का रूप परिवर्तित होने लगती है तब कायान्तरित चट्टानों का निर्माण होता है (चित्र 5.1)। शैली चक्र द्वारा आग्नेय, परतदार एवं कायान्तरित तीनों प्रकार की चट्टानों की उत्पत्ति पद्धति और भी स्पष्ट होती है। विभिन्न प्रकार की चट्टानों की प्रकृति एवं अन्तर 1. आग्नेय चट्टान-आग्नेय चट्टानें कलेर, रवेदार एवं अप्रवेश्य होती हैं। इनमें जीवाश्म नहीं पाए जाते हैं। प्रश्न (iii) कायान्तरित शैल क्या है? इनके प्रकार एवं निर्माण की पद्धति का वर्णन करें। कायान्तरित चट्टानों के प्रकार कायान्तरित चट्टानें रूप-परिवर्तन के परिणामस्वरूप निम्नलिखित तीन प्रकार की होती हैं 2. तापीय कायान्तरित शैल-जब भूपर्पटी में अत्यधिक उष्मा के प्रभाव से अवसादी अथवा आग्नेय चट्टानों के खनिजों में रवों का पुनर्निर्माण या रूप परिवर्तन होता है तो उसे तापीय कायान्तरित शैल कहते हैं। इसे स्पर्श रूपान्तरित शैल भी कहते हैं। इस रूपान्तरण से चूना-पत्थर संगमरमर में, बालू क्वार्ट्जाइट में तथा चिकनी मिट्टी स्लेट में और कोयला ग्रेफाइट में बदल जाता 3. क्षेत्रीय/प्रादेशिक कायान्तरित शैल-इस स्थिति में बहुत गहराई पर ताप में हुई वृद्धि और भूसंचरण का दाब एक साथ मिलकर किसी बड़े क्षेत्र पर एक साथ कार्य करता है तो पूरे क्षेत्र की चट्टानों का रूपान्तरण हो जाता है। इसी से क्षेत्रीय अथवा प्रादेशिक कायान्तरित शैल बनती हैं। परीक्षोपयोगी प्रश्नोत्तर बहुविकल्पीय प्रश्न प्रश्न 2. कायान्तरण या रूप-परिवर्तन के कारण हैं प्रश्न 3. जिप्सम है| प्रश्न 4. बेसाल्ट है प्रश्न 5. निम्नांकित में से कौन-सी चट्टान कायान्तरित नहीं है? प्रश्न 6. सम्पीडन एवं दबाव किन शैलों के निर्माण में सहायक होते
हैं? प्रश्न 7. निम्नलिखित में से कौन एक कायान्तरित चट्टान है? प्रश्न 8. निम्नलिखित में
से कौन आग्नेय चट्टान है? प्रश्न 9. निम्नलिखित में से कौन-सी कायान्तरित शैल है? प्रश्न 10. निम्नलिखित में से कौन-सी आग्नेय चट्टान है? प्रश्न 11. निम्नलिखित में से कौन-सी कायान्तरित चट्टान है? प्रश्न 12. रूपान्तरण क्रिया की सरल ऊर्जा है प्रश्न 13. निम्नलिखित में से कौन
परतदार चट्टान है? अतिलघु उत्तरीय प्रश्न प्रश्न 1. शैल या चट्टान से आप क्या समझते हैं? प्रश्न 2. आग्नेय चट्टानें कैसे बनती
हैं? प्रश्न 3. कायान्तरित या रूपान्तरित चट्टानें किन्हें कहते हैं? प्रश्न 4. कायान्तरित या
रूपान्तरित शैलों का निर्माण कैसे होता है? प्रश्न 5. अवसादी शैलें कैसे बनती हैं? प्रश्न 6. आग्नेय शैलों की दो विशेषताएँ बताइए।
प्रश्न 7. प्रमुख कायान्तरित चट्टानों के नाम
लिखिए। प्रश्न 8. पातालीय आग्नेय चट्टानें क्या हैं? उदाहरण देकर बताइए। प्रश्न 9. कायान्तरित एवं आग्नेय चट्टानों के चार-चार उदाहरण दीजिए। लघु उत्तरीय प्रश्न प्रश्न 1. स्पष्ट कीजिए-चट्टानें खनिजों का समूह हैं। प्रश्न
