तक्षिला विश्वविद्यालय की स्थापना किसने की थी और कब की थी?... Show
चेतावनी: इस टेक्स्ट में गलतियाँ हो सकती हैं। सॉफ्टवेर के द्वारा ऑडियो को टेक्स्ट में बदला गया है। ऑडियो सुन्ना चाहिये। तक्षशिला बुध शिक्षा का प्रारंभ में केंद्र था इसकी स्थापना ईसा पूर्व छठी शताब्दी में बताई जाती और साक्षी बताते की पांचवीं शताब्दी तकिया शिक्षा का प्रमुख केंद्र बना रहा दक्षता चाणक कॉलेज लेकर जाना जाता है चाणक्य ने अपनी पुस्तक अर्थशास्त्र जिला में ही लिखी थी और मौर्य सम्राट चंद्रगुप्त और आयुर्वेद चिकित्सक चरक ने भी तक्षशिला से ही शिक्षा प्राप्त की थी और आज के गांधार क्षेत्र में स्थित दीप जो आज पाकिस्तान के रावलपिंडी शहर में है यहां लगभग 68 विषयों की शिक्षा दी जाती थी इसके संस्थापक के बारे में जानकारी का अभाव है तक्षशिला में समानताएं विद्यार्थी 16 साल की उम्र में कभी लेता था और यह पूरी दुनिया में उस समय एक प्रतिष्ठित शिक्षा का केंद्र था Romanized Version 3 जवाब Vokal App bridges the knowledge gap in India in Indian languages by getting the best minds to answer questions of the common man. The Vokal App is available in 11 Indian languages. Users ask questions on 100s of topics related to love, life, career, politics, religion, sports, personal care etc. We have 1000s of experts from different walks of life answering questions on the Vokal App. People can also ask questions directly to experts apart from posting a question to the entire answering community. If you are an expert or are great at something, we invite you to join this knowledge sharing revolution and help India grow. Download the Vokal App! इसे सुनेंरोकेंतक्षशिला विश्वविद्यालय वर्तमान पाकिस्तान के रावलपिडी से 18 मील उत्तर की ओर स्थित था। जिस नगर में यह विश्वविद्यालय था उसके बारे में कहा जाता है कि श्री राम के भाई भरत के पुत्र तक्ष ने उस नगर की स्थापना की थी। यह विश्व का प्रथम विश्विद्यालय था जिसकी स्थापना 700 वर्ष ईसा पूर्व में की गई थी। तक्षशिला का वर्तमान नाम क्या
है? इसे सुनेंरोकें405 ई. में फाह्यान यहाँ आया था। तक्षशिला वर्तमान समय में पाकिस्तान के पंजाब प्रान्त के रावलपिण्डी ज़िले की एक तहसील है। तक्षशिला किसकी कृति है? इसे सुनेंरोकेंऐसा विश्वास है कि इसका निर्माण सम्राट अशोक ने तीसरी शताब्दी ईसापूर्व में कराया था। इस स्थल को दो मुख्य भागों में बांटा जा सकता है- स्थल के दक्षिण में स्तूप है तथा उसके उत्तर में मठ। धर्मराजिक का स्तूप तक्षशिला संग्रहालय से लगभग 3 किलोमीटर की दूरी पर है। इसे सुनेंरोकेंइस विश्वविद्यालय की स्थापना गुप्त शासक कुमारगुप्त प्रथम (450-470) ने की थी। इस विश्वविद्यालय को नौवीं शताब्दी से बारहवीं शताब्दी तक अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त थी, लेकिन अब यह एक खंडहर बनकर रह चुका है, जहां दुनियाभर से लोग घूमने के लिए आते हैं। प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय स्थापत्य कला का एक अद्भुत नमूना है। विश्व का सबसे पुराना विश्वविद्यालय कौन सा है? इसे सुनेंरोकेंविश्व की सबसे प्रथम यूनिवर्सिटी
