कविता का शाब्दिक अर्थ क्या है कविता कैसे बनती है? - kavita ka shaabdik arth kya hai kavita kaise banatee hai?

कविता के बारे में अक्सर यह प्रश्न किया जाता है कि कविता क्या है? यद्यपि इस प्रश्न का उत्तर देना कठिन है, फिर भी हम कह सकते हैं कि कविता हमारे हृदय को आनन्द प्रदान करती है, हमें संवेदनशील बनाती है और हमारे मन को छू लेती है। अन्य शब्दों में हम कह सकते हैं, “कविता संवेदनशील तथा रागात्मक अनुभूतियों की अभिव्यक्ति है।” कविवर पंत ने इस प्रश्न का उत्तर देते हुए कहा भी है-“कविता हमारे परिपूर्ण क्षणों की वाणी है। अपने उत्कृष्ट क्षणों में हमारा जीवन छंद ही में बहने लगता है।”

प्रश्न 2.
कविता कैसे बनती है?
उत्तर:
“कविता कैसे बनती है?” इस प्रश्न का उत्तर दे पाना भी अत्यंत कठिन है। कवि एक प्रतिभा-संपन्न व्यक्ति होता है। अतः जिस बात को कवि कहता है, हम उस तरह नहीं कह सकते। अतः यह कहना गलत न होगा कि कविता लिखने की प्रणाली की शिक्षा नहीं दी जा सकती। फिर भी कुछ पाश्चात्य विश्वविद्यालयों तथा भारतीय विश्वविद्यालयों में कविता लिखने के लिए प्रशिक्षण दिया जाने लगता है। सम्भवतः कविता लिखने की शिक्षा प्राप्त करने के बाद व्यक्ति सफल कवि भले ही न बन सके, लेकिन एक सहृदय एवं संवेदनशील पाठक अवश्य बन जाएगा। वस्तुतः एक अच्छी कविता को बार-बार पढ़ने को मन करता है। उसके भाव हमारे मन में स्थायी रूप में स्थान ग्रहण कर लेते हैं और वह कविता हमें बार-बार सोचने के लिए मजबूर कर देती है।

जिस प्रकार चित्रकला में रंग, कुची कैनवास की आवश्यकता होती है और संगीत में स्वर, ताल, लय आदि की उसी प्रकार कविता रचने के लिए बाह्य उपकरणों की आवश्यकता नहीं होती, लेकिन इतना निश्चित है कि कविता की रचना करने के लिए भाषागत उपकरणों की आवश्यकता अवश्य पड़ती है। भाषा तो सबके पास होती है और यही भाषा अन्य विषयों को पढ़ने का माध्यम होती है। लेकिन कवि अपनी इच्छानुसार शब्दों का प्रयोग करता है और उनके माध्यम से लय उत्पन्न करता है। संक्षेप में हम कह सकते हैं कि कविता की रचना करने के लिए भाषा पर समुचित अधिकार होना नितान्त आवश्यक है। एक सफल कवि अपनी आवश्यकतानुसार भाषा का प्रयोग करके अपने भावों को अभिव्यक्त करता है और कविता की रचना करता है।

कविता का शाब्दिक अर्थ क्या है कविता कैसे बनती है? - kavita ka shaabdik arth kya hai kavita kaise banatee hai?