2. शैलों के तापीय और गत्यात्मक कायान्तरण का अन्तर बताइए। प्रश्न 3. रूपान्तरण के मुख्य प्रकार बताइए। 2. प्रादेशिक रूपान्तरण-जब रूपान्तरण की क्रिया अत्यधिक ताप एवं दबाव के कारण एक विस्तृत क्षेत्र में घटित होती है तो उसे प्रादेशिक रूपान्तरण कहते हैं। ऐसा रूपान्तरण प्रायः नवीन | पर्वतीय क्षेत्रों में पाया जाता है। यहाँ संगमरमर, स्लेट, सिस्ट, क्वार्ट्जाइट, नीस आदि रूपान्तरित शैलें व्यापक स्तर पर मिलती हैं। प्रश्न 4. शैलों को वर्गीकृत
कीजिए। 1. आग्नेय या प्राथमिक शैल-यह शैल पृथ्वी के तरल मैग्मा के शीतल होने से सर्वप्रथम निर्मित हुई थी, इसलिए इसे प्राथमिक शैल कहते है। 2. परतदार या अवसादी शैल-जल भागों में अवसादों एवं जीवावशेषों के जमाव से निर्मित शैलें अवसादी शैलें कहलाती हैं। इनका निर्माण विभिन्न अपरदन कारकों जल, वायु, हिमानी आदि से होता है। 3. रूपान्तरित या कायान्तरित शैल-दाब एवं ताप के कारण अवसादी या आग्नेय शैलों के रूप परिवर्तन के फलस्वरूप कायान्तरित शैलों का निर्माण होता है। प्रश्न 5. आग्नेय शैलों का रासायनिक संरचना के आधार पर वर्गीकरण कीजिए।
प्रश्न 6. कायान्तरित शैलों की मुख्य विशेषता एवं आर्थिक महत्त्व बताइए।
कायान्तरित शैलों का आर्थिक महत्त्व कायान्तरित शैलें आर्थिक दृष्टि से बहुत ही महत्त्वपूर्ण होती हैं। इन्हीं शैलों में सोना, हीरा, संगमरमर, चाँदी, ग्रेफाइट तथा चुम्बकीय लोहा जैसे मूल्यवान खनिज पाए जाते हैं, जिनका उपयोग उद्योगों तथा भवन-निर्माण के लिए किया जाता है। सोना, चाँदी तथा हीरा बहुमूल्य खनिज हैं। इन शैलों में गन्धक-मिश्रित जल के स्रोत पाए जाते हैं, जिनमें स्नान करने से त्वचा के रोग नष्ट हो जाते हैं। प्रश्न 7. प्रमुख कायान्तरित शैल एवं उनके मौलिक रूपों का उल्लेख कीजिए। प्रश्न 8. खनिज एवं चट्टान में अन्तर बताइए। प्रश्न 9. रूपान्तरित एवं अवसादी शैलों में अन्तर स्पष्ट कीजिए। प्रश्न 10. फोलिएशन (Foliation) एवं लिनिएशन (Lineation) में भेद कीजिए। प्रश्न 11. खनिजों का सामान्य वर्गीकरण कीजिए।
(ख) अधात्विक खनिज-इसमें धातु के अंश उपस्थित नहीं होते हैं। गन्धक, फॉस्फेट तथा नाइट्रेट आदि अधात्विक खनिज के मुख्य उदाहरण हैं। सीमेण्ट अधात्विक खनिजों का मिश्रित पदार्थ है। प्रश्न 12. निर्माण पद्धति के आधार पर अवसादी चट्टानों के तीन मुख्य प्रकार उदाहरण सहित
बताइए।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न प्रश्न 1. खनिज को परिभाषित कीजिए तथा भौतिक विशेषताओं और स्वभाव के आधार पर खनिजों की संक्षिप्त जानकारी दीजिए। भौतिक विशेषताएँ
प्रश्न 2. शैल या चट्टान से आप क्या समझते हैं? चट्टानों का वर्गीकरण कीजिए तथा उनका आर्थिक महत्त्व बताइए। ‘चट्टान’ शब्द का शाब्दिक अर्थ किसी दृढ़ एवं कठोर स्थलखण्ड से लिया जाता है, परन्तु भूतल की ऊपरी पपड़ी में मिले हुए सभी पदार्थ, चाहे वे ग्रेनाइट की भाँति कठोर हों या चीका की भाँति कोमल, चट्टान कहलाते हैं। आर्थर होम्स का मत है कि “शैल अथवा चट्टानों का अधिकतम भाग खनिज पदार्थों कां सम्मिश्रण होता है।” खनिज पदार्थों के सम्मिश्रण चाहे चीका के समान कोमल हों या क्वार्ट्जाइट के समान ठोस या बालू के समान ढीले तथा मोटे कण वाले हों, सभी चट्टान कहलाते हैं। इस आधार पर चट्टान की परिभाषा इन शब्दों में व्यक्त की जा सकती है-“चट्टान अपनी भौतिक स्थिति का वह पिण्ड है जिसके द्वारा धरातल का ठोस रूप परिणत हुआ है।” वास्तव में भूपटल के निर्माण में सहयोग देने वाले सभी तत्त्व शैल या चट्टान कहलाते हैं। चट्टानों का वर्गीकरण सामान्य रूप से चट्टानों को निम्नलिखित तीन भागों में बाँटा जा सकता है-
