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हाथी के मस्तक तक कूद जाता था ये वर्ल्ड फेमस घोड़ा, मौत के बाद बनी समाधि
जयपुर। देश में वीरता की गाथाओं में महाराणा प्रताप की शौर्य की कहानी पहले पायदान पर आती है। कहते हैं राणा का घोड़ा चेतक उनका सबसे वफादार और सच्चा साथी था। रणभूमि में वह हवा से बातें करता हुआ हाथी के मस्तक तक छलांग लगा लेता था। ऐसे में राणा को हाथी पर बैठे दुश्मन सेनापति को ढेर करने में समय नहीं लगता था। 4 साल तक रहा राणा और चेतक का साथ… अगली स्लाइड्स में क्लिक करके देखिए प्रताप और चेतक की और फोटोज… महाराणा प्रताप और चेतक का स्मारक महाराणा प्रताप के सबसे प्रिय और प्रसिद्ध नीलवर्ण ईरानी मूल के घोड़े का नाम चेतक था।[1] चेतक अश्व गुजरात के चारण व्यापारी काठियावाड़ी नस्ल के तीन घोडे चेतक,त्राटक और अटक लेकर मेवाड़ आए। अटक परीक्षण में काम आ गया।[2] त्राटक महाराणा प्रताप ने उनके छोटे भाई शक्ती सिंह को दे दिया और चेतक को स्वयं रख लिया। इन घोड़ों के बदले महाराणा ने चारण व्यापारियों को जागीर में गढ़वाड़ा और भानोल नामक दो गाँव भेंट किए।[3] चेतक को 'ग्रुलो' रंग का स्टालियन (नीला रंग, काठियावाड़ी नस्लों में पाया जाने वाला एक आदिम रंग) या ग्रे रंग (स्थानीय भाषा में 'रोजो') का माना जाता है, इसलिए "हो नीला घोड़ा रा अस्वार" अथवा "ओ नीले घोड़े के सवार" से ऐतिहासिक साहित्य में प्रताप को संबोधित किया गया है।[3] हल्दी घाटी-(१५७६) के युद्ध में चेतक ने अपनी अद्वितीय स्वामिभक्ति, बुद्धिमत्ता एवं वीरता का परिचय दिया था। युद्ध में बुरी तरह घायल हो जाने पर भी महाराणा प्रताप को सुरक्षित रणभूमि से निकाल लाने में सफल वह एक बरसाती नाला उलांघ कर अन्ततः वीरगति को प्राप्त हुआ। हिंदी कवि श्याम नारायण पाण्डेय द्वारा रचित प्रसिद्ध महाकाव्य हल्दी घाटी में चेतक के पराक्रम एवं उसकी स्वामिभक्ति की मार्मिक कथा वर्णित हुई है। आज भी राजसमंद के हल्दी घाटी गांव में चेतक की समाधि बनी हुई है, जहाँ स्वयं प्रताप और उनके भाई शक्तिसिंह ने अपने हाथों से इस अश्व का दाह-संस्कार किया था। चेतक की स्वामिभक्ति पर बने कुछ लोकगीत मेवाड़ में आज भी गाये जाते हैं।[4] चेतक की वीरता[संपादित करें]हिन्दी के प्रसिद्ध कवि श्यामनारायण पाण्डेय ने 'चेतक की वीरता' नाम से एक सुन्दर कविता लिखी है-
हल्दीघाटी के वीर योद्धा[संपादित करें]
संदर्भ[संपादित करें]
बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]
शत्रु सेना उसे देख चकित क्यों रह गई?शत्रु सेना क्या देखकर चकित रह गई ? शत्रु सेना चेतक की वीरता, निडरता को देखकर चकित रह गयी । चेतक वफादार व निडर था वह शत्रुओं का सामना शीघ्रता से करता था । उसके टापों की आवाज से दुश्मन के हाथों से तलवारे व भाले गिर जाते थे ।
चेतक की क्या क्या विशेषता थी?हल्दी घाटी-(१५७६) के युद्ध में चेतक ने अपनी अद्वितीय स्वामिभक्ति, बुद्धिमत्ता एवं वीरता का परिचय दिया था। युद्ध में बुरी तरह घायल हो जाने पर भी महाराणा प्रताप को सुरक्षित रणभूमि से निकाल लाने में सफल वह एक बरसाती नाला उलांघ कर अन्ततः वीरगति को प्राप्त हुआ।
चेतक की टापू का दुश्मन पर क्या असर हुआ?Expert-Verified Answer. चेतक की टॉप का दुश्मनों पर यह असर होता था कि चेतक की टॉप सुनकर दुश्मनों के दिल दहल जाते थे। चेतक महाराणा प्रताप का बेहद प्रिय घोड़ा था। वह बेहद स्वामीभक्त घोड़ा था।
चेतक के मुख पर क्या लगाया जाता था?चेतक को महाराणा प्रताप ने युद्ध के लिए अच्छे से प्रशिक्षण दिया था। कहते हैं युद्ध के दौरान चेतक को हाथी की नकली सूंढ़ लगाई जाती थी जिससे दुश्मन भ्रम में रहें।
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