तक्षशिला [भारत] है यह 700 इसा पूर्व [2700 वर्ष पूर्व ]में स्थापित हुई थी। तक्षशिला विश्वविद्यालय में पूरे विश्व के 10,500 से अधिक छात्र अध्ययन करते थे। यहां 60 से भी अधिक विषयों को पढ़ाया जाता था। तक्षशिला की राजकुमारी कौन है? इसे सुनेंरोकेंअलका थी:(अ) तक्षशिला की राजकुमारी इसे सुनेंरोकेंभारत में ही दुनिया का पहला विश्वविद्यालय खुला था, जिसे नालंदा विश्वविद्यालय के नाम से जाना जाता है। प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय
की स्थापना गुप्त काल के दौरान पांचवीं सदी में हुई थी, लेकिन सन् 1193 में आक्रमण के बाद इसे नेस्तनाबूत कर दिया गया था। तक्षशिला का निर्माण कब हुआ था? इसे सुनेंरोकेंतक्षशिला शहर प्राचीन भारत में गांधार जनपद की राजधानी और एशिया में शिक्षा का प्रमुख केंद्र था। माना जाता है कि इसकी स्थापना 6ठी से 7वीं सदी ईसा पूर्व के मध्य हुई थी। विश्व का पहला विश्वविद्यालय कौन सा था?
तक्षशिला प्राचीन भारत में गांधार देश की राजधानी और शिक्षा का प्रमुख केन्द्र था। यहाँ का विश्वविद्यालय विश्व के प्राचीनतम विश्वविद्यालयों में शामिल है। यह हिन्दू एवं बौद्ध दोनों के लिये महत्वपूर्ण केन्द्र था। चाणक्य यहाँ पर आचार्य थे। 405 ई. में फाह्यान यहाँ आया था। तक्षशिला वर्तमान समय में पाकिस्तान के पंजाब प्रान्त के रावलपिण्डी ज़िले की एक तहसील है। इतिहासतक्षशिला आधुनिक ‘तक्षिता’ का प्राचीन नाम है। खुदाई होने पर यह नगर रावलपिंडी के समीप निकला है। महाभारत के अनुसार यह नगरी गांधार में होनी चाहिए। भरत के पुत्र तक्ष की राजधानी यहीं थी और जनमेजय ने सर्प यज्ञ भी यहीं किया था। तक्षशिला प्राचीन समय का विख्यात विद्यापीठ था तथा संसार प्रसिद्ध कूटनीतिज्ञ चाणक्य (कौटिल्य) यहीं का था।[2] गंधर्वदेशगांधार की चर्चा ऋग्वेद से ही मिलती है, किंतु तक्षशिला की जानकारी सर्वप्रथम वाल्मीकि रामायण से होती है। अयोध्या के राजा राम की विजयों के उल्लेख के सिलसिले में हमें यह ज्ञात होता है कि उनके छोटे भाई भरत ने अपने नाना केकयराज अश्वपति के आमंत्रण और उनकी सहायता से गंधर्वों के देश (गांधार) को जीता और अपने दो पुत्रों को वहाँ का शासक नियुक्त किया। गंधर्व देश सिंधु नदी के दोनों किनारे स्थित था।[3] और उसके दानों ओर भरत के तक्ष और पुष्कल नामक दोनों पुत्रों ने तक्षशिला और पुष्कलावती नामक अपनी-अपनी राजधानियाँ बसाई।