1. आग्नेय चट्टानें (Igneous Rocks)-‘आग्नेय’ शब्द लैटिन भाषा के Igneous शब्द का रूपान्तरण है, जिसका शाब्दिक अर्थ ‘अग्नि’ से होता है। भूगोलवेत्ताओं का विचार है कि प्रारम्भ में सम्पूर्ण पृथ्वी आग की तपता हुआ एक गोला थी, जो धीरे-धीरे ठण्डी होकर द्रव अवस्था में परिणत हुई है। द्रव अवस्था से ठोस तथा इस ठोस अवस्था से अधिकांशत: आग्नेय चट्टानें बनी हैं। वारसेस्टर नामक भूगोलवेत्ता का कथन है कि “द्रव अवस्था वाली चट्टानें जब ठण्डी होकर ठोस अवस्था में परिवर्तित हुईं, वे ही आग्नेय चट्टानें बनीं।” जब भूगर्भ का गर्म एवं द्रवित लावा । ज्वालामुखी क्रिया द्वारा धरातल पर फैलने से ठण्डा होकर ठोस बनने लगा, तभी आग्नेय चट्टानों को निर्माण हुआ। ज्वालामुखी क्रिया द्वारा इन चट्टानों का निर्माण आज भी होता रहता है, क्योंकि ये प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से अन्य चट्टानों को भी जन्म देती हैं। आग्नेय चट्टानों की विशेषताएँ–
आग्नेय चट्टानों का वर्गीकरण- विश्व में प्राचीनतम आग्नेय चट्टानों की आयु लगभग 15 अरब वर्ष ऑकी गयी है। इस प्रकार की चट्टानें प्रायद्वीपीय भारत में अधिक पायी जाती हैं। राजस्थान का अरावली पर्वत, छोटा नागपुर की गुम्बदनुमा पहाड़ियाँ, राजमहल की श्रेणी और रॉची का पठार इस प्रकार की चट्टानों के बने हैं। अजन्ता की
गुफाएँ इन्हीं चट्टानों को काटकर बनाई गयी हैं। स्थिति के अनुसार आग्नेय चट्टानों को निम्नलिखित दो भागों में बाँटा गया है(अ) आभ्यन्तरिक या आन्तरिक आग्नेय चट्टानें (Intrusive Rocks) एवं (ब) बाह्य आग्नेय चट्टानें (Extrusive Rocks)। (i) पातालीय आग्नेय चट्टानें (Plutonic lgneous Rocks)-जब भूगर्भ का गर्म एवं तप्त लावा बाहर न निकलकर अन्दर ही अन्दर जमकर ठोस हो जाता है, तो पातालीय आग्नेय शैल का निर्माण होता है। इनमें मोटे रवे पाये जाते हैं। ग्रेनाइट शैल इसका प्रमुख उदाहरण है। (ii) अर्द्ध-पातालीय आग्नेय चट्टानें (Hypabyssal-Igneous Rocks)-इन्हें मध्यवर्ती आग्नेय चट्टानें या अधिवितलीय आग्नेय चट्टानें भी कहते हैं। जब भूगर्भ का गर्म एवं तप्त लावा पृथ्वी की ऊपरी पपड़ी पर आने में असमर्थ रहता है तथा मार्ग में पड़ने वाली सन्धियों एवं दरारों में पहुँचकर जम जाता है, तब यही लावा बाद में ठण्डा होकर चट्टानों को रूप धारण कर लेता है। इन्हें अर्द्ध-पातालीय आग्नेय चट्टानों के नाम से पुकारते हैं। इनमें रवे छोटे आकार के होते हैं। लैकोलिथ, लैपोलिथ, फैकोलिथ, सिल, डाइक आदि इसके प्रमुख उदाहरण हैं। (ब) बाह्य आग्नेय चट्टानें (Extrusive Igneous Rocks)-जब भूगर्भ का तप्त एवं तरल लावा किसी कारणवश ज्वालामुखी उद्गार द्वारा धरातल के ऊपर ठोस रूप में जम जाता है। तो वह चट्टान का रूप धारण कर लेता है। इससे जिन चट्टानों का निर्माण होता