प्रश्न 3.
कविता में शब्द-चयन का क्या महत्त्व है?
उत्तर:
कविता का प्रथम उपकरण शब्द ही है। आचार्य भामह ने शब्द और अर्थ के सहित भाव को ही कविता कहा है। इसका अर्थ है कि सार्थक शब्दों के प्रयोग से कविता बनती है। अंग्रेजी कवि डब्ल्यू०एच० आर्डेन ने उचित ही कहा है-Play with the words अर्थात् कविता लिखने के लिए आरंभ में शब्दों से खेलना आवश्यक है। जो व्यक्ति कविता की रचना करना सीखना चाहता है, उसे शब्दों से मेल-जोल बढ़ाना चाहिए और शब्दों के भीतर छिपे हुए अर्थों को खोजना चाहिए। शब्दों से जुड़कर ही हम कविता के संसार में प्रवेश कर सकते हैं। अक्सर बच्चे भी गीतों की रचना कर लेते हैं। इसका कारण यह है कि कविता की रचना करने की प्रतिभा थोड़ी-बहुत सबमें होती है। केवल बच्चों द्वारा रचित गीतों को तराशने की आवश्यकता होती है यथा
बारिश आई छम-छम-छम
लेकर छाता निकले हम
बादल गरजा डम-डम-डम
पैर फिसल गया गिर गए हम
नीचे छाता ऊपर हम।
अथवा
वाह जी वाह
हमको बुद्धू ही निरा समझा है।
हम समझते ही नहीं जैसे कि
आपको बीमारी है-
आप घटते हैं तो घटते ही चले जाते हैं,
और बढ़ते हैं तो बस यानी कि
बढ़ते ही चले जाते हैं-
दम नहीं लेते हैं जब तक बिलकुल ही
गोल न हो जाएँ
बिल्कुल गोल।
यह मरज़ आपका अच्छा ही नहीं होने में
-शमशेर बहादुर सिंह
ऊपर दिए गए पद्यांशों में कवि ने शब्दों तथा यह उनकी ध्वनियों का सोच समझकर चयन किया है। वस्तुतः शब्दों से खेलने का प्रयास है। धीरे-धीरे कवि तुकबंदी के बाद लय और व्यवस्था की ओर ध्यान देने लगता है। यही प्रवृत्ति आगे चलकर कवि को अच्छी कविताओं की रचना करने की प्रेरणा देने लगती है।

प्रश्न 4.
कविता में बिंब और छंद का क्या महत्त्व है?
उत्तर:
‘बिंब’ का शाब्दिक अर्थ है प्रतिमूर्ति या छाया तथा छंद का अर्थ है-वर्ण, मात्रा आदि की गणना के आधार पर होने वाली वाक्य रचना अर्थात् पद्य। इसे आंतरिक लय भी कह सकते हैं। हम संसार को अपनी इंद्रियों के माध्यम से जान सकते हैं। हम बाहरी दुनिया में जो कुछ देखते हैं उसमें कुछ ऐसी संवेदना होती है जो हमारे मन में बिंब के रूप में परिवर्तित हो जाती है। कविता में कुछ ऐसे शब्द होते हैं। जिन्हें सुनने मात्र से ही हमारे मन में चित्र उत्पन्न हो जाते हैं। ये स्मृति चित्र ही शब्दों के माध्यम से बिंबों का निर्माण करते हैं। उदाहरण के रूप में अज्ञेय की निम्नलिखित पंक्तियाँ देखिए
“उड़ गई चिड़िया
कॉपी, फिर
थिर
हो गई पत्ती।”
इन पंक्तियों में ‘उड़ गई चिड़िया’ पढ़ते ही हमारी स्मृति में चिड़िया के उड़ने का आकार, उसकी तत्परता, पंख फड़फड़ाने आदि चित्र हमारे मन में अंकित हो जाएगा। नए पत्ते का कांपना तथा स्थिर होने के चित्र के साथ हमारी एकाकारिता हो जाएगी। अज्ञेय की कविता अपने बिंबों के लिए प्रसिद्ध है। उन्होंने अपने बिंबों द्वारा अपनी अभिव्यक्ति को न केवल मनोहारी बनाया है, बल्कि अपने कथनों को अत्यधिक रोचक व मनोरंजक भी बनाया है। उनका संपूर्ण काव्य बिंब-विधान की दृष्टि से समृद्ध कहा जा सकता है।

कविता की रचना करते समय आरंभ में दृश्य और श्रव्य बिंबों के निर्माण का प्रयास करना चाहिए, क्योंकि ये बिंब सभी को अपनी ओर आकर्षित करते हैं। यह कहना गलत न होगा कि कवि स्पर्श, स्वाद, दृश्य, घ्राण तथा श्रव्य रूपी पाँच अंगुलियों द्वारा कविता को पकड़ने का प्रयास करते हैं। इसी आधार पर साहित्य में पाँच बिंब-स्पर्श बिंब, गंध बिंब, ध्वनि बिंब, आस्वाद्य बिंब तथा दृश्य बिंब प्रसिद्ध हैं।