[4] तक्षशिला सिंधु के पूर्वी तट पर थी। उन रघुवंशी क्षत्रियों के वंशजों ने तक्षशिला पर कितने दिनों तक शासन किया, यह बता सकना कठिन है। कालिदास ने रघुवंश 15,89 में भी इसी तथ्य का उल्लेख किया है।[5] तक्षशिला का वर्णन महाभारत में परीक्षित के पुत्र जनमेजय द्वारा विजित नगरी के रूप में है। चंद्रगुप्त मौर्य का अधिकारमहाभारत युद्ध के बाद राजा परीक्षित के वंशजों ने कुछ पीढ़ियों तक यहाँ अपना अधिकार बनाए रखा और जनमेजय ने अपना नागयज्ञ भी यहीं किया था।[6] गौतम बुद्ध के समय गांधार के राजा 'पुक्कुसाति' ने मगध के राजा बिम्बिसार के यहाँ अपना दूतमंडल भेजा था। छठी शती ईसा पूर्व फ़ारस के शासक 'कुरुष' ने सिंध प्रदेशों पर आक्रमण किया और बाद में भी उसके कुछ उत्तराधिकारियों ने उसकी नकल की। लगता है तक्षशिला उनके क़ब्ज़े में चली गई और लगभग 200 वर्षों तक उस पर फ़ारस का अधिपत्य रहा। मकदूनिया के आक्रमणकारी विजेता सिकंदर के समय की तक्षशिला की चर्चा करते हुए स्ट्रैबो ने लिखा है-कि वह एक बड़ा नगर था, अच्छी विधियों से शासित था, घनी आबादी वाला था और उपजाऊ भूमि से युक्त था। वहाँ का शासक था- 'बैसिलियस' अथवा 'टैक्सिलिज'।[7] उसने सिकंदर से उपहारों के साथ भेंट कर मित्रता कर ली। उसकी मृत्यु के बाद उसका पुत्र भी जिसका नाम आम्भि था, सिकंदर का मित्र बना रहा। किंतु थोड़े ही दिनों पश्चात् चंद्रगुप्त मौर्य ने उत्तरी पश्चिमी सीमाक्षेत्रों से सिकंदर के सिपहसालारों को मारकर निकाल दिया और तक्षशिला पर उसका अधिकार हो गया। तक्षशिला विश्वविद्यालयतेलपत्त और सुसीमजातक में तक्षशिला को काशी से 2000 कोस दूर बताया गया हे। जातकों में[8] तक्षशिला के महाविद्यालय की भी अनेक बार चर्चा हुई है। यहाँ अध्ययन करने के लिए दूर-दूर से विद्यार्थी आते थे। भारत के ज्ञात इतिहास का यह सर्वप्राचीन विश्वविद्यालय था। यहाँ, बुद्ध काल में कोसल- 'नरेश प्रसेनजित्', कुशीनगर का 'बंधुलमल्ल', वैशाली का 'महाली', मगध नरेश बिंबिसार का प्रसिद्ध राजवैद्य 'जीवक', एक अन्य चिकित्सक 'कौमारभृत्य' तथा परवर्ती काल में 'चाणक्य' तथा 'वसुबंधु' इसी जगत् प्रसिद्ध महाविद्यालय के छात्र रहे थे। इस विश्वविद्यालय में राजा और रंक सभी विद्यार्थियों के साथ समान व्यवहार होता था। जातक कथाओं से यह भी ज्ञात होता है कि तक्षशिला में धनुर्वेद तथा वैद्यक तथा अन्य विद्याओं की ऊंची शिक्षा दी जाती थी। विद्यार्थी सोलह-सत्रह वर्ष की अवस्था में यहाँ शिक्षा के लिए प्रवेश करते थे। एक शिक्षक के नियंत्रण में बीस या पच्चीस विद्यार्थी रहते थे। शिक्षकों का निरीक्षक दिशाप्रमुख आचार्य (दिसापामोक्खाचारियां) कहलाता था। काशी के एक राजकुमार का भी तक्षशिला में जाकर अध्ययन करने का उल्लेख एक जातक कथा में है। आचार्य चाणक्यकुंभकारजातक में नग्नजित नामक राजा की राजधानी तक्षशिला में बताई गई है। अलक्ष्येन्द्र के भारत पर आक्रमण करने के समय यहाँ का राजा आंभी (omphis) था जिसने अलक्षेंद्र को पुरू के विरुद्ध सहायता दी थी। महावंश टीका में अर्थशास्त्र के प्रसिद्ध रचयिता चाणक्य को तक्षशिला का निवासी बताया गया है। चाणक्य ने प्राचीन अर्थशास्त्रों की परंपरा में आंभीय के अर्थशास्त्र की चर्चा की है।