है, उन्हें बाह्य आग्नेय चट्टानें कहते हैं। इनमें रवे नहीं होते। गैब्रो तथा बेसाल्ट ऐसी ही शैलें हैं। आग्नेय चट्टानों का आर्थिक उपयोग (लाभ)-आग्नेय चट्टानों में विभिन्न प्रकार के खनिज पाये जाते हैं। अधिकांश खनिज व धातु-अयस्क इसी प्रकार की चट्टानों में पाये जाते हैं। लौह-अयस्क,सोना, चाँदी, सीसा, जस्ता, ताँबा, मैंगनीज आदि महत्त्वपूर्ण धातु खनिज आग्नेय चट्टानों में पाये जाते हैं। ग्रेनाइट जैसी कठोर चट्टानों का उपयोग भवन-निर्माण में व उसके सजाने में किया जाता है। भारत के छोटा नागपुर, ब्राजील का मध्य पठारी भाग, संयुक्त राज्य अमेरिका व कनाडा के लोरेंशियन शील्ड के भागों में आग्नेय चट्टानों में अधिकांश खनिज पाये जाते हैं। 2. अवसादी या परतदार चट्टानें (Sedimentary Rocks)-भूतल के 75% भाग पर अवसादी या परतदार चट्टानों का विस्तार है, शेष 25% भाग में आग्नेय एवं कायान्तरित चट्टानें विस्तृत हैं। इन चट्टानों का निर्माण अवसादों के एकत्रीकरण से हुआ है। अपक्षय एवं अपरदन के विभिन्न साधनों द्वारा धरातल, झीलों, सागरों एवं महासागरों में लगातार मलबा (Debris) जमा होता रहता है। यह मलबा परतों के रूप में जमा होता रहता है। इस प्रकार लगातार मलबे की परत के ऊपर परत जमा होती रहती है। अत: ऊपरी दबाव के कारण नीचे वाली परतें कुछ कठोर हो जाती हैं। इन परतों के विषय में पी० जी० वारसेस्टर ने कहा है कि ‘अवसादी चट्टानों का अर्थ होता है–धरातलीय चट्टानों के टूटे मलबे तथा खनिज पदार्थ किसी स्थान पर एकत्र होते रहते हैं, जो धीरे-धीरे एक परत का रूप ले लेते हैं।” यही परतें कठोर होकर पंरतदार शैलें बन जाती हैं। इन चट्टानों में कणों के जमने का क्रम भी एक निश्चित गति से होता है। पहले मोटे कण जमा होते हैं तथा बाद में उनके ऊपर छोटे-छोटे कण जमा होते जाते हैं तथा इनके ऊपर एक महीन एवं बारीक कणों की परत जमा हो जाती है। इस प्रकार कणों का जमाव अपरदन के साधनों के ऊपर निर्भर करता है। बाद में ये चट्टानें संगठित हो जाती हैं। अवसादों के जल-क्षेत्रों में जमाव के कारण इन चट्टानों में जीवाश्म पाये जाते हैं। आरम्भिक अवस्था में इन चट्टानों का निर्माण समतल भूमि एवं जल-क्षेत्रों में होता है, परन्तु कालान्तर में इन्हीं चट्टानों द्वारा ऊँचे-ऊँचे वलित पर्वतों का निर्माण भी ‘होता है। इन चट्टानों को जोड़ने वाले मुख्य तत्त्व कैलसाइट, लौह-मिश्रण तथा सिलिका आदि हैं। भारत में इनके क्षेत्र गंगा, यमुना, सतलुज, ब्रह्मपुत्र, नर्मदा, ताप्ती, महानदी, दामोदर, कृष्णा, गोदावरी आदि नदी-घाटियाँ हैं। अवसादी चट्टानों की विशेषताएँ—अवसादी चट्टानों में निम्नलिखित विशेषताएँ पायी जाती हैं