यह कहना अनुचित न होगा कि छंद भी कविता के लिए अनिवार्य है। छंद को आंतरिक लय भी कहा जा सकता है। मुक्त छंद के लिए भी अर्थ की लय आवश्यक है। एक सफल कवि को भाषा के संगीत का ज्ञान होना चाहिए। जिन कवियों ने मुक्त छंद में कविता की रचना की है उनमें भले ही कोई विशेष छंद का प्रयोग न हो परंतु उसमें संगीतात्मकता तथा लयबद्धता तो होती ही है। यथा धूमिल द्वारा रचित कविता मोचीराम का उदाहरण देखिए-
“बाबू जी! सच कहूँ मेरी निगाह में
न कोई छोटा है
न कोई बड़ा है
मेरे लिए हर आदमी एक जोड़ी जूता है
जो मेरे सामने
मरम्मत के लिए खड़ा है।”
अथवा
अज्ञेय द्वारा रचित निम्नलिखित पद्य पंक्तियाँ देखिए-
“तुम्हारी देह
मुझको कनक-चम्पे की कली है
दूर ही से
स्मरण में भी गंध देती है।
(रूप स्पर्शातीत वह जिसकी लुनाई कुहासे-सी चेतना को मोह ले।)”

कविता का शाब्दिक अर्थ क्या है कविता कैसे बनती है? - kavita ka shaabdik arth kya hai kavita kaise banatee hai?

प्रश्न 5.
कविता की संरचना किस प्रकार की जाती है?
उत्तर:
कविता की संरचना के लिए सर्वप्रथम कविता संबंधी बुनियादी जानकारी होना आवश्यक है। सर्वप्रथम, कविता की रचना करने के लिए कवि के पास विभिन्न वस्तुओं को देखने और पहचानने की नवीन दृष्टि होनी चाहिए। विषय वस्तु को प्रस्तुत करने की कला का ज्ञान भी अवश्य होना चाहिए। इसी को हम प्रतिभा भी कहते हैं। प्रतिभा प्रकृति की देन है। यह प्रत्येक आदमी के पास किसी-न-किसी रूप में अवश्य होती है। किसी नियम या सिद्धांत का अनुसरण करते हुए प्रतिभा उत्पन्न नहीं की जा सकती। फिर भी निरंतर अभ्यास और शास्त्र ज्ञान द्वारा इसे हम विकसित अवश्य कर सकते हैं। कविता की संरचना करते समय शब्द चयन का विशेष ध्यान रखना पड़ता है। अन्य शब्दों में हम कह सकते हैं कि शब्द चयन भावात्मक होने के साथ-साथ लयात्मक होना चाहिए। शब्द ज्ञान से ही भाषा पर हमारी पकड़ मजबूत होती है। इन विशेषताओं द्वारा भले ही हम कविता की रचना न कर सकें परंतु कविता की रचना करने का प्रयास अवश्य कर सकते हैं। यही नहीं, ऐसा करने से हम कविता का रसास्वादन कर सकते हैं और उसकी सराहना भी कर सकते हैं। शब्दों के संसार में प्रवेश करने से विद्यार्थियों की रचनात्मक शक्ति बाहर आती है। अतः कविता की संरचना के लिए कवि को शब्दों का समुचित ज्ञान होना चाहिए।

प्रश्न 6.
कविता के प्रमुख घटक कौन-कौन से हैं?
उत्तर:
कविता के प्रमुख घटक निम्नलिखित हैं

  • कविता भाषा में ही रची जाती है इसलिए कविता की रचना के लिए कवि को भाषा का सम्यक् ज्ञान होना चाहिए।
  • शब्दों के समुचित संयोजन से भाषा बनती है। शब्दों का सही विन्यास ही वाक्य का निर्माण करता है। कवि को सहज, सरल तथा प्रचलित भाषा का प्रयोग करना चाहिए। परंतु कविता की संरचना इस प्रकार करनी चाहिए कि पाठक को कुछ नया सा लगे।
  • कविता में संकेतों का विशेष महत्त्व होता है। इसलिए कविता की पंक्तियों में लगने वाले चिह्नों (, – ! – 1) का विशेष ध्यान रखा जाना चाहिए। वाक्य विन्यास की विशेष प्रणालियाँ ही शैली का निर्माण करती हैं।
  • कविता चाहे छंद में रचित हो या मुक्त छंद में, कवि को छंदों का समुचित ज्ञान अवश्य होना चाहिए अन्यथा कविता वांछित प्रभाव उत्पन्न नहीं कर पाएगी।
  • कविता समसामयिक प्रवृत्तियों से संबंधित होनी चाहिए।
  • कविता लिखते समय कम-से-कम शब्दों का प्रयोग करना चाहिए क्योंकि कम-से-कम शब्दों में अधिक-से-अधिक बात करना एक उल्लेखनीय प्रवृत्ति होती है।