[9] चाणक्य स्वयं भी तक्षशिला विद्यालय में आचार्य रहे थे। उन्होंने अपने परिष्कृत एवं विकसित मस्तिष्क द्वारा भारत की तत्कालीन राजनीतिक दुरवस्था को पहचाना तथा उसके प्रतीकार के लिए महान् प्रयत्न किया जिसके फलस्वरूप विशाल मौर्य-साम्राज्य की स्थापना हुई। बौद्ध साहित्य से ज्ञात होता है कि तक्षशिला विश्वविद्यालय धनुर्विद्या तथा वैद्यक की शिक्षा के लिए तत्कालीन सभ्य संसार में प्रसिद्ध था। जैसा ऊपर कहा गया है।, गौतम बुद्ध के समकालीन मगध-सम्राट बिंबसार का राजवैद्य 'जीवक' इसी महाविद्यालय का रत्न था। अशोक शासनकालतक्षशिला का प्रदेश अतिप्राचीन काल से ही विदेशियों द्वारा आक्रान्त होता रहा है। ईरान के सम्राट दारा के 520 ई.पू. के अभिलेख में पंजाब के पश्चिमी भाग पर उसकी विजय का वर्णन है। यदि यह तथ्य हो तो तक्षशिला भी इस काल में ईरान के अधीन रही होगी। पाणिनि ने 4,3,93 में तक्षशिला का उल्लेख किया है। अलक्षेंद्र के इतिहासलेखकों के अनुसार 327 ई. पू. में इस देश के निवासी सुखी तथा समृद्ध थे। लगभग 320 ई.पू. में उत्तरी भारत के अन्य सभी क्षुद्र राज्यों के साथ ही तक्षशिला भी चन्द्रगुप्त मौर्य द्वारा स्थापित साम्राज्य में विलीन हो गयी। बौद्ध ग्रन्थों के अनुसार बिंदुसार के शासनकाल में तक्षशिला के निवासियों ने विद्रोह किया किंतु इस प्रदेश के प्रशासक अशोक ने उस विद्रोह को शांतिपूर्वक दबा दिया। अशोक के राज्य-काल में 'तक्षशिला' 'उत्तरापथ' की राजधानी थी। कुणाल की करुणाजनक कहानी की घटनास्थली तक्षशिला ही थी, जिसका स्मारक 'कुणाल स्तूप' आज भी यहाँ विद्यामान है। अशोक के बादअशोक के पश्चात् उत्तर-पश्चिमी भारत में बहुत समय तक राजनीतिक अस्थिरता रही। बैक्ट्रिया या बल्ख के यूनानियों (232-100 ई.पू.) तथा शक या सिथियनों (प्रथम शती ई.) तथा तत्पश्चात् पार्थियनों और कुषाणों ने तीसरी शती ई. तक तक्षशिला तथा पार्श्ववर्ती प्रदेशों पर राज्य किया। चौथी शती ई. में तक्षशिला गुप्त सम्राटों के प्रभावक्षेत्र में रही किंतु पांचवी शती ई. में होने वाले बर्बर हूणों के आक्रमणों ने तक्षशिला की सारी प्राचीन समृद्धि और सभ्यता को नष्ट कर दिया। सातवीं शती ई. के तृतीय दशक में चीनी यात्री युवानच्वांग ने तक्षशिला को उजड़ा पाया था। उसके लेख के अनुसार उस समय तक्षशिला कश्मीर का एक करद राज्य था। इसके पश्चात् तक्षशिला का अगले 1200 वर्षों का इतिहास विस्मृति के अंधकार में विलीन हो जाता है। खंडहरों की खोज1863 ई. में जनरल कनिंघम ने तक्षशिला को यहाँ के खंडहरों की जांच करके खोज निकाला। तत्पश्चात् 1912 से 1929 तक, सर जोन मार्शल ने इस स्थान पर विस्तृत