अवसादी चट्टानों का वर्गीकरण—(क) निर्माण में प्रयुक्त साधन के अनुसार अवसादी शैलों का वर्गीकरण-अवसादी चट्टानों की निर्माण-प्रक्रिया के साधनों या, कारकों के आधार पर इन्हें ‘निम्नलिखित भागों में बाँटा जा सकता है (i) जल-निर्मित (जलज) चट्टानें-अवसादी शैलों के निर्माण में जल का महत्त्वपूर्ण योगदान होता है। पृथ्वीतल पर अधिकांश अवसादी चट्टानें जल द्वारा ही निर्मित हुई हैं। इनमें भी सबसे अधिक योगदान नदियों का रहा है। इन चट्टानों का निर्माण जलीय क्षेत्रों में होता है; अतः इन्हें जलज चट्टानें भी कहते हैं। जल द्वारा निर्मित अवसादी चट्टानों को निम्नलिखित तीन उपविभागों में बाँटा जा सकता है—(अ) नदीकृत चट्टानें, (ब) समुद्रकृत चट्टानें तथा (स) झीलकृत चट्टानें। (ii) वायु-निर्मित चट्टानें-उष्ण एवं शुष्क मरुस्थलीय क्षेत्रों की चट्टानों में यान्त्रिक अपक्षय तथा अपघटन जारी रहता है। इसलिए बहुत-सा मलबा चूर्ण एवं कणों के आकार में बिखरा पड़ा रहता है। वायु इस मलबे को समय-समय पर विभिन्न स्थानों पर लगातार परतों के रूप में जमा करती रहती है। बाद में इस जमा हुए मलबे से अवसादी चट्टानों का निर्माण हो जाता है। लोयस के जमाव इसी प्रकार होते हैं। (iii) हिमानी-निर्मित चट्टानें-उच्च पर्वतीय क्षेत्रों में हिमानियाँ अपरदन एवं निक्षेपण की क्रियाएँ करती हैं। निक्षेपण की क्रिया से हिमानीकृत जो अवसादी चट्टानों का निर्माण होता है, उन्हें ‘हिमोढ़’ अथवा ‘मोरेन’ कहा जाता है। (ख) निर्माण प्रक्रिया के अनुसार अवसादी शैलों का वर्गीकरण-निर्माण-प्रक्रिया के अनुसार अवसादी शैलों का वर्गीकरण निम्नवत् है– (ii) जैविक तत्त्वों से निर्मित चट्टानें-वनस्पतियों, जीव-जन्तुओं आदि के अवशेष भूतल में दब जाने से काफी समय बाद कार्बनिक चट्टानों के रूप में परिणत हो जाते हैं। दबाव की क्रिया के फलस्वरूप ये कठोर रूप धारण कर लेते हैं। इस क्रिया में निर्मित चट्टानों में कोयला, मूंगे की चट्टान, चूने का पत्थर एवं पीट आदि का , महत्त्वपूर्ण स्थान है। (iii) रासायनिक तत्त्वों से निर्मित चट्टानें-इन चट्टानों का निर्माण चूने एवं जीव-जन्तुओं के अवशेषों का जल में घुलकर होने से हुआ है। अधिकांशतः इन चट्टानों के जमाव समुद्री भागों में मिलते हैं। जब चट्टानों में ऑक्सीजन तथा कार्बन डाइ-ऑक्साइड गैसें प्रवेश करती हैं तो वे चट्टानों के रासायनिक संगठन को परिवर्तित कर देती हैं। खड़िया, सेलखड़ी, डोलोमाइट, जिप्सम, नमक आदि इसी प्रकार की चट्टानें हैं। इन चट्टानों पर अपक्षय की क्रियाओं का प्रभाव शीघ्रता से पड़ता है। अवसादी चट्टानों का आर्थिक उपयोग (लाभ)-अवसादी चट्टाने अनेक प्रकार से उपयोगी हैं। वर्तमान में सभी देशों में नदियों द्वारा निर्मित समतल अवसादी मैदान, बालू के महीन जमाव के लोयस के मैदान आदि विश्व के सबसे उपजाऊ एवं सघन क्रियाकलाप एवं सघन बसाव के प्रदेश हैं। विश्व की सभ्यता के विकास का निर्माण इन्हीं उपजाऊ एवं सघन मैदानों में किया जाता रहा है। बलुआ पत्थर, चूने के पत्थर आदि का उपयोग भवन-निर्माण में किया जाता है। चूना एवं डोलोमाइट व अन्य मिट्टियाँ इस्पात उद्योग में काम आती हैं। अवसादी चट्टानों से प्राप्त चूने के पत्थर का उपयोग सीमेण्ट बनाने में किया जाता है। सीमेण्ट उद्योग आज विश्व के प्रमुख उद्योगों में गिना जाता है। जिप्सम का उपयोग विविध प्रकार के उद्योगों—चीनी मिट्टी के बर्तन, सीमेण्ट आदि में किया जाता है। अनेक प्रकार के क्षार, रसायन, पोटाश एवं नमक जो कि अवसादी चट्टानों से प्राप्त होते हैं— विभिन्न रासायनिक उद्योगों के आधार हैं। कोयला एवं खनिज तेल भी अवसादी चट्टानों से प्राप्त होते हैं। ये शक्ति के प्रमुख स्रोत हैं। आज का औद्योगिक विकास कोयले के कारण ही सम्भव हो सका है। 