संक्षेप में हम कह सकते हैं कि उपयुक्त शब्द चयन लय, तुक, वाक्य संरचना, बिंब विधान, छंद विधान तथा कम-से-कम शब्दों का प्रयोग ही कविता के प्रमुख घटक हैं।

पाठ से संवाद

प्रश्न 1.
आपने अनेक कविताएँ पढ़ी होंगी। उनमें से आपको कौन-सी कविता सबसे अच्छी लगी? लिखिए। यह भी बताइए कि आपको वह कविता क्यों अच्छी लगी।
उत्तर:
यूं तो मैंने अनेक कविताएँ पढ़ी हैं परंतु मुझे कविवर ‘निराला’ द्वारा रचित ‘भिक्षुक’ नामक कविता बहुत अच्छी लगी है। इस कविता का एक अंश देखिए
“वह आता
दो टूक कलेजे के करता पछताता पथ पर आता।
पेट पीठ दोनों हैं मिलकर एक,
चल रहा लकुटिया टेक,
मुट्ठी भर दाने को भूख मिटाने को
मुँह फटी पुरानी झोली का फैलाता
दो टूक कलेजे के करता पछताता पथ पर आता।”
यह ‘भिक्षुक’ कविता का प्रथम काव्यांश है जिसमें कवि ने एक भिक्षुक की दीन-हीन स्थिति का बड़ा ही मार्मिक वर्णन किया है। इसमें कवि की गहन मानवीय संवेदना देखी जा सकती है। बिंब तथा छंद की दृष्टि से यह विशेष महत्त्व रखती है। एक दीन-हीन भिक्षुक का बिंब हमारे स्मृति पटल पर अंकित हो जाता है। भले ही यह कविता मुक्त छंद में रचित है परंतु इसमें आंतरिक लय विद्यमान है। शब्द चयन बड़ा ही सार्थक एवं सटीक है। अनुप्रास अलंकार के प्रयोग के कारण भाषा में लय का समावेश हो गया है। यह पद्यांश चित्रात्मक भाषा का सुंदर उदाहरण कहा जा सकता है। इसमें प्रसाद गुण है तथा करुण रस का परिपाक हुआ है। अंत में हम कह सकते हैं कि प्रस्तुत काव्यांश में सहज, सरल एवं भावानुकूल भाषा का प्रयोग किया गया है।

कविता का शाब्दिक अर्थ क्या है कविता कैसे बनती है? - kavita ka shaabdik arth kya hai kavita kaise banatee hai?

प्रश्न 2.
आपके जीवन में अनेक ऐसी घटनाएँ घटी होंगी जिन्होंने आपके मन को छुआ होगा। उस अनुभूति को कविता के रूप में लिखने का प्रयास कीजिए।
उत्तर:
मैं प्रातःकाल उठकर भ्रमण के लिए नगर के टाऊन पार्क में जाता हूँ। आजकल बसन्त ऋतु है और पार्क में रंग-बिरंगे फूल खिले हैं। एक दिन सवेरे-सवेरे आकाश में हल्के-हल्के बादल छा गए और हल्की-हल्की वर्षा होने लगी। मैं पीपल के पेड़ के नीचे बैठ गया और उन हँसते-मुस्कराते फूलों को देखने लगा। इस अवसर पर मैंने एक छोटी-सी कविता रची जो कि इस प्रकार है
सुंदर फूल
देखो कितने प्यारे फूल।
सबसे न्यारे दिखते फूल।
काँटों से ये घिरे हुए हैं,
फिर भी लगते सुंदर फूल ॥
सर्दी-गर्मी को ये झेलें।
भ्रमर सदा इनसे खेलें।
मुरझाए या खिले हुए हों,
सबसे आँख-मिचौली खेलें ॥
बसंत-ऋतु में खूब ये खिलते।
घर-आँगन में सुंदर लगते।
झाड़ी हो या काटेदार पेड़,
फूल सदा हँसते रहते ॥