खुदाई की और प्रचुर तथा मूल्यवान सामग्री का उद्घाटन करके इस नगरी के प्राचीन वैभव तथा ऐश्वर्य की क्षीण झलक इतिहासप्रेमियों के समक्ष प्रस्तुत की। उत्खनन से तक्षशिला में तीन प्राचीन नगरों के ध्वंसावशेष प्राप्त हुए हैं, जिनके वर्तमान नाम 'भीर का टीला', 'सिरकप' तथा 'सिरसुख' हैं। सबसे पुराना नगर 'भीर के टीले' के आस्थान पर था। कहा जाता है कि यह पूर्व बुद्ध-कालीन नगर था यहाँ तक्षशिला का प्रख्यात विश्वविद्यालय स्थित था। सिरकप के चारों ओर परकोटे की दीवार थी। यहाँ के खंडहरों से अनेक बहुमूल्य रत्न तथा आभूषण प्राप्त हुए। जिनसे इस नगरी के इस भाग की जो कुशान राज्यकाल में पूर्व का है, समृद्धि का पता चलता है। सिरसुख जो संभवत: कुषाण राजाओं के समय की तक्षशिला है, एक चौकोर नक्शे पर बना हुआ था। इन तीन नगरों के खंडहरों के अतिरिक्त, तक्षशिला के भग्नावशेषों में अनेक बौद्धबिहारों की नष्ट-भ्रष्ट इमारतें और कई स्तूप हैं जिनमें कुणाल, धर्मरालिक और भल्लार मुख्य हैं। इनसे बौद्धकाल में, इस नगरी का बौद्ध धर्म का एक महत्त्वपूर्ण केंद्र होना प्रमाणित होता है। तक्षशिला प्राचीन काल में जैनों की भी तीर्थस्थली थी। पुरातन प्रबंधसंग्रह नामक ग्रंथ में[10] तक्षशिला के अंतर्गत 105 जैन-तीर्थ बताए गए हैं। इसी नगरी को संभवत: तीर्थमाला चैत्यवंदन में धर्मचक्र कहा गया है।[11] ऐतिहासिक एवं पौराणिक संदर्भ
टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
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तक्षशिला की स्थापना कब और किसने की?तक्षशिला विश्वविद्यालय वर्तमान पाकिस्तान के रावलपिडी से 18 मील उत्तर की ओर स्थित था। जिस नगर में यह विश्वविद्यालय था उसके बारे में कहा जाता है कि श्री राम के भाई भरत के पुत्र तक्ष ने उस नगर की स्थापना की थी। यह विश्व का प्रथम विश्विद्यालय था जिसकी स्थापना 700 वर्ष ईसा पूर्व में की गई थी।
तक्षशिला विश्वविद्यालय के संस्थापक कौन हैं?महाभारत में राजा जनमेजय के नाग सर्प के विनाश के लिए आयोजित यज्ञ से जुड़ी कथा में तक्षशिला का उल्लेख मिलता है। वहीं, रामायण में कहा गया है कि तक्षशिला की स्थापना राम के छोटे भाई भरत ने अपने पुत्र तक्ष के नाम पर की थी। तक्ष ही इस महान भूमि के पहले शासक थे।
तक्षशिला की स्थापना कब हुई थी?कहा जाता है कि जिस नगर में यह विश्वविद्यालय था उसे श्री राम के भाई भरत के पुत्र 'तक्ष' ने स्थापित किया था। विश्व का प्रथम तक्षशिला विश्वविद्यालय की स्थापना 700 वर्ष ईसा पूर्व में की गई थी।
तक्षशिला के राजा का नाम क्या था?358 ईसा-पूर्व - 304 ईसा-पूर्व
आम्भी या आम्भीकुमार ई. पू. 327-26 में भारत पर आलक्षेन्द्र के आक्रमण के समय गांधार एवं उसकी राजधानी तक्षशिला के राजा थे। उनका राज्य सिंधु नदी और झेलम नदी के बीच विस्तृत था।
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