3. कायान्तरित चट्टानें (Metamorphic Rocks)–इन्हें रूपान्तरित चट्टानों के नाम से भी पुकारा जाता है। अंग्रेजी भाषा का मेटामोरफिक’ शब्द मेटा एवं मार्फे शब्दों के सम्मिलन से बना है। अतः मेटा का अर्थ परिवर्तन तथा मार्फे का अर्थ रूप से है अर्थात् ”जिन चट्टानों में दबाव, गर्मी एवं रासायनिक क्रियाओं द्वारा उनकी बनावट, रूप तथा खनिजों का पूर्णरूपेण कायापलट हो जाता है, कायान्तरित चट्टानें कहलाती हैं।” विश्व के प्राय: सभी प्राचीन पठारों पर कायान्तरित चट्टानें मिलती हैं। भारत में ऐसी चट्टानें दक्षिण के प्रायद्वीप, दक्षिण अफ्रीका के पठारे और दक्षिणी अमेरिका के ब्राजील के पठार, उत्तरी कनाडा, स्कैण्डेनेविया, अरब, उत्तरी रूस और पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया के पठार पर पायी जाती हैं। चट्टानों का कायान्तरण भौतिक तथा रासायनिक दोनों ही क्रियाओं से सम्पन्न होता है। इसमें चट्टान एवं खनिज का रूप पूरी तरह से परिवर्तित हो जाता है। इन चट्टानों में भूगर्भ के ताप, दबाव, जलवाष्प, भूकम्प आदि कारणों से उनके मूल गुणों में परिवर्तन आ जाता है। रूप-परिवर्तन के बाद इनकी प्रारम्भिक स्थिति भी नहीं बतायी जा सकती। मूल चट्टान
के रूपान्तरण से उसके रूप, रंग, कायान्तरण अथवा रूप-परिवर्तन के कारण—चट्टानों का कायान्तरण निम्नलिखित कारणों के फलस्वरूप होता है– 2. सम्पीडन एवं दबाव-कायान्तरण में महाद्वीपों पर पर्वत–निर्माणकारी बलों एवं भूकम्प आदि से चट्टानों पर भारी दबाव पड़ता है जिससे चट्टानें टूटती ही नहीं, बल्कि उनका रूपान्तरण अथवा कायान्तरण हो जाता है। 3. घोलन शक्ति-सामान्यतया जल सभी पदार्थों को अपने में घोलने की शक्ति रखता है, परन्तु जब इस जल में ऑक्सीजन तथा कार्बन डाइऑक्साइड जैसी गैसें मिलती हैं तो इसकी घुलन-शक्ति कई गुना बढ़ जाती है। वर्षा का जल इसका प्रमुख उदाहरण है। वर्षा का जल चट्टानों के साथ मिलकर रासायनिक अपरदन का कार्य करता है जिससे वह चट्टानों को अपने में घोल लेता है। इससे चट्टानों की संरचना में रासायनिक रूपान्तरण हो जाता है। इस प्रकार आग्नेय चट्टानें शिस्ट में, शैल स्लेट में, ग्रेनाइट नीस में, बलुआ पत्थर क्वार्ट्जाइट में, बिटुमिनस एन्थ्रेसाइट में तथा चूना-पत्थर संगमरमर में रूपान्तरित हो जाती हैं। कायान्तरित चट्टानों की विशेषताएँ—कायान्तरित चट्टानों में अग्रलिखित विशेषताएँ पायी जाती हैं
कायान्तरित चट्टानों का आर्थिक उपयोग (लाभ)-कायान्तरित चट्टानों में अनेक प्रकार के महत्त्वपूर्ण धातु खनिज पाये जाते हैं जो मानव के लिए अनेक प्रकार से उपयोगी हैं। अधिकांश बहुमूल्य खनिज (संगमरमर, सोना, चाँदी और हीरा) कायान्तरित चट्टानों से ही प्राप्त होते हैं। संगमरमर, जो एक प्रमुख कायान्तरित चट्टान है, भवन निर्माण में प्रयोग होता है। विश्वप्रसिद्ध ताजमहल एवं अनेक महत्त्वपूर्ण मन्दिर इसी प्रकार की