प्रश्न 3.
शब्दों का खेल, परिवेश के अनुसार शब्द-चयन, लय, तुक, वाक्य संरचना, यति-गति, बिंब, संक्षिप्तता के साथ-साथ विभिन्न अर्थ स्तर आदि से कविता बनती है। दी गई कविता में इनकी पहचान कर अपने शब्दों में लिखें-
एक-जनता का
दुख एक।
हवा में उड़ती पताकाएँ
अनेक।
दैन्य दानव। क्रूर स्थिति।
कंगाल बुद्धि; मजूर घर भर
एक जनता का अमरवर;
एकता का स्वर।
-अन्यथा स्वातंत्र्य इति।
-शमशेर बहादुर सिंह
उत्तर:
(1) एक-जनता का, दुख एक। इस पंक्ति में शब्दों का सुंदर खेल देखा जा सकता है। परंतु कवि ने परिवेश के अनुसार ही शब्दों का चयन किया है।

(2) कवि यह कहना चाहता है कि वर्तमान भारत में सारी जनता महंगाई, बेरोजगारी आदि के कारण अत्यधिक दुखी है। परंतु देश में अनेक राजनीतिक दल अपनी-अपनी पताकाएँ फहराते हुए गरीबी दूर करने का दावा करते हैं। ये सभी दल अपने-अपने घर भरने में लगे रहते हैं।

(3) संपूर्ण कविता भले ही मुक्त छंद में रचित है परंतु इसमें लय और तुक का सुंदर निर्वाह हुआ है।

(4) ‘एक-जनता का दुख एक’ तथा ‘हवा में उड़ती पताकाएँ अनेक’ वाक्य संरचना के सुंदर उदाहरण हैं जिनमें यति, गति तथा बिंब-विधान भी देखा जा सकता है। हवा में उड़ती पताकाओं का बिंब हमारे मन में अंकित हो जाता है।

(5) संपूर्ण कविता में कवि ने संक्षिप्तता का निर्वाह करते हुए समसामयिक अर्थ की सुंदर अभिव्यक्ति की है।

कविता क्या है और कैसे बनती है?

तभी आंतरिक लय का निर्वाह संभव है | कविता छंद और मुक्त छंद दोनों में होती है। छंदोबद्ध कविता के लिए छंद के बारे में बुनियादी जानकारी आवश्यक है ही, मुक्त छंद में लिखने के लिए भी इसका ज्ञान ज़रूरी है। कविता समय विशेष की उपज होती है उसका स्वरूप समय के साथ-साथ बदलता रहता है।

कविता का अर्थ क्या होता है?

कविता का शाब्दिक अर्थ है काव्यात्मक रचना या कवि की कृति, जो छन्दों की शृंखलाओं में विधिवत बांधी जाती है।

कविता कितने प्रकार के होते हैं?

काव्य तीन प्रकार के कहे गए हैं, ध्वनि, गुणीभूत व्यंग्य और चित्र। ध्वनि वह है जिस, में शब्दों से निकले हुए अर्थ (वाच्य) की अपेक्षा छिपा हुआ अभिप्राय (व्यंग्य) प्रधान हो। गुणीभूत ब्यंग्य वह है जिसमें गौण हो। चित्र या अलंकार वह है जिसमें बिना ब्यंग्य के चमत्कार हो।

कविता क्या है कविता का सार?

कविता ही मनुष्य के हृदय को स्वार्थ-संबंधों के संकुचित मंडल से ऊपर उठाकर लोक-सामान्य भाव-भूमि पर ले जाती है, जहाँ जगत् की नाना गतियों के मार्मिक स्वरूप का साक्षात्कार और शुद्ध अनुभूतियों का संचार होता है, इस भूमि पर पहुँचे हुए मनुष्य को कुछ काल के लिए अपना पता नहीं रहता। वह अपनी सत्ता को लोक-सत्ता में लीन किए रहता है।