चट्टान (संगमरमर) से निर्मित हैं। एन्थेसाइट कोयला, ग्रेनाइट एवं हीरा भी बहु-उपयोगी कायान्तरित चट्टानें हैं। अभ्रक जैसे खनिज भी बार-बार अवसादी चट्टानों के कायान्तरण होने से बनते हैं। कठोर क्वार्ट्जाइट का निर्माण भी अवसादी चट्टान के कायान्तरण से हुआ है एवं इसका उपयोग सुरक्षा एवं अन्य विशेष धातु उद्योग में अधिक होता है। चट्टानों का आर्थिक महत्त्व चट्टानें मानवीय जीवन के लिए अति महत्त्वपूर्ण तथा उपयोगी होती हैं। मानव को लगभग 2,000 वस्तुएँ चट्टानों एवं इनके माध्यम से प्राप्त होती हैं। पर्वत निर्माणकारी घटनाएँ, भूकम्प आदि विस्तृत वन क्षेत्रों को मिट्टी में दबा देती हैं, कालान्तर में ये कोयले में परिणत हो जाते हैं। कोयले की निर्माण प्रक्रिया में भी चट्टानों का अधिक हाथ रहता है। इमारती पत्थर, औद्योगिक खनिज-लोहा, कोयला एवं खनिज तेल तथा कीमती धातुएँ–सोना, चाँदी, टिन आदि इन्हीं चट्टानों से प्राप्त होती हैं। समस्त पृथ्वी की ऊपरी पपड़ी जिस पर मानव एवं जीव-जगत बसा हुआ है, चट्टानों के बारीक चूर्ण से ही निर्मित हुई है। चट्टानों के आर्थिक महत्त्व को निम्नलिखित शीर्षकों के माध्यम से प्रस्तुत किया जा सकता है– 1. कृषि के क्षेत्र में-उपजाऊ मिट्टी कृषि का आधार है। उपजाऊ मिट्टी के निर्माण में शैलों का विशेष महत्त्व रहता है। शैल चूर्ण जमकर ही उपजाऊ मिट्टी को जन्म देते हैं। अन्न, फल, शाक, भाजी, कपास, गन्ना, रबड़, नारियल, चाय, कहवा तथा गरम मसाले सभी मिट्टी में ही उगाये जाते हैं। 2. चरागाहों के क्षेत्र में-हरी घास के विस्तृत क्षेत्र चरागाह कहलाते हैं। हरी घास पशुओं को पौष्टिक चारा उपलब्ध कराती है। चरागाह पशुपालन के आदर्श क्षेत्र माने जाते हैं। हरी घास शैलों में ही उगा करती है; अत: पशुचारण और पशुपालन में भी शैलों की उपयोगिता अद्वितीय मानी गयी है। 3. भवन-निर्माण के क्षेत्र में-पत्श्रर भवन-निर्माण की प्रमुख सामग्री है। स्लेट, चूना-पत्थर, बलुआ पत्थर तथा संगमरमर भवन-निर्माण में सहयोग देते हैं। भवन-निर्माण का सस्ता और टिकाऊ मसाला चट्टानों से प्राप्त पदार्थों से ही बनाया जाता है। संगमरमर तथा ग्रेनाइट पत्थर भवनों को सुन्दर तथा भव्य स्वरूप प्रदान करते हैं। 4. खनिज उत्पादन के क्षेत्र में-खनिज पदार्थों का जन्म भूगर्भ में शैलों द्वारा ही होता है। शैलें सोना,चाँदी, ताँबा, लोहा, कोयला, मैंगनीज तथा अभ्रक आदि उपयोगी खनिजों को जन्म देकर जहाँ मानव के कल्याण की राह खोलती हैं, वहीं कोयला तथा खनिज तेल देकर ऊर्जा तथा तापमान के स्रोत बन जाती हैं। 5. उद्योगों को कच्चे माल प्रदान करने के क्षेत्र में- कृषिगत उपजों, वन्य पदार्थों तथा खनिज पदार्थों पर अनेक उद्योग-धन्धे निर्भर होते हैं। चट्टानें एक ओर तो उद्योगों को कच्चे माल देकर उनका पोषण करती हैं और दूसरी ओर शक्ति के साधनों की आपूर्ति करके उन्हें ऊर्जा तथा चालक-शक्ति प्रदान करती हैं। राष्ट्र का आर्थिक विकास जहाँ उद्योग-धन्धों पर निर्भर है, वहीं उद्योग-धन्धों का विकास शैलों से प्राप्त कच्चे मालों पर निर्भर करता है। 6. मानवीय आवश्यकताओं की पूर्ति के क्षेत्र में- शैलें मानव को उसकी तीनों प्रथमिक आवश्यकताओं-भोजन, वस्त्र और मकान की आपूर्ति कराती हैं। मानव के पोषण में शैलों की विशेष सहयोग रहता है। 7. पेयजल स्रोतों के रूप में- पृथ्वी पर मानव के लिए पेयजल भूस्तरीय जल के अतिरिक्त भूगर्भीय जल भी होता है। भूगर्भीय जल चट्टानों में स्वस्थ और सुरक्षित रहता है। भूस्तरीय जल नदियों, झरनों और झीलों के रूप में तथा भूगर्भीय जल हैण्डपम्पों, पम्पसेटों तथा नलकूपों के द्वारा प्राप्त होता है। 8. मानवीय सभ्यता के गणक के रूप में-मानव सभ्यता का ज्ञान प्रदान कराने में चट्टानों का विशेष , योगदान रहता है। पृथ्वी की आयु व आन्तरिक संरचना चट्टानों की निर्माण-प्रक्रिया को आधार मानकर ही ज्ञात की जाती है। शैलों की रचना तथा निर्माण प्रक्रिया के अध्ययन से भूविज्ञान तथा भूगर्भ विज्ञान के अध्ययन में बहुत सहायता मिलती है। इस प्रकार हम यह कह सकते हैं कि शैलें मानव के कल्याण का मार्ग प्रशस्त करती हैं तथा उसे अधिक सुख-सुविधाएँ उपलब्ध कराती हैं। वर्तमान विश्व का सम्पूर्ण औद्योगिक ढाँचा तथा प्रौद्योगिकी तन्त्र शैलों से ही अनुप्रमाणित है। We hope the UP Board Solutions for Class 11 Geography: Fundamentals of Physical Geography Chapter 5 Minerals and Rocks (खनिज एवं शैल) help you. If you have any query regardingUP Board Solutions for Class 11 Geography: Fundamentals of Physical Geography Chapter 5 Minerals and Rocks (खनिज एवं शैल), drop a comment below and we will get back to you at the earliest. शैल निर्माण क्या है?तत्वों के आपस में संयोजन से विभिन्न प्रकार के खनिजों का निर्माण होता हे इन खनिजों का निर्माण मूलतः: मैग्मा के ठंडे होने से होता है। पृथ्वी का ऊपरी भाग शैल से बना है। एक या एक से अधिक खनिजों से मिलकर शैल बनती है साधरण मिट्टी से लेकर कठोर चट्टानों तक को शैल कहते है।
शैल क्या है इसके प्रकारों की व्याख्या करें?पृथ्वी की ऊपरी परत या भू-पटल (क्रस्ट) में मिलने वाले पदार्थ चाहे वे ग्रेनाइट तथा बालुका पत्थर की भांति कठोर प्रकृति के हो या चाक या रेत की भांति कोमल; चाक एवं लाइमस्टोन की भांति प्रवेश्य हों या स्लेट की भांति अप्रवेश्य हों, चट्टान अथवा शैल (रॉक) कहे जाते हैं। इनकी रचना विभिन्न प्रकार के खनिजों का सम्मिश्रण हैं।
शैल से आप क्या समझते है निर्माण पद्धति के आधार?शैल का निर्माण एक या एक से अधिक खनिजों से मिलकर होता है। शैल कठोर या नरम तथा विभिन्न रंगों की हो सकती है । जैसे, ग्रेनाइट कठोर तथा शैलखड़ी नरम है । गैब्रो काला तथा क्वार्टज़ाइट दूधिया श्वेत हो सकता है।
कायांतरित शैल क्या है इन के प्रकार एवं निर्माण की पद्धति का वर्णन करें?कायांतरित शैल – जो शैलें ताप अथवा दाब या फिर दोनों के कारण बनती हैं, वे कायांतरित शैल कहलाती हैं। ताप तथा दाब मूल शैल की विशेषताओं को नए खनिजों का निर्माण करके बदल देते हैं। कायांतरित शैल के प्रमुख उदाहरण स्लेट, संगमरमर, हीरा, शिस्ट आदि हैं।
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